RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--26
गतान्क से आगे.............
जाने उस रात पिंकी के मॅन में कैसी उधेड़बुन चल रही थी.. करीब 10 मिनिट तक खामोशी से किताब में नज़रें गड़ाए रहने के बाद अचानक वा बोल पड़ी..,"अंजू!"
"हाँ?" मैने उसकी आँखों में देख कहा..
"वो... ऐसा क्या लिखा था लेटर में जो चाचा ने तेरा स्कूल ही च्छुड़वा दिया?"
मैं आस्चर्य से उसकी आँखों में आँखें डाले उसके मंन की इस अधीरता का कारण समझने की कोशिश करती रही.. आज से पहले तो पिंकी ने कभी इन्न बातों में इतनी रूचि नही ली जितनी 'वो' आज ले रही है.. मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी कि उसने 'टोक' दिया,"कोई.. ऐसी वैसी बात हो तो मत बताना..!"
"हां.. बहुत गंदी बातें लिखी हुई थी.. इसीलिए तो मैने तुझे नही बताया था.. वरना 'तो' मैं पहले ही बता देती..." मैने सॉफ सॉफ कहा...
"ओह्ह!" कहने के बाद पिंकी ने एक लंबी सी साँस ली..,"जाने इन लड़कों को क्या मज़ा मिलता है.. ऐसी हरकतें करने में.. जितना नज़रअंदाज करो; उतना ही सिर पर चढ़ने की कोशिश करते हैं...!" कहकर पिंकी ने अजीब से ढंग से अपना मुँह पिचकाया..
"क्यूँ..? आजकल में फिर कुच्छ ऐसा हुआ क्या?" मैने पूचछा...
"नही.. बस 'वो'.... कल तुझे संदीप के पास देखा ना... तभी से दिमाग़ सा खराब है... कुच्छ तो सोचना चाहिए ना.. लड़कों को.. आख़िर हमारी 'इज़्ज़त' ही हमारा हथियार होती है..! और तुझ पर भी मुझे हैरत होती है.. तू फटक से अलमारी में जाकर छिप गयी.. मुझे ऐसा लगता है कि तुम.. अपनी मर्ज़ी से ही उसके पास... है ना?" पिंकी ने झिझकते हुए पूचछा...
कुच्छ देर मैं सोचती रही कि क्या कहूँ और क्या नही.. फिर मैने अपने दिल पर पत्थर रख कर बोल ही दिया..," सच कहूँ तो..."मैने बोलना बंद करके उसकी आँखों में झाँका.. वह 'सच' सुन'ने को बेचैन सी लग रही थी," बोल ना! तुम्हारी कसम कुच्छ नही कहूँगी किसी को!"
"मुझसे नाराज़ भी नही होएगी ना?" मैने पूचछा...
"नही ना यार! तू बता ना सब सच सच!" पिंकी कसमसा कर बोल उठी...
"ववो.. पहले तो 'वो' ज़बरदस्ती ही कर रहा था.. पर बाद में मुझे थोड़ा थोड़ा अच्च्छा भी लगने लगा था..." मैने जवाब दिया...
"क्या?" पिंकी बेचैन सी हो उठी थी....
"वही.. जो 'वह' कर रहा था.. उसमें से 'कुच्छ कुच्छ'!" मैने अब की बार भी पर्दे की बातें 'पर्दे' में ही रहने दी...
कुच्छ देर पिंकी अजीब से ढंग से दायें बायें देखती रही.. उसके चेहरे के भावों से मुझे सॉफ सॉफ पता चल रहा था कि 'पिंकी' 'उस बात' को भुला नही पा रही है... पर शायद 'वह' समझ नही पा रही थी कि 'शर्मीलेपान' और 'शराफ़त' का चोला उतारे बगैर कैसे 'कुच्छ कुच्छ' का मतलब पूच्छे...
"तुझे सच में 'उसकी' बातें अच्छि लग रही क्या? या तू मुझे बना रही है..?" पिंकी ने अजीब सी प्यासी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा...
"बता तो रही हूँ.. 'कुच्छ कुच्छ' बातें अच्छि भी लग रही थी...!" मैने दोहराया...
"क्या?" पिंकी ने अपने दाँतों से अनामिका का नाख़ून चबाते हुए मेरी आँखों में देखा...
"क्या 'क्या?" मैं उसका मन्तव्य समझने के बावजूद 'अंजान' बनी रही...
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद पिंकी ने एक लंबी साँस के सहारे अपनी बेकरारी जता ही दी..,"क्या क्या अच्च्छा लग रहा था.. बता ना प्लीज़?"
"ओह्ह.. अच्च्छा..." मैने कहा और फिर नज़रें झुका कर बोली..,"खुल कर कैसे बताउ? मुझे शर्म आ रही है..."
पिंकी ने थोड़ा आगे सरक कर अपने घुटने मेरे घुटने से मिला दिए..,"बता ना! मैं तो लड़की हूँ.. मुझसे कैसी शर्म?"
"हां.. लड़की तो तू है.. पर बड़ी ख़तरनाक लड़की है.."मैं कहने के बाद उसकी और देख कर हँसी," मेरे मुँह से कोई ऐसी वैसी बात निकल गयी तो मुझे पता है तू कैसी शकल बना लेगी... कल मुझसे बात करने से भी मना कर दिया था तूने..!"
पिंकी असहाय सी होकर मुझे देखती रही... फिर अचकचा कर बोली..,"कहा ना कुच्छ नही बोलूँगी.. किसी बात का बुरा नही मानूँगी...?"
"पर तू पूच्छना क्यूँ चाहती है..?" मैने सवाल करके उसको उलझन में डाल दिया...
"ठीक है.. नही बताना तो मत बता.. आज के बाद मेरे से बात मत करना!" पिंकी भड़क कर उठने लगी तो मैने उसका हाथ पकड़ लिया..,"बता तो रही हूँ.. रुक तो सही...!"
"ठीक है.. जल्दी बता.. फिर मीनू दीदी आ जाएगी..." पिंकी खुश होकर वापस बैठ गयी....
"वो.... उसने जब मुझे हाथ लगाया था तो पता नही क्या हो गया था.. पर बहुत अच्च्छा लगा था मुझे... शुरू में मैने बहुत मना किया पर 'उसकी' हरकतें मुझे अच्छि भी लग रही थी.. 'पता नही..' पर संदीप के हाथ लगने से मेरे शरीर में गुदगुदी सी होने लगी थी.. इसीलिए 'उसके' छ्चोड़ने के बाद भी मैं वहाँ से भाग नही पाई...!" मैने कहा...
"कहाँ...?" पिंकी ने थोडा हिचकने के बाद खुद ही 'अपना' सवाल खोल कर पूच्छ लिया..,".. मतलब... कहाँ हाथ लगाया था.. संदीप ने?"
"शुरू में तो 'बस' हाथ ही पकड़ा था...!" मैने कहा...
"फिर?"
"फिर.. फिर उसने ज़बरदस्ती करके मुझे अपनी 'गोद' में बैठा लिया.. और 'यहाँ वहाँ' छ्छूना शुरू कर दिया..!" मैं धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी...
इतना सुन'ने भर से ही पिंकी की आँखें शर्म से झुक गयी... उसके गालों की रंगत बदलने लगी थी..,"हाए राम.. तुझे शरम नही आई.. लड़के की गोद में बैठते हुए...!"
"आई थी.. पर तू 'शर्म' के बारे में पूच्छ रही है या 'मज़े' के बारे में..?" मैं खिन्न होकर बोली...
"अच्च्छा रहने दे.. मत बता.." पिंकी ने कहा और अगले ही पल बेचैनी के लबादे से लदे उसके लब थिरक उठे..,"अच्च्छा.. चल बता.... 'और' क्या हुआ..? ......कहाँ कहाँ हाथ लगाया था उसने?"
"अब सारी बात खोल कर बताउ क्या?" मैं झिझक कर बोली.. पर मैं उसके मुँह से 'हाँ' सुन'ना चाहती थी...
"नही.. खोल कर मत बता चाहे.. पर समझा तो सकती है ना!" पिंकी उत्सुकता से मेरी ओर देखने लगी....
"अम्म्म... गोद में बैठकर वह 'इनको' दबाने लगा था...." कहने के बाद मैने अपना हाथ अचानक आगे करके आकर में मेरी चूचियो से आधे उसके एक 'उरोज' को पकड़ लिया..
"आहह.. " पिंकी हड़बड़ा कर उच्छल पड़ी..,"क्या कर रही है बेशर्म? गुदगुदी हुई बड़े ज़ोर की..."
"मैं तो बस बता रही हूँ... मेरे हाथ से तो 'बस' गुदगुदी हुई है... पर अगर कोई लड़का इनको पकड़ेगा तो तुझे पता चलेगा.. असलियत में क्या होता है.. आँखें बंद होनी शुरू हो जाती हैं.. शरीर में भूचाल सा आ जाता है... खुद पर काबू नही रह पता... सच पिंकी.. बहुत मज़ा आता है..!" मैं 'संदीप' के साथ बिताए पल याद करते ही मस्ती से झनझणा उठी और जाने क्या क्या बोलने लगी..
"कोई लड़का नही पागल..."पिंकी ने कहा और फिर अपने आप में ही शर्मा कर संकुचित सी हो गयी..,"सिर्फ़ मेरा 'हज़्बेंड'! उसके अलावा किसी लड़के को मैं इन्हे छ्छूने नही दूँगी..." कहते हुए पिंकी के 'होन्ट' रस से तर हो गये...
"मतलब हरीश...!" मैने शरारत भरे लहजे में कहा...
"मैं तेरा सिर फोड़ दूँगी अगर ऐसे 'किसी' का नाम लिया तो... 'उस'से' मुझे क्या मतलब..?" पिंकी ने बोलते हुए अपने चेहरे पर 'गुस्सा' लाने की भरसक कोशिश की.. पर क्या मज़ाल जो 'लज्जा' की चादर को तनिक भी खिसका पाई हो...,"अच्च्छा.. छ्चोड़.. और बता ना!"
"और क्या बताउ..? फिर तो बस 'वह' आगे बढ़ता गया और में 'मज़े' से पागल हो उठी... पर मैं बता नही सकती कि कितना मज़ा आया था.. 'वो' तो करके देखने पर ही पता चलता है....!"
"उसने तुझे हर जगह हाथ लगाया था क्या?" पिंकी कसमसा कर बोली...
"और कैसे बताउ अब? बोल तो दिया.. उसके बाद तो जो उसका दिल किया था.. 'वो' सब किया था उसने...!"
"अच्च्छा ठीक है.. बस एक बात और पूछ लूँ..?" पिंकी अधीर हो कर बोली...
"हां.. पूच्छ..!"
"दोबारा 'वो' सब करने का मन करता है...?" पिंकी अजीब सी नज़रों से मुझे घूरती हुई बोली...
"शायद मीनू आ रही है...!" सीढ़ियों में उतरते कदमों की आहट सुनकर मेरे कान खड़े हो गये... "छ्चोड़.. बाद में बात करेंगे..." मैने कहा और हम दोनो ही बोल बोल कर पढ़ने लगे....
मीनू नीचे आई तो उसने अपने सिर पर 'चुननी' बाँधी हुई थी... वह आते ही अपनी चारपाई में लेट गयी..,"मेरे सिर में दर्द है.. थोड़ा आराम से पढ़ लो..." उसने कहा और चारपाई में घुस कर करवट ले ली...
"चल हम भी सोते हैं अब... काफ़ी रात हो गयी.. सुबह उठना भी है...!" मैने किताब बंद करके रखते हुए कहा...
"नही.. मैं अभी थोड़ी देर और पढ़ूंगी...!" पिंकी ने कहा..
"ठीक है.."मैं रज़ाई में घुसती हुई बोली..,"अपनी चार पाई पर जाकर पढ़ ले..."
"आए.. यहीं बैठ कर पढ़ने दे ना.. मेरा कंबल तो ठंडा हो गया होगा..!" पिंकी ने याचना सी करते हुए कहा...
"कोई बात नही.. पढ़ ले...!" मैने मुस्कुरकर कहा और अपना चेहरा धक लिया...
रज़ाई में दुब्के हुए आधा घंटा होने पर भी मेरी आँखों में नींद नही थी.. अनिल चाचा की 'उस' दिन की हरकतें याद करके मेरी कामुक चाहतों ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया था... 2 दिन पहले संदीप ने मुझे जो 'स्वर्णिम नज़ारे' दिखाए थे.. उनकी एक और झलक पाने की आरज़ू में मेरी जांघों के बीच 'बार बार' असहनीय 'फदाक' मुझे सोने नही दे रही थी... जाने अंजाने रज़ाई में घुसते ही मेरा हाथ अपने आप ही मेरी सलवार में घुस चुका था... पर लिंग्सुख भोग कर 'फूल' बन चुकी मेरी 'योनि' को अब उंगली के 'छलावे' से बहकना मुमकिन नही था.. अब तो उसको 'मर्द' ही चाहिए था.. दोबारा बरसने के लिए; कहीं से भी!..
अचानक पिंकी का हाथ पढ़ते हुए ग़लती से मेरी जाँघ पर टिक गया और मेरा सारा बदन झंझनाहट से गड़गड़ा गया... आलथी पालती मार कर पढ़ रही पिंकी की एक जाँघ मेरे घुटने से सटी हुई थी... वह अपनी जांघों को मेरी रज़ाई मे दिए पढ़ रही थी.. उपर उसने कंबल औध रखा था... उसकी हथेली का स्पर्श अपनी जाँघ पर होते ही मेरी 'वो' टाँग कंपकंपा गयी थी.. शुक्र रहा कि उसने हाथ तुरंत हटा लिया वरना मैं कुच्छ भी सोच सकती थी...
मैने अपनी हड़बड़ाहट उस'से छिपाते हुए दूसरी ओर करवट ले ली और अपना हाथ सलवार के उपर से ही अपनी जांघों के बीच 'कसकर' दबाए लेट गयी और 2 दिन पहले संदीप के साथ बिताए पलों को याद करके तड़पने लगी... उस तड़प में भी अजीब आनंद था...
"अंजू...!" पिंकी ने सहसा अपना हाथ ठीक मेरे कूल्हे पर रख कर मुझे हूल्का सा हिलाया.. ऐसा करते हुए उसकी चारों उंगलियाँ मेरी 'पेल्विस' पर आगे योनि की ओर और उसका अंगूठा मेरे नितंब पर टिक गया था...
मैं मेरे मॅन में चल रहे 'काम प्रवाह' को तोड़ना नही चाहती थी, इसीलिए गुम्सुम लेटी रही...
"अंजू!" पिंकी की आवाज़ इस बार भी धीमी थी.. बोलते हुए इस बार उसका हाथ सरक कर थोड़ा नीचे आ गया और मुझे उसका अंगूठा मेरे नितंबों की जड़ में मेरी जांघों पर चुभता सा महसूस हुआ...
"हूंम्म्म.... क्याअ.. है.. सोने दे ना याआर..." मैं जानबूझ कर उनीनदी सी होकर बोली और ऐसे ही पड़ी रही...
"अच्च्छा... चल सो जा.. पर थोड़ी सी उधर को हो जा ना.. मेरा लेट कर पढ़ने का मंन है..." पिंकी ने याचना सी करते हुए कहा... उसके बोल में इतनी मिठास अक्सर नही होती थी....
मैं नींद में ही बड़बड़ाने की आक्टिंग करती हुई थोडा दूसरी तरफ खिसक ली.. पिंकी ने साथ वाली चारपाई से तकिया उठाकर मेरे सिरहाने के साथ लगाया और मेरे बाजू में लेट कर पढ़ने लगी...
मैं उसके बाद जल्द ही नींद के आगोश में समा कर सपनो की दुनिया में खो गयी थी..'संदीप' भी पूरी तरह नंगा था और मैं भी.. मुझे अपनी गोद में बिठाए हुए वो मेरी चूचियो को हाथों में लेकर उनको दुलार्ता हुआ बार बार मुझे अपनी टांगे खोलने को कह रहा था... पर सामने खड़ा होकर अपने 'कपड़े' निकाल रहे 'ढोलू' के कारण में शरमाई हुई थी और अपनी 'योनि' को जांघों के बीच दबाए सिसकियाँ ले रही थी...
अगले ही पल मुझे ढोलू का काला लिंग मेरी आँखों के सामने लटकता दिखाई दिया.. राक्षस की तरह हंसते हुए वो मेरे सामने आकर घुटनों के बल बैठ गया..,"ऐसे नही खोलेगी ये.. तू इसकी टाँग पकड़ कर फैला और में इसकी 'चूत' फाड़ता हूँ साली की... बहुत मस्ता रही है...!"
"नही... प्लीज़.. ऐसे नही...!" मैं गिड़गिदा कर बोली....
"सीसी..कुच्छ नही...सो जा!" ढोलू की आवाज़ रहस्मयी ढंग से बदल गयी.. अब की बार अचानक वह किसी लड़की की आवाज़ में मिमिया कर बोला था.. अचानक संदीप और ढोलू दोनो ही मेरे सपने से गायब हो गये.. और भले ही सपने में ही सही.. पर 'अपनी' तड़प का 'इलाज' इस तरह से गायब होते ही मैं भनना सी गयी..
मेरी नींद खुल गयी थी....
अचानक नींद खुलते ही मेरे आस्चर्य का ठिकाना ना रहा... मेरे साथ, मेरी ही रज़ाई में सो रही पिंकी अजीब ढंग से लंबी लंबी साँसें ले रही थी.. मैं उसको टोक कर उठाने ही वाली थी की 'मामला मेरी समझ में आ गया.. 'तो इसका मतलब लास्ट में जो मुझे सुनाई दिया 'वो' ढोलू की नही.. पिंकी की आवाज़ थी...
मैं अचरज से भरी हुई बिना कुच्छ बोले लेटी रही... पिंकी की 'साँसों' की तेज़ी तो मैं पहले ही महसूस कर चुकी थी.. पर अब मेरी कमर में गढ़ी उसकी नन्ही चूचियो की धड़कन में भी मुझे कुच्छ अजीब से 'तेज़ी' का अहसास हुआ.. उसके दिल की आवाज़ इतनी तेज थी मानो वो उसके अंदर नही बुल्की मेरे भीतर धड़क रहा हो...
उत्सुकता के मारे मेरा मन मचल उठा.. तो क्या पिंकी भी...? मेरा मन सोच कर ही गड़गड़ा गया था...
कुच्छ सोच कर मैं नींद में होने का नाटक करती हुई बुदबुदाई और करवट लेकर सीधी लेट गयी.....
काफ़ी देर तक भी जब उसकी तरफ से कोई हरकत नही हुई तो मेरा मॅन बेचैन हो उठा...
'उसकी दाहाकति हुई सी साँसें बता रही थी कि 'वो' जाग रही है.. अगर उसके मॅन में कुच्छ नही होता तो 'वो' मेरे पास क्यूँ सोती? और अगर सोना ही था तो अब तक तो 'सो' जाना चाहिए था.. ऐसे आहें भरने का क्या मतलब?'
यही सब सोचने के बाद मेरा हौंसला थोड़ा बढ़ा और मेरे मॅन में एक अजीब सी खुरापात ने जनम ले लिया.. 'जैसा कुच्छ दिन पहले मनीषा ने मेरे साथ किया था, कुच्छ वैसा ही मेरा मॅन पिंकी के साथ करने को मचल उठा... आख़िर 'कुच्छ नही' से तो 'कुच्छ ही सही' बेहतर था..
मैने पिंकी की ओर करवट ली और खुद को नींद में ही दिखाते हुए हम दोनो के चेहरों पर से रज़ाई हटा दी...
पिंकी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही हुई.. एक बार तो उसको देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे 'वो' सच में ही सो रही हो.. पर उसके नथुनो से आती 'भारी' साँसों ने मुझे संशय में डाल रखा था.. कुच्छ पल की उधेड़ बुन के बाद मैने अपना हाथ उसके कंधे के पास उसकी बाँह पर रख दिया... हमारी छातिया ठीक एक दूसरी की छातिया के आमने सामने थी और 'छ्छूने' ही वाली थी...
अचानक मुझे पिंकी के कसमसने का हल्का सा अहसास हुआ... तभी उसने मेरे हाथ के नीचे से अपनी बाँह निकाली और रज़ाई को पकड़ कर उपर खींच लिया.. ऐसा करने से मेरा हाथ खुद-बा-खुद उसकी छाती की बगल में जा टीका और जैसे ही पिंकी ने अपनी बाँह वापस 'वहाँ' रखी; मेरी हथेली का दबाव उसकी छाती पर बढ़ गया...
मुझे पूरा विश्वास नही था कि वह जाग रही है या सो रही है.. और फिर उसके स्वाभाव से भी मुझे डर लगता था.. शायद इसी वजह से मैं पहल करने में हिचकिचा रही थी...
कुच्छ देर बाद ऊंघते हुए पिंकी धीरे से सीधी होकर लेट गयी.. मॅन में उसके बारे में 'गंदे ख़याल' आने के बाद मुझे डर सा लगने लगा था.. मैं अपना हाथ हड़बड़ा कर हटाने को हो गयी थी.. पर उसने करवट इतनी सफाई से और इतनी धीरे बदली थी कि मुझे भी कुच्छ देर बाद ही अहसास हो पाया कि अब उसकी 'बाई चूची' मेरी हथेली के नीचे धड़क रही है... मैने अपनी साँसें रोके हुए 'वहाँ' से हाथ ना हटाने का फ़ैसला कर लिया....
उसकी चूची पर हथेली टिकाए हुए मुझे ऐसा आभास हो रहा था जैसे मैने अपने हाथों में 'छ्होटे' आकर का कश्मीरी सेब थाम रखा हो.. बेहद मुलायम, मखमली और रेशमी अहसास लिए उसकी चूची तेज़ी से उपर नीचे होती हुई धीरे धीरे अकड़ने सी लगी और जल्द ही मुझे मेरी हथेली में उसकी चूची का 'मिश्रीदाना' महसूस होने लगा...
मैने जैसे ही अपनी हथेली का दबाव बढ़ा कर उसके 'सेब' को भींच कर देखना चाहा, पिंकी ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख लिया.. मुझे लगा 'वह' मेरा हाथ वहाँ से हटा देगी.. पर सुखद आस्चर्य रहा कि उसकी चूची को समेटे मेरे हाथ पर 'सिवाय' अपने हाथ का 'बोझ' रखने के; उसने कुच्छ नही किया..
उत्साहित सी होकर मैने अपनी टाँग घुटने से मोडी और उसकी जांघों पर रख ली.. 'केले' के चिकने तने जैसी उसकी गदराई जांघों पर अपनी मस्त मांसल और चिकनी जांघों से स्पर्श मुझे बहुत ही उत्तेजक लगा... जल्द ही मेरी साँसें भी अपनी 'गिनती' भूलने वाली थी....
एका एक जाने मुझे क्या हुआ.. 'वासना' की अग्नि में तो जल ही रही थी.. अचानक 'जो' होगा देखा जाएगा के अंदाज में मैने उसकी चूची कस कर दबा दी.. इसके साथ ही उसकी सिसकी निकल गयी..
"आअहह.." वह कसमसाई और मेरा हाथ दूर झटक कर करवट ले मुझसे लिपट कर आहें भरने लगी...
उसकी हालत देख कर मेरा रोम रोम गड़गड़ा उठा.. मैं अपना एक हाथ उसकी कमर पर ले जाकर कसकर अपने सीने से भींचती हुई उसके कान में फुसफुसाई,"क्या हुआ पिंकी?"
पर उसने कोई जवाब नही दिया.. शायद उसको कुच्छ भी बोलते हुए शर्म आ रही होगी.. पर 'ये' सॉफ हो चुका था कि वा जाग रही है और 'कच्ची जवानी' की उंबूझी लपटों से उसका शरीर धधक सा रहा है.. उसके बदन का बढ़ा हुया तापमान और साँसों की गर्मी सपस्ट बता रही थी कि 'वो' बुरी तरह से मचल चुकी है....
मैं उसके गालों पर चुंबन लेने को हुई तो 'वह' छितक कर मुझसे दूर हो गयी...
"क्या हुआ?" मैं तड़प कर उसके पास खिसकते हुए बोली तो उसने करवट बदल ली.. उसके करवट बदलने के दौरान जैसे ही रज़ाई थोड़ी उपर उठी.. अंदर आए प्रकाश ने मुझे उसके शर्म से लाल हो चुके गाल और खुली हुई उसकी आँखों के दर्शन करा दिए.. अब हिचकने का सवाल ही पैदा नही होता था...
मैने दुस्साहस सा दिखाते हुए अपना हाथ फिर से उसकी चूची पर रख लिया और उसको अपनी तरफ खींचते हुए बोली," मज़ा आ रहा है ना पिंकी?"
उसने जवाब दिया तो उसकी आवाज़ में कंपन सा था..," ये... ये ग़लत है अंजू!"
मैने अपनी जाँघ उठाकर उसके कुल्हों से सटा दी और पैर दूसरी तरफ से उसके घुटनो के बीच फँसा लिया..,"इसमें.. ग़लत क्या है पागल..? मज़ा आ रहा हो तो ले ले थोड़ा सा!"
करवट लिए हुए ही पिंकी ने अपना चेहरा उपर किया और एक बार फिर से उसके लब थिरक उठे..,"...पर.. ये ग़लत है.. पाप लगेगा..!" वा फुसफुसाई..
"पाप!" मैं मंन ही मंन हँसी और फिर धीरे से ही उसके कान में बोली,"पाप कैसा पागल? देख ना कितना मज़ा आ रहा है! ऐसे तो किसी बात का डर भी नही.. और ना ही किसी को पता लगेगा... मैं कोई लड़का थोड़े ही हूँ जो कुच्छ ग़लत हो जाएगा.." मैने बोलने के बाद उसके पेट में गुदगुदी सी कर दी..
"हे हे हे.." हँसी को दबाने की कोशिश में 'वो' उच्छल सी पड़ी और सीधी लेट गयी.....,"पर मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है.. पता नही ये क्या हो रहा है मुझे..?" पिंकी फुसफुसाई..
"अच्च्छा एक बात बता! 'अच्च्छा' लग रहा है या बुरा?" मैने उसको अपने आगोश में समेट'ते हुए पूचछा...
वह भी सिकुड कर मुझसे पूरी तरह सॅट गयी," शरीर को अच्च्छा लग रहा है.. पर दिमाग़ में बुरा!"
"अच्च्छा छ्चोड़! ये बता.. जब मैने इसको दबाया था तो" मैने उसकी चूची पर हाथ रख कर बोली..,"तब कैसा लगा था?"
उसने बिना बोले ही जवाब दे दिया.. अपना हाथ फिर से मेरे हाथ पर रख कर वह धीरे धीरे खुद ही दबाने लगी.. इसके साथ ही उसकी साँसें फिर से तेज होने लगी..
"मज़ा आ रहा है ना?" मैं उसके मनोभावों को पढ़ते हुए खुश होकर बोली और अपने हाथ से बारी बारी उसकी दोनो चूचियो को सहलाने लगी...
"आ.. हाअ.. हाआअ!" उसने कसमसा कर अपनी चूचियो से मेरा हाथ हटाया और मुझसे चिपक कर सिसकने लगी...
"कैसा लग रहा है? बता ना?" मैने अलग होकर उसका हाथ पकड़ा और अपनी छातियो पर रख दिया.. वह कुच्छ देर उन्हे दबा दबा कर देखती रही.. फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर ले गयी,"आह.. तुम भी करो.. बहुत मज़ा आ रहा है अंजू.. यहाँ ऐसी क्या बात है.. खुद के हाथ से तो कभी कुच्छ नही होता.. ऐसा लग रहा है जैसे अंदर से कुच्छ खींच सा रहा है.. अयाया.."
"पता नही.. पर मज़ा बहुत आता है.. सच में...."मैने कुच्छ रुक कर फिर कहा,"और.... और नीचे तो पूच्छो ही मत...!"
"नीचे कहा?" मेरी बात सुनकर उसने मेरी छाती को कसकर भींच दिया.. मेरी भी सिसकी सी निकल गयी..
"नीचे... यहाँ.. जहाँ से हम पेशाब करती हैं..." कहने के बाद जैसे ही मैने अपना हाथ नीचे ले जाने की कोशिश की.. उसने बीच रास्ते में ही पकड़ लिया,"धात बेशर्म.. ऐसी बातें मत कर.. मैं उठकर चली जाउन्गि...!"
"ओह्हो.. तू हाथ तो लगवा कर देख एक बार.. इस'से 100 गुना मज़ा ना आए तो कहना!" मैने लगभग ज़बरदस्ती करते हुए अपना हाथ फिर से उसकी योनि की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया.. पर आशंका से ही उसके रोंगटे खड़े हो गये..,"नही.. तुझे मेरी कसम.. वहाँ नही.." और उसने अपनी योनि को छूने तक नही दिया...
"ठीक है..!" मैं हताश होकर बोली..,"तू करके देख ले मेरे 'वहाँ'... मैं कुच्छ नही कहूँगी..!"
"नही.. बस यहीं ठीक है.." वह मेरी चूची को दबाकर देखती हुई बोली..,"तेरी तो मीनू दीदी जैसी हो गयी अभी से.. उसने भी ऐसे ही किया था क्या?"
"किसने?" मेरी समझ में ठीक से उसकी बात नही आई...
"अरे उसने.. उसने भी ऐसे ही दबाया था क्या इनको....!"
"अच्च्छा.. संदीप ने?" मैं बोली..
"हां..!"
"बताउ?" मैं बोली..
"हां.. पूच्छ ही तो रही हूँ..."
"उसने तो..." मैं बोलते हुए रुकी और उसके समीज़ के नीचे से अपना हाथ डाल कर उपर चढ़ा लिया.. उसने कोई विरोध नही किया.. पर जैसे ही उसकी नंग-धड़ंग चूची मेरे हाथ में आई.. वह मस्ती से झंझनती हुई सिसक सी पड़ी...,"आई... ऊऊऊओईईईई..मुंम्म्ममय्ययी...!"
"क्या हुआ?" मैं उसके कान में फुसफुसते हुए मुस्कुराइ...
"आ.. बस पूच्छ मत... 'इन्न' पर उंगली मत लगा खाली.. मुझसे सहन नही हो रहा.. पूरी को पकड़ ले.."वह बोलती हुई पागल सी होकर मेरी चूची को ज़ोर ज़ोर से मसालने सी लगी...
उसकी खुमारी थोड़ी उतरी तो जाकर ही उसकी आवाज़ निकली...,"और क्या क्या किया था उसने!" पिंकी की आवाज़ में एक अजीब सी तड़प थी...
"तू बताने देगी तभी तो.. पर तू तो नीचे कुच्छ करने ही नही देती..."मैने कहते हुए उसकी एक चूची को जड़ से पकड़ कर भींच दिया...
"अयाया.. नही.. ऐसे ही बता दे...!" उसने कहा और अपना हाथ भी मेरी कमीज़ में डाल कर उपर चढ़ा लिया...
"ऐसे क्या क्या बताउ? उसने तो मेरे गालों को चूमा था.. मेरी चूचियो को ऐसे ही दबाया था और फिर इनको मुँह में लेकर चूसा था.. फिर जब मैं पागल सी हो गयी तो उसने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और फिर उपर नीचे सब जगह चूमा था..." मैं बताती जा रही थी और पिंकी अंदर ही अंदर पिघलती जा रही थी... अपनी ही जांघों को एक दूसरी के साथ रगड़ता देख मुझे विश्वास हो रहा था कि उसकी 'योनि' इन सब बातों की गर्मी से 'द्रवित' हो कर फदक उठी है और उसकी अपनी जांघें अब उसकी नादान योनि की गर्मी को कुचल कुचल कर बाहर निकाल देना चाह रही हैं.... मेरी हर एक लाइन के बाद उसके मुँह से एक सिसकी निकलती और मेरी चूचियो पर उसकी पकड़ बढ़ने के साथ ही उसकी जांघों के बीच हुलचल में और तेज़ी आ जाती...
अचानक उसने एक टाँग मेरी जाँघ के उपर चढ़ाई और मेरा घुटना अपनी जांघों के बीच कस कर दबाए हुए सिसकियाँ लेकर उपर नीचे होने लगी... मुझे अहसास हो चुका था कि अब ये इस लोक में नही है.. इसीलिए मैने भी बोलना बंद करके उसको कसकर पकड़ लिया... काफ़ी देर से मेरा दूसरा हाथ मेरी सलवार में होने के कारण मैं भी चरम पर पहुँचने ही वाली थी... तभी वह एक हिचकी सी लेकर मुझसे बुरी तरह लिपट गयी... और सिर नीचे करके मेरी चूची को अपने दाँतों में दबा लिया... उस आख़िरी पल में तो उसने जैसे मेरे 'दाने' को काट ही दिया होता... मैं पीड़ा से बिलबिला उठी.. पर उस पीड़ा में जो आनंद था.. 'वो' अविस्मरणीय था...
काफ़ी देर तक हम एक दूसरी से लिपटी हुई हाँफती रही.. अचानक जाने पिंकी के मंन में क्या आया.. वह झटके के साथ अलग हुई और अपनी कमीज़ ठीक करके उठने लगी... उसके बाल अस्त-व्यस्त हो चुके थे.. साँसें अभी भी उखड़ी हुई थी...
"क्या हुआ पिंकी? लेट जा ना!" मैने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से बोला....
पर वह तो नज़रें तक नही मिला पा रही थी.. अपनी कोहनी मोड़ कर उसने हाथ छुड़ाया और रोनी सूरत बनाए तकिया उठा कर अपनी चारपाई पर जा लेटी...
क्रमशः........................
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