Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:21 AM,
#2
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
रॅंफल का लड़के ने घर में घुस कर आवाज़ दी. मुझे पता था कि घर में कोई नही है. फिर भी मैं कुच्छ ना बोली. दर-असल पढ़ने का मेरा मंन था ही नही, इसीलिए सोने का बहाना किए पड़ी रही. मेरे पास आते ही वो फिर बोला,"अंजलि!"

उसने 2-3 बार मुझको आवाज़ दी. पर मुझे नही उठना था सो नही उठी. हाए ऱाअम! वो तो अगले ही पल लड़कों वाली औकात पर आ गया. सीधा नितंबों पर हाथ लगाकर हिलाया,"अंजलि.. उठो ना! पढ़ना नही है क्या?"

इस हरकत ने तो दूसरी ही पढ़ाई करने की ललक मुझमें जगा दी. उसके हाथ का अहसास पाते ही मेरे नितंब सिकुड से गये. पूरा बदन उसके छूने से थिरक उठा था. उसको मेरे जाग जाने की ग़लतफहमी ना हो जाए इसीलिए नींद में ही बड़बड़ाने का नाटक करती हुई मैं उल्टी हो गयी; अपने मांसल नितंबों की कसावट से उसको ललचाने के लिए.

सारा गाँव उस चास्मिष को शरीफ कहता था, पर वो तो बड़ा ही हरामी निकला. एक बार बाहर नज़र मार कर आया और मेरे नितंबों से थोड़ा नीचे मुझसे सटकार चारपाई पर ही बैठ गया. मेरा मुँह दूसरी तरफ था पर मुझे यकीन था कि वो चोरी चोरी मेरे बदन की कामुक बनावट का ही लुत्फ़ उठा रहा होगा!

"अंजलि!" इस बार थोड़ी तेज बोलते हुए उसने मेरे घुटनों तक के लहँगे से नीचे मेरी नंगी गुदज पिंडलियों पर हाथ रखकर मुझे हिलाया और सरकते हुए अपना हाथ मेरे घुटनो तक ले गया. अब उसका हाथ नीचे और लहंगा उपर था.

मुझसे अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. पर शिकार हाथ से निकालने का डर था. मैं चुप्पी साधे रही और उसको जल्द से जल्द अपने पिंजरे में लाने के लिए दूसरी टाँग घुटनो से मोडी और अपने पेट से चिपका ली. इसके साथ ही लहंगा उपर सरकता गया और मेरी एक जाँघ काफ़ी उपर तक नंगी हो गयी. मैने देखा नही, पर मेरी कछी तक आ रही बाहर की ठंडी हवा से मुझे लग रहा था कि उसको मेरी कछी का रंग दिखने लगा है.

"आ..आन्न्न्जलि" इस बार उसकी आवाज़ में कंपकपाहट सी थी.. सिसक उठा था वो शायद! एक बार खड़ा हुआ और फिर बैठ गया.. शायद मेरा लहंगा उसके नीचे फँसा हुआ होगा. वापस बैठते ही उसने लहँगे को उपर पलट कर मेरी कमर पर डाल दिया..

उसका क्या हाल हुआ होगा ये तो पता नही. पर मेरी योनि में बुलबुले से उठने शुरू हो चुके थे. जब सहन करने की हद पार हो गयी तो मैं नींद में ही बनी हुई अपना हाथ मूडी हुई टाँग के नीचे से ले जाकर अपनी कछी में उंगलियाँ घुसा 'वहाँ' खुजली करने करने के बहाने उसको कुरेदने लगी. मेरा ये हाल था तो उसका क्या हो रहा होगा? सुलग गया होगा ना?

मैने हाथ वापस खींचा तो अहसास हुआ जैसे मेरी योनि की एक फाँक कछी से बाहर ही रह गयी है. अगले ही पल उसकी एक हरकत से मैं बौखला उठी. उसने झट से लहंगा नीचे सरका दिया. कम्बख़्त ने मेरी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया.

पर मेरा सोचना ग़लत साबित हुआ. वो तो मेरी उम्मीद से भी ज़्यादा शातिर निकला. एक आख़िरी बार मेरा नाम पुकारते हुए उसने मेरी नींद को मापने की कोशिश की और अपना हाथ लहँगे के नीचे सरकते हुए मेरे नितंबों पर ले गया....

कछी के उपर थिरकति हुई उसकी उंगलियों ने तो मेरी जान ही निकल दी. कसे हुए मेरे चिकने चूतदों पर धीरे धीरे मंडराता हुआ उसका हाथ कभी 'इसको' कभी उसको दबा कर देखता रहा. मेरी चूचियाँ चारपाई में दबकर छॅट्पाटेने लगी थी. मैने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाया हुआ था..

अचानक उसने मेरे लहँगे को वापस उपर उठाया और धीरे से अपनी एक उंगली कछी में घुसा दी.. धीरे धीरे वा उंगली सरक्ति हुई पहले नितंबों की दरार में घूमी और फिर नीचे आने लगी.. मैने दम साध रखा था.. पर जैसे ही उंगली मेरी 'फूल्कुन्वरि' की फांकों के बीच आई; मैं उच्छल पड़ी.. और उसी पल उसका हाथ वहाँ से हटा और चारपाई का बोझ कम हो गया..

मेरी छ्होटी सी मछ्लि तड़प उठी. मुझे लगा, मौका हाथ से गया.. पर इतनी आसानी से मैं भी हार मान'ने वालों में से नही हूँ... अपनी सिसकियों को नींद की बड़बड़ाहट में बदल कर मैं सीधी हो गयी और आँखें बंद किए हुए ही मैने अपनी जांघें घुटनों से पूरी तरह मोड़ कर एक दूसरी से विपरीत दिशा में फैला दी. अब लहंगा मेरे घुटनो से उपर था और मुझे विस्वास था कि मेरी भीगी हुई कछी के अंदर बैठी 'छम्मक छल्लो' ठीक उसके सामने होगी.

थोड़ी देर और यूँही बड़बड़ाते हुए मैं चुप हो कर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी. अचानक मुझे कमरे की चित्कनि बंद होने की आवाज़ आई. अगले ही पल वह वापस चारपाई पर ही आकर बैठ गया.. धीरे धीरे फिर से रैंग्ता हुआ उसका हाथ वहीं पहुँच गया. मेरी योनि के उपर से उसने कछी को सरककर एक तरफ कर दिया. मैने हुल्की सी आँखें खोलकर देखा. उसने चस्में नही पहने हुए थे. शायद उतार कर एक तरफ रख दिए होंगे. वह आँखें फेड हुए मेरी फड़कट्ी हुई योनि को ही देख रहा था. उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव अलग ही नज़र आ रहे थे..

अचानक उसने अपना चेहरा उठाया तो मैने अपनी आँखें पूरी तरह बंद कर ली. उसके बाद तो उसने मुझे हवा में ही उड़ा दिया. योनि की दोनो फांकों पर मुझे उसके दोनो हाथ महसूस हुए. बहुत ही आराम से उसने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग कर दिया. जाने क्या ढूँढ रहा था वह अंदर. पर जो कुच्छ भी कर रहा था, मुझसे सहन नही हुआ और मैने काँपते हुए जांघें भींच कर अपना पानी छ्चोड़ दिया.. पर आसचर्यजनक ढंग से इस बार उसने अपने हाथ नही हटाए...

किसी कपड़े से (शायद मेरे लहँगे से ही) उसने योनि को सॉफ किया और फिर से मेरी योनि को चौड़ा कर लिया. पर अब झाड़ जाने की वजह से मुझे नॉर्मल रहने में कोई खास दिक्कत नही हो रही थी. हाँ, मज़ा अब भी आ रहा था और मैं पूरा मज़ा लेना चाहती थी.

अगले ही पल मुझे गरम साँसें योनि में घुसती हुई महसूस हुई और पागल सी होकर मैने वहाँ से अपने आपको उठा लिया.. मैने अपनी आँखें खोल कर देखा. उसका चेहरा मेरी योनि पर झुका हुआ था.. मैं अंदाज़ा लगा ही रही थी कि मुझे पता चल गया कि वो क्या करना चाहता है. अचानक वो मेरी योनि को अपनी जीभ से चाटने लगा.. मेरे सारे बदन में झुरजुरी सी उठ गयी..इस आनंद को सहन ना कर पाने के कारण मेरी सिसकी निकल गयी और मैं अपने नितंबों को उठा उठा कर पटक'ने लगी...पर अब वो डर नही रहा था... मेरी जांघों को उसने कसकर एक जगह दबोच लिया और मेरी योनि के अंदर जीभ घुसा दी..

"अयाया!" बहुत देर से दबाए रखा था इस सिसकी को.. अब दबी ना रह सकी.. मज़ा इतना आ रहा था की क्या बताउ... सहन ना कर पाने के कारण मैने अपना हाथ वहाँ ले जाकर उसको वहाँ से हटाने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया," कुच्छ नही होता अंजलि.. बस दो मिनिट और!" कहकर उसने मेरी जांघों को मेरे चेहरे की तरफ धकेल कर वहीं दबोच लिया और फिर से जीभ के साथ मेरी योनि की गहराई मापने लगा...

हाए राम! इसका मतलब उसको पता था की मैं जाग रही हूँ.. पहले ये बात बोल देता तो मैं क्यूँ घुट घुट कर मज़े लेती, मैं झट से अपनी कोहनी चारपाई पर टके कर उपर उठ गयी और सिसकते हुए बोली," अयाया...जल्दी करो ना.. कोई आ जाएगा नही तो!"

फिर क्या था.. उसने चेहरा उपर करके मुस्कुराते हुए मेरी और देखा.. उसकी नाक पर अपनी योनि का गाढ़ा पानी लगा देखा तो मेरी हँसी छ्छूट गयी.. इस हँसी ने उसकी झिझक और भी खोल दी.. झट से मुझे पकड़ कर नीचे उतारा और घुटने ज़मीन पर टीका मुझे कमर से उपर चारपाई पर लिटा दिया..," ये क्या कर रहे हो?"

"टाइम नही है अभी बताने का.. बाद में सब बता दूँगा.. कितनी रसीली है तू हाए.. अपनी गेंड को थोड़ा उपर कर ले.."

"पर कैसे करूँ?.. मेरे तो घुटने ज़मीन पर टीके हुए हैं..?"

"तू भी ना.. !" उसको गुस्सा सा आया और मेरी एक टाँग चारपाई के उपर चढ़ा दी.. नीचे तकिया रखा और मुझे अपना पेट वहाँ टीका लेने को बोला.. मैने वैसा ही किया..

"अब उठाओ अपने चूतड़ उपर.. जल्दी करो.." बोलते हुए उसने अपना मूसल जैसा लिंग पॅंट में से निकाल लिया..

मैं अपने नितंबों को उपर उठाते हुए अपनी योनि को उसके सामने परोसा ही था कि बाहर पापा की आवाज़ सुनकर मेरा दम निकल गया," पप्प्पा!" मैं चिल्लाई....

"दो काम क्या कर लिए; तेरी तो जान ही निकल गयी.. चल खड़ी हो जा अब! नहा धो ले. 'वो' आने ही वाला होगा... पापा ने कमरे में घुसकर कहा और बाहर निकल गये,"जा क्षोटू! एक 'अद्धा' लेकर आ!"

हाए राम! मेरी तो साँसें ही थम गयी थी. गनीमत रही की सपने में मैने सचमुच अपना लहंगा नही उठाया था. अपनी चूचियो को दबाकर मैने 2-4 लंबी लंबी साँसें ली और लहँगे में हाथ डाल अपनी कछी को चेक किया. योनि के पानी से वो नीचे से तर हो चुकी थी. बच गयी!

रगड़ रगड़ कर नहाते हुए मैने खेत की मिट्टी अपने बदन से उतारी और नयी नवेली कछी पहन ली जो मम्मी 2-4 दिन पहले ही बाजार से लाई थी," पता नही अंजू! तेरी उमर में तो मैं कछी पहनती भी नही थी. तेरी इतनी जल्दी कैसे खराब हो जाती है" मम्मी ने लाकर देते हुए कहा था.

मुझे पूरी उम्मीद थी कि रॅंफल का लड़का मेरा सपना साकार ज़रूर करेगा. इसीलिए मैने स्कूल वाली स्कर्ट डाली और बिना ब्रा के शर्ट पहनकर बाथरूम से बाहर आ गयी.

"जा वो नीचे बैठे तेरा इंतज़ार कर रहे हैं.. कितनी बार कहा है ब्रा डाल लिया कर; निकम्मी! ये हिलते हैं तो तुझे शर्म नही आती?" मम्मी की इस बात को मैने नज़रअंदाज किया और अपना बॅग उठा सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गयी.

नीचे जाकर मैने उस चश्मू के साथ बैठी पड़ोस की रिंकी को देखा तो मेरी समझ में आया कि मम्मी ने बैठा है की वजाय बैठे हैं क्यू बोला था

"तुम किसलिए आई हो?" मैने रिंकी से कहा और चश्मू को अभिवादन के रूप में दाँत दिखा दिए.

उल्लू की दूम हंसा भी नही मुझे देखकर," कुर्सी नहीं हैं क्या?"

"मैं भी यहीं पढ़ लिया करूँगी.. भैया ने कहा है कि अब रोज यहीं आना है. पहले मैं भैया के घर जाती थी पढ़ने.. " रिंकी की सुरीली आवाज़ ने भी मुझे डंक सा मारा...

"कौन भैया?" मैने मुँह चढ़ा कर पूचछा!

"ये.. तरुण भैया! और कौन? और क्या इनको सर कहेंगे? 4-5 साल ही तो बड़े हैं.." रिंकी ने मुस्कुराते हुए कहा..

हाए राम! जो थोड़ी देर पहले सपने में 'सैयाँ' बनकर मेरी 'फूल्झड़ी' में जीभ घुमा रहा था; उसको क्या अब भैया कहना पड़ेगा? ना! मैने ना कहा भैया

" मैं तो सर ही कहूँगी! ठीक है ना, तरुण सर?"

बेशर्मी से मैं चारपाई पर उसके सामने पसर गयी और एक टाँग सीधी किए हुए दूसरी घुटने से मोड़ अपनी छाती से लगा ली. सीधी टाँग वाली चिकनी जाँघ तो मुझे उपर से ही दिखाई दे रही थी.. उसको क्या क्या दिख रहा होगा, आप खुद ही सोच लो.

"ठीक से बैठ जाओ! अब पढ़ना शुरू करेंगे.. " हरामी ने मेरी जन्नत की ओर देखा तक नही और खुद एक तरफ हो रिंकी को बीच में बैठने की जगह दे दी.. मैं तो सुलगती रह गयी.. मैने आलथी पालती मार कर अपना घुटना जलन की वजह से रिंकी की कोख में फँसा दिया और आगे झुक कर रॉनी सूरत बनाए कॉपी की और देखने लगी...

एक डेढ़ घंटे में जाने कितने ही सवाल निकाल दिए उसने, मेरी समझ में तो खाक भी नही आया.. कभी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट को कभी उसकी पॅंट के मर्दाना उभर को ढूँढती रही, पर कुच्छ नही मिला..

पढ़ते हुए उसका ध्यान एक दो बार मेरी चूचियो की और हुआ तो मुझे लगा कि वो 'दूध' का दीवाना है. मैने झट से उसकी सुनते सुनते अपनी शर्ट का बीच वाला एक बटन खोल दिया. मेरी गड्राई हुई चूचिया, जो शर्ट में घुटन महसूस कर रही थी; रास्ता मिलते ही उस और सरक कर साँस लेने के लिए बाहर झाँकने लगी.. दोनो में बाहर निकलने की मची होड़ का फायडा उनके बीच की गहरी घाटी को हो रहा था, और वह बिल्कुल सामने थी.

तरुण ने जैसे ही इस बार मुझसे पूच्छने के लिए मेरी और देखा तो उसका चेहरा एकदम लाल हो गया.. हड़बड़ते हुए उसने कहा," बस! आज इतना ही.. मुझे कहीं जाना है... कहते हुए उसने नज़रें चुराकर एक बार और मेरी गोरी चूचियो को देखा और खड़ा हो गया....

हद तो तब हो गयी, जब वो मेरे सवाल का जवाब दिए बिना निकल गया.

मैने तो सिर्फ़ इतना ही पूचछा था," मज़ा नही आया क्या, सर?"
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास - by sexstories - 10-22-2018, 11:21 AM

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