RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--3
गतांक से आगे.......................
सुन्दर मम्मी का दीवाना यूँ ही नही था.. ना ही उसने मम्मी की झूठी तारीफ़ की थी... आज भी मम्मी जब चलती हैं तो देखने वाले देखते रह जाते हैं.. चलते हुए मम्मी के नितंब ऐसे थिरकते हैं मानो नितंब नही कोई तबला हो जो हल्की सी ठप से ही पूरा काँपने लगता है... कटोरे के आकर के दोनो नितंबों का उठान और उनके बीच की दरार; सब कातिलाना थे...
मम्मी के कसे हुए शरीर की दूधिया रंगत और उस पर उनकी कातिल आदयें; कौन ना मर मिटे!
खैर, मम्मी के कोहनियों और घुटनो के बल झुकते ही सुन्दर उनके पिछे बैठ गया... अगले ही पल उन्होने मम्मी के नितंबों पर थपकी मार कर सलवार और पॅंटी को नीचे खींच दिया. इसके साथ ही सुन्दर के मुँह से लार टपक गयी," क्या मस्त गोरे कसे हुए चूतड़ हैं चाची..!" कहते हुए उसने अपने दोनो हाथ मम्मी के नितंबों पर चिपका कर उन्हे सहलाना शुरू कर दिया...
मम्मी मुझसे 90 डिग्री के अन्गेल पर झुकी हुई थी, इसीलिए मुझे उनके ऊँचे उठे हुए एक नितंब के अलावा कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. पर मैं टकटकी लगाए तमाशा देखती रही.....
"हाए चाची! तेरी चूत कितनी रसीली है अभी तक... इसको तो बड़े प्यार से ठोकना पड़ेगा... पहले थोड़ी चूस लूँ..." उसने कहा और मम्मी के नितंबों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया.... मम्मी सिसकते हुए अपने नितंबों को इधर उधर हटाने की कोशिश करने लगी...
"आअय्यीश्ह्ह्ह...अब और मत तडपा सुन्दर..आआअहह.... मैं तैयार हूँ.. ठोक दो अंदर!"
"ऐसे कैसे ठोक दूँ अंदर चाची...? अभी तो पूरी रात पड़ी है...." सुंदर ने चेहरा उठाकर कहा और फिर से जीभ निकाल कर चेहरा मम्मी की जांघों में घुसा दिया...
"समझा करो सुन्दर... आआहह...फर्श मुझे चुभ रहा है... थोड़ी जल्दी करो..!" मम्मी ने अपना चेहरा बिल्कुल फर्श से सटा लिया.. उनके 'दूध' फर्श पर टिक गये....," अच्च्छा.. एक मिनिट... मुझे खड़ी होने दो...!"
मम्मी के कहते ही सुन्दर ने अच्छे बच्चे की तरह उन्हे छ्चोड़ दिया... और मम्मी ने खड़ा होकर मेरी तरफ मुँह कर लिया...
जैसे ही सुन्दर ने उनका कमीज़ उपर उठाया.. मम्मी की पूरी जांघें और उनके बीच छ्होटे छ्होटे गहरे काले बालों वाली मोटी मोटी योनि की फाँकें मेरे सामने आ गयी... एक बार तो खुद में ही शर्मा गयी... गर्मियों में जब मैं कयि बार छ्होटू के सामने नंगी ही बाथरूम से निकल आती तो मम्मी मुझे 'शेम शेम' कह कर चिढ़ाती थी... फिर आज क्यूँ अपनी शेम शेम को सुन्दर के सामने परोस दिया; उस वक़्त मेरी समझ से बाहर था....
सुन्दर घुटने टके कर मम्मी के सामने मेरी तरफ पीठ करके बैठ गया और मम्मी की योनि मेरी नज़रों से छिप गयी... अगले ही पल मम्मी आँखें बंद करके सिसकने लगी... उनके मुँह से अजीब सी आवाज़ें आ रही थी...
मैं हैरत से सब कुच्छ देख रही थी...
"बस-बस... मुझसे खड़ा नही रहा जा रहा सुन्दर... दीवार का सहारा लेने दो..", मम्मी ने कहा और साइड में होकर दीवार से पीठ सटा कर खड़ी हो गयी... उन्होने अपने एक पैर से सलवार बिल्कुल निकाल दी और सुन्दर के उनके सामने बैठते ही अपनी नंगी टाँग उठाकर सुन्दर के कंधे पर रख दी..
अब सुन्दर का चेहरा और मम्मी की योनि मुझे आमने सामने दिखाई दे रहे थे.. हाए राम! सुन्दर ने अपनी जीभ बाहर निकाली और मम्मी की योनि में घुसेड दी.. मम्मी पहले की तरह ही सिसकने लगी... मम्मी ने सुन्दर का सिर कसकर पकड़ रखा था और सुंदर अपनी जीभ को कभी अंदर बाहर और कभी उपर नीचे कर रहा था...
अंजाने में ही मेरे हाथ अपनी सलवार में चले गये.. मैने देखा; मेरी योनि भी चिपचिपी सी हो रखी है.. मैने उसको सॉफ करने की कोशिश की तो मुझे बहुत मज़ा आया....
अचानक मम्मी पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा... जल्दी में सुन्दर के कंधे से पैर हटाने के चक्कर में मम्मी लड़खड़ा कर गिर पड़ी... उपर से पापा ज़ोर ज़ोर से बड़बड़ाते हुए आ रहे थे...,"साली, कमिनि, कुतिया! कहाँ मर गयी....?"
सुन्दर भाग कर हमारी खाट के नीचे घुस गया... पर मम्मी जब तक संभाल कर खड़ी होती, पापा नीचे आ चुके थे.. मम्मी अपनी सलवार भी पहन नही पाई थी...
पापा नींद में थे और शायद नशे में भी.. कुच्छ पल मम्मी को टकटकी लगाए देखते रहे फिर बोले," बहनचोड़ कुतिया.. यहाँ नंगी होकर क्या कर रही है..? किसी यार को बुलाया था क्या?" और पास आकर एक ज़ोर का थप्पड़ मम्मी को जड़ दिया....
मैं सहम गयी थी...
मम्मी थरथरते हुए बोली...,"न्नाही... वो ....मेरी सलवार में कुच्छ घुस गया था... पता नही क्या था..."
"हमेशा 'कुच्छ' तेरी सलवार में ही क्यूँ घुसता है कुतिया... तेरी चूत कोई शहद का छत्ता है क्या?..." पापा ने गुर्रते हुए मम्मी का गला पकड़ लिया...
मम्मी गिड़गिदते हुए पापा के कदमों में आ गिरी,"प्लीज़.. ऐसा मत कहिए.. मेरा तो सब कुच्छ आप का ही है....!"
"हूंम्म... ये भी तो तेरा ही है.. ले संभाल इसको.. खड़ा कर..." मैं अचरज से पापा का लिंग देखती रह गयी.. उन्होने अपनी चैन खोलकर अपना लिंग बाहर निकाल लिया और मम्मी के मुँह में थूस्ने लगे... मैं सुन्दर का लिंग देखने के बाद उनका लिंग देख कर हैरान थी.. उनका लिंग तो छ्होटा सा था बिल्कुल.. और मरे हुए चूहे की तरह लटक रहा था....
"उपर चलिए आप.. मैं कर दूँगी खड़ा... यहाँ छ्होटी उठ जाएगी... जैसे कहोगे वैसे कर लूँगी...." कहते हुए मम्मी उठी और पापा के लिंग को सहलाते हुए उन्हे उपर ले गयी...
उनके उपर जाते ही सुन्दर हड़बड़ाहट में मेरी चारपाई के नीचे से निकला और दरवाजा खोल कर भाग गया...
------------------------------
--------------------------------------------------------------------------------
तीसरे दिन मैं जानबूझ कर स्कूल नही गयी.. दीदी और छ्होटू स्कूल जा चुके थे... और पापा शहर....
"अब पड़ी रहना यहाँ अकेली... मैं तो चली खेत में.." मम्मी सजधज कर तैयार हो गयी थी.. खेत जाने के लिए...!
"नही मम्मी.. मैं भी चलूंगी आपके साथ.....!" मैने ज़िद करते हुए कहा....
"पागल है क्या? तुझे पता नही.. वहाँ कितने मोटे मोटे साँप आ जाते हैं... खा जाएँगे तुझे..." मम्मी ने मुझे डराते हुए कहा....
मेरे जेहन में तो सुन्दर का 'साँप' ही चक्कर काट रहा था.. वही दोबारा देखने ही तो जाना चाहती थी खेत में...," पर आपको खा गये तो मम्मी...?" मैने कहा..
"मैं तो बड़ी हूँ बेटी.. साँप को काबू में कर लूँगी... मार भी दूँगी... तू यहीं रह और सो जा!" मम्मी ने जवाब दिया....
"तो आप मार लेना साँप को... मैं तो दूर से ही देखती रहूंगी.... कुच्छ बोलूँगी नही...." मैने ज़िद करते हुए कहा...
"चुप कर.. ज़्यादा बकवास मत कर... यहीं रह.. मैं जा रही हूँ...!" मम्मी चल दी...
मैं रोती हुई नीचे तक आ गयी.. मेरी आँखों से मोटे मोटे आँसू टपक रहे थे...सुन्दर के 'साँप' को देखने के लिए बेचैन ही इतनी थी मैं.. आख़िरकार मेरी ज़िद के आगे मम्मी को झुकना पड़ा... पर वो मुझे खेत नही ले गयी.. खुद भी घर पर ही रह गयी वो!
मम्मी को कपड़े बदल कर मुँह चढ़ाए घर में बैठे 2 घंटे हो गये थे.. मैं उठी और उनकी गोद में जाकर बैठ गयी,"आप नाराज़ हो मम्मी?"
"हां... और नही तो क्या? खेत में इतना काम है... तेरे पापा आते ही मेरी पिटाई करेंगे...!" मम्मी ने कहा....
"पापा आपको क्यूँ मारते हैं मम्मी.. ? मुझे पापा बहुत गंदे लगते हैं...
"आप भी तो बड़ी हो.. आप उन्हे क्यूँ नही मारती?" मैने भोलेपन से पूचछा...
मम्मी कुच्छ देर चुप ही रही और फिर एक लंबी साँस ली," छ्चोड़ इन बातों को.. तू आज फिर मेरी पिटाई करवाना चाहती है क्या?"
"नही मम्मी..!" मैने मायूस होकर कहा...
"तो फिर मुझे जाने क्यूँ नही देती खेत मैं?" मम्मी ने नाराज़ होकर अपना मुँह फुलाते हुए कहा....
पता नही मैं क्या जवाब देती उस वक़्त.. पर इस'से पहले मैं बोलती.. नीचे से सुंदर की आवाज़ आ गयी,"चाचा.... ओ चाचा!"
मम्मी अचानक खड़ी हो गयी और नीचे झाँका.. सुन्दर उपर ही आ रहा था..
"उपर आते ही उसने मेरी और देखते हुए पूचछा," चाचा कहाँ हैं अंजू?"
"शहर गये हैं...!" मैने जवाब देते हुए उनकी पॅंट में 'साँप' ढूँढने की कोशिश की.. पर हुल्के उभार के अलावा मुझे कुच्छ नज़र नही आया...
"अच्च्छा... तू आज स्कूल क्यूँ नही गयी?" बाहर चारपाई पर वो मेरे साथ बैठ गया और मम्मी को घूर्ने लगा... मम्मी सामने खड़ी थी....
"बस ऐसे ही.. मेरे पेट में दर्द था..." मैने वही झूठ बोला जो सुबह मम्मी को बोला था...
सुन्दर ने मेरी तरफ झुक कर एक हाथ से मेरा चेहरा थामा और मेरे होंटो के पास गालों को चूम लिया.. मुझे अपने बदन में गुदगुदी सी महसूस हुई...
"ये ले....और बाहर खेल ले....!" सुन्दर ने मेरे हाथ में 5 रुपए का सिक्का रख दिया...
उस वक़्त 5 रुपए मेरे लिए बहुत थे.. पर मैं बेवकूफ़ नही थी.. मुझे पता था तो मुझे घर से भगाने के लिए ऐसा बोल रहा है," नही.. मेरा मन नही है.. मैने पैसे अपनी मुट्ठी में दबाए और मम्मी का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गयी...
"जा ना छ्होटी... कभी तो मेरा पिच्छा छ्चोड़ दिया कर!" मम्मी ने हुल्के से गुस्से में कहा....
मैं सिर उपर उठा उनकी आँखों में देखा और हाथ और भी कसकर पकड़ लिया," नही मम्मी.. मुझे नही खेलना....!"
"तुम आज खेत में नही गयी चाची... क्या बात है?" सुन्दर की आवाज़ में विनम्रता थी.. पर उसके चेहरे से धमकी सी झलक रही थी...
"ये जाने दे तब जाउ ना.. अब इसको लेकर खेत कैसे आती..!" मम्मी ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा....
"आज खाली नही जाउन्गा चाची.. चाहे कुच्छ हो जाए.. बाद में मुझे ये मत कहना कि बताया नही.." सुन्दर ने गुर्रते हुए कहा और अंदर कमरे में जाकर बैठ गया....
"अब मैं क्या कर सकती हूँ.. तुम खुद ही देख लो!" मम्मी ने विवश होकर अंदर जाकर कहा.. उनकी उंगली मजबूती से पकड़े मैं उनके साथ साथ जाकर दरवाजे के पिछे खड़ी हो गयी... मम्मी दरवाजे के सामने अंदर की और चेहरा किए खड़ी थी....
अचानक पिछे से कोई आया और मम्मी को अपनी बाहों में भरकर झटके से उठाया और बेड पर लेजाकार पटक दिया.. मेरी तो कुच्छ समझ में ही नही आया..
मम्मी ने चिल्लाने की कोशिश की तो वा मम्मी के उपर सवार हो गया और उनका मुँह दबा लिया," तू तो बड़ी कमिनि निकली भाभी.. पता है कितनी देर इंतजार करके आयें हैं खेत में..." फिर सुन्दर की और देखकर बोला,"क्या यार? अभी तक नंगा नही किया इस रंडी को.."
उसके चेहरा सुन्दर की और घूमने पर मैने उन्हे पहचाना.. वो अनिल चाचा थे... हमारे घर के पास ही उनका घर था.. पेशे से डॉक्टर...मम्मी की ही उमर के होंगे... मम्मी को मुश्किल में देख मैं भागकर बिस्तेर पर चढ़ि और चाचा को धक्का देकर उनको मम्मी के उपर से हटाने की कोशिश करने लगी,"छ्चोड़ दो मेरी मम्मी को!" मैं रोने लगी...
अचानक मुझे देख कर वो सकपका गया और मम्मी के उपर से उतर गया," तुम.. तुम यहीं हो छ्होटी?"
मम्मी शर्मिंदा सी होकर बैठ गयी," ये सब क्या है? जाओ यहाँ से.. और सुन्दर की और घूरने लगी... सुन्दर खिसिया कर हँसने लगा...
"अबे पहले देख तो लेता...!" सुन्दर ने अनिल चाचा से कहा....
"बेटी.. तेरी मम्मी का इलाज करना है... जा बाहर जाकर खेल ले..!" चाचा ने मुझे पुच्कार्ते हुए कहा... पर मैं वहाँ से हिली नही...
"जाओ यहाँ से.. वरना मैं चिल्ला दूँगी!" मम्मी विरोध पर उतर आई थी... शायद मुझे देख कर...
"छ्चोड़ ना तू .. ये तो बच्ची है.. क्या समझेगी... और फिर ये तेरी प्राब्लम है..
हमारी नही.. इसको भेजना है तो भेज दे.. वरना हम इसके आगे ही शुरू हो जाएँगे..." सुन्दर ने कहा और सरक कर मम्मी के पास बैठ गया.... मम्मी अब दोनो के बीच बैठी थी...
"तू जा ना बेटी.. मुझे तेरे चाचा से इलाज करवाना है.. मेरे पेट में दर्द रहता है..." मम्मी ने हालात की गंभीरता को समझाते हुए मुझसे कहा...
मैने ना मैं सिर हिला दिया और वहीं खड़ी रही....
वो इंतजार करने के मूड में नही लग रहे थे.. चाचा मम्मी के पिछे जा बैठे और उनके दोनो तरफ से पैर पसार कर मम्मी की चूचियों को दबोच लिया.. मम्मी सिसक उठी.. वो विरोध कर रही थी पर उंनपर कोई असर नही हुआ...
"नीचे से दरवाजा बंद है ना?" सुन्दर ने चाचा से पूचछा और मम्मी की टाँगों के बीच बैठ गया...
"सब कुच्छ बंद है यार.. आजा.. अब इसकी खोल दें.." चाचा ने मम्मी का कमीज़ खींच कर उनकी ब्रा से उपर कर दिया....
"एक मिनिट छ्चोड़ो भी... " मम्मी ने झल्लाकर कहा तो वो ठिठक गये," अच्च्छा छ्होटी.. रह ले यहीं.. पर किसी को बोलेगी तो नही ना.. देख ले... मैं मर जाउन्गि!"
"नही मम्मी.. मैं किसी को कुच्छ नही बोलूँगी... आप मरना मत.. रात वाली बात भी नही बताउन्गि किसी को..." मैने भोलेपन से कहा तो तीनो अवाक से मुझे देखते रह गये...
"ठीक है.. आराम से कोने में बैठ जा!" सुंदर ने कहा और मम्मी की सलवार का नाडा खींचने लगा....
कुच्छ ही देर बाद उन्होने मम्मी को मेरे सामने ही पूरी तरह नंगी कर दिया..
मैं चुपचाप सारा तमाशा देखती जा रही थी.. मम्मी नंगी होकर मुझे और भी सुन्दर लग रही थी.. उनकी चिकनी चिकनी लंबी मांसल जांघें.. उनकी छ्होटे छ्होटे काले बालों में छिपि योनि.. उनका कसा हुआ पेट और सीने पर झूल रही मोटी मोटी चूचियाँ सब कुच्छ बड़ा प्यारा था...
सुन्दर मम्मी की जांघों के बीच झुक गया और उनकी जांघों को उपर हवा में उठा दिया.. फिर एक बार मेरी तरफ मुड़कर मुस्कुराया और पिच्छली रात की तरह मम्मी की योनि को लपर लपर चाटने लगा....
मम्मी बुरी तरह सीसीया उठी और अपने नितंबों को उठा उठा कर पटाकने लगी.. चाचा मम्मी की दोनो चूचियों को मसल रहा था और मम्मी के निचले होन्ट को मुँह में लेकर चूस रहा था...
करीब 4-5 मिनिट तक ऐसे ही चलता रहा... मैं समझने की कोशिश कर ही रही थी कि आख़िर ये इलाज कौनसा है.. तभी अचानक चाचा ने मम्मी के होंटो को छ्चोड़कर बोला," पहले तू लेगा या मैं ले लूँ..?"
सुन्दर ने जैसे ही चेहरा उपर उठाया, मुझे मम्मी की योनि दिखाई दी.. सुन्दर के थूक से वो अंदर तक सनी पड़ी थी.. और योनि के बीच की पत्तियाँ अलग अलग होकर फांकों से चिपकी हुई थी.. मुझे पता नही था कि ऐसा क्यूँ हो रहा है.. पर मेरी जांघों के बीच भी खलबली सी मची हुई थी...
"मैं ही कर लेता हूँ यार! पर थोड़ी देर और रुक जा.. चाची की चूत बहुत मीठी है..." सुन्दर ने कहा और अपनी पॅंट निकाल दी.. इसी पल का तो मैं इंतजार कर रही थी.. सुंदर का कच्च्छा सीधा उपर उठा हुआ था और मुझे पता था कि क्यूँ?
सुंदर वापस झुक गया और मम्मी की योनि को फिर से चाटने लगा... उसका भारी भरकम लिंग अपने आप ही उसके कच्च्चे से बाहर निकल आया और मेरी आँखों के सामने लटका हुआ रह रह कर झटके मार रहा था...
चाचा ने मेरी और देखा तो मैने शर्मकार अपनी नज़रें झुका ली....
चाचा ने भी खड़ा होकर अपनी पॅंट निकाल दी.. पर उनका उभर उतना नही था जितना सुन्दर का...चाचा थोड़ी आगे होकर मम्मी पर झुके और उनकी गोरी गोरी चूची के भूरे रंग के निप्पल को मुँह में दबा कर उनका दूध पीने लगे...मुझे तब पहली बार पता लगा था कि बड़े लोगों को भी 'दूध की ज़रूरत होती है...
मम्मी अपनी दूसरी चूची को खुद ही अपने हाथ से मसल रही थी.. अचानक मेरा ध्यान उनके दूसरे हाथ की और गया.. उन्होने हाथ पिछे लेजकर चाचा के कच्च्चे से उनका लिंग निकाल रखा था और उसको सहला रही थी... चाचा का लिंग सुन्दर जैसा नही था, पर फिर भी पापा के लिंग से काफ़ी बड़ा था और सीधा भी खड़ा था... मम्मी ने अचानक उनका लिंग पिछे से पकड़ा और उसको अपनी और खींचने लगी......
"तेरी यही अदा तो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है... ये ले!" चाचा बोले और घुटनो के बल आगे सरक कर अपना लिंग मम्मी के होंटो पर टीका दिया... मम्मी ने तुरंत अपने होन्ट खोले और लिंग को अपने होंटो में दबा लिया...
चाचा ने अपने हाथों से पकड़ कर मम्मी की टाँगों को अपनी और खींच लिया.. इस'से मम्मी के नितंब और उपर उठ गये और मुझे सुन्दर की टाँगों के बीच से मम्मी की 'गुदा' दिखने लगी... चाचा ने अपने हाथों को मम्मी के घुटनो के साथ साथ नीचे लेजाकार बिस्तेर पर जमा दिया... मम्मी अपने सिर को उपर नीचे करते हुए चाचा के लिंग को अपने मुँह में अंदर बाहर करते हुए चूसने में लगी थी....
अचानक मम्मी उच्छल पड़ी और चाचा का लिंग मुँह से निकालते हुए बोली,"नही सुन्दर.. पिछे कुच्छ मत करो..!"
मेरी समझ में तब आया जब सुन्दर ने कुच्छ बोलने के लिए उनकी योनि से अपना मुँह हटाया... मैने ध्यान से देखा.. सुन्दर की आधी उंगली मम्मी की गुदा में फँसी हुई थी.. और मम्मी अपने नितंबो को सिकोड़ने की कोशिश कर रही थी.....
"इसके बिना क्या मज़ा है चाची.. उंगली ही तो डाली है.. अपना लंड फँसवँगा तो क्या कहोगी? हे हे हे" सुंदर ने कहा और उंगली निकाल कर अलग हट कर खड़ा हो गया...
मम्मी की योनि फूल सी गयी थी... उनकी योनि का छेद रह रह कर खुल रहा था और बंद हो रहा था.. अचानक सुन्दर ने अपना लिंग हाथ में पकड़ कर मेरी और देखा... वह इस तरह मुस्कुराया मानो मुझे डरा रहा हो... मैने एक दम अपनी नज़रें झुका ली....
सुन्दर वापस मम्मी की जांघों के बीच बैठ गया.. मुझे उसका लिंग मम्मी की योनि पर टीका हुआ दिख रहा था.. मम्मी की योनि लिंग के पिछे पूरी छिप गयी थी...
"ले संभाल..!" सुंदर ने जैसे ही कहा.. मम्मी छॅट्पाटा उठी.. पर उनके मुँह से कोई आवाज़ नही निकली.. चाचा का लिंग मम्मी के मुँह में पूरा फँसा हुआ था.. और सुन्दर का लिंग मम्मी की योनि में...
सुन्दर ने अपना लिंग बाहर निकाला और वापस धकेल दिया.. मम्मी एक बार फिर कसमसाई... ऐसा मुझे चाचा के हाथों से उनको अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते देख कर लगा...
फिर तो घापघाप धक्के लगने लगे.. कुच्छ देर बाद मम्मी के हाथों की च्चटपटाहट बंद हो कर उनके नितंबों में आ गयी... ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत खुश हैं.. सुन्दर जैसे ही नीचे की और धक्का लगाता मम्मी नितंबों को उपर उठा लेती... अब तो ऐसा लग रहा था जैसे सुन्दर कम धक्के लगा रहा है और मम्मी ज़्यादा...
ऐसे ही धक्के लगते लगते करीब 15 मिनिट हो गये थे.. मुझे चिंता होने लगी कि आख़िर कोई अब कुच्छ बोल क्यूँ नही रहा है.. अचानक सुंदर उठा और तेज़ी से आगे की और गया," हट यहाँ से.. पिछे चला जा..."
मैने मम्मी की योनि को देखा.. उसका च्छेद लगभग 3 गुना खुल गया था.. और कोई रस जैसी चीज़ उनकी योनि से बह रही थी...
सुन्दर के आगे जाते ही चाचा पिछे आ गये," घोड़ी बन जा!"
मम्मी उठी और पलट कर घुटनो के बल बैठ कर अपने नितंबों को उपर उठा लिया... सुन्दर ने मम्मी के मुँह में उंगली डाल रखी थी और मेरे सामने ही अपने लंड को हिला रहा था.... सुन्दर की जगह अब चाचा ने ले ली थी.. घुटनो के बल पिछे सीधे खड़े होकर उन्होने मम्मी की योनि में अपनी लिंग थूस दिया... और मम्मी की कमर को पकड़ कर आगे पिछे होने लगे....
अचानक सुन्दर ने मम्मी के बालों को खींच कर उनका चेहरा उपर उठवा दिया... ,"मुँह खो ले चाची.. थोडा अमृत पी ले..."
मम्मी ने अपना मुँह पूरा खोल दिया और सुन्दर ने अपना लिंग उनके होंटो पर रख कर थोड़ा सा अंदर कर दिया... इसके साथ ही सुन्दर की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकता हुआ मम्मी को शायद वही रस पिलाने लगा जो उसने पिच्छली रात पिलाया था....
मम्मी भी आँखें बंद किए उसका रस पीती जा रही थी.. पिछे से मम्मी को चाचा के धक्के लग रहे थे...
"ले.. अब मुँह में लेकर इसको सॉफ कर दे..." सुंदर ने कहा और मम्मी ने उसका लिंग थोड़ा सा और मुँह में ले लिया.....रस निकल जाने के बाद सुंदर का लिंग शायद थोडा पतला हो गया होगा...
अचानक चाचा हटे और सीधे खड़े हो गये... वो भी शायद मम्मी के मुँह की और जाना चाहते थे.. पर जाने क्या हुआ.. अचानक रुक कर उन्होने अपना लिंग ज़ोर से खींच लिया और मम्मी के नितंबो पर ही रस की धार छ्चोड़ने लगे...
मुझे नही पता था कि मुझे क्या हो गया है.. पर मैं पूरी तरह से लाल हो चुकी थी.. मेरी कच्च्ची भी 2 तीन बार गीली हुई.. ऐसा लगता था....
सुन्दर बिस्तेर से उतर कर अपनी पॅंट पहन'ने लगा और मेरी और देख कर मुस्कुराया," तू भी बहुत गरम माल बनेगी एक दिन.. साली इतने चस्के से सब कुच्छ देख रही थी... थोड़ी और बड़ी होज़ा जल्दी से.. फिर तेरी मम्मी की तरह तुझे भी मज़े दूँगा..."
मैने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया....
चाचा के बिस्तेर से नीचे उतरते ही मम्मी निढाल होकर बिस्तेर पर गिर पड़ी.. उन्होने बिस्तेर की चादर खींच कर अपने बदन और चेहरे को ढक लिया...
वो दोनो कपड़े पहन वहाँ से निकल गये....
----------------------------------------------------------------------------
वो दिन था और आज का दिन.. एक एक पल ज्यों का त्यों याद करते ही आँखों के सामने दौड़ जाता है... वो भी जो मैने उनके जाने के बाद मम्मी के पास बैठ कर पूचछा था...," ये कैसा इलाज था मम्मी?"
"जब बड़ी होगी तो पता चल जाएगा.. बड़ी होने पर कयि बार पेट में अजीब सी गुदगुदी होती है.. इलाज ना करवायें तो लड़की मर भी सकती है.. पर शादी के बाद की बात है ये.. तू भूल जा सब कुच्छ.. मेरी बेटी है ना?"
"हां मम्मी!" मैं भावुक होकर उनके सीने से चिपक गयी...
"तो बताएगी नही ना किसी को भी...?" मम्मी ने प्यार से मुझे अपनी बाहों में भर लिया...
"नही मम्मी... तुम्हारी कसम! पर इलाज तो चाचा करते हैं ना... सुन्दर क्या कर रहा था...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....
"वो अपना इलाज कर रहा था बेटी... ये प्राब्लम तो सबको होती है..." मम्मी ने मुझे बरगालाया....
"पर आप तो कह रहे थे कि शादी के बाद होता है ये इलाज.. उसकी तो शादी भी नही हुई..?" मैने पूचछा था...
"अब बस भी कर.. बहुत स्यनी हो गयी है तू... मुझे नही पता..." मम्मी ने बिदक कर कहा और उठ कर कपड़े पहन'ने लगी...
" पर उन्होने आपके साथ अपना इलाज क्यूँ किया? अपने घर पर क्यूँ नही.. उनकी मम्मी हैं, बेहन हैं.. कितनी ही लड़कियाँ तो हैं उनके घर में.. !" मुझे गुस्सा आ रहा था.. 5 रुपए में अपना इलाज करके ले गया कमीना!
"तुझे नही पता बेटी... हमें उनका बहुत सा कर्ज़ा चुकाना है.. अगर मैं उसको इलाज करने नही देती तो वो मुझे उठा ले जाता हमेशा के लिए... पैसों के बदले में... फिर कौन बनती तेरी मम्मी..?" मम्मी ने कपड़े पहन लिए थे....
मैं नादान एक बार फिर भावुक होकर उनसे लिपट गयी.. मैने मुट्ठी खोल कर अपने हाथ में रखे 5 रुपए के सिक्के को नफ़रत से देखा और उसको बाहर छत पर फैंक दिया," मुझे नही चाहिए उसके रुपए.. मुझे तो बस मम्मी चाचिए..."
उसके बाद जब भी मैं उसको देखती.. मुझे यही याद आता कि हमें उनका कर्ज़ उतारना है.. नही तो वो एक दिन मम्मी को उठा कर ले जाएगा... और मेरी आँखें उसके लिए घृणा से भर उठती.. हर बार उसके लिए मेरी नफ़रत बढ़ती ही चली गयी थी...
सालों बाद, जब मुझे ये अहसास हो गया था कि मम्मी झूठ बोल रही थी.. तब भी; मेरी उसके लिए नफ़रत बरकरार रही जो आज तक ज्यों की त्यों है.... यही वजह थी कि उस दिन अपने बदन में सुलग रही यौवन की आग के बावजूद उसको खुद तक आने नही दिया था....
खैर.. मैं उस दिन शाम को फिर चश्मू के आने का इंतजार करने लगी....
क्रमशः ..................
|