RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--35
गतान्क से आगे..................
"अब देख ले इसकी करतूत..." मीनू खाना शुरू करते ही बोली...,"वापस क्यूँ बुला लिया उसको...? देख लेना अगर मम्मी पापा को पता चल गया तो मैं तो सीधा सीधा तेरा नाम ले दूँगी...!" मीनू जल्दी जल्दी खाना खा रही थी....
पिंकी का नीवाला उसके मुँह में जाते जाते रह गया.. वा आँखें निकल कर बोली..,"क्यूँ? ... मेरा नाम क्यूँ लोगि...?"
"और नही तो क्या? अच्च्छा भला जा रहा था.. क्या पड़ी थी तुझे उसको वापस बुलाने की... घर में हम तीन लड़कियाँ और ये अकेला मर्द...! किसी को भी पता चल गया तो क्या सोचेगा?" मीनू टुकूर टुकूर पिंकी की ओर देखते हुए बोली....
"मुझे नही पता.. भेज दो बेशक वापस..मेरा नाम क्यूँ लोगि..?" .. मैने तो...!"पिंकी ने बोलते हुए मेरी ओर देखा और अचानक चुप हो गयी...
"क्या मैने तो..? बोल अब!" मीनू तुनक कर बोली...
"कुच्छ नही...!" पिंकी ने अपना सिर झुका लिया....
"नही नही.. भेज अब तू ही वापस..! तू ही बुला कर लाई थी ना अंदर... अब तू ही बोल दे उसको.. चला जाएगा.. उसको खुद भी तो सोचना चाहिए..! है ना अंजू?" मीनू ने मुझसे पूचछा.. मैं खाली उसको देख कर रह गयी....
"ठीक है बोल देती हूँ...!" पिंकी ने गुस्से से खाली थाली ज़मीन पर पटक कर रखी और खड़ी हो गयी.. बोल देती हूँ अभी जाकर.. कि मीनू कह रही है आप चले जाओ...!" पिंकी ने कहा और बाहर निकलने लगी....
"आ पागल...!" मीनू उसके पिछे दौड़ती हुई बाहर निकली..,"रुक जा.. ऐसे थोड़े ही कहते हैं... अच्च्छा कुच्छ नही कहूँगी... बस! आजा!" मीनू उसको पकड़ कर ज़बरदस्ती अंदर खींच लाई....
"नही.. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे... आपके लिए ही तो मैने उसको रोका है...!" तुनकती हुई पिंकी ने मेरे सामने ही मीनू की पोले खोल दी.... मैं आस्चर्य से मीनू के मुँह की ओर देखने लगी.....
"अच्च्छा.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तूने मुझ पर अहसान कर दिया... मेरे लिए क्यूँ रोका है..? शर्म नही आती तुझे ऐसा बोलते हुए..." मीनू ने सकपका कर पिंकी को छ्चोड़ दिया.. पर पिंकी वहाँ से नही हिली....
"और नही तो क्या? मुझे पता है आप उनसे प्यार करती हो....!" पिंकी का चेहरा मुरझाया हुआ था लेकिन उसकी आँखों में चमक थी....
"मैं है ना तेरी...." मीनू दाँत पीस कर बनावटी गुस्से से बोली...,"क्या बकवास कर रही है तू... बित्ति भर की लड़की है.. ज़ुबान इतनी चला रही है.. तुझे पता चल गया 'प्यार' क्या होता है.. हाँ? आने दे मम्मी को.. कल तेरी खैर नही...." मीनू का चेहरा सफेद हो गया था..... हड़बड़ाहट में उसने एक चांटा पिंकी के गाल पर रसीद कर दिया... पिंकी चुप होकर मुस्कुराती हुई अपने गाल को सहलाने लगी...
"थोड़ी देर नीचे चलें...!" जैसे ही हुमारा खाना पूरा हुआ.. पिंकी ने कहा...
"जाओ जिसको जाना है..!.. बड़ी आई... मुझे नही जाना..." मीनू बड़बड़ाती हुई बोली..,"ये दूध ले जाना उसका.. और रज़ाई माँगे तो निकाल कर दे आना...!" मीनू अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी....
"ठीक है.. हम तो जा रहे हैं.. आ जा अंजू.. रहने दे इसको यहीं...!" पिंकी ने उसको चिड़ते हुए सा कहा...
"नही.. मैं क्या करूँगी..? तुम जाकर दे आओ!" मीनू के बिना मुझे भी नीचे जाना अच्च्छा नही लगा....
"आ ना.. सुन तो!" पिंकी ने मुझे लगभग ज़बरदस्ती खींच लिया.. फिर ज़्यादा विरोध मैने भी नही किया था.. एक बार मीनू को देखा और उसके साथ बाहर निकल गयी... पिंकी ने दूध का गिलास भरा और हम दोनो नीचे चले गये.....
हम नीचे उतरे तो मानव चारपाई पर बैठा सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था.. उसके हाथ में डाइयरी थी.... पिंकी ने उसको दूध का गिलास पकड़ाया और अलमारी से रज़ाई और कंबल उसके साथ वाली चारपाई पर रख दिए... मानव का ध्यान अब भी सीढ़ियों की ओर ही जमा हुआ था...,"मीनू सो गयी क्या?"
"नही उसने नीचे आने से मना कर दिया...!" पिंकी सीधे सीधे शब्दों में बोली....
"अच्च्छा?" मानव ने मुस्कुरकर कहा और फिर अपने होंटो पर उंगली करके हमें चुप रहने का इशारा किया... बात हमारी समझ में नही आई थी.. पर उसके इशारा करते ही हम दोनो चुप हो गये....
मानव ने चुपके से दूध का गिलास फर्श पर रखा और बिना जूते डाले खड़ा होकर आहट किए बगैर सीढ़ियों की ओर जाने लगा... तब तक भी हमारी समझ में नही आया था कि उसका इरादा क्या है....
जैसे ही मानव ने सीढ़ियों के पास जाकर अंदर झाँका.. हम अवाक रह गये.. हमें मीनू की चीख सी सुनाई दी..,"आआईय....!"
"हा हा हा... यहाँ छुप कर क्या सुन रही हो..! नीचे आ जाओ ना!" मानव हंसते हुए पलट कर अपनी चारपाई पर जा बैठा... शरमाई और सहमी हुई सी मीनू नीचे कमरे में आई और अलमारी में कुच्छ ढूँढने का दिखावा करने लगी...," म्मे तो अपना कुच्छ.. ढूँढने आई थी....!"
मीनू को रंगे हाथों पकड़े जाते हुए देख कर पिंकी जिस तरीके से खिलखिला कर हँसी.. मैं भी अपनी मुस्कान को छिपा कर ना रख सकी....
"क्या है...?" मीनू के गालों पर उड़े हुए रंग के साथ ही हल्की सी शर्म की लाली भी पसरी हुई थी...,"बताऊं क्या तुझे?"
"क्या?" पिंकी ढीठ होकर अब भी हंस रही थी....
"कल बताउन्गि तुझे...?" मीनू बड़बड़ाई और अलमारी से बिना कुच्छ लिए उपर जाने लगी....
"क्या हो गया यार? इतना गुस्सा क्यूँ?" मानव ने भी हंसते हुए ही कहा तो मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... पर वो कुच्छ बोल नही पाई....
"बता दूँ दीदी?" पिंकी के चेहरे पर अब भी अजीब सी शैतानी झलक रही थी.. शायद उसको पता था कि मानव के आगे मीनू उसको कुच्छ नही कहेगी... या फिर उसको पता था कि मीनू का गुस्सा हाथी के दाँत हैं.... सिर्फ़ दिखाने के लिए...
मीनू ने पलट कर पिंकी को उंगली दिखाई...,"बहुत बोल रही है तू.. तुझे तो मैं....!"
"अब बता भी दो..! ऐसा क्या हो गया 15 मिनिट में ही....!"
"2 बातें हैं..." पिंकी मीनू की चेतावनी को अनसुना करते हुए मुस्कुराइ....
"अच्च्छा...! वो क्या?" मानव भी मीनू को परेशान करने के लिए पिंकी की तरफ हो गया...
"दीदी इसीलिए गुस्सा हैं क्यूंकी मैने आपको वापस...." पिंकी की इतनी बात सुनते ही मीनू क्रोधित होकर उसको मारने को दौड़ी... पर पिंकी के पास तो जैसे आज अचूक तरीका था.. बचने का... वो हंसते हुए ही भाग कर मानव के पास जाकर खड़ी हो गयी... और वहाँ तो जैसे मीनू के लिए लक्षमण रेखा खींची हुई थी.. मानव से कुच्छ दूरी पर ही उसके कदम ठिठक गये... मानव को अपनी तरफ देखता पाकर मीनू शर्म से झंझनती हुई वापस पलट गयी और मेरे पास आकर बैठ गयी..,"तुझे तो मैं...!" मीनू सचमुच गुस्सा हो गयी थी..,"झूठ बोल रही है ये.. मैने ऐसा नही बोला था...!" मीनू सफाई देने लगी.....
"क्या? मेरी तो बात ही समझ में नही आई... ठीक से बताओ ना!" मानव पिंकी की तरफ देख कर बोला....
"रहने दो... अब ये मना कर रही है तो.. फिर दूसरी बात होगी....!" पिंकी ने चटखारे लेकर कहा....
"तो वो ही बता दो....?" मानव ने बोलते हुए पिंकी का हाथ पकड़ना चाहा.. पर वो सकुचा कर पिछे हट गयी...
"ववो.. वो आप इसी से पूच्छ लेना.. मैं नही बता सकती....!" पिंकी शरारती लहजे से बोली....
"तुम ही बता दो यार...!" मानव मीनू की ओर देखता हुआ बोला....,"कुच्छ नही है.. बकवास कर रही है ये.. कल मम्मी को बताउन्गि तो एकदम सीधी हो जाएगी.. आपके सामने ही इसको ज़्यादा बातें आ रही हैं..." मीनू पिंकी को देख गुर्रकार बोली....
मानव ने एक गहरी साँस ली और मीनू की ओर देखता रहा.. पर मीनू उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी.. रह रह कर अपनी पलकें उठाती और वापस झुका लेती.. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो एक दूसरे को आँखों ही आँखों में कुच्छ कहना चाहते हैं... पर शायद हम 'काँटे' बने हुए थे....
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शायद पिंकी भी वैसा ही सोच रही थी जैसा मैं..,"सॉरी दीदी.. अब कुच्छ नही बोलूँगी...!" कहते हुए वह धीरे धीरे उसके पास आकर खड़ी हो गयी.. मीनू ने कोई जवाब नही दिया....
"मैं अभी वापस आई..." पिंकी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर बोली...,"आना अंजू एक बार...!"
"क्या?" मैने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश नही की.....
"आ तो एक बार... आप बैठो दीदी.. हम अभी आते हैं...!" पिंकी ने एक बार फिर से कहा तो मैं खड़ी होकर उसके साथ चल दी...
"म्म्माइन भी आ रही हूँ...!" मीनू हड़बड़ा कर हमारे साथ ही खड़ी हो गयी...
"ववो.. मीनू.. मुझे तुमसे बात करनी थी.. बैथोगि थोड़ी देर....!" मानव की ये बात तो हमें सुनाई दे गयी थी.. पर मीनू ने क्या जवाब दिया.. ये मुझे नही पता... हम उपर चढ़ चुके थे.... मीनू नही आई......
पिंकी जाते ही बिस्तेर पर रज़ाई लेकर लेट गयी... मैने खड़े खड़े ही उस'से पूचछा..," तू कुच्छ करने आई थी ना उपर?"
"नही.. ऐसे ही नींद आ रही है...!" पिंकी ने कहा और रज़ाई में चेहरा ढक लिया...
"पर तूने तो ये कहा था कि अभी आए.. मीनू वेट कर रही होगी हमारा...!" मैने भी अपनी रज़ाई लेकर बैठते हुए कहा.....
"वो तो मैने ऐसे ही कह दिया था... हमने एक मिनिट भी बेचारों को अकेले बात करने नही दी..." कहकर पिंकी हँसने लगी....
"आए.. एक बात बता.. मीनू क्या सच में मानव से प्यार करती है...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....
"और नही तो क्या? ऐसे ही उसकी बातें कर कर के मेरे कान खाती है क्या? तुम्हे नही लगता?" पिंकी ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....
"ऐसी क्या बात करती है वो..?" मैने उसके चेहरे से रज़ाई हटा दी....
"अब क्या बताउ.. सारा दिन मानव ये.. मानव वो.. मानव इतना अच्च्छा है.. मानव उतना अच्च्छा है... सारा दिन.. मैं क्या समझती नही हून कुच्छ.. वो गुस्सा भी तुम्हे दिखाने के लिए ही कर रही थी.. मुझे सब पता है.. उसको बहुत अच्च्छा लगा होगा जब मैने कहा कि वो मानव से प्यार करती है...!" पिंकी मुस्कुराइ....
"ऐसे तो तू भी सारा दिन हॅरी ये.. हॅरी वो.. करती रहती है.. तो क्या तू भी...?" मैने जान बूझ कर उसको च्छेदा....
"चुप हो जा अब.. सो जा..." पिंकी मेरी बात सुनकर शर्मा गयी.. उसने तकिया अपने सिर के नीचे से निकाल कर अपने सीने से चिपकाया और करवट लेकर मुँह ढक लिया......
मैने जानबूझ कर पिंकी को ज़्यादा तंग नही किया... इधर उधर घूम कर मेरा दिमाग़ मानव और मीनू की जोड़ी पर आकर टिक गया... सच में बहुत ही प्यारे लगते थे दोनो एक साथ.. मानव का 'ये' पूच्छना कि मीनू मेरे बारे में क्या बातें करती है.. अब मेरी समझ में आ रहा था.. उस वक़्त तो मैं यही सोच बैठी थी कि 'वो' मुझ पर ही लाइन मार रहा है....
अचानक मुझे ख़याल आया.. मीनू आधे घंटे से नीचे ही बैठी है... 'कहीं मानव और मीनू....' सोच कर ही मेरे बदन में चिरपरिचित झुरजुरी सी दौड़ गयी.. 'मानव तो कुच्छ नशे में भी लग रहा था.. कहीं शुरू तो नही हो गया....?' मेरे मॅन में कौंधा....
वो कहते हैं ना... कि चोर चोरी से जाए हेराफेरी से ना जाए... कामवासना की लपटों में खुद को झुलसा लेने के बाद भी मेरे मंन में अजीब सा कोतुहल मच रहा था... 'च्छूप कर मानव और मीनू की बातें सुन'ने का...
आख़िर पता तो करूँ.. चक्कर क्या है.. मैं मंन ही मंन सोच ही रही थी की पिंकी उठ बैठी.. ये सोचकर कि कहीं पिंकी मुझे जागी देख कर बातें ना करने लग जाए.. मैने तुरंत आँखें बंद कर ली....
वो चुपचाप चारपाई से उठी और बाहर निकल गयी....
ये सोचकर कि वो पेशाब करने बाथरूम में गयी होगी.. मैं अपनी आँखें बंद किए पड़ी रही और उसके वापस आकर सो जाने का इंतज़ार करने लगी... पर हद तो तब हो गयी जब उसको गये हुए भी 10 मिनिट से उपर हो गये.....
"आख़िर माजरा क्या है?" मैने सोचा और जो कुच्छ मेरे मंन में आया.. मेरा माथा ठनक गया.... "कहीं पिंकी मुझे जानबूझ कर उपर लेकर तो नही आई थी...?" मंन में आते ही में झट से उठी और बाहर बाथरूम के पास जाकर देखा.. पर बाथरूम तो बाहर से बंद था....
"हे भगवान! दोनो बहने एक साथ....!" उस वक़्त यही बात मेरे मंन में आई थी.. मैने नीचे जाने का फ़ैसला कर लिया......
मैने वापस अंदर आकर अपनी शॉल ली और उसमें खुद को लपेट कर जैसे ही आहिस्ता से सीढ़ियों में कदम रखा... मेरी हँसी छ्छूटने को हो गयी...
पिंकी नीचे वाले दरवाजे की झिर्री में अपनी आँख लगाए कमरे में हो रही गतिविधियों को देखने की कोशिश कर रही थी... मैने उपर से ही हल्की सी आवाज़ की..,"श्ह्ह्ह्ह्ह!"
पिंकी बौखलाकर उच्छल सी पड़ी... मुझे देखा और शरमाई हुई सी धीरे धीरे चलकर उपर आ गयी.....
"क्या देख रही थी..." मैने धीरे धीरे हंसते हुए पूचछा....
"कककुच्छ नही.. ववो.. मीनू को मत बताना प्लीज़.. बहुत मारेगी मुझे!" पिंकी सकुचती हुई बोली....
"नही यार.. मैं नही बोलूँगी कुच्छ... पर मीनू अब तक उपर क्यूँ नही आई.. क्या कर रहे हैं दोनो..?" मैने होंटो पर शरारत भरी मुस्कान लाते हुए पूचछा....
"कुच्छ नही.. दोनो वहीं बैठे हैं जहाँ पहले बैठे थे..." पिंकी ने बत्तीसी निकाली...,"पर दरवाजा बंद कर रखा है..." पिंकी ने बताया....
"क्यूँ? दरवाजा क्यूँ बंद है फिर....? " मैने आँखें सिकोड कर पूचछा...
"वही तो मैं देखने गयी थी... ईडियट हैं दोनो!" पिंकी हँसने लगी.....
"चल कर एक बार फिर देखें...?" मैने पूचछा....
पिंकी खुश हो गयी...,"हां, चलो! मानव दीदी को पटाने की कोशिश कर रहा है... पर दीदी मान नही रही... भाव खा रही हैं.. हे हे हे...!" पिंकी ने हंसते हुए कहा और हम दोनो दबे पाँव नीचे चल पड़े....
नीचे जाते ही हम दोनो ने आगे पिछे खड़ी होकर दरवाजे की झिर्री से आँख लगा ली.... पिंकी अपने उपर से मुझे देखने देने के लिए थोडा झुकी हुई थी.. इस कारण मेरी एक जाँघ उसके नितंबों की दरार में धँसी हुई थी..... मैने एक हाथ दरवाजे के साथ दीवार पर रखा और दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रख कर अंदर का दृश्या देखने लगी......
"सच मीनू... तुम्हारी कसम यार!" ये पहली आवाज़ थी जो हुमने अपने आँख और कान दरवाजे पर लगाने के बाद मानव के मुँह से सुनी थी.. वा अभी भी मीनू से प्रायपत दूरी बनाए अपनी चारपाई पर बैठा अपनी उंगलियाँ मटका रहा था...," कुच्छ तो बोलो... प्लीज़...!"
मीनू अभी भी उसी चारपाई पर थी जिस पर आधे पौने घंटे पहले हम तीनो बैठे थे.... वा चुप चाप नज़रें झुकाए खिसियाई हुई सी अपने बायें हाथ से दाई बाजू को उपर नीचे खुजा रही थी... वो कुच्छ नही बोली....
"प्लीज़ यार.. कुच्छ बोल दो.. मेरा दिल बैठा जा रहा है... मैने तुमसे अपने दिल की बात कहने के लिए ही थोड़ी सी पी ली थी आज....!" मानव ने याचना सी की....
आख़िरकार हड़बड़ाई हुई सी मीनू के लब बोलने के लिए हीले...,"दरवाजा खोल दो प्लीज़.. मुझे डर लग रहा है...." कहते हुए उसने एक बार भी नज़रें उपर नही की....
"यार.. अगर जाना ही है तो दरवाजा खोल कर चली जाओ.. मैने कोई ताला थोड़े ही लगाया है.. कुण्डी ही तो लगा रखी है.. मैं कुच्छ नही बोलूँगा... पर अभी यहाँ से चला जाउन्गा.. तुम्हारी कसम.....!" मानव हताश सा होकर बोला....
"म्मैइन.. मैं जा थोड़े ही रही हूँ... पर दरवाजा खोल दो प्लीज़... अच्च्छा थोड़े ही लगता है ऐसे..." मीनू ने एक बार अपनी पलकें उपर की और मानव को देखते ही तुरंत झुका ली.... मैं मानव की जगह होती तो मीनू के कान के नीचे बजा कर बोलती.. ,"तुम खुद भी तो उठकर खोल सकती हो... जब खोलना ही नही चाहती तो ड्रामा करने की क्या ज़रूरत है.. आ जाओ ना बाहों में..." हे हे हे.... पर मानव था ही इस मामले में अनाड़ी.. ये तो मैने ट्यूबिवेल पर ही जान लिया था...
पर मानव ने कोई दूसरी ही डोर पकड़ रखी थी...,"सिर्फ़ एक बार बोल दो.. मुझसे प्यार करती हो या नही.... फिर में कुच्छ नही पूच्हूंगा...!" सुनते ही हम दोनो के कान खड़े हो गये.. हम दोनो एक दूसरी की आँखों में देख कर मुस्कुराए.. और फिर से दरवाजे की झिर्री ढूँढने लगे.....
मीनू इस बार भी चुप ही रही...
"बोल दो ना यार... मेरी जान लोगि क्या अब..? कुच्छ तो बोलो..." मानव बेकरार हो उठा था.....
पता नही मीनू ने अपने होन्ट हिला कर क्या कहा.. मानव को भी नही सुना.. हमें कैसे सुनता..,"क्या? क्या बोल रही हो...?" मानव उठकर उसके पास आ बैठा.. मीनू तुरंत च्छुईमुई की तरह मुरझा कर एक तरफ खिसक ली...
"बोलो ना प्लीज़.. क्या बोला था अभी...?" मानव ने मीनू का हाथ पकड़ लिया... मीनू के चेहरे का रंग देखते ही बन रहा था तब... कसमसकर उसने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश की.. पर असफल रही.. आख़िरकार अपना हाथ ढीला छ्चोड़ कर वा अचानक तरारे से बोली...,"तुम्हारा साथ तो सिर्फ़ अंजू दे रही है ना...! उसी को बोल दो ये सब भी अब... "
"क्या? उसने ऐसा बोला...!" मानव अचरज से भरकर बोला...
"उसने क्यूँ बोला..? तुम्ही तो आज दिल खोल कर तारीफ़ कर रहे थे उसकी.. जो साथ दे रही है.. उसी को बोलो ना..!" मीनू की लज्जा चिड़चिड़ेपन में बदल गयी....
"ओफ्फो.. वो बात..." मानव ने अपने माथे पर हाथ मारा...,"तुम भी ना... अच्च्छा तुम्ही बताओ.. अंजू जो कुच्छ तुम्हारे लिए कर रही है.. कोई दूसरी लड़की कर देती क्या?"
"वो तो ठीक है.. पर..." मीनू का मुँह अभी भी चढ़ा हुआ था... बोलते बोलते वो चुप हो गयी...
"पर क्या? बोलो..." मानव अचानक चारपाई से उठा और फिल्मी स्टाइल में मीनू के सामने ज़मीन पर एक घुटना टेक कर बैठ गया... शुक्रा रहा पिंकी की हँसी उसके होंटो से बाहर नही आई....
मीनू ने हड़बड़कर हटने की कोशिश की पर मानव ने अपने दोनो हाथ उसके घुटनो की बगल में चारपाई पर जमा दिए.. वह वहीं बैठी रहने पर मजबूर हो गयी.. उसने अपना चेहरा और भी झुका लिया.. ताकि मानव के नयन वानो से बच सके....
"इस बार तो जवाब में मीनू का रही सही आवाज़ भी नही निकली... होंटो को बस हिलाते हुए उसने अपना शर्म से लाल हो चुका चेहरा 'ना' में हिला दिया......
"एक बार इधर तो देखो, मीनू?" मानव उसकी आँखों में देखने की कोशिश करता हुआ बोला...
मीनू ने उसके 'प्यार' को इज़्ज़त बखसी और पल भर के लिए उस'से नज़रें चार कर ली... अनाड़ी से अनाड़ी भी उन्न आँखों की भाषा पढ़ सकता था... मानव पता नही किस बात का इंतज़ार कर रहा था.. बावलीपूछ! मेरे बदन में झुरजुरी सी उठी और एक पल के लिए पिछे हटकर अंगड़ाई सी ली.. जैसे ही मैने वापस झिर्री से आँख सटाई.. मुझे पिंकी की मनोस्थिति का भी अंदाज़ा हो गया... उसने थोडा पिछे हटकर वापस मेरी जाँघ के बीचों बीच अपने नितंब सटा दिए....
"तुम्हारी कसम मीनू... मैने तुमसे पहले 'प्यार' को कभी नही जाना... उस दिन जब तुम्हे पहली बार देखा था.. तब से ही तुम्हारा चेहरा मेरे दिल में बस गया था... वरना मैं कभी 'कातिल' को पकड़ने के लिए इतना लंबा रास्ता नही अपनाता.... सिर्फ़ तुम्हारे लिए.. तुम्हारी कसम...!
मम्मी अब घर में जल्द से जल्द अपनी 'बहू' देखना चाहती हैं... मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उनके मंन में अपनी बहू की जो भी छवि होगी; तुमसे बेहतर नही हो सकती... मेरे बस उनको बताने भर की देर है.. वो दौड़े चले आएँगे यहाँ...!"
मानव के कहते कहते सुनहरे सपनो की सजीली डोर से बँधे मीनू के हाथ अपने आप ही रैंग रैंग कर मानव के हाथों पर जाकर टिक गये... पर नज़रें मिलाने का साहस वह अब भी नही कर पा रही थी.... उसकी गर्दन एक दम लंबवत झुकी हुई थी.. होन्ट खुले हुए थे.. शायद कुच्छ बोलना चाहते होंगे.. पर बोल नही पा रहे थे.....
मानव ने एक बार फिर बोलना शुरू किया...,"पर जब तक तुम हाँ नही कह देती.. मैं उनको यहाँ कैसे भेज सकता हूँ... कुच्छ बोलो ना प्लीज़.. कुच्छ तो बोलो... मेरे लिए पल पल काटना मुश्किल हो रहा है... मैं तुम्हे पाने को बेकरार हूँ.. अपने पहलू में... हमेशा हमेशा के लिए...... तुम्हे बाहों में लेकर उड़ना चाहता हूं... प्लीज़.. कुच्छ बोलो...."
हम दोनो साँस रोके मीनू की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे... जब हमारा ही ये हाल था तो..मीनू का दिल तो बाग बाग हो गया होगा... अपने लिए प्रेम भरे शब्दों का अमृत कलश पीकर....
मीनू ने बिना कुच्छ बोले एक लंबी साँस ली... काश मानव उस गरम साँस के साथ चिपक कर बाहर निकले प्रेमाणुओं को ही पहचान लेता... किसी 'अया' जैसी मदभरी गहरी 'वो' साँस' उसकी बेकरारी और स्वीकृति का परिचायक ही तो थी.... उसके थिरक उठे अनबोल, अनमोल लबों पर 'प्यार' का संगीत ही तो बाज रहा था उस वक़्त.... उसकी छातियो में अचानक उभर कर दिखने लगा कसाव 'प्रण पीड़ा' का ढिंढोरा ही तो पीट रहा था.... और मानव के हाथों पर कंपन सहित लहरा उठी मीनू की हथेलिया क्या 'ना' बोल रही थी?
पर मानव ये सब समझ जाता तो उसको हम 'घोनचू' क्यूँ कहते भला... पर बंदा हिमम्मत गजब की दिखा रहा था... अपने हाथों पर रखे मीनू के हाथों की उंगलियों को मानव ने अचानक अपनी उंगलियों में फँसा लिया...," बोलो ना मीनू!"
इस बार मीनू के होंतों से निकली 'आह' सीधी उसके 'कलेजे' से निकल कर आई लगती थी... पर फिर भी वो उसको शब्द नही दे पाई,"म्म..मुझे नही पता...!" कहकर मीनू ने अपने हाथ च्छुड़वा लिए... और 'बेसहारा' हो गये मानव के हाथ 'धुमम' से मीनू की गदराई जांघों पर आ गिरे... गिरे ही क्या.. वो तो वहीं चिपक कर रहे गये जैसे... आअस्चर्य की बात तो ये थी की मीनू ने भी उनको वहाँ से हटाने का दुस्साहस नही किया....
"तुम्हे मेरी कसम.. जो दिल में है बोल दो... अब भी अगर तुमने नही बोला तो मैं अभी चला जाउन्गा...!" मानव ने अलटिमेटम सा दे दिया....
आईला... कसम दी थी या कोई कामदेव प्रदत्त प्रेमस्त्रा ही छ्चोड़ दिया 'घोनचू' ने... मानव की धमकी अभी पूरी भी नही हुई थी कि जाने कब से शरमाई, सकूचाई बैठी मीनू एक दम से चारपाई से नीचे सरक कर उसके पहलू में ही आ बैठी...छाती से चिपक कर मीनू ने एक बार फिर वैसी ही 'आह' भरी.. पर अब की बार 'आह' ने शब्दों का चोला पहन लिया था...,"आइ... लव यू मानव!"
उधर दोनो के दिल 'सारंगी' पर छिदि तान की भाँति झंझणा उठे होंगे और इधर चोरी छिपे प्रेम रस के सच्चे आनंद में डूबे हुए हम दोनो भी यौवन रस से भीग गये.... अब झिर्री से आँख हटाना तो क्या, पलकें झपकना भी हमें दुश्वार लग रहा था... पर मैने पिंकी के कसमसाते हुए नितंबों की थिरकन को अपनी जाँघ पर महसूस कर लिया था... जाने अंजाने ही 'वो' मेरी जाँघ को अपनी 'कच्ची मछ्लि' पर रगड़ कर वैसे ही आनंद उठना चाह रही होगी जैसा उस वक़्त मीनू को मिल रहा होगा.. उसके 'इतने' करीब जाकर....
अचानक मीनू अपने आपको मानव के बाहुपाश से मुक्त करवाने के लिए च्चटपटाने लगी..,"छ्चोड़ो अब.. दूर हटो.. अया.. हह"
उसकी च्चटपटाहत भी ठीक ही थी.... 'दूर' रहकर जवानी की तड़प को नियंत्रण में रखना जितना मुश्किल है... महबूब की बाहों में पिघल कर भी 'यौवन रस' में डूबी 'योनि' पर हो रहे जुदाई के ज़ुल्म को सहना उस'से लाख दर्जे मुश्किल होता है....,"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़... उन्हू.. छ्चोड़ दो ना.... जाने दो अब.. बोल दिया ना...!" मानव जैसे ही मीनू की बगल और घुटनो के नीचे हाथ डाल कर उसको बाहों में लेकर खड़ा हुआ... मस्ती से गन्गना उठी मीनू अपने पाँव हवा में पटाकने लगी......
शुक्र हुआ कि मानव कम से कम अब उसकी 'ना ना' को 'हाँ हाँ' समझने लगा था... मानव अपनी बाँह को उपर करते हुए मीनू के सुर्ख गुलाबी हो चुके चेहरे को अपने होंटो के करीब लाया और मीनू की 'बोलती' बंद कर दी..... इधर मेरा हाथ भी पिंकी के कूल्हे से सरक कर उसके कमसिन पेट पर जा चिपका था और पिंकी को मेरे करीब खींचने में जुट गया था.....
"आआअहह..." जैसे ही मानव मीनू के रसीले होंटो का रसास्वादन करके पिछे हटा.. मीनू आँखें फाड़ कर मानव के चेहरे को देखने की कोशिश करने लगी... कोशिश इसीलिए कह रही हूँ कि वह सच में अपनी आँखों को खोले रखने के लिए कोशिश ही कर रही थी... लगभग मदहोश हालत में मीनू बड़बड़ाई," मैं पागल हो जाउन्गि.. छ्चोड़ दो प्लीज़.... मुझसे सहन नही हो रहा ये सब...!"
मानव के होंटो से मीनू को 'पी' लेने की तृप्ति भी झलक रही थी और उसकी आँखों से 'अधूरी प्यास' भी..," अब नही जान... अब पिछे नही हटा जाएगा... आज ही.. अभी... प्लीज़... कर लेने दो मुझे मनमानी....!" मानव उसको अपनी गोद में लिए हुए ही चारपाई पर बैठ गया......
"अया... एक बार उपर जाकर देख तो आने दो.... कहीं कोई जाग ना रही हो अभी..." मीनू ने मानव की च्चती से चिपक कर जैसे ही ये शब्द बोले.. हम पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा.. स्वपन लोक से हम सीधे धरती पर आकर गिरे थे... पिंकी हड़बड़कर पीछे हटी और फुसफुसाई..,"भागो जल्दी.....!" और हम बिना आहट किए दो दो पैदियों को एक साथ लाँघते हुए अपने बिस्तेर में आकर दुबक गयी और रज़ाई औध ली.......
मीनू चुपके से आई... कुच्छ देर वहीं खड़ी रही और फिर हमारे कमरे में जल रही लाइट बंद करके तेज़ी से नीचे उतर गयी....
"गयी अंजू... अब वो क्या करेंगे....?" बेताब सी नज़रों से मुझे देखते हुए पिंकी ने पूचछा.....
"आओ, देखें....!" मैं झट से बिस्तेर से उठ कर खड़ी हो गयी.....
"नही.. अब मैं नही जाउन्गि..." पिंकी की बात पर मुझे आस्चर्य हुआ...,"क्यूँ? चल ना...!"
पिंकी ने 'ना' में सिर हिला दिया..,"मैं नही जाउन्गि.. तू भी मत जा....!"
"पर क्यूँ यार.. आ ना.. मज़े आएँगे..." मैने हाथ खींचते हुए उसको बैठाने की कोशिश की....
"नही.. मुझे सब पता है... अब 'वो' दोनो कपड़े निकल कर नंगे हो जाएँगे... मुझे शर्म आ रही है..!" पिंकी के कयामत ढा रहे उत्तेजित हो चुके चेहरे से बरबस ही भोलेपन का रस टपक पड़ा था.....
"तुझे नही जाना तो मत जा... मैं तो जाउन्गि...!" मैने कहा और बाहर आकर सीढ़ियाँ उतरने लगी....
पर सिवाय मायूसी के.. मेरे हाथ कुच्छ नही लगा... ज़ालिमों ने 'लाइट ऑफ' कर रखी थी.... फिर भी मैं काफ़ी देर तक दरवाजे से चिपकी खड़ी रही... दोनों का प्रथम प्रण मिलन अद्भुत रहा होगा... रह रह कर कमरे से आ रही मस्ती की मस्त किलकरियों , आआहएं.. पीड़जनक क्षणिक चीत्कार.. और आनंद में डूबी सिसकियाँ इस बात का सबूत थी.....
आवाज़ें आनी बंद होते ही मैं अपने हाथ मलते हुए उपर चढ़ने लगी....
क्रमशः...........................
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