Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:21 AM,
#3
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--2

गतांक से आगे.......................

सपने में ही सही, पर बदन में जो आग लगी थी, उसकी दहक से अगले दिन भी मेरा अंग - अंग सुलग रहा था. जवानी की तड़प सुनाती तो सुनाती किसको! सुबह उठी तो घर पर कोई नही था.. पापा शायद आज मम्मी को खेत में ले गये होंगे.. हफ्ते में 2 दिन तो कम से कम ऐसा होता ही था जब पापा मम्मी के साथ ही खेत में जाते थे..

उन्न दो दीनो में मम्मी इस तरह सजधज कर खाना साथ लेकर जाती थी जैसे खेत में नही, कहीं बुड्ढे बुद्धियों की सौन्दर्य प्रतियोगिता में जा रही हों.. मज़ाक कर रही हूँ... मम्मी तो अब तक बुद्धि नही हुई हैं.. 40 की उमर में भी वो बड़ी दीदी की तरह रसीली हैं.. मेरा तो खैर मुक़ाबला ही क्या है..?

खैर; मैं भी किन बातों को उठा लेती हूँ... हां तो मैं बता रही थी कि अगले दिन सुबह उठी तो कोई घर पर नही था... खाली घर में खुद को अकेली पाकर मेरी जांघों के बीच सुरसुरी सी मचने लगी.. मैने दरवाजा अंदर से बंद किया और चारपाई पर आकर अपनी जांघों को फैलाकर स्कर्ट पूरी तरह उपर उठा लिया..

मैं देखकर हैरत मैं पड़ गयी.. छ्होटी सी मेरी योनि किसी बड़े पाव की तरह फूल कर मेरी कछी से बाहर निकलने को उतावली हो रही थी... मोटी मोटी योनि की पत्तियाँ संतरे की फांकों की तरह उभर कर कछी के बाहर से ही दिखाई दे रही थी... उनके बीच की झिर्री में कछी इस तरह अंदर घुसी हुई थी जैसे योनि का दिल कछी पर ही आ गया हो...

डर तो किसी बात का था ही नही... मैं लेटी और नितंबों को उकसाते हुए कछी को उतार फैंका और वापस बैठकर जांघों को फिर दूर दूर कर दिया... हाए! अपनी ही योनि के रसीलेपान और जांघों तक पसर गयी चिकनाहट को देखते ही मैं मदहोश सी हो गयी..

मैने अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी उंगलियों से योनि की संतरिया फांकों को सहला कर देखा.. फांकों पर उगे हुए हलके हलके भूरे रंग के छ्होटे छ्होटे बॉल उत्तेंजाना के मारे खड़े हो गये.. उंनपर हाथ फेरने से मुझे योनि के अंदर तक गुदगुदी और आनंद का अहसास हो रहा था.... योनि पर उपर नीचे उंगलियों से क्रीड़ा सी करती हुई मैं बदहवास सी होती जा रही थी.. फांकों को फैलाकर मैने अंदर झाँकने की कोशिश की; चिकनी चिकनी लाल त्वचा के अलावा मुझे और कुच्छ दिखाई ना दिया... पर मुझे देखना था......

मैं उठी और बेड पर जाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ गयी.. हां.. अब मुझे ठीक ठीक अपनी जन्नत का द्वार दिखाई दे रहा था.. गहरे लाल और गुलाबी रंग में रंगा 'वो' कोई आधा इंच गहरा एक गड्ढा सा था...

मुझे पता था कि जब भी मेरा 'कल्याण' होगा.. यहीं से होगा...! जहाँ से योनि की फाँकें अलग होनी शुरू होती हैं.. वहाँ पर एक छ्होटा सा दाना उभरा हुआ था.. ठीक मेरी चूचियों के दाने की तरह.. उत्तेजना के मारे पागल सी होकर में उसको उंगली से छेड़ने लगी..

हमेशा की तरह वहाँ स्पर्श करते ही मेरी आँखें बंद होने लगी.. जांघों में हल्का हल्का कंपन सा शुरू हो गया... वैसे ये सब मैं पहले भी महसूस कर चुकी थी.. पर सामने शीशे में देखते हुए ऐसा करने में अलग ही रोमांच और आनंद आ रहा था..

धीरे धीरे मेरी उंगलियों की गति बढ़ती गयी.. और मैं निढाल होकर बिस्तेर पर पिछे आ गिरी... उंगलियाँ अब उसको सहला नही रही थी... बुल्की बुरी तरह से पूरी योनि को ही फांकों समेत मसल रही थी... अचानक मेरी अजीब सी सिसकियो से मेरे कानों में मीठी सी धुन गूंजने लगी और ना जाने कब ऐसा करते हुए मैं सब कुच्छ भुला कर दूसरे ही लोक में जा पहुँची....

गहरी साँसें लेते हुए मैं अपने सारे शरीर को ढीला छ्चोड़ बाहों को बिस्तेर पर फैलाए होश में आने ही लगी थी कि दरवाजे पर दस्तक सुनकर मेरे होश ही उड़ गये....

मैने फटाफट उठते हुए स्कर्ट को अच्छि तरह नीचे किया और जाकर दरवाजा खोल दिया....

"कितनी देर से नीचे से आवाज़ लगा रहा हूँ? मैं तो वापस जाने ही वाला था...अच्च्छा हुआ जो उपर आकर देख लिया... " सामने ज़मींदार का लड़का खड़ा था; सुन्दर!

" क्या बात है? आज स्कूल नही गयी क्या?" सुंदर ने मुझे आँखों ही आँखों में ही मेरे गालों से लेकर घुटनो तक नाप दिया..

"घर पर कोई नही है!" मैने सिर्फ़ इतना ही कहा और बाहर निकल कर आ गयी...

कमीना अंदर जाकर ही बैठ गया,"तुम तो हो ना!"

"नही... मुझे भी अभी जाना है.. खेत में..!" मैने बाहर खड़े खड़े ही बोला...

"इतने दीनो में आया हूँ.. चाय वाय तो पूच्छ लिया करो.. इतना भी कंजूस नही होना चाहिए..."

मैने मुड़कर देखा तो वो मेरे मोटे नितंबों की और देखते हुए अपने होंटो पर जीभ फेर रहा था....

"दूध नही है घर में...!" मैं नितंबों का उभार च्छुपाने के लिए जैसे ही उसकी और पलटी.. उसकी नज़रें मेरे सीने पर जम गयी

"कमाल है.. इतनी मोटी ताजी हो और दूध बिल्कुल नही है.." वह दाँत निकाल कर हँसने लगा...

आप शायद समझ गये होंगे की वह किस 'दूध' की बात कर रहा था.. पर मैं बिल्कुल नही समझी थी उस वक़्त.. तुम्हारी कसम

"क्या कह रहे हो? मेरे मोटी ताज़ी होने से दूध होने या ना होने का क्या मतलब"

वह यूँही मेरी साँसों के साथ उपर नीचे हो रही मेरी चूचियो को घूरता रहा," इतनी बच्ची भी नही हो तुम.. समझ जाया करो.. जितनी मोटी ताजी भैंस होगी.. उतना ही तो ज़्यादा दूध देगी" उसकी आँखें मेरे बदन में गढ़ी जा रही थी...

हाए राम! मेरी अब समझ में आया वो क्या कह रहा था.. मैने पूरा ज़ोर लगाकर चेहरे पर गुस्सा लाने की कोशिश की.. पर मैं अपने गालों पर आए गुलबीपन को छुपा ना सकी," क्या बकवास कर रहे हो तुम...? मुझे जाना है.. अब जाओ यहाँ से..!"

"अरे.. इसमें बुरा मान'ने वाली बात कौनसी है..? ज़्यादा दूध पीती होगी तभी तो इतनी मोटी ताज़ी हो.. वरना तो अपनी दीदी की तरह दुबली पतली ना होती....और दूध होगा तभी तो पीती होगी...मैने तो सिर्फ़ उदाहरण दिया था.. मैं तुम्हे भैंस थोड़े ही बोल रहा था... तुम तो कितनी प्यारी हो.. गोरी चित्ति... तुम्हारे जैसी तो और कोई नही देखी मैने... आज तक! कसम झंडे वाले बाबा की..."

आखरी लाइन कहते कहते उसका लहज़ा पूरा कामुक हो गया था.. जब जब उसने दूध का जिकर किया.. मेरे कानो को यही लगा कि वो मेरी मदभरी चूचियो की तारीफ़ कर रहा है....

"हां! पीती हूँ.. तुम्हे क्या? पीती हूँ तभी तो ख़तम हो गया.." मैने चिड़ कर कहा....

"एक आध बार हमें भी पीला दो ना!... .. कभी चख कर देखने दो.. तुम्हारा दूध...!"

उसकी बातों के साथ उसका लहज़ा भी बिल्कुल अश्लील हो गया था.. खड़े खड़े ही मेरी टांगे काँपने लगी.....

"मुझे नही पता...मैने कहा ना.. मुझे जाना है..!" मैं और कुच्छ ना बोल सकी और नज़रें झुकाए खड़ी रही..

"नही पता तभी तो बता रहा हूँ अंजू! सीख लो एक बार.. पहले पहल सभी को सीखना पड़ता है... एक बार सीख लिया तो जिंदगी भर नही भूलॉगी..." उसकी आँखों में वासना के लाल डोरे तेर रहे थे...

मेरा भी बुरा हाल हो चुका था तब तक.. पर कुच्छ भी हो जाता.. उस के नीचे तो मैने ना जाने की कसम खा रखी थी.. मैने गुस्से से कहा,"क्या है? क्या सीख लूँ.. बकवास मत करो!"

"अरे.. इतना उखड़ क्यूँ रही हो बार बार... मैं तो आए गये लोगों की मेहमान-नवाज़ी सिखाने की बात कर रहा हूँ.. आख़िर चाय पानी तो पूच्छना ही चाहिए ना.. एक बार सीख गयी तो हमेशा याद रखोगी.. लोग कितने खुश होकर वापस जाते हैं.. हे हे हे!" वा खीँसे निपोर्ता हुआ बोला... और चारपाई के सामने पड़ी मेरी कछी को उठा लिया...

मुझे झटका सा लगा.. उस और तो मेरा ध्यान अब तक गया ही नही था... मुझे ना चाहते हुए भी उसके पास अंदर जाना पड़ा,"ये मुझे दो...!"

बड़ी बेशर्मी से उसने मेरी गीली कछी को अपनी नाक से लगा लिया,"अब एक मिनिट में क्या हो जाएगा.. अब भी तो बेचारी फर्श पर ही पड़ी थी..." मैने हाथ बढ़ाया तो वो अपना हाथ पिछे ले गया.. शायद इस ग़लतफहमी में था कि उस'से छीन'ने के लिए में उसकी गोद में चढ़ जाउन्गि....

मैं पागल सी हो गयी थी.. उस पल मुझे ये ख़याल भी नही आया की मैं बोल क्या रही हूँ..," दो ना मुझे... मुझे पहन'नि है..." और अगले ही पल ये अहसास होते ही कि मैने क्या बोल दिया.. मैने शरम के मारे अपनी आँखें बंद करके अपने चेहरे को ढक लिया....

"ओह हो हो हो... इसका मतलब तुम नंगी हो...! ज़रा सोचो.. कोई तुम्हे ज़बरदस्ती लिटा कर तुम्हारी 'देख' ले तो!"

उसके बाद तो मुझसे वहाँ खड़ा ही नही रहा गया.. पलट कर मैं नीचे भाग आई और घर के दरवाजे पर खड़ी हो गयी.. मेरा दिल मेरी अकड़ चुकी चूचियो के साथ तेज़ी से धक धक कर रहा था...

कुच्छ ही देर में वह नीचे आया और मेरी बराबर में खड़ा होकर बिना देखे बोला," स्कूल में तुम्हारे करतबों के काफ़ी चर्चे सुने हैं मैने.. वहाँ तो बड़ी फुदक्ति है तू... याद रखना छोरि.. तेरी माँ को भी चोदा है मैने.. पता है ना...? आज नही तो कल.. तुझे भी अपने लंड पर बिठा कर ही रहूँगा..." और वो निकल गया...

डर और उत्तेजना का मिशरण मेरे चेहरे पर सॉफ झलक रहा था... मैने दरवाजा झट से बंद किया और बदहवास सी भागते भागते उपर आ गयी... मुझे मेरी कछी नही मिली.. पर उस वक़्त कछी से ज़्यादा मुझे कछी वाली की फिकर थी.. उपर वाला दरवाजा बंद किया और शीशे के सामने बैठकर मैं जांघें फैलाकर अपनी योनि को हाथ से मसल्ने लगी.......

उसके नाम पर मत जाना... वो कहते हैं ना! आँख का अँधा और नाम नयनसुख... सुंदर बिल्कुल ऐसा ही था.. एक दम काला कलूटा.. और 6 फीट से भी लंबा और तगड़ा सांड़! मुझे उस'से घिन तो थी ही.. डर भी बहुत लगता था.. मुझे तो देखते ही वह ऐसे घूरता था जैसे उसकी आँखों में क्ष-रे लगा हो और मुझको नंगी करके देख रहा हो... उसकी जगह और कोई भी उस समय उपर आया होता तो मैं उसको प्यार से अंदर बिठा कर चाय पिलाती और अपना अंग-प्रदर्शन अभियान चालू कर देती... पर उस'से तो मुझे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा नफ़रत थी...

उसका भी एक कारण था..

करीब 10 साल पहले की बात है.. मैं 7-8 साल की ही थी. मम्मी कोई 30 के करीब होगी और वो हरमज़दा सुंदर 20 के आस पास. लंबा तो वो उस वक़्त भी इतना ही था, पर इतना तगड़ा नही....

सर्दियों की बात है... मैं उस वक़्त अपनी दादी के पास नीचे ही सोती थी... नीचे तब तक कोई अलग कमरा नही था... 18 जे 30 की छत के नीचे सिर्फ़ उपर जाने के लिए जीना बना हुआ था...रात को उनसे रोज़ राजा-रानी की कहानियाँ सुनती और फिर उनके साथ ही दुबक जाती... जब भी पापा मार पीट करते थे तो मम्मी नीचे ही आकर सो जाती थी.. उस रात भी मम्मी ने अपनी चारपाई नीचे ही डाल ली थी...

हमारा दरवाजा खुलते समय काफ़ी आवाज़ करता था... दरवाजा खुलने की आवाज़ से ही शायद में उनीदी सी हो गयी ...

"मान भी जा अब.. 15 मिनिट से ज़्यादा नही लगवँगा..." शायद यही आवाज़ आई थी.. मेरी नींद खुल गयी.. मर्दाना आवाज़ के कारण पहले मुझे लगा कि पापा हैं.. पर जैसे ही मैने अपनी रज़ाई में से झाँका; मेरा भ्रम टूट गया.. नीचे अंधेरा था.. पर बाहर स्ट्रीट लाइट होने के कारण धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था...

"पापा तो इतने लंबे हैं ही नही..!" मैने मॅन ही मॅन सोचा...

वो मम्मी को दीवार से चिपकाए उस'से सटकार खड़ा था.. मम्मी अपना मौन विरोध अपने हाथों से उसको पिछे धकेलने की कोशिश करके जाता रही थी...

"देख चाची.. उस दिन भी तूने मुझे ऐसे ही टरका दिया था.. मैं आज बड़ी उम्मीद के साथ आया हूँ... आज तो तुझे देनी ही पड़ेगी..!" वो बोला.....

"तुम पागल हो गये हो क्या सुन्दर? ये भी कोई टाइम है...तेरा चाचा मुझे जान से मार देगा..... तुम जल्दी से 'वो' काम बोलो जिसके लिए तुम्हे इस वक़्त आना ज़रूरी था.. और जाओ यहाँ से...!" मम्मी फुसफुसाई...

"काम बोलने का नही.. करने का है चाची.. इस्शह.." सिसकी सी लेकर वो वापस मम्मी से चिपक गया...

उस वक़्त मेरी समझ में नही आ रहा था कि मम्मी और सुन्दर में ये छीना झपटी क्यूँ हो रही है...मेरा दिल धड़कने लगा... पर मैं डर के मारे साँस रोके सब देखती और सुनती रही...

"नही.. जाओ यहाँ से... अपने साथ मुझे भी मरवाओगे..." मम्मी की खुस्फुसाहट भी उनकी सुरीली आवाज़ के कारण सॉफ समझ में आ रही थी....

"वो लुडरू मेरा क्या बिगाड़ लेगा... तुम तो वैसे भी मरोगी अगर आज मेरा काम नही करवाया तो... मैं कल उसको बता दूँगा की मैने तुम्हे बाजरे वाले खेत में अनिल के साथ पकड़ा था...." सुंदर अपनी घटिया सी हँसी हँसने लगा....

"मैं... मैं मना तो नही कर रही सुंदर... कर लूँगी.. पर यहाँ कैसे करूँ... तेरी दादी लेटी हुई है... उठ गयी तो?" मम्मी ने घिघियाते हुए विरोध करना छ्चोड़ दिया....

"क्या बात कर रही हो चाची? इस बुधिया को तो दिन में भी दिखाई सुनाई नही देता कुच्छ.. अब अंधेरे में इसको क्या पता लगेगा..." सुंदर सच कर रहा था....

"पर छ्होटी भी तो यहीं है... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." मम्मी गिड़गिडाई...

"ये तो बच्ची है.. उठ भी गयी तो इसकी समझ में क्या आएगा? वैसे भी ये तुम्हारी लाडली है... बोल देना किसी को नही बताएगी... अब देर मत करो.. जितनी देर करोगी.. तुम्हारा ही नुकसान होगा... मेरा तो खड़े खड़े ही निकलने वाला है... अगर एक बार निकल गया तो आधे पौने घंटे से पहले नही छूतेगा.. पहले बता रहा हूँ..."

मेरी समझ में नही आ रहा था कि ये 'निकलना' छ्छूटना' क्या होता है.. फिर भी मैं दिलचस्पी से उनकी बातें सुन रही थी.......

"तुम परसों खेत में आ जाना.. तेरे चाचा को शहर जाना है... मैं अकेली ही जाउन्गी.. समझने की कोशिश करो सुन्दर.. मैं कहीं भागी तो नही जा रही....." मम्मी ने फिर उसको समझाने की कोशिश की....

" तुम्हे मैं ही मिला हूँ क्या? चूतिया बनाने के लिए... अनिल बता रहा था कि उसने तुम्हारी उसके बाद भी 2 बार मारी है... और मुझे हर बार टरका देती हो... परसों की परसों देखेंगे.... अब तो मेरे लिए तो एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा है.. तुम्हे नही पता चाची.. तुम्हारे गोल गोल पुत्थे (नितंब) देख कर ही जवान हुआ हूँ.. हमेशा से सपना देखता था कि किसी दिन तुम्हारी चिकनी जांघों को सहलाते हुए तुम्हारी रसीली चूत चाटने का मौका मिले.. और तुम्हारे मोटे मोटे चूतदों की कसावट को मसलता हुआ तुम्हारी गांद में उंगली डाल कर देखूं.. सच कहता हूँ, आज अगर तुमने मुझे अपनी मारने से रोका तो या तो मैं नही रहूँगा... या तुम नही रहोगी.. लो पाकड़ो इस्सको..."

अब जाकर मुझे समझ में आया कि सुन्दर मम्मी को 'गंदी' बात करने के लिए कह रहा है... उनकी हरकतें इतनी सॉफ दिखाई नही दे रही थी... पर ये ज़रूर सॉफ दिख रहा था कि दोनो आपस में गुत्थम गुत्था हैं... मैं आँखें फ़ाडे ज़्यादा से ज़्यादा देखने की कोशिश करती रही....

"ये तो बहुत बड़ा है... मैने तो आज तक किसी का ऐसा नही देखा...." मम्मी ने कहा....

"बड़ा है चाची तभी तो तुम्हे ज़्यादा मज़ा आएगा... चिंता ना करो.. मैं इस तरह करूँगा कि तुम्हे सारी उमर याद रहेगा... वैसे चाचा का कितना है?" सुन्दर ने खुश होकर कहा.. वह पलट कर खुद दीवार से लग गया था और मम्मी की कमर मेरी तरफ कर दी थी....मम्मी ने शायद उसका कहना मान लिया था....

"धीरे बोलो......" मम्मी उसके आगे घुटनो के बल बैठ गयी... और कुच्छ देर बाद बोली," उनका तो पूरा खड़ा होने पर भी इस'से आधा रहता है.. सच बताउ? उनका आज तक मेरी चूत के अंदर नही झाड़ा..." मम्मी भी उसकी तरह गंदी गंदी बातें करने लगी.. मैं हैरान थी.. पर मुझे मज़ा आ रहा था.. मैं मज़ा लेती रही.....

"वाह चाची... फिर ये गोरी चिकनी दो फूल्झड़ियाँ और वो लट्तू कहाँ से पैदा कर दिया.." सुंदर ने पूचछा... पर मेरी समझ में कुच्छ नही आया था....

"सब तुम जैसों की दया है... मेरी मजबूरी थी...मैं क्या यूँही बेवफा हो गयी...?" कहने के बाद मम्मी ने कुच्छ ऐसा किया की सुन्दर उच्छल पड़ा....

"आआआअहह... ये क्या कर रही हो चाची... मारने का इरादा है क्या?" सुंदर हल्का सा तेज बोला.....

"क्या करूँ मैं? मुँह में तो आ नही रहा... बाहर से ही खा लूँ थोड़ा सा!" उसके साथ ही मम्मी भद्दे से तरीके से हँसी.....

"अरे तो इतना तेज 'बुड़का' (बीते) क्यूँ भर रही है... जीभ निकाल कर नीचे से उपर तक चाट ले ना...!" सुन्दर ने कहा.....

"ठीक है.. पर अब निकलने मत देना... मुझे तैयार करके कहीं भाग जाओ..." मम्मी ने सिर उपर उठाकर कहा और फिर उसकी जांघों की तरफ मुँह घुमा लिया....

मुझे आधी अधूरी बातें समझ आ रही थी... पर उनमें भी मज़ा इतना आ रहा था कि मैने अपना हाथ अपनी जांघों के बीच दबा लिया.... और अपनी जांघों को एक दूसरी से रगड़ने लगी... उस वक़्त मुझे नही पता था कि मुझे ये क्या हो रहा है.......

अचानक हमारे घर के आगे से एक ट्रॅक्टर गुजरा... उसकी रोशनी कुच्छ पल के लिए घर में फैल गयी.. मम्मी डर कर एक दम अलग हट गयी.. पर मैने जो कुच्छ देखा, मेरा रोम रोम रोमांचित हो गया...

सुंदर का लिंग गधे के 'सूंड' की तरह भारी भरकम, भयानक और उसके चेहरे के रंग से भी ज़्यादा काला कलूटा था...वो साँप की तरह सामने की और अपना फन सा फैलाए सीधा खड़ा था... लिंग का आगे का हिस्सा टमाटर की तरह अलग ही दिख रहा था. एक पल को तो मैं डर ही गयी थी.. मैने उस'से पहले काई बार छ्होटू की 'लुल्ली' देखी थी.. पर वो तो मुश्किल से 2 इंच की थी... वापस अंधेरा होने के बाद भी उसका आकर मेरी आँखों के सामने लहराता रहा...

"क्या हुआ? हट क्यूँ गयी चाची.. कितना मज़ा आ रहा है.. तुम तो कमाल का चाट'ती हो...!" सुन्दर ने मम्मी के बालों को पकड़ कर अपनी और खींच लिया....

"कुच्छ नही.. एक मिनिट.... लाइट ऑन कर लूँ क्या? बिना देखे मुझे उतना मज़ा नही आ रहा... " मम्मी ने खड़ा होकर कहा...

"मुझे तो कोई दिक्कत नही है... तुम अपनी देख लो चाची...!" सनडर ने कहा....

"एक मिनिट...!" कहकर मम्मी मेरी तरफ आई.. मैने घबराकर अपनी आँखें बंद कर ली... मम्मी ने मेरे पास आकर झुक कर देखा और मुझे थपकी सी देकर रज़ाई मेरे मुँह पर डाल दी...

कुच्छ ही देर बाद रज़ाई में से छन छन कर प्रकाश मुझ तक पहुँचने लगा... मैं बेचैन सी हो गयी.. मेरे कानो में 'सपड सपड' और सुन्दर की हल्की हल्की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी... मुँह ढक कर सोने की तो मुझे ऐसे भी आदत नही थी... फिर मुझे सारा 'तमाशा' देखने की ललक भी उठ रही थी...

कुच्छ ही देर बाद मैने बिस्तेर और रज़ाई के बीच थोड़ी सी जगह बनाई और सामने देखने लगी... मेरे अचरज का कोई ठिकाना ना रहा.. "ये मम्मी क्या कर रही हैं?" मेरी समझ में नही आया....

घुटनो के बल बैठी हुई मम्मी ने अपने हाथ में पकड़ कर सुन्दर का भयानक लिंग उपर उठा रखा था और सुन्दर के लिंग के नीचे लटक रहे मोटे मोटे गोलों (टेस्टेस)को बारी बारी से अपने मुँह में लेकर चूस रही थी...

मेरी घिघी बँधती जा रही थी... सब कुच्छ मेरे लिए अविश्वसनीय सपने जैसा था.. मैं तो अपनी पलकें तक झपकना भूल चुकी थी.....

सुन्दर खड़ा खड़ा मम्मी का सिर पकड़ें सिसक रहा था.. और मम्मी बार बार उपर देख कर मुश्कुरा रही थी... सुन्दर की आँखें पूरी तरह बंद थी... इसीलिए मैने रज़ाई को थोडा सा और उपर उठा लिया....

कुच्छ देर बाद मम्मी ने गोलों को छ्चोड़ कर अपनी पूरी जीभ बाहर निकाली और सुन्दर के लिंग को नीचे से शुरू करके उपर तक चाट लिया.. मानो वह कोई आइस्क्रीम हो....

"ओहूऊ... इष्ह... मेरा निकल जाएगा...!" सुंदर की टाँगें काँप उठी... पर मम्मी बार बार उपर नीचे नीचे उपर चाट-ती रही.. सुन्दर का पूरा लिंग मम्मी के थूक से गीला होकर चमकने लगा था..

"तुम्हारे पास कितना टाइम है?" मम्मी ने लिंग को हाथ से सहलाते हुए पूचछा....

"मेरे पास तो पूरी रात है चाची... क्या इरादा है?" सुन्दर ने साँस भर कर कहा...

"तो निकल जाने दो..." मम्मी ने कहा और लिंग के सूपदे पर मुँह लगा कर अपने हाथ को लिंग पर...तेज़ी से आगे पिछे करने लगी...

अचानक सुन्दर ने अपने घुटनो को थोड़ा सा मोड़ा और दीवार से सटकार मम्मी के बालों को खींचते हुए लिंग को उसके मुँह में थूस्ने की कोशिश करने लगा... 'टमाटर' तो मम्मी के मुँह में घुस भी गया था.. पर शायद मम्मी का दम घुटने लगा और उन्होने किसी तरह उसको निकाल दिया...

सुंदर का लिंग मम्मी के चेहरे पर गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ सी छ्चोड़ रहा था.. .. मम्मी ने वापस सूपदे के आगे मुँह खोला और सुन्दर के रस को गटाकने लगी... जब खेल ख़तम हो गया तो मम्मी ने हंसते हुए कहा," सारा चेहरा खराब कर दिया.."

"मैं तो अंदर ही छ्चोड़ना चाहता था चाची... तुमने ही मुँह हटा लिया.." सुन्दर के चेहरे से सन्तुस्ति झलक रही थी....

"कमाल का लंड है तुम्हारा... मुझे पहले पता होता तो मैं कभी तुम्हे ना तड़पति..." मम्मी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और सुंदर की शर्ट से अपने चेहरे को सॉफ करने लगी.....

मुझे तो तब तक इतना ही पता था कि 'लुल्ली' मूतने के काम आती है... आज पहली बार पता चला कि 'ये' और कुच्छ भी छ्चोड़ता है.. जो बहुत मीठा होता होगा... तभी तो मम्मी चटखारे ले लेकर उसको बाद में भी चाट'ती रही...

"अब मेरी बारी है... कपड़े निकाल दो..." सुंदर ने मम्मी को खड़ा करके उनके नितंब अपने हाथों में पकड़ लिए....

"तुम पागल हो क्या? परसों को में सारे निकाल दूँगी... आज सिर्फ़ सलवार नीचे करके 'चोद' लो..." मम्मी ने नाडा ढीला करते हुए कहा...

मेरा अश्लील शब्दकोष उनकी बातों के कारण बढ़ता ही जा रहा था...

"मॅन तो कर रहा है चाची कि तुम्हे अभी नगी करके खा जाउ! पर अपना वादा याद रखना... परसों खेत वाला..." सुन्दर ने कहा और मम्मी को झुकाने लगा.. पर मम्मी तो जानती थी... हल्का सा इशारा मिलते ही मम्मी ने उल्टी होकर झुकते हुए अपनी कोहानिया फर्श पर टीका ली और घुटनो के बल होकर जांघों को खोलते हुए अपने नितंबों को उपर उठा लिया...
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