RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"अयाया... अया... मैं स्खलन के बिल्कुल करीब थी.. जैसे तैसे मैने बोलने के लिए शब्द ढूढ़ ही लिए..," मेरी चूऊऊथ मक्खन मलाई हैईआआआह्ह्ह्ह...!"
ढोलू की आवाज़ में भी कंपन सा शुरू हो गया था.....,"मेरे लौदा कैसा है रानी!"
"अया... तेरा लौदा क़ाला... अया.. नही.. तेरा लौदा 'डंडे' जैसा है...." मैं फुदक्ति हुई बोली...
"शाबाश... लड़की की चूत किसलिए होती है बता!"...
"प्याअर करने के लिए...!"
"नही सलीईइ.... चूत चोदने के लिए होती है.. लंड अंदर पेलने के लिए होती है....!"
"आह्ह्हाआ..ओहूओ.. हाआअन्न्न्न्न..अया!" संदीप ने अपनी दो उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर डाल दी थी और लपर लपर योनि की फांकों को चूस और चाट रहा था....
"लौदा किसलिए होता है बोल...?" ढोलू ने मस्त होकर पूचछा....
"अया... मुँह में लेकर चूसने के लिए.... आऔर्र्र... चूत चोदने के लिए.....!" मैं गन्गनति हुई बोली....
"और गांद मारने के लिए भी... हाए जान.. मुझसे गांद मरवाएगी ना अपनी...!" ढोलू आगे बोला....
"हाआँ.... ज़ाआआअँ...." अचानक मेरी इंदरियों ने काम करना बंद कर दिया.. मुझे अपनी योनि में से कुच्छ रिस्ता हुआ महसूस हुआ.. संदीप अब भी पागल से होकर उसस्पर लगा हुआ था.. अपनी उंगलियाँ निकाल कर 'वो' अंदर तक मेरी योनि के छेद को जीभ से चाटने लगा.....
"बोल किस'से चुदेगि तू....?" धलोलू ने पूचछा तो मैं कोई जवाब ना दे पाई.... बस पड़ी पड़ी आँखें बंद किए सिसकती रही...
"बोल ना.. किस'से चुदेगि तू....... क्या हुआ? निकल गया क्या?" ढोलू बोला...
"हाआँ...." मेरी आवाज़ से सन्तुस्ति और बेताबी दोनो झलक रही थी....
"नही अभी नही.. थोड़ी देर और... अभी मेरा काम नही हुआ है.. बोल ना.. किस'से अपनी सील तुडवाएगी तू....?" ढोलू तड़प कर बोला... उस बेचारे को क्या मालूम था कि 'सील' तो अब स्वर्ग सिधार चुकी है...
"तेरे से... तेरे लौदे से...!" मैने जवाब दिया...
"ऐसे नही जान.. क्या बोलेगी तू मेरा लौदा हाथ में पकड़ कर.. बोल ना!"
"मैं कहूँगी... मुझे चोद दो.. मेरी सील तोड़ दो.. मेरी चूत को फाड़ डालो... !"
"हाए मेरी रानी.. क्या चीज़ है तू.. एक बाआअर ओउर्र.. बोल ना..!" ढोलू कामुक ढंग से बोला...
"अया.. मेरी मक्खन मलाई चूत में अपना डंडे जैसा लौदा फँसा दो... मुझे चोद दो.." मैने बोलते हुए संदीप को उपर खींच लिया.... मेरा इशारा समझ कर संदीप उपर आया और मेरी जांघों को खोल कर उनके बीच उकड़ू होकर बैठ गया.. मैं एक बार फिर बदहवास सी होकर बोलने लगी...," घुसा दो मेरी चूत में अपना लोड्ा... जल्दी करो ना.. मैं मरी जा रही हूँ... चीर डालो इसको... चोद दो मुझे... " मुझे फोन पर ढोलू के हाँफने की आवाज़ें सॉफ सुनाई दे रही थी.. पर वह कुच्छ बोल नही रहा था...
संदीप ने मेरी योनि के बीचों बीच अपना 'डंडा' टिकाया और एक ही झटके में अंदर पेल दिया... आनद की उस अलौकिक प्रकाष्ठा पर पहुँचते ही मैं बावली सी हो गयी...,"हाईए... संडीईईप!"
मुझे बोलते ही अपनी ग़लती का अहसास हो गया था.. पर तीर कमान से निकल चुका था....
"साली बेहन चोद.. तू संदीप के बारे में सोच रही है कुतिया....
"नही.. ववो.. उसका मोबाइल.. अयाया...." संदीप का लिंग बाहर निकल कर एक बार फिर मेरे गर्भाष्या से जा टकराया..," आआआआहह... वो तो उसका ध्यान आ गया था.. ऐसे ही.. तुझसे ही चुदवाउन्गि जान!"
"कुतिया... तू एक नंबर. की रंडी है.. तेरा कोई भरोसा नही.. पर एक बार सील मुझसे तुद्वा लेना.. फिर चाहे कुत्तों से अपनी गांद मरवाना.. समझ गयी... तुम कल ही शहर आ जाओ.. मेरा नंबर. देख लेना मोबाइल में से....
"ठीक है...", मुझे उसकी गालियाँ मदहोशी में बड़ी अच्छि लग रही थी...," तुझसे ही अपनी चूत मराउन्गि... अया.. अया...!"
"एक बार मरवा कर देखना साली.. और किसी का लंड पसंद आ जाए तो बताना फिर... कल पक्का आ रही है ना...?"
"हाँ..!"
"ठीक है.. फोन वापस दे आना.. और किसी को मेरा नंबर. मत बताना.. ठीक है ना...?" ढोलू ने पूचछा...
"हाँ...!" मेरे कहते ही ढोलू ने फोन काट दिया.... मैने ढोलू का नंबर. याद किया और फोन एक तरफ पटक दिया...,"अया... अयाया....!" बोल बोल कर धक्के मारो ना जान...!"
"ढोलू से तो बहुत गंदे तरीके से बात करती हो.. मुझसे ऐसे क्यूँ नही करती...!" संदीप धक्के लगाता हुआ बोला....
पहली बार वाली दिक्कत अब नही हो रही थी... सच में मेरी योनि आज मक्खन मलाई जैसी लग रही थी... संदीप का लिंग पूरी सफाई से मेरी योनि की दरारों को चीरता हुआ अंदर बाहर हो रहा था....
"पता नही मुझे क्या हो गया है.. मुझे अब कुच्छ भी बोलते हुए शर्म नही आ रही.. मज़ा आ रहा है गंदा बोलते हुए.....!" मैने संदीप की छाती पर हाथ फेरते हुए कहा और अपने नितंबों को उचकाने लगी...
"तो बोलो ना.. मुझे भी बहुत अच्च्छा लग रहा है.." संदीप धक्के मारते हुए बोला...
"नही.. अब नही बोला जा रहा.." मैं साथ साथ तेज धक्के लगाने लगी थी.. तभी मुझे अहसास हुआ कि संदीप की गति कुच्छ बढ़ गयी है.. मुझे अचानक ख़तरे का अहसास हुआ तो मैने झट से उसका लिंग बाहर निकलवा दिया...
"ये क्या किया? सारा मज़ा खराब कर दिया......!"
"नही अंदर नही... बाहर निकाल लो" मैं थरथरती हुई बोली.. मेरा 'काम' हो गया था....
"ठीक है..."संदीप मान गया और मेरी कमीज़ को चूचियो से उपर चढ़ता हुआ मेरी बराबर में लेट गया......
एक हाथ से वह मेरी चूची को मसलता हुआ दूसरी को मुँह में लेकर चूसने लगा.. अपने दूसरे हाथ से वह धीरे धीरे अपने लिंग को आगे पिछे कर रहा था... मस्ती में चूर होकर मज़े लेते हुए में जल्दी ही एक बार फिर गरम हो गयी.. मेरी योनि फिर से उसका 'लिंग' निगलने के लिए तड़पने लगी....
"संदीप!" मैं करहती हुई सी बोली....
"हाँ!"... उसने चूची के दाने को मुँह से निकाल कर पूचछा...
"अभी.. कितनी देर और लगेगी.....?"
"क्यूँ? जल्दी है क्या? " संदीप ने पूचछा...
"नही.. मुझे एक बार और करना है.."मैं तड़प कर बोली...
"थॅंक्स!" अगले ही पल वह उठा और बड़ी फुर्ती से मेरी जांघों के बीच में आ गया...
"नही.. ऐसे नही...!" मैं हड़बड़कर खुद को समेट कर बैठ गयी...
"तो कैसे?" उसने नासमझ सा बनकर पूचछा....
"पहले निकाल लो.. फिर दोबारा करना.. अंदर इसका रस नही निकलना चाहिए...." मैने उसका लिंग अपने हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी...
"एक बात बोलूं.. बुरा मत मान'ना....!" संदीप गिड़गिडता हुआ सा मेरी ओर देखने लगा...
"क्या?" मैं उसके सामने उल्टी होकर लेट गयी और उसके लिंग के सूपदे को जीभ निकाल कर चाटने लगी.. वह सिसक उठा...
"पीछे कर लूँ क्या?" वह आहिस्ता से टेढ़ा होकर जैसे ही लेटा.. उसकी चीख सी निकल गयी...,"आईईई..."
"क्या हुआ?" मैने चौंक कर पूचछा...
"कुच्छ नही..." वह अपनी कोहनी को सहलाता हुआ बोला..," पथर पड़ा है शायद नीचे..." उसने चदडार को पलटा तो सचमुच वहाँ करीब 2-2.5 किलो का पत्थर निकला... संदीप ने 'वो' निकाला और पिछे डाल दिया.... वापस ऐसे ही वह मेरे नितंबों की तरफ मुँह करके लेट गया और उन्न पर प्यार से हाथ फेरता हुआ बोला....,"पिछे कर लूँ क्या अंजू?"
उसके सूपदे को एक बार मुँह में लेकर उसको जीभ से गुदगुदकर मैने 'पूच्छ' कि आवाज़ के साथ उसको बाहर निकाला और गौर से उसके लिंग के छिद्र को देखती हुई बोली..,"पीछे?... पीछे क्या?"
मेरे नितंबों को दोनो हाथों से अलग अलग चीर कर उसने मेरी योनि में उंगली घुसा दी.. मैं उच्छल सी पड़ी.. अगले ही पल उसने रस से सनी उंगली मेरे गुदा द्वार पर रख दी और हल्का सा दबाव बनाते हुए बोला,"इसमें..!"
"इसमें क्या? पता नही क्या बोल रहे हो...?" मैने कहा और उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए आँखें बंद किए उसके लिंग को चूस्ति रही....
"अपना लौदा इसमें घुसा दूँ क्या?" बोलते हुए उसने अचानक उंगली का दबाव मेरे गुदा द्वार पर बढ़ा दिया... मैं दर्द से बिलखती हुई छ्ट-पटाने लगी..,"आई मुम्मय्यी... निकालो बाहर इसको!" उसकी उंगली का एक 'पोर' मेरे अंदर घुस गया था....
उंगली निकाल कर वा बोला..," मज़े आए ना!"
"मज़े?" मैने गर्दन घूमकर उसको घूर कर देखा..,"जान निकल गयी होती मेरी... दोबारा फिर ऐसा किया तो फिर कभी तुमसे प्यार नही करूँगी.....!"
"तुम तो वैसे ही डरी हुई हो.. पहली बार तो आगे भी दर्द हुआ था... एक बार घुस्वा कर तो देखो... 'गांद' मारने और मरवाने में और भी मज़े आते ही...."
"तुम मरवा लेना.. ये तो तुम्हारे पास भी है ना...!" मैं कहकर हंस पड़ी और फिर से उसके लिंग को मुँह में दबा लिया... वह भौचक्क सा मेरी और देखता रहा.. फिर अपने 'काम' पर लग गया....
"अच्च्छा.. ठीक है.. मुँह में तो निकालने दोगि ना....?" उसने मेरे नितंबों पर दाँतों से हल्का सा काट लिया.. मैं सिसकती हुई उच्छल कर बैठ गयी...,"हां.. ये मान लूँगी... तुम्हारा 'रस' बहुत अच्च्छा लगा था मुझे..."
वह अगले ही पल खड़ा हुआ और अपनी टाँगें चौड़ी करके मेरे होंटो पर अपना लिंग रख दिया.. मैं मुस्कुराइ और अपने होन्ट उसके लिंग के स्वागत में पूरे खोल दिए... उसने आगे होकर अपना आधा लिंग मेरे हलक में उतार दिया.. मैने अपने हाथ से उसकी जांघें पकड़ कर उसको 'बस' करने का इशारा किया...
संदीप जो काम थोड़ी देर पहले अपने हाथ से कर रहा था.. अब वह काम मेरे होन्ट कर रहे थे... उसने जैसे ही अपना लिंग आगे पिछे करना शुरू किया, मैने अपने होन्ट उसके चारों ओर कस दिए...
उसने पिछे से मेरे बालों को पकड़ा और धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.. हर बार उसका लिंग मेरे गले में ठोकर मार रहा था.. तीन चार बार मुझे अजीब सा महसूस हुआ.. पर उसकी सिसकियाँ सुन सुन कर मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं और भी जोश से उसका लिंग अपने होंटो में दबोच कर उसको आगे पिछे होते देखती रही... अचानक उसने मेरे बालों को खींच लिया और अपना लिंग अंदर करके खड़ा खड़ा काँपने सा लगा... अगले ही पल उसके 'रस' की धार सीधी मेरे गले में जाकर टकराई.. पर पता नही क्यूँ मैं उसको गटक नही पाई.. इसके बाद तीन चार और झटकों में मेरा मुँह पूरा भर गया... लगातार काफ़ी देर तक हान्फ्ते रहने के बाद उसने अपना लिंग जैसे ही बाहर निकाला.. मैने एक तरफ होकर उल्टी सी कर दी....
"क्या हुआ?" वह घबराकर बैठ गया...
"कुच्छ नही.. अंदर नही पिया गया..." मैने कहा और बड़ी बेताबी से उसके आधे झुके हुए झंडे को मुँह में दबोच लिया और जीभ से उसको 'पापोलने' लगी.... संदीप से भी ज़्यादा मुझे उसके लिंग के 'तन' कर सीधा हो जाने का इंतजार था... कुच्छ ही देर बाद संदीप ने अपने दोनो हाथों में मेरी गोल तनी हुई चूचियो को थाम लिया और सिसकियाँ भरने लगा....
"ये लो.. कर दिया खड़ा..." मैं खुश होकर जैसे ही उसके लिंग को मुँह से निकाल कर पिछे हटी.. मुझ पर मानो आसमान टूट पड़ा... मेरा अंग अंग काँप उठा... मेरी आँखें डर के मारे 'सुन्दर' पर ही जमी रह गयी....
'सुन्दर' दूसरे कमरे की 'दहलीज पर बैठा मुस्कुरा रहा था...,"साले.. लौदा खड़ा करने में ही तुझे आधा घंटा लगता है.. 'वो' भी ऐसे करार माल के सामने! हट पिछे.. तू फिर कभी करना.. मेरी बारी आ गयी.....!" सुन्दर ने मेरी दोनो बाहें पकड़ी और किसी गुड़िया की तरह सीधी खड़ी कर लिया.... मैं अपने आपको छुड़ाने के लिए छ्ट-पटाने लगी.. पर उस मुस्टंड के आगे मेरी क्या चलती...."
"कुच्छ याद आया..? कहा था ना कि एक दिन तुझे अपने लंड पर बिठा कर चोद चोद कर जवान करूँगा...!" उसने बड़ी बेशर्मी से कहा और पिछे से मेरे नितंबों के बीच हाथ डाल कर हवा में उठा लिया......
"छ्चोड़ दो मुझे..." मैने हवा में ही पैर चलते हुए सहायता के लिए नम आँखों से संदीप की ओर देखा.. पर वह 'चूतिया' सा मुँह बनाए अलग होकर हूमें देखता रहा.....
"अच्च्छा.. साली कुतिया रंडी की बच्ची... उस दिन मेरा हाथ लगवाने से भी परहेज कर रही थी... आज ये सारा 'प्रोग्राम' तुझे छ्चोड़ने के लिए नही.. चोदने के लिए किया है.. गांद मारूँगा तेरी... तेरी मा की तरह चोदुन्गा.. तेरी चूत का भोसड़ा ना बना दूँ तो नाम बदल देना......" बोलते हुए सुन्दर ने मेरी योनि में उंगली डाल दी... मैं बिलखने लगी थी.. और कर भी क्या सकती थी....!
"चल कमीज़ निकाल कर पूरी नंगी हो जा... आज तुझे 'मुर्गी डॅन्स' कराता हूँ..." कहते हुए उसने मुझे नीचे पटक दिया...," तुझे जाना है या खड़ा होकर तमाशा देखेगा...!" उसने संदीप से कहा....
"मैं बाद में कर लूँगा भाई... !" संदीप खड़ा खड़ा बोला....
"बाद में क्या घंटा मज़ा आएगा तुझे... मेरे चोदने के बाद ये तीन चार दिन तक चोदने लायक नही रहेगी...ले जल्दी चोद ले.. तेरा माल है.. पहले तेरा ही हक़ बनता है...." कहकर सुन्दर वापस जाकर कमरे की दहलीज पर बैठ गया.....
मैं आँखों में ढेर सारे आँसू लिए हुए संदीप को निरीह नज़रों से देखती हुई बोली..," ऐसा क्यूँ किया तुमने....?"
"वववो.. म्मै.. कुच्छ नही होगा अंजू...! ये भी आराम से करेगा....! मैं बोल दूँगा...." संदीप धीरे धीरे मेरे पास सरक आया....
मेरी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.... मेरे शरीर में मानो जान बची ही ना हो... संदीप ने जैसे लिटाया मैं लेट गयी... उसने मेरी जांघें सुन्दर के सामने ही खोल दी..
सच कहूँ तो पहली बार मुझे तब अहसास हुआ था कि 'शर्म' और इज़्ज़त क्या होती है... मुझे जो आदमी फूटी कोड़ी नही सुहाता था.. 'वो' मेरे नंगेपन का लुत्फ़ उठा रहा था.... उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैं कितनी गिरी हुई हूँ.. अगर अपनी आकांक्षाओं पर काबू रखती तो शायद ऐसा दिन कभी ना आता....
इस आपा धापी में संदीप का लिंग सिकुड गया था.. वह बेचैन सा होकर मेरी योनि को मसलता हुआ दूसरे हाथ से उसको खड़ा करने की कोशिश करने लगा...
तभी सुन्दर खड़ा होकर मेरे पास आकर बैठ गया..," जवान हो गयी.. हैं..क्या बात है..?" उसने कहा और मेरी चूची की एक घुंडी पकड़ कर मसल दी... मैं दर्द से बिलख उठी...
"वैसे एक बात तो है... तेरी मा के बाद गाँव भर के मर्दों को संभालने लायक माल बन चुकी है तू.... देख क्या कड़क चूचिया हैं.. तेरी मा की भी जवानी में ऐसी ही थी... साली को बचपन से चोद रहा हूँ... अब तुझे चोदुन्गा!.... बुढ़ापे तक.. हा हा हा...!" सुन्दर ने कहा और मेरी चूचियो पर झुक गया... अपने काले काले मोटे होन्ट जैसे ही उसने मेरी चूचियो पर लगे.. मुझे लगा मुझे तुच्छ और घृणित लड़की इस पूरी दुनिया में नही होगी.... मेरा रोम रोम बिलख उठा.. मंन में आ रहा था कि जैसे....
अचानक मेरे मंन में एक ख़याल आया... संदीप का सिर झुका हुआ था.. सुन्दर आँखें बंद किए मेरी छातियो पर लेटा हुआ उन्हे बारी बारी चूस रहा था.. मैं अपने हाथ धीरे धीरे पिछे ले गयी और 'वो' पत्थर ढूँढने लगी.... मेरी किस्मत कहें या सुन्दर का दुर्भाग्या.. कुच्छ देर बाद 'वो' पत्थर मेरे हाथ में था....
मैने आव देखा ना ताव.. पूरी सख्ती से चिल्लाते हुए मैने पत्थर सुन्दर के सिर में दे मारा... उसने दहाड़ सी मारी और एक तरफ गिर कर अपना सिर पकड़ लिया.. उसका खोपड़ा खुल गया था....
अब मेरे पास ज़्यादा समय नही था... अवाक सा संदीप जब तक बात को समझ पाता.. मैने खींच कर एक लात उसकी छाती में दे मारी... मैं अब भी रो रही थी.. हड़बड़ाहट में मैं उठी और अपनी शॉल और सलवार ले कर बद-हवास सी बाहर भागी... संदीप मेरा पिच्छा करते हुए बरामदे तक आया और फिर लौट गया....
"पूरी गली मैने भागते हुए पार की... गली के कोने पर मूड कर देखा.. पर किसी के आ रहे होने की आहट सुनाई नही दी.. मैने जल्दी से अपनी सलवार पहनी और सुबक्ती हुई तेज़ी से घर की ओर चल दी......
"क्या हुआ अंजू...?" मीनू दरवाजा खोलते ही मेरे टपक रहे आँसुओं को देख कर भयभीत हो गयी....
"दीदी!" मैने इतना ही कहा और उस'से लिपट कर बिलखने लगी...... तब तक पिंकी भी मेरे पास आ चुकी थी...,"क्या हुआ अंजू?"
"कुच्छ मत बोल इस'से अभी.." मीनू मुझे अपने सीने से लगाए हुए बोली... चुप हो जा अंजू.. मम्मी ने सुन लिया तो तमाशा हो जाएगा.... 'ववो.. सोनू की लाश गाँव में आ चुकी है... पापा नीचे आए थे.... हमने कह दिया था कि तू बाथरूम में है...... शुक्र है तू आ गयी.. वरना पापा आते ही फिर पूछ्ते..... बस कर.."
कुच्छ देर रज़ाई में मीनू के साथ लेटी रहने के बाद मेरा सुबकना भी रुक गया... पर रह रह कर सुन्दर का ख़याल आते ही मेरे मंन में झुरजुरी सी उठ रही थी....
"क्या हुआ अंजू...?" मुझे सामान्य होता देख पिंकी भी मेरे पास आ बैठी....
अब मैं कुच्छ भी छिपाना नही चाहती थी... जो कुच्छ भी हुआ.. मैने सब बता दिया...!
"मैं ना कहती थी तुझसे.. संदीप एक नंबर. का कुत्ता कमीना है... क्यूँ गयी तू वहाँ...?" पिंकी तुनक कर बोली...
"बस कर पिंकी.. इसने जो कुच्छ भी किया.. मेरे लिए ही तो किया है...!" कहकर एक बार फिर मीनू मुझे सीने से लगा कर दुलार्ने लगी..... मेरी सुबाकियाँ एक बार फिर शुरू हो गयी.....
उस रात के 36 घंटे बाद भी मेरे दिमाग़ से वो घिनौना पल निकल नही पाया था... आख़िरी पेपर में संदीप ने अपने आप ही बोलकर मुझे सुन्दर से सावधान रहने को कहा था.. उसने बताया कि सुन्दर के सिर में 6 टाँके आए हैं.. यह भी कि वो मुझे पूरे गाँव के सामने जॅलील करने की बात कह रहा है.. मैं सहमी हुई थी.. मुझे नही पता था कि आगे क्या होने वाला है...
मेरे ज़िद करने पर मीनू ने पापा से मुझे शहर ले जाने की बात भी की.. पर पापा ने साफ मना कर दिया....
मीनू शहर कॉलेज जाने को तैयार होकर बैठी थी.. तैयार तो पिंकी और मैं भी थे.. पर मेरे बिना मीनू ने पिंकी को भी ले जाने से मना कर दिया...
पिंकी अपना मुँह फुलाए बैठी थी और हम दोनो उसके पास चुप्पी साधे बैठे थे..
"अच्च्छा अंजू.. मैं चलती हूँ...!" गहरी साँस लेकर मीनू खड़ी हो गयी...
"नही दीदी.. मैं भी आपके साथ चल रही हूँ...!" मैने अचानक अपना मंन बनाते हुए कहा....
"नही.. तू कैसे चल सकती है.. चाचा ने साफ साफ मना कर दिया है...!" मीनू मायूस होकर बोली... दिल तो उसका भी बहुत कर रहा था मुझे साथ लेकर जाने का.. मानव का भी ये बात सुनकर मूड ऑफ हो गया था कि मैं शहर नही आ सकती.. उसने कहा भी था कि दोबारा बात करके देख लो.. पर उसको पापा के नेचर का पता नही था.. हम दोबारा बात करने की सोच भी नही सकते थे....
"नही दीदी.. मेरा चलना बहुत ज़रूरी है.. पापा तो खेत में गये हैं.. उनको क्या पता लगेगा...! शाम तक तो हम वापस आ ही जाएँगे..." मैने पूरा मंन बना लिया था.. पिंकी चुपचाप हमारी ओर देखती हुई निर्णय का इंतजार कर रही थी...
"पर.. अगर पता चल गया तो...!" मीनू ने आशंका से मेरी और देखा...
"कोई बात नही.. देखा जाएगा वो भी.... मैं चल रही हूँ आपके साथ...!" मैं खड़ी हो गयी...
कुच्छ देर की चुप्पी के बाद मीनू अपने माथे पर बल लाती हुई बोली...,"ठीक है.. तुम दोनो आगे चलो.. मैं तुमसे पिछे आउन्गि..."
"हुर्रेयययी..." पिंकी ने कहा और खुश होकर मुझे बाहों में भर लिया..,"चलो चलें.. बस ना निकल जाए कहीं...!"
मैं चाह कर भी अपने चेहरे पर हँसी के भाव नही ला सकी... हम दोनो घर से बाहर निकल कर बस स्टॅंड की ओर चल पड़े....
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