RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--16
गतांक से आगे.......................
"मैं क्या करूँ? मेरी तो कुच्छ समझ में ही नही आ रहा.. मुझे डर लग रहा है.. उसको फोन कैसे करूँगी मैं? वो तो.. वो तो मुझे कॉलेज से ले जाने की बात कर रहा था.. मैं अकेली भला..." मीनू परेशान सी होकर बोल रही थी...
"कल चल पड़ना दीदी.. कल हमारी छुट्टी है.. मैं भी आपके साथ चल पड़ूँगी..!" पिंकी ने उसको सहारा सा देने की कोशिश की...
"नही.. मम्मी पापा कैसे मानेंगे? कोई बहाना भी नही है.. आए अंजू! तू चल पड़ ना मेरे साथ... प्लीज़!" मीनू ने कुच्छ सोचकर कहा," मैं चाचा चाची को बोल के देख लूँगी...!"
"पर.. पर मैं क्या करूँगी दीदी..?" मैने अचकचा कर कहा...
"देख ले यार.. तेरे साथ मुझे भी थोड़ी हिम्मत मिल जाएगी.. हम दोनो को देख कर तो वो भी..." मीनू ने याचना भरी निगाहों से मेरी और देखा...
"ठीक है.. पर.. पापा से पूच्छना पड़ेगा.. 'वो' मना कर सकते हैं.. और फिर बहाना तो वहाँ भी बनाना पड़ेगा कुच्छ.." मैने 'अपनी' तरफ से हां कहते हुए बोला...
"चल.. मैं अभी तेरे साथ घर चलती हूँ... मैं मना लूँगी उनको.. किसी भी तरह..!" मीनू थोड़े उत्साह के साथ बोली...
"पर.. अभी तो हमें एक बार सीखा के घर जाना है.. वो बुला रही थी हमें.. पता नही क्या बात है?" पिंकी बीच में ही बोल पड़ी... मैं तो भूल ही गयी थी..
"ठीक है.. तुम तब तक वहाँ हो आओ.. मैं चाची के पास जा रही हूँ.. चाचा ने अभी पी तो नही रखी होगी ना?" मीनू मुझसे पूच्छने लगी...
"नही.. अभी तो शुरू नही की होगी.. आप अभी चली जाओ.. पर मेरा नाम मत लेना की मुझे जाना है.. पापा मना कर देंगे.." मैने उसको पापा के मेरे बारे में विचारों से अवगत कराया...
"ठीक है.. मैं अभी जा कर आती हूँ.. तुम भी मिल आओ शिखा से.." मीनू ने कहा और बाहर चली गयी.. हम भी चाची को बोलकर संदीप के घर की और चल पड़े....
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हम सीखा के घर में उपर चढ़ ही रहे थे कि नीचे से संदीप का बड़ा भाई 'ढोलू' आ गया.. मुझे उसके असली नाम का नही पता.. गाँव में सब उसको 'ढोलू' ही कहते हैं.... हमारे मूड कर देखते ही वह मुस्कुरकर बोला..," आओ.. आओ.. आज कैसे दर्शन दे दिए देवियो!"
"शिखा है भैया?" पिंकी ने सीढ़ियों में ही खड़े होकर पूचछा....
"उपर तो चलो... यहीं से वापस जाओगी क्या?" उसने हंसते हुए कहा और हमारे पास आकर 'मेरे' कंधे पर हाथ रख लिया..
हम ऐसे ही उपर आ गये.. उसने मेरे कंधे से अपना हाथ नही हटाया... मेरे शरीर में गड़ रही उसकी उंगलियों का दबाव मुझे कुच्छ 'दूसरी' ही तरह का महसूस हुआ... उनकी च्छुअन मेरे स्कूल के टीचर्स की उंगलियों की तरह थी.. जो मौका मिलते ही मेरे बदन पर यहाँ वहाँ 'अपने' हाथ सॉफ करना नही भूलते थे.....
"भाभी जी कहाँ हैं..?" मैने कसमसा कर उनकी पत्नी के बारे में पूचछा..
ढोलू ने अपना हाथ हटा लिया..," वो... वो तो मायके गयी है अपने... 2-4 दिन में आएगी....
"और शिखा...?" पिंकी ने पूचछा...
"वो सब तरुण के घर गये हुए हैं... बस आते ही होंगे.. बैठो...!" ढोलू की नज़रें लगातार मेरी उठती बैठती छातियों पर गढ़ी हुई थी.. शर्ट में उनकी कसावट बाहर से ही सॉफ नज़र आ रही थी...," तब तक टीवी देख लो..!" उसने टीवी चलाया और दूसरे कमरे में चला गया...
करीब 2-4 ही मिनिट हुए होंगे.. ढोलू ने मुझे दूसरे कमरे से आवाज़ दी," इधर आना, अंजू! एक बार!"
मैने पिंकी की तरफ देखा.. वह यूँही हल्क से मुस्कुरा दी.. मैने खड़ी होकर कहा,"शायद मुझे बुला रहा है.. मैं अभी आई..!"
"ठीक है.."पिंकी ने जवाब दिया और फिर टीवी की ओर देखने लगी.. मैं बाहर निकल कर दूसरे कमरे के दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गयी..और बड़ी शराफ़त से पूचछा,"क्या?"
"ओह्हो.. अंदर तो आओ!" हाथ में रेवोल्वेर लिए उसकी नली में फूँक मारता हुआ वा बोला... मैं अजीब सी नज़रों से देखती हुई उसके मनो भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए उसके पास जाकर खड़ी हो गयी.. गाँव में सबको पता था कि वह ऐसे ही उल्टे सीधे काम करता रहता है.. इसीलिए उसके हाथ में रेवोल्वेर देख कर मुझे हैरानी नही हुई.....,"हां?"
"तू तो पूरी जवान हो गयी है अंजू! मैने तो तुझे साल भर बाद देखा है.." उसने मेरे पास जाने के बाद रेवोल्वेर एक तरफ रख दी और आँखों ही आँखों में मेरी छातियो का भार सा तोलने लगा....
मैने लजा कर नज़रें झुका ली.. मीनू दीदी ठीक ही कहती थी.. आदमी तो सारे ही 'कुत्ते' होते हैं.. लड़की को तो बस जवान होने की देर होती है..
"हा हा हा.. शर्मा गयी... है ना?" उसने मेरा हाथ पकड़ लिया...
"क्क्या कह रहे थे आप?" मैने अचकचा कर पूचछा.. पिंकी के वहाँ होने का असर मेरे जवाब पर सॉफ दिखाई दे रहा था.. मैं डरी हुई सी थी...
"पहले तो ये बता.. पर्चे (एग्ज़ॅम्स) कैसे जा रहे हैं तेरे...?" वह अब भी मेरे एक हाथ को पकड़े हुए था...
"ठीक जा रहे हैं.. अभी तक!" मैने हड़बड़ाहट में जवाब दिया.. मेरी कलाई पर उसके हाथ की पकड़ मजबूत होती जा रही थी...
"शाबाश! कोई लोचा हो तो बताना.. किसी बात की फिकर मत किया कर.. मस्त रहा कर.. किसी से घबराने की कोई ज़रूरत नही है.. कोई छेड़े तो बस एक बार नाम बता देना... समझ गयी ना!" उसने बोलते हुए रेवोल्वेर उठा कर मुझे दिखाई और वापस तकिये के नीचे रख दी... मुझे पहली बार लगा कि शायद उसने पी रखी है...
मैने अपना सिर हिला दिया.. पर बोल नही पाई...
"हे हे हे.. शरमाते हुए तो तू और भी गजब की लगती है.. क्या जवानी दी है राम ने तुझे! सुना था तेरे बारे में लड़कों से.. पर विश्वास नही था कि तू सच में इतना मस्त माल बन गयी होगी...." बोलते बोलते उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया.. मेरे अपने मंन में पिंकी के इधर आ जाने के डर को छ्चोड़ कर कोई और डर नही था...
उसके मुझे अपनी तरफ खींचते ही मैं खींचती चली गयी... बेड पर बैठे हुए ढोलू का घुटना मेरे घुटनो के बीच आ फँसा.. ना चाहते हुए भी मुझे अपनी जांघें खोल देनी पड़ी.. और मेरे गाल शर्म से लाल हो गये...
"कुच्छ तो बोल अंजू! क्या इरादा है? मुझे भी बाकी लड़कों की तरह तडपाएगी क्या?" ढोलू मुझे धीरे धीरे और भी ज़्यादा अपने पास खींचना जा रहा था.. पर वह शायद इसी कोशिश में था की मैं भी कुच्छ पहल करूँ.. इसीलिए वो पूरा ज़ोर नही लगा रहा होगा...
मैं कुच्छ ना बोली.. घबरा कर अपना चेहरा घुमाया और दरवाजे की ओर देखने लगी...
"थोड़े दिन पहले तेरे बॅग में तुझे एक लव लेटर मिला होगा.. मिला था ना.." उसने एक हाथ से मेरा हाथ छ्चोड़ कर मेरा चेहरा अपनी और घुमा लिया.. मैं तुरंत नीचे देखने लगी... कुच्छ बोल नही पाई...
"बोल ना! मिला था ना लेटर?" उसने दोबारा पूचछा.. तो मैने 'हां' में सिर हिला दिया...
"वो अपना खास चेला है.. एक नंबर. का बच्चा है.. बहुत नाम कमाएगा.. हे हे हे.. नाम बताउ उसका?" ढोलू ने मेरे स्कर्ट का सामने वाला निचला सिरा पकड़ कर अपने हाथ में ले लिया...
मैं कुच्छ नही बोल पाई.. उसकी इन छ्होटी छ्होटी हरकतों से मेरे बदन में वासना का तूफान सा उठने लगा था....
"बोल ना.. नाम बता दूँ क्या?" ढोलू मेरी स्कर्ट के कपड़े को धीरे धीरे अपनी हथेली में लपेट'ता जा रहा था..
"पिंकी आ जाएगी.." मैने उसकी आँखों में देख कर अपने डर की वजह बताई...
"चल पागल.. मेरे होते हुए भी डरती है.. सुन! शीलू है 'वो' .. तेरी जवानी पर बहुत मरता है.. उसी ने मुझे बोला था.. संदीप से तेरे लिए एक धान्सु सा गरमा गरम 'लव लेटर' लिखवाने को.. मस्त लिखा हुआ था ना?" ढोलू की इस बात ने तो मेरा दिल बुरी तरह धड़का दिया....
"क्या? संदीप....." मैने लगभग उच्छलते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी....
"हां.. पर ये बात संदीप से मत पूच्छना.. उसने शीलू से कसम ली है कि 'वो' किसी को नही बताएगा.. समझ गयी ना..." मुझे अहसास भी नही हुआ कि कब उसने मेरी स्कर्ट को आगे से पूरा लपेट लिया.. जैसे ही मेरी 'कछी' के किनारों पर उसकी उंगलियों का अहसास हुआ.. मैने घबराकर एक बार झुक कर अपनी नंगी हो चुकी जांघों; एक बार बाहर दरवाजे की और; और फिर कसमसाते हुए उसकी आँखों में देखा....
"नही बोलेगी ना किसी को भी.. ये अंदर की बातें होती हैं पागल.. ऐसी बातें बाहर नही बताते.... नही बताएगी ना तू.." ढोलू ने अपना घुटना मेरी टाँगों के बीच से निकाला और मुझे पुर ज़ोर से अपनी ओर खींच लिया.. उसका चेहरा मेरी चूचियो से आकर टकराया.. शराब की गंध मेरे नथुनो में समा गयी.. उसका एक हाथ मेरे हाथ को पकड़े हुए अपने लिंग पर था.. मेरी हालत खराब हो गयी...
मेरी साँसों को तेज होते देख वह उत्साहित सा होकर बोला,"बोल ना मेरी रानी.. किसी को कुच्छ नही बताएगी ना..!"
"नही!" मैने अपने सिर को हल्का सा हिला कर अपना जवाब दिया.. और बग्लें झाँकने लगी...
"दे देगी ना शीलू को.. तेरा दीवाना है वो.. मदारचोड़ पागल सा हो गया है.. जब से तूने स्कूल जाना बंद किया है.. मेरी मान ले.. दे देगी ना उसको?" ढोलू ने कहते हुए मेरे हाथ को अपने हाथ के नीचे लेकर अपने लिंग पर दबा दिया..
'वो' पल तो मैं जिंदगी भर नही भूल सकती.. उसके बिना कहे ही मैने अपनी उंगलियों का घेरा बना कर उसके 'लिंग' को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और सिसकते हुए बोली," आआह... हाआ.. दे दूँगी... पर कहाँ दूं..?"
"हाए मेरी जान.. तेरी मुट्ठी कितनी गरम है.. तेरी चूत कैसी होगी साअलीईई.." वह पागला सा गया.. मेरी स्कर्ट को उपर उठा कर उसने हाथ को आगे कछी में फँसा कर नीचे सरका दिया..," ओह तेरी मा का लौदा.... ऐसी गौरी ओर चिकनी चूत तो मैने जिंदगी भर नही देखी.. ये तो अभी से टपक रही है..."
ढोलू ने एक उंगली मेरी योनि की फांकों में घुमाई और उसको बाहर निकाल कर मेरी और अपनी आँखों के सामने करके ऐसे खुश हुआ मानो मधु मक्खियों के छत्ते से शहद निकाल लाया हो... ," तेरी चूत तो मैं लूँगा... छ्चोड़ साले बेहन के लौदे को.. 'उस' पिद्दी की औलाद को इस माल की क्या कदर होगी.. 'वो' भी साला तेरी ओर देखेगा तो उसकी गांद में गोली मार दूँगा सीधी.... तू तो एक नंबर का सामान है.. बोल कब देगी मुझे?"
उसकी बातों और हरकतों से मैं भी पागल सी हो चुकी थी.. मुझे 'वैसे' भी इस बात से कोई फ़र्क़ नही पड़ना था कि मेरी जवानी से 'वो' बेहन का लौदा खेले ये 'ये' बेहन का लौदा... पर मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि बात का जवाब देना ही भूल गयी...
"बोल ना मेरी रंगीली छमियिया.. अब मैं तेरी चूत मारे बिना नही मानूँगा.. देगी ना मुझे.. लेगी ना मेरा लौदा अपनी चूत में..?" वा मेरा हाथ छ्चोड़ कर दोनो हाथों को स्कर्ट में पिछे ले जाकर मेरे नितंबों को बुरी तरह मसलता हुआ बोला.....
"आआआआहह!" मैं सिसकते हुए बोली," पर कहाँ लूऊऊँ.." मेरी आँखें बंद हो गयी.. मैं सब कुच्छ भूल चुकी थी....
"यहीं ले ले रानी.. अभी ले ले..." उसने जाकर दरवाजा बंद किया और वापस आकर बैठते ही अपनी पॅंट की ज़िप खोल कर अपना फंफनता हुआ लिंग बाहर निकाल लिया...
मैं डर गयी..," नही.. अभी नही.. पिंकी है यहाँ..!"
"अर्र्र्र्रररीईयययी.." उसने मेरी एक ना सुनी और मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठाते हुए मेरी टाँगों को अपनी कमर के दोनो और पिछे निकाल दिया...," वो तो टीवी देख रही है... बस दो मिनिट की बात है.. एक बार तो यहीं घुस्वा कर देख ले.. तेरी चूत को भी मेरे लौदे का चस्का लग जाएगा.."
उसने कहते ही मेरी कछी मेरे घुटनो तक नीचे सरका दी और मेरे घुटनो को मोड़ कर मुझे और आगे सरकाते हुए अपने लिंग पर बैठा लिया.. उसका लिंग मेरे नितंबों की दरार के बीचों बींच फँसा खड़ा था.. और मेरी योनि की फाँकें उसकी मोटाई के अनुरूप फैल कर उस पर टिकी हुई थी..
अपने लिंग को मेरे योनि के च्छेद पर टिकाने के लिए उसने मुझे उपर उकसाया ही था कि तभी दरवाजा खुला.. मेरे कानो में 'सॉरी भाई' बोलने की आवाज़ आई और दरवाजा फिर से बंद हो गया.....
हड़बड़ा कर उसने मुझे छ्चोड़ दिया.. आवाज़ संदीप की थी.. मैं खड़ी होकर अपनी कछी को उपर सरकाते हुए रोने लगी..," तुमने दरवाजा बंद क्यूँ नही किया.."
"इसकी मा की चूत.. इस दरवाजे पर अंदर कुण्डी नही है.. पर तू चिंता क्यूँ कर रही है.. कुच्छ नही होगा... " ढोलू अपनी पॅंट की ज़िप बंद करता हुआ बोला...
"संदीप ने देख लिया..." मैं रोती हुई बोली....
"तू रो क्यूँ रही है मेरी रानी.. मैं तेरा यार हूँ.. और वो मेरा भाई.. क्या हुआ जो उसने देख लिया तो.. ये बता.. कब आएगी मेरे पास..?"
मैं कुच्छ नही बोली.. खड़ी खड़ी सुबक्ती रही...
"मोबाइल है तेरे पास?" ढोलू ने मेरा हाथ वापस पकड़ लिया.. मैं 'ना' में सिर हिलाते हुए अपने आँसू पौंच्छने लगी....
"देख.. तेरे यार के पास तीन मोबाइल हैं.. जो मर्ज़ी ले जा.. बस मेरे नाम के अलावा कोई भी फोन आए तो उठाना मत.. तेरे पास जब भी मौका हो.. मुझे फोन करके बुला लेना.. या मैं बुला लूँगा.. ले ले.. कोई भी एक फोन उठा ले..." उसने अपने तीनो मोबाइल मेरे आगे रख दिए...
"नही.. मैं फोन नही रख सकती.. घर में पता चल जाएगा किसी को.." मैने इनकार में अपना सिर हिलाते हुए कहा...
"अरे.. वाइब्रेशन कर दूँगा मेरी रानी.. अपनी छातियो में छुपा कर रखना.. जब भी मेरा फोन आएगा.. तेरी चूचियो में गुदगुदी सी होगी... किसी को पता नही चलेगा रानी.. ले ले..." उसने अपने आप ही एक मोबाइल को सेट्टिंग्स चेंज करके मेरी स्कर्ट की जेब में डाल दिया," जा अब.. चिंता मत करना किसी भी बात की... और हां.. शिखा आज ही मामा के घर चली गयी है.. 2-3 दिन बाद आएगी तो मैं फोन करके बता दूँगा..... अब तुम आराम से घर जाओ.. चिंता नही करना.. किसी भी बात की.. मैं हूँ ना... तेरा यार!"
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