RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
मानव ने जैसे ही अपनी नज़रें बचाकर उपर देखा.. मीनू तुरंत पिछे हट गयी.. पर हम मुंडेर पर खड़े खड़े मंद मंद मुस्कुराते रहे.. मानव ने बाकी तीनो को जीप में ही बैठने का इशारा किया और चाचा के साथ अंदर आ गया....
"अंदर आ गया दीदी!" पिंकी मीनू को छेड़ते हुए बोली...
"तो...? तो मैं क्या करूँ?" मीनू ने कहा और फिर बोली,"जा मम्मी को उपर बुला ला..!"
"नही.. मैं नही जाती.. आप चली जाओ ना?" पिंकी के बोलने का ढंग अब भी मीनू को चिडाने वाला ही था...
"तुझे तो मैं बाद में देख लूँगी..."मीनू ने गुस्से से कहा और फिर मेरी ओर देख कर बोली..,"जा... अंजू.. तू बुला ला.. चाय वग़ैरह की पूच्छ लेंगे..!"
"ठीक है.. मैं जा रही हूँ दीदी.." मैं कह कर जाने लगी तो पिंकी भी पिछे पिछे आ गयी..,"रूको.. मैं भी आ रही हूँ..."
हम नीचे गये तो चाचा और मानव आमने सामने चारपाइयों पर बैठे थे... चाची थोड़ी दूरी पर हाथ बाँधे खड़ी थी.. हम दोनो चुपचाप चाची के पास जाकर खड़े हो गये...
"इनस्पेक्टर साहब.. आने को तो आप यहाँ 100 बार आओ.. आपका ही घर है.. पर ये बार बार मीनू से अकेले में बात करने वाली आपकी ज़िद हमें चिंतित कर देती है... आख़िर ऐसी क्या बात है जो आप हमारे सामने नही पूच्छ सकते.. आख़िर हमें भी तो पता लगना चाहिए अगर हमारी बेटी से कोई ग़लती हुई है तो...!" चाचा ने रूखे स्वर में कह रहे थे...
"ववो.. दरअसल ऐसी कोई बात नही है अंकल जी!" जहाँ तक मुझे याद है.. मानव ने पहले बार चाचा को 'अंकल' कह कर संबोधित किया था...," मीनू का यूँ तो इस मामले में कोई लेना देना नही है... पर इस केस में हमें उस'से काफ़ी मदद मिल सकती है... शायद आपके सामने 'वो' खुल कर ना बोले.. बस इसीलिए..." मानव कहने के बाद चाचा की आँखों में देखने लगे...
"वो तो ठीक है... पर आपको 'जो कुच्छ भी पूच्छना है.. हमारे सामने ही पूच्छ लो.. अगर हमें लगेगा कि 'वो' हिचकिचा रही है तो हम चले जाएँगे.. पर.. ऐसे बिल्कुल अकेले.... आप तो समझ रहे हो ना.. लड़की जात है.." चाचा कुच्छ बोल ही रहे थे कि सीढ़ियों की आड़ से ही मीनू की कंपकँपति हुई आवाज़ आई..,"मम्मी... ववो...!"
चाची उस तरफ जाने लगी तो चाचा ने मीनू को नीचे ही बुला लिया..," मीनू बेटी.. आना एक बार... " और फिर पिंकी से बोले..,"जा बेटी.. तू चाय बना ले!"
मीनू नीचे आई तो, पता नही क्यूँ, थोड़ी हड़बड़ाई हुई सी थी.. वो चुपचाप आकर बिना नज़रें उठाए चाची के पिछे आकर खड़ी हो गयी," जी.. पापा!"
"देखो बेटी.. तुझे जो कुच्छ भी पता है.. सब इनस्पेक्टर साहब को बता दे आज.. इन्हे परेशान होना पड़ता है बार बार.. तू झिझक मत.. और ना ही किसी बात से डरने की ज़रूरत है.. आख़िर हम तेरे मा-बाप हैं....!" चाचा ने कहा..
"ज्जी.. क्कक्या?" शर्म से लदी मीनू की पलकें आधी ही मानव की ओर उठ पाई...
"ववो.. अभी दो चार दिन से आपके घर में ब्लॅंक कॉल आ रही हैं.. मुझे उसी बारे में कुच्छ पूच्छना था...!" मानव ने कहा....
"प्पर.. मैने तो कोई ऐसी कॉल रिसीव ही नही की..." मीनू दबे स्वर में बोली...
"ये.. ब्लॅंक कॉल क्या होती है मीनू?" चाची ने अधीरता से पूचछा...
"ववो.. मम्मी.. जब कोई फोन करके कुच्छ ना बोले....." मीनू ने सपस्ट किया..
"हां.. ऐसी कॉल तो आ रही हैं कयि दिन से... मैं ये समझ कर फोन वापस रख देती थी कि 'लाइन' खराब होगी... पर.. ये आपको कैसे पता?" चाची ने अचरज भरे लहजे में पूचछा....
मानव ने चाची की बात का जवाब नही दिया.. कुच्छ और ही छेड़ दिया..," मैं चाहता हूँ कि मीनू कुच्छ दिन हर कॉल अटेंड करे.. शायद 'वो' मीनू से ही बात करना चाहता है...!"
मानव की इस बात पर हम सब आस्चर्य से उसकी और देखने लगे... चाचा से रहा ना गया..," ये आप किसके बारे में बात कर रहे हैं इनस्पेक्टर साहब...? कौन बात करना चाहता है मीनू से? और क्यूँ?" मुझे तो लगता है मेरी बेटी बिना वजह किसी उलझन में फँस जाएगी...."
"ऐसा कुच्छ नही होगा अंकल जी.. मैं हूँ ना सब संभालने के लिए... आप किसी बात की चिंता ना करें...!" मानव ने भरोसा सा दिलाते हुए कहा...
"पर ये 'वो' है कौन? और आप हमारे घर के फोन की 'रेकॉर्डिंग' ऐसे कैसे करवा सकते हैं...?" चाचा बुरा सा मान कर बोले...
"अंकल जी... मैने आपके फोन को नही.. 'उस' फोन को सुर्विल्लंसे पर लगवाया है.. जिसस'से आपके घर ब्लॅंक कॉल्स आ रही हैं... मुझे तो 'ये' बहुत बाद में पता चला कि 'वो' आपके घर भी फोन करता है...!"
"कौन 'वो'.. कुच्छ बताओ तो सही इनस्पेक्टर साहब.. आप तो यूँही हमें अंधेरे में रखे हुए हो...!" चाचा ने फिर पूचछा....
"सॉरी अंकल जी.. अभी मैं कुच्छ नही बता सकता.. इस'से पोलीस की जाँच प्रभावित हो सकती है... और भी कुच्छ बहुत सी बातें पूच्छनी थी.. पर आपके रहते मैं ऐसा नही कर सकता... कल को अगर मीनू के साथ कुच्छ हो गया तो आप खुद ही ज़िम्मेदार होंगे..." मानव ने एक एक बात पर ज़ोर देते हुए कहा....
"ययए.. ये आप क्या कह रहे हैं इनस्पेक्टर साहब.. मीनू को क्यूँ होगा कुच्छ.. आप सॉफ सॉफ क्यूँ नही बताते..." चाचा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई...! यही हाल कुच्छ चाची का था.....
"आप कुच्छ पता लगने देंगे तभी तो... देखिए अंकल जी.. मैं भी एक इज़्ज़तदार परिवार का बेटा हूँ और भली भाँति समझता हूँ कि लड़की की इज़्ज़त 'क्या' होती है.. यही बात मैने पहले दिन भी आपको कही थी.. अगर मुझे परवाह ना होती तो मैं बार बार यहाँ अकेले में बात करने की जहमत नही उठाता.... बाकी आपकी मर्ज़ी है...." मानव ने सपस्ट किया...
"ठीक है बेटा..." चाचा की टोन अचानक बदल गयी... हमें तो वैसे भी खेत में जाना था... 'ये' अंजू तो यहाँ रह सकती है ना?" चाचा खड़े होकर बोले...
मानव ने नज़र भर कर मेरी ओर देखा और फिर चाची के पिछे खड़ी होकर उसको ताक रही मीनू की ओर..," हां... ये रह सकती है.. !"
तभी पिंकी चाय लेकर आ गयी....
"जा बेटी.. 3 कप बाहर गाड़ी में दे आ और तू उपर जाकर पढ़ ले... मैं और तेरी मम्मी खेत में जा रहे हैं...." चाचा ने कहा और चाची के साथ अनमने मंन से बाहर निकल गये.....
चाचा बाहर जाते ही वापस आए और रूखे मॅन से मीनू की ओर देखते हुए बोले," देख मीनू! मुझे नही पता कि क्या बात है...? पर अगर कुच्छ ऐसी वैसी बात हुई तो मैं तो जीते जी ही मर जाउन्गा.. इनस्पेक्टर साहब जो पूच्छना चाहते हैं.. तू खुल कर सब बता दे इनको.. मैं इस रोज़ रोज़ के तमाशे से तंग आ गया हूँ..." चाचा ने कहा और फिर मेरी और मूड कर बोले..,"तू यहीं रहना बेटी.. ठीक है?"
"जी चाचा जी.. आप फिकर ना करें.." मैने भोली सूरत बना कर कहा...
"ठीक है.. अच्च्छा इनस्पेक्टर साहब!" चाचा ने दोनो हाथ जोड़े और बाहर निकल गये....
"उफफफ्फ़..." मानव ने चाचा के जाते ही गहरी साँस ली...,"अब मैं करूँ भी तो क्या करूँ.. अंकल के सामने मैं कुच्छ बोलना नही चाहता और 'वो' जाने क्या का क्या समझ रहे हैं...!"
"कौन करता है फोन..? हमारे घर..." मीनू ने भी लगभग मानव के ही अंदाज में पूचछा.... तभी पिंकी बाहर से आई और मेरे पास आकर खड़ी हो गयी...
"सोनू!" मानव ने नाम लेकर हमारे होश ही उड़ा दिए...
"सोनू?.. कहाँ है वो? .... और आपको कैसे पता.. ? उसका तो कुच्छ आता पता ही नही है.. घर वाले तो उसकी गुमसुद्गी की रिपोर्ट भी दर्ज़ करने गये थे...." मीनू ने असमन्झस से कहा....
"हूंम्म्म... देखो.. बताना तो खैर तुम्हे भी नही चाहिए था मुझे.. पर क्यूंकी मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है.. इसीलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब तक की पूरी कहानी अच्छे से समझ लो.... पर 'ये' बात अभी किसी को पता नही चलनी चाहिए... समझ गयी हो ना?"
मानव की बात पर 'हामी' भरने वाली हम तीनो में से 'पिंकी' सबसे पहली थी..,"जी.. मैं किसी को कुच्छ नही बताउन्गि!"
"तुम यहाँ मत रूको..! उपर जाकर अपनी पढ़ाई कर लो!" मानव ने संजीदा लहजे में कहा तो पिंकी अपना सा मुँह ले कर उपर चली गयी.....
"हाँ.. बैठ जाओ आराम से...!" मानव ने हम दोनो को कहा तो हम उस'से दूर बिछि चारपाई पर बैठ कर उत्सुकता से इनस्पेक्टर की ओर देखने लगे....
"वो.. दरअसल.. तुमने जो नंबर. सोनू का बताया था.. मैने उस नंबर. समेत मैने 2-3 नंबर. शक के आधार पर सुर्विल्लंसे पर लगवा दिए थे... स्कूल आने से ठीक एक दिन पहले अचानक मुझे पता चला कि उस नंबर. से किसी 'लड़की' ने किसी लड़के से बात की हैं...!" मानव ने ये कहते हुए हम दोनो को गौर से देखा तो मेरी तो घिग्गी ही बँध गयी थी....
मानव थोडा रुक कर फिर बोलने लगा," मैने एक बार फिर वो नंबर. ट्राइ किया तो फोन तुम्हारे ही गाँव के 'संदीप' ने उठाया.. उसी से मुझे पता चला कि फोन उसके भाई 'ढोलू' का है... तब मुझे उम्मीद बँध गयी थी कि कहानी के पैइंच यहीं से खुल सकते हैं... पर 'वो' ज़्यादा कुच्छ बता नही पाया.. मैने उसको जानबूझ कर कुच्छ जिकर भी नही किया था... फिर भी.. पोलीस के पहुँचने से पहले ही 'ढोलू' घर से रफूचक्कर हो चुका था....
"अगले दिन शाम को उस 'मास्टर' से मैने 'ढंग' से पूच्छ ताच्छ की तो उसने क़ुबूल लिया कि उसने ढोलू को बोलकर तरुण और सोनू को डरा धमका कर 'वो' क्लिप डेलीट करवाने को कहा था.. पर 'वो' उनके मर्डर की बात से सॉफ मना कर रहा है... उसके अनुसार सौदा उसने केवल '5000' में सेट किया था... अब अगर उसकी 'ये' बात अगर सच है तो इतना भी तय है कि '5000' के लिए कोई किसी का मर्डर नही करेगा... मैने अपने सामने ही उसको 'ढोलू' से उसी के नंबर. से बात करने को कहा... उस वक़्त ढोलू ने सॉफ सॉफ कहा कि 'इस' मामले में उसका कोई हाथ नही है और उस रात तरुण का खून होने के बाद तो उसने 'इस' पंगे से अपनी टाँग ही खींच ली थी...
उस वक़्त मैने 'मास्टर' को जाने की कहकर उसकी निगरानी की ज़िम्मेदारी एक पोलीस वाले को सौंप दी... ढोलू का अब तक कुच्छ पता नही है.. ऐसा लग रहा है कि 'वो' कुच्छ ज़्यादा ही शातिर बन'ने की कोशिश कर रहा है.. अपने नंबर. से अब 'वो' गिने चुने नंबर.स पर ही बात कर रहा है, जिनमें से ज़्यादातर क्रिमिनल्स टाइप के लोग हैं और उनका कोई पता ठिकाना भी नही है.... नंबर. भी सारे अनाप शनाप पते ठिकानो पर लिए गये हैं....ऐसे ही नंबर.स को ट्रेस करते करते मैं 'सोनू' तक पहुँच गया हूँ.. जो आज कल तरुण का मोबाइल यूज़ कर रहा है...!"
"ओह्ह... इसका मतलब..." मीनू हतप्रभ सी होकर बोली,"सोनू ने तरुण का..? ... पर आपको ये कैसे पता चला कि 'वो' तरुण का मोबाइल यूज़ कर रहा है.. आपने उसको पकड़ लिया है क्या?"
"वो सब टेक्निकल बातें होती हैं.. तुम छ्चोड़ो.. पर समस्या यही है कि इतना सब कुच्छ पता चलने के बाद भी मेरे हाथ अब तक कुच्छ नही लगा है.. समस्या यही है कि ढोलू और सोनू लगातार जगह बदल रहे हैं और अपने 'वो' नंबर.स बहुत कम यूज़ करते हैं.. 'वो' या तो आपस में बात करते हैं.. या फिर 'सोनू' तुम्हारे घर फोने करने के लिए 'उसको' ऑन करता है....
"ओह्ह.. पर 'वो' हमारे घर पर फोन क्यूँ करता है..." मीनू डर से काँप सी गयी थी...
"शायद उसके पास अभी भी कुच्छ है.. तुम्हे ब्लॅकमेल करने के लिए!" मानव गहरी साँस लेकर बोला...
मीनू का चेहरा सन्न रह गया.. कुच्छ देर रुक कर वो अटक अटक कर बोली..," पर आपको कैसे पता.. 'वो' सोनू ही है...?"
"मैने उन्न दोनो की बातें सुनी हैं.. फोन पर.. इसीलिए.. पर जब 'वो' तुम्हारे घर फोन करता है तो कुच्छ नही बोलता.. मुझे पता था कि यहाँ से 'आंटी जी' ही हर बार फोन उठाती हैं.. पर मैने जान बूझ कर तुमसे पूचछा था...." मानव ने कहा...
"अब मैं क्या करूँ...?" मेनू रुनवासी होकर बोली...
"कुच्छ ज़्यादा नही.. सिर्फ़ उस'से बात करो और पूच्छो कि 'वो' क्या चाहता है.. फिर देखते हैं क्या रास्ता निकल ता है.... " मानव मीनू को समझाते हुए बोला...
मीनू से कुच्छ कहा नही गया.. अचानक उसने सुबकना शुरू कर दिया और जल्द ही उसकी सुबाकियाँ 'मोटे मोटे' आँसुओं वाली बिलख में बदल गयी....
"तुम पागल हो क्या? ऐसे क्यूँ कर रही हो?" मानव खड़ा होकर उसके पास आने को हुआ.. फिर जाने क्या सोचकर बीच रास्ते में ही ठिठक गया...,"अब.. बस भी करो मीनू... मैं सब ठीक कर दूँगा..."
पर मीनू पर उसकी शंतवना का 'इतना' सा भी असर नही हुआ... वा यूँही बिलखती हुई बोली," मम्मी पापा का क्या होगा..? अगर उनको इस बारे में...... कुच्छ भी पता चला तो..... 'वो' तो जान दे देंगे अपनी... मैं क्या करूँ...अब?"
"ओफफो.. अब बस भी करो.. उनको कुच्छ पता नही लगेगा... बस एक बार तुम ये पता करो कि 'वो' चाहता क्या है..? जहाँ तक मेरा ख़याल है.. 'वो' तुम्हे कहीं ना कहीं मिलने को कहेगा.. और समझ लो तभी हमारा काम हो जाएगा....!" मानव आकर उसके पास बैठा तो मीनू थोड़ी सी मेरी तरफ खिसक आई....," पर मैं उस'से बात करूँगी.. तब तो घर वालों को पता लग ही जाएगा ना!"
"उसका भी इलाज है.. तुम घर वाले फोन से नही... इस नंबर. से बात करोगी..." मानव ने अपनी जेब से एक मोबाइल निकाला और मीनू को दे दिया... मैं तो मानव की इस इनायत का मतलब तुरंत समझ गयी थी... मीनू पता नही कुच्छ समझी कि नही.. उसने मोबाइल चुपचाप हाथ में पकड़ लिया और मानव की ओर देखने लगी..,"पर.. इस नंबर. का उसको कैसे पता लगेगा.. वो तो घर पर ही फोन करेगा ना...?"
" इस मोबाइल में मैने उसका नंबर. फीड कर रखा है... उसको शक नही होना चाहिए कि नंबर. मैने तुम्हे दिया है.. उसको बोलना कि तुम्हारे घर आइडी कॉलर है.. उसी से तुमने ये नंबर. निकाला.... और अपने मोबाइल से ये जान'ने के लिए उसको फोन किया है कि 'वो' कौन है... एक बार तुम उस'से बात कर लोगि तो वो दोबारा कभी 'घर वाले नंबर. पर फोन नही करेगा..." मानव ने उसको दिलासा दी....
"पर उसको तो पता है कि मेरे पास मोबाइल नही है..." मीनू ने भोली सूरत बना कर कहा....
"तुम शकल से तो बड़ी समझदार लगती हो.."मानव हंसते हुए बोला," मोबाइल लेना कोई बड़ी बात है क्या?"
"ठीक है..." मीनू ने अपनी आँखें पौंचछते हुए मानव को देख कर कहा...
"ओके.. अभी मैं चलता हूँ...!" कहकर मानव खड़ा हो गया.. वह बाहर निकलने को ही था कि तभी वापिस मुड़ा..,"इसमें मेरा भी नंबर. सेव कर दिया है मैने.. थोड़ा मेरा भी ख़याल रखना.." वह खिलखिलाया और बाहर चला गया....
मीनू कुच्छ देर तक सुंदर से 'मोबाइल' को निहारती रही और फिर मुझे देख कर बोली," पागल है ना ये लंबू..!"
क्रमशः..............................
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