RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--14
गतांक से आगे.......................
"और मैं क्या करती पिंकी?" तरुण के जाते ही मीनू का चेहरा मुरझा गया.. उसने दरवाजा खोल कर बाहर झाँका और फिर बंद करके आ गयी..," मेरे पास कोई और रास्ता था ही नही.. उसको अपनी बातों में लेने के अलावा.. बस अब दुआ करो कि वो लेटर ले आए और यहाँ आने तक अपना मोबाइल ना देखे...!"
"क्या मतलब दीदी? तुम नाटक कर रही थी उसके साथ.." पिंकी खुश होकर बोली...
"और नही तो क्या? जो लड़का इतनी नीचे गिर सकता है कि मेरे साथ साथ तुम्हे भी अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए ब्लॅकमेल करने की सोचे.. क्या मैं उसके बारे में ऐसा सोचूँगी...?" मीनू ने कहा और राज की बात बताते हुए बोली...," मैने उसका एमएमसीफ़ॉर्मेट कर दिया है उसके मोबाइल मैं जितनी भी वीडियो होंगी सब डिलीट हो गई होंगी
"क्या?" पिंकी से भी ज़्यादा खुशी मेरे चेहरे पर थी," ये.. एमएमसी क्या होता है?"
"मल्टी मीडीया कार्ड.. कल कॉलेज में उसने मुझे मेरे स्नॅप्स दिखाए थे.. वो भी उसी में थे.. और तुम्हारी रेकॉर्डिंग भी.. कम से कम तुम्हारा झंझट तो ख़तम हो गया अब.. अगर उसने अपने कंप्यूटर में कॉपी नही की होगी तो... आइन्दा से बच कर रहना... तुम बच्ची नही हो जो किसी की भी बातों में यूँ आ जाओ..!" मीनू ने कहा..
"ये तो कमाल हो गया..." पिंकी उठकर हमारे पास आ गयी.. अचानक उसका खिल चुका चेहरा फिर से मुरझा गया.....," पर अब अगर उसने लेटर नही दिए तो पहले.. वो तो कह रहा था कि वो 'पहले' नही देगा....."
"मैं कोशिश करके देखूँगी.. वरना.. बाद में तो मिल ही जाएँगे.. इसने मेरा जीना हराम कर दिया है कॉलेज में... मैं आज सब कुच्छ ख़तम कर देना चाहती हूँ.. चाहे वो... चाहे वो किसी भी कीमत पर हो...!" मीनू लंबी साँस लेते हुए बोली...
"एक काम करें दीदी..!" पिंकी ने मीनू के गालों पर हाथ लगा उसका चेहरा अपनी और घुमा लिया...
"क्या?" मीनू ने पूचछा..
"मैं दरवाजे के पिछे लट्ठ लेकर खड़ी हो जाती हूँ.. जैसे ही वो आएगा.. मैं ज़ोर से उसके सिर में दे मारूँगी... और आप दोनो उस'से लेटर..." पिंकी का आइडिया मुझे भी पसंद आया था.. पर मैं उनके इस खेल में शामिल होकर तरुण से दुश्मनी मोल नही लेना चाहती थी.... मैं उनको कुच्छ बहाना बनाकर घर जाने के लिए बोलने ही वाली थी कि मीनू बोल पड़ी...
"तुझे तो और कुच्छ आता ही नही.. पिच्छले जनम में तू कसाई थी क्या? अगर तुम उसको लट्ठ मरोगी तो उसकी चीख नही निकलेगी क्या? घर वाले नीचे आ गये तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा... और अगर वह बचकर भाग गया तो फिर मेरी खैर नही! मैं उसको प्यार से बातों में उलझा कर ही देखूँगी.. अगर बात बन गयी तो... नही तो" मीनू ने अपना सिर झुका लिया..," तू उपर चली जाना पिंकी.. प्लीज़.. तेरे आगे मुझसे नही होगा.. और मैं आज उस'से हर हालत में लेटर लेना चाहती हूँ... चाहे मुझे कुच्छ भी करना पड़े...!"
पिंकी उसके बाद कुच्छ नही बोली.. बस यूँही उदास बैठी कुच्छ सोचती रही.. अचानक मेरे मंन में ही एक सवाल कौंधा..," पर दीदी...?"
"क्या?" मीनू ने मेरी तरफ देख कर पूचछा...
"व..वो.. ऐसे तो आप.... आप के पेट में बच्चा आ जाएगा उसका...!" मैने शरमाते हुए कहा...
कुच्छ देर तो मीनू चुप रही.. फिर आह सी भरते हुए बोली," देखते हैं.. क्या होगा!"
"फिर देखोगी क्या? अगर आप ने उसके साथ 'वो' कर लिया तो फिर क्या करोगी.. फिर तो आप 'मा' बन ही जाओगी ना...!" मेरी बात पर जब मुझे नकारात्मक प्रतिक्रिया नही मिली तो मैने और खुलकर कहा...
मीनू इस बात पर हँसने सी लगी," तू बच्ची है अभी.. तुझे किसने बताया..?"
"ववो.. म्मेरी एक सहेली कह रही थी..." मैने बहाना बनाकर कहा....
"तुम्हारे आपस में यही सब बातें करती रहती हो क्या?" पिंकी ने मुझे डाँट'ते हुए कहा.. और फिर बोली," ऐसा नही होता.. ज़रूरी नही कि एक बार में ही 'ऐसा' हो जाए.. और फिर बाज़ार में इतनी दवाइयाँ भी तो आती हैं... अगर मजबूरी में मुझे करना पड़ा तो 'वो' ले लूँगी...."
"सच!" मैं चाहकर भी अपने चेहरे को खिलने से रोक ना सकी... ये बात तो मेरे तड़प रहे शरीर के लिए संजीवनी की तरह थी," सच में आती हैं ऐसी दवाई?"
"तू तो इस तरह खुश हो रही है जैसे मुसीबत मुझ पर नही.. तुझ पर आई हुई हो.. तुम दोनो तो निसचिंत हो ही जाओ.. जहाँ तक मेरा ख़याल है.. तुम्हारी रेकॉर्डिंग कॉपी नही की होगी उसने.. आज ही तो ली थी.. फिर उसका कंप्यूटर भी शहर में उसके दोस्त के पास है... पर मेरी बात ध्यान रखना.. लड़के कुत्ते होते हैं.. कभी भी इनकी बातों में मत आना...!" मीनू ने हम दोनो को समझाते हुए कहा...
"पर दीदी.. उसने आप की स्नॅप्स कॉपी कर रखी होंगी तो?" पिंकी चिंतित होकर बोली...
"आ.. देखा जाएगा.. अब करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा.. मैं ही पागल थी जो उसकी बातों में आ गयी..." मीनू ने लंबी साँस लेकर कहा," चलो.. अब अपनी अपनी चारपाइयों पर बैठ जाओ.. तुम्हारे चेहरे से ये नही लगना चाहिए पिंकी की मैं नाटक कर रही हूँ.. तू तो ऐसा कर.. उपर चली जा..!"
मीनू जाकर अपनी चारपाई पर बैठ गयी.. पिंकी मेरे पास ही बैठी रही," नही दीदी.. आपको छ्चोड़ कर मैं उपर नही जाउन्गि.. मैं उसके आते ही सो जाउन्गि.. कंबल औध कर...."
हमें तरुण का इंतजार करते करते लगभग एक घंटा हो गया था... अब मीनू के दिमाग़ में तरह तरह की बातें आनी शुरू हो गयी थी...," कहीं ऐसा तो नही की उसने अपना मोबाइल देख लिया हो और वह मेरी चालाकी समझ गया हो?" मीनू ने चिंतित सी होते हुए कहा...
"फिर क्या होगा दीदी?" पिंकी का चेहरा भी मीनू जैसा ही हो गया..
"पता नही.. पर वो मुझ पर विश्वास नही करेगा आज के बाद.. मोबाइल देख लिया होगा तो शायद वो कल कॉलेज में ही बात करेगा मुझसे... 'मुझे और मौका शायद ही मिले अब.. कितने ही दीनो से उस'से प्यार से बात कर कर के टाइम मांगती आ रही हूँ... 'वो' मुझे धमकी देता है कि अगर मैने उसकी बात जल्द ही नही मानी तो वो मुझे दोस्तों के साथ..." बात अधूरी छ्चोड़ कर मीनू सुबकने लगी..," ये मैने क्या कर दिया भगवान....!"
"आप रो क्यूँ रही हो दीदी..? प्लीज़.. सब ठीक हो जाएगा.. मैं उस'से माफी भी माँग लूँगी.." पिंकी उसके पास जाकर बैठ गयी....," आप जैसा कहोगी मैं वैसा ही कर लूँगी.. आप रोवो मत प्लीज़..."
मीनू ने अपने आँसू पौंच्छ लिए.. पर तनाव उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था..," कल अगर वो तुम्हे अपनी बाइक पर बैठने को कहे तो बैठना मत... बुल्की तुम बात ही मत करना... वैसे शायद वो मुझसे बात करने के लिए कॉलेज में जाएगा.. ज़रूर!"
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अगले दिन हम अकेले नही गये.. क्लास की कयि लड़कियाँ हमारे साथ थी... स्कूल में जाने के बाद भी हम उनके साथ ही रहे.. पेपर का टाइम होने पर हम अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गये....
"तुम.. कल घर लेट पहुँची थी क्या?" संदीप ने मेरे पास बैठते ही पूचछा...
अचानक आते ही किए गये इस सवाल से में सकपका गयी.," नही.. हाआँ.. वो मैं पिंकी के साथ थी.."मैने आधा सच बोलते हुए सवाल किया," तुम्हे कैसे पता?"
"तुम्हारी मम्मी शिखा से पूच्छने आई थी... मुझे तो तब घर पहुँचे 2 घंटे हो गये थे...!" संदीप ने बताया और आगे पूचछा," आज की कैसी तैयारी है..?"
मैने कोई जवाब नही दिया.. बस मुस्कुरकर रह गयी... मुझे शर्म आ रही थी उसको 'हेल्प' की कहते हुए...
वो मेरी हालत भाँपते हुए बोला," पर्ची मत करना.. मेरे पेपर से उतारती रहना साथ साथ.. मैं टेढ़ा होकर बैठ जाउन्गा..."
मैने क्रितग्य नज़रों से उसकी और देखा तो वो मुस्कुरा दिया,"तुम पैदल आती हो क्या?"
"हां.." मैने उसकी और बिना देखे कहा.. आज पहली बार मुझे लग रहा था कि वो मुझ पर कुच्छ 'ज़्यादा' ही लत्तु है...
"चाहो तो मेरे साथ चल पड़ना.. पापा की बाइक लाया हूँ मैं आज!" संदीप ने सीधा होकर कहा.. रूम में सर आ गये थे...
"न..नही.. वो पिंकी भी मेरे साथ जाएगी..." मैने सर से नज़रें बचाकर उसकी बात का जवाब दे ही दिया... अपने स्टाइल में..!
कुच्छ देर चुप बैठा रहने के बाद उसकी आवाज़ एक बार फिर मेरे कानो तक आई," कोई बात नही.. वो भी चल पड़ेगी अगर तुम चलना चाहो तो.."
"ठीक है.. मैं बात करके देख लूँगी..!" मैने जवाब दिया और आन्सर सीट मिलते ही सब बच्चे चुप हो गये.. हम दोनो भी....
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एग्ज़ॅम ख़तम होने के बाद मैं बहुत खुश थी.. पिंकी भी.. उसका भी पेपर बहुत अच्च्छा हुआ था.. दरअसल आज कल के मुक़ाबले सख्तयि ना के बराबर थी.. और ना ही कल वाले सर ही हमें कहीं नज़र आए... जैसे ही मैं बाहर निकली, पिंकी खुशी से अपना बोर्ड घूमते हुए मुझसे आ टकराई," मज़े हो गये आज तो!"
संदीप हमसे कुच्छ ही आगे आगे चल रहा था.. जैसे ही हम ऑफीस के सामने से निकले.. मेडम ने हमें टोक दिया," कैसा पेपर हुआ अंजू!" वो दरवाजे के पास खड़ी शायद हमारा ही इंतजार कर रही थी....
"ठीक हो गया मेडम.." मैने सिर झुका कर कहा और ठिठक गयी...
"गुड.. किसी बात की चिंता मत करना बेटा.. समझ गयी ना दोनो!" मेडम ने मुस्कुरकर कहा...
"जी.." मैं और कुच्छ बोलती.. इस'से पहले ही पिंकी ने मेरा हाथ खींच लिया.. और थोड़ी आगे जाकर बोली," आज फिर फँसने का इरादा है क्या?"
"नही.. वो सुन..." मैने उसकी बात को टालते हुए कहा," ववो.. संदीप कह रहा था कि 'वो' आज बाइक लेकर आया है.. हम दोनो को साथ लेकर चलने की कह रहा था.. बोल?"
"अच्च्छा.. पर मुझे डर लग रहा है.. कहीं.." पिंकी अपनी बात बीच में ही छ्चोड़ कर चुप हो गयी...
"देख ले.. मैं तो बस बता रही हूँ.." मैने बात अपने सिर से टाल दी...
"हुम्म.. चल ठीक है.. कहाँ है 'वो'?" पिंकी ने शायद संदीप को हमारे आगे आगे चलते देखा नही था...
"वो रहा.. शायद हमारा ही वेट कर रहा है..!" मैने संदीप की ओर इशारा करते हुए कहा...
"चल...!" उसने कहा और हम दोनो उसके पास जाकर खड़े हो गये..
"क्या सोचा..? चलना है क्या?" संदीप ने मुझसे पूचछा तो मैं पिंकी की और देखने लगी...
"चलो! जल्दी पहुँच जाएँगे और क्या?" पिंकी ने जवाब दिया....
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संदीप बिके बाहर निकाल लाया और हमारे पास लाकर रोक दी.. मैं बैठने के लिए तैयार हो ही रही थी कि पिंकी मुझसे पहले ही उसके पिछे बैठ गयी.. और मुझसे बोली," आ जाओ!"
मैं मन मसोस कर पिंकी के पिछे जा बैठी.. पता नही क्यूँ.. पर मुझे लग रहा था कि मेरे और पिंकी के बीच में ज़्यादा जगह है.. और पिंकी और संदीप के बीच कम... मेरा मुँह सा चढ़ गया.. और हम चल पड़े!
अपने गाँव के स्टॅंड पर पहुँचे ही थे कि किसी ने हाथ देकर संदीप को रोक लिया..," कैसा पेपर हुआ?"
"अच्च्छा हो गया! चल घर आ जा.. आज क्रिकेट खेलने चलेंगे.. कल हिन्दी का पेपर है.." संदीप ने मुस्कुरकर कहा...
"नही यार.. आज नही.. ऐसे अच्च्छा नही लगेगा...!" उस लड़के ने संदीप से कहा...
"क्यूँ? आज क्या हो गया..?" संदीप ने उसी भाव में पूचछा...
"तुम्हे नही पता? ओह्ह.. तुम तो सुबह ही चले गये होगे पेपर देने.. वो किसी ने तरुण को मार दिया.. आज करीब 10 बजे पता लगा... किसी ने उसको कल रात में मार कर चौपाल में फैंक दिया....."
"क्याअ? कौनसा तरुण? अपने वाला?" संदीप के चेहरे का रंग अचानक सफेद हो गया... हमारी तो घिग्गी ही बाँध गयी थी.. हम दोनो डरी डरी सी आँखों से एक दूसरी को देखने लगी...
"हाँ यार.. गाँव में पोलीस आई हुई है.. बेचारा कितना शरीफ था... उस'से किसी ने क्या दुश्मनी निकाली होगी... बेचारा!"
"ओह्ह.. ये तो बहुत बुरा हुआ यार.. मैं अभी उसके घर जाकर आता हूँ.." संदीप ने कहा और पिछे देखने लगा....
"ठीक है.. हम चले जाएँगे..." पिंकी ने कहा और मेरे साथ ही नीचे उतर गयी...
"तुम्हे पढ़ाने आता था ना वो?" संदीप ने पूचछा....
"हां.." पिंकी ने सिर झुका कर कहा और बिना एक भी पल गँवाए चल दी... मैं भी डगमगाते हुए कदमों से उसके पिछे हो ली.....
"ये कैसे हुआ पिंकी?" मैने तरुण का जिकर किया...
"चुप... कुच्छ मत बोल यहाँ..." पिंकी ने कहा और हम गलियों के बीच से घर की ओर चलते रहे.....
हम जल्दी जल्दी चलते हुए पिंकी के घर पहुँच गये.. हम सीधे उपर चले गये..देखा तो मीनू भी वहीं बेड पर लेटी हुई थी.. चाचा चाची दोनो खामोश बैठे थे.. मीनू का चेहरा पीला पड़ा हुआ था...
"क्या हुआ मम्मी?" पिंकी ने सब जानते हुए भी सवाल किया...
"कुच्छ नही.. तुम नीचे जाकर पढ़ लो..!" चाचा ने कहा...
"नही.. वो गाँव में सब कह रहे हैं कि..." पिंकी ने बोला ही था कि चाचा शुरू हो गये....
"हां.. किस्मत के खेल निराले होते हैं बेटी.. कितना शरीफ था बेचारा... मुझे तो अब भी ऐसा लग रहा है कि वो नीचे से आवाज़ दे रहा है.. आख़िरी वक़्त भी ढंग से बात नही कर पाया मैं.. बड़ा पचहतावा हो रहा है.. पढ़ने में कितना तेज था.. उसके मा बाप की तो कमर ही टूट गयी होगी...." पिंकी के पापा भी बहुत दुखी लग रहे थे....
"पर.. पर ये हुआ कैसे?" मैं अपने आपको रोक नही पाई...
"कौन जाने बेटी? अब उसकी किसी से दुश्मनी भी क्या होगी? वो तो ज़्यादा बात भी नही करता था किसी से... भगवान ही जानता है क्या हुआ होगा...?" चाचा ने अपना माथा पकड़ लिया...
"अब छ्चोड़िए ना पापा.. होना था जो हो गया... आप क्यूँ बार बार..." मीनू की आँखें नम हो गयी...
"छ्चोड़ो बेटी.. छ्चोड़ो.." चाचा ने कहा और अपनी आँखें पौन्छ्ते हुए घुटने पर हाथ रखा और उठ गये..,"तू इतना छ्होटा मंन क्यूँ कर रही है.. पिंकी और अंजलि का भी तो भाई ही था 'वो'.. जब ये नही रो रही तो तू क्यूँ... सुबह से... छ्चोड़ बेटी.. होनी का लिखा कोई नही टाल सकता..."
मीनू कंबल में दुबक कर सिसक'ने लगी... मुझसे वहाँ और खड़ा ना रहा गया...," अच्च्छा चाची.. मैं चलती हूँ..!"
"ठीक है बेटी.. जा.. कपड़े बदल ले.. सुबह से कुच्छ खाया भी नही होगा..." चाची भी खड़ी हो गयी और जाकर मीनू के पास बैठ गयी...
मैं अपने घर जाने को पिंकी के घर से बाहर निकली ही थी कि एक मोटा सा थुलथुला पॉलिसिया घर के बाहर आकर खड़ा हो गया...," मीनू का घर आसपास ही है क्या?...?"
मैं हड़बड़ा गयी.. पोलीस वाला भला मीनू को क्यूँ पूच्छ रहा है..," जी.. यही है!" मैने हड़बड़ाहट में ही जवाब दिया...
"ठीक है.. धन्यवाद...!" उसने कहा और वापस हमारे घर की ओर चल दिया...
कुच्छ सोच कर मैं वापस हो ली.. अंदर सीढ़ियों पर जाकर मैने मीनू को आवाज़ दी," दीदी....."
"मीनू.. नीचे अंजू बोल रही है शायद...." उपर से चाचा की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी....
कुच्छ देर बाद मीनू नीचे आ गयी.. मेरे पास आते ही वह फफक पड़ी..," आँखों में आँसुओं का झरना सा उमड़ पड़ा," ययए.. ये क्या हो गया अंजू..?"
"पर.. आप रो क्यूँ रही हैं दीदी.. जो हुआ सही हुआ.. हमें क्या मतलब है.. उसके कर्मों का फल मिल गया उसको..." मैने मीनू के कंधे पकड़ते हुए कहा...
"पता नही अंजू.. रह रह कर कलेजा सा फटा जा रहा है... बहुत याद आ रही है उसकी.. उसने धोखा दे दिया तो क्या हुआ.. मैने तो उस'से सच्चा प्यार किया था ना.. कल अगर उसको वापस ना भेजती तो शायद वो..." मीनू बुरी तरह कराहते हुए रोने लगी....
"ना.. दीदी.. प्लीज़.. ऐसा मत करो.. चुप हो जाओ.. मुझे आपको कुच्छ बताना है..." मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया... उसकी आवाज़ कुच्छ देर बाद बंद हो गयी.. पर आँसू नही थामे..,"क्या?"
"वो... एक पोलीस वाला बाहर आया था.. आपका नाम लेकर घर पूच्छ रहा था..." मैने उसके शांत होने के बाद जवाब दिया...
मीनू मेरी बात सुनते ही सुन्न रह गयी.... मुझे ऐसा लगा जैसे यूयेसेस पर एक और पहाड़ टूट पड़ा हो.. वा थरथर कांपति हुई बोली..," मेरा नाम लेकर... पर क्यूँ?"
"पता नही दीदी.. वो कुच्छ नही बोला.. पूच्छ कर वापस चला गया...!" मैने बुरा सा मुँह बना कर कहा...
"हे.. भगवान.. अब क्या होगा..." मीनू में खड़ी रहने तक की हिम्मत नही बची.. मैने उसको संभाला और चारपाई पर लिटा दिया.. अचानक वह निशब्द: सी हो गयी.. पता नही क्या हो गया उसको... मैं घबरा गयी.. मैने चाचा को आवाज़ लगाई," चाचा.. जल्दी आओ..."
मेरी आवाज़ में घबराहट को भाँप कर उपर से चाचा, चाची और पिंकी.. तीनो दौड़े दौड़े नीचे आए,"क्या हुआ?"
"पपता नही... अचानक बेहोश सी हो गयी.." मैने कहा और अलग खड़ी हो गयी...
"मीनू.. मीनू बेटी... पानी लेकर आओ जल्दी..."चाचा ने पिंकी से कहा...
कुच्छ देर बाद मीनू ने आँखें खोल दी.. आँखें खोलते ही वह चाचा से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी....
"मान जा बेटी.. तू ऐसा करेगी तो इनका क्या होगा... बस कर.. चुप हो जा..." चाचा उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगे.. कुच्छ देर बाद उसने अपनी आँखें बंद कर ली और धीरे धीरे शांत हो गयी....
थोड़ी देर बाद अचानक दरवाजे पर एक हटटा कॅटा लंबा सा पोलीस वाला प्रकट हुआ.. उसके पिछे वही थुलथुला सा पॉलिसिया खड़ा था... उन्होने अंदर देखा और बिना इजाज़त लिए ही अंदर आ गये.. चाचा, चाची और पिंकी; तीनो उन्न पोलीस वालों को देख कर हड़बड़ा से गये..
"जी कहिए?" चाचा खड़े हो गये...
"हूंम्म्म.." लंबू ने अपना सिर हिलाते हुए आगे कहा," तो........ ये मीनू है!"
"जी.. पर आप क्यूँ पूच्छ रहे हैं..?" चाचा भी उसके मुँह से मीनू का नाम सुनकर घबरा से गये.. पर मीनू आँख बंद किए लेटी रही....
पोलीस वाले ने चाचा की बात का कोई जवाब नही दिया.. चुपचाप खड़ा रहा.. फिर अचानक तेज तर्रार आवाज़ में बोला," क्या हो गया इसको?"
क्रमशः....................................
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