Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:25 AM,
#19
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--13

गतांक से आगे.......................

"कौन है?" जैसे ही बाहर दरवाजे पर ख़त खाट हुई.. हम सब अचानक चुप हो गये.. हमारी तरफ से ये लगभग तय हो चुका था कि हम किसी को बताए बिना ही कुच्छ तरीका निकालने की सोचेंगे.. पिंकी ने भी काफ़ी देर तक रोते रहने के बाद शायद परिस्थितियों से समझौता कर लिया था.. हम सब अब तरुण के कामीनेपन की बात कर रहे थे.. और मीनू हमें कुच्छ और बातें बताने वाली थी जो कॉलेज में उसके साथ तरुण आज कल कर रहा था...

बाहर से कोई जवाब नही आया.. कुच्छ देर बाद अचानक किसी ने फिर दरवाजा खटखटाया..

"मैं देखती हूँ..!" कहकर मीनू उठी और दरवाजे के पास जाकर फिर पूचछा..," कौन है?"

"मैं हूँ.. दरवाजा खोलो!" बाहर से आवाज़ आई...

मीनू अचानक क्रोधित सी हो गयी.. फिर अपने आप पर काबू पाते हुए घूम कर बोली,"वही है.. तरुण!"

"दरवाजा मत खोलना दीदी.. उस कामीने को घर में मत घुसने दो..!" पिंकी लगभग चिल्लाते हुए बोली...

मीनू ने एक लंबी साँस ली और गुमसूँ सी आवाज़ में बोली," अब ऐसा करने से क्या होगा..? देखें तो सही.. ये अब क्या कहेगा...?"

"नही दीदी.. आप बिल्कुल भी इस कुत्ते को अंदर मत आने दो.. मैं इसकी शकल भी देखना नही चाहती..!" पिंकी उखड़ कर खड़ी हो गयी.. और अपनी आँखों में अजीब से भाव ले आई....

"समझा करो!" मीनू ने हताश होकर कहा...

"नही दीदी.. इसको अंदर नही आने देना है.. वरना मैं अभी उपर जाकर मम्मी को सब बता दूँगी..." पिंकी मान'ने को तैयार ही ना हुई....

"ठीक है.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.." मीनू वापस चारपाई पर आकर बैठ गयी," पर इस'से फायडा क्या होगा पिंकी? ये कल फिर नाटक करेगा...!"

तभी हमें तरुण की उँची आवाज़ सुनाई दी," चाची जी...! ओऊओ चाची जी!"

"हां.. कौन है? अरे बेटा तरुण!.. वो बच्चे नीचे ही पढ़ रहे हैं.. दरवाजे पर हाथ मार दो..." उपर से चाचा जी की आवाज़ आई....

"दरवाजा नही खोल रही.. सो तो नही गयी हैं वो?" तरुण ने जवाब दिया...

"अभी से कैसे सो जाएँगी... ? मैं आता हूँ..." चाचा जी ने कहा और अगले ही पल उनके कदमों की आहट हमें जीने में सुनाई दी... सब चुप होकर किताब में देखने लगे....

"अरे भाई.. दरवाजा क्यूँ नही खोल रहे तुम लोग..? बाहर तरुण खड़ा है.." चाचा जी ने आकर हमें पढ़ते देखा और दरवाजा खोल दिया...

"ववो.. हमें सुनाई ही नही दिया.." मीनू ने किताब में देखते हुए ही जवाब दिया...

"नमस्ते चाचा जी.." तरुण ने अंदर आते ही दोनो हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए प्रणाम किया...

"नमस्ते बेटा तरुण! देखना कहीं कल वाला पेपर भी आज की तरह ही बेकार ना हो जाए.. आज बड़ी मुश्किल से चुप कराया है इसको..." चाचा जी ने कहा और बोले," भाई.. हम तो मूवी देख रहे हैं.. शोले.. बड़ी मस्त पिक्चर है.. मैं तो चलता हूँ... तुम लोग पढ़ लो!"

"कोई बात नही चाचा जी.." तरुण ने कहा और चाचा जी के उपर चढ़ते ही अपने असली रूप में आ गया," यहाँ मुझे भी काफ़ी अच्छि मूवी देखने को मिलेगी आज.. हे हे हे..."

हम तीनो किताबों में आँखें गड़ाए बैठे रहे.. किसी ने उसकी तरफ देखा तक नही.. सिवाय मेरे.. मैने भी बस हल्की सी नज़र उठा कर ही उसको देखा था...

"क्या बात है.. ऐसा गुस्सा तो मैने किसी को आते नही देखा... कब तक ऐसे ही बैठे रहोगे...?" तरुण ने कहा और मेरे पास आकर बैठ गया,"क्या बात है लाडो! आज तो स्कूल में ही काम चालू कर रखा था.. क्या मस्त सीन था यार..?" कहते हुए उसने मेरी जाँघ पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगा.... मैने उसकी हरकत का कोई विरोध नही किया....

"दीदी.. इस कामीने को बोल दो यहाँ से चला जाए.. वरना मैं अभी सब कुच्छ मम्मी को बता दूँगी..." पिंकी ने गुस्से से मीनू की और देखते हुए कहा और रोने सी लगी...

"अच्च्छा! ओह ले ले ले ले ले.. मम्मी को बता देगी मुनिया..." तरुण ने उसकी बात का मज़ाक सा बनाया और फिर चेहरे पर ख़ूँख़ार से भाव लाते हुए कहा,"जा! बता दे जिसको बताना है.. मुझे भी मौका मिल जाएगा बताने का.. आख़िर कब तक इतनी बड़े राज को दिल में छुपा कर रखूँगा... मैं सबूत भी साथ लाया हूँ..!" तरुण ने कहा और गंदी सी हँसी हँसने लगा....

पिंकी गुस्से में लाल पीली होती हुई तपाक से खड़ी हो गयी.. अब तक तो वह उपर जा भी चुकी होती.. अगर मीनू ने उसका हाथ ना पकड़ लिया होता," मान तो जा पिंकी.. बैठ जा आराम से.. मैं तुझसे बाद में बात करूँगी.. मान जा प्लीज़!"

"पर दीदी.. आप मुझे बताने दो ना मम्मी को.. आपको क्या फ़र्क पड़ता है.. मम्मी गुस्सा करेंगी तो मुझ पर करेंगी.. इसके चेहरे से तो नकाब हट जाएगा ना.. कुच्छ नही होगा.. आप विश्वास करो.. मम्मी हमारी ही बात का विश्वास करेंगी.. इस 'कुत्ते' की बात का नही.. छ्चोड़ दो मुझे.. बस एक बार उपर जाने दो...

"हां हां.. जाने दो ना.. क्यूँ पकड़ रखा है बेचारी को..? मम्मी तो इसकी ही बात का विश्वास करेंगी ना!" तरुण ने उत्तेजित होते हुए कहा...

"मान जा पिंकी.. प्लीज़..!" मीनू ने उसका हाथ पकड़े रखा...

"पर क्यूँ दीदी?.. मुझसे ये यहाँ बैठा हुआ देखा नही जा रहा..." पिंकी ने एक बार भी तरुण के चेहरे की ओर नही देखा था....

"इसके पास..." मीनू बोलते हुए बिलख पड़ी..," मेरे भी सबूत हैं... मैने इसकी बातों में आकर इसको लेटर लिखे थे.. कयि बार तो इसने खुद लिख कर भी मेरी राइटिंग में मुझसे कॉपी करवाए हैं.. मैं इसकी बातों में आ गयी थी पिंकी.. कयि लेटर बहुत गंदे हैं.. मान जा प्लीज़!" मीनू ने कहने के बाद पिंकी का हाथ छ्चोड़ दिया.. पर पिंकी उपर नही जा पाई और अपने कंबल में घुस कर सुबकने लगी.....

"नही नही.. फिर भी.. तुम्हारी मर्ज़ी है! मैं तो इतना ही शरीफ हूँ.. पिंकी ने थप्पड़ मारा.. मैने कुच्छ नही कहा.. अब चाचा चाची भी पीट लेंगे.. मेरा क्या जाता है?" तरुण ने चटखारा सा लेकर कहा और अपना हाथ सरकाते हुए मेरी जांघों की जड़ तक ले गया.. मैं कसमसा उठी.. पर मैने उस समय उसके हाथ को वहाँ से हटाना चाहा....

"अच्च्छा.. इनकी देखा देखी अब तू भी आँख मटकाने लगी.. तेरे से तो मैं बाद में निपट लूँगा.. बहुत अच्च्छा सोच रखा है तेरे बारे में.." उसने कहा और अपना हाथ वहाँ से हटा लिया..

"तुम..." मीनू की आँखों में आँसू उमड़ आए..," तुम चाहते क्या हो तरुण? क्यूँ हमारी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हुए हो.. क्या मिल जाएगा तुम्हे?"

"तुम सब जानती हो जान! फिर पूच्छ क्यूँ रही हो.. बात तो तुम्हे मान'नि ही पड़ेगी.. आज नही तो कल.. मैं तो तुम्हारे फ़ायदे के लिए ही यहाँ आया हूँ... वरना मुझे शहर में कोई जुगाड़ करना पड़ा तो जिसके कमरे पर ले जाउन्गा.. वो भी लालच करेगा.. समझ रही हो ना तुम!" तरुण ने जिस अंदाज में बात कही थी.. मैं भी सिहर उठी...

मीनू ने अपनी नज़रें झुका ली और अंदर ही अंदर सुबक्ती रही.. लग रहा था.. जैसे वो पूरी तरह टूट चुकी है," मैं.. तुम्हारी बात मान लूँगी तरुण.. मुझे बस थोड़ा सा वक़्त दो.. तुम नही जानते मुझ पर क्या बीत रही है.. जो कुच्छ भी हुआ.. उसमें मैं खुद अपनी ग़लती मान रही हूँ... मैं.. मैं ही नीच थी जो ऐसा वैसा सोचा.. तुमसे... " मीनू फफक पड़ी.. पर उसने बोलना जारी रखा," तुमसे प्यार किया.. ....तुम्हारे.... दिखाए हुए सपने...... अपनी आँखों में बसा लिए.. इसमें तुम्हारा क्या दोष है तरुण... है ना?"

"देखो.. मुझे अब एमोशनल करके और बेवकूफ़ बनाने की कोशिश मत करो.. कितने दीनो से मैं तुम्हारी यही बात सुनता आ रहा हूँ... तुम हर बार.. अपने आँसू दिखा कर मुझे मजबूर कर देती हो... आज कुच्छ मत कहो.. सिर्फ़ ये बताओ कि करना है या नही.. वरना मैं कल सारी चीज़ें अपने दोस्तों में बाँट दूँगा.. फिर करती रहना उनको इकट्ठे.. एक एक के कमरे पर जाकर..!"

पिंकी जो अब तक कंबल में लिपटी सूबक रही थी.. अचानक उठ बैठी और बिफर पड़ी," लो.. कर लो तुम्हे जो करना है.. आ जाओ.. सो जाओ मेरे साथ.. पर मेरी दीदी को कुच्छ मत कहो.. इनके सारे लेटर वापस दे दो..." पिंकी की आवाज़ में गुस्सा और तड़प दोनो ही बराबर थे... मुझे दोनो बहनो की बड़ी दया आ रही थी.. बेचारी किस उलझन में फँस गयी दोनो .. और एक तो.. मुझे अहसास था कि एक तो मेरी वजह से ही फँस गयी थी... शायद इसको ही कहते हैं 'कोयले की दलाली में मुँह काला'

पर तरुण जाने किस मिट्टी का बना हुआ था.. उसके चेहरे पर एक शिकन तक ना आई.. उल्टा बेशार्मों की तरह खिलखिलाने लगा," ये हुई ना बात! बोलो.. क्या कहती हो? शुरुआत किस'से करूँ?"

"तुम चुप हो जाओ पिंकी! तुम उपर जाकर पढ़ लो..." मीनू ने कहा..

"नही.. मैं आपको छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि.." पिंकी ने कहा और वापस लेट कर सुबकने लगी...

शायद पिंकी वाला आइडिया उसके जेहन में चढ़ गया था," ठीक है.. जो चाहो.. मेरे साथ कर लेना.. पर आज की रेकॉर्डिंग मेरे सामने डेलीट कर दो पहले... बोलो!" मीनू ने अपने आँसू पौंचछते हुए कहा...

तरुण कुच्छ देर चुप चाप उसको देखता रहा.. फिर बोला," आज नही.. कल कर दूँगा.. तुम्हारे सामने!"

"नही.. ये बात मेरी मान लो.. अभी सब कुच्छ डेलीट करो मेरे सामने... और वो सारे लेटर भी आज ही ले आओ.. मैं आज के बाद तुमसे कोई वास्ता नही रखना चाहती...!" मीनू ने थोड़ा दृढ़ होकर कहा....

"तुमने बाद में मना कर दिया तो?" तरुण ने पूचछा...

"नही करूँगी.. वादा करती हूँ.. और लेटर चाहे बाद में मुझे दे देना... पर रेकॉर्डिंग अभी डेलीट करो...."

"पर फिर मैं इस'से बदला कैसे लूँगा... ?" तरुण पिंकी को रास्ते पर आते देख खुश होते हुए बोला..

"देखो.. अब ऐसे बकवास मत करो...! इसकी तरफ से मैं तुमसे माफी माँग लेती हूँ.. और.. और ये भी माँग लेगी.. पर कम से कम इतना तो मत गिरो तरुण.. ये.. ये तुम्हे भाई कहती है... तुम क्यूँ?.प्लीज़.. जब मैं तुम्हारी हर बात मान रही हूँ तो तुम क्यूँ....?"

"ओके..." तरुण ने कुच्छ देर सोचने के बाद कहा..," आ जाओ.. तुम्हारे सामने ही डेलीट कर देता हूँ.. पर पहले इस'से बोलो की मुझसे माफी माँगे...."

मीनू तुरंत उठकर हमारे पास आकर तरुण के दूसरी और बैठ गयी...," माँग लेगी तरुण.. प्लीज़.. अब उसको तंग क्यूँ कर रहे हो..? कल इनका पेपर भी है...!"

"उसकी चिंता अब तुम मत करो.. वो मेरा काम है... साला भाग कर जाएगा तो जाएगा कहाँ...?.. ये देखो.." कह कर तरुण ने अपने मोबाइल में रेकॉर्ड की हुई वीडियो चला दी... मैने मीनू की ओर देखा.. उसने अपना सिर झुकाया हुआ था.. पर तिर्छि नज़रों से वा स्क्रीन की ओर ही देख रही थी.... तस्वीर इतनी सॉफ नही थी.. पर हम दोनो पहचाने जा सकते थे... जैसे ही मेरे सर की जांघों के बीच बैठ कर उसके लिंग को मुँह में लिए हुए होने का सीन आया.. तरुण ने मुस्कुरकर मेरी और देखा.. शायद उसके बाद मीनू ने भी.. पर तब तक मैने नज़रें झुका ली थी...

"देखा.. कितनी मस्ती से चूस रही है.. हा हा हा.. ये है मस्त लड़की.. तुम जाने क्यूँ बिदक्ति रहती हो.." तरुण ने मीनू की और देखते हुए कहा...

"लाओ.. मुझे दे दो.. मैं खुद डेलीट करूँगी.."मीनू ने कहा...

"ये लो जान.. तुम्हारे लिए तो मैं जान भी दे सकता हूँ..." तरुण ने मीनू को मोबाइल दे दिया...

"मज़ाक कर रहे हो या...!" मीनू बोल कर रुक गयी...

"कमाल है मीनू.. क्या तुम्हे नही पता मैं तुमसे कितना प्यार करता था.. वो तो..." बोलता हुआ तरुण अचानक दंग रह गया.. और साथ में मैं भी....

"मैं तुम्हे ग़लत समझ रही थी तरुण.. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़... अब जैसा तुम कहोगे.. मैं खुशी खुशी करने को तैयार हूँ.. और हमेशा करूँगी... आइ लव यू जान..." मीनू ने अचानक तरुण को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंटो को अपने होंटो में लेकर चूसने लगी... मैं चौंक पड़ी.. ये अचानक मीनू को क्या हो गया....?

"लो.. यही बात थी तो पहले ही ना बोल देती.. ऐसे ही गरम होना था तो मैं एक से एक बढ़िया ब्लू फिल्म दिखा देता तुम्हे.." तरुण अपने होंटो को आज़ाद करवा कर हंसता हुआ बोला..," अभी दिखाउ क्या? .. मोबाइल में और भी हैं.. असली वाली...!"

"नही.. पर मुझे तुम्हारा ये ब्लॅकमेलिंग वाला तरीका बिल्कुल पसंद नही.. क्या मैं तुम्हे वैसे नही करने देती सब कुच्छ.. एक ना एक दिन तो मान ही जाती ना.. तुमसे सब्र ही नही हुआ..." मीनू ने उसकी छाती पर हाथ फेरते हुए कहा...

तरुण भी एकदम पिघल सा गया," मीनू की छातियों को एक एक करके अपने हाथों में लेकर देखता हुआ बोला," ववो.. तो पिंकी ने दिमाग़ खराब कर दिया था.. वरना मैने पहले कब किया ऐसा.. बोलो.. कितने दिन से तुम मुझे हाथ नही लगाने देती थी.. अगर मुझे ये तरीका उसे करना होता तो मैं पहले ही ना कर लेता..."

"फिर.. वो.. गंदे लेटर क्यूँ लिखवाए मुझसे.. बोलो!" मीनू उसकी किसी हरकत का कोई विरोध नही कर रही थी.... और तुम कह रहे थे कि उस दिन तुमने मेरे फोटो भी खींचे थे.. वो क्यूँ भला.." मीनू ने प्यार से बोलते हुए ही कहा.. मेरी समझ में नही आ रहा था की मीनू अचानक पलटी कैसे मार गयी....

तरुण हंसता हुआ थोड़ा शर्मिंदा होकर बोला..," हां.. वो मैं अपनी ग़लती मानता हूँ... पर वो सिर्फ़ आख़िरी हथियार था... मैं तुम्हारा इस कदर दीवाना हो गया हूँ कि मुझे हमेशा डर लगता था कि कहीं.. कभी.. तुम मुझसे दूर हो गयी तो.."

"ओह जान! आइ लव यू.. तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया.. क्या तुम्हे नही पता कि मैं तुम्हे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती हूँ.. कुच्छ भी कर सकती हूँ.. तुम्हे खुश करने के लिए.....!" मीनू ने कहा और एक बार फिर उस'से लिपट गयी....

"पिंकी को उपर भेज दो.. इसका कुच्छ पता नही.. कब बखेड़ा कर दे.."तरुण ने आहिस्ता से उसके कान में कहा....

"एक बात कहूँ... तरुण... अगर बुरा ना मानो तो.."

"हां.. बोलो ना.. आज कुच्छ भी बोलो जान....!" तरुण लट्तू हो गया था.. मीनू की अदाओं पर....

"मुझे रह रह कर वो लेटर याद आ रहे हैं.. मेरा दिमाग़ खराब हो रहा है.. प्लीज़.. तुम उन्हे मेरे सामने जला दो.. फिर मैं तुम्हे ऐसा प्यार करूँगी कि तुम कभी मुझे भूल नही पाओगे...!" मीनू ने गुनगुनाते हुए बात कही...

"मेरा उल्लू बना रही हो ना?... मैं सब समझ गया.. मूवी डेलीट करवा ली.. लेटर और जला दिए तो मेरे पास क्या बचेगा...? तुम रंग बदल गयी तो.." तरुण का माथा अचानक ठनका...

"तुम्हारी यही बात मुझे सबसे ज़्यादा खराब लगती है.. इतने शक्की क्यूँ हो तुम..? मैने आज तक अपनी कोई बात पलटी है क्या?.. चलो कोई बात नही... तुम वो लेटर लाकर दिखा दो मुझे.. तीनो के तीनो.. फिर जी भर कर प्यार करने के बाद जला देना.. मुझे बहुत अच्च्छा लगेगा जान.. तुम्हे नही पता.. उस दिन के बाद से मैं ढंग से सो भी नही पाई हूँ.. प्लीज़.." कहकर मीनू ने फिर से तरुण के होंटो को अपने काबू में कर लिया...

कुच्छ देर तरुण मस्ती से मीनू के गुलाबी होंटो को चूस्ता रहा.. फिर हट कर बोला," आज तो तुम कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी हो जान.. आज तो अपने आप तुमने मेरा पकड़ भी लिया.. ठीक है.. मैं लेटर लेने जा रहा हूँ.. तुम अपना मूड मत बदलना.. देखना कितना मज़ा दूँगा मैं तुम्हे.." तरुण ने कहा और उसके हाथ से मोबाइल लेकर चला गया.....

तरुण के जाते ही पिंकी उठकर बैठ गयी," तुम बहुत गंदी हो दीदी... मुझसे बात मत करना आज के बाद!"

क्रमशः........................
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास - by sexstories - 10-22-2018, 11:25 AM

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