RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
अंधेरे में मुझे मेरी बंद आँखों के सामने तारे से टूट'ते नज़र आ रहे थे... कुच्छ ही देर में बदहवासी में मैं पागल सी हो गयी और तेज तेज साँसे लेने लगी.. उसका भी कुच्छ ऐसा ही हाल था.. उसका लिंग एक बार फिर अकड़ कर मेरे पेट में घुसने की कोशिश करने लगा था.. थोड़ी देर बाद ही मुझे मेरी कछी गीली होने का अहसास हुआ.... मेरी चूचिया मचलने सी लगी थी... उनका मचलना शांत करने के लिए मैने अपनी चूचियाँ तरुण के सीने में गाड़ा दी..
मुझसे रहा ना गया.... मैने अपने पेट में गाड़ा हुआ उसका लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने होन्ट छुटाकार बोली," ये क्या है?"
उसने लिंग के उपर रखा मेरा हाथ वहीं पकड़ लिया,"ये! तुम्हे सच में नही पता क्या?"
मुझे पता तो सब कुच्छ था ही.. उसके पूच्छने के अंदाज से मुझे लगा कि नाटक कुच्छ ज़्यादा ही हो गया.. मैने शर्मा कर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की.. और छुड़ा भी लिया," श.. मुझे लगा ये और कुच्छ होगा.. पर ये तो बहुत बड़ा है.. और ये..इस तरह खड़ा क्यूँ है?" मैने मचलते हुए कहा...
"क्यूंकी तुम मेरे पास खड़ी हो.. इसीलिए खड़ा है.." वह हँसने लगा..," सच बताना! तुमने किसी का देखा नही है क्या? तुम्हे मेरी कसम!"
मेरी आँखों के सामने सुंदर का लिंग दौड़ गया.. वो उसके लिंग से तो बड़ा ही था.. पर मैने तरुण की कसम की परवाह नही की," हां.. देखा है.. पर इतना बड़ा नही देखा.. छ्होटे छ्होटे बच्चों का देखा है..." मैने कहा और शर्मा कर उसकी कमर में हाथ डाल कर उस'से चिपक गयी....
"डिखाउ?" उसने गरम गरम साँसे मेरे चेहरे पर छ्चोड़ते हुए धीरे से कहा...
"पर.. यहाँ कैसे देखूँगी..? यहाँ तो बिल्कुल अंधेरा है.." मैने भोलेपन से कहा...
"अभी हाथ में लेकर देख लो.. मैं बाहर निकाल देता हूँ.. फिर कभी आँखों से देख लेना!" तरुण ने मेरा हाथ अपनी कमर से खींच कर वापस अपने लिंग पर रख दिया....
मैं लिंग को हाथ में पकड़े खड़ी रही," नही.. मुझे शरम आ रही है... ये कोई पकड़'ने की चीज़ है....!"
"अर्रे, तुम तो बहुत भोली निकली.. मैं तो जाने क्या क्या सोच रहा था.. यही तो असली चीज़ होती है लड़की के लिए.. इसके बिना तो लड़की का गुज़ारा ही नही हो सकता!" तरुण मेरी बातों में आकर मुझे निरि नादान समझने लगा था....
"वो क्यूँ?" लड़की का भला इसके बिना गुज़रा क्यूँ नही हो सकता.. लड़कियों के पास ये कहाँ से आएगा.. ये तो सिर्फ़ लड़कों के पास ही होता है ना!" मैने नाटक जारी रखा.. इस नाटक में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.. उपर बैठा भगवान भी; जिसने मुझे इतनी कामुक और गरम चीज़ बनाया.. मेरी आक्टिंग देख कर दाँतों तले उंगली दबा रहा होगा.....
"हां.. लड़कों के पास ही होता है ये बस! और लड़के ही लड़कियों को देते हैं ये.. तभी तो प्यार होता है..." तरुण ने झुक कर एक बार मेरे होंटो को चूस लिया और वापस खड़ा हो गया... मुझ जैसी लड़की को अपने जाल में फँसा हुआ देख कर उसका लिंग रह रह कर झटके से खा रहा था.. मेरे हाथ में.....," और बदले में लड़कियाँ लड़कों को देती हैं...." उसने बात पूरी की....
"अच्च्छा! क्या? ... लड़कियाँ क्या देती हैं बदले में..." मेरी योनि से टाप टॅप पानी टपक रहा था....
"बता दूँ?" तरुण ने मुझे अपने से चिपकाए हुए ही अपना हाथ नीचे करके मेरे मस्त सुडौल नितंबों पर फेरने लगा.....
मुझे योनि में थोड़ी और कसमसाहट सी महसूस होने लगी.. उत्तेजना में मैने उसका लिंग और कसकर अपनी मुट्ठी में भींच लिया......," हां.. बता दो!" मैने हौले से कहा....
"अपनी चूत!" वह मेरे कान में फुसफुसाया था.. पर हवा जाकर मेरी योनि में लगी..,"अया.." मैं मचल उठी.....
"नआईईई..." मैने बड़बड़ाते हुए कहा....
"हां.. सच्ची अंजू...! लड़कियाँ अपनी चूत देती हैं लड़कों को और लड़के अपना..." अचानक वह रुक गया और मुझसे पूच्छने लगा," इसको पता है क्या कहते हैं?"
"मैने शर्मकार कहा," हां... लुल्ली" और हँसने लगी...
"पागल.. लुल्ली इसको थोड़े ही कहते हैं.. लुल्ली तो छ्होटे बच्चों की होती है.. बड़ा होने पर इसको 'लंड' बोलते हैं... और लौदा भी..!" उसने मेरे सामानया ज्ञान में वृधि करनी चाही.. पर उस लल्लू से ज़्यादा तो इसके नाम मुझे ही पता थे..
"पर.. ये लेने देने वाली क्या बात है.. मेरी समझ में नही आई...!" मैने अंजान सी बनते हुए उसको काम की बात पर लाने की कोशिश की....
"तुम तो बहुत नादान हो अंजू.. मुझे कितनो दीनो से तुम जैसी प्यारी सी, भोली सी लड़की की तलाश थी.. मैं सच में तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ... पर मुझे डर है कि तुम इतनी नादान हो.. कहीं किसी को बता ना दो ये बातें.. पहले कसम खाओ की किसी से अपनी बातों का जिकर नही करोगी..." तरुण ने कहा...
"नही करूँगी किसी से भी जिकर... तुम्हारी कसम!" मैने झट से कसम खा ली...
"आइ लव यू जान!" उसने कहा," अब सुनो... देखो.. जिस तरह तुम्हारे पास आते ही मेरे लौदे को पता लग गया और ये खड़ा हो गया; उसी तरह.. मेरे पास आने से तुम्हारी चूत भी फूल गयी होगी.. और गीली हो गयी होगी... है ना.. सच बताना..."
वो बातें इतने कामुक ढंग से कर रहा था कि मेरा भी मेरी योनि का 'देसी' नाम लेने का दिल कर गया.. पर मैने बोलते हुए अपना भोलापन नही खोया," फूलने का तो पता नही... पर गीली हो गयी है मेरी चू...."
"अरे.. शर्मा क्यूँ रही हो मेरी जान.. शरमाने से थोड़े ही काम चलेगा... इसका पूरा नाम लो..." उसने मेरी छातियो को दबाते हुए कहा.. मेरी सिसकी निकल गयी..
"आ.. चूत.." मैने नाम ले दिया.. थोड़ा शरमाते हुए....
"व. गुड... अब इसका नाम लो.. शाबाश!" तरुण मेरी चूचियो को मेरे कमीज़ के उपर से मसल्ने लगा.. मैं मदहोश होती जा रही थी...
मैने उसका लिंग पकड़ कर नीचे दबा दिया," लौदा.. अया!"
"यही तड़प तो हमें एक दूसरे के करीब लाती है जान.. हां.. अब सुनो.. मेरा लौदा और तुम्हारी चूत.. एक दूसरे के लिए ही बने हैं... इसीलिए एक दूसरे को पास पास पाकर मचल गये... दरअसल.. मेरा लौदा तुम्हारी चूत में घुसेगा तो ही इनका मिलन होगा... ये दोनो एक दूसरे के प्यासे हैं.. इसी को 'प्यार' कहते हैं मेरी जान.... अब बोलो.. मुझसे प्यार करना है...?" उसने कहते हुए अपना हाथ पिछे ले जाकर सलवार के उपर से ही मेरे मस्त नितंबों की दरार में घुसा दिया.. मैं पागल सी होकर उसमें घुसने की कोशिश करने लगी....
"बोलो ना.. मुझसे प्यार करती हो तो बोलो.. प्यार करना है कि नही..." तरुण भी बेकरार होता जा रहा था....
"पर.. तुम्हारा इतना मोटा लौदा मेरी छ्होटी सी चूत में कैसे घुसेगा.. ये तो घुस ही नही सकता..." मैने मचलते हुए शरारत से उसको थोड़ा और ताड़-पाया...
"अरे.. तुम तो पागलों जैसी बात कर रही हो... सबका तो घुसता है चूत में... तुम क्या ऐसे ही पैदा हो गयी.. तुम्हारे पापा ने भी तो तुम्हारी मम्मी की चूत में घुसाया होगा... पहले उनकी भी चूत छ्होटी ही होगी...." तरुण ने मुझे समझाने की कोशिश की....
सच कहूँ तो तरुण कि सिर्फ़ यही बात थी जो मेरी समझ में नही आई थी...," क्या मतलब?"
"मतलब ये मेरी जान.. कि शादी के बाद जब हज़्बेंड अपनी वाइफ की चूत में लौदा घुसाता है तभी बच्चा पैदा होता है... बिना घुसाए नही होता... और इसमें मज़ा भी इतना आता है कि पूच्छो ही मत...." तरुण अब उंगलियों को सलवार के उपर से ही मेरी योनि के उपर ले आया था और धीरे धीरे सहलकर मुझे तड़पते हुए तैयार कर रहा था......
तैयार तो मैं कब से थी.. पर उसकी बात सुनकर मैं डर गयी.. मुझे लगा अगर मैने अपनी योनि में उसका लिंग घुस्वा लिया तो लेने के देने पड़ जाएँगे... मुझे बच्चा हो जाएगा...," नही, मुझे नही घुस्वाना!" मैं अचानक उस'से अलग हट गयी....
"क्या हुआ? अब अचानक तुम यूँ पिछे क्यूँ हट रही हो...?" तरुण ने तड़प कर कहा......
"नही.. मुझे देर हो रही है.. चलो अब यहाँ से!" मैं हड़बड़ते हुए बोली....
"हे भगवान.. ये लड़कियाँ!" तरुण बड़बड़ाया और बोला," कल करोगी ना?"
"हां... अब जल्दी चलो.. मुझे घर पर छ्चोड़ दो..." मैं डरी हुई थी कहीं वो ज़बरदस्ती ना घुसा दे और मैं मा ना बन जाउ!
"दो.. मिनिट तो रुक सकती हो ना.. मेरे लौदे को तो शांत करने दो..." तरुण ने रिक्वेस्ट सी करी....
मैं कुच्छ ना बोली.. चुपचाप खड़ी रही...
तरुण मेरे पास आकर खड़ा हो गया और मेरे हाथ में 'टेस्टेस' पकड़ा दिए," इन्हे आराम से सहलाती रहो..." कहकर वो तेज़ी से अपने हाथ को लिंग पर आगे पिछे करने लगा.....
ऐसा करते हुए ही उसने मेरी कमीज़ में हाथ डाला और समीज़ के उपर से ही मेरी चूचियो को दबाने लगा... मैं तड़प रही थी.. लिंग को अपनी योनि में घुस्वाने के लिए.. पर मुझे डर लग रहा था..
अचानक उसने चूचियो से हाथ निकाल कर मेरे बालों को पकड़ा और मुझे अपनी और खींच कर मेरे होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... और अगले ही पल झटके से ख़ाता हुआ मुझसे दूर हट गया...
"चलो अब जल्दी... पर कल का अपना वादा याद रखना.. कल हम टूवुशन से जल्दी निकल लेंगे...." तरुण ने कहा और हम दायें बायें देख कर रास्ते पर चल पड़े....
"कल भी दीदी को नही पधाओगे क्या?" मैने घर नज़दीक आने पर पूचछा....
"नही...!" उसने सपाट सा जवाब दिया....
"क्यूँ? मैने अपने साथ रखी एक चाबी को दरवाजे के अंदर हाथ डाल कर ताला खोलते हुए पूचछा.....
"तुमसे प्यार जो करना है..." वह मुस्कुराया और वापस चला गया.....
मैं तो तड़प रही थी... अंदर जाते ही नीचे कमरे में घुसी और अपनी सलवार नीचे करके अपनी योनि को रगड़ने लगी.....
क्रमशः ..................
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