RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--22
गतान्क से आगे................
"हां.. ऐसे..." मैने उसको किसी टीचर की तरह से हिदायत दी और एक बार फिर उसकी जांघों के दोनो ओर घुटने जमा कर बैठ गयी...
"मैं नीचे बैठूँगी.. तुम अपना 'ये' 'वहाँ' लगा देना..." मैने कहने के साथ ही अपने नितंबों को नीचे झुकाना शुरू कर दिया.... वह तिरच्छा होकर झुका और 'निशाना सेट करने लगा....
"यहाँ क्या हाईईईईईई..." मैं वापस उपर उठी.. थोड़ा नीचे करो नीचे..!" उसने तो अपना लिंग सीधा मेरे दाने पर टीका दिया था... मानो कोई नया सुराख करने की तैयारी में हो... मैने उसके होंटो को चूमा और फिर से नीचे बैठने लगी....
"बुद्धू...!" पीछे घुसाओगे क्या?" मैं तड़प कर बोली और अपनी योनि के साथ ही उसके लिंग का 'चार्ज' भी अपने ही हाथों में ले लिया... मैं जान गयी थी.. इसके भरोसे तो हो गयी 'गंगा' पार....
मैने उसका लिंग पकड़ा और अपनी योनि में दो चार बार घिसा कर जैसे ही छेद पर टीकाया.. वो अजीब से ढंग से बड़बड़ाया,"ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊओ"
"क्या हुआ?" मैने रुक कर उसकी आँखों में झाँका....
"कुच्छ नही... इसस्स्स्स्स्सस्स... मज़ा आ रहा है...!" उसने कहा और मेरे नितंबों को कसकर पकड़ लिया.....
"मैं मुस्कुराइ और छेद पर रखे सूपदे की तरफ से निसचिंत होकर उस पर धीरे धीरे बैठने लगी... पर मंज़िल उतनी आसान नही थी.. जितनी मुझे लग रही थी.. जैसे ही मेरी योनि का दबाव सूपदे पर बढ़ा.. मुझे योनि की फांकों में अत्यधिक दबाव महसूस होने लगा.. ऐसा लगा जैसे अगर और नीचे हुई तो ये फट जाएगी.. मैं वापस थोड़ी सी उपर उठ गयी..
"क्या हुआ?" संदीप ने आखें खोल कर पूचछा....
"डर हो रहा है...!" मैने बुरा सा मुँह बना लिया...
"खुद करोगी तो दर्द महसूस होगा ही.. मुझे तुम करने नही देती..."संदीप ने शिकायती लहजे में कहा....
"नही.. अब की बार पक्का करती हूँ..." लिंग को अंदर लेने के लिए तड़प रही मेरी योनि दर्द को एक पल में ही भूल गयी.. और फिर से उसके लिए अंदर ही अंदर फुदकने सी लगी...
"एक दम बैठ जाओ..!" संदीप ने हिदायत दी...
और में जोश में उसका कहा मान गयी.. जैसे ही मैने 'भगवान' का नाम लेकर अपनी योनि को इस बार लिंग पर ढीला छ्चोड़ा.. 'फ़च्छ' की आवाज़ के साथ 'उसका' आगे का 'लट्तू' मेरे अंदर घुस गया...
लाख कोशिश करने पर भी मेरी चीख निकले बिना ना रह सकी... गनीमत हुआ कि ज़्यादा तेज नही निकली... पर दर्द असहनीय था... मैने तुरंत उठने की कोशिश की पर जाने क्या सोचकर संदीप ने मुझे वहीं कस कर पकड़ लिया......
"आ.. क्या करते हो.. छ्चोड़ो मुझे.. बहुत दर्द हो रहा है..." मैं हड़बड़कर बोली...
"कुच्छ नही होगा जान.. जो होना था.. हो चुका... बस दो मिनिट... अभी सब ठीक हो जाएगा..." संदीप ने कहा और कसकर मुझे कुल्हों से पकड़े हुए मेरी चूचियो को चूसने लगा.....
"आ.. क्या कर रहे हो.. मैं मरी जा रही हूँ.. आगे रास्ता नही है.. मुझसे नही होगा...."
"मेरे दोस्त कहते हैं कि चूचियो चूसने से इसका दर्द कम हो जाता है...." उसने हटकर कहा और फिर से मेरे एक दाने को मुँह में ले लिया....
चूचियो में गुनगुनी सी गुदगुदी तो ज़रूर हुई थी.. पर मुझे नही लग रहा था कि मेरी योनि से `करीब 1.5 फीट उपर लटकी चूचियो को चूसने से वहाँ कुच्छ राहत मिलेगी... मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि फैली ना हो; बुल्की फट ही गयी हो... मैने नीचे झुक कर देखा... उसका सारा का सारा लिंग तो बाहर ही था अभी.. सिर्फ़ लट्तू जाने से इतना दर्द हुआ है तो पूरा जाने में कितना दर्द होगा' सोच कर ही मैं तड़प उठी......,"मुझे नही होगा संदीप .. प्लीज़.. छ्चोड़ दो मुझे...."
"होगा कैसे नही.. जान.. देखो.. बस दो मिनिट.." उसने कहा और एक हाथ से मुझे पकड़े हुए वह नीचे की ओर दबाता हुआ दूसरे हाथ से मेरे बायें घुटने को धीरे धीरे दूर सरकाने लगा...
"आ.. क्या कर रहे हो.. मैं मर जाउन्गि ना...!" मैने छट-पटाते हुए कहा....
"कुच्छ नही होगा जान.. बस हो गया.. और दर्द नही होगा... एक मिनिट... बस.. बस.. एक मिनिट...." वह कहता गया और अपनी मनमर्ज़ी करता गया.....
मैं तब तक अपने हाथों से अपने आपको उसकी पकड़ से मुक्त करने की कोशिश करती रही जब तक कि वह खुद ही रुक नही गया....
"और मत करो ना संदीप.. तुम्हारी कसम.. बहुत दर्द हो रहा है....!"
"तुम्हारी कसम जान.. 2 मिनिट से ज़्यादा दर्द नही होगा अब..." कहते हुए उसने अपने दोनो हाथों से मुझे कसकर पकड़ा और मुझे लेकर सोफे से उठ गया....
"ययए.. ये क्या कर रहे हो...!" मैं सचमुच दर्द को भूल चुकी थी और सोच कर हैरान थी कि वो ऐसे खड़ा क्यूँ हुआ.. पर अगले ही पल मेरी सब समझ आ गया... सोफे की तरफ घूम कर वह आराम से मेरे साथ ही नीचे आता हुआ मुझे कमर के बल सोफे पर लिटा कर रुक गया...
मैने कोहनिया टीका कर उपर उठी... उसका लिंग अभी भी आधा बाहर था..," और मत करना प्लीज़.. मैने तो सोचा था कि सारा हो गया..."
"अरे सारा ही चला गया था जान.. ये तो खड़ा होने की वजह से निकल गया था.. कहते हुए उसने जैसे ही अपना लिंग अंदर धकेला.. मेरी योनि की तंग दीवारों में उठी आनंद की लहरों से मेरा पूरा बदन ही मदहोश होता चला गया...,"आआआआआहह" मैने पूरे आनंद के साथ एक लंबी सिसकी ली और मदोन्नमत होकर उसका सिर अपनी छाती पर झुका लिया....
"हो गया जान... आइ लव यू... तुमने कर ही दिया.... अया... बहुत मज़ा आ रहा है...."सच में ही मैं आनंद की उस प्रकस्ता पर थी कि सब कुच्छ भूल कर मेरा तन मंन वासना की रंगीन गलियों में खो सा गया था......
इस बार वह अपने 'मूसल' जैसे लिंग को जड़ तक मेरी योनि की फांकों से चिपका कर रुक गया....,"कैसा लग रहा है जान?"
मैने तड़प कर अपने बॉल नोच डाले.. मेरी आँखें तो पहले से ही पथराई हुई थी..... आनंद के जिस शिखर पर मैं खुद को उस वक़्त महसूस कर रही थी.. कुँवारी लड़की शायद ही उसके बारे में कल्पना भी कर सके.... अजीब सी हालत थी.. मैं बोलना चाहती थी.. पर मेरी ज़ुबान मेरी सिसकियों को शब्दों में ढालने में नाकाम थी... "अया... आआआयईीईईईईई... ऊऊहह मुऊम्म्म्ममय्ययी' जैसी ध्वनियाँ उसके धक्का लगाना बंद करते ही खामोश हो गयी... तड़प और बेकरारी से मैने अपने बालों को नोच डाला था... उसका ये विराम असहनीय था....
वह फिर भी मेरे जवाब की प्रतीक्षा करता रहा तो मुझसे रुका ना गया... पगलाई हुई सी कोहनियाँ टीका कर उपर उठी और आनन फानन में ही अपने नितंबों को उठा उठा कर पटाकने लगी... मेरे नितंबों की थिरकन के कारण अंदर बाहर हो रहे लिंग का हूल्का सा अहसास भी मुझे मरूभूमि में प्यासी के लिए सावन आने जैसा था.....
"आ.. आ...आ... आ.." मैं झल्लाई हुई अपने नितंबों को आगे पिछे करते हुए लिंग को खुद ही अंदर बाहर करती रही... जब तक कि वह मेरी मंशा को नही समझा और पूरे जोश के साथ मेरी जांघों के बीच बैठ कर सतसट धक्के लगाने लगा.....
वह सिसकने के साथ ही हाँफ भी रहा था.. पर मुझे खुद ही नही पता था कि मैं सिसक रही हूँ.. या बिलख रही हूँ... अपने ही मुँह से निकल रही अजीबोगरीब आधी आधूरी आहें मेरे ही कानों को बेगानी सी लग रही थी.....
वह धक्के लगाता जा रहा था और में पागलों की तरह कुच्छ का कुच्छ बड़बड़ाती जा रही थी..... उसने कयि बार आसन बदले.. कभी पंजों के बल बैठ जाता कभी घुटनो के बल... कभी मेरी चूचियो पर लेट कर धक्के लगाता और कभी मेरे घुटनों के नीचे से हाथ निकाल कर सोफे पर रख कर... हर आसन ने उस दिन मुझे नया जीवन दिया.. नया आनंद....
"ओह... आआहह.. मैं गया... मैं गया..." मेरे कानों को उसके तेज धक्के लगाते हुए आख़िर में कुच्छ इस तरह की आवाज़ें सुनी और 5-10 सेकेंड के बाद ही वो मेरी छाती पर पसर गया.... उस 'एक' पल के आनंद को में शब्दों में बयान नही कर सकती... मुझे भी ऐसा ही लगा था जैसे मैं गयी.. मैं गयी.. और गयी....
पर गये कहाँ.. हम दोनो तो एक दूसरे के इतने पास आ गये थे कि शरीर के साथ ही दिलों के बीच की दूरी भी कहीं खो गयी....
"आइ लव यू जान!" कुच्छ देर बाद जब संदीप में मेरी चूचियो पर एक प्यार भरा चुंबन देकर कहा तब ही शायद मैं उस अलौकिक दुनिया से वापस लौट कर आई थी..,"आ.. क्या हुआ.... हो गया क्या?" मैने कसमसा कर पूचछा....
"हां.. अंदर ही हो गया...."
"क्य्ाआ?" मैं उसके नीचे पड़ी हुई भी उच्छल सी पड़ी...,"अंदर निकाल दिया?"
"मुझे कुच्छ याद ही नही रहा... एक बार ध्यान आया था.. पर बाहर निकालने का मंन ही नही किया... उसके बाद तो कुच्छ याद ही नही...."वा मेरे उपर से अलग होता हुआ मायूसी से बोला....
"ययए.. क्या किया तुमने... अब मेरा क्या होगा...?" मैं बैठ कर नीचे झुकी और अपनी योनि में से बाहर टपक रहे उसके और मेरे प्रेमरस के मिश्रण को देखती हुई रोने लगी.....
संदीप को भी उस वक़्त कुच्छ सूझा ही नही.. शायद वह अपनी ग़लती पर शर्मिंदा था...
अचानक दरवाजे पर हुई 'खटखट' ने हम दोनो के होश ही उड़ा दिए... मैं बाकी सब कुच्छ भूल कर कांपति हुई अपने कपड़े ढूँढने लगी.....
"संदीप... ढोलू भैया... ...... चाची....." पिंकी की आवाज़ थी.... मेरे साथ ही संदीप के भी होश उड़ गये.... पर हम दोनो में से कोई कुच्छ नही बोला.....
"कौन है अंदर.... दरवाजा खोलो ना...." पिंकी की तीखी आवाज़ एक बार फिर मेरे कानों में पड़ी.....
"जल्दी करो..... और वहाँ अलमारी में छिप जाओ..."संदीप अपनी ज़िप बंद करता हुआ मेरे कानो में फुसफुसाया......
मैने हड़बड़ाहट में सलवार पहनी और अपनी कच्च्ची, ब्रा और कमीज़ को उठाकर अलमारी की ओर भागी.... संदीप के हाँफने की आवाज़ें मुझे अलमारी के अंदर भी सुनाई दे रही थी....
"हाआँ... क्या है..?" शायद संदीप ने दरवाजा खोल कर पूचछा होगा....
"इतनी देर क्यूँ लगा दी... ? क्या कर रहे थे...?" पिंकी की आवाज़ मुझे कमरे के अंदर से ही आती प्रतीत हो रही थी.....
"ववो.. हां.. कुच्छ नही... सो रहा था....."संदीप अब भी हूल्का हूल्का हाँफ रहा था.. जैसे कोई क्रॉस कंट्री रेस करके आया हो....
"तुम तो पसीने में भीगे हुए हो... कोई सपना देख रहे थे क्या? " कहने के साथ ही मुझे पिंकी की खनखनती हुई हँसी सुनाई दी......
"आहाआँ... वो.. एक.. बुरा सपना था...!" संदीप की साँसे अब तक संयमित हो चुकी थी.....
"वो.. मीनू ने शिखा दीदी की 'पॉल.साइन्स' की बुक मँगवाई है.....!" पिंकी ने कहा....
"पर.. वो तो... मुझे कैसे मिलेगी... ? कल आ जाएगी.. तब ले लेना ना!" संदीप हड़बड़ा कर बोला....
"मीनू ने दीदी के पास फोन किया है.. वो कह रही थी कि बड़ी अलमारी के बीच वाले खाने में रखी है... तुम देख तो लो!" पिंकी की ये बात सुनकर तो मेरी साँसें उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी.... शायद संदीप का भी ऐसा ही हाल हुआ होगा....,"वववो.. नही... वहाँ तो एक भी किताब नही है... इसमें तो सिर्फ़ कपड़े हैं.... हां.. कपड़े हैं सिर्फ़"
"अरे.. देख तो लो एक बार..." पिंकी ने कहा.... और अगले ही पल उसकी गुर्राती हुई आवाज़ आई..," तुम सुधरे नही हो ना!"
"म्मैइने क्या किया है...? तुम उधर क्यूँ जा रही हो...?" संदीप की आवाज़ से ही पता लग रहा था कि मामला बिगड़ने वाला है... पिंकी शायद अलमारी की ओर ही आ रही होगी.....
"ठीक है... मैं बाहर खड़ी होती हूँ... तुम देख कर दे दो..." पिंकी ने गुस्से से कहा और शायद बाहर निकल गयी.....
तभी अलमारी का दरवाजा थोड़ा सा खोला और भय से काँपते हुए मैने संदीप की ओर देखा.. उसने आँखों की आँखों में मुझे चुप रहने का इशारा किया और उपर वाले खाने में किताब ढूँढने लगा....
होनी को कुच्छ और ही मंजूर था.. अचानक उपर से मेरे उपर कुच्छ आकर गिरा और मैं ज़ोर से चीखी,"
ओईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई मुम्मय्यययी!"
जब तक मुझे मेरी ग़लती का अहसास होता.. पिंकी भाग कर अलमारी के सामने आ चुकी थी.. संदीप असमन्झस में खड़ा कभी दयनीय चेहरा बनाकर पिंकी की ओर और कभी गुस्से से मेरी ओर देखने लगा...
भय और शर्मिंदगी से थर थर काँप रही मैं नीचे वाले खाने के कोने में चिपकी हुई बड़ी मुश्किल से नज़रे उठा कर संदीप की और देखती हुई बोली..,"वववो.. चूहा....!"
पिंकी के चेहरे पर मेरे और संदीप के लिए ग्लानि के सपस्ट भाव झलक रहे थे.. अचानक उसने झपट्टा मार कर संदीप के हाथ से किताब छ्चीनी और बाहर भाग गयी......
"ययए... ये क्या किया तुमने?" संदीप गुस्से से दाँत पीसता हुआ चिल्लाया.....
"ववो.... वो.. उपर से चूहा कूद गया था.... मेरे उपर...!" मुझे अहसास था कि मैने क्या कर दिया है.. अब मैं संदीप से भी नज़रें नही मिला पा रही थी... चुपचाप बाहर निकली और अपना कमीज़ पहन कर खड़ी खड़ी रोने लगी.....
"तुम्हे शायद अंदाज़ा भी नही होगा कि तुमने क्या कर दिया... अब बात शिखा तक जाए बिना नही रहेगी... एक चूहे से डरकर.. तुमने ये.... शिट!.. निकलों यहाँ से जल्दी..." संदीप ने मुँह फेर कर कहा और अपने ही हाथों से अपना चेहरा नोचने लगा......
मेरी कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई... खुद ही अपने आँसू पौन्छे और अपनी ब्रा और पॅंटी को अपनी सलवार में टाँग ली .....फिर शॉल औधी और बे-आबरू सी होकर उसके घर से निकल गयी....
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मैं वहाँ से सीधी मीनू के घर ही गयी... पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था और मीनू उस'से पूच्छ रही थी..,"बता ना क्या हुआ?"
मैं चुपचाप जाकर चारपाई पर बैठ गयी... मुझे भी इतनी चुप देख कर मीनू ने पूच्छ ही लिया...,"हद हो गयी.. छ्होटा सा काम करवाया था.. आते ही मुँह फूला कर बैठ गयी.. और अब तुझे क्या हो गया...? तुम दोनो की लड़ाई हुई है क्या?"
"नही दीदी.." मैने उस'से नज़रें मिलाए बिना ही सूना सा जवाब दिया और फिर पिंकी की और देख कर बोली," एक मिनिट बाहर आ जा पिंकी... तुझसे कुच्छ बात करनी है...!"
पिंकी ने मुझे घूर कर देखा.. पर कुच्छ बोली नही.. आँखों ही आँखों में मुझे गाली सी देकर वो फिर से एक तरफ देखने लगी.....
"सुन तो एक..." मैने इतना ही कहा था की पिंकी गुस्से में धधकति हुई बोली..,"मुझसे बात करने की ज़रूरत नही है तुझे... समझी..?"
"ऐसा क्या हो गया...? जब तू यहाँ से गयी थी तब तो सब ठीक था... तुम बाहर मिले हो क्या कहीं... रास्ते में...?" मीनू आशंकित होकर बोली....
अब जवाब तो दोनो के ही पास था... पर बोलती भी तो क्या बोलती.... मैने मीनू की बात को अनसुना कर दिया और एक बार फिर धीमी लरजती हुई आवाज़ में बोली,"पिंकी प्लज़्ज़्ज़.. एक बार मेरी बात सुन ले... फिर चाहे कुच्छ भी बोल देना.. किसी को भी...!"
पिंकी ने इस बार भी मेरी बात को अनसुना कर दिया....
मीनू को शायद अहसास हो गया की मामला कुच्छ ज़्यादा ही पर्सनल है....,"ठीक है.. तुम अपना झगड़ा निपताओ.. मैं उपर जाकर आती हूँ...."
मीनू के जाते ही मैं अपनी सोची हुई बात पर आ गयी..," तुझे पता है पिंकी..? सोनू का फोन ढोलू के पास है...!"
पिंकी की आँखों में हुल्के से आस्चर्य के भाव आए.. पर जितनी जल्दी आए थे.. उतनी ही जल्दी वो गायब भी हो गये.....
"मेरी बात तो सुन ले एक बार..." मैं जाकर जैसे ही उसके सामने बैठी.. उसने अपना मुँह फेर लिया... पर मामला अब थोड़ा सा शांत लगा.. शायद वह सोनू के मोबाइल के बारे में जान'ने को उत्सुक हो गयी थी...
"वो मैं उसको मोबाइल लौटने गयी थी... वो वहाँ ज़बरदस्ती करने लगा...!" मैने उल्टी तरफ से कहानी सुननी शुरू कर दी...
"कौनसा मोबाइल..? तेरे पास कहाँ से आया...?" पिंकी की बात में गुस्सा कम और उत्सुकता ज़्यादा होना ये बात साबित कर रहा था कि उसको बात सुन'ने में दिलचस्पी है....
"तू पूरी बात सुनेगी, तभी बताउन्गि ना... मेरी तरफ मुँह तो कर ले...!" मैने प्यार से उसके गालों पर हाथ लगा कर उसका चेहरा अपनी तरफ घुमा दिया... मेरी आँखों से आँखें मिलते ही उसने नज़रें झुका ली...,"बता!"
"वो उस दिन हम शिखा दीदी से मिलने गये थे ना... तो तुझे याद है मुझे ढोलू ने दूसरे कमरे में बुलाया था....?" मैने कहा...
"हां... तो?" उसने उपर... मेरी आँखों में देख कर पूचछा....
"वो.. भी ऐसे ही बकवास कर रहा था.. संदीप की तरह.. पर मैने सॉफ इनकार कर दिया... तुझे तो पता ही है 'वो' कैसा है....! उसने मुझे डरा धमका कर मेरे हाथ में एक मोबाइल पकड़ा दिया... कहने लगा मुझे तुमसे कुच्छ ज़रूरी बात करनी हैं... मैं डर गयी थी.. इसीलिए मैने अपने पास फोन छिपा लिया था.... आज 'उस' इनस्पेक्टर का नंबर. इस पर आया तो मैं डर गयी.. ज़रूर उसने 'सोनू' का नंबर. ही ट्राइ किया होगा....!" मैने कहा.....
"पर 'सोनू' का फोन ढोलू के पास कैसे आया... ?" पिंकी दिमाग़ लगाने की कोशिश करती हुई बोली....
"वही तो..! मैं बहुत डर गयी थी....! इसीलिए यहाँ से सीधी ढोलू को वो फोन वापस देने गयी थी... 'वो' तो मिला नही.. मैने संदीप को फोन देकर सब कुच्छ बता दिया.... मेरे डरे हुए होने का फ़ायडा उठाकर संदीप ने मुझे वहीं पकड़ लिया... मैने उसको मना किया तो कहने लगा कि 'वो' तुम्हे और गाँव वालों को बता देगा कि सोनू का फोन मेरे पास है...!"
"कमीना.. कुत्ता...!" पिंकी ने हमेशा उसकी ज़ुबान पर चढ़ि रहने वाली दो गालियाँ संदीप को दी और फिर बोली," फिर...?"
"फिर क्या?" मैने कहकर सिर झुका लिया....
"क्य्ाआ? उसने तुम्हारे साथ 'वो' कर दिया?" मेरे चेहरे के भावों को पढ़ती हुई पिंकी आस्चर्य से बोली....
"छ्चोड़ ना अब..?" मैं उसका ध्यान हटाने के इरादे से बोली..," अच्च्छा ही हुआ.. तू वहाँ चली गयी.. तुझे भी उसकी असलियत पता चल गयी... शायद मैं अपने आप 'ये' भी बात नही कह पाती.. और 'वो' भी की सोनू का मोबाइल ढोलू के पास है...." मैने अपने आप को सॉफ सॉफ बचाने की कोशिश की...
"चल... दीदी को बताते हैं...!" पिंकी ने कहा....
"प्लीज़... संदीप वाली बात मत बताना...!" मैने उसको मनाने की कोशिश की....
"क्या नंबर. था वो.." अचानक मीनू को दरवाजे की आड़ से हमारे सामने आते देख हम दोनो उच्छल पड़े... शायद उसने सब कुच्छ सुन लिया था...!
"मैने तात्कालिक शर्म से अपना सिर झुका लिया.. पर मीनू ने संदीप के बारे में कोई सवाल नही पूचछा....
"क्या नंबर. था..? बताती क्यूँ नही...?" मीनू आकर मेरे हाथ पर हाथ रख कर बोली...
"मुझे नंबर. नही पता दीदी.. पर उस पर इनस्पेक्टर की कॉल आई थी...." मैने कहा...
"अब कहाँ है फोन?" मीनू ने पूचछा...
"वो..वो मैं वापस दे आई....!" मैने कहा....
"एक मिनिट में आती हूँ..." मीनू ने कहा और उपर भाग गयी... कुच्छ देर बाद वापस आकर बोली..," सोनू वाला नंबर. तो बंद पड़ा है....
"हां दीदी.. फिर तो पक्का वही नंबर. है... मैने यहाँ से जाने से पहले ही उसको ऑफ किया था.... पर... आपको उस नंबर. का कैसे पता.....?" मैने पूचछा....
"ववो..." मीनू ने एक बार पिंकी की ओर देखा और फिर थोड़ी देर चुप रह कर बोलने लगी...,"तरुण ने मुझे 'वो' नंबर. दे रखा था.. एक आध बार उसके पास घर से फोने करने के लिए... 'वो' अक्सर सोनू के साथ ही रहता था ना.... उसी ने बताया था कि 'ये' सोनू का स्पेशल नंबर. है... उस नंबर. का किसी और को नही पता.....!"
"स्पेशल मतलब...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....
"पता नही.. 2 नंबर. होंगे उसके पास.. शायद.. पर 'वो' नंबर. किसी और के पास नही था.. तरुण कहता था....!" मीनू बोली...
"पर उसने सोनू का नंबर. क्यूँ दिया... उसके पास तो अपना मोबाइल था ना...!" मैने कहा....
"पहले नही था... उसने बाद में लिया था अपना!" मीनू ने जवाब दिया.....
"ओह्ह.. अच्च्छा..!" मैने सिर हिलाते हुए कुच्छ सोचा और फिर बोली," पर सोनू का नंबर. ढोलू के पास कैसे आया..? और सोनू कहाँ है...?"
"अब क्या पता..! मेरी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा... ... ववो इनस्पेक्टर के पास फोन करें?" मीनू बोली...
"रहने दो दीदी.. बार बार फोन करना अच्च्छा नही लगता.. कल 'वो' स्कूल में आएँगे तो हम बता देंगे...!" पिंकी ने हमारी बातों में हस्तक्षेप किया...
"ठीक है... तुम बता देना.. एक ही बात है..." मीनू के चेहरे पर बोलते हुए मायूसी सी झलक आई.. फिर अचानक कुच्छ सोच कर बोली," तू उपर जा ना पिंकी.. थोड़ी देर..!"
पिंकी ने तुरंत अपना चेहरा फूला लिया,"मैं कहीं नही जाउन्गि दीदी... मुझे पता है तुम क्या बात करने वाले हो...!"
"क्या बात? अर्रे.. ऐसी कुच्छ बात नही है.. तू जा ना एक बार!" मीनू चिड कर बोली...
"नही.. मैं नही जाउन्गि..." पिंकी भी आड़कर बैठ गयी...
मेरे दिमाग़ में भी काफ़ी देर से एक बात घूम रही थी.. मैने 2 पल रुक कर सोचा कि पिंकी के सामने कहूँ या नही... फिर मैने कह ही दिया..,"दीदी!"
"हां..." मीनू पिंकी को घूरते हुए मुझसे बोली....
"ववो... वो आप बता रहे थे कि...." मैं बीच में ही रुक कर पिंकी की ओर देखने लगी.....
"तू थोड़ी देर रुक जा.... देखती हूँ ये कब तक हमारे पास बैठी रहती है.. हम बाद में बात करेंगे...!" मीनू पिंकी को घूरते हुए बोली....
पिंकी खड़ी होकर गुस्से से पैर पटक'ने लगी..,"मुझे नही पता.. दोनो अकेले अकेले गंदी बातें करते हो और मुझे इस तरह भगा देते हो जैसे मैं गंदी हूँ... आने दो मम्मी को.. आज दोनो की पोले खोलूँगी... कर लो बात..." पिंकी ने कहते हुए अपनी मोटी मोटी आँखों में आँसू भर लिए और उपर जाने लगी...
मीनू ने भाग कर उसको सीढ़ियों के पास ही पकड़ लिया...,"सुन तो.. ऐसी बात नही है मेरे पिंकू... आजा... आ ना!" मीनू उसको वापस खींच लाई और अपनी गोद में बिठा लिया....
"है क्यूँ नही ऐसी बात...? आप हमेशा मेरे साथ ऐसा ही करते हो.. मैं भी तो अंजू की उमर की हूँ.. मुझे सब बातों का पता है... तुम दोनो से समझदार हूँ मैं!" उसकी गोद में बैठी हुई पिंकी मीनू की आँखों में आँखें डाल कर बोली...
"अच्च्छा ठीक है.. बैठी रह.. बस!" मीनू ने उसके गालों से आँसू सॉफ किए और फिर मेरी और देख कर बोली," संदीप ने ऐसे कैसे ज़बरदस्ती कर ली... तूने उसको कुच्छ भी नही कहा....?"
मैने तुरंत अपनी नज़रें झुका ली... मुझे लग नही रहा था कि जिस तरह से पिंकी को मैने कुच्छ भी कह दिया था.. उन्न बातों पर मीनू को विश्वास हुआ होगा... पिंकी साथ ना बैठी होती तो शायद मैं मीनू को थोड़ा सा सच भी बता देती.. पर पिंकी के सामने... तो सच बोलने का मतलब खुद को उसकी नज़रों से गिराना ही था...
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