RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--10
गतांक से आगे.......................
उस समय उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गयी.. पर वो कहते हैं ना.. हरियाली के अंधे को हमेशा हरा ही नज़र आता है.. मेरे पेट में उसकी दी हुई सफाई पची नही.. भला एक लड़का और एक लड़की सबसे अलग जाकर अकेले बात कर रहे हों.. और उनमें कुच्छ 'ना' हो.. ये कैसे हो सकता है?.. मैं बैठी बैठी यही सोच रही थी...
वैसे भी संदीप बहुत स्मार्ट था.. लंबा कद और गोरे चेहरे पर हुल्की मूच्च दाढ़ी उस पर बहुत जाँचती थी.. लड़कियाँ उसको देख वैसे ही आहें भरती थी जैसे मुझे देख कर लड़के...
पर सभी का मान'ना था कि वो निहायत ही शरीफ और भला लड़का है.. गाँव भर में ये बात चलती थी कि वो कभी सिर उठा कर नही चलता... स्कूल में देखो या घर में.. हमेशा उसकी आँखें किताबों में ही गढ़ी रहती थी.. लड़कियों की तरफ तो वो ध्यान देता ही नही था.. शायद इसीलिए लड़कियाँ उसको दूर से ही देख कर आहें भर लेती थी बस... कभी कोई उसके पास मुझे नज़र नही आई.. सिर्फ़ आज, इस तरह पिंकी को छ्चोड़ कर....
पर कहने से क्या होता है.. यूँ तो लोग तरुण को भी बहुत अच्च्छा लड़का मानते थे.. पर देख लो; क्या निकला! मुझे विश्वास था की पिंकी और संदीप के बीच कोई लेफ्डा तो ज़रूर है...
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खैर.. एग्ज़ॅम के लिए बेल बजी और हम सीटिंग शीट देख कर अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गये... मैं एग्ज़ॅम को लेकर बहुत सहमी हुई थी.. इंग्लीश का पेपर मेरे लिए टेढ़ी खीर था.. 3-4 पर्चियाँ बनाकर ले गयी थी.. पर भरोसा नही था उसमें से कुच्छ आएगा या नही...
अचानक संदीप हमारे कमरे में आया और मेरी बराबर वाली सीट पर बैठ गया... मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा.. 'अगर ये मदद कर दे तो...' मैने सोचा और उसकी तरफ मुड़कर बोली," कैसी तैयारी है.... संदीप?"
"ठीक है.. तुम्हारी?" उसने शराफ़त से जवाब देकर पूचछा...
"मेरी? ... क्या बटाओ? आज तो कुच्छ नही आता.. मैं तो पक्का फेल हो जाउन्गि आज के पेपर में..." मैने बुरा सा मुँह बनाकर कहा...
"कुच्छ नही होता.. रिलॅक्स होकर पेपर देना... जो क्वेस्चन अच्छे आते हों.. उनका जवाब पहले लिखना... एक्षमिनोर पर इंप्रेशन बनेगा...ऑल दा बेस्ट!" उसने कहा और सीधा देखने लगा...
"सिर्फ़ ऑल दा बेस्ट से काम नही चलेगा..." मैं अब उसका यूँ पीछा छ्चोड़ने को तैयार नही थी....
"मतलब?" उसने अर्थपूर्ण निगाहो से मेरी तरफ देखा....
"कुच्छ हेल्प कर दोगे ना.. प्लीज़..." मैने उसकी तरफ प्यार भरी मुस्कान उच्छलते हुए कहा....
"मुझे अपना पेपर भी तो करना है... बाद में कुच्छ टाइम बचा तो ज़रूर..." उसने फॉरमॅलिटी सी पूरी कर दी....
"प्लीज़.. हेल्प कर देना ना... !" मैने बेचारगी से उसकी और देखते हुए याचना सी की..
इस'से पहले कि वो कोई जवाब देता... कमरे में इनविजाइलेटर्स आ गये.. उनके आते ही क्लास एकदम चुप हो गयी.. संदीप भी सीधा होकर बैठ गया... मैं मन मसोस कर भगवान को याद करने लगी....
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पेपर हाथ में आते ही सबके चेहरे खिल गये.. पर मेरे चेहरे पर तो पहले की तरह ही 12 बजे हुए थे... मैं डिफिकल्ट क्वेस्चन्स की नकल लेकर आई थी.. पर पेपर आसान आ गया... मेरे लिए तो इंग्लीश में आसान और मुश्किल; सब एक जैसा ही था...
"अब तो खुश हो जाओ... पेपर बहुत ईज़ी है.. और लेन्ग्थि भी नही..." मेरे कानों में धीरे से संदीप की आवाज़ सुनाई दी... मैने कुच्छ बोलने के लिए उसकी और देखा ही था की वह फिर से बोल पड़ा...
"मेरी तरफ मत देखो.. 'सर' की नज़रों में आ जाओगी..."
मैने अपना सिर सीधा कर के झुका लिया," मुझे नही आता कुच्छ भी इसमें से..."
काफ़ी देर तक जब उसने कोई जवाब नही दिया तो मैने अपनी नज़रें तिर्छि करके उसको देखा.. वह मस्ती से लिखने में खोया हुआ था.. मैं रॉनी शकल बनाकर कभी क्वेस्चन पेपर को कभी आन्सर शीट को देखने लगी....
पेपर शुरू हुए करीब आधा घंटा हो गया था और मैं फ्रंट पेज पर अपनी डीटेल लिखने के अलावा कुच्छ नही कर पाई थी... अचानक पिछे से एक पर्ची आकर मेरे पास गिरी... इसके साथ ही किसी लड़के की हल्की सी आवाज़.. "उठा लो.. 10 मार्क्स का है!"
मैने 'सर' पर एक निगाह डाली और उनकी नज़र से बचाते हुए अचानक पर्ची को उठाकर अपनी कछी में थूस लिया....
मुझे कुच्छ तसल्ली हुई.. कि आख़िर मेरा भी कोई 'कद्रदान' कमरे में मौजूद है... मैने पिछे देखा.. पर सभी नीचे देख रहे थे... समझ में नही आया कि मुझ पर ये 'अहसान' किसने किया है...
कुच्छ देर मौके का इंतज़ार करने के बाद धीरे से मैने अपनी स्कर्ट के नीचे अपनी कछी में हाथ डाला और पर्ची निकाल कर आन्सर शीट में दबा ली...
पर्ची को खोल कर पढ़ते ही मेरा माथा ठनक गया... मैने कुच्छ दिन पहले स्कूल में मिले लेटर का जिकर किया था ना! कुच्छ इसी तरह की अश्लील बातें उसमें लिखी हुई थी.... मैने हताश होकर पर्ची को पलट कर देखा... शुक्र था एक एसे टाइप क्वेस्चन का आन्सर था वहाँ...
ज़्यादा ध्यान ना देकर मैने फटाफट उसकी नकल उतारनी शुरू कर दी.. पर उस दिन मेरा लक ही खराब था..
शायद बाहर बरामदे की खिड़की में से किसी ने मुझे ऐसा करते देख लिया था... मैने अभी आधा क्वेस्चन भी नही किया था कि अचानक बाहर से एक 'सर' आए और मेरी आन्सर शीट को उठाकर झटक दिया.. पर्ची नीचे आ गिरी...
"ये क्या है?" उन्होने गुस्से से पूचछा... करीब 35-40 साल के आसपास की उमर होगी उनकी...
"ज्ज..जी.. पिछे से आई थी..!" मैं सहम गयी...
"क्या मतलब है पिछे से आई थी...? अभी तुम्हारी शीट से निकली है या नही..." उनका लहज़ा बहुत ही सख़्त था..
मैं अंदर तक काँप गयी..," ज्जई.. पर मैने कुच्छ नही लिखा.. आप चाहे देख लो..!"
उस 'सर' ने मुझे घूर कर देखा और पर्ची उठाकर हाथ में ले ली.. थोड़ी देर मुझे यूँ ही उपर से नीचे देखते रहने के बाद उन्होने मेरी शीट इनविजाइलेटर को पकड़ा दी," शीट वापस नही करनी है.. मैं थोड़ी देर में आकर इसका यू.एम.सी. बनौँगा" उन्होने कहा और पर्ची हाथ में लेकर निकल गये...
मैं बैठी बैठी सुबकने लगी.. अचानक संदीप ने कहा," रिक्वेस्ट कर लो.. नही तो पूरा साल खराब हो जाएगा...!"
उसके कहने पर मैं उठकर 'सर' के पास जाकर खड़ी हो गयी," सर.. प्लीज़.. सीट दे दो... अब नही करूँगी..."
"इसमें मैं क्या कर सकता हूँ भला? .. बोर्ड अब्ज़र्वर ने तुम्हारी शीट छ्चीनी है.. मैने तो तुम्हे पर्ची उठाते देख कर भी इग्नोर कर दिया था.... पर अब तो जैसा वो कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा... उनसे रिक्वेस्ट करके देख लो.. ऑफीस में प्रिन्सिपल मेडम के पास बैठे होंगे..." सर ने अपनी मजबूरी जाता दी...
"जी ठीक है.." मैं कहकर बाहर निकली और ऑफीस के सामने पहुँच गयी... 'वो' वहीं बैठे प्रिन्सिपल मेडम के साथ खिलखिला रहे थे....
मुझे देखते ही उन्होने अपना थोबड़ा चढ़ा लिया," हां.. क्या है?"
"ज्जई.. मेरा साल बर्बाद हो जाएगा..." मैने सहमे हुए स्वर में कहा....
"साल? तुम्हारे तीन साल खराब होंगे.. मैं तुम्हारा यू.एम.सी. बनाने जा रहा हूँ.. सारा साल पढ़ाई क्यूँ नही...?" उसकी आवाज़ उसके शरीर की तरह ही बहुत भारी थी....
"सर प्लीज़! कुच्छ भी कर लो.. पर सीट दे दो" मैने याचना की...
वह कुच्छ देर तक मेरी और देखता रहा.. मुझे उसकी नज़रें सीधी मेरी चूचियो में गढ़ी महसूस हो रही थी.. पर मैने परवाह ना की... मैं यूँही बेचारी नज़रों से उसके सामने खड़ी रह कर उसको नज़रों से अपनी जवानी का जाम पीते देखती रही..
वह कुच्छ नरम पड़ा... प्रिन्सिपल की और देख कर बोला," क्या करें मेडम?"
प्रिन्सिपल खिलखिला कर बोली," ये तो आपको ही देखना है माथुर साहब.. वैसे.. लड़की का बदन भरा हुआ हा... मेरा मतलब पूरी जवान लग रही है.." उसने पैनी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा और उसकी तरफ बत्तीसी निकाल दी...," घर वाले भी लड़का वाडका देख लेंगे अगर पास हो गयी तो..."
"ठीक है... पीयान भेज कर सीट दिलवा दो.. मैं सोचता हूँ तब तक!" उसने मेरी जवानियों का लुत्फ़ लेते हुए कहा...
मुझे थोड़ी शांति मिली... अपनी आन्सर शीट लेकर में अपनी सीट पर जा बैठी... पर अब करने को तो कुच्छ था नही.. बैठी बैठी जितना लिखा था.. उसको पढ़ने लगी...
मुश्किल से 5 मिनिट भी नही हुए होंगे.. क्लास में पीयान आकर बोला," उस लड़की को प्रिन्सिपल मेडम बुला रही हैं.. जिसको अभी शीट मिली थी...."
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