RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--18
गतांक से आगे.......................
हेलो!" मीनू ने इनस्पेक्टर के मोबाइल पर एसटीडी से फोन किया..
उधर से आया जवाब मुझे सुनाई नही दिया... पर मीनू की बातों को मैं बड़े गौर से सुन रही थी....
" जी.. वो.. आपने मुझे शहर आकर फोन करने के लिए बोला था.. इसीलिए...."
"मैं.. मीनू बोल रही हूँ.. परसों आप..."
"ज्जई.. कल मेरी तबीयत खराब थी.. इसीलिए मैं..."
"अभी तो कॉलेज के पास ही हूँ..."
"ठीक है सर.. "
"नही.. मेरे साथ 'वो' अंजलि भी आई हुई है.. उसको कुच्छ शॉपिंग..."
"नही.. उसको कहाँ छोड़ू सररर..? वो शहर में नयी नयी आई है..."
"ठीक है सर.. मैं इंतज़ार कर रही हूँ.. वहीं जाकर..." मीनू ने उदासी भरे चेहरे से फोने रखने के बाद एसटीडी वाले से पूचछा,"कितने पैसे हो गये....?"
"2 रुपए!" एसटीडी वाला मुझे घूर कर देखता हुआ बोला...
मीनू ने पैसे दिए और हम बाहर आ गये... मैने निकलते ही पूचछा..," क्या कह रहा था वो?"
"15 मिनिट में आ रहा है.. मुझे कॉलेज के बाहर गेट पर खड़े होने को बोला है....."मीनू ने चलते चलते जवाब दिया...
"और मैं? .... मैं कहाँ रहूंगी तब तक....?" मैने पूचछा...
"तू मेरे पास ही रहना.. वो बोले तो भी तू दूर मत जाना.. मुझे तो घटिया टाइप का लगता है....!" मीनू मेरी और देख कर बोली....
"क्यूँ दीदी? घटिया क्यूँ...?" मैने हैरानी सी दिखाते हुए उस'से सवाल किया....
"बस.. ऐसी ही बकवास कर रहा था.. बोला ऐसे मज़े नही आएँगे.. अंजू को कहीं अलग भेज दो....!" मीनू ने जवाब दिया और बोली," बस.. यहीं खड़ी होज़ा.. यही है कॉलेज.. गेट पर खड़े अच्छे नही लगेंगे.. वहाँ लड़के खड़े रहते हैं..."
मैं कुच्छ नही बोली.. कुच्छ देर बाद धीरे से मीनू ने ही मुझसे कहा," वो.. तू कुच्छ मत बोलना.. स्कूल वाली बात के बारे में..."
"ठीक है.. पर क्यूँ?" मैने भी उसकी तरह ही धीरे बोलना शुरू कर दिया...
"पहले इसकी बात सुनेंगे.. अगर ढंग से बात की तो मैं बता दूँगी.. वरना.. खम्खा तुम्हे भी तंग करेगा... और क्या पता.. फिर पिंकी को भी बुलाने लगा तो..?" मीनू ने मुझे समझाते हुए कहा...
"ठीक है दीदी... पर क्या पता.. 'सर' ने कुच्छ किया ही ना हो!" मैने कहा...
"हां.. हो सकता है.. पर और कौन करेगा?" मीनू ने आधी सी सहमति जताई...
"नही.. बस मैं तो ऐसे ही बोल रही हूँ..." मैं बोल कर चुप हो गयी.. पर मेरे दिमाग़ मैं रह रह कर मनीषा का ख़याल आ रहा था.. उसने कल मुझे भी तो शोर करने पर जान से मारने की धमकी दी थी... क्या पता तरुण को भी ऐसे ही पकड़ लिया हो.. और वो डर कर शोर मचाने लगा हो...
हमें वहाँ खड़े आधे घंटे से भी उपर हो गया था.. मीनू बेचैन होने लगी थी...
"दीदी!" मैने ख़यालों में खोई हुई मीनू का हाथ पकड़ कर टोका...
"हाँ...."
"ये मनीषा कुच्छ अजीब सी लड़की नही है...?" मैने कहा...
"ये मनीषा का जिकर क्यूँ कर रही हो..?" मीनू ने पलट कर पूचछा...
"बस.. यूँही... मुझे तो पागल लगती है आधी..." मैने कहा...
"क्यूँ?"
"कल में आपके घर से अपने घर जा रही थी तो मैं यूँही उसके पास चली गयी.. तरुण वाली बात पूच्छने के लिए... मुझे नीचे बैठकर उपर भाग गयी.. 5 मिनिट बाद आई.. कपड़े बदल कर.. और मेरे लिए मिठाई लेकर.. मुझे ज़बरदस्ती सारी खिला कर ही वापस आने दिया..." मैं जो बता सकती थी.. उसमें अपनी तरफ से 'ज़बरदस्ती' जोड़ दिया.....
"इसमें पागलपन वाली बात क्या है.. कोई हमारे घर आता है तो हम भी तो ऐसा ही करते हैं.. वो तो बेचारी बहुत शरीफ है.. किसी से ज़्यादा बात ही नही करती.. अपना काम करती रहती है सारा दिन...!" मीनू ने मेरी बात काटी...
"हां.. पर कपड़े बदलने वाली बात मुझे और भी अजीब लगी.. वो तो हमेशा गंदे कपड़े पहने रहती है.. और वैसे भी.. जब मैं गयी तो वो 'गोबर' उठाने वाली थी.. भैंसॉं का... और वो लड़कों की तरह से बोलती है..." मैने कहा...
"हमेशा नही बोलती.. पर एकाध बार उसके मुँह से निकल जाता है.. काम लड़कों के करती है ना! इसीलिए आदत हो गयी होगी... और वैसे भी..." मीनू अपनी बात को पूरा नही कर पाई थी कि पिछे से आ रही दो लड़कियों ने हमें पकड़ लिया....
"कैसी हो मीनू.. यहाँ क्या कर रही हो?.. 3 दिन से कॉलेज में दिख ही नही रही..." एक ने पूचछा...
"श..श्वेता! तुमने तो मुझे डरा ही दिया था.. चलो.. हम थोड़ी देर में आते हैं..." मीनू सकपका सी गयी थी...
"ये.. तुम्हारी बेहन है क्या?" श्वेता ने मेरी और देख कर कहा...
"हाँ.. बेहन ही..." मीनू जवाब दे रही थी.. पर श्वेता ने उसको बीच में ही रुकने पर मजबूर कर दिया...," हाँ.. शकल से लग रही है.. पर है तुमसे भी सुन्दर..." श्वेता ने कह कर मेरी तरफ हाथ बढ़ा दिया,"हेलो डार्लिंग!"
तभी हमें कॉलेज के गेट पर हॉर्न सुनाई दिया.. पोलीस की जीप खड़ी थी.. मीनू सकपका सी गयी..," तुम चलो श्वेता! हम थोड़ी देर बाद आते हैं..."
"ओह्ह क़म'ओन यार.. चल ना.. कॅंटीन में चलकर बैठते यहाँ.. अब यहाँ क्या करोगी...?" श्वेता मेरा हाथ खींचते हुए बोली....
"समझा करो यार.. हमें कुच्छ काम है.. चलो तो..." मीनू बोलते बोलते अचानक चुप हो गयी.... जीप हमारे पास आकर रुकी.. उसमें वोही दोनो पोलीस वाले थे...
"चलो.. बैठो!" इनस्पेक्टर ने सख़्त आवाज़ में कहा....
मीनू हड़बड़ा कर श्वेता की और देखने लगी..," तुम चलो.. हम आते हैं...!"
श्वेता और दूसरी लड़की ज़ीप को देखते हुए आगे बढ़ गये... मीनू रुनवासा सा मुँह बनाकर बोली..," आप यहीं कर लो.. जो बातें करनी हैं...!"
इनस्पेक्टर बत्तीसी निकाल कर अपने मुँह में कुच्छ चबाता हुआ बोला,"यहाँ करने की बातें होती तो घर पर ही ना कर लेता... चलो.. जल्दी बैठो पीछे..."
"आप तो इस तरह हमें पोलीस जीप में बैठने को बोल रहे हो.. जैसे हम मुजरिम हैं... यहाँ कॉलेज के सामने... क्या सोचेंगे सब?" मीनू इधर उधर देखती हुई बोली.. श्वेता और वो लड़की कुच्छ आगे खड़ी होकर हमें ही देख रही थी...
"ओह्ह.. माइ मिस्टेक...!" कहकर इनस्पेक्टर जीप से उतरा और एक हाथ से मीनू का हाथ पकड़ कर दूसरा हाथ उसकी कमर पर रख लिया और ज़ोर से बोला," सॉरी डियर.. तुम्हे ज़्यादा इंतजार करना पड़ा..." कहने के बाद उसकी टोन धीमी हो गयी," क्या है कि अभी मेरी शादी नही हुई.. दहेज में बड़ी गाड़ी मिलने की उम्मीद है.. इसीलिए आजकल इसी से काम चला रहा हूँ....!"
उसकी बात सुनकर मीनू सकपका उठी," हाथ क्यूँ पकड़ रहे हो.. यहाँ.. सब क्या सोचेंगे..?"
"ओह्हो.. महारानी जी.. तो कैसे करूँ मैं.." इनस्पेक्टर दोनो हाथ जोड़ कर मीनू की ओर आगे झुक गया," पॉलिसिया अंदाज में बोलता हूँ तो कहती हो कि लोग क्या सोचेंगे... खुद नीचे उतार कर अपनी इज़्ज़त की खिचड़ी करके तुम्हे इज़्ज़त दे रहा हूँ तो कहती हो कि लोग क्या सोचेंगे... मुझे नही पता.. फटाफट गाड़ी में बैठ जाओ...!" उसने तुनक कर कहा और वापस जाकर बैठ गया...
दोनो लड़कियाँ हमारी ही और देख कर हंस रही थी.. उन्हे शायद मानव की ज़ोर से कही बातें सुन ली थी... मीनू ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लेकर जीप में बैठ गयी.......
" चाचा, शहर की किसी झकास जगह पर छ्चोड़ दो हमें...!" इनस्पेक्टर सिकुड कर बैठी हुई मीनू की ओर देख कर मुस्कुराया....
मोटे पोलीस वाले ड्राइवर ने अपनी खीँसे निपोरी..,"जनाब.. इस काम के लिए तो होटेल नटराज बढ़िया रहेगा.. जब में सिटी थाने में था.. तो वहाँ से बहुत चंदा आता था हमारे पास.. हे हे हे...."
"ठीक है.. उस'से थोड़ी पहले रोक देना.. हम पैदल चले जाएँगे....!" इनस्पेक्टर ने ड्राइवर वाली सीट पर हाथ टीका लिया....
"फिर तो उतर जाओ जनाब.. यहाँ से 20-25 कदम की दूरी पर ही है..." पोलीस वाले ने गाड़ी रोक दी,"वो.. आपको लेने आउ कि नही जनाब...?"
"नही.. मैं आ जाउन्गा.. मुझे शायद कहीं और निकलना पड़े..." इनस्पेक्टर ने गाड़ी से उतर कर हमें नीचे आने का इशारा किया... हम दोनो नीचे आकर अपना सिर झुकाकर खड़े हो गये....
"जनाब! वो उस लड़के की कॉल डीटेल भी आ गयी है.. आपको अभी दूं या टेबल में रखवा दूं जाकर...." पोलीस वाले ने चलने से पहले पूचछा....
"ओह हां... लाओ.. मुझे ही दे दो!" इनस्पेक्टर ने उस'से कुच्छ लिया और उसको भेज दिया...
"मेरे पिछे पिछे आ जाओ.. तुम्हे बोलने की कोई ज़रूरत नही है.." इनस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में कहा और हम उसके पिछे चल पड़े....
इधर उधर देख कर चल रहा इनस्पेक्टर अचानक मुड़ा और हमें उंगली से साथ आने का इशारा करके एक होटेल में घुस गया.. हम भी उसके साथ ही अंदर चले गये.. काउंटर पर एक नेपाली सा लड़का बैठा था.. हमें देख कर वो मुस्कुराया और इनस्पेक्टर से कहा,"बोलो!"
इनस्पेक्टर ने सिर झुकाया और अपने माथे पर खुजाते हुए बोला," रूम मिल जाएगा क्या?"
"दोनो के लिए?" लड़के ने पूचछा... इनस्पेक्टर ने मूड कर मेरी तरफ देखा तो मैने कसकर मीनू का हाथ पकड़ लिया.. वो बिना कुच्छ बोले ही घूमा और लड़के से कहा,"हाँ!"
"डबल चार्ज लगेगा दोनो के लिए!" लड़का बार बार हमारी ओर देख रहा था...
"हुम्म... इस'से अच्च्छा तो 2 कमरे ही ले लेता हूँ..." इनस्पेक्टर ने कुच्छ सोच कर जवाब दिया....
"आपकी मर्ज़ी है साहब.. चाहे तीन ले लो! पर सबका ही डबल चार्ज लगेगा..." लड़के ने मुस्कुरकर कहा....
"रेट क्या है?" इनस्पेक्टर ने पूचछा....
"एक कमरे का एक घंटे का 1000!" उसने बताया....
"कमाल है यार... इतना तो पूरी रात का भी नही बनता...." इनस्पेक्टर ने उसको घूर कर देखा.. पर वो आराम से ही बात कर रहा था.. शायद वो बताना नही चाहता होगा कि वो इनस्पेक्टर है.....
"इस काम के लिए तो इतना ही रेट है साहब... अकेले होते तो पूरी रात का 600 ही लेते...!" उसने शराफ़त से कहा....
"ठीक है... कमरा दिखा दो!" इनस्पेक्टर ने कहा....
"आए मुन्ना!" नेपाली ने आवाज़ लगाई और दूसरे लड़के के आने पर बोला," साहब को 7 नंबर. दिखा दे...!"
"तुम यहीं रूको.." इनस्पेक्टर ने हमें कहा और दूसरे लड़के के साथ अंदर चला गया....
इनस्पेक्टर के जाते ही नेपाली ने हमारी ओर देख कर बत्तीसी निकाल दी... और कुच्छ देर बाद बोला," बुरा ना मानो तो.. एक बात कहूँ मेडम?"
मीनू ने तो शायद उसकी और देखा भी नही.. पर मेरी नज़रें उस'से मिल गयी...
"वो क्या है कि... यहाँ आने वाले कस्टमर्स..... नयी लड़कियों की डेमांड करते हैं... अगर.. आपका कोई कॉंटॅक्ट नंबर. हो तो.. सिर्फ़ 10 % पर में उनको आपका नंबर. दे दूँगा.....!" नेपाली ने कहा....
"शट अप यू बस्टर्ड!" मीनू ने घूर कर उसको गाली दी.. मेरी तो तब समझ में भी नही आया था कि ऐसी उस नेपाली ने क्या बात कह दी थी.... पर मीनू का तमतमाया हुआ चेहरा देख कर वो नेपाली सहम सा गया था.....
तभी इनस्पेक्टर आया और हमें अंदर बुलाकर ले गया.....
"हा.. तो बात वहीं से शुरू करते हैं, जहाँ ख़तम हुई थी.." कहकर इनस्पेक्टर ने एक लंबी साँस ली... वह कमरे में जाकर वहाँ रखी हुई दो कुर्सियों में से एक पर बैठ गया.. हूमें उसने अपने सामने बिस्तेर पर बैठने को कह दिया था.. मैं मीनू की बराबर में बैठी मानव के चेहरे की और देख रही थी....
"तुम दोनो ने कहा था कि तरुण उस रात 11 बजे तुम्हारे घर से गया है.. कहा था ना?" इनस्पेक्टर ने मीनू से सवाल किया....
मीनू कुच्छ देर चुपचाप बैठी रही.. फिर चेहरा नीचे किए हुए ही अपना सिर हिला दिया," ज्जी..."
"और ये झूठ है.. है ना?" इनस्पेक्टर ने टिप्पणी की....
हम दोनो सिर झुकाए बैठे रहे... किसी की भी बोलने की हिम्मत ना हुई....
"उस दिन तुम्हारे गाँव की किसी लड़की ने बताया था कि चौपाल में उसने 9:00 बजे के आसपास झगड़े की आवाज़ सुनी थी... पर मैं इस बात को लेकर आसवस्त नही था कि उनमें से एक तरुण ज़रूर होगा... इसीलिए मैं ये सोचकर चुप रहा कि हो सकता है कि तुम सच बोल रही हो और वहाँ झगड़ा करने वाले तरुण के अलावा कोई और हों... पर अब सब कुच्छ शीशे की तरह सॉफ है... तरुण की पोस्टमोरटूम रिपोर्ट ये कहती है कि उसका कत्ल 9:15 और 9:30 के बीच किया गया है....
इसका मतलब तुमने झूठ बोला... और ये बात छिपाने का एक ही कारण हो सकता है... तुम कातिल को बचाना चाहती हो.. और तुम्हे सब कुच्छ पता है... तुम्हारे ही कहने पर खून किया गया है...!" इनस्पेक्टर ने हम दोनो को घूरते हुए कहा...
मीनू उसकी बात सुनकर आँखों में आँसू ले आई और उसकी ओर देख कर बोली," ये.. सच नही है सर... मुझे कुच्छ नही पता.. भगवान की कसम!"
"तो झूठ बोलने की वजह?" इनस्पेक्टर पर उसके आँसुओं का हल्का सा प्रभाव पड़ता दिखाई दिया....
"ववो.. हम डरे हुए थे.... अंजू ने कहा था.. इसीलिए मैने भी वही कह दिया...!" मीनू ने सुबक्ते हुए कहा....
"और.... वो लेटर्स?" इनस्पेक्टर ने पूचछा....
मीनू ने इस बात का कोई जवाब नही दिया... वो सिर झुकाए बैठी रही.....
"इस बात को मामूली बात मत समझो मीनू! तरुण का खून हुआ है.. ये आँसू टपका कर तुम ना तो गिरफ्तारी से बच सकती हो.. और ना ही बेगुनाह शबित हो सकती हो... समझ रही हो ना मेरी बात... तरुण के पेट में एक दो बार नही.. पूरे 13 बार चाकू से वार किया गया है... सॉफ है कि किसी ने गहरी नफ़रत के चलते ऐसा किया है... क्यूंकी आम तौर पर जुनूनी कातिल ही ऐसा करते हैं...
गाँव भर में मैने पता किया.. तरुण उनकी नज़र में एक शरीफ लड़का था... फिर ऐसा जुनूनी तो कोई आशिक ही हो सकता है... और क्यूंकी तरुण का तुम्हारे साथ कुच्छ लेफ्डा था.. इसीलिए तुमने अपने किसी दूसरे आशिक़ से कह कर उसको जान से मरवा दिया... अब तक की कहानी तो यही कहती है.... तुम्हारा क्या कहना है...?" इनस्पेक्टर बोलने के बाद चुप होकर मीनू की ओर देखने लगा....
मीनू बिलख उठी..," मेरा... विश्वास कीजिए सर.. मेरा कोई आश्... मैं तो किसी से बात भी नही करती थी.. तरुण से भी मेरी सिर्फ़ दोस्ती थी.. और कुच्छ नही.. भगवान की कसम..."
"पर.. उन्न लेटर्स की भाषा तो कुच्छ और ही कहती है.. तुमने उसमें तो ये भी लिखा है कि तुम तरुण के साथ शारीरिक संबंध बनाने को तड़प रही हो.. और एक दूसरे लेटर में सॉफ सॉफ ये कहकर माफी माँगी है कि किसी लड़के के साथ तुमने नाजायज़ संबंध बनाए हैं... आज के बाद किसी दूसरे लड़के के साथ शारीरिक संबंध नही बनाओगी... वग़ैरह वग़ैरह.. और वो भी बहुत बहूदे शब्दों में.. भगवान की कसम खाकर...." इनस्पेक्टर ने बोला....
उसकी बात सुनकर मीनू का रोना और तेज हो गया...," वो सब.. पहले खुद उसने लिखे थे सर.. और मुझसे दूसरे कागज पर कॉपी करवाए थे.. मैने अपने पास से कुच्छ नही लिखा.. मैं मजबूर थी..."
"अच्च्छा! ऐसी क्या मजबूरी थी भला....?" इनस्पेक्टर ने व्यंग्य सा किया....
"आप समझ क्यूँ नही रहे... वो मुझसे नाराज़ होकर बातें करनी छ्चोड़ देता था... दूसरी लड़कियों के साथ घूमने लग जाता था...." मीनू सुबक्ते हुए बोली...
"तो तुम्हे क्या दिक्कत थी...? वो तो सिर्फ़ तुम्हारा दोस्त ही था... है ना!" इनस्पेक्टर बोला....
मीनू इस बात पर कुच्छ नही बोल पाई .. कुच्छ देर बाद इनस्पेक्टर ने ही बोलना शुरू किया...,"तुम जितनी चालाक बन'ने की कोशिश करोगी.. उतनी ही तुम्हे दिक्कत होगी.. तुमने जो कर दिया है, उसको आँसू दिखा कर तुम बच नही सकती.. चुपचाप सीधे रास्ते पर आ जाओ.. वरना मुझे भी टेढ़े रास्ते अख्तियार करने पड़ेंगे..." इनस्पेक्टर ने धमकी सी दी....
मीनू टूट सी गयी.. लग रहा था जैसे उसमें जान ही नही बची है..," हाँ.. मैं उस'से प्यार करती थी.. और ये भी समझती थी कि वो भी मुझसे उतना ही प्यार करता है.. पर मैने उसको कभी खुद को हाथ नही लगाने दिया.. इस बात से वो रोज़ रोज़ मुझसे नाराज़ हो जाता था... पर मैं उस'से बात किए बिना रह नही पाती थी.. और उसको मनाने की कोशिश करती थी... पर वो हमेशा यही शर्त रखता था.. उसके साथ रीलेशन बनाने की.. पर ये मुझे किसी कीमत पर मंजूर नही था.. मैने उसको और कुच्छ भी करवाने को बोला और उसने ये लेटर्स लिखवा लिए... मैने तब भी मना किया था.. पर वो कहने लगा कि इसका मतलब तुम्हे मुझ पर विश्वास ही नही है... बस इसी बात पर मैने उसने जो कुच्छ भी लिख कर मुझे दिया... मैने दूसरे कागज पर उतार कर उसको दे दिया..."
"चलो.. थोड़ी देर के लिए तुम्हारी ये बात ही मान लेता हूँ... उसके बाद क्या हुआ? उसने तुम्हारी ब्लॅकमेलिंग शुरू कर दी.. है ना?" इनस्पेक्टर बोला....
"हां.... उसने 3-4 दिन से ऐसा करना शुरू किया था... पर मैं किसी तरह उसको टालती रही... उस दिन पहली बार मैने लेटर्स के बदले उसकी बात मान लेने को कहा था... इसीलिए वो 'लेटर्स' लेने अपने घर चला गया.. मैं सोच रही थी कि अगर उसने लेटर्स पहले ही वापस कर दिए तो उसकी बात नही मानूँगी... मुझे उस'से नफ़रत हो गयी थी... पर 'वो' लौट कर आया ही नही... 11 बजे की बात अंजू ने इसीलिए आपको कही थी कि कहीं मेरे पापा इस'से ये ना पूच्चें कि वो पढ़ाए बिना क्यूँ चला गया वापस..." कहकर मीनू चुप हो गयी.....
"तुम्हे पता होगा कि वो 'लेटर्स' अब मेरे पास हैं... तुम उन्हे वापस भी लेना चाहती होगी.. है ना?" इनस्पेक्टर का लहज़ा अचानक बदल गया...
मीनू ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया....
"लड़का ईमानदार था.. अपने वादे का पक्का.. तुम्हारी तरह नही कि सौदा करो और बाद में मुकर जाओ.. वो सच में लेटर्स लेकर आया था.. उसकी जेब से मुझे ये लेटर्स मिले.... वो बात अलग है कि उसने इन्न लेटर्स की कॉपी करा रखी हो.... जैसे मैने भी नही कराई है अभी तक.. हा हा हा... क्या समझी....?" इनस्पेक्टर ने कहने के बाद मीनू को देख कर अपने होंटो पर जीभ फेरी...
"सर.. मुझे सच में कुच्छ नही पता.. अब मैने आपको सब कुच्छ सच सह बता दिया है....!" मीनू ने निराशा भरी नज़रों से इनस्पेक्टर को देख कर कहा....
"ठीक है.. मैने मान ली.. अब इन्न लेटर्स का भी मैं क्या करूँगा...? तुम्हे वापस चाहिए ना?" इनस्पेक्टर कहकर मुस्कुराया...
"ज्जी.. सर.. आप इन्हे जला दो.. प्लीज़.. मेरे घर वालों को इनका पता चल गया तो वो जीते जी मर जाएँगे..." मीनू ने प्रार्थना की....
"ऐसे ही... बिना कुच्छ लिए दिए...! कुच्छ तो रहम करो मुझ पर.... मैने भी बड़ी मेहनत की है.. यहाँ 2-4 हज़ार रुपए भी खर्च करूँगा... मेरा भी तो कुच्छ बनता है ना..." इनस्पेक्टर ने कहा....
"ज्जी.. क्या मतलब?" मीनू ने पूचछा....
"ओह.. अब इतनी भी भोली मत बनो.. अंजू को बाहर भेज दो और......" इनस्पेक्टर ने अपना सिर खुज़ाया...," और कपड़े निकाल दो!"
मीनू सुनते ही भय से काँपने सी लगी.. ये डर उसके 2 दिन पहले से ही सता रहा था.. मैने मीनू की आँखों में देखा और इशारों ही इशारों में उस'से पूचछा कि क्या करूँ... उसने अपने काँपते हुए हाथ से मुझे कसकर पकड़ लिया,"ययए क्या कह रहे हो... आप?"
"अब दोबारा बोलना पड़ेगा क्या? जा लड़की.. बाहर घूम ले थोड़ी देर.." इनस्पेक्टर ने गुर्रा कर कहा तो मेरी वहाँ बैठे रहने की हिम्मत नही रही.... मैने बेड से नीचे उतर कर मीनू से अपनी बाँह छुड़ाने लगी...
"नही अंजू!" मीनू ने दूसरे हाथ से भी मुझे पकड़ लिया और रोनी सूरत बना कर बोली," तत्तूम.. कहीं मत जाओ प्लीज़..."
"सुना नही क्या तुमने?" इनस्पेक्टर दोबारा चिल्लाया....
"ययए.. जाने नही दे रही सर.. इसस्सकॉ डर लग रहा है.." मैने भोला सा मुँह बनाकर इनस्पेक्टर की ओर देखा....
"ठीक है फिर.. तुम यहाँ बैठकर तमाशा देखना.. अपना काम तो मुझे हर हाल में करना है.. वरना इसके तीनो लेटर्स केस के साथ लगा कर सस्पेक्टेड की लिस्ट में डाल दूँगा... काट'ती रहेगी कोर्ट के चक्कर...." इनस्पेक्टर एक बार खड़ा हुआ फिर वापस बैठ गया.....
"नही सर.. नही.. प्लीज़.. मुझे माफ़ कर दो!" मीनू ने मुझे छ्चोड़कर इनस्पेक्टर की तरफ दोनो हाथ जोड़ लिए और गिड़गिदने लगी....
"माफ़ कर दो? तुमने मेरा क्या बिगाड़ा है..? ये तो आपस की सौदेबाज़ी है.. या तो मेरी बात मान लो.. वरना मुझे अपनी ड्यूटी करने दो.. जाओ अगर जाना चाहती हो!" इनस्पेक्टर मुस्कुराता हुआ पैर के उपर पैर चढ़ा कर बैठ गया......
"मैं बर्बाद हो जाउन्गि सर... कुच्छ नही बचेगा मेरे पास.... प्लस्सस्सस्स.. मुझे लेटर दे दो और हमें जाने दो..." मीनू लगातार आँसू बहा रही थी.. मेरी समझ में नही आ रहा था कि 'वो' आख़िर इतने अच्छे मौके को हाथ से क्यूँ जाने दे रही है.... मैने मीनू के आँसू पौंचछते हुए इनस्पेक्टर से कहा," सर.. आप इसको ना रुलाइए.. आपको जो करना है.. मेरे साथ कर लीजिए.. पर प्लीज़.. मेरी दीदी को छ्चोड़ दीजिए.... इसको लेटर दे दीजिए...."
मैने जिस अंदाज में अपनी कसक का इज़हार किया था शायद एक बार तो दिलीप कुमार जी भी होते तो मेरी पीठ थपथपाते... लहज़ा भावुक होने के कारण मेरी आँखों में सचमुच ही आँसू आ गये थे... पर बदले में मुझे तब भी इनस्पेक्टर की डाँट ही खाने को मिली," यहाँ रहना है तो चुप चाप अपना मुँह बंद करके बैठी रह.. वरना भगा दूँगा यहाँ से.. समझ गयी?"
मुझे ना उगलते बना ना निगलते.. मैं मायूस होकर वापस बिस्तेर पर बैठ गयी...
"इधर आ मेरे पास!" इनस्पेक्टर ने हमारी तरफ उंगली से इशारा किया...
"कौन मैं?" मैने अपनी खुशी को च्छूपाते हुए कहा....
"कहा ना तू चुप बैठ जा! अब तूने एक शब्द भी बोला तो कान के नीचे लगाउन्गा एक..." इनस्पेक्टर ने मुझे फिर धमका दिया.. मेरी तो उम्मीद ही ख़तम हो गयी...
उसने एक बार फिर उंगली से ही मीनू की और इशारा करते हुए कहा," सुनाई नही दे रहा क्या? खड़ी होकर इधर आ...!"
मीनू इस बार वहाँ बैठे रहने लायक हिम्मत नही जुटा पाई... मरे हुए कदमों से मेरा हाथ पकड़े हुए खड़ी हुई और फिर रेंगती हुई सी उसके पास जाकर खड़ी हो गयी....
इनस्पेक्टर ने मीनू का हाथ पकड़ कर अपनी और खींच लिया," समस्या क्या है तुम्हारी? मेरे साथ एक बार हुमबईस्तेर होकर तुम्हे तुम्हारे लेटर्स मिल जाएँगे और हमेशा के लिए इस झंझट से च्छुतकारा भी.. फिर भी मैं तुम्हारे उपर छ्चोड़ रहा हूँ... अगर जाना चाहती हो तो जाओ.. ऐसे रो क्यूँ रही हो?"
मीनू कुच्छ देर चुपचाप खड़ी सुबक्ती रही.. फिर अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश करती हुई बोली," हमें जाने दो सर.. मैं ऐसा नही कर सकती... हमें यहाँ से जाने दो...!"
इनस्पेक्टर ने उसका हाथ नही छ्चोड़ा.. कुच्छ देर उसकी और मुस्कुराता रहा फिर अपनी पिच्छली जेब में हाथ डालकर कुच्छ कागज निकाले और मीनू की हथेली में थमा दिए..," ये लो तुम्हारे लेटर्स! और खुशी खुशी जाओ... मुझे तुम्हारे अंदर का सच जान'ने के लिए इतनी असभ्या भाषा का इस्तेमाल करना पड़ा.. इसके लिए सॉरी..! पर वो ज़रूरी था.. जब तक मैं तुम्हारी तरफ से निसचिंत नही हो जाता.. मेरा दिमाग़ बार बार आकर तुम पर ही अटकता रहता... मेरे दिल में अब तक यही बात थी कि तुम इतनी शरीफ नही हो जितनी शकल से दिखती हो.... पर मैं ग़लत था.. तुम वैसी ही हो जैसी दिखती हो.... ऐसी ही रहना!" इनस्पेक्टर ने उसका हाथ छ्चोड़ दिया...
मैं हैरान थी.. पर मीनू को जाने क्या हुआ.. वो अचानक फफक फफक कर रोने लगी...
"अर्रे अब क्या हुआ? सॉरी बोला ना मैने.. सच में मैं इतना बुरा नही हूँ, जितना तुमने समझ लिया था... लड़की की इज़्ज़त क्या होती है.. मैं अच्छि तरह समझता हूँ.. पर तहकीकात करने का मेरा तरीका थोडा जुदा है.. उसके लिए माफ़ करना.. अगर मुझे बिना सोचे समझे कुच्छ करना होता तो मैं तुम्हे यहाँ नही बुलाता.. तुम्हारे घर वालों के सामने ही गाँव वालों को इकट्ठा करके तुमसे सवाल करता.... और फिर तुम्हे कस्टडी में लेना भी पोलीस के लिए मुश्किल नही था... वहाँ ये सब करना आसान होता ना? पर मैने ये सब तुम्हारी इज़्ज़त को बरकरार रखने के लिए ही करना पड़ा... " इनस्पेक्टर के चेहरे पर ये सब बोलते हुए एक अलग ही नूर चमक रहा था," अभी बाहर तक मेरे साथ ही चलना.. अब तुम्हे और तंग नही करूँगा... हां.. किसी तरह की कोई जानकारी तुम्हारे पास हो तो बेझिझक मुझे बता देना... एक मिनिट.. ये तरुण के फोन की कॉल डीटेल है.. एक बार इस पर नज़र मार लो.. कुच्छ दिमाग़ में आए तो बताना...." कहकर उसने लिस्ट मीनू के हाथों में दे दी....
मीनू मूक सी बनी इनस्पेक्टर की आँखों में ही देखती रही.. लिस्ट को अपने हाथ में पकड़े....
"क्या हुआ अब?" इनस्पेक्टर ने उसकी नाक पकड़ कर खींच ली.. और हँसने लगा...
"थॅंक्स... सर!" मीनू ने इतना ही कहा और अपनी नज़रें झुका ली...
"मानव! मानव बोलॉगी तो ज़्यादा अच्च्छा लगेगा मुझे..." इनस्पेक्टर ने कहा और फिर से मुस्कुरा दिया...
मीनू ने कोई जवाब नही दिया... वो खड़ी खड़ी लिस्ट को देखने लगी.. फिर मानव की तरफ सरक कर उसको लिस्ट दिखाते हुए बोली..," शायद ये सोनू का नंबर. है... इसके अलावा मैं किसी नंबर. को नही जानती...."
"सोनू कौन?" इनस्पेक्टर ने पूचछा....
मीनू ने मुँह पिचका कर कहा..,"उसका दोस्त है.. पर मुझे पहले नही पता था कि वो दोनो इतने गहरे दोस्त हैं...."
"हुम्म... इनस्पेक्टर ने अपना मोबाइल निकाला..," अभी कहाँ होगा ये...?"
"पता नही सर.. गाँव में होगा या फिर कॉलेज आया होगा..." मीनू ने जवाब दिया...
"ओके.. ट्राइ करके देखते हैं..." उसने कहा और नंबर. मिला दिया....
अचानक मेरी छातियो में करेंट सा दौड़ गया... तभी मुझे ध्यान आया.. ढोलू का फोने 'वहीं' है... मैने उसको वहीं छाती में दबा लिया....
"नही.. उठा नही रहा..." इनस्पेक्टर ने कहा और फोन को देखने लगा... एक बार फिर मेरी छातियो में कंपन शुरू हो गयी... मैं कुच्छ सोच कर डर गयी.. पर मैने अपने आवेगो को उस वक़्त काबू में रखना ही ठीक समझा....
"आओ चलें...!" कहकर इनस्पेक्टर ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया....
मीनू ने मेरी और देखा और मुश्कूरकर खुशी के आँसू लुढ़का दिए.. मेरा हाथ पकड़ा और हम भी इनस्पेक्टर के पिछे पिछे हो लिए....
होटेल से बाहर निकलने के बाद मानव ने मुस्कुरकर हमारी और देखा और कहा," जाओ!"
इनस्पेक्टर पलटा ही था कि मीनू ने उसको आवाज़ लगा दी,"हेलो.. सर!"
"हां.. बोलो?" इनस्पेक्टर पलटा और वापस आकर बोला....
"वो.. हमें आपको कुच्छ बताना था... आप कहो तो बाद में फोन पर...." मीनू ने हड़बड़ा कर कहा...
"अगर तुम्हे जल्दी नही है तो अभी बता दो... तरुण से रिलेटेड है क्या?" इनस्पेक्टर ने पूचछा....
"जी... अभी बता देते हैं.... पर.. यहाँ... सर, आप कहीं और नही चल सकते क्या?" मीनू बोली...
"क्यूँ नही? पर मुझे सर कहना बंद करो.. मुझे बुरा लग रहा है.. हमारा कॉलेज एक ही था ना...!" इनस्पेक्टर ने मुस्कुरकर कहा और मीनू की तरफ हाथ बढ़ा दिया...
मीनू ने शर्मकार मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फिर उसकी आँखों से थोड़ा सा नीचे देखते हुए उसका हाथ पकड़ लिया,"ओके, मानव जी.. हे हे हे..."
क्रमशः........................
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