RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"आ.. यहाँ बैठते हैं.." मैने पिंकी को ग्राउंड में एक जगह घास दिखाते हुए कहा....
"मुझे एक बार दीपाली से मिलना है.. कुच्छ पूच्छना है उस'से.. एग्ज़ॅम के बारे में... तू यहीं बैठ.. मैं आती हूँ.. थोड़ी देर में...!" पिंकी रास्ते की बातों को भूल कर सामान्य लग रही थी...
"तो मैं भी साथ चलती हूँ ना...!" मैं कहकर उसके साथ चल पड़ी...
"नही अंजू.. तू यहीं बैठ.. तेरे बहाने मैं कम से कम वापस तो आ जाउन्गि!.. वरना सब वहीं बातों में लगा लेंगी... क्या फयडा.. थोड़ी देर पढ़ लेंगे..." पिंकी ने मुझे वहीं बैठ कर उसका इंतज़ार करने को कहा और तेज़ी से मुझसे दूर चली गयी...
मैं वहीं खड़ी होकर स्कूल में पेपर देने आए चेहरों का तिर्छि नज़रों से जयजा लेने लगी... सारे लड़के मेरे स्कूल के नही थे.. शायद बाकी इस स्कूल के होंगे... पर स्कूल के थे या बाहर के.. मेरे आसपास खड़े सब लड़कों की निगाह मुझ पर ही थी...
मुझे हमेशा की तरह अपने यौवन और सौदर्य पर प्यार आ रहा था.. मैं मस्ती में डूबी हुई इधर उधर टहल रही थी की अचानक मेरे पिच्छवाड़े पर एक कंकर आकर लगा... मैं हड़बड़ा कर पलटी.. और अपना चेहरा उठाकर मेरे पिछे खड़े लड़कों की और घूरा.. 3-4 ग्रूप्स में लड़के खड़े थे.. पर एक ग्रूप को छ्चोड़ कर सभी की नज़रें मुझ में ही गढ़ी हुई थी... मैं जब आइडिया नही लगा पाई तो शर्मकार वापस पलटी और घास में बैठ गयी...
बैठते ही मुझे करारा झटका लगा.. मेरी समझ में आ गया कि कोई क्यूँ घास में नही बैठ रहा था...घास के नीचे गीली धरती थी और बैठते ही मैं शर्म से पानी पानी हो गयी........ "उफ़फ्फ़".. मैं कसमसा कर जैसे ही उठी; मेरे पिछे खड़े लड़कों की सीटियाँ बजने लगी.. मेरे नितंबों के उपर से स्कर्ट गीली हो गयी....
उस वक़्त मेरा चेहरा देखने लायक था.. लड़कों की हँसी और सीटियों से घबराकर मैने हड़बड़ाहट में क्लिपबोर्ड को अपने नितंबों पर चिपकाया और वहाँ से दूर भाग आई.. मेरे गाल शर्म और झिझक से लाल हो गये थे.. समझ में नही आ रहा था की बाकी का टाइम कैसे निकालूं... अचानक मेरी नज़र पिंकी पर पड़ी... वो सबसे अलग खड़ी हुई हमारी ही क्लास के एक लड़के से बात कर रही थी.. आनन फानन में मैं भागती हुई उसके पास गयी,"पिंकी!"
दूर से ही मुझ पर नज़र पड़ते ही पिंकी का वैसा ही हाल हो गया जैसे मेरा घास में बैठने पर हुआ था..," आ.. हां.. अंजू.. मैं तेरे पास आ ही रही थी बस.." कहते ही उसने लड़के को इशारों ही इशारों में जाने क्या कहा.. वो मेरे वहाँ पहुँचने से पहले ही उस'से दूर चला गया...
"तू तो कह रही थी कि तुझे दीपाली से मिलना है.. फिर यहाँ संदीप के पास क्या कर रही है तू?" मैं अपना पिच्छवाड़ा भूल कर उसका पिच्छवाड़ा कुरेदने में जुट गयी..
"हाआँ.. नही.. वो.. दीपाली पढ़ रही थी.. फिर ये भी तो क्लास का सबसे इंटेलिजेंट लड़का है.. मैने सोचा.. इस'से...!" पिंकी ने मेरे ख़याल से बात संभाली ही थी.. मुझे मामला कुच्छ और ही लग रहा था...
"कहीं कुच्छ.." मैने उसको बीच में ही रोक कर शरारत से उसकी और देख कर दाँत निकाल कर कहा....
"तू पागल है क्या?" उसने कहा और मैं जैसे ही संदीप को देखने के लिए पिछे घूमी वा चौंक पड़ी," ययए.. तेरी स्कर्ट को क्या हो गया....?"
मुझे अचानक मेरी हालत का ख़याल आया..," श.. मैं घास में बैठ गयी थी पिंकी.. क्या करूँ?" मैं चिंतित होकर बोली....
"ये ले.. मेरी शॉल ओढ़ ले... और इसको पिछे ज़्यादा लटकाए रखना..." पिंकी ने बड़े प्यार से मुझे अपनी शॉल में लपेटा और पिछे से उसको ठीक करते हुए बोली,"अब ठीक है.. पर ध्यान रखना इसका.. उपर नही उतनी चाहिए.. बहुत गंदी लग रही है पिछे से..."
मैं क्रितग्य सी होकर पिंकी को देखने लगी.. कितना स्वाभिमान भरा हुआ था उसके अंदर; अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी... पर उस वक़्त तक कभी 'उस' तरह के स्वाभिमान को मैने अपने अंदर कभी महसूस नही किया था....
"एक बात पूच्छों पिंकी..?" मैने उसके चेहरे की और देखते हुए कहा...
"हां.. बोल ना!" पिंकी ने अपने साथ लाई हुई किताब के पन्ने पलट'ते हुए कहा...
"तू संदीप से क्या बात कर रही थी.. मुझे लग रहा है कि तुम्हारा कुच्छ चक्कर है...." मेरे मॅन से खुरापात निकल ही नही पा रही थी....
"हे भगवान.. तू भी ना... ये देख.. ये चक्कर था..." पिंकी ने हल्क से गुस्से से कहा और किताब का एक पेज खोल कर मेरी आँखों के सामने कर दिया..," इस क्वेस्चन की हिन्दी लिखवाई है उस'से.. थोड़ा डिफिकल्ट है.. याद नही हो रहा था.. आजा.. अब पढ़ ले... ज़्यादा दिमाग़ मत चला !"
क्रमशः ..................
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