RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--7
गतांक से आगे.......................
अगले पूरे दिन मैं अजीब कसंकस में रही; जब मैं अपनी प्यासी योनि की आग बुझाने के लिए हर जगह हाथ पैर मार रही थी तो कोई नसीब ही नही हुआ.. और जब अच्च्छा ख़ासा 'लल्लू' मेरे हाथों में आया तो मैं उसको अपनी योनि में घुस्वाने से डरने लगी.. अब किसी से पूछ्ति भी तो क्या पूछ्ति? दीदी अपनी ससुराल में थी.. किसी और से पूच्छने की हिम्मत हो नही रही थी..
पूरा दिन मेरा दिमाग़ खराब रहा .. और टूवुशन के टाइम बुझे मंन से ही पिंकी के घर चली गयी...
उस दिन मीनू बहुत उदास थी, .. कारण मुझे अच्छि तरह पता था.. तरुण की नाराज़गी ने उसको परेशान कर रखा था.. 2 दिन से उसने मीनू के साथ बात तक नही की थी...
"वो.. तरुण तुम्हे कहाँ तक छ्चोड़ कर आया था कल?" मीनू ने मुझसे पूछा.. पिंकी साथ ही बैठी थी.. तरुण अभी आया नही था...
"मेरे घर तक.. और कहाँ छ्चोड़ कर आता?" मैने उसकी और देख कर कहा और उसका बुझा हुआ चेहरा देख बरबस ही मेरे होंटो पर मुस्कान तेर गयी...
"इतना खुश क्यूँ हो रही है? इसमें हँसने वाली बात क्या है?" मीनू ने चिड कर कहा....
"अरे दीदी.. मैं आपकी बात पर थोड़े ही हँसी हूँ.. मैं तो बस यूँही..." मैं कहा और फिर मुस्कुरा दी...
"पिंकी.. पानी लाना उपर से...." मीनू ने कहा...
"जी, दीदी.. अभी लाई.. " कहकर पिंकी उपर चल दी...
"थोड़ा गरम करके लाना.. मेरा गला खराब है.." मीनू ने कहा और पिंकी के उपर जाते ही मुझे घूर कर बोली लगी," ज़्यादा दाँत निकालने की ज़रूरत नही है... मुझे तुम्हारे बारे में सब कुच्छ पता है.."
"अच्च्छा!" मैने खड़ी होकर अंगड़ाई सी ली और अपने भरे भरे यौवन का जलवा उसको दिखा कर फिर मुस्कुराने लगी.. मैं कुच्छ बोल कर उसको 'ठंडी' करने ही वाली थी कि अचानक तरुण आ गया.. मैं मंन की बात मंन में ही रखे मुस्कुरकर तरुण की और देखने लगी..
मीनू ने अपना सिर झुका लिया और मुँह पर कपड़ा लपेट कर किताब में देखने लगी... तरुण मेरी और देख कर मुस्कुराया और आँख मार दी.. मैं हंस पड़ी...
तरुण चारपाई पर जा बैठता. उसने रज़ाई अपने पैरों पर डाली और मुझे आँखों ही आँखों में उसी चारपाई पर बैठने का इशारा कर दिया...
वहाँ हर रोज पिंकी बैठी थी और मैं उसके सामने दूसरी चारपाई पर.. शायद तरुण मीनू को जलाने के लिए ऐसा कर रहा था.. मैं भी कहाँ पिछे रहने वाली थी.. मैने एक नज़र मीनू की और देखा और 'धुमम' से तरुण के साथ चारपाई पर बैठी और उसकी रज़ाई को ही दूसरी तरफ से अपनी टाँगों पर खींच लिया....
मैने मीनू की और तिर्छि नज़रों से देखा... वह हम दोनो को ही घूर रही थी... पर तरुण ने उसकी और ध्यान नही दिया....
तभी पिंकी नीचे आ गयी," नमस्ते भैया!" कहकर उसने मीनू को पानी का गिलास पकड़ाया.. मीनू ने पानी ज्यों का त्यों चारपाई के नीचे रख दिया....
पिंकी हमारे पास आई और हंसकर मुझसे बोली," ये तो मेरी सीट है..!"
"कोई बात नही पिंकी.. तुम यहाँ बैठ जाओ" तरुण ने उस जगह की और इशारा किया जहाँ पहले दिन से ही मैं बैठती थी....
"मैं तो ऐसे ही बता रही थी भैया.. यहाँ से तो और भी अच्छि तरह दिखाई देगा...." पिंकी ने हंसकर कहा और बैठ गयी....
उस दिन तरुण ने हमें आधा घंटा ही पढ़ाया और हमें कुच्छ याद करने को दे दिया..," मेरा कल एग्ज़ॅम है.. मुझे अपनी तैयारी करनी है.. मैं थोड़ी देर और यहाँ हूँ.. फिर मुझे जाना है.. तब तक कुच्छ पूच्छना हो तो पूच्छ लेना..." तरुण ने कहा और अपनी किताब खोल कर बैठ गया...
2 मिनिट भी नही हुए होंगे.. अचानक मुझे अपने तलवों के पास तरुण का अंगूठा मंडराता हुआ महसूस हुआ.. मैने नज़रें उठाकर तरुण को देखा.. वह मुस्कुराने लगा.. उसी पल मेरा ध्यान मीनू पर गया.. वह तरुण को ही देखे जा रही थी.. पर मेरे उसकी और देखने पर उसने अपना चेहरा झुका लिया..
मैने भी नज़रें किताब में झुका ली.. पर मेरा ध्यान तरुण के अंगूठे पर ही था.. अब वह लगातार मेरे तख़नों के पास अपना अंगूठा सताए हुए उसको आगे पिछे करके मुझे छेड़ रहा था...
अचानक रज़ाई के अंदर ही धीरे धीरे उसने अपनी टाँग लंबी कर दी.. मैने पिंकी को देखा और अपनी किताब थोड़ी उपर उठा ली....उसका पैर मेरी जांघों पर आकर टिक गया...
मेरी योनि फुदकने लगी.. मुझ पर सुरूर सा छाने लगा और मैने भी रज़ाई के अंदर अपनी टांगे सीधी करके उसका पैर मेरी दोनो जांघों के बीच ले लिया... चोरी चोरी मिल रहे इस आनंद में पागल सी होकर मैने उसके पैर को अपनी जांघों में कसकर भींच लिया...
तरुण भी तैयार था.. शायद उसकी मंशा भी यही थी.. वह मुझे साथ लेकर निकलने से पहले ही मुझे पूरी तरह गरम कर लेना चाहता होगा.. उसने अपने पैर का पंजा सीधा किया और सलवार के उपर से ही मेरी कछी के किनारों को अपने अंगूठे से कुरेदने लगा.. योनि के इतने करीब 'घुसपैठिए' अंगूठे को महसूस करके मेरी साँसें तेज हो गयी.. बस 2 इंच का फासला ही तो बचा होगा मुश्किल से... मेरी योनि और उसके अंगूठे में...
मीनू और पिंकी के पास होने के कारण ही शायद हल्की छेड़ छाड से ही मिल रहे आनंद में दोगुनी कसक थी... मैं अपनी किताब को एक तरफ रख कर उसमें देखने लगी और मैने अपने घुटने मोड़ कर रज़ाई को उँचा कर लिया.. अब रज़ाई के अंदर शैतानी कर रहे तरुण के पैरों की हुलचल बाहर से दिखयी देनी बंद हो गयी...
अचानक तरुण ने अंगूठा सीधा मेरी योनि के उपर रख दिया.. मैं हड़बड़ा सी गयी... योनि की फांकों के ठीक बीचों बीच उसका अंगूठा था और धीरे धीरे वो उसको उपर नीचे कर रहा था....
मैं तड़प उठी... इतना मज़ा तो मुझे जिंदगी में उस दिन से पहले कभी आया ही नही था.. शायद इसीलिए कहते हैं.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा' .. 2 चार बार अंगूठे के उपर नीचे होने से ही मेरी योनि छलक उठी.. योनिरस से मेरी कछि भी 'वहाँ' से पूरी तरह गीली हो गयी.... मुझे अपनी साँसों पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था.. मुझे लग रहा था कि मेरे चेहरे के भावों से कम से कम मीनू तो मेरी हालत समझ ही गयी होगी...
'पर जो होगा देखा जाएगा' के अंदाज में मैने अपना हाथ धीरे से अंदर किया और सलवार के उपर से ही अपनी कछी का किनारा पकड़ कर उसको अपनी योनि के उपर से हटा लिया.....
मेरा इरादा सिर्फ़ तरुण के अंगूठे को 'वहाँ' और अच्छि तरह महसूस करना था.. पर शायद तरुण ग़लत समझ गया.. योनि के उपर अब कछी की दीवार को ना पाकर मेरी योनि का लिसलिसपन उसको अंगूठे से महसूस होने लगा.. कुच्छ देर वह अपने अंगूठे से मेरी फांकों को अलग अलग करने की कोशिश करता रहा.. मेरी हालत खराब होती जा रही थी.. आवेश में मैं कभी अपनी जांघों को खोल देती और कभी भींच लेती... अचानक उसने मेरी योनि पर अंगूठे का दबाव एक दम बढ़ा दिया....
इसके साथ ही मैं हड़बड़ा कर उच्छल सी पड़ी... और मेरी किताब छितक कर नीचे जा गिरी... मेरी सलवार का कुच्छ हिस्सा मेरी योनि में ही फँसा रह गया..
"क्या हुआ अंजू!" पिंकी ने अचानक सिर उठा कर पूचछा....
"हां.. नही.. कुच्छ नही.. झपकी सी आ गयी थी" मैने बात संभालने की कोशिश की...
घबराकर तरुण ने अपना पैर वापस खींच लिया... पर इस सारे तमाशे से हमारी रज़ाई में जो हुलचल हुई.. उस'से शायद मीनू को विश्वास हो गया कि अंदर ही अंदर कुच्छ 'घोटाला' हो रहा है...
अचानक मीनू ने 2-4 सिसकी सी ली और पिंकी के उठकर उसके पास जाते ही उसने फुट फुट कर रोना शुरू कर दिया...
"क्या हुआ दीदी?" पिंकी ने मीनू के चेहरे को अपने हाथों में लेकर पूचछा....
"कुच्छ नही.. ..तू पढ़ ले..." मीनू ने उसको कहा और रोती रही...
"बताओ ना क्या हो गया?" पिंकी वहीं खड़ी रही तो मुझे लगा कि मुझे भी उठ जाना चाहिए... मैने अपनी सलवार ठीक की और रज़ाई हटाकर उसके पास चली गयी," ये.. अचानक क्या हुआ आपको दीदी...?"
"कुच्छ नही.. मैं ठीक हूँ.." मेरे पूछ्ते ही मीनू ने हुल्के से गुस्से में कहा और अपने आँसू पौंच्छ कर चुप हो गयी....
मेरी दोबारा तरुण की रज़ाई में बैठने की हिम्मत नही हुई.. मैं पिंकी के पास ही जा बैठी...
"क्या हुआ अंजू? वहीं बैठ लो ना.." पिंकी ने भोलेपन से मेरी और देखा...
"नही.. अब कौनसा पढ़ा रहे हैं...?" मैने अपने चेहरे के भावों को पकड़े जाने से बचाने की कोशिश करते हुए जवाब दिया.....
मेरे अलग बैठने से शायद मीनू के ज़ख़्मों पर कुच्छ मरहम लगा.. थोड़ी ही देर बाद वो अचानक धीरे से बोल पड़ी," मेरे वहाँ तिल नही है!"
तरुण ने घूम कर उसको देखा.. समझ तो मैं भी गयी थी कि 'तिल' कहाँ नही है.. पर भोली पिंकी ना समझने के बावजूद मामले में कूद पड़ी..," क्या? कहाँ 'तिल' नही है दीदी...?"
मीनू ने भी पूरी तैयारी के बाद ही बोला था..," अरे 'तिल' नही.. 'दिल'.. मैं तो इस कागज के टुकड़े में से पढ़कर बोल रही थी.. जाने कहाँ से मेरी किताब में आ गया... पता नही.. ऐसा ही कुच्छ लिखा हुआ है.. 'देखना' " उसने कहा और कागज का वो टुकड़ा तरुण की और बढ़ा दिया...
तरुण ने कुच्छ देर उस कागज को देखा और फिर अपनी मुट्ठी में दबा लिया...
"दिखाना भैया!" पिंकी ने हाथ बढ़ाया...
"यूँही लिखी हुई किसी लाइन का आधा भाग लग रहा है....तू अपनी पढ़ाई कर ले.." तरुण ने कहकर पिंकी को टरका दिया....
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तरुण ने थोड़ी देर बाद उसी कागज पर दूसरी तरफ चुपके से कुच्छ लिखा और रज़ाई की साइड से चुपचाप मेरी और बढ़ा दिया... मैने उसी तरफ च्छुपाकर उसको पढ़ा.. 'प्यार करना है क्या?' उस पर लिखा हुआ था.. मैने कागज को पलट कर देखा.. दूसरी और लिखा हुआ था.... 'मेरे वहाँ 'तिल' नही है..'
दिल तो बहुत था योनि की खुजली मिटा डालने का.. पर 'मा' बन'ने को कैसे तैयार होती... मैने तरुण की ओर देखा और 'ना' में अपना सिर हिला दिया......
वह अपना सा मुँह लेकर मुझे घूर्ने लगा.. उसके बाद मैने उस'से नज़रें ही नही मिलाई....
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हमें चाइ पिलाकर चाची जाने ही वाली थी कि तरुण के दिमाग़ में जाने क्या आया," आओ मीनू.. थोड़ी देर तुम्हे पढ़ा दूं...! फिर मैं जाउन्गा...."
मीनू का चेहरा अचानक खिल उठा.. उसने झट से अपनी किताब उठाई और तरुण के पास जा बैठी...
मैं और पिंकी दूसरी चारपाइयों पर लेट गये.. थोड़ी ही देर बाद पिंकी के खर्राटे भी सुनाई देने लगे... पर मैं भला कैसे सोती?
पर आज मैने पहले ही एक दिमाग़ का काम कर लिया.. मैने दूसरी और तकिया लगा लिया और उनकी और करवट लेकर लेट गयी अपनी रज़ाई को मैने शुरू से ही इस तरह थोड़ा उपर उठाए रखा कि मुझे उनकी पूरी चारपाई दिखाई देती रहे....
आज मीनू कुच्छ ज़्यादा ही बेसब्र दिखाई दे रही थी.. कुच्छ 15 मिनिट ही हुए होंगे की जैसे ही तरुण ने पन्ना पलटने के लिए अपना हाथ रज़ाई से बाहर निकाला; मीनू ने पकड़ लिया.. मैं समझ गयी.. अब होगा खेल शुरू !
तरुण बिना कुच्छ बोले मीनू के चेहरे की और देखने लगा.. कुच्छ देर मीनू भी उसको ऐसे ही देखती रही.. अचानक उसकी आँखों से आँसू लुढ़क गये.. सच बता रही हूँ.. मीनू का मासूम और बेबस सा चेहरा देख मेरी भी आँखें नम हो गयी थी....
तरुण ने एक बार हमारी चारपाइयों की ओर देखा और अपना हाथ छुड़ा कर मीनू का चेहरा अपने दोनो हाथों में ले लिया.. मीनू अपने चेहरे को उसके हाथों में छुपा कर सुबकने लगी...
"ऐसे क्यूँ कर रही है पागल? इनमें से कोई उठ जाएगी.." तरुण ने उसके आँसुओं को पोन्छ्ते हुए धीरे से फुसफुसाया...
मीनू के मुँह से निकलने वाली आवाज़ भरी और भरभराई हुई सी थी..," तुम्हारी नाराज़गी मुझसे सहन नही होती तरुण.. मैं मर जाउन्गि.. तुम मुझे यूँ क्यूँ तडपा रहे हो.. तुम्हे पता है ना की मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ..."
मीनू की आँखों से आँसू नही थम रहे थे.. मैने भी अपनी आँखों से आँसू पौच्छे.. मुझे दिखाई देना बंद हो गया था.. मेरे आँसुओं के कारण...!
"मे कहाँ तड़पता हूँ तुम्हे? तुम्हारे बारे में कुच्छ भी सुन लेता हूँ तो मुझसे सहन ही नही होता.. मैं पागल हूँ थोड़ा सा.. पर ये पागलपन भी तो तुम्हारे कारण ही है जान.." तरुण ने थोड़ा आगे सरक कर मीनू को अपनी तरफ खींच लिया... मीनू ने आगे झुक कर तरुण की छाती पर अपने गाल टीका दिए..
उसका चेहरा मेरी ही और था.. अब उसके चेहरे पर प्रायपत सुकून झलक रहा था.. ऐसे ही झुके हुए उसने तरुण से कहा," तुम्हे अंजलि मुझसे भी अच्छि लगती है ना?"
"ये क्या बोल रही है पागल? मुझे इस'से क्या मतलब? मुझे तो तुमसे ज़्यादा प्यारा इस पूरी दुनिया में कोई नही लगता.. तुम सोच भी नही सकती कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ..." साला मगरमच्च्छ की औलाद.. बोलते हुए रोने की आक्टिंग करने लगा.....
मीनू ने तुरंत अपना चेहरा उपर किया और आँखें बंद करके तरुण के गालों पर अपने होन्ट रख दिए..," पर तुम कह रहे थे ना.. कि अंजू मुझसे तो सुंदर ही है.." तरुण को किस करके सीधी होते मीनू बोली...
"वो तो मैं तुम्हे जलाने के लिए बोल रहा था... तुमसे इसका क्या मुक़ाबला?" दिल तो कर रहा था कि रज़ाई फैंक कर उसके सामने खड़ी होकर पूच्छू.. कि 'अब बोल' .. पर मुझे तिल वाली रामायण भी देखनी थी.... इसीलिए दाँत पीस कर रह गयी...
"अब तक तो मुझे भी यही लग रहा था कि तुम मुझे जला रहे हो.. पर तब मुझे लगा कि तुम और अंजू एक दूसरे को रज़ाई के अंदर छेड़ रहे हो.. तब मुझसे सहन नही हुआ और मैं रोने लगी..." मीनू ने अपने चेहरे को फिर से उसकी छाती पर टीका दिया...
तरुण उसकी कमर में हाथ फेरता हुआ बोला,"छ्चोड़ो ना... पर तुमने मुझे परसों क्यूँ नही बताया कि तुम्हारे वहाँ 'तिल' नही है.. परसों ही मामला ख़तम हो जाता.."
"मुझे क्या पता था कि तिल है कि नही.. कल मैने..." मीनू ने कहा और अचानक शर्मा गयी...
"कल क्या? बोलो ना मीनू..." तरुण ने आगे पूचछा...
मीनू सीधी हुई और शरारत से उसकी आँखों में घूरती हुई बोली," बेशरम! बस बता दिया ना कि तिल नही है.. मेरी बात पर विस्वास नही है क्या?"
"बिना देखे कैसे होगा.. देख कर ही विश्वास हो सकता है कि 'तिल' है कि नही.." तरुण ने कहा और शरारत से मुस्कुराने लगा...
मीनू का चेहरा अचानक लाल हो गया..उसने तरुण से नज़रें चुराई, मिलाई और फिर चुरा कर बोली," देखो.. देखो.. तुम फिर लड़ाई वाला काम कर रहे हो.. मैने वैसे भी कल शाम से खाना नही खाया है.. !"
"लड़ाई वाला काम तो तुम कर रही हो मीनू.. जब तक देखूँगा नही.. मुझे विश्वास कैसे होगा? बोलो! ऐसे ही विश्वास करना होता तो लड़ाई होती ही क्यूँ? मैं परसों ही ना मान जाता तुम्हारी बात...." तरुण ने अपनी ज़िद पर आड़े रहकर कहा...
"तुम मुझे फिर से रुला कर जाओगे.. है ना?" मीनू के चेहरे का रंग उड़ सा गया...
तरुण ने दोनो के पैरों पर रखी रज़ाई उठाकर खुद औध ली और उसको खोल कर मीनू की तरफ हाथ बढ़ा कर बोला," आओ.. यहाँ आ जाओ मेरी जान!"
"नही!" मीनू ने नज़रें झुका ली और अपने होन्ट बाहर निकाल लिए...
"आओ ना.. क्या इतना भी नही कर सकती अब?" तरुण ने बेकरार होकर कहा...
"रूको.. पहले मैं उपर वाला दरवाजा बंद करके आती हूँ.." कहकर मीनू उठी और उपर वाले दरवाजे के साथ बाहर वाला भी बंद कर दिया.. फिर तरुण के पास आकर कहा," जल्दी छ्चोड़ दोगे ना?"
"आओ ना!" तरुण ने मीनू को पकड़ कर खींच लिया... मीनू हल्की हल्की शरमाई हुई उसकी गोद में जा गिरी....
रज़ाई से बाहर अब सिर्फ़ दोनो के चेहरे दिखाई दे रहे थे.. तरुण ने इस तरह मीनू को अपनी गोद में बिठा लिया था कि मीनू की कमर तरुण की छाती से पूरी तरह चिपकी हुई होगी.. और उसके सुडौल नितंब ठीक तरुण की जांघों के बीच रखे होंगे... मैं समझ नही पा रही थी.. मीनू को खुद पर इतना काबू कैसे है.. हालाँकि आँखें उसकी भी बंद हो गयी थी.. पर मैं उसकी जगह होती तो नज़ारा ही दूसरा होता...
तरुण ने उसकी गर्दन पर अपने होन्ट रख दिए.. मीनू सिसक उठी...
"कब तक मुझे यूँ तड़पावगी जान?" तरुण ने हौले से उसके कानों में साँस छ्चोड़ी...
"अया.. जब तक.. मेरी पढ़ाई पूरी नही हो जाती.. और घर वाले हमारी शादी के लिए तैयार नही हो जाते... या फिर... हम घर छ्चोड़ कर भाग नही जाते..." मीनू ने सिसकते हुए कहा...
मीनू की इस बात ने मेरे दिल में प्यार करते ही 'मा' बन जाने के डर को और भी पुख़्ता कर दिया....
"पर तब तक तो मैं मर ही जाउन्गा..!" तरुण ने उसको अपनी और खींच लिया...
मीनू का चेहरा चमक उठा..," नही मरोगे जान.. मैं तुम्हे मरने नही दूँगी.." मीनू ने कहा और अपनी गर्दन घुमा कर उसके होंटो को चूम लिया..
तरुण ने अपना हाथ बाहर निकाला और उसके गालों को अपने हाथ से पकड़ लिया.. मीनू की आँखें बंद थी.. तरुण ने अपने होन्ट खोले और मीनू के होंटो को दबा कर चूसने लगा... ऐसा करते हुए उनकी रज़ाई मेरी तरफ से नीचे खिसक गयी...
तरुण काफ़ी देर तक उसके होंटो को चूस्ता रहा.. उसका दूसरा हाथ मीनू के पेट पर था और वो रह रह कर मीनू को पिछे खींच कर अपनी जांघों के उपर चढ़ाने का प्रयास कर रहा था.. पता नही अंजाने में या जान बूझ कर.. मीनू रह रह कर अपने नितंबों को आगे खिसका रही थी....
तरुण ने जब मीनू के होंटो को छ्चोड़ा तो उसकी साँसे बुरी तरह उखड़ी हुई थी.. हाँफती हुई मीनू अपने आप को छुड़ा कर उसके सामने जा बैठी," तुम बहुत गंदे हो.. एक बार की कह कर.... मुश्किल से ही छ्चोड़ते हो.. आज के बाद कभी तुम्हारी बातों में नही आउन्गि..."
मीनू की नज़रें ये सब बोलते हुए लज़ाई हुई थी... उसके चेहरे की मुस्कान और लज्जा के कारण उसके गालों पर चढ़ा हुआ गुलाबी रंग ये बता रहा था कि अच्च्छा तो उसको भी बहुत लग रहा था... पर शायद मेरी तरह वह भी मा बन'ने से डर रही होगी.....
" देखो.. मैं मज़ाक नही कर रहा.. पर 'तिल' तो तुम्हे दिखाना ही पड़ेगा...!" तरुण ने अपने होंटो पर जीभ फेरते हुए कहा.. शायद मीनू के रसीले गुलाबी होंटो की मिठास अभी तक तरुण के होंटो पर बनी हुई थी.....
"तुम तो पागल हो.. मैं कैसे दिखाउन्गि तुम्हे 'वहाँ' .. मुझे बहुत शर्म आ रही है.. कल खुद देखते हुए भी मैं शर्मिंदा हो गयी थी..." मीनू ने प्यार से दुतकार कर तरुण को कहा....
"पर तुम खुद कैसे देख सकती हो.. अच्छि तरह...!" तरुण ने तर्क दिया...
"वो.. वो मैने.. शीशे में देखा था.." मीनू ने कहते ही अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया...
"पर क्या तुम.. मेरे दिल की शांति के लिए इतना भी नही कर सकती..." तरुण ने उसके हाथ पकड़ कर चेहरे से हटा दिए..
लज़ाई हुई मीनू ने अपने सिर को बिल्कुल नीचे झुका लिया," नही.. बता तो दिया... मुझे शर्म आ रही है...!"
"ये तो तुम बहाना बनाने वाली बात कर रही हो.. मुझसे भी शरमाओगी क्या? मैने तुम्हारी मर्ज़ी के बगैर कुच्छ किया है क्या आज तक... मैं आख़िरी बार पूच्छ रहा हूं मीनू.. दिखा रही हो की नही..?" तरुण थोड़ा तैश में आ गया....
मीनू के चेहरे से मजबूरी और उदासी झलकने लगी," पर.. तुम समझते क्यूँ नही.. मुझे शर्म आ रही है जान!"
"आने दो.. शर्म का क्या है? ये तो आती जाती रहती है... पर इस बार अगर मैं चला गया तो वापस नही आउन्गा... सोच लो!" तरुण ने उसको फिर से छ्चोड़ देने की धमकी दी....
मायूस मीनू को आख़िरकार हार मान'नि ही पड़ी," पर.. वादा करो की तुम और कुच्छ नही करोगे.. बोलो!"
"हां.. वादा रहा.. देखने के बाद जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी वही करूँगा..." तरुण की आँखें चमक उठी.. पर शर्म के मारे मीनू अपनी नज़रें नही उठा पा रही थी....
"ठीक है.." मीनू ने शर्मा कर और मुँह बना कर कहा और लेट कर अपने चेहरे पर तकिया रख लिया..
उसकी नज़ाकत देख कर मुझे भी उस पर तरस आ रहा था.. पर तरुण को इस बात से कोई मतलब नही था शायद.. मीनू के आत्मसमर्पण करते ही तरुण के जैसे मुँह मैं पानी उतर आया," अब ऐसे क्यूँ लेट गयी.. शरमाना छ्चोड़ दो..!"
"मुझे नही पता.. जो कुच्छ देखना है देख लो.." मीनू ने अपना चेहरा ढके हुए ही कहा....," उपर से कोई आ जाए तो दरवाजा खोल कर भागने से पहले मुझे ढक देना.. मैं सो रही हूँ..." मीनू ने शायद अपनी झिझक च्चिपाने के लिए ही ऐसा बोला होगा.. वरना ऐसी हालत में कोई सो सकता है भला...
तरुण ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया.. उसको तो जैसे अलादीन का चिराग मिल गया था.. थोडा आगे होकर उसने मीनू की टाँगों को सीधा करके उनके बीच बैठ गया.. मुझे मीनू का कंपकँपता हुआ बदन सॉफ दिख रहा था...
अगले ही पल तरुण मीनू की कमीज़ उपर करके उसके समीज़ को उसकी सलवार से बाहर खींचने लगा.. शायद शर्म के मारे मीनू दोहरी सी होकर अपनी टाँगों को मोड़ने की कोशिश करने लगी.. पर तरुण ने उसकी टाँगों को अपनी कोहनियों के नीचे दबा लिया....
"इसको क्यूँ निकाल रहे हो? जल्दी करो ना.." मीनू ने सिसकते हुए प्रार्थना करी...
"रूको भी.. अब तुम चुप हो जाओ.. मुझे अपने हिसाब से देखने दो..." तरुण ने कहा और उसका समीज़ बाहर निकाल कर उसकी कमीज़ के साथ ही उसकी छातियो तक उपर चढ़ा दिया... लेती हुई होने के कारण मैं सब कुच्छ तो नही देख पाई.. पर मीनू का पाते भी मेरी तरह ही चिकना गोरा और बहुत ही कमसिन था.. चर्बी तो जैसे वहाँ थी ही नही.. रह रह कर वो उचक रही थी..
अचानक तरुण उस पर झुक गया और शायद उसकी नाभि पर अपने होन्ट रख दिए... मुझे महसूस हुआ जैसे उसके होन्ट मेरे ही बदन पर आकर टिक गये हों.. मैने अपना हाथ अपनी सलवार में घुसा लिया...
मीनू सिसक उठी," तुम देखने के बहाने अपना मतलब निकाल रहे हो.. जल्दी करो ना प्लीज़!"
"थोड़ा मतलब भी निकल जाने दो जान.. ऐसा मौका तुम मुझे दोबारा तो देने से रही... क्या करूँ.. तुम्हारा हर अंग इतना प्यारा है कि दिल करता है कि आगे बढ़ूँ ही ना.. तुम्हारा जो कुच्छ भी देखता हूँ.. उसी पर दिल आ जाता है...." तरुण ने अपना सिर उठाकर मुस्कुराते हुए कहा और फिर से झुकते हुए अपनी जीभ निकाल कर मीनू के पेट को यहाँ वहाँ चाटने लगा...
"ऊओ.. उम्म्म.. अयाया..." मीनू रह रह कर होने वाली गुदगुदी से उच्छलती रही और आँहें भारती रही... पर कुच्छ बोली नही...
अचानक तरुण ने मीनू का नाडा पकड़ कर खींच लिया और इसके साथ ही एक बार फिर मीनू ने अपनी टाँगों को मोड़ने की कोशिश की.. पर ज़्यादा कुच्छ वह कर नही पाई.. तरुण की दोनों कोहानियाँ उसकी जांघों पर थी.. वह मचल कर रह गयी," प्लीज़.. जल्दी देख लो.. मुझे बहुत शर्म आ रही है..." कहकर उसने अपनी टाँगें ढीली छ्चोड़ दी...
तरुण ने एक बार फिर उसकी बातों पर कोई ध्यान नही दिया..और उसकी सलवार उपर से नीचे सरका दी.. सलवार के नीचे होते ही मुझे मीनू की सफेद कछि और उसके नीचे उसकी गौरी गुदज जांघें थोड़ी सी नंगी दिखाई देने लगी...
तरुण उसकी जांघों के बीच इस तरह ललचाया हुआ देख रहा था जैसे उसने पहली बार किसी लड़की को इस तरह देखा हो.. उसकी आँखें कामुकता के मारे फैल सी गयी... तभी एक बार फिर मीनू की तड़पति हुई आवाज़ मेरे कानो तक आई," अब निकाल लो इसको भी.. जल्दी देख लो ना..."
तरुण ने मेरी पलक झपकने से पहले ही उसकी बात का अक्षरष पालन किया... वह कछि को उपर से नीचे सरका चुका था..," थोड़ी उपर उठो!" कहकर उसने मीनू के नितंबों के नीचे हाथ दिए और सलवार समेत उसकी कछि को नीचे खींच लिया....
तरुण की हालत देखते ही बन रही थी... अचानक उसके मुँह से लार टपाक कर मीनू की जांघों के बीच जा गिरी.. मेरे ख़याल से उसकी योनि पर ही गिरी होगी जाकर...
"मीनू.. मुझे नही पता था कि चूत इतनी प्यारी है तुम्हारी.. देखो ना.. कैसे फुदक रही है.. छ्होटी सी मछ्लि की तरह.. सच कहूँ.. तुम मेरे साथ बहुत बुरा कर रही हो.. अपने सबसे कीमती अंग से मुझको इतनी दूर रख कर... जी करता है कि...."
"देख लिया... अब मुझे छ्चोड़ो.." मीनू अपनी सलवार को उपर करने के लिए अपने हाथ नीचे लाई तो तरुण ने उनको वहीं दबोच लिया," ऐसे थोड़े ही दिखाई देगा.. यहाँ से तो बस उपर की ही दिख रही है..."
तरुण उसकी टाँगों के बीच से निकला और बोला," उपर टाँगें करो.. इसकी 'पपोती' अच्छि तरह तभी दिखाई देंगी..."
"क्या है ये?" मीनू ने कहा तो मुझे उसकी बातों में विरोध नही लगा.. बस शर्म ही लग रही थी बस! तरुण ने उसकी जांघें उपर उठाई तो उसने कोई विरोध ना किया...
मीनू की जांघें उपर होते ही उसकी योनि की सुंदरता देख कर मेरे मुँह से भी पानी टपकने लगा.. और मेरी योनि से भी..! तरुण झूठ नही बोल रहा था.. उसकी योनि की फाँकें मेरी योनि की फांकों से पतली थी.. पर बहुत ही प्यारी प्यारी थी... एक दम गौरी... हुल्के हुल्के काले बालों में भी उसका रसीलापन और नज़ाकत मुझे दूर से ही दिखाई दे रही थी... पतली पतली फांकों के बीच लंबी सी दरार ऐसे लग रही थी जैसे पहले कभी खुली ही ना हो.. पेशाब करने के लिए भी नही.. दोनो फाँकें आपस में चिपकी हुई सी थी...
अचानक तरुण ने उसकी सलवार और कछि को घुटनो से नीचे करके जांघों को और पिछे धकेल कर खोल दिया.. इसके साथ ही मीनू की योनि और उपर उठ गयी और उसकी दरार ने भी हल्का सा मुँह खोल दिया.. इसके साथ ही उसके गोल मटोल नितंबों की कसावट भी देखते ही बन रही थी... तरुण योनि की फांकों पर अपनी उंगली फेरने लगा...
"मैं मर जाउन्गि तरुण.. प्लीज़.. ऐसा ....मत करना.. प्लीज़.." मीनू हान्फ्ते हुए रुक रुक कर अपनी बात कह रही थी....
"कुच्छ नही कर रहा जान.. मैं तो बस छ्छू कर देख रहा हूं... तुमने तो मुझे पागल सा कर दिया है... सच.. एक बात मान लोगि...?" तरुण ने रिक्वेस्ट की...
"तिल नही है ना जान!" मीनू तड़प कर बोली....
"हां.. नही है.. आइ लव यू जान.. आज के बाद मैं तुमसे कभी भी लड़ाई नही करूँगा.. ना ही तुम पर शक करूँगा.. तुम्हारी कसम!" तरुण ने कहा..
"सच!!!" मीनू एक पल को सब कुच्छ भूल कर तकिये से मुँह हटा कर बोली.. फिर तरुण को अपनी आँखों में देखते पाकर शर्मा गयी...
"हां.. जान.. प्लीज़ एक बात मान लो..." तरुण ने प्यार से कहा...
"कियेययाया? मीनू सिसकते हुए बोली.. उसने एक बार फिर अपना मुँह छिपा लिया था...
"एक बार इसको अपने होंटो से चाट लूँ क्या?" तरुण ने अपनी मंशा जाहिर की....
अब तक शायद मीनू की जवान हसरतें भी शायद बेकाबू हो चुकी थी," मुझे हमेशा इसी तरह प्यार करोगे ना जान!" मीनू ने पहली बार नंगी होने के बाद तरुण से नज़रें मिलाई....
तरुण उसकी जांघों को छ्चोड़ कर उपर गया और मीनू के होंटो को चूम लिया," तुम्हारी कसम जान.. तुमसे दूर होने की बात तो मैं सोच भी नही सकता..." तरुण ने कहा और नीचे आ गया...
मैं ये देख कर हैरान रह गयी कि मीनू ने इस बार अपनी जांघें अपने आप ही उपर उठा दी....
तरुण थोड़ा और पिछे आकर उसकी योनि पर झुक गया... योनि के होंटो पर तरुण के होंटो को महसूस करते ही मीनू उच्छल पड़ी,"आअहह..."
"कैसा लग रहा है जान?" तरुण ने पूचछा...
"तुम कर लो..!" मीनू ने सिसकते हुए इतना ही कहा...
"बताओ ना.. कैसा लग रहा है.." तरुण ने फिर पूचछा...
क्रमशः ..................
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