RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
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"अच्च्छा.. मैं चलता हूँ...!" मानव ने आनमने मंन से घर के अंदर झाँकते हुए कहा..
"नही सर... अब आ ही गये हैं तो चाय पीकर जाइए ना... 'वो' आपको कुच्छ बताना भी है..."घर पहुँचने के बाद पिंकी की आवाज़ में आत्मविश्वास सा आ गया था.....
शायद मानव को तो कहने भर की देर थी.. बाइक तो उसने पहले ही बंद कर रखी थी.. पिंकी के बोलते ही उसने वहीं स्टॅंड लगाया और हल्का हल्का मुस्कुराता हुआ घर के अंदर चला आया... नीचे कोई नही था...
"मम्मी..." पिंकी ने सीढ़ियों की तरफ मुँह करके ज़ोर से आवाज़ लगाई....
"मम्मी पापा नही हैं.. शहर गये हैं... पेपर कैसा हुआ...?" उपर से नीचे आती मीनू की मधुर आवाज़ हमारे कानो में गूँजी... पिंकी ने कोई जवाब नही दिया.. और सीढ़ियों में खड़ी खड़ी मीनू को नीचे उतरते देखती रही...
"वो 'लंबू' आया था क्या स्कूल में.. इन्न्णस्पेक्टोररर्र मानव!" मीनू पर जाने कौनसी मस्ती चढ़ि थी.. 'इनस्पेक्टर' इस तरह बोला जैसे 'ट्रॅक्टर' बोल रही हो... पिंकी की सिट्टी पिटी गुम हो गयी.. उसके मुँह से तो आवाज़ ही ना निकली... और जैसे ही मीनू सीढ़ियों से उतर कर नीचे आई.. उसकी तो हालत ही पतली हो गयी..,"वववू.. ववो.." मीनू ने हकलाते हुए कुच्छ कहने की कोशिश की और बचने का सबसे आसान तरीका उसको 'वापस' उपर भागना लगा...
पर वो जैसे ही तेज़ी से पलटी... मानव ने उसको टोक दिया...,"आ.. सुनो!"
मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... अभी अभी नाहकार आई मीनू 'बला' की हसीन कयामत लग रही थी... 'वो' अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे आई थी.. जो अब खिसक कर उसके कंधे पर आ गिरा था... और पानी की बूंदे 'टपक' कर उसके मादक कुल्हों को यहाँ वहाँ से पारदर्शी करती जा रही थी...हल्क सलेटी रंग के 'लोवर' के अंदर उसके मादक कसाव और मस्त गोलाई लिए हुए 'नितंबों' को क़ैद किए हुए उसकी 'पॅंटी' के किनारे बाहर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे... अलग से ही दिख रहे उसके कहर धाते नितंबों के बीचों बीच गहरी होती 'खाई' का कटाव थोड़ी डोर जाकर 'अंधेरे' में गुम हो रहा था.... मैने चोर नज़रों से मानव की ओर देखा.. उसकी नज़रें भी वहीं जमी हुई थी...
"ज...जी सर...!" मीनू के पलटते ही उसके 'लब' थिरक उठे... मुझे मीनू उस दिन से पहले कभी इतनी खूबसूरत नही लगी थी... या फिर शायद आज मैं उसको 'मानव' की नज़रों से पढ़ने की कोशिश कर रही थी... बहुत दीनो बाद आज पहली बार मीनू मुझे 'टॉप' में नज़र आई थी... उसकी मद भरी गोल गोल चूचियो से लेकर उसके कमसिन पेट तक 'टॉप' उसके बदन से चिपका हुआ था...उसकी मांसल जांघों के बीच तिकोने आकर में उसका 'योनि' प्रदेश और नीचे की तरफ 'भगवान' की अनुपम कृति...; अबला 'नारी' को मिला ताकतवर 'मानव' को अपनी उंगलियों पर नचाने का 'पासपोर्ट' ; 'उस' लंबवत 'काम चीरे' का हल्का सा अहसास उसके लोवर के बाहर से ही हो रहा था....
काफ़ी देर तक मंत्रमुग्ध सा 'मानव' अधीर होकर मीनू को देखता ही रहा.. पिंकी भी मीनू के पिछे खड़ी इस तमाशे को समझने की कोशिश कर रही थी.... कम से कम 'डरी हुई' तो मीनू को कह ही नही सकते थे... पिंकी शायद ये समझ नही पा रही थी कि 'वो' शरमाई हुई सी क्यूँ है...
मीनू एक बार फिर से थोड़ी तिर्छि होकर बुदबुदाई..," ज्जई...."
"ववो.. इस... इन्न्णस्पेकओर्रर्ररर मानव उर्फ लंबू का एक प्याला चाय पीने का मंन कर रहा है..." बोलते हुए मानव ने ज्यों की त्यों मीनू की नकल उतारी....
"ज्ज.. ज्जई.. नही.. ववो.. मतलब.. मैं....... लाती हूँ....!" बुरी तरह झेंप कर मीनू के बदन में उपर से नीचे तक कंपन सा चालू हो गया था... उसके मदमस्त अंगों में अचानक ही थिरकन पैदा हो गयी थी....
"म्मैई लाती हूँ दीदी... " पिंकी ने कहा और मीनू का जवाब सुने बगैर ही उपर भाग गयी... मीनू कंपकँपति आवाज़ में बोलती रह गयी.. ,"सुन तो....!"
"बैठो तो सही यार..!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा...
"ज्जई.." मीनू ने बहूदे तरीके से तौलिया अपनी छातियो पर डाला और मेरे पिछे छिप कर बैठ गयी.. उसके गोरे गालों की रंगत गुलाबी हो चुकी थी....
"मुझे पता नही था तुम मेरे पिछे से मुझे 'इतनी' इज़्ज़त देती हो.. 'लंबू'.. वाह.. क्या नाम दिया है...!" मानव ने हंसते हुए कहा...
"ज्जई.. नही.. ववो तो मैं.. यूँही बोल गयी थी.." मीनू ने मिमियाते हुए इतनी धीरे बोला की शायद ही मानव को उसका जवाब सुना होगा...
"अब मेरा कुसूर भी बता दो.. यूँ नाराज़ होकर छिप कर क्यूँ बैठ गयी हो..!" मानव की आवाज़ में उल्लास था.. कामना थी.. शरारत थी!
मैं मानव का मतलब समझ कर वहाँ से उठने लगी तो मीनू ने मुझे कसकर पकड़ लिया..,"नही.." मीनू की आवाज़ भी उसके काँपते हाथों की तरह लरज रही थी...,"मैं अभी आई.." मीनू ने हड़बड़ाहट में कहा और उपर भाग गयी...
"बड़ी प्यारी है.. है ना!" मानव ने उसके जाने पर कहा तो मैने अचकचा कर उसकी तरफ देखा... ज़ालिम ने मुझ पर तो एक बार भी ध्यान नही धारा..,"आ.. सीसी..कौन.. म्मीनू..? हहान...!" मैं हड़बड़ाहट से बोली और अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी...
तभी पिंकी चाय और नमकीन लेकर आ गयी.. आकर मेरे पास खड़ी हुई और झुक कर मेरे कान में बोली..," वो.. स्टूल रख इनके आगे...!"
मैं चारपाई से खड़ी हुई और स्टूल सरका कर मानव के आगे रख दिया.. पिंकी ने चाय और नमकीन उस पर रख दी और मेरे पास आकर बैठ गयी... थोड़ी देर बाद ही मीनू भी नीचे आ गयी.. एक अलग ही पहनावे में.. सलवार कमीज़ थी.. पर 'वो' भी उसने छांट कर ही पहनी लगती थी.. मैने उसको उस दिन से पहले 'वो' सूट डाले नही देखा था.. शायद नया सिलवाया होगा... चुननी से अपनी छातियो अच्छि तरह ढके मीनू नज़रें झुकाए हमारे पास आकर बैठ गयी...
मानव लगातार टकटकी बाँधे मीनू को देख कर मुस्कुरा रहा था.. मैने मीनू के चेहरे की ओर देखा.. अब भी लज्जा से 'लाल' चेहरा रह रह कर तिर्छि नज़रों से मानव की ओर देखने की कोशिश करता और उसको अपनी ही और देखता पाकर वापस झुक जाता... हर बार मीनू थोड़ी सी पिछे भी सरक जाती...
"ववो.. आपको एक और बात बतानी थी सर...!" मुझसे दोनो की आँखों ही आँखों में मजबूत होती जा रही 'प्रेम-डोर' रास ना आई और मैं बोल पड़ी....
"क्या? बोलो!" मानव ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा....
मैं कुच्छ सोच कर बोलती.. इस'से पहले ही मीनू ने बोलना शुरू कर दिया..,"ववो..सर्र..."
बोलती हुई मीनू को मानव ने फिर टोक दिया...,"नही.. लंबू भी अच्च्छा लगता है..!"
उसके बाद तो मीनू बोल ही नही पाई... और मुझे ही बोलना पड़ा..," सोनू का मोबाइल गाँव के एक लड़के के पास है सर..!"
"ढोलू के पास है ना!" मानव का जवाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी..,"आ.. आपको कैसे पता?"
"और नही तो डिपार्टमेंट क्या हमें घास चराने के पैसे देता है....!" मानव ने अजीब से लहजे में कहा.. पर आगे कुच्छ बोला नही...
"कहीं.. सोनू को उसी ने ना...." मैं मानव को आगे ना बोलते देख कर बोली.. पर उसने मुझे बीच में ही टोक दिया...,"जाँच चल रही है... अभी कुच्छ कहना मुश्किल है.... वैसे... ढोलू भी कल से ही घर से गायब है.. पोलीस आई थी रात को उसको लेने.. पर वह पहले ही गायब हो गया था.. शायद किसी तरह से उसको भनक लग गयी थी....!"
"ओह्ह.. अच्च्छा सर!" मैने भगवान का शुक्रा मनाया मैं कल रात उसके घर नही थी..,"पर... आपको कैसे पता चला ये सब...?"
"और कोई खास बात हो तो बताओ!" मानव ने मेरी बात पर ध्यान नही दिया... मैं मन मसोस कर रह गयी.....," नही.. औ तो कुच्छ नही है...." मैने कहा....
"ठीक है.. अभी चलता हूँ..." मानव ने खड़ा होकर मीनू की ओर देखा...
मीनू चुपचाप खड़ी हो गयी.. जैसे ही मानव दरवाजे तक पहुँचा.. मीनू शरमाते हुए बोली..," सॉरी!"
"ठीक है.. शुक्र है सॉरी तो बोला..." मानव ने मुस्कुरकर कहा और बाहर निकल गया.....
मानव के जाते ही मीनू पिंकी पर पिल पड़ी... पिंकी को चारपाई पर गिराया और तकिये से उसको 'धुन'ना शुरू कर दिया....
"क्यूँ मार रही हो दीदी.... मैने क्या किया है...?" पिंकी हंसते हुए बोली....
मीनू जब हटी तो बुरी तरह हाँफ रही थी... उसके गालों की रंगत अब भी गुलाबी थी और चूचिया तेज़ी से उठ बैठ रही थी...,"मैने क्या किया है..." मीनू उसकी नकल उतार कर बोली..,"बता नही सकती थी कि नीचे मानव आया है....!"
पिंकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी...,"मानव नही दीदी.. लंबू इन्न्णस्पेक्टोररर्र.. बोलो... हे हे हे...."
"बोलूँगी.. तुझे क्या है... लंबू लंबू लंबू..." मीनू ने कहा और फिर बिना किसी के कुच्छ कहे ही शर्मा कर कंबल में घुस गयी.....
क्रमशः...............
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