Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:34 AM,
#45
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
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शहर जाते हुए मेरे मंन में खुद के लिए कोई उत्साह नही था.. कुच्छ था तो सिर्फ़ ढोलू को पकड़वा कर मीनू और पिंकी की नज़रों में ये साबित करने का कि उस दिन मैने जो कुच्छ भी किया था सिर्फ़ और सिर्फ़ मीनू के लिए ही किया था... ऐसा करके मैं कुच्छ हद तक आत्मग्लानि से भी मुक्त हो रही थी...

दरअसल.. सुन्दर के उस रात के डाइलॉग मेरे दिमाग़ में रह रह कर हथोदे की तरह चोट कर रहे थे.. आख़िरकार मैं अपना 'वजूद' टटोलने पर मजबूर हो ही गयी थी...

पिंकी जैसी मेरी उमर की जाने कितनी ही लड़कियाँ थी जो लड़की होने का मतलब जानती थी.... अपनी मर्यादायें अच्छि तरह से समझती थी और उन्हे खुशी खुशी निभा भी रही थी... फिर उस कच्ची उमर में मेरा मंन ही क्यूँ बहक रहा था? मैं ही क्यूँ 'जल्दी' जवान होने को मचल उठी थी... मैं ही क्यूँ लड़कों की 'मर्दानगी' से इतनी जल्दी रूबरू होना चाहती थी.... ? सच कहूँ तो इन्न सब सवालों का जवाब मेरे पास उस वक़्त कतयि नही था.. पर इतना ज़रूर था कि उस वक़्त मुझमें भी 'पिंकी' जैसी बन'ने की इच्च्छा सिर चढ़ कर बोलने लगी थी....

"मैने मानव को बता दिया कि तू आ रही है.. सुनते ही खुश हो गया.." मीनू ने पिच्छली सीट से मेरे कान के पास होन्ट लाकर बताया.. मैं आनमने से ढंग से मुस्कुरा दी...

"क्या कह रही हैं दीदी?" पिंकी ने मचलते हुए मुझसे पूचछा.. बस की आवाज़ में शायद 'वो' सुन नही पाई थी...

"कुच्छ नही.. मानव को बता दिया कि मैं आ रही हूँ... खुश हो गया!" मैने धीरे से उसको कहा...

"और मैं..?" पिंकी ने मेरी तरफ देखा और फिर पिछे मूड गयी..," मेरे बारे में क्या बोले दीदी..?"

"चुप करके बैठी रह.. चल कर पूच्छ लेना...!" मीनू ने उसको दुतकार सा दिया.. पिंकी अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी.....

"इस आदमी का क्या करें..? ये तो कल से फोन पर फोन कर रहा है...!" मीनू ने एक बार फिर मेरे कान में ही कहा......

"वहीं चल कर पूच्चेंगे.. उन्होने मना किया है ना?" मैने कहा...

"क्या?" पिंकी ज़्यादा देर चुप ना बैठ सकी.....

"वो मैं कह रही हूँ कि पिंकी को 'जलेबी' बहुत पसंद हैं...!" मुझसे पहले ही मीनू बोली और हँसने लगी....

"हाँ.. और चॉककलते और 'समोसा' भी...." पिंकी का चेहरा खिल उठा....

सुनकर मैं भी हँसे बिना ना रह सकी... पर हमारी हँसी से अंजान 'पिंकी' कुच्छ देर बाद फिर बोल उठी...,"आज तो मैं गोलगप्पे भी खाउन्गि.... मेरे पास 100 रुपए हैं...!"

"बस कर भूखी... सब सुन रहे हैं...!" मीनू ने उसके कान के पास आकर उसको लताड़ लगाई......

9:00 बजे से कुच्छ पहले ही हम शहर के बस स्टॅंड पहुँच गये.. मीनू ने नीचे उतरते ही मानव को फोन किया..,"हाँ.. वो.. हम यहाँ पहुँच गये.. बस अड्डे पर...!"

"पर मैने बताया तो था कि 9:00 बजे के आसपास हम पहुँच जाएँगे..!" मीनू ने फिर से कहा....

"ठीक है.. हम यहीं वेट करते हैं तब तक....!" मीनू ने मायूस होकर फोन काट दिया...

"क्या बोले वो?" मैने मीनू के कॉल डिसकनेक्ट करते ही पूचछा....

"कह रहा है अभी टाइम लगेगा.. हमने रात को मना कर दिया था ना... वो अभी घर पर ही है...!" मीनू ने इधर उधर देखते हुए कहा और फिर बोली..,"आओ.. वहाँ अंदर बैठते हैं...!"

हम दोनो मीनू के पिछे पिछे जाकर बस-स्टॅंड के अंदर एक जगह बैठ गये...

"चलो ना दीदी.. तब तक मार्केट घूम आते हैं..." पिंकी से रहा ना गया...

"चुप करके बैठ जा थोड़ी देर...! पहले ही दिमाग़ खराब है...इतने दीनो बाद तो कॉलेज आई थी.. लगता है आज भी क्लास अटेंड नही कर पाउन्गि...!" मीनू ने हताशा से कहा....

तभी अचानक पिंकी ने मेरे कान में फुसफुसाया..,"हॅरी!"

नाम मुझे सुन गया था.. पर मैं मतलब नही समझ पाई..,"क्या हॅरी?"

पिंकी का चेहरा अचानक तमतमा सा गया.. उसने सकपका कर मीनू की ओर देखा और हड़बड़ा कर इशारा करते हुए बोली...,"कुच्छ नही.. वो.. हॅरी जैसा लग रहा है ना..!"

हम दोनो की नज़रें उसकी उंगली का पिच्छा करते हुए हमसे काफ़ी दूर खड़े होकर रह रह कर हमारी ही ओर देख रहे हॅरी पर पड़ी...

"हाँ.. हॅरी ही है.. वो शहर नही आ सकता क्या?" मीनू उसको पहचान कर पिंकी की ओर देखते हुए बोली..,"तो क्या हुआ?"

"न्नाही.. ववो.. मुझे लगा शायद वो हॅरी नही है...!" पिंकी की साँसे उखड़ गयी...

शायद हमें अपनी और लगातार देखता पाकर हॅरी हमारे पास ही आ गया..,"वो.. आज यहाँ कैसे..?"

"बस.. कुच्छ काम सा था.. !" मीनू बनावटी तौर पर मुस्कुरकर बोली....

"ओह्ह... 9:00 वाली बस में आई हो क्या..?" हॅरी ने पूचछा...

"हाँ.. तुम भी?" पिंकी से बोले बिना रहा ना गया....

"नही.. मैं बस थोड़ी देर पहले ही गाड़ी से आया हूँ.. मुझे पता होता तो..." हॅरी कुच्छ कह ही रहा था कि मीनू ने बीच में ही टोक दिया...,"नही.. कोई बात नही....

"यहाँ कैसे बैठी हो..? किसी का इंतज़ार है क्या?" हॅरी ने आगे पूचछा....

"नही.. हाँ.. ववो एक फ्रेंड आनी है मेरी...!" मीनू ने सकपकते हुए बोला....

"लो.. तब तक पेपर पढ़ लो.. मैं भी किसी का इंतजार ही कर रहा हूँ..." कहकर हॅरी मीनू वाली साइड आकर बैठ गया......"

कुच्छ देर हम चारों चुप चाप बैठे रहे.. अचानक मीनू मुझे अख़बार देकर खड़ी हो गयी..,"अच्च्छा.. मैं चलती हूँ.. मेरी फ्रेंड बाहर आ गयी होगी... उसका फोन आएगा तो मैं बोल दूँगी कि तुम यहाँ बैठे हो...! आजा पिंकी.. कॉलेज घुमा लाती हूँ..."

"नही दीदी.. मैं अंजू के साथ ही बैठती हूँ... पर आप..?" पिंकी कुच्छ बोलते बोलते रुक गयी...

"कोई बात नही.. तुम आराम से बैठे रहो.. अभी तो थोड़ी देर हॅरी भी यहीं होगा.....!" मीनू ने मुड़कर कहा...

"हाँ.. मैं तो काफ़ी देर यहीं हूँ..." हॅरी ने कहा और मीनू के बस-स्टॅंड से बाहर निकलते ही मुझसे पूचछा...,"कौन आ रहा है...?"

"ववो.. कोई.. एक रिलेटिव है.." और कुच्छ मेरी समझ में ही नही आया....

"ओह्ह... कहीं आगे जा रहे हो क्या?" हॅरी कुच्छ ज़्यादा ही सवाल जवाब कर रहा था....

"हाँ.. वो.. पिंकी!" मैने पिंकी का हाथ पकड़ कर कहा...,"आना एक बार...!" और उसको उठाकर दूर ले गयी....

"ये क्यूँ आ गया?" मैने पिंकी की आँखों में देख कर डर से कहा..," पहले ही मेरी टांगे डर के मारे काँप रही हैं... अब ये.. इनस्पेक्टर इसके सामने ही कुच्छ बोल ना दे!"

पिंकी की आँखों में एक अलग ही नूर चमक रहा था...,"कुच्छ नही होगा.. तुम्हे पता है ना ये किसी को कुच्छ नही बताता कभी..."

"वो तो ठीक है.. पर ये खुद क्या सोचेगा...?" मैने बुरा मुँह बनाकर कहा.. मेरी कही गयी ये बात मुझमें बदलाव का पहला सबूत थी....

"कुच्छ नही होगा... और वो.. तुम इसको 'पटाकर दिखाने की बोल रही थी.. दिखाओ अब!" पिंकी ने मुझे चॅलेंज करने के अंदाज में कहा....

"प्लीज़ पिंकी.. मुझसे ऐसी बात मत करो.. मेरे सिर में दर्द हो रहा है...!"

"ठीक है... मार्केट चलें तब तक.. हॅरी को ले चलेंगे साथ..." पिंकी खिसियकर बोली...

"पागल है क्या तू.. इनस्पेक्टर आने वाला होगा... आधे घंटे से उपर... वो शायद आ ही गया...!" बस स्टॅंड के पिछे आकर रुकी पोलीस ज़ीप को देखकर मैं बोली...

कुच्छ देर बाद मानव सीधा हमारे पास आकर खड़ा हो गया...ब्लॅक जीन्स और वाइल टी-शर्ट में 'वो' बड़ा ही स्मार्ट लग रहा था... शायद मीनू के लिए तैयार होकर आया था...," इसको क्यूँ उठा लाए...? इसको थोड़े ही साथ लेकर चल सकते हैं....!" मानव पिंकी को देख कर बोला....

पिंकी अपने उपर हुए इस अप्रत्याशित हमले को देख कर भौचक्क रह गयी.. वो रोनी सूरत बनाकर मानव की ओर देखने लगी..

"ववो.. हॅरी है यहाँ.. उसके पास रह लेगी तब तक...!" मेरे मुँह से हड़बड़ाहट में निकल गया.....

"कौन.. दूर बैठे हॅरी को हमारी ही तरफ देखते पाकर मानव बोला..,"वो.. ! वो तुम्हारे साथ ही है क्या?"

"हाँ..!" मैने कह दिया....

"ठीक है.. तुम यहीं बैठना.. थोड़ी देर बाद मीनू आ जाएगी या हम.. तब तक कहीं जाना नही.. ठीक है...!" मानव ने जल्दी जल्दी में कहा और मेरी ओर देख कर बोला...,"आओ.. मेरे साथ!"

मैं बार बार मुड़कर पिंकी की ओर देखती हुई उसके पिछे चल दी.. पिंकी की शकल रोने जैसी हो गयी थी.. वो अब तक वहीं खड़ी थी.. हॅरी से दूर...!

"नंबर. याद है...?" मानव ने पूचछा....

"हन..! आपके साथ और पोलीस वाले नही हैं क्या?" मैने पूचछा....

"वो यार.. जल्दी निकलना पड़ा.. फिर तुम यहाँ इंतजार कर रहे थे.. मैने बोल भी दिया है वैसे.. कोई टाइम तक आ गया तो ठीक है.. वरना.... पर क्यूँ पूच्छ रही हो..?" मानव ने अचानक पूचछा....

"मुझे डर लग रहा है बहुत..." मैं सचमुच्च डरी हुई थी...

"मुझसे?" वा हंसता हुआ बोला....

"नही... उस'से!" मैने सपस्ट किया....

"तुम्हे सिर्फ़ एक फोन ही तो करना है... फोन करके उसको यहाँ बुला लो... बाकी मैं देख लूँगा.... इसमें डरने वाली क्या बात है...?"

हम दोनो अभी बस-स्टॅंड की चारदीवारी के अंदर ही खड़े थे... उसने मुझे सारी बातें खोल कर समझाई और मुझे बस-स्टॅंड के सामने पी.सी.ओ. के बारे में बताता हुआ बोला..,"वो जहाँ कहे.. वहीं खड़ी हो जाना... किसी भी तरह का डर मंन में मत रखो.. वह जहाँ भी खड़ा होने को बोले.. खड़ी हो जाना.... मेरी नज़र तुम पर ही रहेगी.. ठीक है...? डरना मत!"

मैने सहमति में सिर हिलाया और बस-स्टॅंड के बाहर निकल कर पी.सी.ओ. जा पहुँची...

"हेलो..." मैने ढोलू के फोन उठाते ही कहा....

"हाए मेरी रानी...! कल से शहर में डेरा डाले पड़ा हूँ तेरे लिए... कहाँ है तू....?" ढोलू की आवाज़ में उत्साह सॉफ झलक रहा था....

"मैं शहर आ गयी हूँ... बस-स्टॅंड के बाहर से फोन कर रही हूँ...!" मैने अपनी आवाज़ को यथासंभव सामान्य बनाते हुए कहा.....

"ऐसा करो... कोई ऑटो कर लो.. उसको बोलो कि 'काले के ढाबे' के पास उतार दे.. वहाँ मेरे लड़के मिल जाएँगे...!" ढोलू ने कह कर मुझे संशत में डाल दिया....

"पर.. पर मैं... तुम यहीं आ जाओ ना... मैं कैसे आउन्गि वहाँ..?" मैं हड़बड़ा सी गयी....

"अरे तुझे पता नही है... मैं शहर के अंदर नही आ सकता... बताया तो था तुझे... 'वो' लड़के भी नही आ सकते... किसी और को मैं भेजूँगा नही.. क्या पता मेरे से पहले ही 'वो' तेरा 'काम' कर दे..... तू जल्दी आ जा.. ढाबे से तुझे वो आराम से मेरे पास ले आएँगे....!"

"नही.. मैं अपने आप नही आ सकती...!" मैने असम्न्झस से कहा...

"तो अपनी गांद मारा भौसदि की.. साली कुतिया.. तुझे गांद मरवाने की तो पड़ी है... मेरी जिंदगी का कोई ख़याल नही तुझे.. रख दे फोन.....!" कह कर ढोलू ने अचानक फोन काट दिया.....

मैने जाकर मानव को सारी बात बता दी......

"ओह्ह्ह..." मानव के माथे पर बल पड़ गये... कुच्छ देर ऐसे ही वो अपने बालों में खुजली करता रहा.. फिर बोला..," मेरे साथ चल सकती हो वहाँ?"

"हां पर... 'वो'लड़के आपके साथ थोड़े ही मुझे उसके पास लेकर जाएँगे...." मैं बोली....

"देखते हैं... तुम जाकर उसको फोन कर दो कि तुम आ रही हो..." उसने कहा ही था कि दो आदमी मोटरसाइकल पर हमारे पास आकर रुक गये..," जैहिन्द जनाब!" उन्होने आते ही कहा...

"ओह्ह.. आ गये तुम.. अब सब ठीक हो जाएगा अंजू... जाकर फोन कर दो... और फोन करके यहीं आ जाना....." मानव ने कहा....

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मैं फोन करके वापस आई तो मानव का रंग रूप देख कर दंग रह गयी.. एक बार को तो मुझे लगा.. उसके जैसी शकल का कोई और है...

"चलो में'शाब! ऑटो तैयार है..." मानव ने टपोरी लहजे में कहा....

मैं हँसे बिना ना रह सकी... मानव ने ग्रीस में काला हो चुका एक कुर्ता पाजामा डाल रखा था.. पाजाम छ्होटा होने की वजह से उसके टखने सॉफ दिख रहे थे... उसके पास ही एक ग़रीब सा लड़का मानव की जीन्स डाले खड़ा बड़ा ही अजीब लग रहा था...

"आप मेरे साथ ऐसे चलोगे...?" मैं अपना चेहरा हाथों में छुपा कर बोली...

"तुम्हारे पास पैसे हैं...?" मानव बोला...

"मेरे पास 50 रुपए ही थे.. मैने शरमाते हुए नोट निकाल कर दिखाया..,"ये हैं..!"

"गुड.. लाओ.. मुझे दो...!" कह कर उसने नोट झटक लिया.....,"आओ..!"

लड़का हमारे साथ ही था... मानव जाकर आगे बैठ गया..," इसके गियर वेर कैसे लगेंगे भाई...?"

लड़के ने हंसते हुए मानव को ऑटो चलाने के कुच्छ टिप्स दिए.. और मानव को नीचे उतरने को कहकर रस्सा खींच कर ऑटो स्टार्ट कर दिया..,"संभाल के ले जाना साहब.. मेरी रोज़ी रोटी यही है..." कह कर लड़का अलग हट गया....

"बैठो में'शाब!" मानव ने एक बार फिर मुस्कुरकर मुझे इज़्ज़त बखसी और मेरे बैठते ही ऑटो इधर उधर बहकाता हुआ चलाने लगा......

क्रमशः.............................
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास - by sexstories - 10-22-2018, 11:34 AM

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