RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
पर पिंकी ने मुझे 2 पल के लिए भी चैन से लॅट्न ना दिया," आए... क्या हो गया?" पिंकी ने मुझे पकड़ कर हिला दिया...
"कुच्छ नही.. थोड़ी देर लॅट्न का मॅन कर रहा है..." मैने अपने चेहरे से कंबल हटते हुए आनमना सा जवाब दिया....
"ये लड़के ऐसे क्यूँ होते हैं अंजू.. ? अकेली लड़की को देखते ही भूखे भेड़िए क्यूँ बन जाते हैं.. हमें इस तरह डरकर ज़बरदस्ती करके क्या मिलता है इनको...?"
जाने अंजाने ही पिंकी ने मेरा पसंदीदा विषय छेड़ दिया था... मैने तुरंत तिरछि होकर अपने 'सिर' को कोहनी के सहारे टीका लिया," सब तो ऐसे नही होते ना.. हरीश ने तो तुम्हारे साथ कुच्छ ज़बरदस्ती नही की....!"
"हाँ.. सब तो नही होते.. पर ज़्यादातर ऐसे ही होते हैं.. तभी तो घर वाले लड़कियों को रात में बाहर जाने नही देते... 'ऐसे' ही कामीनो के डर से.. दुनिया में 'गंदे' लड़के नही होने चाहियें थे.. फिर तो हम भी देर रात तक घूम फिर कर आते.. जहाँ 'दिल' करता वहाँ खेलने जाते...! ऐसे लड़कों की वजह से ही हम लड़कियों का जीना हराम हो गया है.." पिंकी लड़कों को कोसने लगी....
"सब एक जैसे थोड़े होते हैं पागल! किसी को किसी काम में मज़ा आता है और किसी को दूसरे 'काम' में..." मैने जवाब दिया...
"क्यूँ? लड़की से ज़बरदस्ती करने में कैसा मज़ा? ये तो बहुत ही घटिया बात है ना...!" पिंकी तुनक कर बोली....
मुझे पिंकी की बातों की दिशा 'अजीब' ढंग से घूमती नज़र आई.. मुझे लगा जैसे वो इस बारे में और 'बात करना चाहती है.. मैं उत्साहित होकर बैठ गयी," हां.. 'वो' तो है.... पर... मैने सुना है कि लड़कियों को भी बाद में 'मज़ा' आने लगता है.. क्या पता 'वो' लड़के यही सोच कर 'लड़कियों' को छेड़ने लग जाते हों की बाद में हम अपने आप तैयार हो जाएँगी..."
"सुना क्या है? तूने तो कर भी लिया...." पिंकी मेरी आँखों में देखते हुए बोली और फिर नज़रों को झुका कर धीरे से बोली,"तुझे मज़ा आया था क्या?"
उसकी पहली बात सुनकर तो मैं सकपका ही गयी थी.. पर उसके पूच्छे सवाल ने मुझे दुविधा में डाल दिया.... मैं तब तक उसके चेहरे को घूरती रही जब तक की मेरे जवाब का इंतजार करने के बाद उसने मेरी आँखों में आँखें नही डाली..,"बोल!"
"अब क्या बताउ? 'हाँ' भी और 'नही' भी..." मैने सिक्का उच्छल दिया...
"ये क्या बात हुई? ढंग से बोल ना...!" पिंकी उत्सुकता से मेरी ओर देखती हुई बोली...
"सच बताउ?"
"हां.. सच ही तो पूच्छ रही हूँ...!" पिंकी लगातार मेरी आँखों में आँखें डाले रही.. जैसे मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो....
"हां.. आया था...!" मैने सीधे सीधे बोल दिया....
मेरा जवाब सुनते ही पिंकी की गालों से लेकर उसकी आँखों तक में 'लज्जा' पसर गयी..,"तुझे... शरम नही आई क्या?"
"अब ये क्यूँ पूच्छ रही है? हां.. बहुत आई थी.. पर मज़ा भी बहुत 'आया' था.. सच्ची...!" मैने कसमसा कर कहा...
"पर.. 'ये' काम तो शादी के बाद ही करते हैं ना... पहले करना तो 'पाप' होता है..." पिंकी ने शरमाते हुए कहा....
मुझे लगा कि पिंकी 'इस' मामले में मेरी सोच से कहीं ज़्यादा समझदार है...,"वो अलग बात है... मैं तो बस 'मज़े' की बता रही हूँ... मज़ा तो आता ही है.. सच में..!"
"चल छ्चोड़.. हम भी कैसी बातें करने लग गये...!" पिंकी को शायद अभी अहसास हुआ कि 'हम' कहाँ से कहाँ पहुँच गये थे....
"अच्च्छा ये बता.. तू शादी करेगी तो कैसे लड़के से करेगी...!" मैं बात जारी रखना चाहती थी...
"छ्चोड़ ना.. ये क्या लेकर बैठ गयी तू.. अभी तो बहुत टाइम है इन्न बातों के लिए.." पिंकी थोड़ा झेंप कर बोली....
"बता ना.. बस ये आख़िरी बात...!" मैने ज़ोर देकर कहा...
"उम्म्म्मम..." पिंकी बोलते बोलते रुक कर आँखें बंद करके मुस्कुराने लगी.. उसके गोरे गालों में मुस्कुराहट के चलते गड्ढा सा बन गया.. 'वो' गड्ढा'; जो मुझे पिंकी के पास लड़कों के मर मिटने के लिए सबसे कातिल चीज़ लगता था... ऐसा लगा जैसे उसके मानस पटल पर 'कोई' तस्वीर साक्षात हो गयी हो..,"उम्म्म्म.. हॅरी..... हॅरी जैसा...!" उसने आँखें बंद किए हुए ही बोला और फिर अपने होन्ट जैसे 'सी' कर मुस्कुराती रही....
"क्या?" मेरा रोम रोम 'उसके' दिल का राज सुनकर झन्ना उठा...,"तुझे हॅरी से प्यार है..?"
"चल हट.. बेशर्म!" पिंकी के गाल गुलाबी से हो गये और 'वो' सच में ही 'गुलबो' सी लगने लगी..," मैने ऐसा थोड़े ही कहा है.. मैने सिर्फ़ 'उस' जैसा कहा है.. मैं किसी से प्यार व्यार नही करती...."
"पर मतलब तो यही हुआ ना...!" मैने खिलखिला कर उसको छेड़ते हुए कहा....
"क्यूँ..? यही मतलब कैसे हुआ... पर मुझे सच में ऐसा ही लड़का चाहिए 'जो' 'लड़की' होने की मर्यादायें जानता हो... जो उसकी भावनाओ की कद्र कर सके.. जिसको 'प्यार' का 'असली' मतलब पता हो... 'जो' लड़की के 'लड़की' होने का फ़ायडा उठना ना जानता हो...!" पिंकी भाव विभोर होकर बोली....
"पर.. हॅरी ऐसा ही तो है.. शकल में भी कितना 'क्यूट' सा है.. और जो तू कह रही है.. 'वो' सारी' बातें तो उसमें हैं ही.... हैं ना?" मैने उसको उकसाने की सोची...
"चल हट अब.. बकवास मत कर मेरे साथ... वैसे.. मानव और मीनू की जोड़ी कैसी लगती है तुझे...?" पिंकी बात को टालते हुए बोली....
"मस्त है एक दम...!" मैने दिल पर पत्थर रख कर कहा...," पर तू ऐसा क्यूँ बोल रही है.. कुच्छ बात है क्या इनकी..?" मैने पूचछा...
"पता नही.. पर मुझे लगता है कि कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर है....मीनू अकेली होते ही मुझे 'मानव' की बातें कर कर के बोर करने लग जाती है... और कल मानव की बातों से भी मुझे ऐसा लगा....
तभी मीनू नीचे आ गयी..," क्या बातें हो रही हैं अकेले अकेले..!"
"लंबू की..!" पिंकी ने कहा और हम दोनो खिलखिला कर हंस पड़े...... मीनू ने आकर पिंकी की चोटी पकड़ कर खींच ली..,"तेरी पिटाई करनी पड़ेगी मुझे... अब पढ़ी क्यूँ नही तुम दोनो.. बाद में कहोगी की मैं पढ़ने नही देती.... पापा ने बोला है कि कहीं नही जाना... यहीं सोना है तीनो को!"
क्रमशः.......................
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