Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:30 AM,
#28
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--21

गतान्क से आगे...............

पर एक से शायद उसको सब्र नही हो रहा था... एक हाथ मेरी कमर के पिछे ले जाकर उसने मेरे कुल्हों पर रखा और नीचे से मुझे अपनी और खींचते हुए उपर से पिछे की और झुका लिया.. अब उसका पिछे वाला हाथ मुझे सहारा देने के लिए मेरी गर्दन पर था और दूसरे हाथ से उसने मेरी दूसरी चूची को किसी निरीह कबूतर की तरह दबोच लिया.....

मैं भी अधमरी सी होकर बड़बड़ाने लगी थी... मुझ पर अब 'प्यार का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा था और मैं संदीप के अलावा इस दुनिया का सब कुच्छ भूल चुकी थी... मीठी मीठी सिसकियाँ लेती हुई मैं आनंदित होकर रह रह कर सिहर सी जा रही थी.... मेरी हर सिसकी के साथ उसको मेरी रज़ामंदी का आभास होता और 'वो' और भी पागलकर जुट जाता....

करीब 5-6 मिनिट तक अपनी अल्हड़ मस्त चूचियो को बारी बारी से चुस्वाते रहने के बाद मैं पिछे झुकी हुई होने के कारण तंग हो गयी और उसके कॉलर पकड़ कर उपर उठने की कोशिश करने लगी... वह शायद मेरी दिक्कत समझ गया और मेरी चूची को मुँह से निकाल कर मुझे सीधी बैठा लिया...

मेरी चूचियो में जैसे खून उतर आया था और दोनो ही चूचिया संदीप के मुखरास (थूक) से सनी हुई थी... मैं मस्त हो चली थी.. मैने शरारत से उसकी आँखों में देखा और बोली," दिल भर गया हो तो मैं कुच्छ बोलूं...?"

उसने एक एक बार मेरी दोनो चूचियो के दानो को अपने होंटो में लेकर 'सीप' किया और फिर नशीले से अंदाज में मेरी ओर देख कर बोला..,"बोलो ना जान!"

मुझे उसके मुँह से ये सब सुन'ना बड़ा अच्च्छा लगा और मैने प्रतिक्रिया में तुरंत आगे होकर उसके होंटो को चूम लिया,"मुझे भी चूसना है....!" मैने कहा....

"क्या?" उसकी समझ में शायद आया नही था....

"ये" मैने लपक कर पॅंट के बाहर अकड़ कर झटके खा रहा उसका 'लिंग' पकड़ लिया...

"ओह्ह.. तुम्हे पता है कि लड़कियाँ इसको चूस्ति भी हैं?" उसने थोडा अचरज से कहा...

"नही... पर मेरा भी कुच्छ चूसने का दिल कर रहा है.. तुम्हारे पास मेरी तरह चूचिया तो हैं नही.. चूसने के लिए.. तो सोचा यही चूस लेती हूँ... आइस्क्रीम की तरह चूसूंगी.. हे हे हे...." मैने कहा और खिलखिला दी...

"आ जाओ.. नीचे घुटने टेक लो..." वा खुश होकर बोला.... मैने तुरंत वैसे ही किया और उसकी जांघों के उपर से हाथ निकाल कर उसकी कमर को पकड़े हुए उसकी दोनो टाँगों के बीच बैठ गयी.... मुझे 'पहले पेपर' वाली घटना याद आ गयी....

"एक मिनिट रूको..."कहकर वह उठा और अपनी पॅंट खींच कर निकाल दी और वापस मुझे अपनी टाँगों के बीच लेकर बैठ गया...

वह सोफे पर सरक कर इस तरह आगे आ गया था कि उसके सिर्फ़ नितंब ही सोफे पर टीके हुए थे... उसका लिंग पॅंट के बंधन से आज़ाद होने के बाद और भी बुरी तरह से फुफ्कारने लगा था... अंडरवेर के बीच वाले छेद से उसने पूरा का पूरा लिंग (उसके घुंघरुओं समेत) बाहर निकाल कर मेरे सामने कर दिया..," लो.. ये तुम्हारा ही है जान.. जी भर कर चूसो!"

मैने शरारत से उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके लिंग को जड़ से मुट्ठी में पकड़ा और अपनी जीभ बाहर निकालकर उसके टमतरी सूपदे पर छलक आई एक और बूँद चाट ली.. वह सिहर उठा..,"अयाया.. ऐसे मत करो.. गुदगुदी हो रही है.. मुँह में ले लो...!"

"क्यूँ? मेरी मर्ज़ी है.. मुझे भी गुदगुदी हो रही थी... तुमने छ्चोड़ा था क्या मुझे.." मैं शरारत से बोली..,"अब ये मेरा है.. जैसे जी चाहेगा वैसे चूसूंगी....!"

"ओह्ह.. तो बदला ले रही हो.. ठीक है.. कर दो कत्ल.. कर लो मनमर्ज़ी..!" उसने आँख मार कर कहा.. तो मैं मुस्कुराइ और फिर से उसके लिंग को गौर से देखने लगी.....

"अमुन्ह्ह्ह्ह्ह" मैने उसके सूपदे पर अपने होंटो से इस तरह चुम्मि ली जैसे थोड़ी देर पहले उसके होंटो पर ली थी... उत्तेजना के मारे वह अपने नितंबों को हूल्का सा उपर उठाने पर मजबूर हो गया," इसस्शह"

"क्या हुआ?" मुझे उसकी हालत देख कर मज़ा आ रहा था...

"कुच्छ नही... बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा है.. इसीलिए काबू नही रख पाया....."वह वापस बैठता हुआ बोला....

मैने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर उसके पेट से मिला दिया और लिंग की जड़ में लटक रहे उसके घूंघारूओं को जीभ से जा च्छेदा...

"आअहह.. कैसे सीखा तुमने..? तुम तो ब्लू फिल्मों की तरह तडपा तापड़ा कर चूस रही हो... जल्दी ले लो ना!" उसने अपनी आँखें बंद कर ली और पिछे सोफे पर लुढ़क गया... शायद अब वह मुझसे जवाब सुन'ने की हालत में रहा ही नही था...

उसके पिछे लुढ़क जाने की वजह से अब उसका लिंग किसी तंबू की तरह छत की और तना हुआ था... बड़ा ही प्यारा दृश्या था... शायद जिंदगी भर 'उसको' भुला ना सकूँ... मैं आगे झुकी और अपनी जीभ निकाल कर जड़ से शुरू करके सूपदे तक अपनी जीभ को लहराती हुई ले आई.. और उपर आते ही फिर से सूपदे को वैसा ही एक चुम्मा दिया..... वह फिर से उच्छल पड़ा...,"ऐसे तो तुम मेरी जान ही ले लॉगी... आधे घंटे पहले ही निकाला था.. अब फिर ऐसा लग रहा है कि निकलने वाला है...."

मुझे उसकी नही.. अपनी फिकर थी... मैं खुद भी उसकी गोद में बैठे बैठे 2 बार झाड़ चुकी थी... और मुझे अब शरारत से उसके लिंग को गुदगुदाना अच्च्छा लग रहा था.... मैने एक बार फिर से उसके सूपदे को अपने होंटो से दूर करते हुए उसके लिंग को बीच से अपना मुँह पूरा खोल कर दाँतों के बीच दबोच लिया.. और हल्क हल्क दाँत उसकी मुलायम त्वचा में गाड़ने शुरू कर दिए....

"ऊओ हू हूओ.. आआआहह.. तुम इसको काट कर ले जाओगी क्या? क्यूँ मुझे तडपा रही हो..... जल्दी से चूसना ख़तम करो... बिना चोदे तुम्हे आज जाने नही दूँगा यहाँ से...." उसने पहली बार अश्लील शब्द का इस्तेमाल किया था... उसके मुँह से 'ये शब्द सुनकर मैं निहाल ही हो गयी...

मैने उसके लिंग को छ्चोड़ा और बोली," क्या किए बिना नही जाने दोगे?"

"श.. कुच्छ नही.. ऐसे ही मुँह से निकल गया था... मुझे लग रहा है कि मैं होश में ही नही हूँ आज...."

"नही.. बोलो ना! क्या किए बिना नही जाने दोगे मुझे..."मैं शरारत से मुस्कुराते हुए बोली....

"तुम्हे अच्च्छा लगा क्या? वो बोलना?" उसने मेरे गालों को अपने हाथों में लेकर बोला....

"हाँ..." मैने नज़रें झुका कर कहा और उसके 'पप्पू' जैसे सूपदे को अपने होंटो में दबा कर मुँह के अंदर ही अंदर उस पर जीभ फिराने लगी...

वह मस्त सा हो गया... मुझे जितना आनंदित होता 'वो दिखाई देता.. उतना ही ज़्यादा मज़ा मुझे उसके लिंग को छेड़ने में आ रहा था......

उसने अपने दोनो हाथ अपने कानो पर ले गया...," मर जाउन्गा जान.. आआआः... मुझे ये क्या हो रहा है... मा कसम.. तुझे चोदे बिना नही छ्चोड़ूँगा मैं... आज तेरी चूत 'मार' के रहूँगा... कितने दीनो से सपने देखता था कि किसी की चूत मिले.. और आज मिली तो ऐसी की सोच भी नही सकता था.... तेरी चूत मारूँगा जान.. आज तेरी चूत को अपने लौदे से फाड़ डाअलूँगा.... आआअहहाा... इसस्स्स्स्स्स्शह"

वो जो कुच्छ भी बोल रहा था.. मुझे सुनकर बड़ा मज़ा आ रहा था.... मैं उसके लिंग को अपने मुँह में लेकर उपर नीचे करती हुई चूस रही थी... जब उसका लिंग मेरे मुँह में अंदर घुसता तो उसकी आवाज़ कुच्छ और होती थी और जब बाहर आता तो कुच्छ और.... उसके लिंग को चूस्ते हुए मेरी लपर लपर और पागलों की तरह बड़बड़ा रहे संदीप की सिसकियों से हम दोनो और ज़्यादा मदहोश होते जा रहे थे...

"बस अब बंद करो जान... निकलने ही वाला है मेरा तो..." उसने अपने लिंग को मेरे मुँह से निकालने की कोशिश करते हुए कहा....

"बस दो मिनिट और..." मैने लिंग मुँह से निकाल लिया उसको बराबर से चूमने चाटने लगी......

"ओह्ह्ह... मर जाउन्गा जाअँ.. क्यूँ इतना तडपा रही हो.. मान जाओ ना..." संदीप ने मेरे दोनो कंधे कसकर पकड़ लिए और जैसे अचानक ही उसके हाथ अकड़ से गये... उसके लिंग को चाटने में खोई हुई मुझको अचानक उसकी नशों में उभर सा महसूस हुआ और जब तक मैं समझती.. उसके लिंग से निकल कर कामरस की तीन बौच्चरें मेरी शकल सूरत बिगाड़ चुकी थी.. पहली आकर सीधी मेरी आँख के पास लगी.. जैसे ही हड़बड़ा कर मैं थोड़ी पिछे हटी.. दूसरी मेरे होंटो पर और मेरे उठने से पहले गाढ़े रस की एक बौच्हर मेरी बाईं चूची को गिलगिला कर गयी...

"अफ.." मैने खड़ी होकर अपनी आँख से उसका रस पौंचछते हुए देखा... उसका लिंग अब भी झटके खा रहा था और हर झटके के साथ लगातार धीमी पड़ती हुई पिचकारियाँ निकल रही थी.....

"सॉरी जान... मैने तुम्हे पहले ही बोला था कि छ्चोड़ दो... मेरा निकलने वाला है..." संदीप मायूस होकर बोला....

मैने अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे होंटो पर लगे उसके रस को चाट लिया और मुस्कुराते हुए बोली," कोई बात नही... पर इसको बैठने मत देना...!" उसके रस की बात कुच्छ अलग ही थी... 'वो' वैसा नही था जैसा मैने स्कूल में चखा था... उसकी अजीब सी गंध ने मुझे उसको जीभ से ही सॉफ करने पर मजबूर कर दिया.... होंटो को अच्छि तरह सॉफ करने के बाद मैं मुस्कुराइ और फिर से उसकी जांघों के बीच बैठ गयी......

संदीप का लिंग अब धीरे धीरे सिकुड़ने लगा था.. जैसे ही मैने उसको अपने कोमल हाथों में लिया; उसमें हुलचल सी हुई और उसका सिकुड़ना वहीं रुक गया..

"ऐसे तो बड़ा मासूम सा लग रहा है.." मैं उसको हाथ में पकड़े उपर नीचे करती हुई संदीप की आँखों में देख कर शरारत से मुस्कुराइ...

"ये सच मासूम ही है अंजू.. आज पहली बार किसी लड़की के हाथों में आया है.. और 'वो' जन्नत तो इसने कभी देखी ही नही है.. जिसके लिए ये फुदकता रहता है..." संदीप ने मेरी चूची को पकड़ कर हूल्का सा हिलाया.. मेरे अरमान थिरक उठे...

"जन्नत? कैसी जन्नत?" मैं जानबूझ कर बोली...

"वोही... लड़की की...."कहकर वो मुस्कुराने लगा...

"लड़की की क्या? ... खुल कर बोलो ना...!" जैसे ही उसने मेरे दानो को छेड़ना शुरू किया.. मैं तड़प उठी... लिंग का आकार फिर से बढ़ने लगा था... मैने पूरा लेने के चक्कर में अपने होन्ट खोले और उसका सारा लिंग 'खा' गयी...

"आअहह... तुमने.. ज़रूर पहले भी ऐसा किया है अंजू.. लगता नही कि तुम पहली बार कर रही हो... आआहह..." संदीप सिसक कर बोला...

मैं रूठ कर खड़ी हो जाना चाहती थी.. पर मेरी 'तालू' को गुदगुदते हुए लगातार भारी होते जा रहे 'लिंग' की मस्तानी अंगड़ाई ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं चुप चाप बैठी अपने मुँह में उसके 'नन्हे मुन्ने' को 'जवान' होता हुआ महसूस करती रहूं... उसका लिंग 'जड़' तक मेरे मुँह में छिपा हुआ था.. और उसके घुंघरू मेरी थोड़ी से सटे हुए लटक रहे थे जिन्हे मैने अपनी हथेली में च्छुपाया हुआ था....

लिंग के आकार में बढ़ते रहने के साथ ही संदीप की सिसकियाँ मेरे कानो में सुनाई देने लगी.. कुच्छ पल बाद ही 'वह' इतना बढ़ गया कि मेरी 'तालू' से आड़ जाने के बाद बड़ा होकर बाहर निकलने लगा.. और उसके घुंघरू मेरी तोड़ी से दूर जाने लगे....

"अंदर ही रखो ना जान... अंदर मज़ा आ रहा है..." संदीप ने तड़प कर मेरे सिर को पिछे से पकड़ लिया...

चाहती तो मैं भी यही थी.. पर क्या करूँ.. उसकी लंबाई के लायक मेरे मुँह में जगह कम होती जा रही थी... मैं अपनी नज़रों को अपनी नाक की नोक पर टिकाए बेबस सी उसको बाहर आते देखती रही.. मोटाई भी इतनी बढ़ गयी थी की मुझे अपने होंटो को.. जितना हो सकती थी.. उतना खोलना पड़ा....

अचानक संदीप को जाने क्या सूझा.. मेरे सिर को पिछे से तो वो पहले ही पकड़े हुए था.. ज़ोर लगाकर मेरे सिर को आगे की तरफ खींच लिया...

"गगग्गगूऊऊऊऊग़गगूऊऊऊऊवन्न्‍न्

णनूूग़गगूऊऊ" मेरे हलक से सिर्फ़ यही आवाज़ निकल पाई... उसके तेज़ी से झटका मारते ही उसका लिंग सीधा जाकर मेरे गले में फँस गया... मेरी आँखें बाहर निकलने को हो गयी.. मैने लचर होकर अपने हाथ उठा कर उसको छ्चोड़ देने का इशारा किया....

"आआआआआहह..... क्या मज़ा था..." संदीप ने कहकर आँखें खोली और मेरी आँखों में पानी देख कर बोला..,"क्या हुआ जान...?"

मैने खड़ी होकर अपने आँसू पौन्छे.. और मेरे थूक में बुरी तरह गीले हो कर टपक से रहे उसके लिंग को देखते हुए मुँह बनाकर बोली..," हुंग! क्या हुआ!.. मेरा दम घुट जाता तो?"

"अर्रे.. ऐसे किसी का दम नही घुट'ता.. पहली बार लिया है ना... इसीलिए अजीब लगा होगा..."संदीप मासूमियत से बोला....,"अच्च्छा सॉरी... चलो ना.. अब सेक्स करें...?"

मेरी चिड़िया भी तब तक तीसरी बार रस उगलने के लिए तैयार हो रही थी...,"नही.. पहले वही बोलो.. जो तब बोल रहे थे..." मैं मचल कर एक बार फिर उसकी गोद में जा चढ़ि... मेरीचूचियो को अपनी आँखों के सामने रसीले संतरों की तरह लटक'ते देख वो एक बार फिर से बावला सा हो गया.. दोनो चूचियो को अपने हाथों में दबोच कर उनके गुलाबी दानों को घूरता हुआ बोला...,"सब कुच्छ बोल दूँगा.. पर काम शुरू होने के बाद..." उसने कहा और मेरे दानो को अपने दाँतों से हौले हौले कुतरने लगा.....

अचानक उसने अपने एक हाथ को आज़ाद करके मेरी सलवार के नाडे को पकड़ लिया.. और चूचियो से मुँह हटा कर बोला," खोल दूं ना?"

"नही!" मैने गुस्से से मुँह बना कर कहा...

"क्यूँ क्या हुआ?" उसके चेहरे का अचानक रंग सा उड़ गया....

"अर्रे सारे 'काम' दूसरे से पूच्छ कर करते हो क्या..? मैं चिड कर बोली और उसकी जांघों के दोनो और घुटने टीका कर उपर उठ गयी.. मेरी छ्होटी सी नाभि उसकी आँखों के ठीक सामने आ गई....

"ओह्ह.. हे हे हे... मैं तो बस ऐसे ही..."उसने थोड़ा झेंप कर बोला और मेरा नाडा अपनी ओर खींच लिया... हुल्की सी 'गाँठ खुलने की आवाज़ हुई और मेरी सलवार ढीली हो गयी.... शुक्रा है उसने मेरी सलवार को उपर ही पकड़ कर ये नही पूचछा..," नीचे खिसक जाने दूँ क्या?"

जैसे ही उसने नाडा खींच कर छ्चोड़ा... मेरी सलवार नीचे सरक कर मेरी जांघों में फँस गयी... बाकी काम पूरा करने में उसने एक सेकेंड भी नही लगाया... झट से मेरी सलवार को खींच कर घुटनो तक नीचे सरका दिया....

मेरी नज़रें संदीप की आँखों पर थी और उसकी आस्चर्य से फटी हुई सी आँखें मेरी जांघों में फाँसी हुई मेरी सफेद कछी पर... योनि के निचले हिस्से के बाहर कछी गीली हो चुकी थी.. और शायद कछी का रंग भी थोड़ा बदला हुआ था...

उसकी आँखें किसी नन्हे बच्चे के समान चमक उठी.. अपने हाथों से उसने मेरे नितंबो को कसकर पकड़ा और थोड़ा झुक कर कछी के उपर से ही एक प्यारा सा चुंबन ले लिया.... "आआअहह" मेरा बदन तृष्णा के मारे जल उठा.. और मैने भावुक होकर उसका सिर पकड़ लिया....

उसने नज़रें उपर करके मेरी नशीली हो चुकी आँखों में झाँका.. शायद कछी को नीचे करने की पर्मिशन ले रहा था.... जैसे ही मैं मुस्कुराइ उसने मेरी कछी में उपर से हाथ डाला और 'अपनी जन्नत' को अपनी नज़रों के सामने नंगी कर लिया.....

"वाआआः..." उसके मुँह से अपने आप ही निकल गया और बेदम सा होकर कुच्छ पल के लिए उसकी आँखों की पुतलियान सिकुड गयी... ठीक वैसे ही जैसे अंधेरे से अचानक प्रकाश में जाने पर सिकुड जाती हैं... उसकी मनचाही मुराद पूरी हो गयी... उसको अपनी मंज़िल का ज्योति बिंदु दिखाई दे गया...

वह आँखें फाडे स्थिर सा होकर मेरी चिड़िया को देखता ही रह गया.... देखता भी क्यूँ नही...? आख़िर उसने पहली बार 'ऐसी' नायाब चीज़ देखी थी जिसके लिए जाने कितने ही विश्वामित्रा स्वर्ग के सिंहासन तक को ठोकर मार देते हैं.... जिसके लिए मर्द 'भूखे' कुत्ते की तरह जीभ लपलपता घूमता रहता है.... 'जो' घर घर में होती है... पर सभ्य समाज में जिसको नाजायज़ तरीके से पाना 'आवरेस्ट' पर चढ़ने से कम नही.....

जिसके लिए दुनिया भर की अदालतों ने एक ही क़ानून बना रखा है... जिसके पास 'योनि' है.. उसकी बात पहले सुनी जाएगी.. उसकी बात पर ही पहले विश्वास किया जाएगा... 'योनि' को अपने साथ हुई ज़बरदस्ती को साबित करने के लिए कोई जखम दिखाने की ज़रूरत नही... सिर्फ़ 'योनि वाली' को एक इशारा करना पड़ेगा और 'भोगने' वाले की 'उम्रकैद' पक्की.... भला सर्वत्र विद्यमान होकर भी दुर्लभ ऐसी चीज़ को बिना तपस्या किया इतनी आसानी से; अपनी मर्ज़ी से; अपनी आँखों के सामने फुदकट्ी हुई देख कर कोई पागल नही होगा तो क्या होगा....

और योनि भी कोई ऐसी वैसी नही... जैसे इंपोर्टेड 'माल' हो... जैसे 'गहरे' सागर की कोई बंद 'सीप' हो जिसके अंदर 'मोती' तो मिलेगा ही मिलेगा.... जैसे तिकोने आकर में कोई माचिस की डिबिया हो.. छ्होटी सी.. पर बड़ी काम की और बड़ी ख़तरनाक... चाहे तो घर के घर जला कर खाक कर दे... चाहे तो अपने प्यार की 'दो' बूँद टपका कर किसी के घर को 'चिराग' से रोशन कर दे....

"ऐसे क्या देख रहे हो?" मैं मचल कर बोली....

"क्कुच्छ नही.... ययएए तो.. बड़ी प्यारी है..." योनि के उपरी हिस्से पर उगे हुए हल्क हल्क बालों को प्यार से सहलाते हुए वह बोला...

"हां.. जो भी है.. जल्दी करो ना !" मैं तड़प कर गहरी साँस लेती हुई बोली....

"म्मैने तो कभी सपने में भी नही सोचा था... इसके होन्ट तो उतने ही प्यारे हैं जीतने तुम्हारे उपर वाले...."

"होन्ट?" मैने तब पहली बार 'योनि' की फांकों को 'होन्ट' कहते किसी को सुना था... मैं थोड़ी नीचे झुक कर देखती हुई बोली...

"हां... ये..." कहते हुए संदीप ने योनि की एक फाँक को अपनी चुटकी में भर लिया... अंजाने में ही उसका अंगूठा मेरी फांकों के बीच च्छूपी हुई 'मदनमानी' (क्लाइटॉरिस) को छू गया और मैं आनंद से उच्छल पड़ी...,"क्या करते हो?"

"देख रहा हूँ बस!" पागला से गये संदीप ने भोलेपन से इस तरह कहा मानो चार आने में ही एक बार और 'हेमा मालिनी' को देखना चाहता हो...

समझ नही आया ना! दरअसल मेरी दादी बताती थी... मेरे जनम के कुच्छ टाइम पहले तक गाँव में एक डिब्बे वाला पिक्चर दिखाने आता था... उसको सब 12 मन की धोबन कहा करते.... पिक्चर देखने वाले बच्चों से 'वो' चार आने लेता और एक सुराख में आँख लगाने को कहता... 'बच्चे' के आँख लगाने पर वो बाहर एक पहियाँ सा घूमता और अंदर अलग अलग हीरो हेरोइनो के फोटो चलते नज़र आते... बच्चे उसको बड़े चाव से देखते थे... दादी बताती थी कि एक बार तुम्हारे पापा ने उस 'सुराख' से आँखें चिपकाई तो हटाने का नाम ही ना लिया... मशीन वाले ने काई बार उनको हटने के लिए कहा पर वो अपनी आँख वहीं गड़ाए बार बार यही कहते रहे...,"देख रहा हूँ ना! अभी हेमा मालिनी नही आई है..."

कुच्छ ऐसी ही हालत संदीप की थी.. मैं वासना की अग्नि में तड़प रही थी.. और 'वो' बार बार एक ही रट लगाए हुए था...,"बस एक बार और.. थोड़ी सी देख रहा हूँ..."

ऐसा नही था कि संदीप की हालत खराब ना हुई हो... योनि को देखते देखते ही उसकी साँसें उपर नीचे होने लगी थी.. उसके गाल उत्तेजना के मारे लाल होते जा रहे थे... नथुने फूले हुए थे.. पर वह जाने उसमें क्या ढूँढ रहा था... मैं उत्तेजना के चरम पर आ चुकी थी.. सहसा उसने दोनो हाथों से मेरी चिड़िया की फांकों को फैला दिया.. और मेरी योनि का चीरा करीब एक इंच चौड़ा हो गया.... खूनी रंग का मेरी योनि का अंदर का चिकना भाग देख कर तो वो मानो होश ही खो बैठा.. अंदर च्छूपी हुई हल्क भूरे रंग की 'दो' पत्तियाँ अब उसकी आँखों के सामने आ गयी.. उसने दोनो पट्टियों को चुटकियों में लिया और मेरी योनि की 'तितली' बना' दिया.. पट्टियों को बाहर की ओर मेरी योनि की फांकों पर चिपका कर... इसके साथ ही उसने अपनी एक उंगली 'पट्टियों' के बीच रखी और बोला...,"यही है ना...."

"हां हां.. यही है.. तुम जल्दि क्यूँ नही करते... कोई आ जाएगा तो?" मैं नाराज़ सी होकर बोली....

मेरी नाराज़गी से वह अचानक इतना डरा कि मेरी बात को आदेश मान कर 'सर्र्ररर' से उंगली अंदर कर दी... मैं हुल्की सी उचक कर सिसक पड़ी," आआहह....!"

बहुत ज़्यादा चिकनी होने के कारण एक ही झटके में मेरी योनि ने उंगली को बिना किसी परेशानी के पूरी निगल लिया... वह सहम कर मेरी और देखने लगा.. जैसे मेरी प्रतिक्रिया जान'ना चाहता हो.....

"उसको कब डालोगे...?" मैने तड़प कर कहा.....

"डालता हूँ.. थोड़ी देर उंगली से कर लूँ.. मेरे दोस्त कहते हैं कि पहले ऐसे ही करना चाहिए.. नही तो बहुत दर्द होता है....!" वह उंगली को बाहर निकाल कर फिर से अंदर फिसलता हुआ बोला.....

मैं झल्ला उठी.. अजीब नमूना हाथ लगा था उस दिन, पहली बार... मैं 'उसको' अंदर घुस्वाने के लिए तड़प रही थी और वो मुझे डराने पर तुला हुआ था," होने दो... फटेगी तो मेरी फटेगी ना... तुम्हारी क्यूँ...." मैं 'फट रही है' कहना चाहती थी... पर मंन में ही दबा गया... बहुत सेन्सिटिव केस था ना...

"अच्च्छा अच्छा.. ठीक है.. करता हूँ..." उसने सकपका कर अपनी उंगली बाहर निकाल ली.. और फिर से मेरी आँखों में देखने लगा," कैसे करूँ?"

"मुझे नीचे पटक कर घुसा दो... तुम तो बिल्कुल लल्लू हो!" मेरे मुँह से गुस्से और बेकरारी में निकल ही गया...

"सॉरी.. मैने कभी पहले किया नही है..." संदीप पर पड़ी डाँट का असर मुझे उसके टँटानाए हुए 'लिंग' पर भी सॉफ दिखाई दिया... 'वो' थोड़ा मुरझा सा गया... मुझे अपनी ग़लती पर गहरा अफ़सोस हुआ...,"सॉरी.. ऐसे ही गुस्से में निकल गया..." मैने उसके लिंग को पूचकार कर फिर से 'कुतुबमीनार' की तरह सीधा टाँग दिया..,"अच्च्छा.. एक मिनिट...!"

जैसे ही मैने कहा...मुझे प्यार से सोफे पर लिटाने की कोशिश कर रहा संदीप वहीं का वहीं रुक गया,"बोलो!"

मुझे ढोलू का मुझे अपनी गोद में लेकर लिंग पर बिठाना 'याद' आ गया.. मैने नीचे उतरी और मुड़कर जैसे ही अपनी सलवार और कच्च्ची को टाँगों से निकालने के लिए झुकी.. संदीप ने लपक कर मेरे नितंबों को पकड़ लिया,"ऐसे ठीक रहेगा अंजू.. यहाँ से बहुत अच्च्ची दिखाई देती है...!"

"क्या? मैने सलवार को निकाल कर सोफे पर डाला और उसकी तरफ सीधी खड़ी होकर पूचछा....

"ये.." वा मेरी योनि को मुथि में दबोच कर बोला...,"टेबल पर झुक जाओ.. तुम्हारी 'इस' का सुराख पिछे आ जाता है...!" वा खुश होकर बोला....

"ठीक है.. ये लो..."मैने कहा और टेबल पर सीधे हाथ रख कर मूड गयी...

"ऐसे नही.. पिछे से थोडा उपर हो जाओ.."वह नितंबों के बीच मेरी योनि पर हाथ रख कर उसको उपर उठाने की कोशिश करने लगा....

"और उपर कैसे होउ..? मेरी टांगे तो पहले ही सीधी हैं....."मैने कहा और मेरे दिमाग़ में कुच्छ आया..,"अच्च्छा.. ये लो.." मैने टेबल पर कोहनियाँ टीका ली....

"हां.. ऐसे!" वह खुश होकर बोला... और सोफे पर बैठ कर मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगा....

"अब करो ना...." मैने कसमसा कर अपने कूल्हे मटकाए....

"हां हां..." कहकर वो खड़ा हो गया और आगे होकर मेरे नितंबों के बीचों बीच उसके लिंग के स्वागत में खुशी के आंशु टपका रही योनि पर अपने लिंग का सूपड़ा रख दिया......

योनि और लिंग तो आख़िर एक दूसरे के लिए ही बने होते हैं... मेरी योनि जैसे अंदर ही अंदर दाहक रही थी.. जैसे ही उसको सूपड़ा अपने द्वार पर महसूस हुआ.. 'वो' बहक गयी.. और उसमें से टॅप टॅप करके प्रेमरस की बारिश सी होने लगी....,"आ.. कर दो ना संदीई...." मेरा बुरा हाल था... मुझे पता ही नही था की मैं कहा हूँ.. मेरा पूरा बदन मदहोशी से अकड़ सा गया था....

"हां... मैं अब धक्का लगाउन्गा... दर्द हो तो बता देना.... ठीक है..?" वो मुझे तड़पने में कोई कसर नही छ्चोड़ रहा था... उसका सूपड़ा अब भी मेरी योनि को चीरने से पहले इजाज़त माँग रहा था...

"जल्दी करो ना...." मैने कहा ही था कि उसने दबाव बढ़ा दिया... पर सूपड़ा तो अंदर नही गया.. उल्टा मैं पूरी ही थोड़ी आगे सरक गयी...

अपनी कोहनियों को वापस पिछे टीका कर मैं फिर से तैयार हुई..,"लो.. अब की बार करो..."

उसने फिर धक्का लगाया.. और मैं फिर से उसके दबाव को ना झेल पाने के कारण आगे सरक गयी...

"तुम आगे क्यूँ जा रही हो?" वा वापस सूपड़ा मेरी योनि पर टिकाते हुए बोला....

मैं तंग आकर सीधी खड़ी हो गयी...,"तुम सोफे पर बैठो.. मैं करती हूँ.." मैं बदहवास सी हालत में जल्दी जल्दी बोली....

"क्या?" वा समझ नही पाया और मेरी तरफ टुकूर टुकूर देखने लगा....

"तुम बैठो ना जल्दी.. मैं अपने आप घुसा लूँगी..." मैने उसका धक्का देकर सोफे पर धकेल दिया....

"ठीक है.. तुम खुद ही कर लो..."उसने किसी अच्छे बच्चे की तरह कहा और हाथ में पकड़ा हुआ अपना लिंग सीधा उपर की और तान कर बैठ गया.......

क्रमशः....................
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