RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"चल छ्चोड़.. अब तो हो ही गया.. पर तूने ध्यान तो रखा होगा ना?" मीनू मेरी असमन्झस को जान कर बोली...
"किस बात का दीदी..?" मैने पूचछा....
"वो.. तेरी एम.सी. कब की है...?" मीनू ने पूचछा.....
"एम.सी. क्या दीदी?" मैं समझ नही पाई....
"अरे तेरी 'डेट्स' कब आती हैं...?" उसने दोहराया....
"ववो.. वो तो कोई 10 दिन हो गये... क्यूँ?" मैने पूचछा....
"ले... तू तो गयी फिर... वो... तू समझ रही है ना.. मैं क्या पूच्छना चाहती हूँ..?" मीनू झल्ला कर बोली...
"नही... "मैने जल्दी जल्दी में कह दिया.. तभी उसकी बात शायद मेरी समझ में आ गयी," हाआँ... इसीलिए तो मैं आपसे ये पूच्छ रही थी कि....!" कह कर मैं फिर चुप हो गयी....
"क्या? ... बोल ना!"
"ववो.. आप बता रहे थे ना... कि 'गोलियाँ' आती हैं....!" मैने नज़रें चुराते हुए कहा....
"हे भगवान... अंदर ही?" मीनू गुस्से से बोली..," इतनी तो अकल होनी चाहिए थी ना.. हद कर दी यार...!"
मैं जवाब देती भी तो क्या देती.. हद तो अब पार कर ही चुकी थी मैं... कुच्छ देर वहाँ सन्नाटा छाया रहा.. फिर मुझे बोलना ही पड़ा..,"वो.. वो गोली मिल जाएगी ना?"
पिंकी मामले की नज़ाकत को भाँप कर मीनू की गोद से हटी और एक तरफ बैठ कर हम दोनो के चेहरों को देखने लगी...
"वो तो 24 घंटे के अंदर लेनी होती है.... और 'वो' अब मिलेगी कहाँ से...?" मीनू झल्ला उठी थी... शायद 'वो' दिल से मेरी चिंता कर रही थी....
"आप ले आना ना.. कल शहर से...!" मैने अनुनय से उसकी आँखों में देखा...
"मैं... तू पागल हो गयी है क्या?.. मैं जाकर ये बोलूँगी कि मुझे 'इपिल्ल' दे दो... मैं कहीं से भी शादी शुदा लगती हूँ क्या?.. ना.. मेरे बस का नही है.. जाकर ऐसे बोलना....!" मीनू ने सॉफ सॉफ कह दिया.. फिर मेरे चेहरे के रुनवासे भाव पढ़ कर बोली," मैं... मैं तो सिर्फ़ इतना कर सकती हूँ कि किसी सहेली को बोल दूँगी.. अगर किसी ने लाकर दे दी तो मैं ले आउन्गि...."
"ये.. 'इपिल्ल' क्या होती है दीदी?" पिंकी हमारी एक एक बात को पी रही थी....
"कुच्छ नही... गोली होती है एक.. उस'से 'बच्चा' होने का भय नही रहता.. अब ज़्यादा मत पूच्छना..." मीनू के कहा और चिंतित सी होकर बड़बड़ाती हुई उपर चली गयी....
मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छाता जा रहा था.... समझ में आ नही रहा था कि क्या करूँ और क्या नही.. मेरा वेहम इतना बढ़ गया कि पेट में 'पानी' हिलने की भी आवाज़ होती तो लगता जैसे 'बच्चा' बन रहा है... अब कल गोली आने का भी पक्का चान्स नही था... 24 घंटे के अंदर नही मिली तो मैं क्या करूँगी....' सोचते हुए मैने अपना माथा पकड़ा और सुबकने लगी...
"रो मत अंजू... उस 'कुत्ते कामीने' को मैं छ्चोड़ूँगी नही!" पिंकी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा....
"उस'से क्या होगा पिंकी...!" मैं सुबक्ते हुए ही बोली और अचानक सिर उठा कर बोली..," मैं संदीप को ही बोल दूँ तो?... वही लाकर देगा अब गोली भी.....!"
"ना...! उस'से अब कभी बात मत करना...." पिंकी ने गुस्सा उगलते हुए कहा..," इस'से अच्च्छा तो आप 'हॅरी' को बोल दो...!"
"हॅरी?... हॅरी कौन..?" मुझे ध्यान ही नही आया कि 'वो' किस हॅरी की बात कर रही है....
"अरे.. 'वो.. हरीश...! उसका यही काम है... क्या पता उसके पास 'इपिल्ल' भी मिल जाए..." पिंकी ने कहा....
"वो.. जिसने स्कूल में कॅंप लगवाया था डॉक्टर. मलिक का...?" मैने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था.....
"हां... उसका 'दवाइयों' का ही काम है... चल उसके पास चलते हैं... उसके पास नही होगी तो भी कहीं से 'आज' ही मंगवा देगा.....
"पर... पर अगर उसने किसी को बोल दिया तो?" मैने अपने डर की वजह उसको बताई....
"ऐसे कैसे बोल देगा? हम मना कर देंगे तो... चल.. अभी चलते हैं.. दीदी को बोल कर...!" पिंकी ने कहा और खड़ी हो गयी.....
"पर... फिर भी.. तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नही है... क्या सोचेगा 'वो'? ये गोली कोई सिरदर्द बुखार की थोड़े ही है जो 'वो' तुम्हे दे देगा और किसी को बताना भूल जाएगा...!" मीनू को हमसे जिरह करते करीब 15 मिनिट हो चुके थे...
"नही बताएगा ना 'वो' दीदी.. मुझे पता है!" पिंकी ज़ोर देकर बोली....
"अच्च्छा... क्या पता है तुझे? ज़रा हमें भी बता दे...! 'तू' जानती नही इन्न लड़कों की फ़ितरत को... इन्हे तो बस एक बहाना चाहिए.. लड़की की कमज़ोरी मिली नही की सीधे 'घटीयपन' पर आ जाते हैं... भूल गयी तरुण को....?" मीनू ज़रा तीखे तेवर में बोली....
"पर.. दीदी... अंजू को दवाई भी तो चाहिए ना.. ! और किसी को बोल भी नही सकते...!" पिंकी की आवाज़ थोड़ी धीमी हो गयी...
"अच्च्छा.. एक काम करना.. उसके पास तुम'मे से एक ही जाना... अंजू.. तू ही चली जाना.. ये घर के बाहर खड़ी हो जाएगी... ठीक है...?" मीनू ने आख़िरकार हथियार डाल ही दिए....
मुझसे पहले ही पिंकी ने जवाब दे दिया..," हां.. ठीक है.. चल अंजू.. जल्दी!" पिंकी ने कहा और मुझे नीचे खींच लाई....
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हम 15 मिनिट में ही उस घर के पास पहुँच गये जहाँ हॅरी किराए के मकान में रहता था.. हमें दूर से ही हॅरी घर के बाहर ही दोस्तों के साथ बैठा दिखाई दे गया....
"अफ.. इसके साथ तो गाँव के और भी लड़के हैं... अब क्या करें...?" मैं चलते चलते धीरे से फुसफुसाई....
"सीधी चल.. थोड़ी आगे चलकर वापस आ जाएँगे... क्या पता तब तक चलें जायें..." पिंकी ने कहा और हम सीधे उनसे आगे निकल गये....
"ओये हॅरी.. देख.. तेरी गुलबो! आज उस तरफ का चाँद इधर कैसे निकल आया... हा हा हा... और उसके साथ रस-मलाई भी है.. हाए क्या मस्त कूल्हे हैं यार...!" उनसे आगे निकलते ही मेरे कानो में किसी लड़के के ये बोल पड़े... मेरी समझ में नही आया था कि 'उसने' गुलबो किसको कहा और रस-मलाई किसको... पर मुझे विश्वास था; 'वो' ज़रूर मेरे ही कुल्हों की तारीफ़ में आहें भर रहा होगा...
"ये लड़के कितने 'बकवास' होते हैं.. है ना अंजू!" शायद पिंकी ने भी ज़रूर 'वो' कॉमेंट सुना होगा....
"हां.." मैने मरी सी आवाज़ में उसकी बात का समर्थन किया... 'ये' यहाँ से नही गये तो...?" मैने पूचछा....
"क्या करें..?" पिंकी ने कुच्छ सोचते हुए बोला..," हां.. एक आइडिया है...!"
"क्या?" मैने उत्सुकता से पूचछा....
"हम 'उसको जाकर बोलते हैं कि बुखार की दवाई चाहिए... 'वो' लेने अंदर जाएगा तो हम उसको बोल देंगे....!" पिंकी ने खड़े होकर कहा...
"हां.. ये सही है....!" मैं उसका आइडिया सुनकर खुश हो गयी....
"चल.. चलते हैं....." पिंकी ने कहा और हम 'वापस' मूड गये....
हमें वापस उनकी तरफ आते देख सब लड़कों की आँखें अचानक चील कौओं जैसी खिल गयी... जैसे हमारे 'माँस' को खाने के लिए व्याकुल हो उठे हों... पर क्या करते.. हॅरी के बिना उस दिन गुज़रा तो था नही... हम जाकर लड़कों के सामने खड़े हो गये....
हम दोनो में से जब लगभग 10 सेकेंड तक आवाज़ नही निकली तो 'लड़कों' में दबे सुर में 'खीर खीर' शुरू हो गयी... मैने हड़बड़ा कर पिंकी के मुँह की ओर देखा... पिंकी तुरंत बोल पड़ी..,"वो.. बुखार की टॅबलेट मिल जाएगी क्या?"
"किसको हो गया...?" हॅरी ने अपनी चेर से खड़े होकर बड़े 'प्याआअर' से पूचछा...
"ववो.. मुझे ही..." पिंकी ने अचकचा कर झूठ बोला....
"हां.. हां.. क्यूँ नही....एक मिनिट.. मैं अभी लाया..." कहते हुए हॅरी ने मानो अपनी सारी विनम्रता को ही 'पिंकी' पर निचोड़ दिया... और जाने लगा...
"नही नही.. मैं साथ ही आ रही हूँ...!" पिंकी ने कहा और उसके पिछे हो ली... मैं ये सोचकर वहीं खड़ी रही कि मीनू ने एक को ही जाने को कहा था....
"तेरी तो लाइफ बन गयी प्यारे! जल्दी आजा.. पार्टी हो गयी आज तो.." मेरे पास खड़े लड़कों में से एक ने कहा और इस तरह सीटी बजाने लगा जैसे......
"कल्लूऊओ बेटा...."लड़कों में से एक ने कहा... मैं उनसे थोड़ी दूर हटकर अपना मुँह फेर कर खड़ी हो गयी थी...
"साले तेरी मा की... तरीके से मैं तेरा चाचा लगता हूँ.. .. देख भाल कर बोला कर.. नही तो मार लूँगा यहीं उल्टा डाल के... मेरा तो पहले ही काबू में नही है.. 'ऐसा 'पीस' देख के... साला इंडिया में क़ानून नही होना चाहिए था.. हे हे..!" एक की आवाज़ मुझे सुनाई दी.. मुझे ऐसे जुमले सुन'ने की आदत थी.. मैं समझ गयी थी कि किस 'पीस' की बात हो रही है...
"आबे वही तो मैं बोल रहा हूँ... 'साले' तू 'खरबूजे' तो देख एक बार... 'स्विफ्ट' के पिच्छवाड़े की 'तरह' मस्त 'गोलाई' है... इष्ह..."
तभी कोई तीसरी आवाज़ मुझे सुनाई दी...," छ्चोड़ो ना यार.. हॅरी का तो लगता है आज 'काम' बन गया... अकेली गयी है.... मुझे तो पक्का...." तभी 'वो' एकद्ूम चुप हो गया.... मुझे हॅरी की आवाज़ सुनाई दी...,"चाबी पड़ी होगी यहाँ... देखना..."
मैने पलट कर देखा.. पिंकी उसके पिछे ही थोड़ी दूर खड़ी थी.... हॅरी ने चाबी उठाई और वापस चल दिया... इस बार मैं भी वहाँ खड़ी ना रह सकी.... मैं भी पिंकी के साथ हो ली....
क्रमशः.........................................
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