Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:29 AM,
#24
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"और ले ना! अच्छि नही लगी क्या?" उसने हिचकते हुए पूचछा....

"नही.. बहुत अच्छि है.. मेरा पेट भर गया... वो बताओ ना मनीषा? परसों तुमने क्या सुना था चौपाल में.." मैने पूचछा...

उसने मिठाई की प्लेट उठकर स्लॅब पर रख दी और मेरे पास आकर बैठ गयी..," छ्चोड़ो ना.. जो होना था हो गया.. जिसको बताना था बता दिया.. तुम कुच्छ और बात करो.." बोलकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.. उसके हाथ मर्दों की तरह खुरदारे से थे.. और उनमें जान भी बहुत लग रही थी...

"नही.. फिर भी.. बेचारा तरुण.. बिना बात ही मारा गया.. हो सकता है उस वक़्त ही किसी ने उसको मार दिया हो...!" मुझे उसके हाथ की पकड़ कुच्छ अजीब सी लग रही थी.. मैने अपना हाथ छुड़ा लिया...

वह कुच्छ देर चुप रही..," ना.. उस वक़्त किसी ने किसी को नही मारा.. उस वक़्त तो वो चले गये थे.. वो तो नशेड़ी होंगे शायद.. 'ये' काम तो किसी ने बाद में ही किया है... यहाँ उसके पेट में कोई 10-10 बार चाकू घौंपेगा तो वो चीखेगा नही क्या..?" मनीषा ने विचलित सी होते हुए कहा...

"हां.. ये बात तो है.. वो कोई और ही होंगे फिर.." मैं मंन ही मंन खुश हो गयी... तूने इनस्पेक्टर को क्या क्या बताया है...?"

"छ्चोड़ ना अंजू.. क्यूँ इस बात को बार बार उठा रही है... वैसे भी तरुण अच्च्छा लड़का नही था.... तुझे तो पता ही होगा...!"

उसकी बात सुनकर मैं हड़बड़ा गयी..," क्क्या मतलब?"

"छ्चोड़ जाने दे.. तू और सुना!" वह मेरी और मुस्कुरकर प्यार से बोली..

"ठीक है.. मैं जा रही हूँ अब..!" मैं कहकर खड़ी हो गयी....

"आ जाया कर... कभी कभी.. मैं तो अकेला ही रहता हूँ..!" मनीषा ने मेरे साथ ही खड़े होते हुए कहा.... और मेरे साथ साथ बाहर आ गयी...

"हुम्म.. देखूँगी..!" मैने उसकी ओर मुस्कुरकर कहा और दरवाजे की तरफ चल दी..

मैनशा ने तुरंत ही फर्श से भैंसॉं का गोबर उठाना शुरू कर दिया.. मैं घर जाते हुए सोच रही थी.. बेचारी को काम के लिए लेट कर दिया....

"म्‍मह....म्‍म्म्मह....म्‍म्म्

ममह.." मैने अपने आपको उन्ही जाने पहचाने हाथों के चंगुल से छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश की.. पर मैं कुच्छ ना कर सकी...

उसका एक हाथ पहले की तरह ही मेरे मुँह पर था.. और दूसरा मेरी कमर से होता हुआ मेरे पेट पर कसा हुआ था... वह मुझे लगभग पूरी ही उठा कर चौपाल की और घसीट'ने लगी.. पर उस दिन ऐसी हालत में भी मेरा ध्यान मेरी कमर में गढ़ी हुई उसकी सुगढ़ और कसी हुई चूचियो पर चला ही गया था... निसचीत तौर पर वह वही लड़की थी जिसने एक बार पहले भी मेरे साथ चौपाल में 'प्यार' का खेल खेला था....

दरअसल.. मैं करीब 8:00 बजे अपने घर से पिंकी के घर के लिए चली थी.. चौपाल के सामने आते ही जैसे ही कंबल में लिपटा हुआ एक साया मेरी और बढ़ा.. मैं एक दम घबरा गयी.. मैने डर कर भागने की कोशिश भी की पर मेरे कदम जड़वत से होकर ज़मीन से ही चिपके रह गये.. वह आई और मुझे किसी मूक खिलौने की भाँति चौपाल में उठा कर उसी जगह ले गयी.. जिस जगह वह पहली बार मुझे लेकर गयी थी...

मैं ना भी डरती.. पर उस दिन हालात बदल चुके थे.. दो दिन पहले ही चौपाल में तरुण की लाश मिली थी.. और कातिल का कुच्छ पता नही था.. 'क्या पता.. इसी ने...' .. ये सोच कर मेरी रूह तक सिहर उठी.. मेरा सारा बदन थर थर काँपने लगा..

काफ़ी देर तक वह मेरे पिछे खड़ी रह कर मेरे मुँह को दबाए हुए मेरे शरीर के साथ छेड़ छाड़ करती रही.. वह मेरी चूचियो को बारी बारी पकड़ कर हिलाते हुए उन्हे मसालती रही.. मेरे कानो में साँसें सी छ्चोड़ती हुई उन्हे हल्का हल्का काट'ती रही... पर पिच्छली बार की तरह वह ना तो मेरे शरीर में जवानी की आग भड़का सकी.. और ना ही मेरे दिल का डर ही दूर कर पाई.. मैं अब भी खड़ी खड़ी काँप रही थी...

थक हार कर उसने मेरे मुँह से हाथ हटाया और मुझे अपनी तरफ पलट लिया.. मेरे गालों को अपने हाथों में लिया और मेरे होंटो पर अपने होन्ट रख दिए.. अजीब सी वो सुखद अनुभूति भी मेरे मॅन से डर निकल नही पाई..

मैं थर थर काँप रही थी.. और इस डर को शायद वह भी समझ चुकी थी.. शायद इसीलिए बार बार मुझे छ्चोड़ कर.. पकड़ कर.. यहाँ वहाँ सहला कर.. मेरा डर दूर करने की कोशिश कर रही थी... वह मुझे विश्वास दिलाना चाह रही थी कि वह ज़बरदस्ती नही कर रही और मुझे उस'से डरना नही चाहिए... पर मेरी ये हालत थी कि मेरे होंटो से एक बोल भी निकल नही पा रहा था.....

अचानक उसने मेरी स्कर्ट को उपर उठा कर अपना हाथ अंदर डाला और मेरी जाँघ को पकड़ कर मेरी एक टाँग उपर उठा ली.. फिर दूसरे हाथ की उंगलियों को मेरे दूसरी तरफ से कछी में डाल कर नितंबों की दरार में मेरी योनि ढूँढने लगी.. उसको मिल भी गयी.. पर एकदम सूखी हुई सी.. जब मेरा गला तक डर के मारे सूख चुका था तो उसको तो सूखा रहना ही था...

शायद वो जैसा सोच रही थी.. मेरे साथ इतना सब कुच्छ करने के बाद भी वो कर नही पा रही थी.. उसकी पल पल में जगह बदल रही छेड़ छाड़ से उसकी झल्लाहट का पता चल रहा था..

अचानक उसने अपने हाथ में लेकर उपर उठाई हुई जाँघ को भी छ्चोड़ दिया.. और इसके साथ ही मुझे ज़मीन पर कुच्छ गिरने की आवाज़ आई.. आवाज़ का होना था कि वह तुरंत हड़बड़ा कर नीचे बैठी और मेरे पैरों के पास हाथ मार कर देखने लगी..

अचानक मुझे ध्यान आया.. मैने धीरे से अपनी स्कर्ट की जेब पर हाथ लगा कर देखा.. मोबाइल गायब था... 'ओह्ह!' मेरे मुँह से निकला और मेरी नज़रें झुक गयी...

अगले ही पल मेरी साँसें हलक में अटक कर रह गयी.. किस्मत कहें या बद किस्मती.. उसको मोबाइल मिल गया और शायद छ्छू कर देखते हुए उसका कोई बटन दब गया.....

"एम्म...एम्म...एम्म..." मेरे काँपते हुए होन्ट उसका नाम लेना चाहते थे.. पर इस'से पहले कि मैं पूरा बोल पाती.. उसने खड़ी होकर मेरे मुँह पर हाथ रख दिया..," ष्ह्ह्ह्ह्ह्ह.... जान से मार दूँगी.. अगर मेरा नाम लिया तो!"

उसने एक बार और बटन दबा कर मोबाइल की स्क्रीन ऑन करके देखा और उसको अपनी चूचियो में थूस लिया....

अब की बार मैने मनीषा का चेहरा बिल्कुल सॉफ देखा था.. और देखने के बाद तो मेरे होश ही उड़ चले थे... पर उसकी जान से मारने की धमकी के बाद मेरी आवाज़ निकलना तो दूर.. साँसें भी थम थम कर आ रही थी... मेरा पूरा शरीर पसीने में नहा चुका था...

"मैं.. मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ अंजलि.. इतना प्यार की तुम सोच भी नही सकती.. सिर्फ़ तुम्हे एक बार देखने की खातिर घंटों अपने घर की दीवार से गली में देखता रहता हूँ.. पर तुम्हारे सामने ये सब बोलने की मेरी हिम्मत ही नही हुई..." मनीषा धीरे धीरे बोलने लगी...

मुझे उसकी बातें बहुत अजीब लग रही थी.. वो भी एक लड़की और मैं भी.. 'ये कैसा प्यार?' मैं मंन ही मंन भगवान से मुझे वहाँ से निकल लेने की प्रार्थना करती रही....

"तुम भी कुच्छ बोलो ना अंजू! मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे..?" मैनशा ने मेरे गाल पर हाथ रखा और अपना खुरदारा अंगूठा मेरे काँप रहे होंटो पर रख लिया...," बोलो ना कुच्छ.. ऐसे क्यूँ तडपा रही हो तुम..." लड़की की ज़ुबान से मर्दाना ज़ज्बात.. सचमुच बड़ा ही अजीब पल था वो.. मेरे लिए....

"म्म..म्‍म्म.. कैसे बोलूं..? त्त्तुम म्मुझे भी मार डोगी.." मुझे विश्वास हो चला था कि मनीषा ने तरुण को भी ऐसे ही मार दिया होगा.. बोलने पर..

"आए पागल.. तू तो मेरी जान है.. तुझे भला में कैसे मार सकता हूँ.. तू डर क्यूँ रही है अंजू?" मनीषा ने कह कर मुझे अपने सीने से चिपका लिया.. हमारी छातिया एक दूसरी की छातियो से टकरा गयी...

"त्तुम ही तो.... कह रही थी कि मैं बोली तो तुम जान से मार दोगि..." मैने डरते डरते कहा....

"हट पागल! वो तो मैं खुद ही डर गया था.. कि तुमने मुझे पहचान लिया.. उसका ये मतलब थोड़े ही था... प्लीज़.. कुच्छ बोलो ना!" मनीषा ने मेरे चेहरे को चुंबनो से लबरेज करते हुए कहा....

"मुझे जाने दो प्लीज़..!" मेरे मुँह से डरते डरते निकला...

"क्या? इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नही करती! क्या तुम सच में मुझसे प्यार नही करती अंजू!" उसके शब्दों में निराशा और हताशा सॉफ झलक रही थी...

"नही.. करती हूँ..!" मैं अपनी कमर पर सख़्त होते उसके हाथों को महसूस करके काँप उठी..

"झूठ बोल रही हो ना तुम.. प्लीज़.. मुझे सच सच बता दो.. तुम मुझसे प्यार करती हो या नही.. प्लीज़ अंजू.. मैं तुम्हारे मुँह से 'हां' सुन'ने को तड़प रहा हूँ.." मनीषा बोलती रही..

"झूठ नही बोल रही.. तुम मुझे बहुत अच्छि लगती हो.. बहुत प्यारी.. सच में!" मुझे लगा, मेरे बचने का सिर्फ़ यही एक रास्ता है...

"फिर जाने देने के लिए क्यूँ बोल रही हो.. मुझसे प्यार करो ना.. उस दिन भी तो किया था तुमने.. कितनी अच्छि तरह.... कितना प्यारा है तुम्हारा शरीर... हर जगह से.. कितनी रसीली सी हो तुम...!" मनीषा मुझे ये सब बोलती हुई दुनिया का आठवाँ अजूबा लग रही थी.. हा! कोई लड़का होता तो.....

"पपता नही क्यूँ.. आज.. यहाँ अंधेरे में मुझे डर सा लग रहा है... मैं इसीलिए बोल रही थी बस.." मैने सफाई दी...

"मेरे घर चलतें हैं... नीचे कोई नही होता.. चलो!" मनीषा ने मुझे छ्चोड़ कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कंबल में अपने साथ लपेटा और बाहर की ओर चलने लगी... ना तो मेरी 'ना' कहने की हिम्मत थी.. और ना ही मैं 'ना' कह पाई.. हां.. गली में उस वक़्त कोई आ जाता तो शायद मैं उस'से बचने की कोशिश कर लेती.. पर कोई नही आया.. हम चौपाल से निकले और उसके घर में घुस गये....

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अंदर कमरे में जाते ही उसने दरवाजा और खिड़कियाँ बंद की और कंबल उतार कर चारपाई पर रख दिया... मैने महसूस किया.. रोशनी में वो मुझसे नज़रें मिलने से कतरा रही थी..," कुच्छ लोगि तुम?" उसने चेहरा झुकाए हुए पूचछा...

"नही....." उसके इशारा करने के बाद में चारपाई पर जाकर बैठ गयी.. अब डर बाहर उतना नही था.. पर अंदर वैसे का वैसा ही था......

"मिठाई लाउ?" उसकी आँखें अब भी दीवार को ही देख रही थी....

"नही.. कुच्छ नही.. मुझे भूख नही है...!" मैने जवाब दिया...

मनीषा ने मेरे पास चारपाई पर बैठ कर मेरा हाथ अपने दोनो हाथों में लिया और उसको धीरे धीरे सहलाने लगी," कुच्छ बोलो ना.. तुम तो कुच्छ बोलती ही नही..."

"म्‍मैइन क्या बोलूं.. मेरी तो..." मैं बोलते हुए रुक गयी.. उसने बोलना शुरू कर दिया था..," बताओ ना.. मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे? तुम्हे पता है मैं कब से तुमसे प्यार करता हूँ...?"

"तुम लड़की हो दीदी!" मैने हिम्मत करके बोल ही दिया..

"तो? ... तो क्या हुआ?" उसने पूचछा....

उसकी आवाज़ में हल्क से बदलाव से ही मैं डर गयी.. बड़ी मुश्किल से मैने अपनी बात को संभाला..," नही... कुच्छ नही हुआ... मैं तो बस... मैं तो ये पूच्छ रही थी कि तुम लड़कों की तरह 'ता हूँ'.. 'ता हूँ' क्यूँ बोलती हो?"

"अच्च्छा.. ये!" वो मुस्कुराते हुए बोली..," पता नही.. मुझे ऐसे ही बोलना अच्च्छा लगता है.. और खास तौर पर तब; जब मेरा..." वह बोलते हुए रुकी और नज़रें झुका ली," जब मेरा प्यार करने का मंन हो!"

"अच्च्छााअ.." मैने सिर हिलाते हुए जवाब दिया.. मेरा हाथ अब भी उसके हाथों में ही था.. जिसे वो अब तक बड़े प्यार से सहला रही थी....," एक बात बोल दूं.. गुस्सा नही होना..!" मैने बनावटी प्यार आँखों में उतार लिया...

"बोल ना! तेरी कसम.. बिल्कुल गुस्सा नही करूँगा...!" मनीषा ने बड़े प्यार से कहा...

"वो.. थोड़ी देर बाद मुझे जाना पड़ेगा.. नही तो पिंकी की मम्मी मेरे घर पर फोन करके पूछेगि...." मैने डरकर उसकी आँखों में देखने की कोशिश की..

कुच्छ देर वह यूँही मेरे चेहरे को प्यार से देखती रही.. फिर मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया..," ठीक है.. पर एक बार प्यार कर ले.. उसी दिन से तड़प रहा हूँ.. तुमसे प्यार करने के लिए...!" उसकी बात में आदेश भी था और प्रार्थना भी..

'ना' कहने की सोचने से भी डर लग रहा था मुझे.... पहली बार मुझे लग रहा था कि मनीषा 'पागल' है... मैने उसको निपटा देना ही ठीक लगा," ठीक है.. कर लो..!" मैने फीकी सी मुस्कुराहट चेहरे पर लाकर कहा...

"सारे कपड़े निकाल कर अच्छे से प्यार करेंगे.. ठीक है?" उसने पूचछा....

"पर.. पर कोई आ गया तो?" मैने जवाब में पूचछा..

"यहाँ तो दिन में भी कोई नही आता.. रात में कौन आएगा.. तुम डर क्यूँ रही हो?" उसने मुझे कंधों से पकड़ कर हिला दिया...

"ठीक है.." मैने कहा और अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी...

"रूको.. मैं निकालूँगा.. प्यार से!" मनीषा ने कहा और मुझे खींच कर अपनी गोद में बैठा लिया.....

मेरी शर्ट को मेरे बदन से निकालने के बाद मनीषा ने मेरी एक चूची को अपने हाथ में पकड़ लिया," कितनी प्यारी है तू.. ब्रा कभी नही डालती क्या?"

मेरी चूची के दाने पर उसकी उंगली लगते ही वो जितना हो सकता था, तन कर खड़ा हो गया.. और सख़्त होकर छ्होटी किस्मीस के जैसा बन गया.. सिर्फ़ रंग का फ़र्क था.. 'दाना' एक दम गुलाबी था.. मैने उसको देखा और आँखें बंद करके बोली," नआई.."

"एक मिनिट ऐसे ही रह.." उसने कहा और मेरे 'दाने' को होंटो के बीच दबा लिया.. मेरी सिसकी निकल गयी," अया.."

"क्या हुआ? मैने तो दाँत से भी नही काटा.. ऐसे ही होंटो में लेकर देखा था.." उसने मेरे दाने से मुँह हटाया और मेरे गालों का चुंबन लेती हुई बोली..

मैं कुच्छ नही बोली.. आँखें बंद किए उसकी गोद मैं पड़ी रही..

"मज़ा आ रहा है ना.. अंजू?" उसने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरते हुए पूचछा...

मैने अपना सिर 'हां' में हिला दिया.. मज़ा नही आ रहा होता.. तो भी मुझे यही करना था..

"तेरा तो चेहरा ही इतना प्यारा है कि देख कर ही दिल मचल जाता है.. मैं तो कभी भी ये नही सोचता था कि तुझे रोशनी में भी प्यार कर पाउन्गा.. अब मुझे तू मिल गयी.. और कुच्छ नही चाहिए.. तेरी कसम!" मनीषा बोली...

मेरा ध्यान उसकी बातों से ज़्यादा मेरी चूचियो पर थिरक रहे उसके हाथ पर था... बड़े ही प्यार से वह मेरी सेब जैसी तनी हुई चूचियों को सहला रही थी. मेरे बदन में उसके हाथ के नीचे मेरी योनि तक चले जाने की तड़प बढ़ने लगी.. मैं थोड़ा सोच कर बोली," तुम भी निकाल दो ना!"

"नही.. तुम निकालो अपने हाथ से...!" उसने कहने के बाद मुझे अपनी गोद से नीचे उतार कर चारपाई पर बैठा दिया और मेरे सामने अपनी चूचिया तान कर अपने हाथ उपर उठा लिए... मैने उसकी कमीज़ नीचे से पकड़ी और उपर खींचते हुए निकाल दी... मैं उसकी चूचियो पर बँधे कपड़े को देख कर बोली," ये क्या है?" मोबाइल भी उसी कपड़े में फँसा हुआ सॉफ दिख रहा था...

"ये..?" मेरा इशारा समझ कर वह नीचे देख कर बोली," ये मैने इनको बाँध रखा है इस कपड़े में.. उपर उठी हुई मुझे अच्छि नही लगती!" उसने कहा और मुझे वापस अपनी गोद में खींच लिया... अगले ही पल उसने मेरी स्कर्ट का हुक खोला और मुझे उपर उठा कर स्कर्ट को मेरी टाँगों से बाहर निकाल दिया...

"आ.. आज तो तू मुझे पूरी नंगी देखने को मिलेगी..!" उसके मुँह से लार टपक कर मेरे नंगे पेट पर जा गिरी.. उसने मुझे एक बार फिर उपर उठाया और मेरी कछी भी नीचे सरका दी और मैने अपने पंजे उपर उठा दिए.. कछी चारपाई पर आ गिरी....

"हाए.. कितनी प्यारी है.. इस पर तो पूरी तरह 'झांतें' भी नही उगी हैं.. उउशह.....गोरी गोरी सी मक्खन जैसी..." कहते हुए उसने मेरी जांघों के बीच हाथ देकर मेरी योनि पर उंगलियाँ घुमाई..

"आआआअहह" मैने सिसक कर अपनी जांघें फैला दी... और अपनी योनि को देखने लगी.....

शायद ठंड की वजह से मेरी योनि सिकुड कर और भी छ्होटी सी हो गयी थी.. योनि की फांकों के सिकुड़ने की वजह से उनमें सिलवटें सी बनी हुई थी... और उनके बीच की नन्ही नही पत्तियाँ आपस में चिपकी हुई थी...

मनीषा ने अपनी एक उंगली और अंगूठे की सहायता से मेरी योनि की फांकों को फैलाकर उन्न पत्तियॉं को अलग अलग किया और सिसक कर उनके बीच अंगुली रख कर बोली..," हाए रे.. तेरा तो अंग अंग गुलाबी है.. तेरे होन्ट गुलाबी.. तेरे चूचक गुलाबी.. और तेरी ये भी अंदर से पूरी गुलाबी है... तू मुझे कैसे मिल गयी मेरी जाआआअन्न्न्न.." बोलते ही उसने मेरे होंटो पर अपने होन्ट रखे और मेरी रिसने लगी योनि में अपनी उंगली अंदर घुसा दी... आनंद के मारे मैं पागल सी हो गयी और मैने अपने नितंब उपर उठा दिए....

"मज़ा आया..?" उसने उंगली को बाहर करके फिर से अंदर सरका दिया और मेरे होन्ट छ्चोड़ कर पूचछा....

"आआआहाआआन.." मैने लंबी साँस ली और बोली...," तुम भी निकाल दो अपनी.. मैं भी ऐसे ही करूँगी तुम्हे...." कहकर आवेश में मैने उसकी चूचियो पर बँधे कपड़े पर दाँत गढ़ा दिए....

मेरी बात सुनकर वह बहुत खुश हुई.. मुझे अलग बिठाया और खड़ी होकर एक ही झटके में नाडा खोलते ही सलवार और पॅंटी.. दोनो निकाल दी... मुझसे सब्र नही हो रहा था...मैने उसी वक़्त आगे होकर अपना हाथ उसकी जांघों के बीच फँसा दिया... उसकी काले बालों वाली योनि में उंगली घुसाने के लिए....

"रूको तो एक मिनिट.. वहीं आ रहा हूँ.. चारपाई पर.." कह कर उसने अपनी सलवार अपनी कमीज़ के उपर रखी और चारपाई पर खड़ी हो गयी..," एक मिनिट.."उसने कहा और मुझे लिटा कर मेरी टाँगों की तरफ मुँह करके लेट गयी.. उसकी जांघों के बीच दुब्कि हुई उसकी योनि मेरी आँखों के सामने थी... मेरे जांघों पर हाथ लगते ही उसने अपनी जांघें खोल दी और मेरे नितंबों को पकड़ते हुए मुझे अपने चेहरे की ओर खींच लिया....

उसकी योनि की फाँकें साँवली सी थी और मेरी फांकों से दोगुनी मोटी भी.. मैने अपने दोनो हाथों से उसकी फांकों को अलग अलग किया और उसका छेद ढूँढा.. मुझे आस्चर्य हुआ.. मेरी योनि के मुक़ाबले दोगुनी योनि का छेद मेरी योनि के जितना ही था... अंदर से भी उसका रंग सांवला ही था.. उसकी योनि अंदर बाहर सारी रस से भीगी हुई थी... मैने अपनी एक उंगली को उसकी फांकों से रगड़ कर गीला किया और छेद पर रख कर अंदर धकेल दी....

मनीषा सिसक उठी और उसके मोटे मोटे नितंब थिरक उठे... पर अगले ही पल उच्छलने की बारी मेरी थी...

"आऐईईईईईईईईईई.. ये क्या कर रही हो.." मैने अपने नितंबों को उच्छाल कर मेरी जांघों के बीच घुसे हुए उसके मुँह से अलग किया....

".. अच्च्छा नही लगा क्या?" उसने मेरी तरफ देख कर पूचछा.....

"बहुत अच्च्छा.. लग रहा है.. पर सहन नही हो रहा.. गुदगुदी मच रही है.. मैने अपने नितंबो को वापस उसके हाथ में ढीला छ्चोड़ कर कहा....

"करने दो ना.. बहुत अच्छि गंध आ रही है.. तुम्हारी 'इस' में से.. चूसने दो ना थोड़ी सी देर.." मनीषा ने प्यार से कहा....

मैने आगे सरक कर अपनी जांघें खोल दी और गौर से उसकी योनि को देखती हुई अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी...

"अयाया...एक मिनिट बस..." कहकर वह उठी और मुझे सीधा करके लिटा लिया.. उसके बाद वह मेरे चेहरे के दोनो ओर दूर दूर अपने घुटने टिका कर मेरे उपर आ गयी... मैं बड़े प्यार से उसके ऊँचे उठे हुए नितंबों के बीच की गहरी दरार और पिच्चे की तरफ मुँह खोले खड़ी योनि को देखने लगी.. मैने अपना हाथ नीचे से बाहर निकाला और अपनी उंगली को योनि के आकर में उस पर घुमाने लगी...

उसने मेरी जांघों को पिछे की ओर करते हुए अपने हाथ इस तरह से उनमें फँसा लिए जैसे एक बार अनिल चाचा और सुन्दर ने मम्मी के साथ किया था.. मैं कल्पना करने लगी कि मेरी योनि भी मम्मी की योनि की तरह खुल कर उपर देखने लगी होगी....

अचानक वह उस पर झुकी और अपनी जीभ को मेरी योनि की दरारों में उपर नीचे चलाने लगी... मैने छॅट्पाटा कर नितंबों को अलग हटाने की कोशिश की.. पर मेरी जांघें मनीषा की बाजुओं में जकड़ी हुई थी.. मैं हिल तक नही सकी.... वह बेहिचक मेरी योनि को लपर लपर चाट'ते हुए धीरे धीरे मेरे छेद में जीभ घुसाने की कोशिश करने लगी.. मैं पागल सी हो गयी.. आनंद के मारे मैं सिसकियाँ लेते हुए अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर उसके नितंबों पर पटापट मारने लगी.. पर उसने जी भर कर चूसने के बाद ही अपना मुँह वहाँ से हटाया...

"क्या हुआ? तुम तो करो उंगली से..." उसने कहा....

मेरी साँसें अनियंत्रित सी हो चुकी थी.. मैने हान्फ्ते हुए कहा..," मुझसे वहाँ जीभ सहन नही हो रही.. बहुत ज़्यादा गुदगुदी हो रही है.. मेरी चीख निकल जाएगी... तुम भी उंगली से करो.. मज़ा आता है..."

"अच्च्छा रूको..!" उसने कहा और उठकर बैठ गयी और मुझे भी बैठने को कहा...

मैने अपनी जांघें फैलाकर अपनी योनि को देखा.... उसकी सारी सिलवटें गायब हो चुकी थी.. मेरी योनि के रस और उसके थूक से सनी हुई 'वह' फूल कर छ्होटी सी डबल रोटी की तरह हो गयी थी...," करो ना उंगली...." मैने छॅट्पाटा कर कहा...

"अपनी टाँगें सीधी करो.."उसने कहा.. मैने कर ली...

मेरी एक जाँघ को अपनी एक जाँघ के उपर चढ़ा कर वह आगे सरक आई.. हम दोनो की योनियाँ एक दूसरी के आमने सामने थी.. मेरी समझा में नही आ रहा था.. वह क्या करना चाहती है....

"थोड़ी सी आगे आ जाओ.. मेरी चूत से अपनी चूत मिला लो.." उसने कहा...

मुझे थोडा सा टेढ़ा होना पड़ा.. पर मैने आगे सरक कर उसकी योनि से अपनी योनि मिला दी.. और उसके चेहरे की ओर देखने लगी....," अब?"

उसने जवाब नही दिया.. पर जैसे ही वह हिली.. उसकी योनि के कड़े और काले काले बाल मेरी योनि पर अंदर बाहर चुभने लगे.. पर उस चुभन में एक अलग ही मज़ा आया.. मैने थोड़ी सी और जांघें खोल दी और उसकी योनि से अपनी योनि बिल्कुल चिपका दी....

"ऐसे ही करो नाआअ... आआआः.. तुम भी.. मज़ा आ रहा है ना?" उसने अपने नितंबों को उपर नीचे करते करते हुए आँखें बंद करके पूचछा....

"हाआँ.. बहुत मज़ा आ रहा है... आआआहह.." मैं सिसकते हुए उस'से भी ज़्यादा तेज़ी से उपर नीचे होने लगी... उसके बाल 'योनि में घुस कर एक अलग ही मज़ा दे रहे थे... उसकी पता नही.. पर मेरी आँखें बंद थी.. और मैं बड़बड़ाते हुए लगातार उपर नीचे हो रही थी...

2 मिनिट से ज़्यादा मैं ऐसा नही कर पाई.. मैं भी थक चुकी थी और मेरी योनि ने भी अपने हाथ उठा दिए थे.. रस निकल कर मेरी और उसकी जांघों पर फैल गया...

मैं निढाल होकर गिर पड़ी....," बस.. बस..बस..."

उसने मेरा कहना मान लिया... उठकर अलग हुई और मेरे उपर लेट कर मेरी चूचियो को चूस्ते हुए एक उंगली मेरी योनि में उतरी और दूसरे हाथ से तेज़ी के साथ अपनी योनि में उंगली अंदर बाहर करने लगी.... मेरा बुरा हाल था.. और आख़िर आते आते उसका भी... कुच्छ देर बाद वह भी मेरी छातियाँ पर सिर रख कर हाँफने लगी......

" तुमने ये क्यूँ कहा कि तरुण अच्च्छा लड़का नही था..." मैने मौके का फाय्दा उठाते हुए पूचछा.....

"छ्चोड़ो ना.. बस मैने बता दिया ना कि नही था.. और जब तुम्हे पता ही है तो क्यूँ पूच्छ रही हो..." मनीषा ने अपनी साँसों पर काबू पाते हुए कहा और मेरी योनि में से अपनी उंगली निकाल ली....

"ंमुझे क्या पता? तुम ऐसे क्यूँ बोल रही हो...?" मैं उठ कर बैठ गयी....

"एक बात बताउ?" उसने कहा... मैं उसकी ओर देखने लगी....

"एक दिन तरुण तुम्हे चौपाल में लेकर गया था ना...?" उसने घूर कर मुझे देखते हुए कहा....

मुझसे कोई जवाब देते ना बना.. पर मुझे विश्वास हो गया कि जब हम दोनो बाहर खड़े थे.. तो जिस साए का मुझे आभास हुआ था.. वो वही थी.. मनीषा!

"मुझे सब पता है.. उस दिन मैं तेरी ताक में वहीं खड़ी थी.. चौपाल के दरवाजे पर.. पर तरुण तेरे साथ आ गया.. मुझे बड़ा दुख हुआ.. फिर जब तुम दोनो वहीं खड़े हो गये तो मैं चौपाल में घुस गयी.. कि कहीं तरुण देख ना ले.. थोड़ी देर बाद तरुण तुम्हे लेकर अंदर ही आ गया.. मैने तुम्हारी सारी बातें सुनी थी....!" मनीषा ने बताया....

मैं चुपचाप उसके चेहरे को घूरती रही...

"सच में बहुत कमीना था वो.. अच्च्छा हुआ जो मर गया...!" वह उठ कर अपने कपड़े पहन'ने लगी.. मैने भी अपना स्कर्ट उठा कर कछी ढूँढनी शुरू कर दी....

"कल फिर आओगी ना? मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी..." मनीषा ने कपड़े पहनते ही मेरे पास आकर मुझे चूम लिया...

"ये.. मेरा मोबाइल...!" मैने उसकी बात टाल कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा....

"हाँ..." उसने अपनी छातियो में हाथ डाल कर उसको निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिया," ये लो... मुझे याद नही रहा था... कल फिर आओगी ना?"

"कोशिश करूँगी.. पर अभी एग्ज़ॅम चल रहे हैं.... पक्का नही कह सकती..." मैने मजबूरी का वास्ता दिया...

"ठीक है.. पर अभी एक प्यारी सी 'चुम्मि' तो दे जाओ.." उसने मुझे दरवाजे के बाहर से वापस बुला लिया...

मैं जबरन मुस्कुराइ और वापस आकर उसके पास खड़ी हो गयी...

उसने थोड़ा सा नीचे झुक कर मेरे होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.. और मेरी कमर में हाथ डाल कर काफ़ी देर तक इन्हे चूस्ति रही.. और फिर अलग हटकर बोली," तुमसे मीठी चीज़ दुनिया में कोई नही हो सकती!

क्रमशः.....................
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