RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--24
गतान्क से आगे................
जब तक चाचा चाची नही आ गये, पिंकी ने उसको चिदाना नही छ्चोड़ा.. कुच्छ देर बाद मैं भी पिंकी के साथ ही मीनू को बातों ही बातों में तंग करने लगी थी.. पर चाचा चाची के बाद हमें शांत हो जाना पड़ा.. मीनू के चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे मानव का नाम ले ले कर उसको तंग किया जाना उसको अच्च्छा लग रहा था.. चाचा चाची के आने पर उसका मूड ऑफ सा हो गया...
"पापा.. आज में अंजू के साथ इसके घर सो जाउ क्या?" पिंकी की इस बात से मुझे भी हैरानी हुई.. मेरे आगे उसने ऐसा कुच्छ जिकर किया नही था...
"क्यूँ? यहाँ क्या दिक्कत है बेटी..? अंजलि भी तो रोज़ यहीं सोती है..." पापा ने प्यार से पूचछा....
"ययए.. ये मीनू हमें पढ़ने नही देती यहाँ...!" पिंकी ने जाने ऐसा क्यूँ कहा...
"क्यूँ..?" मीनू तरारे से बोली...," मैं क्या सींग मारती हूँ तेरे पेट में... पापा! जब से आई है इसने किताब खोल कर नही देखी.. खंख़्वाह मेरा नाम ले रही है....!"
"पिनकययययी! तू बहुत शरारती होती जा रही है आज कल... चलो किताब खोल के पढ़ाई करो...!" चाचा ने कहा और उपर चले गये....
मीनू अब भी गुस्से से अपने कुल्हों पर हाथ रखे पिंकी की ओर देखे जा रही थी.. पिंकी ने शरारत से उसकी और जीभ निकल दी और फिर हँसने लगी.....
"देख लो मम्मी अब इसको!" मीनू तुनक कर बोली....
चाची ने मीनू के लहजे पर ध्यान नही दिया...," आजा बेटी.. उपर आजा.. थोड़ी देर काम में मदद कर दे.. बहुत थक गयी हूँ....!" चाची भी कहते कहते उपर चढ़ गयी...
"वापस आने के बाद बताती हूँ तुझे...!" मीनू ने बनावटी गुस्से से पिंकी की ओर उंगली की....
"लंबू.. लंबू.. लंबू... हे हे हे!" पिंकी ने उसको जाते जाते भी छेड़ ही दिया... फिर उसके जाते ही गंभीर सी होकर बोली...,"तूने गोली.. ले ली क्या अंजू?"
"हां.. 'वो' तो मैने आते ही ले ली थी..." मैने कहने के बाद उस'से पूचछा..," तू हमारे घर चलने के लिए क्यूँ कह रही थी....
पिंकी जवाब देते हुए कहीं खो सी गयी..," आ.. नही.. बस ऐसे ही....!"
"वो.. मुझे तो अभी भी डर लग रहा है कि हरीश किसी को बोल ना दे... तूने बताया भी नही कि तू उसको इतने अच्छे से कैसे जानती है...!" मैं जाकर उसकी चारपाई पर ही बैठ गयी...
"अर्रे.. अच्छे से नही जानती पागल... पर मुझे ये पता है कि 'वो' बुरा लड़का नही है... मुझे विश्वास है कि 'वो' किसी को नही बोलेगा....!"
"पर तुझे विश्वास कैसे है..? कुच्छ तो बता ना! मुझे सच में डर लग रहा है..." मैने कहा....
"तू किसी को बताएगी तो नही ना...!" पिंकी की आवाज़ धीमी हो गयी...
"नही.. मैं पागल हूँ क्या?" मैं उत्सुकता से उसकी और सरक गयी...
"पहले मेरी कसम खा!" पिंकी अब भी कुच्छ बताने से हिचकिचा रही थी...
"तेरी कसम ले! बता ना जल्दी.. फिर मीनू आ जाएगी....!" मुझे लगने लगा था कि कुच्छ ना कुच्छ 'कपड़ों के नीचे' की ही बात है....
"ववो..." पिंकी ने इतना कहते ही मेरी आँखों में आँखें डाल कर सुनिसचीत किया कि मैं सच में ही उसकी बात को 'राज़' रखूँगी या नही.. फिर कुच्छ हिचकते हुए बोली...," ववो.. एक बार 2 गाँव के लड़कों ने मुझे अंधेरे में तालाब के पिछे वाली झाड़ियों में पकड़ लिया था... तब 'वहाँ' इसी ने मुझे उनसे बचाया था.. मुझे तब डर लग रहा था कि अब 'ज़रूर' ये बकवास करेगा.. पर 'ये' मुझे घर तक ठीक ठाक छ्चोड़ कर गया था... इसीलिए मुझे विश्वास है कि 'ये' तेरी बात भी किसी को नही बताएगा...."
मैने आस्चर्य से मुँह खोल कर पिंकी की ओर देखा..,"सच! कब हुआ था ये... पूरी बात बता ना प्लीज़....."
"नही.. मुझे शर्म आ रही है... पूरी बात नही बता सकती..." पिंकी नर्वस हो गयी...
"धात पागल.. मुझसे कैसी शर्म.. बता ना... 'कौन' थे वो लड़के...?"
"पता नही.. अंधेरे में मैं उनको पहचान नही पाई थी... और मेरी आवाज़ सुनकर हॅरी झाड़ियों में आ गया.. इसको देखते ही 'वो' मुझे छ्चोड़ कर भाग गये थे.. उसने भी उनको नही देखा...!" पिंकी ने बताया....
"पूरी बात तो बता दे.. ऐसे मेरी समझ में कैसे आएगा कि असल में हुआ क्या था... बता ना प्लीज़..." मैने ज़ोर देकर पूचछा....," और तू तालाब के पार क्या करने गयी थी.. कब हुआ था ये...?"
पिंकी कुच्छ देर चुपचाप अपना सिर लटकाए बैठी रही.. शायद वा अपनी यादों को ताज़ा कर रही थी..,"......... तू किसी को भी नही बोलेगी ना! देख मैने ये बात आज तक मम्मी को भी नही बताई है...!"
"नही बताउन्गि ना यार.. मुझ पर विश्वास नही है क्या? तेरा पास भी तो मेरा इतना बड़ा राज़ है... रुक एक मिनिट.. मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ..", उसको राज़ी होते देख मैं उत्सुकतावश खड़ी हो गयी...
"नही रहने दे... ऐसे ही ठीक है.. दरवाजा बंद करेंगे तो मीनू को शक़ होगा... तू दूसरी चारपाई पर आकर अपनी किताब खोल ले.. बताती हूँ..", बोलते हुए पिंकी के चेहरे पर हुल्की सी उदासी सॉफ पढ़ी जा सकती थी....
"हां.. बता... अब!" मैं जाकर उसके पास वाली चारपाई पर बैठ गयी.....
पिंकी ने गहरी साँस लेने के बाद बोलना शुरू किया...,"वो.. पिच्छले अक्टोबर की बात है... पापा घर पर नही थे.. इसीलिए मुझे भैंसॉं को शाम को तालाब पर लेकर जाना पड़ा था.. " बोलकर पिंकी चुप हो गयी और मेरे चेहरे को देखने लगी...
"अच्च्छा...", मैने उत्सुकता से हुंकार भरी....
"जब मैं तालाब पर गयी तो वहाँ बहुत से लोग थे.. धीरे धीरे सब की भैंस निकालने लगी और एक एक करके सब अपने अपने घर जाने लगे.. अंधेरा होने लगा था.. पर हमारी भैंसे बाहर नही आई..." पिंकी ने आगे बोला....
"फिर?", मैने पूचछा...
"फिर मैने एक लड़के से अंदर जाकर हमारी भैंसे निकाल देने को कहा.. पर उसने पानी ठंडा होने की बात कहकर अंदर घुसने से इनकार कर दिया.. वैसे भी उनकी भैंसे बाहर निकल चुकी थी... वह भी मना करके भाग गया.. तालाब पर मैं अकेली ही रह गयी...", पिंकी बोलते हुए अब मेरे चेहरे को नही देख रही थी.. शायद वा नज़रें झुकाए पूरी तरह अतीत में खो गयी थी....
"ओह्ह.. फिर वो लड़के आए और तुझे ज़बरदस्ती झाड़ियों में ले गये.. है ना?", मुझसे अंदाज़ा लगाए बिना रहा ना गया... मेरी आँखों के सामने अभी से एक द्रिश्य तैरने लगा था जैसे दो लड़के पिंकी के बदन को नोच रहे हों....
"नही.. मैं बहुत उदास हो गयी थी.... मैने हताशा में पास पड़े पत्थर अपनी भैंसॉं की तरफ फैंकने शुरू कर दिए... उनमें से एक पत्थर हमारी भैंस की आँख के पास लग गया और वो उठ कर दूसरी तरफ चल दी... उसके पिछे पिछे बाकी दोनो भैंसें हो ली... झाड़ियों की ओर..."
"ओह्ह अच्च्छा.. फिर..?", मैने कंबल अपनी जांघों पर डाला और हाथ नीचे ले जाकर अपनी योनि को सहलाना शुरू कर दिया... 'काश.. कभी ऐसा मेरे साथ होता..' मैने मंन ही मंन सोच कर तड़प उठी थी....
"फिर क्या? ...अंधेरा होने वाला था.. अगर मैं उनके पिछे दूसरी तरफ ना जाती तो उनके खो जाने का डर था... मैं डरती डरती तालाब के किनारे किनारे दूसरी तरफ जाने लगी... बीच रास्ते में पहुँची तो 2 लड़के तालाब के किनारे पेशाब कर रहे थे... कुत्ते कामीनो ने मुझे देखते ही मेरी ओर मुँह कर लिया... बिना ज़िप बंद किए...!"
"आआआअ...!", मेरा एक हाथ आस्चर्य से खुल गये मेरे होंटो पर चला गया.. दूसरा हाथ तो 'वहीं' पर था...," तूने देख लिया..?"
"धात बेशर्म...!", पिंकी के गालों की रंगत मेरी बात सुनकर गुलाबी होने लगी..," एक बार तो मेरी नज़र 'वहाँ' चली ही गयी थी... पर मैने अपनी नज़रें तुरंत झुका ली और उनकी ओर बिना देखे उनके बीच से निकल कर आगे चली गयी..! मेरा आगे जाना ज़रूरी था ना!"
"उन्होने तुझे कुच्छ नही कहा...?", मेरी उत्सुकता चरम पर थी.. और मेरी योनि का कुलबुलाना भी....
"भौंक रहे थे कुच्छ कुच्छ.. ऐसे ही.. पर मैने ध्यान नही दिया... पर तब तक अंधेरा गहराने लगा था और डर के मारे मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. खास तौर से उन्न लड़कों की बकवास के कारण.... उनमें से एक लड़के की बात मुझे सॉफ सुनी थी.. 'वो' कह रहा था 'आ पकड़ लें बुलबुल को.. करारा माल है..."
"फिर...?" मैने अपनी उंगली कहने से पहले ही अंदर सरका चुकी थी... मेरी जांघों में कंपन बढ़ गया था....
"जैसे तैसे मैं दूसरी तरफ गयी तो झाड़ियों के बीच मुझे हमारी भैंसे चरती हुई दिखाई दे गयी... मैं दूसरी तरफ से उनके आगे जाकर उनको वापस मोड़ने का ख़याल बना ही रही थी कि मुझे पिछे से उन्न लड़कों के मेरी तरफ चल कर आने की आवाज़ सुनाई दी... मैं तुरंत पलट कर खड़ी हो गयी और भय के मारे थर थर काँपने लगी......"
"क्या हो गया छ्छोकरी? इस टाइम यहाँ क्या कर रही है..? तुझे डर नही लगता क्या? कोई तुझे अकेली देख कर तुझे..." "उन्होने बहुत गंदा शब्द इस्तेमाल किया था.." पिंकी उनकी बात बताते हुए बीच में रुक कर बोली..," मैं खड़ी खड़ी सिर से पाँव तक पसीना पसीना हो गयी....,"वववो.. भैया.. म्म्माइन.. अपनी भैंसे लेने आई हूँ... यहाँ आ गयी तालाब से निकाल कर..." "मैने थरथरते हुए अपनी भैंसॉं की तरफ इशारा किया..." पिंकी की आँखों में 'उसके' साथ गुजरा वो पल सजीव सा हो गया था...
"तू क्यूँ चिंता करती है... हम यहाँ खड़े होते हैं.. तू जाकर भैंसॉं को इधर भगा दे... हम उन्हे तेरे साथ साथ कर देंगे.. जा.. पुचह" "उन्होने कहने के बाद ऐसे किया..." पिंकी बोली....
"तू बता ना.. फिर मीनू आ जाएगी..." उत्तेजना के मारे मेरी जांघों में ऐथेन सी हो चुकी थी.....
"फिर मैं डरती डरती बार बार पिछे देखती झाड़ियों में जाने लगी तो मुझे एक लड़के की आवाज़ सुनाई दी....," देख.. कोई आ तो नही रहा..."
"उसकी आवाज़ की टोन पहचान कर मैं धक से रह गयी... मेरे पाँवों ने काम करना बंद कर दिया और मैं झाड़ियों के बीच खड़ी खड़ी काँपने लगी.... वो दोनो मुझे झाड़ियों के अंदर आते दिखाई दिए...
"ट्तूम.. इधर मत आओ... वहीं खड़े रहो..." मेरे मुँह से निकला...
"पर उनके कदम मेरी ओर बढ़ते चले गये.. एक ने कहा की भैंस उधर ना भाग जायें.. इसीलिए आगे आकर खड़े हो रहे हैं.... और पास आते ही एक ने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया...
"छ्चोड़ दो मुझे.. मुझे जाने दो... पापा अपने आप ले जाएँगे.. इनको..." मेरा बुरा हाल हो गया था... मैं उनकी और बिना देखे ही कुच्छ कुच्छ बोलती जा रही थी.. पर इतनी देर में तो दूसरे ने भी आकर मुझे पकड़ लिया था....
"चली जाना ... ऐसी भी क्या जल्दी है... " उन्होने उसके बाद मुझे गंदी गंदी बातें कहनी शुरू कर दी... मुझे लगने लगा था की 'वो' मेरा आख़िरी दिन है.. तभी जाने कहाँ से मेरे अंदर ताक़त आ गयी और मैं पूरा ज़ोर लगा कर चीखी... मैं दोबारा भी चीख लगाना चाहती थी.. पर इस'से पहले ही एक ने मेरा मुँह दबा लिया... और 'वो' दोनो मेरे कपड़े निकालने की कोशिश करने लगे....." बोलते हुए पिंकी मेरे सामने बैठी हुई भी काँपने लगी थी.....
"ऊओाअहह...फिर क्या हुआ?" मेरी योनि ने आगे सुने बिना ही पानी छ्चोड़ दिया था... मैने उंगली बाहर निकाल कर अपनी जांघों को एक दूसरी के उपर चढ़ा लिया....
"तभी भगवान की दया से हॅरी झाड़ियों के पास आ पहुँचा.. उसने शायद मेरी चीख सुन ली थी... पास आते ही उसने ज़ोर से कहा...," कौन है यहाँ?"
"उसकी आवाज़ सुनकर दोनो लड़के मुझे छ्चोड़ कर भाग गये..... मैं खड़ी खड़ी रोने लगी थी.. हॅरी ने पास आकर मुझसे पूचछा," कौन थे वो...?"
"उस घड़ी में मेरे लिए 'वो' किसी देवदूत से कम नही था... मैं कुच्छ बोल नही पाई.. पर जैसे ही वो मेरे पास आकर खड़ा हुआ.. मैं उस'से लिपट कर दहाड़ें मार कर रोने लगी...." पिंकी की आँखों में सच में ही आँसू आ चुके थे....
"ओह्ह.. रो क्यूँ रही है यार... कुच्छ हुआ तो नही ना..." मैने आगे होकर पिंकी के आँसू पौंचछते हुए कहा..,"फिर क्या हुआ?"
"थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही खड़ी रोती रही और 'वो' मुझे दुलर्ता हुआ झाड़ियों से बाहर ले आया... थोड़ी शांत होने पर में छितक कर उस'से अलग हो गयी...
"यहाँ क्या कर रही हो इस वक़्त.." हॅरी ने प्यार से मुझसे पूचछा था...
"म्मैइन.. अपनी भैंसॉं को लेने आई थी..." बोलना शुरू करते ही मुझे फिर से रोना आ गया....
"ओह्ह.. कोई बात नही... ये हैं क्या तुम्हारी भैंसें...?" हॅरी ने पूचछा था...
"हूंम्म.." मैने रोते हुए ही जवाब दिया....
"कोई बात नही.. मैं निकाल कर लाता हूँ...!" हॅरी बड़े प्यार से बात कर रहा था.. पर मेरे दिल में उन्न लड़कों की वजह से बार बार खटका हो रहा था...,"नही.. तुम चले जाओ.. मैं अपने आप निकाल कर ले जाउन्गि...!"
"ओके.. निकाल लो.. मैं यहीं खड़ा होता हूँ..." हॅरी ने कहा...
"मैं झाड़ियों की ओर जाने लगी तो फिर से मेरे कदम ठिठक गये.. मैं मूडी और बोली,"तुम जाओ पहले.. मैं बाद में निकालूंगी..." सच कहूँ तो उस वक़्त तक मुझे हॅरी से भी डर लगने लगा था.. कि कहीं झाड़ियों में जाते ही वो भी...."
"तुम पागल हो क्या...?" मैं यहाँ खड़ा होता हूँ.. तुम निकाल कर ले आओ..." हॅरी ने मुझे धमका सा दिया था.... पर मेरी उसके होते हुए झाड़ियों में जाने की हिम्मत नही हुई.. मैं वापस आ गयी,"ठीक है.. तुम्ही निकाल दो..."
हॅरी ने मेरे हाथ से च्छड़ी ली और भैंसॉं को वापस ले आया... सच कहूँ तो उसके साथ चलते हुए मुझे इतना डर लग रहा था कि मैं रह रह कर उसकी ओर देख रही थी कि कहीं मेरे पास तो नही आ रहा.... पर उसने ऐसा कुच्छ नही किया और हम दोनो भैंसॉं के साथ गाँव तक आ गये..."
"रोशनी में आने के बाद ही मैने पहचाना कि 'वो' हॅरी था... मेरे कलेजे को इतनी शांति मिली कि मेरी आँखों से खुशी के आँसू छलक उत्ते थे... पर उसने शायद मुझे मेरी आवाज़ से ही पहचान लिया था...
"कौन थे वो?" उसने पूचछा....
"पता नही.. मैने उन्हे पहचाना नही... अब तुम जाओ.. मैं चली जाउन्गि...!" मैने कहा...
"कोई बात नही.. मैने तुम्हारे घर की तरफ से होता हुआ निकल जाउन्गा..." हॅरी मेरे साथ साथ चलता रहा था...
"कहा ना तुम जाओ!" घर नज़दीक आते ही मैं उस पर भी शेर हो गयी..." पिंकी ये कहकर हँसने लगी....
मैं मुस्कुराइ..," फिर.. चला गया बेचारा?"
"नही... पिछे रह गया था मेरे डाँटने पर... पर मैने घर आने पर देखा था.. 'वो' मेरे पिछे पिछे आ रहा था...." पिंकी ने बात पूरी की.....
"बेचारा...!" मैं लंबी साँस लेकर बोली....,"तुमने उसको क्यूँ डांटा.. उसने तो तुम्हे बचाया ही था ना...."
"हां..." पिंकी सिर हिलाते हुए बोली....,"बाद में मुझे अफ़सोस भी हुआ था..और मैने एक दिन उसको इसके लिए सॉरी भी बोला था.... पर उस दिन में बहुत डरी हुई थी...."
"हूंम्म.. फिर उसने किसी को नही बताई ये बात....!" मैने पूचछा....
"नही.. बताई होती तो अपने गाँव के लड़के इतने गंदे हैं कि ताने मार मार कर ही मेरा जीना मुश्किल कर देते... मैने उस'से पूचछा भी था.. उसने मना कर दिया था कि किसी को नही बताई बात...."
"सच में बहुत अच्च्छा है फिर तो वो..?" मैने कहा....
"नही.. इतना भी अच्च्छा नही है.. मेरा नाम निकाल दिया था उसने.. 'गुलबो!' कहने लगा कि एक ही बात होती है.. और 'वो' प्यार से बोल देता है... मैने उसको सॉफ सॉफ कह दिया.. 'ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है.. हाँ!' उसके बाद उसने कभी नही बोला.. हे हे हे.." पिंकी का चेहरा खिल उठा....
पिंकी की इस बात पर मैं ना तो ढंग से हंस पाई.. और ना ही मैने कोई प्रतिक्रिया ही दी.. मेरा मंन तो अब भी तालाब के उस पार झाड़ियों में अटका हुआ था.. कल शाम 'संदीप' के साथ खेली गयी मेरी प्रथम 'रासलीला' की झलकियाँ मेरी आँखों में वासना के 'लाल डोरे' बनकर तैरने लगी थी और अब पिंकी की बात ने तो मेरी जांघों के बीच की 'अमिट' भूख को ज्वलनांक तक ही पहुँचा दिया था... मैने तकिया सिरहाने लगाया और लेट कर कंबल औध लिया.. मैं कल्पना करके देखना चाहती थी कि अगर झाड़ियों में मेरी भैंस गयी होती और नादान पिंकी की जगह 'वहाँ' मैं होती तो आगे क्या क्या होता...!
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