RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--6
गतांक से आगे.......................
मुझे रज़ाई ओढ़ कर लेते हुए आधा घंटा हो चुका था.. पर 'वो' अंजान लड़की मेरे दिमाग़ से निकल ही नही रही थी.. मुझे 24 घंटे बाद भी उसका सिर अपनी जांघों के बीच महसूस हो रहा था.. मेरी योनि पर बिच्छू से चल रहे थे.. मानो वह अब भी मेरी योनि को लपर लपर अपनी जीभ से चाट रही थी... ऐसे मैं नींद कैसे आती...
उपर से तरुण पता नही अँग्रेज़ी में क्या क्या बके जा रहा था... मैं यही सोच रही थी कि कब तरुण यहाँ से निकल कर जाए और मीनू के सोने के बाद मैं अपनी उंगली से ही काम चला कर सौ....
अचानक मुझे किताब बंद होने की आवाज़ आई.. मैं खुश हो गयी....मैं दरवाजा खुलकर बंद होने का इंतज़ार कर ही रही थी कि करीब एक-2 मिनिट के बाद तरुण की आवाज़ आई.. आवाज़ थोड़ी धीमी थी.. पर इतनी भी नही की मुझे सुनाई ना देती
"तुम्हारी रज़ाई में आ जाउ मीनू?"
पहले तरुण की, और फिर मीनू का ये जवाब सुनकर तो मैं अचरज के मारे सुन्न रह गयी.....
"ष्ह्ह्ह्ह.... धात.. क्या कह रहे हो... आज नही....यहाँ ये दोनो हैं आज.. कोई उठ गयी तो....."
मैं तो अपना कलेजा पकड़कर रह गयी.. मैं इनके बारे में जो कुच्छ सोचती थी.. सब सच निकला.....
"कुच्छ नही होता.. मैं लाइट बंद कर देता हूँ.. कोई उठ गयी तो मैं तुम्हारी रज़ाई में ही सो जाउन्गा... तुम कह देना मैं चला गया... बस, एक बार.. प्लीज़!" तरुण ने धीरे से भीख सी माँगते हुए कहा......
"नही.. तरुण.. तुम तो फँसने का काम कर रहे हो.. सिर्फ़ आज की ही तो बात है.. जब अंजू यहाँ नही होगी तो पिंकी भी उपर चली जाएगी... समझा करो जानू!" मीनू ने निहायत ही मीठी और धीमी आवाज़ में उस'से कहा....
"जानू?" सुनते ही मेरे कान चौकन्ने हो गये.. अभी तक मैं सिर्फ़ सुन रही थी.. जैसे ही मीनू ने 'तरुण' के लिए जान शब्द का इस्तेमाल किया.. मैं उच्छलते उच्छलते रह गयी... आख़िरकार मेरा शक सही निकला... मेरा दिल और ज़्यादा धड़कने लगा.. मुझे उम्मीद थी कि और भी राज बाहर निकल सकते हैं...
"प्लीज़.. एक बार.." तरुण ने फिर से रिक्वेस्ट की...," तुम्हारे साथ लटेकर एक किस लेने में मुझे टाइम ही कितना लगेगा.....
"नही! आज नही हो सकता! मुझे पता है तुम एक मिनिट कहकर कितनी देर चिपके रहते हो..... आज बिल्कुल नही..." इस बार मीनू ने सॉफ मना कर दिया.....
"मैं समझ गया.. तुम मुझे क्यूँ चुम्मि दोगि..? मैं बस यही देखना चाह रहा था... तुम तो आजकल उस कामीने सोनू के चक्कर में हो ना!" तरुण अचानक उबाल सा खा गया... उसका लहज़ा एकद्ूम बदल गया....
"क्या बकवास कर रहे हो तुम.. मुझे सोनू से क्या मतलब?" मीनू चौंक पड़ी... मेरी समझ में नही आया कि किस सोनू की बात हो रही है....
"आज तुम्हारी सोनू से क्या बात हुई थी?" तरुण ने बदले हुए लहजे में ही पूचछा....
"मैं कभी बात नही करती उस'से...! तुम्हारी कसम जान!" मीनू उदास सी होकर बोली.. पर बहुत धीरे से....
"मैं चूतिया हूँ क्या? मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. इसका मतलब ये थोड़े ही है कि तुम मेरी कसम खा खा कर मेरा ही उल्लू बनाती रहो.... य्ये.. अंजू भी पहले दिन ही मुझसे चिपकने की कोशिश कर रही थी... कभी पूच्छ कर देखना, मैने इसको क्या कहा था.. मैने तुम्हे अगले दिन ही बता दिया था और फिर इनके घर जाने से मना भी कर दिया... मैं तुम्हे पागलों की तरह प्यार करता रहूं.. और तुम मुझे यूँ धोखा दे रही हो... ये मैं सहन नही कर सकता..." तरुण रह रह कर उबाल ख़ाता रहा.. मैं अब तक बड़े शौक से चुपचाप लेती उनकी बात सुन रही थी..... पर तरुण की इस बात पर मुझे बड़ा गुस्सा आया.. साले कुत्ते ने मेरी बात मीनू को बता दी... पर मैं खुश थी.. अब बनाउन्गि इसको 'जान!'
खैर मैं साँस रोके उनकी बात सुनती रही... मैं पूरी कोशिश कर रही थी कि उनकी रसीली लड़ाई का एक भी हिस्सा मेरे कानो से ना बच पाए.....
"मैं भी तो तुमसे इतना ही प्यार करती हूँ जान.. तुमसे पूच्छे बिना तो मैं कॉलेज के कपड़े पहन'ने से भी डरती हूँ.. कहीं मैं ऐसे वैसे पहन लूँ और फिर तुम सारा दिन जलते रहो..." मीनू को जैसे उसको सफाई देनी ज़रूरी ही थी.. लात मार देती साले कुत्ते को.. अपने आप डूम हिलता मेरे पास आता..
"तुमने सोनू को आज एक कागज और गुलाब का फूल दिया था ना?" तरुण ने दाँत से पीसते हुए कहा....
"क्या? ये क्या कह रहे हो.. आज तो वो मेरे सामने भी नही आया... मैं क्यूँ दूँगी उसको गुलाब?" मीनू तड़प कर बोली.....
"तुम झूठ बोल रही हो.. तुम मेरे साथ घिनौना मज़ाक कर रही हो.. रमेश ने देखा है तुम्हे उसको गुलाब देते हुए....." तरुण अपनी बात पर अड़ा रहा....
मीनू ने फिर से सफाई देना शुरू किया.. ज्यों ज्यों मामला गरम होता जा रहा था... दोनो की आवाज़ कुच्छ तेज हो गयी थी...,"मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो.. इसीलिए मेरा नाम कहीं झूठा भी आने पर तुम सेंटी हो जाते हो.... इसीलिए इतनी छ्होटी सी बातों पर भी नाराज़ हो जाते हो.... पर मैं भी तो तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ... मेरा विस्वास करो! मैने आज उसको देखा तक नही.... मेरी सोनू से कितने दीनो से कोई बात तक नही हुई.. लेटर या फूल का तो सवाल ही पैदा नही होता.. तुम्हारे कहने के बाद तो मैने सभी लड़कों से बात ही करनी छ्चोड़ दी है"
"अच्च्छा... तो क्या वो ऐसे ही गाता फिर रहा है कॉलेज में... वो कह रहा था कि तुमने आज उसको लव लेटर के साथ एक गुलाब भी दिया है...." तरुण की धीमी आवाज़ से भी गुस्सा सॉफ झलक रहा था.....
"बकवास कर रहा है वो.. तुम्हारी कसम! तुम उसको वो लेटर दिखाने को बोल दो.. पता नही तुम कहाँ कहाँ से मेरे बारे में उल्टा सीधा सुन लेते हो...." मीनू ने भी थोड़ी सी नाराज़गी दिखाई...
"मैने बोला था साले मा के.... पर वो कहने लगा कि तुमने उस लेटर में मुझे 'वो' ना दिखाने का वादा किया है.. रमेश भी बोल रहा था कि उसने भी तुम्हे उसको चुपके से गुलाब का फूल देते हुए देखा था... अब सारी दुनिया को झूठी मान कर सिर्फ़ तुम पर ही कैसे विस्वास करता रहूं...?" तरुण ने नाराज़गी और गुस्से के मिश्रित लहजे में कहा....
"रमेश तो उसका दोस्त है.. वो तो उसके कहने से कुच्छ भी बोल देगा... तुम प्लीज़ ये बार बार गाली मत दो.. मुझे अच्छे नही लगते तुम गाली देते हुए... और फिर इनमें से कोई उठ गयी तो.. तुम सिर्फ़ मुझ पर ही विश्वास नही करते... बाकी सब पर इतनी जल्दी कैसे कर लेते हो.....?" मीनू अब तक रोने सी लगी थी... पर तरुण की टोन पर इसका कोई असर सुनाई नही पड़ा......
"तुम हमेशा रोने का नाटक करके मुझे एमोशनल कर देती हो.. पर आज मुझ पर इसका कोई असर नही होने वाला.. क्यूंकी आज उसने जो बात मुझे बताई है.. अगर वा सच मिली तो मैं तो मर ही जाउन्गा!" तरुण ने कहा....
"अब और कौनसी बात कह रहे हो...?" मीनू सूबक'ते हुए बोली....
मैं मंन ही मंन इस तरह से खुश हो रही थी मानो मुझे कोई खजाना हाथ लग गया हो.. मैं साँस रोके मीनू को सूबक'ते सुनती रही.....
"अब रोने से मैं तुम्हारी करतूतों को भूल नही जाउन्गा... मैं तेरी... देख लेना अगर वो बात सच हुई तो..." तरुण ने दाँत पीसते हुए कहा.....
मीनू रोते रोते ही बोलने लगी," अब मैं... मैं तुम्हे अपना विश्वास कैसे दिल्वाउ बार बार... तुम तो इतने शक्की हो कि मुंडेर पर यूँही खड़ी हो जाउ तो भी जल जाते हो... मैने तुम्हे खुश करने के लिए सब लड़कों से बात करनी छ्चोड़ दी.... अपनी पसंद के कपड़े पहन'ने छ्चोड़ दिए... तुमने मुझे अपने सिवाय किसी के साथ हंसते भी नही देखा होगा.. जब से तुमने मुझे मना किया है....
और तुम.. पता नही रोज कैसी कैसी बातें उठाकर ले आते हो... तुम्हारी कसम अगर मैने किसी को आज तक तुम्हारे सिवाय कोई लेटर दिया हो तो... वो इसीलिए जल रहा होगा, क्यूँ कि उसके इतने दिनों तक पिछे पड़ने पर भी मैने उसको भाव नही दिए.... और क्यूंकी उसको पता है कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ... वो तो जाने क्या क्या बकेगा... तुम मेरी बात का कभी विश्वास क्यूँ नही करते...." मीनू जितनी देर बोलती रही.. सुबक्ती भी रही!
"वो कह रहा था कि... कि उसने तुम्हारे साथ प्यार किया है... और वो भी इतने गंदे तरीके से कह रहा था कि....." तरुण बीच में ही रुक गया....
"तो? मैं क्या कर सकती हूँ जान.. अगर वो या कोई और ऐसा कहेगा तो.. मैं दूसरों का मुँह तो नही पकड़ सकती ना... पर मुझे इस'से कोई मतलब नही... मैने सिर्फ़ तुमसे प्यार किया है.. !" मीनू कुच्छ रुक कर बोली...
शायद वो समझी नही थी कि तरुण का मतलब क्या है.. पर मैं समझ गयी थी...... सच कहूँ तो मेरा भी दिल नही मान रहा था कि मीनू ने किसी के साथ ऐसा किया होगा... पर क्या पता... कर भी लिया हो...सोचने को तो मैं इन्न दोनो को इकट्ठे देखने से पहले मीनू को किसी के साथ भी नही इस तरह नही सोच सकती थी.. और आज देखो.......
"वो प्यार नही!" तरुण झल्ला कर बोला....
"तो? और कौनसा प्यार?" मीनू को शायद अगले ही पल खुद ही समझ आ गया और वो चौंकते हुए बोली...," क्या बकवास कर रहे हो... मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे लिया तुमने... मैं आज तक तुम्हारे साथ भी उस हद तक नही गयी.. तुम्हारे इतनी ज़िद करने पर भी.... और तुम उस घटिया सोनू के कहने पर मान गये.."
"पर उसने कहा है कि वो सबूत दे सकता है... और फिर... उसने दिया भी है....."
"क्या सबूत दिया है.. बोलो?" मीनू की आवाज़ हैरानी और नाराज़गी भरी थी...वह चिड़ सी गयी थी.. तंग आ गयी थी शायद ऐसी बातों से....
"उसने बोला कि अगर मुझे यकीन उसकी बात का नही है तो.... नही.. मैने नही बता सकता.." कहकर तरुण चुप हो गया...
"ये क्या बात हुई? मैं अब भी कहती हूँ कि उस घटिया लड़के की बातों में आकर अपना दिमाग़ खराब मत करो... पर अगर तुम्हे मेरी बात का विस्वास नही हो रहा तो बताओ उसने क्या सबूत दिया है! तुम यूँ बिना बात के ही अगर हर किसी की बात का विस्वास करते रहे तो.... बताओ ना.. क्या सबूत दिया है उसने?" मीनू अब अपने को पाक सॉफ साबित करने के लिए खुद ही सबूत माँग रही थी....
मेरा मंन विचलित हो गया.. मुझे डर था कहीं वह सबूत को बोल कर बताने की बजाय 'दिखा' ना दे.. और मैं सबूत देखने से वंचित ना रह जाउ.. इसीलिए मैने उनकी और करवट लेकर हुल्की सी रज़ाई उपर उठा ली.. पर दोनो अचानक चुप हो गये...
"ष्ह..." मीनू की आवाज़ थी शायद.. मुझे लगा खेल बिगड़ गया.. कहीं ये अब बात करना बंद ना कर दें.. मुझे रज़ाई के उपर उठने से बने छ्होटे से छेद में से सिर्फ़ मीनू के हाथ ही दिखाई दे रहे थे....
शुक्रा है थोड़ी देर बाद.. तरुण वापस अपनी बात पर आ गया....
"देख लो.. तुम मुझसे नाराज़ मत होना.. मैं वो ही कह दूँगा जो उसने कहा है..." तरुण ने कहा....
"हां.. हां.. कह दो.. पर जल्दी बताओ.. मेरे सिर में दर्द होने लगा है.. ये सब सोच सोच कर.. अब जल्दी से इस किस्से को ख़तम करो.. और एक प्यारी सी क़िस्सी लेकर खुश हो जाओ.. आइ लव यू जान! मैं तुमसे ज़्यादा प्यार दुनिया में किसी से नही करती.. पर जब तुम्हारा ऐसा मुँह देखती हूँ तो मेरा दिमाग़ खराब हो जाता है...." मीनू नॉर्मल सी हो गयी थी....
"सोनू कह रहा था कि ......उसने अपने खेत के कोतड़े में...... तुम्हारी ली थी एक दिन...!" तरुण ने झिझकते हुए अपनी बात कह दी....
"खेत के कोतड़े में? क्या ली थी?" मीनू या तो सच में ही नादान थी.. या फिर वो बहुत शातिर थी.. उसने सब कुच्छ इस तरह से कहा जैसे उसकी समझ में बिल्कुल नही आया हो कि एक जवान लड़का, एक जवान लड़की की; खेत के कोतड़े में और क्या लेता है भला.....
"मैं नाम ले दूं?" मुझे पता था कि तरुण ने किस चीज़ का नाम लेने की इजाज़त माँगी है....
"हां.. बताओ ना!" मीनू ने सीधे सीधे कहा....
"वो कह रहा था कि उसने खेत के कोतड़े में........ तेरी चूत मारी थी.." ये तरुण ने क्या कह दिया.. उसने तो गूगली फैंकते फैंकते अचानक बआउन्सर ही जमा दिया.. मुझे ऐसा लगा जैसे उसका बआउन्सर सीधा मेरी योनि से टकराया हो.. मेरी योनि तरुण के मुँह से 'चूत' शब्द सुनकर अचानक लिसलीसी सी हो गयी..
"धात.. ये क्या बोल रहे हो तुम.. शर्म नही आती.." मीनू की आवाज़ से लगा जैसे वो शर्म के मारे पानी पानी हो गयी हो.. अगले ही पल वो लेट गयी और अपने आपको रज़ाई में ढक लिया.....
"अब ऐसा क्यूँ कर रही हो.. मैने तो पहले ही कहा था कि बुरा मत मान'ना.. पर तुम्हारे शरमाने से मेरे सवाल का जवाब तो नही मिल जाता ना... सबूत तो सुन लो..." तरुण ने कहते हुए उसकी रज़ाई खींच ली...
मुझे मीनू का चेहरा दिखाई दिया.. वो शर्म के मारे लाल हो चुकी थी.. उसने अपने चेहरे को हाथों से और कोहनियों से अपनी मेरे जितनी ही बड़ी गोल मटोल चूचियों को छिपा रखा था....
"मुझे नही सुन'नि ऐसी घटिया बात.. तुम्हे जो सोचना है सोच लो... मेरी रज़ाई वापस दो..." मीनू गिड़गिदते हुए बोली....
पर अब तरुण पूरी तरह खुल गया लगता था... उसने मीनू की बाहें पकड़ी और उसको ज़बरदस्ती बैठा दिया.. बैठने के बाद मुझे मीनू का चेहरा दिखना बंद हो गया.. हां.. क्रीम कलर के लोवर में छिपि उसकी गुदाज जांघें मेरी आँखों के सामने थी...
"तुम्हे मेरी बात सुन'नि ही पड़ेगी.. उसने सबूत ये दिया है कि तुम्हारी.. चूत की दाईं 'पपोती' पर एक तिल है.. मुझे बताओ कि ये सच है या नही..." तरुण ने पूरी बेशर्मी दिखाते हुए गुस्से से कहा....
'पपोती'.. मैने ये शब्द पहली बार उसी के मुँह से सुना था.. शायद वो योनि की फांकों को 'पपोती कह रहा था....
"मुझे नही सुन'ना कुच्छ.. तुम्हे जो लगे वही मान लो.. पर मेरे साथ ऐसी बकवास बातें मत करो..." मुझे ऐसा लगा जैसे मीनू अपने हाथों को छुड़ाने का प्रयत्न कर रही है.. पर जब वो ऐसा नही कर पाई तो अंदर ही अंदर सुबकने लगी....
"हट, साली कुतिया.. दूसरों के आगे नंगी होती है और मुझसे प्यार का ढोंग करती है.. अगर तुम इतनी ही पाक सॉफ हो तो बताती क्यूँ नही 'वहाँ' तिल है कि नही... ड्रम्मा तो ऐसे कर रही है जैसे 8-10 साल की बच्ची हो.. जी भर कर गांद मरा अपनी; सोनू और उसके यारों से.. मैं तो आज के बाद तुझ पर थूकूंगा भी नही... तेरे जैसी मेरे आगे पिछे हज़ार घूमती हैं.. अगर दिल किया तो अंजू की मार लूँगा.. ये तो तुझसे भी सुंदर है..." तरुण थूक गटकता हुआ बोला और शायद खड़ा हो गया..
जाने तरुण क्या क्या बक' कर चला गया.. पर उसने जो कुच्छ भी कहा.. मुझे एक बात तो सच में बहुत प्यारी लगी ' अंजू की मार लूँगा.. ये तो तुझसे भी सुन्दर है'
उसके जाने के बाद मीनू काफ़ी देर तक रज़ाई में घुस कर सिसकती रही.. 5-10 मिनिट तक मैं कुच्छ नही बोली.. पर अब मेरे मामले के बीच आकर मज़े लेने का टाइम हो गया था....
मैं अंगड़ाई सी लेकर अपनी आँखें मसल्ति हुई रज़ाई हटा कर बैठ गयी.. मेरे उठने का आभास होते ही मीनू ने एकद्ूम से अपनी सिसकियों पर काबू पाने की कोशिश की.. पर वो ऐसा ना कर पाई और सिसकियाँ इकट्ठी हो होकर और भी तेज़ी से निकलने लगी....
"क्या हुआ दीदी..?" मैने अंजान बन'ने का नाटक करते हुए उसके चेहरे से रज़ाई हटा दी...
मेरा चेहरा देखते ही वह अंगारों की तरह धधक उठी..," कुच्छ नही.. कल से तुम हमारे घर मत आना! बस..." उसने गुस्से से कहा और वापस रज़ाई में मुँह दूबका कर सिसकने लगी....
उसके बाद मेरी उस'से बोलने की हिम्मत ही नही हुई.. पर मुझे कोई फ़र्क नही पड़ा.. मैने आराम से रज़ाई औधी और तरुण के सपनों में खो गयी.. अब मुझे वहीं कुच्छ उम्मीद लग रही थी....
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अगले दिन भी मुझे आना ही था.. सो मैं आई.. बुल्की पहले दिनों से और भी ज़्यादा साज धज कर.. मीनू ने मुझसे बात तक नही की.. उसका मूड उखड़ा हुआ था.. हां.. तरुण उस दिन कुच्छ खास ही लाड-प्यार से मुझे पढ़ा रहा था.. या तो उसको जलाने के लिए.. या फिर मुझे पटाने के लिए....
"चलो अंजू! तुम्हे घर छ्चोड़ दूँ... मुझे फिर घर जाना है...!" चाची के जाते ही तरुण खड़ा हो गया....
"दीदी को नही पधाओगे क्या? आज!" मैने चटखारा लिया....
"नही!" तरुण ने इतना ही कहा....
"पर.. पर मुझे कुच्छ ज़रूरी बात करनी है.. अपनी पढ़ाई को लेकर...!" मीनू की आवाज़ में तड़प थी....
मैने जल्दी से आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया.. कहीं मीनू का सच्चा प्यार उसको रुकने पर मजबूर ना कर दे (हे हे हे)," चलें!"
तरुण ने उसको कड़वी नज़र से देखा और दरवाजे की और बढ़ने लगा..," चलो, अंजू!"
मीनू ने लगभग खिसियते हुए मुझसे कहा," तुम कहाँ जा रही हो अंजू.. तुम तो यही सो जाओ!" मुझे पता था कि उसके खिसियाने का कारण मेरा और तरुण का एक साथ निकलना है...
"नही दीदी, मुझे सुबह जल्दी ही कुच्छ काम है.. कल देखूँगी..." मैने मीनू को मुस्कुरा कर देखा और तरुण के साथ बाहर निकल गयी.....
चौपाल के पास अंधेरे में जाते ही मैं खड़ी हो गयी.. तरुण मेरे साथ साथ चल रहा था.. वह भी मेरे साथ ही रुक गया और मेरे गालों को थपथपाते हुए प्यार से बोला," क्या हुआ अंजू?"
मैने अपने गाल को थपथपा रहा तरुण का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया," पता नही.. मुझे क्या हो रहा है?"
तरुण ने अपना हाथ च्छुदाने की कोई कोशिश नही की.. मेरा दिल खुश हो गया...
"अरे बोलो तो सही... यहाँ क्यूँ खड़ी हो गयी?" तरुण एक हाथ को मेरे हाथ में ही छ्चोड़ कर अपने दूसरे हाथ को मेरी गर्दन पर ले आया.. उसका अंगूठा मेरे होंटो के पास मेरे गाल पर टीका हुआ था.. मुझे झुरजुरी सी आने लगी...
"नही.. मुझे डर लग रहा है.. अगर मैं कुच्छ बोलूँगी तो उस दिन की तरह तुम मुझे धमका दोगे!" मुझे उम्मीद थी कि आज ऐसा नही होगा.. फिर भी मैं.. मासूम बने रहने का नाटक कर रही थी.. मैं चाह रही थी कि तरुण ही पहल कर दे...
" नही कहूँगा.. पागल! उस दिन मेरा दिमाग़ खराब था.. बोलो जो बोलना है.." तरुण ने कहा और अपने अंगूठे को मेरे गालों से सरककर मारे निचले होन्ट पर टीका दिया...
अचानक मेरा ध्यान चौपाल की सीधी पर हुई हुल्की सी हुलचल पर गया.. शायद कोई था वहाँ, या वही थी.... मैने चौंक कर सीढ़ियों की तरफ देखा..
"क्या हुआ?" तरुण ने मेरे अचानक मूड कर देखने से विचलित होआकर पूचछा....
"नही.. कुच्छ नही.." मैने वापस अपना चेहरा उसकी और कर लिया.. बोलने के लिए जैसे ही मेरे होन्ट हीले.. उसका अंगूठा थोड़ा और हिल कर मेरे दोनो होंटो पर आ जमा... पर उसको हटाने की ना मैने कोशिश की.. और ना ही उसने हटाया.. उल्टा हुल्के हुल्के से मेरे रसीले होंटो को मसल्ने सा लगा.. मुझे बहुत आनंद आ रहा था....
"क्या कह रही थी तुम? बोलो ना... फिर मुझे भी तुमसे कुच्छ कहना है..." तरुण मुझे उकसाते हुए बोला.....
"क्या? पहले तुम बताओ ना!" मैने बड़ी मासूमियत से कहा..
"यहाँ कोई आ जाएगा.. आओ ना.. चौपाल में चल कर खड़े होते हैं.. वहाँ अच्छे से बात हो जाएँगी..." तरुण ने धीरे से मेरी और झुक कर कहा...
"नही.. यहीं ठीक है.. इस वक़्त कौन आएगा!" दरअसल मैं उस लड़की की वजह से ही चौपाल में जाने से कतरा रही थी....
"अर्रे.. आओ ना.. यहाँ क्या ठीक है?" तरुण ने मेरा हाथ खींच लिया...
"ंमुझे डर लगेगा यहाँ!" मैने असली वजह च्छूपाते हुए कहा....
"इसमें डरने की क्या बात है पागल! मैं हूँ ना.. तुम्हारे साथ!" तरुण ने कहा और चौपाल में मुझे उसी कमरे में ले जाकर छ्चोड़ दिया.. जहाँ उस दिन वो लड़की मुझे उठा कर लाई थी..," अब बोलो.. बेहिचक होकर, जो कुच्छ भी बोलना है.. तुम्हारी कसम मैं कुच्छ भी नही कहूँगा.. उस दिन के लिए सॉरी!"
मैं भी थोड़े भाव खा गयी उसकी हालत देख कर.. मैने सोचा जब कुँवा प्यासे के पास खुद ही चलकर आना चाहता है तो क्यूँ आगे बढ़ा जाए," पहले आप बोलो ना!"
"नही.. तुमने पहले कहा था.. अब तुम ही बताओ.. और जल्दी करो.. मुझे ठंड लग रही है.." तरुण ने मेरे दोनो हाथों को अपने हाथों में दबोच लिया...
"ठंड तो मुझे भी लग रही है..." मैने पूरी तरह भोलेपन का चोला औध रखा था....
"इसीलिए तो कह रहा हूँ.. जल्दी बताओ क्या बात है..?" तरुण ने मुझे कहा और मुझे अपनी और हल्का सा खींचते हुए बोला," अगर ज़्यादा ठंड लग रही है तो मेरे सीने से लग जाओ आकर.. ठंड कम हो जाएगी.. हे हे" उसकी हिम्मत नही हो रही थी सीधे सीधे मुझे अपने से चिपकाने की....
"सच!" मैने पूचछा.. अंधेरे में कुच्छ दिखाई तो दे नही रहा था.. बस आवाज़ से ही एक दूसरे की मंशा पता चल रही थी....
"और नही तो क्या? देखो!" तरुण ने कहा और मुझे खींच कर अपनी छाती से चिपका लिया... मुझे बहुत मज़ा आने लगा.. सच कहूँ, तो एकद्ूम से अगर मैं अपनी बात कह देती और वो तैयार हो भी जाता तो इतना मज़ा नही आता जितना अब धीरे धीरे आगे बढ़ने में आ रहा था.....
मैने अपने गाल उसकी छाती से सटा लिए.. और उसकी कमर में हाथ डाल लिया.. वो मेरे बालों में प्यार से हाथ फेरने लगा.... मेरी चूचियाँ ठंड और उसके सीने से मिल रही गर्मी के मारे पागल सी हुई जा रही थी.....
"ठंड कम हुई ना अंजू?" मेरे बालों में हाथ फेरते हुए वह अचानक अपने हाथ को मेरी कमर पर ले गया और मुझे और सख्ती से भींच लिया....
मैने 'हां' में अपना सिर हिलाया और उसके साथ चिपकने में अपनी रज़ामंदी प्रकट करने के लिए थोड़ी सी और उसके अंदर सिमट गयी.. अब मुझे अपने पेट पर कुच्छ चुभता हुआ सा महसूस होने लगा.. मैने जान गयी.. यह उसका लिंग था!
"तुम कुच्छ बता रही थी ना अंजू? तरुण मेरी नाज़ुक कमर पर अपना हाथ उपर नीचे फिसलते हुए बोला.....
"हुम्म.. पर पहले तुम बताओ!" मैं अपनी ज़िद पर आडी रही.. वरना मुझे विश्वास तो था ही.. जिस तरीके से उसके लिंग ने अपना 'फन' उठना चालू किया था.. थोड़ी देर में वो 'अपने' आप ही चालू हो जाएगा....
"तुम बहुत जिद्दी हो..." वह अपने हाथ को बिल्कुल मेरे नितंबों की दरार के नज़दीक ले गया और फिर वापस खींच लिया....," मैं कह रहा था कि... सुन रही हो ना?"
"हूंम्म" मैने जवाब दिया.. उसके लिंग की चुभन मेरे पेट के पास लगातार बढ़ती जा रही थी.... मैं बेकरार थी.. पर फिर भी.. मैं इंतजार कर रही थी...
"मैं कह रहा था कि... पूरे शहर और पूरे गाँव में तुम जैसी सुन्दर लड़की मैने कोई और नही देखी.." तरुण बोला...
मैने झट से शरारत भरे लहजे में कहा," मीनू दीदी भी तो बहुत सुन्दर है ना?"
एक पल को मुझे लगा.. मैने ग़लत ही जिकर किया.. मीनू का नाम लेते ही उसके लिंग की चुभन ऐसे गायब हुई जैसे किसी गुब्बारे की हवा निकल गयी हो...
"छ्चोड़ो ना! किसका नाम ले रही हो..! होगी सुन्दर.. पर तुम्हारे जितनी नही है.. अब तुम बताओ.. तुम क्या कह रही थी...?" तरुण ने कुच्छ देर रुक कर जवाब दिया....
मैं कुच्छ देर सोचती रही कि कैसे बात शुरू करूँ.. फिर अचानक मेरे मंन में जाने ये क्या आया," कुच्छ दीनो से जाने क्यूँ मुझे अजीब सा लगता है.. आपको देखते ही उस दिन पता नही क्या हो गया था मुझे?"
"क्या हो गया था?" तरुण ने प्यार से मेरे गालों को सहलाते हुए पूचछा....
"पता नही... वही तो जान'ना चाहती हूँ..." मैने जवाब दिया...
"अच्च्छा.. मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे.. पहले बताओ!" तरुण ने मेरे माथे को चूम कर पूचछा.. मेरे बदन में गुदगुदी सी हुई.. मुझे बहुत अच्च्छा लगा....
"बहुत अच्छे!" मैने सिसक कर कहा और उसके और अंदर घुस गयी.. सिमट कर!
"आच्छे मतलब? क्या दिल करता है मुझे देख कर?" तरुण ने प्यार से पूचछा और फिर मेरी कमर पर धीरे धीरे अपना हाथ नीचे ले जाने लगा...
"दिल करता है कि यूँही खड़ी रहूं.. आपसे चिपक कर.." मैने शरमाने का नाटक किया...
"बस! यही दिल करता है या कुच्छ और भी.. " उसने कहा और हँसने लगा...
"पता नही.. पर तुमसे दूर जाते हुए दुख होता है.." मैने जवाब दिया....
"ओह्हो... इसका मतलब तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है.." तरुण ने मुझे थोड़ा सा ढीला छ्चोड़ कर कहा....
"वो कैसे...?" मैने भोलेपन से कहा....
"यही तो होता है प्यार.. हमें पता नही चलता कि कब प्यार हो गया है.. कोई और भी लगता है क्या.. मेरी तरह अच्च्छा...!" तरुण ने पूचछा....
सवाल पूछ्ते हुए पता नही क्लास के कितने लड़कों की तस्वीर मेरे जहाँ में कौंध गयी.. पर प्रत्यक्ष में मैने सिर्फ़ इतना ही कहा," नही!"
"हूंम्म्म.. एक और काम करके देखें.. फिर पक्का हो जाएगा कि तुम्हे मुझसे प्यार है की नही..." तरुण ने मेरी थोड़ी के नीचे हाथ लेजाकार उसको उपर उठा लिया....
"साला पक्का लड़कीबाज लगता था... इस तरह से दिखा रहा था मानो.. सिर्फ़ मेरी प्राब्लम सॉल्व करने की कोशिश कर रहा हो.. पर मैं नाटक करती रही.. शराफ़त और नज़ाकत का," हूंम्म्म!"
"अपने होंटो को मेरे होंटो पर रख दो...!" उसने कहा...
"क्या?" मैने चौंक कर हड़बड़ाने का नाटक किया...
"हे भगवान.. तुम तो बुरा मान रही हो.. उसके बिना पता कैसे चलेगा...!" तरुण ने कहा...
"अच्च्छा लाओ!" मैने कहा और अपना चेहरा उपर उठा लिया....
तरुण ने झुक कर मेरे नरम होंटो पर अपने गरम गरम होन्ट रख दिए.. मेरे शरीर में अचानक अकड़न सी शुरू हो गयी.. उसके होन्ट बहुत प्यारे लग रहे थे मुझे.. कुच्छ देर बाद उसने अपने होंटो का दबाव बढ़ाया तो मेरे होन्ट अपने आप खुल गये... उसने मेरे उपर वाले होन्ट को अपने होंटो के बीच दबा लिया और चूसने लगा.. मैं भी वैसा ही करने लगी, उसके नीचे वाले होन्ट के साथ....
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