Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:57 PM,
#22
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
11

गतान्क से आगे…………………………………….

जब खड़ी हुईं बात ख़त्म होने के बाद ..थोड़ी देर मेरे सामने चलते हुए दरवाज़े की तरफ बढ़ रही थी ...उनकी भारी भारी गोल गोल चूतड़ टाइट सलवार के अंदर उछल रहे थे ..बाहर आने को मचल रहे थे .... और जब उनकी हथेली मेरी जांघों पर थी...कितना मांसल , मुलायम और गर्म सा मुझे महसूस हुआ था ....सच में मेम साहेब मेरे दिल-ओ-दीमाग पर छाई थीं ..कल शाम के बारे सोचते ही मेरे बदन में झुरजुरी सी होने लगी ...

मेरे जीवन के तीन हसीन चेहरों , जिन्हें मैं अपने जी जान से भी ज़्यादा चाहता था , के साथ पता नहीं शायद ये चौथा चेहरा भी जूड़ने वाला था ...किसे मालूम..???

मेम साहेब के बारे सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी और मैं सो गया...

मैं गहरी नींद में ही था ..मुझे अचानक अपने लौडे पर कुछ टाइट , गीली और मुलायम सी चीज़ उपर नीचे होती हुई महसूस हुई... और मेरा लंड भी अकड़ता हुआ महसूस हुआ....मेरी नींद खुली ....

उफफफफ्फ़ ..मैने बिंदु का ये रूप कभी नहीं देखा थाअ....इतनी खुली खुली ..इतना पागलपन लिए...

वो बिल्कुल नंगी मेरे लौडे पर बैठी, मुझे चोद रही थी..पागलों की तरह ,,,उसकी चुचियाँ डोल रही थीं ..उसके बाल बीखरे जा रहे थे..चेहरा पीछे की तरफ किए सिसकारियाँ लेती जा रही थी..उसे मेरे जागने की कोई परवाह नही थी..बस मेरे लौडे पर पागलों की तरह सवारी किए जा रही थी...

मेरा लौडा तो पहले ही मेम साहेब की याद से मचल रहा था ...मुझे झुरजुरी सी हो रही थी ...और बिंदु के धक्कों ने मुझे और भी पागल कर दिया ...

मैं भी नीचे अपनी चूतड़ उछाल उछाल कर बिंदु के धक्कों के साथ अपना लौडा उसकी चूत में धँसाता जा रहा था ..धँसाता जा रहा था...

फिर बिंदु के धक्के और तेज़ होते गये ..और तेज़ और फिर उसकी चूत ने मेरे लौडे को बूरी तरह जाकड़ लिया .... जकड़े रहा , मेरे लौडे पर उसकी चूत के होंठो के काँपने का आहेसस हुआ ..और फिर बिंदु ढीली पड़ गयी ..उसकी चूत ने अपना पानी मेरे लौडे पर उगलना शुरू कर दिया ....गर्म पानी..लिस लिसा पानी मेरे लौडे से होता हुआ मेरे पेट तक पहून्च रहा था ....

बिंदु मेरे उपर ढेर हो कर हाँफ रही थी , मैने उसे अपने से जोरों से चिपका लिया और फिर नीचे से उसकी गीली चूत में दो चार जोरदार धक्के लगाए ....उसकी चूतड़ को थामते हुए उसकी चूत अपने लौडे पर धंसा दी , लौडे को अंदर किए झड़ने लगा ..झटके मारता हुआ ...चूत की गर्मी पा कर लौडा के अंदर का लावा उबलता हुआ बाहर आ रहा था ...

बिंदु मेरे वीर्य की गर्म धार से सिहर उठी ......और मुझ से चिपक गयी ...मुझे चूमने लगी ...पागलों की तरह...

दोनो एक दूसरे की बाहों में पड़े थे काफ़ी देर तक ...

अब जा कर मेरे लौडे को , मेरे मन को शांति मीली...दिन भर की आँख्मिचौली के बाद ...हाथेलियो की गर्मी और चूत की गर्मी बड़ा फ़र्क होता है ....हाथ की गर्मी से अंदर कुछ पीघलता हुआ बाहर आता है पर चूत की गर्मी से उबलता हुआ धार फेंकता है...

बिन्दु की गर्म चूत ने मुझे शांत कर दिया ...

थोड़ी देर बाद बिंदु उठी और मेरे बगल लेट गयी ....

घड़ी की ओर देखा तो 930 बजे थे....काफ़ी देर तक मैं सोया था ..मेम साहेब की सुनेहरी यादों की थपकी ने मेरी आँखें बंद कर दी थीं ..पर मेरे लौडे को जगा दिया था ..और बिंदु ने उसे फिर से शांत कर सूला दिया ..

मैने उसकी ओर चेहरा किया , उसे चूम लिया और पूछा

"बिंदु ..... क्या हुआ मेरी बहना को..आज तो तू ने मुझे ही चोद दिया..?"

बिंदु जो अब तक इतने बेबाक हुई मेरे लौडे की सवारी कर रही थी ..मेरे सवाल से झेंप गयी .और अपनी हथेलियों से अपना चेहरा छुपा लिया ....

"हाई .....धात..... भाई ...ऐसे ना बोलो ...." फिर और भी शरमाते हुए अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया...

" अरे क्या बिंदु..अच्छा ..ये बता .जब मैं सो रहा था..मेरा लौडा कड़क खड़ा था ..? " मैने उसकी ठुड्डी थामते हुए उसका चेहरा अपनी तरफ करते हुए कहा.

उस ने धीमी आवाज़ में कहा ..

"हां भाई ...दिन में तुम दोनो के खेल से मैं काफ़ी गर्म हो गयी थी..फिर अभी तुझे जगाने आई तो देखा तेरा लौडा ना जाने क्यूँ एक दम तन्नाया सा पॅंट के अंदर ही खड़ा है..मुझ से रहा नहीं गया ..मैने बहुत सावधानी से आहिस्ता आहिस्ता तेरी पॅंट उतार डी..तू जगा नहीं सोता रहा ..फिर अपने कपड़े भी उतारे तेरे उपर ही चढ़ गयी .....तुझे बुरा लगा क्या भाई..??"

" अरे बिंदु ..बुरा.? बहुत अच्छा लगा बिंदु ..बहुत मज़ा आया ...और तेरा ये खुल कर मुझे चोद्ना ..उफ़फ्फ़ ..मत पूछ बिंदु ...तुझे पहली बार इतने खुले दिल से मज़े लेते हुए देखा ..मत पूछ कितना अच्छा लगा ..."

" हाई ..भाई देख ना मैं कितनी बेशरम हो गयी थी.." और फिर अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया....

" हा हा हा !! ..तेरी इसी अदा पर तो मैं मरता हूँ जान.." मैने उसे चूमते हुए कहा ...

" छी कितने बेशरम हो तुम भी भाई .....अच्छा चलो उठो ..काफ़ी देर हो गयी है ..खाना तो खा लें ..."

और तभी मा की भी आवाज़ आ गयी ..हमें खाने को बूला रही थी...

खाना खाते -पीते रात के करीब 11 बज गये थे..दिन भर की सरगर्मियों के बाद और पेट भर खाना और लंड भर चूत लेने के बाद नींद तो अच्छी आनी ही थी..मैं बिस्तर पर लेट ते ही मेम साहेब की गदराई चूचियों पर अपना सर रखने के सपने में खोया खोया सो गया..

सुबेह नींद खुली तो देखा सिंधु मेरे लौडे से बूरी तरह लीपटि थी ..अपने गालों से सहला रही थी ..उसे चूम रही थी , मैने जागते हुए कहा .." तू भी ना सिंधु ...अरे छोड़ ना यार ...मुझे बाथरूम जाना है...."

मेरी बात सुन कर वो हंस पड़ी.." ठीक है भाई बाथरूम चले जाना पर ये तो बताते जाओ कल से मैं देख रही हूँ तेरा लंड इतनी बूरी तरह आकड़ा क्यूँ रहता है....क्या चक्कर है भाई..कोई नयी चूत का तो चक्कर नहीं ..??"

मैं बिस्तर से उठा अपने लौडे को थामते थामते हुए , सिंधु को उसके कंधों से अपने से चिपका लिया और बोला " अरे नयी चूत का कोई चान्स नहीं रे...जब तीन -तीन इतने मस्त चूत मेरे सामने हैं..चौथी का नंबर कहाँ है रे... और तुम्ही लोगो के मारे तो बेचारा हमेशा तन्तनया रहता है...."

मेरी बात सुन सिंधु मस्त हो गयी और मुझे चूम लिया " वाह भाई...सुबेह सुबेह मस्त का दिया रे ..इतनी मीठी मीठी बात कर दी.." और मेरे तंन लौडे को दबा दिया " हा हा हा!! जाओ जल्दी जाओ ..इसे खाली करो....."

और इसी तरह हँसी मज़ाक के माहौल में हम सब चाइ-नाश्ता कर अपने अपने कामों पर निकल गये..

दोपहर को खाने के बाद सब सो रहे थे..पर मेरी आँखें तो घड़ी के काँटे की तरफ थी ...3,45 होते ही मैं उठा ..हाथ मुँह धोया ..बाल संवारे और चल पड़ा मेम साहेब का सामना करने ...मेरे अंदर फूल्झड़िया फूट रही थी..पर मैने अपने को कहा

" अबे जग्गू ...थोड़ा संभाल के बेटा ...सीधा टॉप गियर में ही गाड़ी मत चलाओ ..थोड़ी देर 1स्ट्रीट गियर में स्पीड पकड़ ले..वरना साले, गाड़ी झटके पे झटका खाएगी और रुक जाएगी....गाड़ी रुकने मत दे ..इसे चलते रहना चाहिए ...क्यूँ ठीक है ना..??"

ह्म्‍म्म सही है गाड़ी चलते ही रहना है.हमेशा ..इसी में सब की भलाई है...

मैं लंबे लंबे कदमों और धड़कते दिल के साथ बंगले की ओर चल पड़ा ..

दरवाज़ा खटखटाया ...." कौन ...जग्गू ..?? " अंदर से मेम साहेब की मीठी आवाज़ आई

मैने जवाब दिया " जी मेम साहेब .."

"दरवाज़ा खुला है रे ..आ जा अंदर ..." मुझे जवाब मिला ..

मैने अपनी चप्पल उतारी , दरवाज़ा खोला और अंदर गया...

अंदर मेम साहेब सोफे पर लेटी टीवी देख रही थी ..और मैं उन्हें फटी फटी आँखों से देख रहा था ....

उफफफफ्फ़ क्या ड्रेस था आज का .... नीचे गले तक का ढीला सा टॉप ...उसके अंदर उनकी भारी भारी गोल गोल चुचियाँ बस बाहर उछल पड़ने को तैय्यार.....गहरी लाल लिपस्टिक से लगे भरे भरे होंठ ... ढीली फिटिंग वाली जीन्स ...जो नाभि से नीचे थी ..पेट पूरा नंगा... भरे भरे पेट..मांसल पेट ...रंग बिल्कुल दूधिया ... पैर फैलाए ..जिस से टाँगों के बीच फुद्दि का शेप फूला फूला उभर कर मेरी आँखों के सामने ...
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