RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--12
गतांक से आगे.......................
"शाबाश.. मेरी पिंकी.. आजा.. तू रो क्यूँ रही है पागल..? एक बार छ्छू कर तो देख.. तुझे भी मज़ा आएगा.. आजा.. मेरे पास बैठ जेया..!" सर सिसकी सी लेकर सोफे पर बैठ गये और उसका हाथ पकड़ कर अपने तने हुए लिंग की तरफ खींचने लगे...
पिंकी अब भी सुबक रही थी.. अपने हाथ को वापस खींचने की कोशिश करते हुए बगैर उनकी तरफ देखे गिड़गिदने सी लगी," जाने दो ना सर..... प्लीज़...!"
सर ने मेरा हाथ अपने दूसरे हाथ में पकड़ा और मुझे अपने लिंग के नीचे लटक रहे 'गोले' पकड़ा दिए.. मैने हल्का सा विरोध भी नही किया और उनके 'वो' अपनी उंगलियों से सहलाने लगी.. उनका लिंग और ज़्यादा अकड़ कर झटके से मारने लगा....
सर ने ज़बरदस्ती पिंकी को खींच कर सोफे पर बैठा ही लिया," अरे देख तो सही.. अंजलि कितने प्यार से कर रही है.. तू भी करके देख.. तुझे मज़ा नही आया तो मैं तुझे छ्चोड़ दूँगा.. तेरी कसम..."
पिंकी का मुँह दूसरी तरफ था.. सर ने उसका हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख दिया.. और उसके हाथ को पकड़े हुए अपने लिंग को आगे पिछे करने लगे," हां.. शाबाश.. कुच्छ देर करके देख.. बहुत काम की चीज़ है ये.. देख.. देख..!" कहकर जैसे ही सर ने अपना हाथ वहाँ से हटाया.. पिंकी ने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया...
" बस.. अब जाने दो सर.. हमें देर हो रही है....!" उसकी आँखों के आँसू थम ही नही रहे थे....
"ठहर जा.. तू अभी ढंग से गरम नही हुई है ना.. इसीलिए बोल रही है.. वरना तो..." सर ने कहा और उसको अपनी बाहों में लेकर अपनी तरफ खींच लिया.. पिंकी छटिपाटाती रही.. पर उंनपर उसके विरोध का कोई असर नही हुआ...
"कर.. ना.. तू क्यूँ रुक गयी?" पिंकी की हालत देख मैं सर के गोले सहलाना भूल कर उसकी तरफ देखने लगी थी.. सर ने गुर्राते हुए मुझे मेरा काम याद दिलाया और पिंकी को सीधी करके अपनी बाँह के सहारे अपनी गोद में झूला सा लिया.. अब पिंकी का मुरझाया और आँसुओं में डूबा हुआ चेहरा सर के चेहरे के पास था...
मैने पिंकी की ओर देखते हुए मुझे सौंपा हुआ काम फिर से चालू कर दिया... सर ने अचानक अपना हाथ पिंकी के कमीज़ में डाला और उपर चढ़ा लिया... पिंकी तड़प उठी.. उसको सर के हाथ मजबूरी में भी अपनी छातियो पर गंवारा नही हुए... और वह घबराकर अपना पूरा ज़ोर लगा कर उठ बैठी... और अगले ही पल खड़ी हो गयी,"छ्चोड़ो मुझे.. मुझसे नही होगा ये सब..."
"तो चूतिया क्यूँ बना रही है साली.. अभी तो पूच्छ रही थी कि क्या करना है.. अब तुझसे होगा नही.. तुझे तो मैं कल देख लूँगा..." सर ने कहा और अपनी खीज मुझ पर उतार दी.. मुझे मेरे बालों से पकड़ा और उनको खींचते हुए घुटनो के बल ज़मीन पर अपने सामने बैठा लिया...," ले.. तू चूस.. बता इसको कितना मज़ा आ रहा है तुझे...." कहकर उन्होने मुझे आगे खींचा और अपने लिंग को मेरे होंटो पर रगड़ने लगे....
मैने एक बार घबरा कर उनको देखा और उनकी आँखों में देखते हुए ही अपने होन्ट खोल दिए...
सर ने सिसक कर अपने लिंग को एक दो बार मेरे खुले होंटो पर गोल गोल घुमाया और फिर अपना काले टमाटर जैसा सूपड़ा मेरे मुँह में ठूंस कर बाहर निकाला," कैसा लगा?"
मैने सहम कर पिंकी की और देखा.. वह तिर्छि नज़रों से मेरे मुँह की ओर ही घूर रही थी...
बाहर निकाल कर सर ने एक दो बार लिंग से मेरे होंटो पर थपकी सी लगाई और मेरे होन्ट खोलते ही फिर से वैसा ही किया... इस बार सूपदे से भी कुच्छ ज़्यादा अंदर करके निकाला था उन्होने... मुझे लगा जैसे उनके लिंग की गर्मी से मेरे होन्ट पिघल से गये हों.. मेरे मुँह में लार भर गयी...
"बता इसको.. कैसा लग रहा है..?" सर ने घूर कर पिंकी की और देखते हुए कहा और फिर मेरी और देखने लगे...
"जी.. अच्च्छा.. लग रहा है..!" मैने जवाब दिया और फिर से उनके मेरे होंटो पर लिंग रखते ही अपने मुँह को खोल लिया.....
"आआआआआहह... क्या चूस्ति है तू..." इश्स बार सर ने अपना लिंग मेरे गले तक थूस दिया था.. जैसे ही उन्होने बाहर निकाला.. मुझे खाँसी आ गयी... और साथ ही आँखों में आँसू भी...
सर का लिंग मेरी लार में लिपट कर चिकना और रसीला सा हो गया था....," उन्होने फिर से मेरे होंटो पर रखा और थोड़ा थोड़ा अंदर बाहर करने लगे..," अया.. इसको बोल.. जितना आज तूने किया है.. ये भी करे... अयाया.. वरना मैं तुझे चोद दून्गाआआ...."
कुच्छ देर बाद उन्होने मेरे मुँह से लिंग निकल लिया," बोल.. क्या कहती है..? इसको मनाएगी या अपनी चुदवायेगी....." उन्होने गुस्सा दिखाते हुए कहा...
मैने मजबूरी वश पिंकी के चेहरे की ओर देखा... उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली.. पर उसके हाव भाव से मुझे लगा.. वह नही कर पाएगी...," मैं कर तो रही हूँ सर..!" मैने डरते डरते कहा....
"तुझे नही पता यार.. वो गाना है ना.. निगोडे मर्दों का.. कहाँ दिल भरता है... करने को तो तेरी चाची भी बहुत अच्छे से कर देती है... पर 'नये' का मज़ा कुच्छ और ही होता है.. समझी... और फिर 'नया माल नखरे करके मिले तो उसके तो कहने..." अचानक बोलते बोलते वह घबरा कर खड़े हो गये...
अगले ही पल मुझे भी उनकी घबराहट का कारण समझ में आ गया... ऑफीस के बाहर किसी की मेडम से तकरार चल रही थी... और अब आवाज़ें तेज होकर ऑफीस के अंदर तक सुनाई देने लगी.....
"आप ताला खुलवा रही हैं या मैं गाँव वालों को बुलवाऊं...." बाहर से एक मर्दाना आवाज़ सुनाई दी.....
"समझने की कोशिश करो बेटा... मेरे पास चाबी नही है.. मैं खुद चाबी के इंतजार मैं बैठी हूँ..... ंमुझे भी कुच्छ... कुच्छ निकालना है.. अंदर कोई भी नही है.. तुम लोग मेरा विश्वास क्यूँ नही कर रहे...?" मेडम की आवाज़ पूरी तरह हड़बड़ाई हुई सी लग रही थी...
"ओह माइ गॉड! कपड़े पहनो जल्दी.. और पिछे छुप जाओ..." सर की घिग्गी सी बाँध गयी.. उन्होने मेरी स्कर्ट और कछी मेरी तरफ उच्छलते हुए कहा..," बचा ले भगवान! बस आज रक्षा कर ले... वह खड़े खड़े काँप रहे थे.. और हम दोनो भी...
"ठीक है.. जा सोनू! गाँव वालों को इकट्ठा कर ले... !" बाहर से मुझे जानी पहचानी सी आवाज़ आई....
"ओके ओके.. वेट ए मिनिट.. देखती हूँ.. शायद दूसरी चाबी पर्स मैं पड़ी हो.. पर तुम शांत हो जाओ.. ऐसा करने से क्या मिलेगा तुम्हे.... बेटा.. मेरी बात तो.. हां मिल गयी... एक मिनिट.. प्लीज़ शांत रहो!" बाहर से मेडम की कंपकँपति हुई आवाज़ आई....
अगले ही पल दरवाजा भड़ाक से खुल गया... हम दोनो अलमारियों के पिछे जाकर एक दूसरे से चिपक कर सहमे हुए खड़े थे...
कोई तीन चार सेकेंड बाद हमें एक ज़ोर दार चाटे की आवाज़ सुनाई दी.. और इसके साथ ही टेबल के पलटने की...
"ययए.. क्या.. कर रहे हो.. आप लोग.. मैं तो सिर्फ़ यहाँ बंड्ल छांट रहा टीटी..त्त्था...!" सर की कंपकँपति हुई आवाज़ हमारे कानो तक आई...
"साले.. बहनचोड़.. तेरे बंड्ल तो हम छत्वयेन्गे.. हमारे गाँव की लड़कियों के साथ..." इस आवाज़ के तुरंत बाद हमें 'सर' के करहने की आवाज़ सुनाई दी...
"कहाँ हो.. पिंकी और अंजलि.. बाहर निकल आओ.. हमने सब कुच्छ देख लिया है.. बाहर निकलो वरना हम खींच कर निकालेंगे..." ये आवाज़ मैं तुरंत पहचान गयी.. तरुण की थी....
हमने एक दूसरी की आँखों में देखा और बाहर निकल कर उनके सामने चले गये... दूसरा लड़का वही था जो सुबह तरुण की मोटरसाइकल के पिछे बैठा था... हमारे गाँव का ही था.. पर मुझे उसका नाम नही पता था...
पिंकी थरथरती हुई रो रही थी... अचानक तरुण उसके पास आया और एक ज़ोर का चांटा उसके गाल पर मारा... पिंकी लड़खड़ा कर मुझसे टकरा गयी... मैने उसको संभाला.. वह सीधी खड़ी होते ही मेरे पिछे छिप गयी....
"हॅराम्जाडी.. ये सब करने के लिए ही पढ़ा रहे हैं हम तुझे..." तरुण ने कहा और गुस्से से तमतमाया हुआ सर की ओर बढ़ा...
इसके बाद तो दोनो सर पर पिल पड़े.. तीन चार मिनिट में ही उन्होने सर को लात घूसे मार मार कर नीला कर दिया... सर छ्चोड़ने के बाद भी नीचे पड़े पड़े कराहते रहे....
"बेटा.. कूल डाउन.. य्य्ये.. इस बच्ची का पेपर रह गया था.. बस.. इसीलिए.." मेडम भी डरी डरी सफाई देने की कोशिश कर रही थी कि अचानक दूसरा लड़का गरजने लगा...," चुप साली रंडी.. तू इसीलिए बोल पा रही है क्यूंकी हमने तुझे छ्चोड़ दिया.. हमने सब देखा है.. उपर इन्न रोशनदानो से.. कहो तो रेकॉर्डिंग दिखायें.. बात करती है...!"
"प्पपर मुझे कुच्छ नही पता बेटा.. सरस्वती मा की कसम.. अंदर क्या हो रहा.. था.. तुम जो चाहो करो.. मैं कुच्छ नही बोलूँगी...मंमुझे कुच्छ नही पता.." बोलकर मेडम पिछे दीवार से जा सटी...
तरुण ने हमें घूर कर देखा...," चलो अब.. या बॅंड बाजे वाले लाने पड़ेंगे..."
पिंकी खड़ी खड़ी काँप रही थी.. मैं अपना सिर झुका कर निकली तो वो भी मेरे पिछे पिछे चल दी...
पिंकी रास्ते पर चलते चलते बुरी तरह रो रही थी... मैने उसको चुप हो जाने को कहा तो उसका बिलखना और बढ़ गया... एग्ज़ॅम टाइम बंद हुए को करीब 1:30, 2 घंटे हो चुके थे... हम कुच्छ दूर ही चले होंगे की तरुण की बाइक हमारे पास आकर रुकी.. बाइक रुकते ही सोनू नीचे उतर गया और तरुण ने पिंकी को घूर कर गुस्से से कहा," बैठो!"
पिंकी की ना करने की हिम्मत ही ना हुई.. वह बाइक पर एक तरफ पैर करके बैठ गयी...
"दोनो तरफ पैर करके मुझसे चिपक जाओ.. इन्न दोनो को भी बैठना है.. समझी!" तरुण की आवाज़ इस बार भी वैसी ही रूखी थी...
पिंकी ने वैसा ही किया.. नीचे उतरी और दोबारा दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी.... उसके बाद उन्होने मुझे बैठने को कहा... मेरे बैठते ही वो दूसरा लड़का भी मुझसे बिल्कुल चिपक कर बैठ गया और अपनी जांघों से मुझे आगे खिसका दिया..
उसके लिंग का तनाव मुझे अपने नितंबों पर सॉफ महसूस हो रहा था...
तरुण ने बाइक स्टार्ट नही की," क्यूँ साली.. मुझे थप्पड़ मारती है.. अब तेरी ऐसे मारूँगा, तुझे जिंदगी भर याद रहेगा!" तरुण ने गुस्से से नीचे थूक दिया....
पिंकी कुच्छ बोल नही पा रही थी.. बस.. अवीरल रोए ही जा रही थी.... मुझे अहसास हो चुका था कि हम आसमान से गिरकर खजूर में अटक गये हैं....
"अच्च्छा हुआ जो हम इन्हे देखते हुए स्कूल पहुँच गये... यहाँ इनका इंतजार करते रहते तो ये अपनी मरवा कर आ जाती.. और हमारे पास इतना मस्त सबूत ना होता.. इनको जी भर कर जहाँ मर्ज़ी, जैसे मर्ज़ी चोदने के लिए.... नही?" पीछे वाले ने कहा और अपने हाथ मेरे और पिंकी के बीच फँसा कर मेरी चूचियो को पकड़ लिया....
"हुम्म.. सबूत तो मस्त है.. साली को अपने कबूतर उस मास्टर से मसळवते रेकॉर्ड किया है मैने.. और उसका लंड हाथ में पकड़े हुए.. चेहरा एकदम सॉफ है इसका....." तरुण ने ये कहकर तो हमारे होश ही उड़ा दिए.....
"हुम्म.. और इसके भी तो... ये तो साली चूस ही रही थी...." उस लड़के ने मेरी करतूत का जिकर किया....
"इसका कुच्छ चक्कर नही है.. ये तो बेचारी शरीफ है.. जब माँगेंगे दे देगी... बात तो इसस्सकी थी ना...!" बोलते ही तरुण ने पिंकी के पेट में कोहनी मारी.. वह तड़प कर पिछे खिसकी और मैं उस लड़के की जांघों पर ही जा बैठी...
"छ्चोड़ यार.. अब जल्दी चल.. वरना यहाँ बैठे बैठे मेरा लौदा इसकी गांद में घुस जाएगा.. और सहन नही हो रहा मुझसे..." मेरे पिछे बैठे हुए लड़के ने कहा.....
"अब क्यूँ फिकर करता है सोनू.. अब तो इस मछ्लि को जवानी भर भी अपने जाल से निकलने नही दूँगा... बस थोड़ा सा सब्र कर... मैने कसम खाई है कि इसकी बेहन को इसके आगे चोदुन्गा और इसको इसकी बेहन के आगे चार लड़कों से इकट्ठे चुद-वाउन्गा.... साली नैतिकता की बात कर रही थी मेरे सामने... मुझको गालियाँ दे रही थी ये..." तरुण ने कहा और बाइक चला दी.....
"वो तो ठीक है.. वो सब तो चलता ही रहेगा यार... पर आज की मेहनत का फल तो ले लें.. सालियों को एक एक बार चोद लेते हैं.... यहाँ जंगल में ले जाकर..." सोनू ने बोलते हुए मेरी चूचियो को बुरी तरह मसल दिया.. उसका लिंग मेरे नितंबों की दरार में घुसता ही चला जा रहा था.....
"हुम्म.. ठीक कह रहा है.. कस्में तो बाद में भी पूरी होती रहेंगी... मेरी भी पॅंट फटने वाली है.. आगे से रास्ता जाता है एक.. जंगल के बीच वाले तालाब पर ले चलते है.. धो धो कर मारेंगे इनकी वहाँ.. इसकी फेडक तो आज ही निकाल देते हैं.. क्यूँ पिंकी.. आज दिखाना अपने तेवर साली.."
तरुण ने अपनी बात पूरी की भी नही थी कि अचानक साइड से निकलते हुए किसी बाइक वाले ने उसको आवाज़ दी," अर्रे.. तरुण बेटा!"
"पापा!" आवाज़ सुनते ही पिंकी चिल्ला पड़ी..," रोक दो बाइक.. पापा आ गये..!" उसकी आवाज़ में भय और खुशी दोनो का मिश्रण था.... वो एक बार फिर रोना शुरू हो गयी....
"सस्सला.. आज किस्मत ही खराब है.. खबरदार अगर किसी बात का जिकर किया तो.. उनको कुच्छ भी पता चला तो मैं पहले तुम्हारी रेकॉर्डिंग ही दिखाउन्गा उनको.." बुरा सा मुँह बनाए हुए तरुण ने लगभग 100 गज दूर जाने के बाद बाइक रोकी..
इसके साथ ही सोनू के नीचे उतरते ही हम दोनो भी झट से नीचे आकर खड़े हो गये.. पिंकी के पापा बाइक वापस घुमा रहे थे...
"सोच लेना तुम्हे क्या कहना है..? हम तो यही कहेंगे कि शहर से आ रहे थे तो ये अभी आते हुए मिली.. वरना तुम खुद ही सोच लेना.. किसका नुकसान है...?" तरुण ने पिंकी को धमकाते हुए सा कहा... उसने अपने आँसू पौंच्छ लिए... हालात ऐसे हो गये थे कि हमें उनसे डर लग रहा था.. और उन्हे हमसे!
तभी पिंकी के पापा ने बाइक लाकर वहाँ रोक दी.. उनका पहला सवाल हमसे ही था..," इतनी लेट कैसे हो गयी तुम दोनो.. हमें तो चिंता होने लगी थी... और ये तुम्हारी आँखें लाल क्यूँ हो रखी हैं.. तू तो रोई हुई लग रही है.. क्या बात है... बेटी?"
"पापाआ!" पिंकी अपने मंन में चल रही ग्लानि और घृणा की आँच को सहानुभूति की हुल्की सी हवा मिलते ही भड़कने से रोक ना पाई.. वह फिर से बिलख पड़ी और जाकर अपने पापा से लिपट कर फुट फुट कर रोने लगी....
उसके पापा प्यार से उसका सिर पुच्कार्ते हुए बोले..," क्या हो गया बेटी..? पेपर अच्च्छा नही हुआ क्या?" पिंकी ने जब कोई जवाब नही दिया तो उन्होने मेरी ओर देखा...
"जी चाचा.. पेपर अच्च्छा नही हुआ आज का.. इसीलिए अब तक स्कूल में बैठी हुई रो रही थी... अब मुश्किल से उठा कर लाई हूँ इसको..." मुझे चाचा की कही बात पकड़ लेना ही उचित लगा....
मेरी बात सुनते ही उन्न दोनो की जान में जान सी आ गयी," हा चाचा जी.. ये भी कोई रोने की बात है भला.. अभी हम आ रहे थे तो भी रास्ते में रोती हुई चल रही थी.... हमने बैठा लिया.. बड़ी मुश्किल से चुप करवाया था कि आपको देख कर फिर रोने लगी..." तरुण ने मेरी हां में हाँ मिलाते हुए कहा....
"चल पगली.. हो गया तो होने दे खराब.. इस पेपर में रह ही तो जाएगी.. कोई फाँसी पर तो नही लटका रहा कोई तुझे.... देख.. तू तो मेरी कितनी लाडली बेटी है.. चल घर चल.. कोई तुझे कुच्छ नही कहेगा... मैं तेरे लिए शहर से सेब लाया हूँ.. बस.. देख अब चुप हो जा... नही तो.." चाचा ने पता नही पिंकी के कान में क्या कहा कि वह एकदम खिलखिला उठी.. पर उसकी आँखों से अब भी आँसू छलक रहे थे...
"आओ बैठो..!" चाचा ने बाइक स्टार्ट करते हुए हमसे कहा और फिर तरुण से बात करने लगे," क्या बात है बेटा? घर का रास्ता ही भूल गये अचानक.. जब तक इनके पेपर चल रहे हैं.. तब तक तो पढ़ा दो! वो मीनू भी नही पढ़ती आजकल.. घर आकर खबर लो उसकी भी....."
"जी चाचा जी.. वो कुच्छ बिज़ी था... आज से आउन्गा रोज!" तरुण ने कहा और मेरी तरफ देख कर कुच्छ इशारा सा करते हुए बोला," अंजू!.. तुम भी आ जाना.. कुच्छ ज़रूरी सवाल करवा दूँगा..."
उसका इशारा समझते ही मैने नज़रें झुका ली.. मेरी तरफ से जवाब चाचा जी ने दिया," हां हां.. आ जाएगी! आएगी क्यूँ नही?" उन्होने कहा और बाइक चला कर घर की तरफ चल दिए........
"तूने कुच्छ बताया तो नही चाचा चाची को...?" मैने घर जाते ही अपने कपड़े बदले और अगले पेपर की किताबें उठा कर वापस पिंकी के घर आ गयी....
पिंकी नीचे ही अपनी किताबें खोल कर अकेली बैठी थी... मीनू शायद उपर ही होगी... मुझे देखते ही भड़क गयी," मुझे नही पता था कि तू इतनी गंदी है.. तेरी वजह से देख क्या हो गया..!"
"एम्म..मैं? मैने क्या किया है? मुझ'से किसलिए ऐसे बोल रही है तू?" मैने भी अकड़कर गरम लहजे में ही उसको जवाब दिया...
"और नही तो क्या? मैं तो ये सोच कर ऑफीस में चली गयी थी कि सर अच्छे हैं.. सिर्फ़ पेपर करने देने के लिए अंदर बुला रहे हैं.. पर तू तो सब जानती थी ना..? तूने मुझे भी..." पिंकी अपनी बात को अधूरी छ्चोड़ कर ही अपने घुटनो में सिर फँसा कर रोने लगी...
मैं उसके पास जाकर बैठ गयी और उसको सांत्वना देने की कोशिश की," सच पिंकी.. मुझे नही पता था कि वो ऐसे निकलेंगे... मैं भी यही सोच कर अंदर गयी..." बोलते हुए मैने जैसे ही उसका चेहरा उपर उठना चाहा.. उसने मेरा हाथ झटक दिया.. और रोती हुई बोली..
" अब ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नही है.. मैने क्या सुना नही कि सर क्या कह रहे थे.. तूने दिन में ज़रूर उनके साथ ऐसा ही कुच्छ किया होगा.. तभी तू इतनी देर से वापस आई थी रूम में... वो कह भी तो रहे थे.. कि दिन में तो तू खुशी खुशी सब कुच्छ कर रही थी.. और मेरे सामने भी तो... बेशर्म कहीं की" कहकर पिंकी ने अपने चेहरे के आँसू पौन्छे और गुस्से से मेरी और देखने लगी...
"पर... वो मेरी मजबूरी थी पिंकी.. तू भी तो उसके पास जाकर बैठ गयी थी आराम से.. तूने भी तो उसका पकड़ लिया था...." मैने उसको याद दिलाया....
"कितनी गंदी है तू.. मैने तेरे लिए... और तू मुझे भी..." कुच्छ याद करके वो फिर बिलख उठी," वो तो.. अच्च्छा हुआ पापा आ गये हमें लेने.. नही तो पता नही क्या होता..."
ठीक ही तो कह रही थी पिंकी.. वो मुझे बचाने के लिए ही तो सर के पास गयी थी.. मुझे आवेश में अपनी कही गयी बात का बड़ा अफ़सोस हुआ," सॉरी यार.. मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया है.." मैने बुरा सा मुँह बनाकर कहा..," अब छ्चोड़ पिच्छली बातों को.. ये बता अब क्या करें..? वो तो कह रहे हैं कि उन्होने हमारी रेकॉर्डिंग कर ली है.... "
"मैने तो सोच लिया है.. शाम को मम्मी को सब कुच्छ सच सच बता दूँगी.. जो होगा देखा जाएगा.. मम्मी पापा मुझपे पूरा विश्वास करते हैं... वो अपने आप देख लेंगे उस कमिने को...!" पिंकी की बात सुनकर ऐसा लगा.. जैसे वो फ़ैसला कर ही चुकी है...
मैं अंदर तक सिहर गयी.. उसके मम्मी पापा तो भरोसा कर लेंगे.. पर बात मेरे घर वालों तक पहुँच गयी तो मेरा क्या होगा? मेरे पापा तो," नही पिंकी.. ऐसा मत करना प्लीज़!"
"क्यूँ? अपनी मम्मी को नही बताउन्गी तो और किसको बताउन्गी.. आख़िर मम्मी पापा इसीलिए तो होते हैं.. वो अपने आप सब ठीक कर देंगे.. और उस तरुण को भी सबक सीखा देंगे...." पिंकी ने गुस्से से कहा...
"वो तो ठीक है पागल.. घर वाले तो विश्वास कर लेंगे.. पर उन्होने अगर वो रेकॉर्डिंग बाहर दिखा दी तो... बाहर वाले तो विश्वास नही करेंगे ना.. सोच.. फिर हम बाहर कैसे निकल पाएँगे...." अचानक उपर से किसी के नीचे आ रहे होने की आवाज़ आई और मुझे चुप हो जाना पड़ा...
मीनू ने आते ही मुझसे पूचछा," तेरा पेपर कैसा हुआ अंजू?"
"बस.. ठीक ही हुआ है दीदी!" मैने जवाब दिया... मुझे नही पता था कि पिंकी ने उसको कुच्छ बताया है या नही....
"पापा बता रहे थे कि तुम दोनो आज तरुण के साथ आ रही थी रास्ते में..."मीनू ने रूखी सी आवाज़ में पूचछा...
"हूंम्म..." मैने भी यूँही आनमना सा जवाब दिया....
"कुच्छ बोल रहा था क्या?" मीनू ने प्रशंसूचक निगाहों से मेरी और देखकर पूचछा ही था कि पिंकी एक बार फिर सुबकना शुरू हो गयी...
"आए... आए पागल... रो क्यूँ रही है.. बता ना बात क्या है? मुझे लगता है कि तुम्हारे साथ ज़रूर कुच्छ ना कुच्छ हुआ है... कुच्छ कहा क्या तरुण ने?" मीनू ने ज़बरदस्ती पिंकी को अपनी छाती से चिपकाते हुए पूचछा और फिर मेरी ओर देखा," बता ना अंजू.. बात क्या है? मेरा दिल बैठा जा रहा है.. पेपर की बात को तो ये इतनी सीरीयस ले ही नही सकती...."
मैं चुपचाप टकटकी बाँधे पिंकी की ओर देखती रही.. मीनू को सब कुच्छ बताने में मुझे कोई ऐतराज नही था.. आख़िर मैं भी तो उसकी हुमराज थी.. पर मैं पिंकी के इशारे का इंतजार कर रही थी....
"तू उपर जा पिंकी.. थोड़ी देर!" मीनू को विश्वास था कि कोई भी बात हो.. मैं उसको.. अकेले में ज़रूर बता दूँगी....
"नही.. बता दे अंजू! .. मैं कुच्छ नही बोलूँगी..." पिंकी ने कहा और कंबल ओढ़ कर लेट गयी.. मीनू ने मुझे बात बताने का इशारा किया...
"ववो.. स्कूल में एक सर ने हमें पेपर टाइम के बाद पेपर करने देने का लालच देकर ऑफीस में बुला लिया था...." मैने बात शुरू की ही थी की मीनू आगे की घटना को भाँप कर गुस्से से बोली," तुम पागल हो क्या? ऐसे कैसे चली गयी.. तुम्हे समझना चाहिए था कि सैकड़ों बच्चों में से उन्होने तुम्हे ही क्यूँ बुलाया..? .... फिर?" उसने निराशा भरी उत्सुकता से मेरी ओर देखा...
"नही.. ववो... पेपर टाइम में मेरे पास से उनको एक नकल मिल गयी थी.. काफ़ी देर तक उन्होने मेरा पेपर अपने पास रख लिया.. बाद में दया करके उन्होने बोला था कि मैं तुम्हे बाद में थोड़ा सा टाइम दे दूँगा.. ऑफीस में आ जाना... इसीलिए..." मैने उस पर विश्वास करने का कारण बताया...
तभी पिंकी कंबल के अंदर से ही सुबक्ती हुई बोल पड़ी..," झूठ बोल रही है ये.. दीदी! इसको पता था कि वो गंदी हरकत भी करेंगे..."
मैं उसकी बात को काट नही पाई.. नही तो पिंकी और ज़्यादा डीटेल में मेरी बे-इज़्ज़ती करती.. तभी मीनू खुद ही बोल पड़ी," तू चुप हो जा थोड़ी देर पिंकी.." और फिर मेरी और देखते हुए घबराहट से बोली," फिर.. फिर क्या हुआ?"
"फिर.. हम पेपर कर ही रहे थे कि वो बकवास करने लगे.. हमें छेड़ने लगे.. कहने लगे कि मैने इतना बड़ा रिस्क ऐसे ही नही लिया है..." मैने आगे कहा...
"ये आदमी सच में ही कुत्ते होते हैं..." मीनू जबड़ा भींच कर बोली.... और मुझसे आगे की बात सुन'ने के लिए मेरी ओर देखने लगी...
"फिर.. हमने उनसे रिक्वेस्ट बहुत की.. पर वो माने ही नही.. दरवाजा बाहर से मेडम ने बंद किया हुआ था... हम बाहर निकल ही नही सकते थे.. शोर करते तो हमे डर था कि कहीं कोई ओर ना आ जाय
मीनू पता नही क्या समझ गयी..," अपनी छाती पर हाथ रख कर 'हे भगवान' कहा और अपनी आँखों में आँसू ले आई....
"नही.. ज़्यादा कुच्छ नही हुआ.. तभी अचानक तरुण और सोनू वहाँ आ गये.. और उन्होने ताला खुलवा कर सर को बहुत पीटा..." मैं बीच की बातों को खा गयी.. मुझे पता था कि वहाँ मेरा ही कुसूर निकलेगा...
"तरुण!" मीनू की आँखें चमक उठी.. सपस्ट दिख रहा था की एक बार फिर उसकी आँखों में तरुण के लिए प्यार उमड़ आया है...," पार.. तरुण वहाँ कैसे पहुँचा?" मीनू ने आनंदित सी होते हुए पूचछा...
"पता नही.. शायद वो पेपर के बाद हमारे इंतज़ार में थे.. फिर हमें ढूँढते हुए स्कूल तक आ गये होंगे और हमारी आवाज़ें सुन ली होगी..."
"शुक्रा है... तो इसीलिए तुम दोनो उसके साथ आ रही थी... मुझे तो विस्वास ही नही हो रहा कि वो ऐसा कर सकता है..." मीनू के हाव भाव मंन ही मंन तरुण का शुक्रिया अदा कर रहे थे.. अचानक कुच्छ सोच कर वो बोल उठी," पर.. वो तुम्हारा इंतजार क्यूँ कर रहे थे?"
"पहले आप सारी बात सुन लो दीदी!" मैने सकुचाते हुए कहा....
"हां.. बोलो!" मीनू ने कहा और चुप हो गयी...
"वो.. ववो.. उसने ऑफीस के अंदर की हमारी फोटो खींच ली.. और..." मैने आगे बोलने से पहले मीनू की ओर घबराकर देखा...
"ओह्ह.. तो ये बात है! मैने सोचा कि उन्होने तुम्हे बचाया है.. कुत्ता.. कमीना... पर तुम क्यूँ घबरा रही हो.. फँसेगा तो 'वो' सर ही फँसेगा ना...!" मीनू ने हमें आश्वस्त करने की कोशिश की...
"नही.. वो कह रहे थे कि उन्होने हमारी सर के साथ गंदी तस्वीरें उतार ली हैं..." मैने हिचकते हुए कहा...
"हे भगवान.. अब क्या होगा.." मीनू चारपाई पर बैठी हुई थरथर काँपने लगी....," ऐसा क्या कर रहे.... थे वो.. तुम्हारे साथ..." मीनू का चेहरा पीला पड़ गया...
"ववो.. उसने पिंकी की कमीज़ में हाथ डाला हुआ था.. और इसके हाथ में... अपना 'वो' पकड़ा रखा था..." कहने के बाद मैने नज़रें झुका ली.. आगे कुच्छ पूच्छने की मीनू की हिम्मत ही ना हुई.. उसकी आँखों से टॅपर टॅपर आँसू बहने लगे... मीनू की सिसकियाँ सुन कर पिंकी भी बिलख उठी और उठकर मीनू से लिपट गयी..," अच्च्छा हुआ दीदी पापा आ गये.. वरना वो तो हमें जंगल में ले जाने की बात कर रहे थे...." पिंकी ने भी मेरी बात का जिकर नही किया...
मीनू अब भी थर थर काँप रही थी..," अब क्या होगा...?"
"कुच्छ नही होगा दीदी.. मैं मम्मी को सब कुच्छ बता दूँगी.. आप बताओ.. इसमें मेरी क्या ग़लती है..." पिंकी मीनू से चिपके हुए ही बोलती रही....
"ना पागल.. मम्मी को कुच्छ मत बताना.. मम्मी को मत बताना कुच्छ भी..." मीनू ने जाने क्या सोच कर मेरे मंन की बात कह दी.. शायद उन्हे साथ ही अपनी पोले खुलने का भी डर होगा...
क्रमशः ..............................
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