RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--28
गतान्क से आगे.............
"क्यूँ? पागल क्यूँ कह रही हो दीदी..?" मैने उसके खिले हुए चेहरे को देख कर पूचछा...
"और नही तो क्या! पागल ही है.. कितना अच्च्छा मोबाइल दे गया... फ्री में.. हे हे हे.." मीनू खुश होकर बोली...
तभी पिंकी नीचे आ टाप्की.. शायद 'वो' गाड़ी' के चलने की आवाज़ सुनकर नीचे आई होगी.. मीनू के हाथ में मोबाइल देख कर उसने आस्चर्य से आँखें फाड़ते हुए अपने मुँह पर हाथ रख लिया..,"हाआआआआआ.... दीदी....!!! दिखाना एक बार..!"
"क्या?" मीनू ने पिंकी की नज़रों की सीध जब मोबाइल पर बँधी दिखी तो उसने तुरंत मोबाइल वाला हाथ अपनी कमर के पिछे छिपा लिया.. "नही.. ये तेरे काम की चीज़ नही है!"
"दिखा दो ना प्लीज़.. सिर्फ़ एक बार दीदी..!" पिंकी गिड़गिदते हुए बोली...
"बोला ना तेरे काम का नही है.... चुपचाप अपना काम कर'ले!" मीनू ने तपाक से अपना पिच्छला जवाब दोहरा दिया...
प्यार से काम ना बनते देख पिंकी ने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया...,"ठीक है फिर.. आने दो मम्मी को..!" पिंकी आँखें तरेर कर बोली...,"मैं तो उनके आते ही बोल दूँगी कि 'लंबू' मोबाइल देकर गया है आपकी 'शरीफ' सी बेटी को.. हाआँ!"
"ले.. मर ले...!" मीनू ने मुँह चढ़ा कर मोबाइल पिंकी के हाथ में थमा दिया..," तू तो हमेशा उल्टा ही सोचती है.. उन्होने फोन किसी खास काम के लिए दिया है.. एक दो दिन के लिए.. समझी!"
मोबाइल हाथ में लेते ही पिंकी का चेहरा खिल गया.. वह मीनू की बातों को अनसुना करके मोबाइल के बटन दबाने लगी.. कुच्छ देर यूँही मोबाइल में मस्ती से डूबी रहने के बाद वह अचानक खिलखिला उठी...,"हा हा हा हा हा... देखो अंजू.. क्या लिखा है..!" कहकर उसने मीनू से बचाकर मोबाइल का स्क्रीन मेरी आँखों के सामने कर दिया...
मेरी समझ में आते ही मेरी भी हँसी छ्छूट गयी.. कॉंटॅक्ट लिस्ट में दो ही नाम थे.. एक 'स' करके था और दूसरा 'लंबू!' मीनू ने तुरंत उसके हाथ से मोबाइल झपट लिया और 'लंबू' लिखा देख 'वह' खिज सी गयी..," तुम सबने तो मेरा 'मज़ाक' ही बना लिया.."
अगले ही पल मीनू सीरीयस हो गयी..," 'स' तो सोनू ही होगा... है ना?"
"हां.. वही होना चाहिए.. मिला कर देखो ना अभी.." मैने कहा...
"कौन सोनू दीदी?" पिंकी भी हमारा चेहरा देख कर सीरीयस होते हुए बोली...
" मैं बाद में सब बता दूँगी.. एक मिनिट चुप हो जा..." मीनू ने कहा और हम दोनो को चुप रहने का इशारा करने के बाद मीनू ने 'स' वाले नंबर. पर कॉल कर दी.. हम दोनो शांत होकर मीनू के चेहरे की ओर देखने लगे...
"काट रहा है बार बार...!" मीनू ने तीन चार बार ट्राइ करने के बाद हमें देख कर कहा....
"अंजान नंबर. होने की वजह से नही उठा रहा होगा दीदी.. आप एक बार घर वाले नंबर. से कॉल करके कह दो..." मैने आइडिया दिया...
"हाँ.. ये ठीक रहेगा.. पर मैं बोलूँगी क्या?" मीनू का चेहरा उतर गया...
"आपको क्या बोलना है? आप बस बता देना कि आप मीनू हो.. बाकी तो वो खुद ही बोल लेगा जो बोलना है... और हाँ.. ये बताना मत भूलना कि आपने उसका नंबर. कहाँ से लिया है.. इनस्पेक्टर ने समझाया था ना आपको!" मैने कहा...
"हाँ.. तुम यहीं रूको.. मैं उपर से उसको फोन करके आती हूँ..." मीनू बोलकर उठी ही थी कि मोबाइल पर कॉल आ गयी.. मीनू ने हड़बड़ा कर मोबाइल को देखा और बोली..,"पता नही किसका है?"
"उसी का होगा दीदी.. दूसरे नंबर. से किया होगा.. जानबूझ कर...!" मैने उच्छल कर कहा...
"ष्ह्ह्ह्ह्ह..." मीनू ने एक बार फिर हमें चुप रहने को कहा और कॉल रिसीव कर ली..
"आप कौन?" मीनू ने सामने वेल की आवाज़ सुनते ही पूचछा.... हमें उधर से आ रही आवाज़ सुनाई नही दे रही थी...
"जी..? सुनील तो यहाँ कोई नही है....! आप कौन बोल रही हैं..?"
"हाँ.. रॉंग नंबर. ही लग गया होगा...!" मीनू ने आगे कहा...
"मैं तो मीनू...ओह्ह्ह..." अपना नाम बताने के बाद मीनू को लगा कि उसको नाम नही बताना चाहिए था.. उसने तुरंत फोन काट दिया..," कोई लड़की किसी सुनील को पूच्छ रही थी... मैने अपना नाम बता दिया खंख़्वाह..."
इस'से पहले हम दोनो में से कोई प्रतिक्रिया देती.. एक बार फिर मोबाइल की घंटी बज उठी... इस बार नंबर. देख कर मीनू चौंक गयी...,"सोनू का है.. ! चुप हो जाओ दोनो..!" मीनू ने कहा और फोन उठा लिया...,"हेलो...!"
"ज्जई.. आप कौन बोल रहे हो..?" मीनू ने इस बार समझदारी से काम लिया...
"हाँ.. फोन तो मैने ही किया था.. पर आपने हमारे घर वाले नंबर. पर कॉल की हुई हैं.. इसीलिए मैं..." मीनू बोलते बोलते चुप हो गयी...
"हां.. म्मे.. मीनू बोल रही हूँ.. तुम कौन हो..?"
अगले ही पल मीनू की खड़े खड़े टांगे काँपने लगी..,"प्पर.. तुम हो कौन?"
"नही.. सब झूठ है.. तुम हो कौन..?" अचानक मीनू के चेहरे पर भय सपस्ट नज़र आने लगा था...
"ट्तुम.. प्लीज़ ऐसी बातें मत करो...म्मै.. मैं.." मीनू ने अपनी बात पूरी किए बिना ही फोन काट दिया... और चारपाई पर बैठ कर अपना चेहरा घुटनो में छुपा कर रोने लगी... फोन उसने चारपाई पर पटक दिया...
"क्या हुआ दीदी..? कौन था..?" हम दोनो उठकर मीनू के पास चले गये...
"पता नही...." मीनू सुबक्ते हुए ही बोली..," नाम नही बता रहा.."
"पर आप रो क्यूँ रही हो..?" मैने मीनू की बाँह पकड़ कर प्यार से पूचछा...
"ववो.. गंदी गंदी बातें बोल रहा है.. मेरे बारे में..!" और मीनू बिलख उठी...
"बस करो आप.. आप ऐसा करोगे तो इनस्पेक्टर वाला काम कैसे होगा... हमें 'यही' तो पता करना है कि 'वो' चाहता क्या है...!" मैने बोला ही था कि एक बार फिर उसी नंबर. से फोन आ गया...
"आप कैसे भी करके उस'से बात तो करो...!" मैने मोबाइल उठाकर मीनू को देने की कोशिश की...
"नही.. मुझसे ऐसी बात सुनी नही जाएँगी.. मैं नही कर सकती उस'से बात...!" मीनू ने फोन पकड़ने से इनकार कर दिया....
"एक काम करें दीदी! मैं 'मीनू' बनकर बात करूँ इस'से..." मैने कहा..
"हाँ... ठीक है.. तू ही करले बात!" मीनू की जान में जान आई...
मैं फोन लेकर कमरे के कोने की तरफ चली गयी.. मैं फोन मिलाने ही वाली थी की उसी का फोन आ गया.. मैने कॉल अटेंड करके गला सॉफ किया," हेलो!"
"कौन?" उधर से आवाज़ आई...
"म्मै ही हूँ.. मीनू!" मैने कहते हुए मीनू के चेहरे की और देखा.. पिंकी ने मीनू के गलें में बाँह डाल रखी थी और दोनो साँस रोके मुझे ही देख रही थी...
"फोन क्यूँ काट दिया था साली?" उधर से मुझे आवाज़ सुनाई दी...
"ववो.. आप.. वो.. कोई आ गया था नीचे..!" मैने धीमे स्वर में जवाब दिया...
"अभी किधर है तू?" उसने पूचछा..
"घर पर ही हूँ.. नीचे!" मैने कहा...
"और बाकी?"
च.. मम्मी पापा खेत में गये हैं.. एम्म पिंकी उपर है.." मेरे मुँह से मीनू निकलते निकलते रह गया..
"ये नंबर. किसने दिया..? कोई नया यार बना लिया क्या?" मुझे उसकी बात के साथ ही एक लड़की के हँसने की आवाज़ आई...
"प्प.. पापा लाए हैं.. मेरे लिए...!" मैने कहा..
"चलो ठीक ही किया.. तेरे जैसे 'माल' के पास तो मोबाइल होना ही चाहिए... 'वो' तेरी चूत की फोटो है मेरे पास.. क्या मक्खन मलाई जैसा 'पीस' है...! एक दम तेरे होंटो के जैसी है..." उसने कहा तो मेरी नज़रें एक पल के लिए मीनू के 'होंटो' पर ठहर गयी...
"क्कऔन हो तुम?" मैने पूचछा...
"तू छ्चोड़ इस बात को.. ये बता कब दे रही है?" उसने मेरे सवाल को नज़रअंदाज करते हुए पूचछा...
"क्या?" मैने अंजाने में ही पूच्छ लिया....
"तेरी चूत, और क्या साली? कब से मेरा लौदा तेरी चूत को चीरने के लिए फड़फदा रहा है.. रोज़ तेरी चूत की फोटो देख कर ही 'मूठ' मारता हूँ.. अब ज़्यादा बना मत.. बता कब दे रही है...?"
"म्मैइन.. नही... तुम..!" उसकी रंगीन बातें सुन कर मेरी 'योनि' सच में ही चिकनी हो गयी थी.. मैं हड़बड़कर कुच्छ और ही बोलती.. इस'से पहले ही मेरे कानो में उसकी कड़क आवाज़ मुझे सुनाई दी..
"चूतिया मत बना अब... तेरी चूत और गांद दोनो मारनी हैं मुझे... अगर इनकार करेगी तो तुझे 'बाज़ारू' बना दूँगा मैं... मेरे पास 'तेरी चूत' के फ़ोटॉं हैं.. एक मैं तेरा चेहरा भी सॉफ नज़र आ रहा है... अब तेरी मर्ज़ी है.. 'बोल' क्या चाहती है तू.. यहाँ तो सिर्फ़ मुझसे गांद मरवाने में तेरा काम चल रहा है.. अगर तू नही मानी तो 'गाँव के सभी लड़के तेरी चूत देख देख कर 'मूठ' मारेंगे और 'बुड्ढे' उस पर थूकेंगे.. हा हा हा... समझ में आई बात?"
"ववो.. म्मैइन.. थोड़ी देर बाद फोन करूँगी..!" मैने आनमने मंन से मीनू और पिंकी को देख कर कहा..
"सुन.. मेसेज कर देना.. खाली होते ही.. फोन मत करना इस पर.. और किसी भी नंबर. से फोन करूँ.. उठा कर देख लेना... अच्छि तरह सोच कर बता देना.. बाकी तुझे ये कहने की तो ज़रूरत ही नही कि किसी को बताना मत.. तू खुद समझदार है..!" उसने कहा और फोन काट दिया...
"क्या कह रहा था 'वो'?" मीनू ने डरते डरते पूचछा...
"कुच्छ नही.." मैने पिंकी की और देखा और बोली..,"बाद में बताउन्गि...!"
"गंदा बोल रहा था ना...?" मीनू ने मरी सी आवाज़ में पूचछा...
"हां.. बाद में फोन करने को कहा है मैने...!" मैने कहा...
"तू ही कर लेना प्लीज़ बात.. मुझसे नही होंगी.. 'काम' बताया उसने क्यूँ फोन कर रहा है...?" मीनू के मंन में पहले ही हड़कंप सा मचा हुआ था...
"हां..." मैने मायूसी से उसकी और देखते हुए कहा..," उसके पास 'आपके' फोटो हैं...!"
मीनू सहम सी गयी..,"क्कऔन है 'वो'?"
"बताया ही नही उसने.. मैने पूचछा तो था...!" मैने कहा...
"वो हरमज़दा 'सोनू' ही होगा..." मीनू ने मंन ही मंन उसको कोसते हुए कहा...
"पर उसके साथ तो 'कोई' लड़की भी है...?" मैने कहा...
"होगी कोई.. कुतिया!"
"अब मुझे भी बताओ ना क्या बात है?" पिंकी छ्ट-पटाते हुए सी बोली....
"चलो.. उपर चलते हैं..." मीनू नीरस चेहरा लिए उठ खड़ी हुई और बहके बहके से कदमों से उपर चढ़ने लगी.. हम भी उसके पिछे पिछे हो लिए... मैं सोनू से दोबारा बात करने के लिए मरी जा रही थी.. पर 'अब' मैं सारी बातें अकेले में करना चाहती थी.....
हम तीनो ने मिलकर सारी स्थिति पर विचार करने के बाद यही फ़ैसला किया कि हमें मानव को सारी बात बता देनी चाहिए.. पर मीनू ने तब तक ऐसा नही किया जब तक हम उसको अकेला छ्चोड़ कर नीचे नही आ गये... हमारे नीचे आने के करीब 15 मिनिट बाद वह भी नीचे आ गयी.. मानव से बात करने के बाद उसमें हल्की सी हिम्मत आ गयी थी..,
" उसने कहा है कि मैं अपनी तरफ से उसके बारे में जान'ने की जल्दबाज़ी ना दिखाउ.. उसकी सारी बातें सुनू.. और अगर वह मिलने के बारे में कहे तो ना-नुकुर करूँ.. ताकि उसके मंन में किसी तरह का शक पैदा ना हो... एक दो दिन तक ऐसे ही चलने दूँ.. उसने कहा है कि 'वो' इन्न एक दो दिन के अंदर ही उसको पकड़ने की पूरी कोशिश करेगा..."
"पर दीदी, आपको ये भी तो बताना चाहिए था कि उसने उस मोबाइल पर फोन करने से मना किया है..!" मैने कहा...
"हां.. मैने बता दिया.. कोई दिक्कत नही है.. पर उसने बोला है कि हम इस फोने से ही बात करें बस!" मीनू ने जवाब दिया...
"आपने ये बताया की फोन पर मैं बात करूँगी.. आपकी जगह?" मैने उत्सुकता से पूचछा...
"नही.. मैने ज़रूरी नही समझा.. इस'से क्या फ़र्क़ पड़ता है.. 'वो' तो तुम्हे ही 'मीनू' समझ रहा है ना..." मीनू ने कहा तो मैने स्वीकृति में सिर हिलाया..,"हां.. ये तो है.. "
"शिखा के घर चलें पिंकी..?" मैने पिंकी से पूचछा...
"नही.. और तुम्हे भी नही जाना!" पिंकी ने मुझ पर अधिकार सा जताते हुए बोला.. बड़ी प्यारी लग रही थी वो ऐसा बोलते हुए...
"पर क्यूँ? शिखा आ तो गयी है..." मैने फिर कहा...
"मैने बोल दिया ना.. उसको काम होगा तो वो खुद आ जाएगी.. हम नही जाएँगे ऐसे 'गंदे' लोगों के घर...!" पिंकी ने तपाक से जवाब दिया...
"ठीक है.. मैं घर जा रही हूँ.. रात को आउन्गि..!" मैने कहा और उठ खड़ी हुई...
"मैं भी चालूंगी..!" पिंकी ने तुरंत कहा...
"अभी एक पेपर बाकी है पिंकी.. थोड़ा बहुत तो पढ़ ले...!" मीनू ने मुझे मोबाइल पकड़ते हुए कहा....
"कल तो फिज़िकल का पेपर है दीदी.. उसमें भी क्या पढ़ना!.." पिंकी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया..,"चलो!"
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