RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--38
गतान्क से आगे..................
दूसरी तरफ के कमरे 21 नंबर. से शुरू होकर 40 नंबर. तक थे और उसके तुरंत बाद वाले कमरे पर '44' लिखा हुआ था... कमरा सबसे आख़िर वाला था... बाहर से ही कमरे के अंदर झाँकते ही मुझे लगा कुच्छ ग़लती हो गयी... 'वो' कमरा बाकी कमरों से लगभग दुगना बड़ा था...
दरवाजे के ठीक सामने दूसरी तरफ की दीवार के साथ 2 तख्त जोड़कर उनका डबल बेड सा बनाया गया था जो उस वक़्त खाली पड़ा था... उसके साथ ही एक टेबल और 2 कुर्सियाँ रखी थी... सामने वाले दूसरे कोने में गॅस चूल्हा रखा था.. खिड़कियों पर पर्दे झूल रहे थे... कुल मिलकर 'वो' कमरा दूसरे कमरों की तरह 'घौसला' नही था..
मैं बाहर से ही पीछे वापस पलट गयी...," ये हमारा कमरा नही है... उपर होगा शायद..."
"पर 44 तो इसी पर लिखा हुआ है...?" पिंकी ने एक बार फिर दरवाजे के उपर लिखे नंबर. पर निगाह डाली...
"ये स्टाफ का कमरा होगा... हमारा कमरा उपर मिलेगा.. चल आ!" मैं कहकर चलने ही लगी थी की तभी सामने से आ रही एक साँवली सी मगर सुंदर नयन नक्स वाली लड़की ने हमें टोक दिया," क्या ढूँढ रहे हो..?"
"ववो.. एक फोन करना है...! किसी ने बताया था यहाँ....!" पिंकी की बात पूरी भी नही हुई थी कि उस लड़की ने हमें टोक दिया...,"आ जा अंदर.. ये सामान तो रख आती... इसको क्यूँ ढो रही है साथ साथ...?"
मुझे जवाब देने का मौका नही मिला.. वो लड़की अंदर जा चुकी थी...
हम जैसे ही उसके पिछे कमरे में घुसे.. मैने अचरज से दरवाजे वाली दीवार के साथ एक 'वैसा' ही 'बेड' लगा देखा... बेड पर एक लड़की पेट के बल तकिये में मुँह दबाए लेती थी और उसके पास बैठी शरीफ सी दिखने वाली एक दूसरी लड़की बड़ी तन्मयता से उसके पाँव दबा रही थी... हमें देखने के बाद भी वा चुपचाप अपने काम में लगी रही....
"थोड़ी उपर आजा यार.. जांघें दुख रही हैं.. बीच से रगड़ दे ज़रा सी..." लेटी हुई लड़की ने उनीनदी आवाज़ में कहा...
"सीमा दीदी... इनको एक फोन करना है...!" हमारे साथ अंदर गयी लड़की ने कुच्छ देर रुक कर कहा और फिर सीधी गॅस चूल्हे के पास जाकर चूल्हे पर पतीला रख दिया....
सीमा नाम था लेटी हुई लड़की का... कुच्छ देर वा चुपचाप ऐसे ही पड़ी रही.. फिर ज़रा सा चेहरा उठाकर हाथ आगे किया और हमें 3 उंगलियाँ दिखाते हुए बोली...,"एक मिनिट के 3 रुपए; वो भी इनकमिंग के... यहाँ से सिर्फ़ मिस कॉल जाएगी.. सिर्फ़ लोकल... अगर अलग जाकर 'यार' से बात करने है तो एक मिनिट के 10 रुपए... यहीं बैठकर स्पीकर ऑन करके करेगी तो पहले पाँच मिनिट फ्री और फिर 3 रुपए.. बोल!"
"पर बाहर तो कम लगते हैं...!" नादान पिंकी शायद 'ब्लॅक' का मतलब नही जानती थी...
"तो साली...यहाँ क्या अपनी...?" गुस्से से अचानक उबाल सी पड़ी सीमा ने जबाड़े को भींच कर बोलते हुए जैसे ही अपना चेहरा उपर किया... हम दोनो एक दूसरे को देख कर चौंक पड़े..,"अंजलि .. है ना?"
"हां...!" सकपकते हुए मेरे मुँह से निकला.. मुझे नही पता था कि वा मेरा नाम कैसे जानती है...
"सामान कहाँ है तेरा...?" उसने मेरी आँखों में देखते हुए पूचछा...
"यहीं है...ये रहा... !" मैने बाहर की ओर हाथ से इशारा किया....
"बस बहुत हो गया...!" सीमा ने उसके पैर दबा रही लड़की से कहा और उठकर बैठ गयी...,"इसका सामान अंदर रखवा दे..!" और फिर मुझे देख कर बोली..,"यही कमरा मिला है ना?"
"हां!" मैं अभी तक उसकी रौबदार आवाज़ को अपने मंन से निकाल नही पाई थी....
"सुन ज्योति!... चाय बनाकर एक बार सारे हॉस्टिल में घूम आ... जितनी नयी लड़कियाँ आई हैं.. सबको खाने के बाद यहाँ आने की बोल कर आ जाना....!" सीमा ने कहा...
"ठीक है दीदी...!" ज्योति ने कहा और चाय को गिलासों में डालने लगी...
मैं और पिंकी एक दूसरी को आँखों ही आँखों में देख अचंभित से हो रहे थे..अब तक जिसने भी सुना था, हमारे मन में 44 नंबर. को लेकर ख़ौफ़ ही पैदा किया था.. पर यहाँ तो 'गंगा' हमें उल्टी ही बहती मिली... इतना शानदार बड़ा कमरा और दूसरे कमरों की बजाय लड़कियाँ मेरे समेत सिर्फ़ 4... 13 नंबर. की तरह यहाँ किसी ने खम्खा की चिक्चिक भी नही की.. उल्टा मेरा सामान भी 'उस' लड़की ने अपने आप ही रख दिया था...
पिंकी ने मेरे पेट में उंगली मार कर मेरा ध्यान अपनी और खींचा और फिर आँखों ही आँखों में मुझे बाहर चलने का इशारा किया...
"मैं एक मिनिट में आई दीदी...!" मुझे सीमा को बताना ही ठीक लगा...
"हां हाँ.. जाओ घूम लो..! यहाँ किसी लड़की से डरने की ज़रूरत नही है.. कोई कुच्छ कहे तो अपना रूम नंबर. बता देना बस..." सीमा ने मुझ पर ध्यान दिए बिना ही कहा...
"तू फोन तो कर लेती...?" मैने बाहर आते ही पिंकी को बोला....
"क्यूँ कर लूँ? मैं कोई पागल हूँ क्या जो उसको इतने ज़्यादा पैसे दूँगी.. 2 दिन में पापा आ ही जाएँगे... पर तुझे तो बहुत अच्च्छा कमरा मिल गया अंजू.. तू मुझे भी अपने साथ रख ले ना?"
"मैं भी यही सोच रही थी.. वैसे भी ये तो काफ़ी बड़ा कमरा है.. तू चिंता मत कर.... मैं बात करके देखूँगी.. तुझे एक बात का पता है?" मैने उसको शंतवना देने के बाद कहा...
"क्या? कौनसी बात?" पिंकी ने पूचछा...
"आज मैने स्कूल वाली प्रिन्सिपल मेडम को यहाँ देखा था... इसी लड़की के साथ खड़ी थी.. शायद इसकी मम्मी होगी 'वो'?... उसने भी मुझे देखा था...!"
मेरी बात सुनते ही पिंकी कुच्छ उदास सी हो गयी...," अच्च्छा! उसने इसको कुच्छ बता दिया तो?"
"क्या?"
"वही.. स्कूल वाली बात.." पिंकी ने मुरझाए चेहरे से ही कहा...," ये तो पूरे हॉस्टिल में बता देगी फिर...!"
"देखा जाएगा... अभी से क्यूँ चेहरा लटका रही है.... !" मेरे मन में कुच्छ और ही चल रहा था उस वक़्त...
"मुझे उसकी ये बात बड़ी गंदी लगी... फोन सुन'ने के पैसे लेती है.. और वो भी इतने ज़्यादा... और अलग जाकर बात करने के इतने ज़्यादा पैसे क्यूँ?" पिंकी अभी तक सीमा के अनोखे 'त्र्रिफ प्लान' में ही चक्कर काट रही थी....
"तू समझी नही पिंकी.. ये सब ब्लॅक का चक्कर है.. हॉस्टिल में मोबाइल अलोड नही है.. पर इसको कुच्छ ज़्यादा ही छ्छूट मिली हुई है शायद... इसके पास मोबाइल होगा तो लड़कियाँ फोन करने इसके पास आ जाती होंगी.. ये गुरुकुल की एस.टी.डी. बंद होने का फ़ायडा उठा रही है... लड़कियाँ अपने अपने यारों से अकेले में जाकर बात करती होंगी... इसीलिए इसने उनके रेट ज़्यादा कर रखे हैं... कह नही रही थी.. सामने यार से बात करो तो 5 मिनिट फ्री.. ये भी साथ में मज़े लेती होगी उनके....!" मैने विस्तार से समझाया.. पर शायद पिंकी के भेजे में एक ही बात आई उस वक़्त..
" मुझे भी हॅरी का नंबर. लाना चाहिए था.." पिंकी मन मसोस कर बोली...
"चल छ्चोड़... आजा.. मैं तेरे लिए सीमा से बात करके देखती हूँ...!" मैने कहा और हम वापस कमरे की ओर चल पड़े....
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"देख ले... इन्न लड़कियों की तरह मेरे सारे काम कर सकती है तो आजा...!" सीमा ने मेरी बात सुन'ते ही प्रतिक्रिया दी... वह कमरे में अकेली ही बैठी थी...
"सारा काम मतलब....?" मेरे होन्ट खुले के खुले के खुले रह गये...
"सारा काम मतलब सारा काम.... सोच लो!" सीमा ने गौर से पिंकी को उपर से नीचे तक देखा....
"तो क्या.. मुझे भी....!" पिंकी को यहाँ लाने की बात तो मैने दिल से ही निकाल दी थी... अगर 'वो' 'हां' बोलती तो मुझे भी नही रहना था वहाँ...
"तुझे किसी ने बोला है क्या..? तू तो स्पेशल सिफारिश पर आई है इस कमरे में... तू जो मर्ज़ी ऐश कर यहाँ... समझ गयी.." सीमा ने मेरा कंधा थपथपाया...
"मैं कर लूँगी दीदी.. सारा काम...... मैं उस कमरे में नही रहना चाहती.. पता नही कैसी कैसी लड़कियाँ हैं 'वहाँ'?" पिंकी ने कहा तो मैने उसको घूर कर देखा.. पर उसके मन में शायद उस कमरे से पिच्छा च्चुदाने के अलावा और कुच्छ नही था...," मुझे भी यहीं बुला लो आप!"
सीमा उसकी बात सुनकर मुस्कुराइ और तकिये के नीचे से अपना मोबाइल निकाल कर उसको दे दिया..,"ले कर ले फोन... ज़्यादा टाइम मत लगाना...!"
"पर मैं ज़्यादा पैसे नही दूँगी...!" पिंकी ने मुँह बना लिया...
सीमा भी उसके उलाहना सा देने वाले अंदाज को सुनकर मुस्कुरा कर रह गयी..,"साइड वाले कमरे में आरती बैठी होगी... उसको भेज दे एक बार...!"
"आरती कौन दीदी?" पिंकी ने पूचछा....
"वो.. जो मेरी मालिश कर रही थी... देखी थी ना?"
"हां.." पिंकी ने कहा और मोबाइल लिए लिए ही बाहर निकल गयी...
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"हां दीदी... " एक मिनिट बाद ही आरती हमारे कमरे में थी....
"आ.. आन... आरती.. तू ऐसा कर रूम बदल ले.. उस लड़की के साथ...!" सीमा ने थोड़ा हिचक कर कहा...
सुनते ही आरती का चेहरा उतर गया..,"पर... पर क्यूँ दीदी..?"
"क्यूँ चिंता करती है यार.. तू मेरी खास सहेली है.. तू तो कहीं भी आराम से रह लेगी... उसको 'सेट' करना है थोड़े दिन..." सीमा ने कहते हुए उसकी और आँख दबाई..," जब भी अखिलेश का फोन आएगा, मैं बुला लिया करूँगी तुझे.. बहुत काम कर लिया तूने यार.. अब ऐश कर...!"
"थॅंक यू दीदी..." आरती के होंटो पर मुस्कुराहट तार गयी..,"कौनसा रूम है उसका...?"
"13 नंबर..." मैने बताया...
"तो.. सामान रख लूँ वहाँ.. अभी?" आरती ने खुश होकर पूचछा...,"उसका सामान यहाँ रख देती हूँ..."
"तू क्यूँ रखेगी.. 13 नंबर. की लड़कियों को बोल दे.. ना सुने तो यहाँ भेज देना... रंडियों के सब राज़ जानती हूँ मैं...!" सीमा ने तभी मुझे अपने 'कुत्तिपने' का परिचय दे दिया था...
इस बात को जानकार हमें बड़ा गर्व हुआ था कि हमें रात को खाने की बेल लगते ही दूसरी लड़कियों की तरह घी का डिब्बा उठाकर नीचे नही भागना पड़ा... ज्योति जाकर हमारा खाना ले आई और सब्ज़ी में तड़का लगाकर हमारे पास लाकर रख दिया... हालाँकि वह खुद भी हमारे साथ बैठकर खा रही थी.. पर खाने से ज़्यादा उसको सीमा की ज़रूरतों का ख़याल रखना पड़ रहा था... खाने के दौरान उसको बीच में कयि बार सीमा के कहने पर उठना पड़ा था....
खैर जो भी हो.. हॉस्टिल का पहला दिन अपने आप में काफ़ी रोमांचक रहा... हर तरफ लड़कियाँ ही लड़कियाँ.. लड़ाकू और फ्रेंड्ली.. भोली और चालू... सुन्दर और बदसूरत.. लंबी और छ्होटी; गौरी और काली कलूटी.. हर लड़की का अलग स्वाभाव.. हर लड़की के अलग तेवर...
मुझे खाना खाने से पहले लग रहा था कि मैं बिल्कुल ठीक जगह पर आ गयी हूँ.. यहाँ मैं 'लड़कों' को भूल कर अपनी पुरानी ग़लतियों को सुधार सकती हूँ... पर 'ये' भी मेरी ग़लतफहमी ही निकली... खाने के तुरंत बाद जैसे जैसे हमारे कमरे में अजीब सी नज़रों से हमें घूरती हुई सहमी खड़ी नयी नयी लड़कियों का जमघट लगना शुरू हुआ.. मुझे अहसास होने लगा था कि 'पिंकी' बहुत ग़लत जगह पर आ गयी है....
खाने के बाद सीमा ने कुल्ला किया और वापस बिस्तेर पर बैठते हुए एक एक करके सारी लड़कियों पर निगाह डाली..," एक.. दो.. तीन.. चार.. पाँच.. च्छे:.. सात... बाकी कहाँ हैं...?"
"यही सब है दीदी... आज इतनी ही आई हैं...!" ज्योति ने सीमा को बताया...
"गान्डू समझ रखा है क्या?" सीमा ने 'वो' तेवर दिखाने शुरू कर दिए जिसकी वजह से सब लड़कियाँ दिन में '44' नंबर. सुनकर मुझे बेचारी कहकर हंस रही थी...," मैने रिजिस्टर चेक किया था.. आज 9 आई हैं...!"
"हाँ.. पर 2 तो ये हैं ना..." ज्योति ने हमारी ओर इशारा किया...
"ओह्ह हाँ... मैं तो भूल ही गयी थी... कोई बात नही.. तुम में से शिल्पा कौन है...?" सीमा ने लड़कियों की तरफ अपना सवाल फैंका...
"ज्जई...मैं हूँ...!" एक लड़की बाकी लड़कियों से अलग आकर बोली... सातों लड़कियों में से बस उसी में थोडा आत्मविश्वास झलक रहा था... बाकी सभी इस तरह लाइन में सीमा के सामने खड़ी थी जैसे कोई भारी ग़लती करने के बाद प्रिन्सिपल के सामने सज़ा भुगतने को तैयार खड़ी हों...
"हुम्म.. प्रिन्सिपल तुम्हारी क्या लगती है यार?" सीमा ने पूचछा...
"ज्जई.. ववो मेरी भाभी की रिश्तेदारी में हैं...!" शिल्पा ने जवाब दिया...
"हूंम्म... " सीमा ने सिर हिलाया...,"कोई बाय्फ्रेंड वग़ैरह बनाया है या नही अब तक..?" सीमा ने बत्तीसी निकाल कर पूचछा तो पहले उस लड़की ने आसचर्या से सीमा की ओर देखा और फिर अपना सिर झुका लिया..."नही..."
"चल कोई बात नही... कोई दिक्कत हो तो मुझे बता देना.. बाद में बुलाकर बात करूँगी... जा.. अब ऐश कर...! वैसे मेडम मुझे बहुत अच्छे से जानती हैं..." सीमा ने जैसे ही अपनी बात पूरी की.. शिल्पा गहरी साँस लेकर कमरे से निकल गयी....
शिल्पा के जाते ही सीमा दिन की तरह उल्टी होकर लेट गयी...," आ.. थोड़ी देर मेरी कमर दबा दे यार..." सीमा ने पिंकी की ओर इशारा किया.. पिंकी ने भावुक सी होकर मेरी ओर देखा और सीमा के पास जाकर बैठ गयी.. सच कहूँ तो उस वक़्त मुझे उस पर बड़ी दया आई थी.....
"वेलकम टू गुरुकुल...!" सीमा शुरू हो चुकी थी..,"मुझे कौन कौन जानती हैं.?"
लगभग सभी लड़कियों ने अपने हाथ उपर उठा कर स्वीकार किया कि इस कमरे में आने से पहले ही उन्हे सीमा के रौब का पता चल चुका था... सिर्फ़ एक लड़की को छ्चोड़ कर... दबे से शब्दों में उसने थोड़ा आगे निकल कर सवाल किया,"तुम सीमा हो क्या?"
"आगे आ पहले तू.. फिर बताती हूँ कि 'तुम' और 'आप' में क्या फ़र्क़ होता है.. बोलने की तमीज़ नही है क्या तुझे..?" सीमा गरज कर बोली....
"एम्म...मेरा मतलब वही था दीदी.. आअप..." लड़की के चेहरे पर आतंक सा झलक गया...
"चुप कर बदतमीज़.. थोबड़ा फोड़ दूँगी तेरा... क्या नाम है...?" सीमा के लहजे पर उसकी मिमियाहट सुनकर भी फ़र्क़ नही पड़ा था...
"ज्जई.. सुनयना... सीमा दीदी ऐसे ही निकल गया था.. सॉरी..!" लड़की इतनी सहम गयी थी कि उसने हाथ उठाकर अपने कान पकड़ लिए....
"तुझसे तो मैं बाद में नीपतूँगी... जा.. मेस में जा और सलीम से एक 'खीरा' माँग कर ला....!" सीमा ने आदेशात्मक लहजे में कहा....
"ज्जई.. क्या?" सुनयना ने या तो नाम ढंग से नही सुना था.. या फिर 'ववो' 'खीरा' मंगवाने का मतलब समझ गयी थी...
"खीराआ!" सीमा ने लगभग चिल्लाते हुए दोहराया," उसको बोलना लंबे वाला दे दे... समझ गयी अब!"
"ज्जई.. जाती हूँ... पर सलीम का तो मुझे पता नही कौन है..." लड़की ने डरते डरते अपनी बात कही....
"मेस में मिलेगा लूँगी बाँधे... 20-22 साल का लड़का है.. चल भाग अब...!" सीमा ने कहा और उसके बाहर निकलते ही पिंकी पर झल्ला उठी..,"ऐसे दबाते हैं क्या कमर.. तुझसे नही होगा.. जा आरती को बुलाकर ला.. वो सिखाएगी तुझे...!"
मेरा पिंकी से ध्यान हट गया था.. सीमा के कहते ही मैने पिंकी की ओर देखा.. ऐसा लग रहा था जैसे 'वो' मन ही मन रो रही हो... सीमा के कहते ही वह बाहर भाग गयी....
पिंकी के बाहर जाते ही सीमा उठकर बैठ गयी.. मुझे नही पता था कि क्या होने वाला है... सीमा कुच्छ देर एक एक लड़की के चेहरे को गौर से निहारती रही.. फिर खंगार कर उसने बोलना शुरू किया..," एक एक करके आगे आती जाओ और अपने और अपने बाय्फरेंड्स के नाम बताओ!"
सीमा के ऐसा कहने पर लड़कियाँ बगलें झाँकने लगी.. किसी में आगे बढ़ने की हिम्मत नही हो रही थी...
"बाहर से जैसा दिखता है.. वैसा नही है ये गुरुकुल... जैल है जैल... अंदर आ गये तो साल भर तक इस ऊँची चारदीवारी में क़ैद... घर जाने की सोचना भी मत... 'लड़कों' के तोते में 'वो' मैला कुचैला सलीम 'सलमान ख़ान' जैसा लगने लगता है... 'यहाँ के 'कुत्ते' देखकर मुँह में पानी आ जाता है... या फिर 'सनडे' को मिलने आने वाले लड़कियों के भाइयों पर ही लाइन मारने का दिल करता है.... पर 'वो' भी यहाँ किस काम के... बाहर वो तुम्हे याद करके अपना हिलाते रहेंगे... यहाँ तुम 'बैंगन' ढूँढती फ़िरोगी... घर वालों को कुच्छ बोल कर यहाँ से जाने की सोचोगी तो प्रिन्सिपल मेडम उन्हे ऐसा पानी पिलाएँगी कि उनको 'तुम' ही ग़लत लगने लगोगी... क्या फयडा?
यहाँ की सब लड़कियों की हर ज़रूरत का ख़याल मुझे ही रखना पड़ता है... लड़कियों को अपने 'ग्रेड कार्ड' घर पहुँचने से रोकने हों तो मेरे पास आती हैं... अपने यार के पास फोन करना हो तो 'वो' मेरे पास आती हैं... यार के साथ रात भर बाहर रहना हो तो 'वो' मेरे पास आती हैं.... 'हॉस्टिल' में ही कुच्छ 'इंतज़ाम' करना हो तो मेरे पास आती हैं... सबकी ज़िम्मेदारी मुझपर है.. बेशक हर काम की फीस लगती है.. पर मैं भी क्या करूँ.. 'उपर' जो देना पड़ता है.. मैं घर से तो नही दे सकती ना....! पर इतना याद रखो.. '44' नंबर. की पर्मिशन के बगैर इस हॉस्टिल में कभी कुच्छ नही होता... तुम समझ रही हो ना?" सीमा कहकर उनकी ओर देखने लगी....
लड़कियाँ चुप चाप खड़ी थी... सीमा का लहज़ा ऐसा था कि अगर कोई लड़की कुच्छ बोलना भी चाह रही होगी तो बोलने की हिम्मत नही हुई होगी...
"एक लड़की ने मेरी शिकायत कर दी थी पिच्छले साल... लड़कियों से पूच्छ लेना उसके साथ क्या हुआ? मुझे दोस्ती करना भी पसंद है और दुश्मनी करना भी... मर्ज़ी तुम्हारी है.... सीमा बोल ही रही थी कि आरती अंदर आते हुए बोली..,"कुच्छ काम है दीदी..?"
"नही.. बैठ जाओ!.. ववो.. लड़की कहाँ रह गयी...पिंकी?" सीमा ने पूचछा...
"ववो.. बाहर खड़ी है दीदी.. रो रही है..!" आरती के कहते ही मैं उठकर खड़ी हो गयी...,"मैं बाहर जाउ दीदी?"
"नही.." सीमा ने आँखों ही आँखों में मुझे बैठने का आदेश दिया.. उसकी बातें सुनकर मेरे मन में भी उसके नाम की दहशत सी बैठ गयी थी.. मैं फिर भी कुच्छ बोलने को हुई कि सीमा बोल पड़ी...,"जा आरती..बुला कर ला उसको अंदर..!" और फिर मुझसे बोली..,"अभी उस'से बात मत करना... ऐसे उसके आँसू पौछ्ति रहोगी तो दिल कैसे लगेगा उसका?"
मैं चुपचाप वापस बैठ गयी... कुच्छ देर बाद आरती पिंकी के साथ अंदर आई तो उनके साथ सुनयना भी थी.. हाथ में 'खीरा' च्छुपाए हुए... पिंकी सिसकियाँ भरते हुए आई और आते ही अपने बिस्तर पर दूसरी और मुँह करके लेट गयी....
"इतनी देर कैसे हो गयी तुझे... 'ट्राइ' करके लाई है क्या?" सीमा ने सुनयना से कहा और भद्दे से ढंग से दूसरी लड़कियों की और देख कर हँसने लगी.. मुजरिमों की तरह हमारे सामने खड़ी लड़कियाँ भी सीमा की बात का मतलब समझ कर अपने मुँह पर हाथ रख कर घुटि हुई हँसी हँसने से अपने आपको रोक ना सकी...
"ववो.. सलीम नही मिला था दीदी...!" सुनयना शर्मिंदा सी होकर बोली...
"तुम सब समझ गयी या कुच्छ और सम्झाउ?" सीमा ने सुनयना को नज़रअंदाज करके लड़कियों से सवाल किया....
सब लड़कियों के एक साथ सिर हीले.. पर आवाज़ किसी लड़की की नही निकली...
"ठीक है.. जिस लड़की को मुझसे दोस्ती करनी है.. वो सब इधर आ जाओ.. बाकी वहीं खड़ी रहो..." सीमा ने जैसे ही उंगली से कोने की तरफ इशारा किया... पूरा का पूरा झुंड कोने में जाकर सीमा की उंगली की नोक पर सिमट सा गया.... सीमा खिलखिला कर हँसने लगी...
"गुड.. अब काम की बातें करें...? जान पहचान तो करनी ही पड़ेगी ना...?" सीमा ने कहा और रहस्यमयी अंदाज से उनकी और देखने लगी... किसी की ज़ुबान तक ना हिली...
"बोलती क्यूँ नही! तैयार हो ना?" सीमा ने इस बार ज़रा गरज कर पूचछा तो एक साथ 7 सुर सुनाई दिए..,"जी सीमा दीदी!"
"दरवाजा बंद कर दो ज्योति...!" सीमा के कहते ही ज्योति खड़ी हुई और दरवाजा बंद कर दिया....
"झूठ मत बोलना मेरे सामने.. नही तो यहीं कपड़े उतरवा लूँगी... तुम में से 'टांका' किस किस का टूट गया है...?" सीमा ने पूचछा...
कसम से.. मैं भी सीमा की बात का मतलब नही समझी थी.. झुंड में खड़ी लड़कियों में से एक दो लड़कियों की पूच्छने की हिम्मत हुई..," क्या दीदी?"
"तुम तो मुझे बिल्कुल बेशर्म बना कर छ्चोड़ॉगी.. सीधे सीधे बोलना पड़ेगा क्या? जीस्कि सील टूट चुकी है.. वो इधर आ जाओ.. जल्दी करो.. नही तो मैं कपड़े निकलवाना शुरू कर दूँगी..."
लड़कियाँ सकपका कर कभी हमारी ओर कभी एक दूसरी की ओर देखने लगी.. पर वहाँ से हिली कोई नही... सीमा ने कुच्छ देर तक घूर्ने के बाद उनमें से एक लड़की की और इशारा किया..,"इधर आ.. सलवार निकाल अपनी...!"
लड़की का चेहरा एकदम लाल हो गया.. वह झट से बाकी लड़कियों से अलग जाकर सिर झुका कर खड़ी हो गयी...,"टूट... गयी है दीदी...!"
उसके ऐसा कहते ही सुनयना और 1 और लड़की ने पाला बदल लिया... अब दोनो तरफ तीन तीन लड़कियाँ खड़ी थी....
"तुम्हारा बॅंड नही बजा है क्या अभी?" सीमा ने बाकी तीन में से एक प्यारी सी लड़की की ओर उंगली करके पूचछा...
"क्क्या दीदी.. मैं समझी नही हूँ आपकी बात..!" लड़की घबरा कर बोली....
"साली.. नाटक करती है...! अपनी चूत में लिया है क्या कभी?" सीमा अपने चेहरे के तेवर ख़ूँख़ार करती हुई जबड़ा भींच कर बोली...
लड़की की नज़रें लज्जा के मारे ज़मीन में गड़ गयी... धीरे धीरे उसके कदमों में हरकत हुई और अब अनुपात 4:2 का हो गया....
पिंकी ने अचानक करवट बदल ली.. उसके आँसू सूख चुके थे.. बड़े गौर से वह अब 'वहाँ' हो रहा तमाशा देख रही थी.. शायद 'वह' शुक्र माना रही होगी कि उसके साथ ऐसा कुच्छ नही हुआ......
क्रमशः............................
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