RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--8
गतांक से आगे.......................
"आह.. कह तो रही हूँ.. कर लो.. अब और कैसे बताऊं.. बहुत अच्च्छा लग रहा है.. बस!" मीनू ने कहा और शर्मा कर अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया...
खुश होकर तरुण उसकी योनि पर टूट पड़ा.. अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसने योनि के निचले हिस्से पर रखी और उसको लहराता हुआ उपर तक समेट लाया.. मीनू बदहवास हो गयी.. सिसकियाँ और आहें भरते हुए उसने खुद ही अपनी जांघों को पकड़ लिया और तरुण का काम आसान कर दिया...
मेरा बुरा हाल हो चुका था.. उन्होने ध्यान नही दिया होगा.. पर मेरी रज़ाई अब मेरे योनि को मसल्ने के कारण लगातार हिल रही थी...
तरुण ने अपनी एक उंगली मीनू की योनि की फांकों के बीच रख दी और उसकी दोनो 'पपोतियाँ' अपने होंटो में दबाकर चूसने लगा...
मीनू पागल सी हुई जा रही थी.. अब वह तरुण के होंटो को बार बार योनि के मनचाहे हिस्से पर महसूस करने के लिए अपने नितंबों को उपर नीचे हिलाने लगी थी.. ऐसा करते हुए वा अचानक चौंक पड़ी," क्या कर रहे हो?"
"कुच्छ नही.. बस हल्की सी उंगली घुसाई है..." तरुण मुस्कुराता हुआ बोला...
"नही.. बहुत दर्द होगा.. प्लीज़ अंदर मत करना.." मीनू कसमसा कर बोली....
तरुण मुस्कुराता हुआ बोला," अब तक तो नही हुआ ना?"
"नही.. पर तुम अंदर मत डालना प्लीज़..." मीनू ने प्रार्थना सी की...
"मेरी पूरी उंगली तुम्हारी चूत में है.." तरुण हँसने लगा...
"क्या? सच..? " मीनू हैरान होकर जांघों को छ्चोड़ कोहानियों के बल उठ बैठी.. और चौंक कर अपनी योनि में फँसी हुई तरुण की उंगली को देखती हुई बोली," पर मैने तो सुना था कि पहली बार बहुत दर्द होता है.." वह आस्चर्य से आँखें चौड़ी किए अपनी योनि की दरार में अंदर गायब हो चुकी उंगली को देखती रही....
तरुण ने उसकी और देख कर मुस्कुराते हुए उंगली को बाहर खींचा और फिर से अंदर धकेल दिया... अब मीनू उंगली को अंदर जाते देख रही थी.. इसीलिए उच्छल सी पड़ी,"अया..."
"क्या? दर्द हो रहा है या मज़ा आ रहा है...." तरुण ने मुस्कुराते हुए पूचछा...
"आइ.. लव यू जान... आ.. बहुत मज़ा आ रहा हॅयियी..." कहकर मीनू ने आँखें बंद कर ली....
"लेकिन तुमसे ये किसने कहा कि बहुत दर्द होता है...?" तरुण ने उंगली को लगातार अंदर बाहर करते हुए पूचछा....
"छ्चोड़ो ना.. तुम करो ना जान... बहुत.. मज़ा आअ.. रहा है... आयेययीयीयियीयियी आआअह्ह्ह" मीनू की आवाज़ उसके नितंबो के साथ ही थिरक रही थी.... उसने बैठ कर तरुण के होंटो को अपने होंटो में दबोच लिया... तरुण के तो वारे के न्यारे हो गये होंगे... साले कुत्ते के.. ये उंगली वाला मज़ा तो मुझे भी चाहिए.. मैं तड़प उठी...
तरुण उसके होंटो को छ्चोड़ता हुआ बोला," पूरा कर लें क्या?"
"क्या?" मीनू समझ नही पाई.. और ना ही मैं...
"पूरा प्यार... अपना लंड इसके अंदर डाल दूं...!" तरुण ने कहा....
मचलती हुई मीनू उसकी उंगली की स्पीड कम हो जाने से विचलित सी हो गयी..," हां.. कर दो.. ज़्यादा दर्द नही होगा ना?" मीनू प्यार से उसको देखती हुई बोली...
"मैं पागल हूँ क्या? जो ज़्यादा दर्द करूँगा... असली मज़ा तो उसी में आता है.. जब यहाँ से बच्चा निकल सकता है तो उसके अंदर जाने में क्या होगा... और फिर उस मज़े के लिए अगर थोड़ा बहुत दर्द हो भी जाए तो क्या है..? सोच लो!"
मीनू कुच्छ देर सोचने के बाद अपना सिर हिलाती हुई बोली," हां.. कर दो... कर दो जान.. इस'से भी ज़्यादा मज़ा आएगा क्याअ?"
"तुम बस देखती जाओ जान... बस अपनी आँखें बंद करके सीधी लेट जाओ... फिर देखो मैं तुम्हे कहाँ का कहाँ ले जाता हूँ...." तरुण बोला.....
मीनू निसचिंत होकर आँखें बंद करके लेट गयी.. तरुण ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और दनादन उसके फोटो खींचने लगा... मेरी समझ में नही आया वो ऐसा कर क्यूँ रहा है... उसने मीनू की योनि का क्लोज़ उप लिया... फिर उसकी जांघों और योनि का लिया... और फिर थोड़ा नीचे करके शायद उसकी नंगी जांघों से लेकर उसके चेहरे तक का फोटो ले लिया....
"अब जल्दी करो ना जान...!" मीनू ने कहा और अपने नितंबो को कसमसा कर उपर उठा लिया...
"बस एक मिनिट...." तरुण ने कहा और अपनी पॅंट उतार कर मोबाइल वापस उसकी जेब में रख दिया.... उसका लिंग उसके कछे को फाड़ कर बाहर आने वाला था... पर उसने खुद ही निकाल लिया... उसने झट से मीनू की जांघों को उपर उठाया अपना लिंग योनि के ठीक बीचों बीच रख दिया.. लिंग को योनि पर रखे जाते ही मीनू तड़प उठी.. उसका डर अभी तक निकला नही था... उसने बाहें फलकर चारपाई को कसकर पकड़ लिया," प्लीज़.. आराम से जान!"
पता नही तरुण ने उसकी बात सुनी या नही सुनी.. पर सो रही पिंकी ने मीनू की चीख ज़रूर सुन ली... वह हड़बड़ा कर उठ बैठी और अगले ही पल वो उनकी चारपाई के पास थी... आस्चर्य से उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी.. अपने मुँह पर हाथ रखे वह अजीब सी नज़रों से उनको देखने लगी....
अचानक पिंकी के जाग जाने से भौंचाक्क मीनू को जैसे ही अपनी हालत का ख़याल आया.. उसने धक्का देकर तरुण को पिछे धकेला... मीनू के रस में सना तँटनया हुआ तरुण का लिंग बाहर आकर झूलने लगा...
मैं दम साधे कुच्छ और तमाशा देखने के चक्कर में चुप चाप पड़ी रही.....
मीनू ने तुरंत अपनी सलवार उपर कर ली और तरुण ने अपना लिंग अंदर... सारा मामला समझ में आने पर पिंकी ज़्यादा देर वहाँ खड़ी ना रह सकी.. मीनू और तरुण को घूर कर वह पलटी और अपने पैर पटकती हुई वापस अपनी रज़ाई में घुस गयी...
तरुण यूँ रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी कुच्छ खास शर्मिंदा नही था पर मीनू की तो हालत ही खराब हो गयी... उसने दीवार का सहारा लेकर अपने घुटने मॉड़े और उनमें सिर देकर फुट फुट कर रोना शुरू कर दिया...
"अब ऐसे मत करो प्लीज़.. वरना अंजू भी जाग गयी तो बात घर से बाहर निकल जाएगी... चुप हो जाओ.. पिंकी को समझा दो कि किसी से इस बात का जिकर ना करे.. वरना हम दोनो पर मुसीबत आ जाएगी" तरुण मीनू के पास बैठ कर धीरे से बोला....
"अब क्या बोलूं मैं? क्या सम्झाउ उसको? समझने को रह ही क्या गया है.. ? मैं तो इसको मुँह दिखाने लायक भी नही रही... मैने मना किया था ना?.. मना किया था ना मैने? क्यूँ नही कंट्रोल हुआ तुमसे..? देख लिया 'तिल'? " मीनू रो रो कर पागल सी हुई जा रही थी.. ," अब मैं क्या करूँ?"
"प्लीज़ मीनू.. सांभलो अपने आपको! वो कोई बच्ची नही है.. सब समझती है.. उसको भी पता होगा कि लड़के लड़की में ये सब होता है! एक मिनिट... प्लीज़ चुप हो जाओ.. मैं उस'से बात करता हूँ" तरुण ने कहते हुए मीनू के सिर पर हाथ फेरा तो उसकी सिसकियो में कुच्छ कमी आई....
तरुण मीनू के पास से उठा और पिंकी की चारपाई के पास आ गया..," पिंकी!" तरुण ने रज़ाई उसके सिर से हटाते हुए प्यार से उसका नाम पुकारा.. पर पिंकी ने रज़ाई वापस खींच ली.. उसने कोई जवाब नही दिया...
"पिंकी.. सुन तो एक बार...!" इस बार तरुण ने रज़ाई हटाकर जैसे ही उसका हाथ पकड़ा.. वह उठ बैठी.. उसने तरुण से नज़रें मिलाने की बजाय अपना चेहरा एक तरफ ही रखा और गरजने लगी," मुझे.. मुझे हाथ लगाने की ज़रूरत नही है.. समझे!"
"पिंकी.. हम एक दूसरे से प्यार करते हैं.. इसीलिए वो सब कर रहे थे.. तुम्हे शायद नही पता इस प्यार में कितना मज़ा आता है.. तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ भी... सच पिंकी.. इस'से ज़्यादा मज़ा दुनिया में किसी चीज़ में नही आता.." तरुण बाज नही आ रहा था...
"चुप हो जा कामीने!" पिंकी गुस्से से दाँत पीसती हुई बोली....
"समझने की कोशिश करो यार.. प्यार तो सभी करते हैं..!" तरुण ने इस बार और भी धीमा बोलते हुए उसके गालों को छूने की कोशिश की तो पिंकी का 'वो' रूप देख कर मैं भी सहम गयी..
"आए.. यार बोलना अपनी बेहन को.. और प्यार भी उसी से करना.. समझे.. मुझे हाथ लगाने की ज़रूरत नही है.. मुझे मेरी दीदी की तरह भोली मत समझना! कामीने कुत्ते.. मैं तुम्हे कितना अच्च्छा समझती थी.. 'भैया' कहती थी तुम्हे.. मम्मी तुमसे कितना प्यार करती थी.. और तुम क्या निकले? थू !" पिंकी मामले की नज़ाकत को समझते हुए धीरे बोल रही थी.. पर उसकी आँखों में देखने से ऐसा लगता था जैसे वो आँखें नही; जलते हुए अंगारे हों... उसकी उंगली सीधी तरुण की ओर तनी हुई थी और आख़िरी बात कह कर उसने तरुण के चेहरे की और थूक दिया..
तरुण की शकल देखने लायक हो गयी थी.. पर वो सच में ही एक नंबर. का कमीना निकला.. उल्टा चोर कोतवाल को साबित करने की कोशिश करने लगा," मुझे क्यूँ भासन दे रही है? तेरी बेहन से पूच्छ ना वो मुझे क्या मानती है.. कल की लौंडिया है, अपनी औकात में रह.. लगता है किसी से टांका नही भिड़ा अभी तक.. नही तो तुझे भी पता चल जाता इस 'प्यार' की खुजली क्या होती है...
गुस्से में तमतमयी हुई पिंकी ने चारपाई से उठने की कोशिश की पर तरुण ने उसको उठने ही नही दिया.. पिंकी को चारपाई पर ही दबोच कर वो उसके पास बैठ गया और ज़बरदस्ती उसकी चूचियो को मसल्ने लगा.. पिंकी घिघिया उठी.. वह अपने हाथों और लातों को बेबस होकर इधर उधर मारने लगी.. पर वह उसके शिकंजे से छ्छूटने में कामयाब ना हुई...
तरुण कुच्छ देर उसके अंगों को यूँही मसलता रहा.. बेबस होकर पिंकी रोने लगी.. अचानक पिछे से मीनू आई और तरुण का गिरेबान पकड़ कर उसको पिछे खींच लिया," छ्चोड़ दो मेरी बेहन को...!"
जैसे ही पिंकी तरुण के शिकंजे से आज़ाद हुई.. घायल शेरनी की तरह वो उस पर टूट पड़ी.. मैं देख कर हैरान थी.. पिंकी तरुण की छाती पर सवार थी और तरुण नीचे पड़ा पड़ा अपने चेहरे को उसके थप्पाड़ों से बचने की कोशिश करता रहा....
जी भर कर उसकी ठुकाई करने के बाद जब पिंकी हाँफती हुई अलग हुई तो ही तरुण को खड़ा होने का मौका मिल पाया... पिंकी के थप्पाड़ों की बौच्हर से उसका चेहरा लाल पड़ा हुआ था.. और गालों पर जगह जगह पिंकी के नाखुनो के निशान बने हुए थे....
"कुत्ते, कामीने.. निकल जा यहाँ से... हरररम जादा!" पता नही पिंकी अब तक कैसे अपने आप पर काबू किए हुए थी.. शायद मीनू की मर्ज़ी से हो रहे 'ग़लत काम' को तो उसने बर्दास्त कर भी लिया था.... पर उसके बदन पर तरुण के नापाक हाथ लगते ही तो वह चंडी का रूप धारण कर बैठी...
जी भर कर मार खाने के बाद तरुण की पिंकी की और देखने की हिम्मत तक नही हो रही थी... खिसियया हुआ सा वह दरवाजे के पास जाकर मीनू को घूर कर बोला,"कल कॉलेज में मिलता हूँ तेरे से.. तेरे नंगे फोटो खींच लिए हैं मैने.... और आज बता रहा हूँ.. इसको चार चार लड़कों से नही चुदवाया तो मेरा नाम भी तरुण नही...."
इस'से पहले कि पिंकी फिर से उस पर हमला करती.. वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया...
मीनू फिर से अपनी चारपाई पर जाकर अंदर ही अंदर सुबकने लगी... अपने साँस उतार कर पिंकी उसके पास गयी और उस'से लिपट कर बोली," दीदी.. आप रोवो मत.. भूल जाओ सब कुच्छ... आपकी कसम मैं किसी को कुच्छ नही बताउन्गि.. और ना ही आपको कुच्छ कहूँगी इस बारे में... चुप हो जाओ ना दीदी.."
सुनकर मीनू का रोना और भी तेज हो गया.. और उसने अपनी छ्होटी, पर समझदारी में उस'से कहीं बड़ी बेहन को सीने से लगा लिया... पिंकी ने प्यार से उसके गालों को सहलाया और उसी के साथ लेट गयी.....
क्रमशः ..................
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