RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--33
गतान्क से आगे............
गतान्क से आगे..................
"फिर आ रहे हो क्या?.. आज ही.." मीनू बीच में ही टपक पड़ी....
"नही.. आज नही.. कल सुबह ही आउन्गा..." मानव ने कहा और फिर गौर देकर पूचछा..," तुम ये बातें किसी और को तो नही बताती ना...?"
"कौनसी?" मीनू ने पूचछा.....
"यही.. केस से रिलेटेड मैं जो तुम्हारे साथ डिसकस कर लेता हूँ!"
"नही.. हम क्यूँ बताएँगे किसी को...?" मीनू ने तपाक से कहा....
"गुड! ठीक है.. कल मिलकर ही कुच्छ सोचते हैं.. आगे के बारे में... बाइ!" मानव ने कहा...
"बाइ!" मीनू ने बड़ी नज़ाकत से कहा और फोन काट दिया....
------------------------------
--------------------
"आन्जुउउउउउउ!" अगले दिन करीब 9:00 बजे पिंकी ने हमारे घर आकर नीचे से ही मुझे आवाज़ दी.....
"आई....!" मैं जाने की सोच ही रही थी उस वक़्त... मानव को जो आना था वहाँ....
"कहाँ जा रही है...? घर पर रहा कर... कल भी तेरे पापा गुस्सा कर रहे थे.. तू अब वहीं पड़ी रहती है सारा दिन...." मम्मी ने मुझे नीचे जाते देख कर टोक दिया....
"अभी आ जाउन्गि मम्मी...! बस थोड़ी देर में...." मैने मम्मी की बात को अनसुना कर दिया और नीचे दौड़ गयी....,"हाँ पिंकी!" मैने चलते चलते कहा...
"कुच्छ नही.. मीनू दीदी बुला रही हैं.. वो 'लंबू' आ गया आज फिर.. हे हे हे..!"
"उसको तो आना ही था... और कौन हैं घर पे?" मैने पूचछा....
"कोई नही.. मीनू अकेली है.. तभी तो आपको बुला रही है....!" पिंकी ने जवाब दिया...
मेरे मंन में हज़ारों सवाल थे जो जाकर मानव से पूच्छने थे... ढोलू को भी कुच्छ नही पता तो फिर किसको पता होगा भला! मैं तेज़ी से पिंकी के साथ कदम बढ़ती हुई चलती रही.......
"ववो... अंजू... मैं कह रही थी कि...." पिंकी ने बात अधूरी छ्चोड़ मेरी ओर देखा...
"क्या?... बोल!"
"वो.. हॅरी के पास चलें क्या आज एक बार...!" पिंकी सकुचते हुए बोली....
"तू खुद चली जाना.. मेरा मंन नही है सच में... !" मैने कहा....
"चल पड़ना ना अंजू.. प्लीज़.. मुझे उसके पैसे देकर आने हैं...!" पिंकी याचना सी करती हुई बोली....
"कौँसे पैसे..?" मैं उसकी बात समझ नही पाई थी....
"वही कल वाले... उसने इतना खर्चा कर दिया... मैं तो ना भी जाती.. पर दीदी कह रही हैं कि मैं उसको पैसे वापस करके नही आई तो वो मम्मी को बता देंगी...."
"बताने दे... उसने अपनी मर्ज़ी से ही तो किया है सब कुच्छ..." मैने तर्क दिया...
"नयी... ऐसे अच्च्छा नही लगता ना... क्या सोचेंगी मम्मी..? क्यूँ किया होगा उसने ऐसा... तू समझ रही है ना....." पिंकी अपनी मोटी मोटी आँखों से मुझे देखती हुई बोली....
"हां.. मैं तो सब समझ रही हूँ... मुझे तो चोर की दाढ़ी में तिनका लग रहा है..." मैं हंसते हुए बोली....
"क्या मतलब?" मतलब शायद पिंकी समझ गयी थी... उसका चेहरा ये बता रहा था....
"चल छ्चोड़.. बाद में बात करेंगे...!" पिंकी का घर आ गया था....
हम अंदर पहुँचे तो नीचे मानव अकेला ही बैठा था... बोलना तो दूर.. मैं उस'से नज़रें भी नही मिला पाई.. सीधी उपर भाग गयी.. मीनू चाय लेकर नीचे ही आ रही थी...,"चल ना.. नीचे ही चल....!"
"कुच्छ बताया दीदी...?" मैने उसके साथ ही वापस पलट'ते हुए पूचछा....
"नही.. अभी तो मैं नीचे गयी ही नही हूँ... अब चलकर पूछ्ते हैं...!" मीनू नीचे उतरती हुई बोली...,"तू उपर ही रह ना पिंकी!"
"क्यूँ?" पिंकी ने अपने कंधे उचका दिए...,"मैं भी आउन्गि..."
दोबारा मीनू ने कहा भी नही... हम नीचे आ गये.... पर मैने एक बार भी मानव से नज़रें नही मिलाई... मैं और पिंकी चुपचाप आकर चारपाई पर बैठ गये... मानव को चाय देकर मीनू भी हमारे साथ ही आ बैठी....
"अंकल आंटी कहाँ गये...?" मानव ने पहला सवाल यही किया....
मीनू पहले हमारी और जवाब के लिए देखने लगी.. पर जब हम'में से कोई कुच्छ नही बोला तो उसको ही जवाब देना पड़ा....,"किसी रिस्तेदार के यहाँ गये हैं... कल आएँगे... कुच्छ पता चला....?"
"हां.. वो... उसके बारे में बाद में बात करूँगा..... पहले ये बताओ कि ये मनीषा किस टाइप की लड़की है....?"
"किस टाइप की है...!.. मैं समझी नही...!" मीनू आँखें सिकोड कर बोली... लगभग यही ख्याल उसके सवाल पूछ्ते ही मेरे दिमाग़ में आया था... 'उस' रात मैं मनीषा को अच्छे से जान गयी थी...
"मतलब.. उसकी बात पर कहाँ तक विश्वास किया जा सकता है..?" मानव ने सपस्ट करते हुए पूचछा...
"ठीक है.. किसी से ज़्यादा बात तो वो करती भी नही.. अपने काम से काम रखती है... आक्च्युयली घर सिर्फ़ उसी के भरोसे चल रहा है... ताउ जी तो किसी काम के हैं नही...!" मीनू ने अपनी प्रतिक्रिया दी...,"बुलाउ उसको?"
"हां.. अगर वो यहीं आ जाए तो बहुत अच्च्छा रहेगा.. मैं अभी इस मॅटर को उच्छालना नही चाहता..." मानव ने हामी भरते हुए कहा...
"जा अंजू... बुला ला एक बार!" मीनू मुझसे बोली....
"पिंकी को भेज दो ना दीदी.. प्लीज़..." मैने धीरे से मीनू के कान में कहा... दरअसल मुझे उसके पास जाते हुए डर सा लग रहा था....
"मैं बुला लाती हूँ...!" मीनू के बोलने से पहले ही पिंकी ने खड़े होकर कहा और बाहर निकल गयी....
"ववो.. सच में कुच्छ पता नही चला क्या?" थोड़ा झिझक कर नीरस आँखों से मानव को देखते हुए मीनू ने पूचछा.....
"उस'से जितना और जो कुच्छ में पता कर पाया हूँ.. उसके आधार पर मैने इस डाइयरी में कहानी सी बना ली है.. ताकि छ्होटे से छ्होटा पेंच भी आँखों से बच ना पाए...!" मानव ने अपने साथ रखी डाइयरी हमें दिखाते हुए कहा...,"बाद में पढ़ लेना.. पहले मनीषा की बातें सुन लेते हैं.. वो क्या कह रही है अब? कमाल की लड़की है.. पहले नही बताया तो अब क्यूँ बता रही है ये...?"
"वो कह रही है कि पहले उसको 'सोनू' से डर लग रहा था.. इसीलिए नही बताई... बाकी हमें भी अभी ज़्यादा नही पता.. मम्मी को एक आंटी ने बताया है कि 'वो' अब ऐसा बोल रही है....." मीनू ने कहा...
"हुम्म.. देखते हैं...!" मानव ने कहा और उठकर बाहर चला गया... मैं अब तक भी उसके सामने बोलने की हिम्मत नही कर पा रही थी.....
-----------------------------------------------------
"आ गयी..." पिंकी ने अंदर आते ही कहा और फिर पिछे मूड कर बोली..,"अंदर आ जाओ ना दीदी!"
मनीषा कमरे के अंदर आ गयी.. वो कुच्छ सहमी हुई सी लग रही थी...,"कहाँ गये इनस्पेक्टर साहब...?" उसने आते ही पूचछा...
"यहीं तो खड़े थे अभी.. बाहर! हैं नही क्या?" मीनू खड़ी होकर बाहर झाँकते हुए बोली....
"नही.. बाहर तो कोई भी नही है...!" पिंकी ने बाहर जाकर चारों और नज़र घुमाई....
मैने एक नज़र मनीषा पर डाली और फिर नज़रें फेर ली... मैनशा आकर वहीं बैठ गयी जहाँ थोड़ी देर पहले मानव बैठा था...," तुमने बताया है क्या इनको कुच्छ?" मनीषा ने हमारी तरफ देख कर पूचछा....
"क्या? किस बारे में...?" मीनू अंजान बनकर बोली...
"ववो.. तरुण के बारे में.....!" मनीषा ने कहा और मीनू को गौर से देखने लगी....
"नही तो... इन्होने खुद आकर जिकर किया था थोड़ा सा.. तूने किसी को बोला होगा...!" मीनू ने सॉफ झूठ बोला.....
मनीषा चारपाई पर बैठी अपनी उंगलियाँ मतकाती रही.. फिर कुच्छ देर बाद अचानक बोली..,"यहाँ क्यूँ आए है फिर ये?"
"ववो.. क्या है कि इनसे हमारी पहले की जान पहचान है.. इसीलिए आ जाते हैं केयी बार.. पहले भी आए हैं ये...!" मीनू सफाई सी देने लगी....
मनीषा सहमति में सिर हिलाने लगी.. कुच्छ देर चुपचाप बैठी रहने के बाद मुझसे बोली,"आ जाया कर अंजू.. तू आती ही नही कभी... क्या बात है.. नाराज़ है क्या...?"
"ना..नही.. ववो.." मेरा जवाब पूरा होता इस'से पहले ही मानव अंदर आ गये.. उसको देखते ही हड़बड़ा कर मनीषा चारपाई से उठ गयी...
"बैठो बैठो...!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उसके साथ वाली चारपाई पर बैठ कर मनीषा के पास रखी डाइयरी उठाकर अपने पास रख ली...,"तुम्हारा नाम भूल गया था मैं...!"
"हां जी..?" मनीषा एक बार फिर अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी थी....
"हूंम्म.. मनीषा..! क्या करती हो?" मानव ने पूचछा....
"ज्जई.. ववो कुच्छ नही.. घर का और खेत का काम ही करती हूँ...!" मनीषा ने सकुचते हुए जवाब दिया....
"गुड! एक बात पूच्छू..?" मानव ने आयेज कहा...
"ज्जई..."
"ययए... ये सब तुमने पहले क्यूँ नही बताया...?"
"ज्जई.. क्या?"
"यही की तरुण का खून सोनू ने किया है.. ये तुम्हे पता था...!" मानव ने उसको पैनी निगाह से घूरते हुए पूचछा...
"ज्जई.. ववो.. मुझे डर लग रहा था..."
"अब नही लग रहा...!"
"ज्जई.. ववो.. सोनू तो मर ही गया अब!"
"हुम्म.. मतलब अब किसी का डर नही है...?"
"ज्जई.. डर तो अब भी है.. पर मेरे मुँह से यूँही किसी के आगे निकल गया था...!"
"तुम्हे डरने की कोई ज़रूरत नही है.. मैं तुम्हे गवाह बनाकर अदालतों के चक्कर नही कत्वाउन्गा.. ना ही अपनी तरफ से किसी को ये बात ही बताउन्गा की तुमने मुझे कुच्छ बताया है....मैं सिर्फ़ ये जान'ना चाहता हूँ कि हुआ क्या था!.. कहो तो इनको भी बाहर भेज दूं?"
"ज्जई.. नही.. ठीक है..!"
"तो सच सच बतओगि ना...?" मानव ने पूचछा...
"जी ...बता दूँगा!" मनीषा ने एक गहरी साँस ली.....
"ठीक है.. बताओ फिर.. देखो कुच्छ भी झूठ मत बोलना.. जो कुच्छ पता है.. सब कुच्छ बता दो..!"
"ज्जई...!" मनीषा ने अपना सिर हिलाया.. उसकी नज़रें अब भी ज़मीन में ही गढ़ी हुई थी...
"बताओ फिर!" मानव ने कहा....
मनीषा अपनी नज़रें उठाकर हमारे पिछे वाली दीवार को घूरती हुई बोलने लगी....
" ज्जई.. वो उस दिन मैं अपनी भैंसॉं को चारा डाल रही थी.. तभी मुझे चौपाल में बहस होने की आवाज़ें आनी शुरू हो गयी.. मैं यूँही दीवार के उपर से कान लगाकर कुच्छ सुन'ने की कोशिश करने लगी.. पर कुच्छ सॉफ सुनाई नही दिया.. उत्सुकता वश मैने कंबल औधा और अपने घर से निकल कर चौपाल में घुस गयी.. वहाँ..."
बोलती हुई मनीषा को मानव ने टोक दिया...,"उन्होने तुम्हे देखा नही..?...चौपाल में जाते हुए....?"
"नही.. वहाँ रात को बहुत अंधेरा होता है... कुच्छ दिखाई नही देता... मैं दबे पाँव अंदर गयी थी...." मनीषा बोली...
"तुम्हे डर भी नही लगा.. ? अंधेरे में अंदर जाते हुए?" मानव ने उत्सुकता से पूचछा...
"नही... डर की क्या बात है..!" मनीषा दृढ़ता से बोली....
"फिर भी यार.. तुम लड़की हो! अंधेरे में ऐसे जाते हुए डर तो लगता ही है...."
"ऐसे तो मैं रात रात भर खेतों में रहती हूँ.. मुझे अंधेरे से डर नही लगता...!" मनीषा बोली...
"गुड... फिर क्या हुआ?" मानव गौर से उसको देखता हुआ बोला....
"मैं उनसे थोड़ी ही दूर एक दीवार की आड़ में खड़ी हो गया.. मैने आवाज़ें पहचान ली थी.. वो दोनो सोनू और तरुण ही थे.... सोनू तरुण से कुच्छ माँग रहा था.. और तरुण उसको देने से मना कर रहा था.. बार बार....!"
"क्या माँग रहा था..? तुम्हे तो सब कुच्छ याद होगा...!" मानव ने एक बार फिर उसको टोक दिया....
"हां.. वो कुच्छ पैसों की बात कर रहे थे.. 1 लाख.. 2 लाख.. 5 लाख.. पूरी बात मेरी समझ में नही आई... सोनू ने उस'से उसका मोबाइल भी माँगा था... तरुण कह रहा था कि उसके पास अब कुच्छ नही है... सोनू लेटर'स की बात भी कर रहा था.. अचानक उन्न दोनो में बहस बहुत ज़्यादा बढ़ गयी और दोनो एक दूसरे को गाली देने लगे... लात घूँसे भी चले थे उनमें... अचानक सोनू ने चाकू निकाला और तरुण को चाकू मारने लगा.... तरुण एक दो बार चीखा पर बाद में एक दम शांत हो गया..... कुच्छ देर बाद सोनू वहाँ से भाग गया... " कहकर मनीषा चुप हो गयी.....
"ओह्ह.. तुमने तरुण को बचाने की कोशिश क्यूँ नही की.. तुम उस वक़्त अगर किसी को बता देती तो वह बच भी सकता था...." मानव कुच्छ देर बाद बोला....
मनीषा कुच्छ देर तक यूँही शुन्य को घूरती रही.. अचानक उसकी आँखों में आँसू आ गये...,"मैने सोचा वो मर गया होगा..!"
"और तुम वापस जाकर चुपचाप सो गयी.. है ना?" मानव थोडा उत्तेजित सा लगने लगा... पर मनीषा ने उसकी इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दी....
"चाकू अभी भी तुम्हारे पास ही है या कहीं फैंक दिया..?" मानव की बात सुनकर हम भी उछले बिना ना रह सके... मेरी समझ में नही आया कि उन्होने ऐसा क्यूँ कहा...
"क्क्याअ? मुझे क्या पता चाकू का...? ववो तो सोनू अपने साथ ले गया.. होगा!" मनीषा व्यथित सी होते हुए बोली......
"जस्ट जोकिंग...! वैसे तुमने ठीक से देखा था कि चाकू कैसा था... या कितना लंबा था?" मानव बात को बदलते हुए बोला...
"नही... मैं कैसे देखती.. वहाँ तो बिल्कुल अंधेरा था...!" मनीषा बोली...
"तुमने अभी कहा था ना कि.. सोनू ने चाकू निकाला..." मानव उसको उसकी बात याद दिलाते हुए बोला..,"इसीलिए मैने सोचा की...."
"नही.. वो तो मैने अंदाज़ा लगा कर कह दिया था.. निकाल कर ही मारा होगा.. हाथ में पहले से लेकर क्या करता...." मनीषा ने कहा.....
"तुम्हारे पास मोबाइल है?" मानव ने पूचछा....
"ज्जई... नही!" मनीषा ने जवाब दिया....
"और कुच्छ.. याद हो..? मतलब उस रात से रिलेटेड?" मानव ने पूचछा.... मनीषा ना 'ना' मैं सिर हिला दिया...
"ठीक है.. ज़रूरत पड़ी तो मैं फिर बात कर लूँगा... अभी तुम जाओ...!" मानव कहने के बाद मुस्कुराया....
मनीषा बिना कुच्छ बोले तुरंत वहाँ से उठकर चली गयी.....
"क्या लगता है तुम्हे? ये सच बोल रही है या..." मानव उसके जाते ही बोलने लगा तो मीनू बीच में ही बोल पड़ी...,"झूठ क्यूँ बोलेगी.. इसको क्या पड़ी है.. झूठ बोलने की..."
"अंजू?"
"ज्जई. सर..." मैं अचानक जैसे नींद से जागी... हड़बड़ा कर मानव को देखते ही मैने तुरंत सिर झुका लिया...
"तुम कुच्छ उदास लग रही हो.. क्या बात है?" मानव मुझसे बात कर रहा था.. ,"एक तुम्ही तो खुलकर मेरा साथ दे रही हो यार.. तुम ऐसे करोगी तो कैसे चलेगा...
"ज्जई.. सर.. मैं ठीक हूँ.." बोलते हुए ही मैं सिर झुकाए दाँतों में उंगली दबाकर नाख़ून कुतरने लगी....
"मैं सोनू के घर होकर आता हूँ... तब तक तुम 'ये' डाइयरी पढ़ लो.. इसमें मैने ढोलू के बयान लिख रखे हैं.. 'मैं' का मतलब ढोलू समझना..." मानव ने खड़ा होकर डाइयरी मेरे हाथों में पकडाई और वहाँ से चला गया....
"आओ दीदी, पढ़ते हैं..." मानव के जाते ही मैने झिझक का चोला उतार फैंका...
"तुम्ही पढ़ लो.. मुझे नही पढ़नी..." मीनू अचानक तुनक कर बोली..
मैं उसके मुँह को देखती रह गयी...,"क्या हुआ दीदी?"
"कुच्छ नही..!" मीनू गुस्से में लग रही थी....
"बताओ ना.. क्या हुआ?" मैने मीनू का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा....,"आओ ना पढ़ते हैं...!"
"नही.. तुम्ही तो हो जो उसका साथ दे रही हो खुलकर.. तुम ही पढ़ लो.. मैं क्या करूँगी पढ़कर..." मीनू सुर्ख लहजे में बोली.. पिंकी चुपचाप सारा तमाशा देख रही थी....
"ओह्हो... आप भी ना! ववो.. मैं कुच्छ बोल नही रही थी ना.. इसीलिए कह रहे होंगे... आ जाओ प्लीज़..." मैने प्रार्थना सी की...
"तो मैं क्या उसके सिर पर चढ़ि हुई थी.. मैं भी तो चुपचाप ही बैठी थी.. तुम्हारी बड़ी फिकर हो रही है उसको!" मीनू ने मुँह बनाकर कहा और मेरे हाथ से डाइयरी छ्चीन कर एक तरफ जा बैठी... मैं चुपचाप उसको घूरती रह गयी....
"आ जाओ अब!.. पढ़नी नही क्या?" थोड़ी देर बाद मीनू ने मुझसे कहा.. पिंकी पहले ही उसके पास पहुँच चुकी थी....
मैने मुस्कुरकर मीनू की ओर देखा और उसके पास जाकर बैठ गयी....,"आप बोल बोल कर पढ़ दो!"
मीनू के एक दो पन्ना पलटने के बाद हमें 'वो' मिल गया जिसको हम ढूँढ रहे थे......
------------
जिस दिन तरुण का खून हुआ.. उस दिन करीब 4:00 बजे मेरे पास माथुर साहब का फोन आया...
"जी माथुर साहब! बड़े दीनो में याद किया मुझे... कहाँ हो आजकल?"
"ढोलू भाई कैसे हो?" माथुर साहब के पहले शब्द यही थे....
"ठीक हूँ.. साहब.. अपनी सूनाओ!" मैने कहा....
"क्या सुनाऊं यार... खंख़्वाह का लोचा हो गया एक... तुम्हारे गाँव के सोनू और तरुण को जानते हो?"
"हूंम्म.. हां जानता हूँ... सोनू तो अपना ही पत्ता है.. हूकम करो!" मैने कहा.....
"यार.. ववो.. दरअसल मेरी एग्ज़ॅम में ड्यूटी लगी हुई है.. तुम्हारे गाँव के पास ही...!"
"तो फिर आओ ना माथुर साहब.. बोलो कैसी खातिरदारी चाहिए....!"
"वो तो होती रहेगी यार.. पहले मेरी बात तो सुन लो...."
"बोलो ना साहब.. आपकी दिक्कत मेरी दिक्कत है.. कुच्छ कर दिया क्या बच्चों ने?" मैने एक बार फिर उनको टोक दिया...
"सुन तो लो यार.. बीच में मत बोलो.. ववो दरअसल तुम्हारे गाँव में एक लड़की है अंजलि.. अभी बोर्ड के एग्ज़ॅम दे रही है.....!"
"हाँ है.. बोलो..."
"पेपर में उस'से नकल मिली थी.. चालू टाइप की लगी मुझे.. मैने पेपर के बाद उसको रोक लिया था.. उसके साथ एक और लड़की थी.. पता नही क्या नाम है... खैर छ्चोड़ो.... मैं उनके साथ थोड़ा टाइम पास कर रहा था तो उन्न बेहन के यारों ने मोबाइल में उसकी वीडियो बना ली....!"
"श.." मेरी हँसी छ्छूट गयी..,"दिक्कत क्या है?" मैने पूचछा....
"अब दिक्कत ये है कि साले मुझे ब्लॅकमेल कर रहे हैं.. एक पेटी माँग रहे हैं मुझसे... समझा यार उनको.. तेरे गाँव के हैं.. नही तो मैं उनको अब तक बता भी देता कि माथुर क्या चीज़ है....!"
"क्या करना है..?" मैने पूचछा...
"करना क्या है यार.. एक तो तू तेरा ही पत्ता बता रहा है.. समझा दे उनको.. वीडियो डेलीट कर देंगे और भूल जाएँगे बात को...!"
"हो जाएगा साहब.. और बोलो.. मैं अभी सोनू को बुला कर समझा देता हूँ...!" मैने कहा..
"ठीक है यार.. मेरी टेन्षन दूर हो जाएगी.. तू अभी कर दे ये काम...!"
"कर देता हूँ.. मेरा खर्चा पानी...?"
"आबे.. इतने छ्होटे से काम के पैसे लेगा? बदल गया है तू.. !"
"क्या करें साहब..? अपने कोई दारू के ठेके तो हैं नही.. इसी में काम ज़्यादा कर लेते हैं... कुच्छ तो करो.. आपकी भी तो 'पेटी' बच रही है आख़िर....!" मैने कहा...
"बता फिर कितने लेगा... आइन्दा में भी याद रखूँगा...!" माथुर ने कहा...
"अरे जो भी खुशी से आप दें..! प्रसाद समझ कर रख लूँगा..." मैने हंसते हुए कहा.....
"चल ठीक है.. 5 ठीक हैं ना...?"
"बड़ी मेहरबानी होगी सरकार.. मैं अभी आपका काम कर देता हूँ..." मैने माथुर साहब का फोन काटा और तुरंत सोनू को फोन लगाया....
"हां भाई?" सोनू ने तुरंत फोन उठा लिया....
"किधर है?" मैने पूचछा....
"यहीं हूँ भाई... कुच्छ काम था क्या?"
"तरुण तेरे साथ ही है क्या?" मैने पूचछा....
"अभी गया है मेरे पास से... कुच्छ काम है क्या?" सोनू ने पूचछा....
" हां काम है तभी तो...! तू ऐसा कर... तरुण को लेकर जल्दी मेरे पास आजा... बहुत ज़रूरी काम है...!"
"तरुण को क्यूँ भाई?" उसने पूचछा....
"तू उसको लेकर आजा.. यहीं बैठ कर बताउन्गा....!" मैने कहा....
"ठीक है भाई.. मैं आता हूँ उसको लेकर...!" सोनू ने कहा और फोन काट दिया......
क्रमशः....................
|