RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--25
गतान्क से आगे.............
उस दिन मैने खाना भी वहीं खाया और हम तीनो अपनी अपनी किताब खोल कर बैठ गये.. उनका पता नही.. पर मैं सिर्फ़ किताब को खोले बैठी थी.. कुच्छ पढ़ नही रही थी.. वैसे भी अगले दिन संस्कृत का पेपर था और मुझे विश्वास था कि 'वो' पेपर तो 'संदीप' पूरा ही कर देगा.....
अर्रे हां.. मैं 'वो' डॉक्टर वाली बात बताना तो भूल ही गयी थी... जब हम दोनो हॅरी के पास 'वो' गोली लेने गये थे तो मुझे कतयि विश्वास नही था कि हॅरी हमसे इतनी शराफ़त से पेश आएगा.. में समझती थी कि डॉक्टर्स के पास तो इलाज के बहाने कहीं भी हाथ लगाने का लाइसेन्स होता है... और 'उस' गोली के लिए तो मुझे लग रहा था कि हॅरी मेरी सलवार भी खुलवा कर देख सकता है.. दरअसल हॅरी के पास जाने से कुच्छ दिन पहले ही मेरे साथ एक वाक़या हुआ था.....
हुआ यूँ था कि एक दिन स्कूल जाने का दिल ना होने के कारण सुबह सुबह ही मैने पेट-दर्द का बहाना बना लिया और चारपाई में पड़ी रही....
"क्या बात है अंजू? महीना लग गया क्या?" मम्मी ने 11 बजे के आसपास मेरे पास बैठ कर पूचछा..
"नही तो मम्मी... !" मैने कराहते हुए अपने पेट पर हाथ फेरा...
"तो फिर क्या हो गया...? बहुत ज़्यादा दर्द है क्या अभी भी..."
"हां.. ऐंठन सी हो रही है पेट में.. पता नही क्या बात है...?" मैने बुरा सा मुँह बनाकर जवाब दिया...
"तो ऐसा करना... छोटू के आते ही उसको साथ लेकर डॉक्टर के पास चली जाना.. मुझे खेत में देर हो रही है... तेरे पापा भूखे बैठे होंगे सुबह से..!" मम्मी ने कहा ही था की तभी सीढ़ियों से छोटू के आने की आवाज़ सुनाई दी....
"छोटू.. स्कूल से छुट्टी कर ले और अपनी दीदी को लेकर डॉक्टर साहब के पास चला जा... इसका पेट ठीक नही हुआ है.. सुबह से...!" मम्मी ने उसको हिदायत दी...
"छुट्टी का नाम सुनते ही छोटू की भी बाँच्चें खिल गयी..,"चलो.. उठो!"
मैं पहले बताना भूल गयी शायद.. छोटू उस वक़्त पाँचवी में पढ़ता था... मम्मी जा चुकी होती तो मैं उसको टरका भी देती.. पर मजबूरन मुझे खड़ी होकर नीचे उतरना ही पड़ा...
"ये लो चाबी.. और डॉक्टर साहब को अच्छे से बता देना कि कैसा दर्द हो रहा है...."मम्मी ने घर को ताला लगाकर चाबी छोटू को दी और खेत की और चली गयी.. हम अगले 15 मिनिट में गाँव के डॉक्टर की दुकान पर थे.. अनिल चाचा के घर! याद आया ना?
नीचे उनकी दुकान खाली पड़ी थी.. छोटू ने नीचे से आवाज़ दी," चाचा!"
"कौन है..?" चाची बाहर मुंडेर पर आकर बोली और हमें देखते ही उपर चले आने को कहा.. सीढ़ियों से होकर हम उपर चले गये....
अनिल चाचा खाना खा रहे थे... मुझे देखते ही उनकी तबीयत हरी हो गयी..,"क्या हुआ छोटू को, अंजू!"
"मुझे नही चाचा.. अंजू के पेट में दर्द है...!" छोटू तपाक से बोला...
सुनते ही चाचा की आँखें चमक उठी.. उन्होने मुझे उपर से नीचे तक गौर से देखा और बोले...,"ओह्ह्ह.. आजकल " पता नही उन्होने किस बीमारी का नाम लिया..," का बड़ा प्रकोप चल रहा है... चलो नीचे चलो... मैं आता हूँ..." उन्होने कहा और फिर अंदर मुँह करके अपने बेटे को आवाज़ लगाई," अरे प्रिन्स.. देख छोटू आया है.. इसको भी दिखा दे अपने वीडियो गेम्स!"
बस फिर क्या था! वीडियो गेम्स का नाम सुनते ही छोटू तो प्रिन्स के बिना बुलाए ही अंदर घुस गया.. मैने अपने पेट को पकड़े वहीं खड़ी रही...
"चलो..." चाचा ने तुरंत उठकर कुल्ला किया और मेरे साथ नीचे जाने लगे..
"ये रोटिया क्यूँ छ्चोड़ दी... आज 2 ही खाई आपने...!" चाची थाली उठाते हुए बोली...
"बस.. पता नही क्यूँ.. आज भूख नही है..." चाचा ने कहा और मेरे आगे आगे सीढ़ियों से उतरते चले गये...
"हुम्म.. पेट में दर्द हो गया अंजू बेटी?" अनिल चाचा नीचे जाकर अंदर वाले कमरे में अपनी कुर्सी पर बैठ गये और मुझे बोलते हुए इशारे से अपनी ओर बुलाया....
"जी चाचा..." मैं जाकर उनके पास खड़ी हो गयी.. अचानक ही मेरे मंन में 'वो' दिन ताज़ा हो गया जब अनिल चाचा और सुन्दर ने मम्मी का 'इलाज' किया था... उसको याद करते ही मैं थोड़ी सी झेंप सी गयी... बेशक मेरे अंदर 'काम ज्वाला' प्रचंड ही रहती थी.. पर अपनी इस कामग्नी को शांत करने के लिए मेरी अपनी पसंद जवान और कुंवारे लड़के ही थे... कम से कम अनिल चाचा तो मेरी पसंद नही ही थे!
"कब से दर्द है..?" चाचा ने प्यार से मुझसे पूचछा....
"सुबह से ही है चाचा.. जब मैं उठी थी तो पेट में दर्द था..." इस झेंपा झेंपी में मुझे याद ही नही रहा था कि मुझे 'पेट दर्द' भी है.. उनके पूच्छने पर जैसे ही मुझे याद आया.. मैने अपने चेहरे के भाव बदले और अपने पेट पर हाथ रख लिया...
"हूंम्म.. ज़रा कमीज़ उपर करना..!" चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा...
"ज्जई?" मैं अचानक उनकी बात सुनकर हड़बड़ा सी गयी...
"अरे.. इसमें शरमाने वाली क्या बात है.. डॉक्टर से थोड़ा कोई शरमाता है... वैसे भी तुम... मेरी बेटी जैसी हो.. चाचा बोलती हो ना मुझे..?" उन्होने मुस्कुराते हुए प्यार से कहा...
"जी.. चाचा..!" मेरे पास झिझकने लायक कोई कारण नही बचा था.. मैने अपनी कमीज़ का पल्लू पकड़ा और उसको समेट'ते हुए उपर उठा लिया... पर 'वो' जिस लगन से मेरा पेट देखने को लालायित होकर अपने होंटो पर जीभ फेर'ने लगे थे.. मैं अपना कमीज़ अपनी 'नाभि' से उपर नही उठा पाई.. मेरी चेहरे पर झिझक सॉफ झलक रही थी...
मेरा कमणीय और चिकना पेट देखकर चाचा को अपनी लार संभालनी मुश्किल हो गयी... असहाय से होकर 'वो' एक बार नीचे देखते और फिर अपना चेहरा उपर उठाकर मेरी आँखों में झाँकते.. मानो मेरी आँखों में 'रज़ामंदी' तलाश रहे हों... पर मैं ज़्यादा देर उनकी 'लाल लपटें' छ्चोड़ रही आँखों से आँखें मिला कर ना रख सकी.. और अपने आप ही मेरी नज़रें नीचे झुक गयी...
नीचे झुकते ही मेरी नज़र मेरी सलवार के नाडे पर पड़ी.. मैं शरम के मारे सिहर सी गयी.. नाडे का एक फूँगा बाहर लटक रहा था और डॉक्टर चाचा की नज़र वहीं टिकी हुई थी... मेरी सलवार को नाभि से काफ़ी नीचे बाँधने की आदत थी.. जिसकी वजह से मेरी आधी 'पेल्विस बोन्स' और उनके बीचों बीच नाभि से नीचे मेरे 'योनीप्रदेश' के 'ख़ाके' की शुरुआत सॉफ नज़र आ रही थी.. चाचा को इस तरह 'वहाँ' घतूरता देख मेरे बदन का रोम रोम झनझणा उठा..
मैने तुरंत कमीज़ को नीचे किया और कमीज़ के उपर से ही सलवार को नाडे से पकड़ कर उपर खींचा...
"अर्रे.. ये क्या कर रही हो अंजू...उपर उठाओ ना कमीज़.. शरमाओगी तो मैं इलाज कैसे करूँगा.. तुमने अपना पेट तो ढंग से दिखाया ही नही...!" कहने के बाद चाचा ने कमीज़ उठाने के लिए मेरे हाथों की 'पहल' होने तक की प्रतीक्षा नही की... उन्होने खुद ही कमीज़ का छ्होर पकड़ा और मुझे नाभि से भी काफ़ी उपर तक नंग धड़ंग कर दिया... व्याकुलता, शर्म और उत्तेजना के मारे मेरी टांगे काँपने लगी.. जैसे ही नज़रें झुका कर मैने नीचे देखा.. मेरी तो साँसें ही जम गयी... नाडे से पकड़ कर सलवार उपर खींचने का मेरा दाँव उल्टा पड़ गया था... खिचने की वजह से नाडा कुच्छ और ढीला हो गया था और अब मेरी 'योनि' के पेडू पर उगे हुए हल्क सुनहरी रंग के रेशमी 'फुनगे' थोड़े थोड़े मेरी सलवार से बाहर झाँक रहे थे...
"चाच्चा...." जैसे ही चाचा ने अपनी पूरी हथेली मेरे पेट पर रख कर मेरी नाभि को ढका.. मेरा पूरा बदन जल उठा....
"ओह्ह.. यहाँ दर्द है क्या?" चाचा ने मेरी 'आह' को मेरी शारीरिक पीड़ा समझ कर एक बार उपर देखा और फिर से नज़रें झुका कर सलवार और पेट के बीच की खाली दरार से अंदर झाँकने की कोशिश करते हुए उंगलियों से मेरे पेट को यहाँ वहाँ दबा दबा कर देखने लगे.....
चाचा को इलाज के बहाने मेरी योनि का X-रे उतारने की कोशिश करते देख मेरा बुरा हाल हो गया था... उत्तेजना से अभिभूत होकर मैं अपने आप पर काबू पाने की कोशिश करती हुई अपनी जांघों को कभी खोलने और कभी बंद करने लगी..
सिर्फ़ कमीज़ के कपड़े में बिना 'ब्रा' या समीज़ के मेरी चूचियो के दानो को भी मस्ताने का मौका मिल गया और उन्होने भी अकड़ कर खड़े हो 'मेरे' यौवन का झंडा बुलंद करने में कोई कसर ना छ्चोड़ी... जल्द ही बाहर से ही उनकी मक्का के दाने जैसी चौन्च नज़र आने लगी... मैं सिसकती हुई अपनी साँसों को अपने अंदर ही दफ़न करने की कोशिश करती हुई दुआ कर रही थी की चाचा की चेकिंग जल्दी ही समाप्त हो.... पर तब तो सिर्फ़ शुरुआत हुई थी....
"जा.. उपर जाकर तेरी चाची से थोड़ा गरम पानी करवा कर ला.. कहना 'दवाई' तैयार करनी है..." चाचा ने कहकर मुझे छ्चोड़ा तो मैने राहत की साँस ली...
उपर जाते ही मैने चाची को पानी गरम करने को बोला और सीधी बाथरूम में घुस गयी... नाडा खोल कर मैने योनि का जयजा लिया... उत्तेजना से फूल कर तिकोने आकर में कटी हुई पाव रोटी जैसी हो चुकी योनि धीरे धीरे रिस रही थी... मैने बैठकर पेशाब किया और उसस्पर ठंडे पानी के छींटे मारे... तब जाकर मेरी साँसें सामानया हो सकी... खड़ी होकर मैने वहाँ टँगे तौलिए से उसको अच्छि तरह पौंच्छा और 'नाडा' कसकर बाँध कर बाहर निकल आई..
बाहर एक पतीले में पानी तैयार रखा था... मैं उसको उठाकर नीचे चाचा के पास ले आई....
"शाबाश.. यहाँ रख दो.. टेबल पर...!" चाचा अभी भी कमरे के कोने में रखी कुर्सी पर ही बैठे हुए थे...
"कौनसी क्लास में हो गयी अंजू!" चाचा ने पानी को छ्छू कर देखते हुए कहा..
"10 वी में चाचा जी..." पहले की अपेक्षा अब मेरी आवाज़ में आत्मविश्वास सा झलक रहा था...
"तू तो बड़ी जल्दी जवान हो गयी.. अभी तक तो छ्होटी सी थी तू.. अब देख!" चाचा की नज़रों का निशाना मेरे उन्नत उरोज थे... उनका हाथ रह रह कर उनकी जांघों के बीच जा रहा था....
मैं उनकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दे पाई...
"क्या कर रही थी तेरी चाची..?" चाचा जी ने पूचछा...
"जी.. लेटी हुई थी चाचा जी..!" मैने उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा.. पर उनकी नज़रें अभी भी मेरी चूचियो में ही कहीं अटकी हुई थी...
"इधर आ जा... तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे किसी अजनबी के पास खड़ी है.." चाचा ने कहा और मेरे थोड़ी आगे सरकते ही मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुझे पहले से भी ज़्यादा करीब कर लिया...,"चल.. कमीज़ उपर उठा... शाबाश.. शरमाना नही... अरे.. और उपर करो ना.." कहते हुए चाचा ने खुद ही मेरा कमीज़ इतनी उपर उठा दिया कि उनका हाथ ज़ोर से मेरी चूचियो से टकरा गया.. मैं मस्ती से गन्गना उठी... अब कमीज़ मेरी चूचियो से एक इंच नीचे इकट्ठा हो गया था... शायद मेरी सुडौल छातिया आड़े ना आती तो कमीज़ उनसे भी उपर ही होता...
कमीज़ को इतना उपर उठाने के बाद चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाली.. पर में निशब्द: खड़ी रही.. मैने अपने मॅन की उथल पुथल उनके सामने प्रकट नही होने दी....
थोड़ी देर यूँही इधर उधर की हांकते हुए मेरे पुलकित उरजों का कमीज़ के उपर से रसास्वादन करने के बाद उनकी निगाह नीचे गयी और नीचे देखते ही 'वो' बनावटी गुस्से से झल्ला कर बोले," ओफ्फूह.. ये भी एक कारण है पेट दर्द का.. सलवार को इतनी कसकर क्यूँ बाँधा हुआ है.. इसको ढीला बाँधा करो.. और नीचे.. जहाँ पहले बाँधा हुआ था.. समझी.."
चाचा ने कहा और बला की तेज़ी दिखाते हुए मेरे नाडे की डोर सलवार से बाहर निकाल दी.. मैं बड़ी मुश्किल से उनका हाथ पकड़ पाई.. वरना 'वो' तो उसको पकड़ कर खींचने ही वाले थे..,"चाचा...." मैं कसमसा कर रह गयी..
"इसको खोल कर अभी के अभी ढीला करो..." मेरी आवाज़ में हल्का सा प्रतिरोध जानकर चाचा थोड़े ढीले पड़ गये और उन्होने नाडा छ्चोड़ दिया...
मैं अनमानी सी उनके चेहरे को देखती रह गयी.. 'ना' करने की मुझमें हिम्मत नही थी... सच कहूँ तो इतनी हरकत होने के बाद 'दिल' भी नही था.. 'ना' करने का...
"अरे.. ऐसे क्या देख रही हो... अपने चाचा को खा जाने का इरादा है क्या? खोल कर बांधो इसको...!"
"जी.. चाचा.." मैने कह कर अपना कमीज़ नीचे किया और मुड़ने लगी तो उन्होने मुझे पकड़ लिया..,"देख अंजू.. या तो मुझे चाचा कहना बंद कर दे या फिर ऐसे शरमाना छ्चोड़ दे... तुझे नही पता हम डॉक्टर्स को क्या क्या देखना पड़ता है... फिर तू तो मेरी प्यारी सी बेटी है..." कहकर वो खड़े हुए और मेरे गालों को चूम लिया...
"ठीक है चाचा...!" मैं हड़बड़ा कर बोली....
"ठीक क्या है..! अभी मेरे सामने ही सलवार को खोलो और ढीला करके बांधो.. मैं देखूँगा कि ठीक जगह पर बँधा है या नही..!" चाचा बोलकर वापस कुर्सी पर बैठ गये...
"पर चाचा..." मैं गहरी असमन्झस में थी...
"पर क्या? वो दिन भूल गयी जब मैं तेरी कछि नीचे करके 'यहाँ' इंजेक्षन लगता था..." चाचा ने मेरे गदराए हुए मांसल नितंबों पर थपकी मार कर कहा.. मेरी क्षणिक उत्तेजना अचानक चरम पर जा पहुँची..," तुझे एक बात बताउ?" बोलते हुए चाचा ने मुझे अपनी तरफ घूमकर अपने दोनो हाथ ही मेरे नितंबों पर रख लिए..,"इलाज के लिए तो मुझे तुझसे भी बड़ी लड़कियों को कयि बार पूरी तरह नंगी करना पड़ता है... सोचो.. उन्न पर क्या बीत'ती होगी.. पर इलाज के लिए तो शर्म छ्चोड़नी ही पड़ेगी ना बेटी...?"
"जी.. चाचा जी.." मैने सहमति में सिर हिलाया और अपने नाडे की डोर खींच दी..
"शाबाश.. अब ढीला करके बांधो इसको.." कहते हुए जैसे ही चाचा ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाए.. मैं बोल उठी..,"म्मे.. बाँध लूँगी चाचा जी.. ढीला..."
"हां हां.. तुम्ही बांधो.. मैं सिर्फ़ बता रहा हूँ कि कितना ढीला बाँधना है..." चाचा ने कहा और मुझे अपने करीब खींच कर मेरी खुली सलवार के अंदर झाँकने लगे.. जितना जल्दी हो सका मैने अपना 'खुला दरबार' समेट लिया.. पर चाचा मेरी गोरी गदरेली योनि की एक झलक तो ले ही गये... उनकी आँखों की चमक सॉफ बता रही थी... मैं पछ्ता रही थी कि चाचा के पास आने से पहले 'कछि क्यूँ नही पहन कर आई.....
चाचा ने अपना हाथ मेरी कमर में ले जाकर मेरी सलवार समेत थोड़े से नाडे को मुट्ठी में लपेट लिया.. मैं उनके हाथ के अंदर जाने की कल्पना से सिहर उठी थी.. पर गनीमत था कि ऐसा नही हुआ...
"हां.. अब बाँध लो; जितना कसकर तुम्हे बाँधना है...!" चाचा मेरी हालत पर भी मुस्कुरा रहे थे... मैने काँपते हुए हाथों से जितना हो सका कसकर अपनी सलवार को बाँध लिया.. पर मुझे विश्वास था कि चाचा के अपनी मुट्ठी में दबाए हुए नाडे को छ्चोड़ते ही 'सलवार' अपने आप निकल ही जानी है..
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