Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:32 AM,
#38
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--27

गतान्क से आगे.............

सुबह तक तो हालात और भी बिगड़ चुके थे.. उठने के बाद भी पिंकी ने मेरी और देखा नही और सीधी उपर भाग गयी.. कुच्छ हद तक उसके नज़रें चुराने का कारण मेरी समझ में आ भी रहा था.. मैने अपने बिस्तेर को लपेटा और मीनू को उठाकर तैयार होने के लिए घर चली गयी....

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नहा धोकर मैं वापस आई और हर रोज़ की तरह नीचे से ही आवाज़ लगाई.. ,"पिंकी!"

मैं रोज़ ऐसे ही आवाज़ लगती थी और जवाब में पिंकी की मधुर और पैनी आवाज़ मेरे कानो में घंटियों की तरह बजने लगती," उपर आ जा, अंजू! बस पाँच मिनिट और लगाउन्गि...!"

पर उस दिन ऐसा कुच्छ नही हुआ.. थोड़ी देर बाद मुझे पिंकी के बदले चाची की आवाज़ सुनाई दी..,"वो बस आ रही है बेटी.. तैयार हो रही है...!"

मैं मन मसोस कर वहीं बैठ गयी.. जाने क्यूँ.. पर पिंकी के बदले रंग ढंग देख कर मेरी भी उपर चढ़ने की हिम्मत नही हो पाई...

वह नीचे आई तो भी उसकी नज़रें झुकी हुई थी.. नीचे आने से पहले ही उसने अपनी छोटी छोटी उभरती हुई चूचियो को चुननी में छिपा लिया था... पहले वह नीचे आकर बाहर निकलने से पहले मेरे सामने ही अपनी 'चुननी' को दुरुस्त किया करती थी... मुझे उसका यह व्यवहार अजीब और असहनीय लग रहा था...

वह नीचे आई और बिना कुच्छ बोले बाहर निकल गयी.. उसके साथ ही नीचे आई मीनू ने हम दोनो को अजीब सी नज़रों से देखा.. मैं मीनू की और मुस्कुराइ और पिंकी के पिछे पिछे बाहर निकल गयी...

"क्या हुआ पिंकी?.... मुझसे नाराज़ है क्या?" मैने घर से थोड़ा आगे जाते ही उसका हाथ पकड़ कर पूचछा...

"नहयी.." पिंकी ने मरी सी आवाज़ में कहा और अपना हाथ छुड़ा लिया..

"तो फिर बात क्या है..? मुझसे बात क्यूँ नही कर रही तू?" मैने सब जानते हुए भी अंजान बने रहने की कोशिश की....

"............. कुच्छ नही बस... कल पेपर ख़तम हो जाएँगे.. है ना?" पिंकी ने बात घूमाते हुए कहा...

"हाँ.. पर तू ऐसा क्यूँ कर रही है यार..? मैने क्या किया है..? तू... खुद ही तो मेरे साथ लेटी थी.. और..." मुझे बोलते बोलते रुक जाना पड़ा.. उसकी मनो स्थिति का अहसास मुझे तब हुआ जब मैने उसको चेहरा दूसरी तरफ करके 'अपने आँसू' पौंचछते हुए महसूस किया...

"अच्च्छा.. सॉरी.. मेरी ही ग़लती थी.. अब खुश हो जा ना प्लीज़.. आगे से ऐसा कुच्छ नही करेंगे.. तेरी कसम... मैं..." इस बार बोलते हुए मुझे पिंकी ने ही टोक दिया....

"नही.. ऐसा क्यूँ कह रही है..? उसमें तेरी क्या ग़लती थी..? पता नही कैसे हो गया सब.. मुझे सारी रात नींद नही आई..." पिंकी ने एक बार फिर अपने गालों पर लुढ़क आए आँसू को मुझसे छिपाते हुए अपनी हथेली में समेट लिया...

"क्यूँ? नींद क्यूँ नही आई पागल? ऐसा तो कुच्छ 'ज़्यादा' भी नही किया हमने?" मैं उसको 'प्यार' से झिड़कते हुए बोली....,"छ्चोड़! भूल जा सब कुच्छ...!"

"तू... तू किसी को इस बारे में कुच्छ भी नही बोलेगी ना?" पिंकी ने याचना सी करते हुए मेरी नज़रों से नज़रें मिलाई...

"मैं? मैं क्यूँ बताउन्गि किसी को पागल? तू इसीलिए ऐसे कर रही है क्या?" मैने कहा...

"अपनी लड़ाई हो जाएगी.. तब भी नही ना?" पिंकी का चेहरा अब भी वैसे का वैसा ही था....

"नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईई..... तेरी कसम यार.. प्लीज़.. खुश हो जा अब...!" मैने कहा ही था कि संदीप ने बाइक लाकर हमारी साइड में रोक दी.. आज भी अकेला ही था वो...," चल रही हो क्या?"

मैं कुच्छ बोलती इस'से पहले ही पिंकी ने मानो उस पर 'हमला' सा कर दिया...,"चुप चाप भाग ले आगे.. हमारे से बात करने की कोशिश की तो ऐसी दुर्गति करूँगी कि याद रखेगा.. बड़ा आया...!"

संदीप ने खिसकने में ही भलाई समझी..,"वो.. शिखा आ गयी है.." उसने कहा और आगे निकल गया... उसकी बाइक के जाने के बाद भी काफ़ी देर तक पिंकी बड़बड़ाती रही...

"चुप हो जा पिंकी! अब उस पर गुस्सा क्यूँ निकाल रही है...?" मैं हताशा और चिड़चिड़ेपन से बोली... संदीप के नाराज़ हो जाने पर मेरी बनी बनाई बात बिगड़ने का ख़तरा था.. मेरा पेपर जो करना था उसको!

"मुझे ये...." पिंकी जबड़ा भींच कर बोली," ये बिल्कुल भी अच्च्छा नही लगता अब!"

"मतलब? ...." मैं शरारत से हंसते हुए बोली," पहले अच्च्छा लगता था क्या?"

"तू भी ना बस! वो बात नही है! पर मैं इसको दूसरे लड़कों जैसा नही समझती थी.. ये भी कमीना कुत्ता निकला!" पिंकी मुझ पर गुस्सा निकालते हुए बोली...

"अब इसमें कामीनेपन वाली क्या बात है यार.. मंन में तो सभी के होती हैं ऐसी बातें.. मौका मिलते ही बाहर तो निकलनी ही होती हैं.." मैने हल्का सा कटाक्ष करते हुए संदीप का पक्ष लिया....

"नही.. मैं नही मानती.. अच्छे लड़के भी होते हैं.. जो ये सब नही सोचते!" पिंकी ज़ोर देकर बोली...

"कोई दूध का धुला नही होता.. सारे शरीफ बाहर से ही शरीफ लगते हैं.. मुझे सब पता है..! तू एक बार किसी की तरफ मुस्कुरा देना.. दूँम हिलाता हुआ तेरे पिछे पिछे ना आ जाए तो कहना....!" मैं भी अपनी बात पर अड़ गयी...

"तूने आज तक ऐसे ही लड़के देखे हैं.. इसीलिए तू ऐसा बोल रही है... !" पिंकी तुनक कर बोली....

"चल.. तू 'एक' का भी नाम बता दे.. मैं अपने पिछे 'पागल' करके दिखाउन्गि उसको..." हमारी बहस का रुख़ पता नही किधर जा रहा था....

"हॅरी!" पिंकी के मुँह से जोश में नाम निकल गया.. फिर खुद ही हड़बड़ते हुए बोली..,"छ्चोड़ ना.. हम भी ये क्या लेकर बैठ गये...!"

"मैं शर्त लगा सकती हूँ.. हॅरी भी 'सीधा' नही है... लड़का तो कोई इतना शरीफ हो ही नही सकता.... उसको तो मैं 'यूँ' पटा सकती हूँ..."मैं अब 'छ्चोड़ने' को तैयार नही थी...

"तू.. क्या करेगी?" पिंकी ने मुझे घूरते हुए कहा....

"वो सब मुझ पर छ्चोड़ दे.. शर्त लगानी है तो लगा ले... 'हॅरी' को तो मैं 'एक' ही बार में पागल बना सकती हूँ.... बोल!" मैने गर्व से कहा...

"ठीक है.. अगर हॅरी भी ऐसा निकला तो मैं मान लूँगी तेरी बात...!" पिंकी भी तैश में आ गयी...

स्कूल अब कुच्छ कदम ही रह गया था.. मैने हमारी 'शर्त' में झंडा गाडते हुए कहा," कल का पेपर हो जाने दे.. फिर देखती हूँ तेरे 'हॅरी' को भी..

"मेरा क्यूँ बोल रही है.. तेरा होगा 'वो'?" पिंकी शरमाती हुई बोली और फिर स्कूल आ गया...

उस दिन का पेपर भी दोनो का अच्च्छा ख़ासा हो गया था... 'वो' सर आज फिर नही आए थे... मेडम हमारे कमरे तक में नही आई... पेपर देकर घर जाते हुए हम दोनो काफ़ी रिलॅक्स्ड महसूस कर रहे थे.. अब सिर्फ़ एक फिज़िकल एजुकेशन का पेपर बचा था और वो 'ना' के बराबर ही था...

जैसे ही मैं और पिंकी उसके घर पहुँचे, हमें मीनू नीचे ही मिल गयी...

"कहीं जा रही हो क्या दीदी?" पिंकी ने उसको देखते ही पूचछा...

"नही तो! अब कहाँ जाउन्गि?" मीनू बार बार दरवाजे से बाहर झाँक रही थी...

"तो फिर आपने नयी ड्रेस क्यूँ डाल रखी है?" पिंकी मीनू के कमीज़ के कपड़े को छ्छू कर देखती हुई बोली,"वैसे बहुत प्यारी लग रही हो आप इस गुलाबी सूट में.. ये मेरा फॅवुरेट कलर है...!"

"बस भी कर अब.. ज़्यादा मस्का मत लगा.." मीनू शर्मा सी गयी थी..," वो.. चल उपर चलते हैं.. मम्मी पापा भी उपर ही हैं..."

हम उपर गये तो चाचा चाची थोड़े चिंतित से बैठे थे... हमारे पेपर के बारे में पूच्छने के बाद चाचा चाची से बोले,"मेरी तो समझ में नही आ रहा कि 'वो' इनस्पेक्टर यहाँ क्या लेने आ रहा है अब...!"

"कौन?... 'वो' लंबू आ रहा है क्या?" पिंकी चहकते हुए बोली...

"कौन लंबू?" चाचा के माथे पर अब भी थयोरियाँ चढ़ि हुई थी....

"वही.. वो इंस्पेक्टोररर्र!" पिंकी हंसते हुए बोली और चाची के पास बैठ गयी...

"तुझे बोलने की भी तमीज़ नही रही पिंकी? तू जितनी बड़ी हो रही है.. उतनी ही शैतान होती जा रही है.. बड़ों को ऐसे बोलते हैं क्या?" चाची ने पिंकी को घूर कर देखा...

"आपके सामने ही तो बोला है मम्मी.. 'वो' कोई सामने थोड़े ही बैठा है..? वैसे.. वो आ रहे हैं क्या यहाँ... इनस्पेक्टर साहेब?"

"हाँ.. थोड़ी देर पहले ही उसका फोन आया था.. पता नही हमारा नंबर. किसने दे दिया उसको.. और यहाँ क्या लेने आ रहा है भला.. हमें तो खेत में जाना था.. हमें भी यहाँ बाँध कर बिठा दिया....!" चाचा ने नाराज़गी से कहा...

"तो आप जाओ ना पापा! 'वो' आए तो हम कह देंगे कि आपको खेत में जाना था.. मिलना होगा तो वहीं आकर मिल लेंगे.... आपको क्या पड़ी है...?.. और फिर क्या पता 'वो' कब तक आएँगे...?" मीनू ने अंदर कमरे में से ही कहा....

"मीनू बेटा.. तुझे किसी बात का पता सता हो तो पहले ही बता देना.. पोलीस से कोई बात छिपि नही रहती.. आज नही तो कल भेद खुल ही जाता है.. बाद में ज़्यादा समस्या आएगी...." चाचा ने अपना माथा पकड़े हुए उदासी से कहा....

"आप भी ना बस! क्यूँ चिंता कर रहे हैं खंख़्वाह.. इसको भला क्या पता होगा.. और पता होता भी तो ये कम से कम हमें तो बता ही देती ना... मुझे तो लगता है कि मीनू ठीक ही कह रही है.. हम क्यूँ उसका इंतजार करें..? उसको आना होगा तो खेत में आ जाएगा.. चलो जी, चलते हैं....!" चाची ने चाचा को समझाते हुए कहा....

"पर मेरी समझ में नही आ रहा कि उसने यहीं फोन क्यूँ किया...? मुझे तो कोई गड़बड़ लग रही है....!" चाचा ने खड़े होते हुए कहा...

शायद मीनू और पिंकी में से किसी ने भी चाचा चाची को ये बात नही बताई थी कि उनके पास इनस्पेक्टर का मोबाइल नंबर. है और 'वो' घर से उसको कयि बार फोन कर चुके हैं... मैने भी चुप रहना ही ठीक समझा....

"कोई गड़बड़ नही है जी.. हमारी बेटियों में कोई कमी निकाल कर तो दिखा दे... चलो चलते हैं खेत में.... आना होगा तो वहीं आ जाएगा 'वो'.." चाची ने कहा और उसके पिछे पिछे हो ली....

"अच्च्छा... अब समझी में....!" पिंकी मीनू को चिड़ाते हुए बोली और हँसने लगी...

"तू ज़्यादा बकवास करेगी तो मैं मम्मी को बोल दूँगी..." कहते हुए मीनू उसको मारने को दौड़ी ही थी कि नीचे गाड़ी का हॉर्न सुनकर ठिठक गयी..,"हाए राम! 'वो' अभी क्यूँ आ गया..." हम तीनो ने मुंडेर पर खड़े होकर देखा.. उन्न दोनो के साथ 2 मोटे तगड़े आदमी और थे.... चारों के चारों सादी वर्दी में थे.... उनके आते ही चाची वापस अंदर आ गयी और चाचा उनके पास ही खड़े रहे....

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