RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--44
गतान्क से आगे..................
आधी नंगी श्वेता अजय की बाहों में आते ही आँख बंद करके सिसक उठी.... उसके मदमस्त गेनहूए रंग के करारे 'सेब' अजय की नज़रों के सामने थिरक से रहे थे... श्वेता अपने नितंबों और नंगी कमर पर पहली बार जवान हाथों की चुभन महसूस करके बावली हुई जा रही थी... सिर्फ़ एक बात थी जो अब तक उसकी समझ में नही आई थी... मनीषा ने अंजू को थप्पड़ मार कर लताड़ क्यूँ लगाई और उस आदमी ने मनीषा को रेवोल्वेर के दम पर बाहर क्यूँ भेजा... यही कारण था कि मस्ती में रंगी होने के बावजूद वह भय के मारे काँप भी रही थी....
"ट्तूम.. अब क्या करोगे?" कांपति आवाज़ में श्वेता ने धड़क'ते दिल से सवाल किया....
"जो तुम करने आई हो जान... और क्या?" अजय ने ले जाकर श्वेता को बिस्तर पर पटक दिया और उसके साथ लेटकर उसकी चूचियो से खेलने लगा...,"करोगी ना?"
"आहाआँ...." अपनी चूचियो की घुंडीयों को कसकर भींचे जाने से श्वेता सिसक उठी और अजय का हाथ हटाकर उन्हे अपने हाथों में छुपा लिया...,"पर 'वो' लड़की अंजलि को डाँट क्यूँ रही थी... यहाँ कुच्छ ग़लत तो नही होगा ना...?"
"छ्चोड़ो ना यार... वो खुद तो इतने मज़े करती है यहाँ आकर... दरअसल 'ये' उसकी बेहन है... उसको तो बुरा लगेगा ही ना... तुम ही बताओ.. तुम्हारी कोई बेहन तुम्हे यहाँ देख लेती तो गुस्सा करती की नही...!" कहते हुए अजय ने उसका नाडा खींच लिया.....
"हां...!पर इनको तो बाहर भेज दो..." श्वेता ने अपनी सलवार पकड़ ली....
"चिंता मत करो.. अभी भाई ने क्या बोला है.. तुम मेरी हो... और कोई तुम्हे कुच्छ नही कहेगा.. ये बस यहाँ मज़ा लेने के लिए खड़े हैं..." अजय ने आसवशण देते हुए जवाब दिया और एक बार फिर सलवार नीचे करने की कोशिश करने लगा.....
श्वेता को मालूम था की यहाँ ये अपनी मर्ज़ी से ही सब कुच्छ करेंगे... भलाई इसी में है की खुशी खुशी मज़े लिए जायें... जैसे ही अजय उसकी छातियो पर झुका... आँखें बंद किए हुए ही उसने उत्तेजना के मारे अजय का सिर पकड़ कर अपनी छातियो से चिपका लिया और अपने नितंबों को उपर उचका सलवार को निकल जाने दिया....
इसके साथ ही हल्क काले बालों वाली श्वेता की योनि सबके सामने बेपर्दा हो गयी... फांकों के बीच अजय की उंगली के रेंगने के साथ ही श्वेता ने कसमसा कर अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर उंगली का स्वागत किया...और उसकी योनि ने चिकना पानी छ्चोड़ दिया....
"पहले किया है कभी?" अजय के हल्का सा दबाव देते ही उंगली योनि में सर्ररर से घुस गयी थी...
"आहह... नही..." श्वेता ने सिर पटकते हुए अपने उपर सवार हो रहे पागलपन का सबूत दिया और झूठ बोल दिया....
"झूठ मत बोल यार... मैं तेरा आदमी थोड़े ही हूं... तेरी चूत तो कह रही है कि तूने किया है पहले भी.....!" अजय खेला खाया लड़का था....
"हहान.. किया है...एक बार... तुम बात क्यूँ कर रहे हो... 'वो' करो ना जल्दी....!" श्वेता उंगली अंदर बाहर होने से तड़प उठी थी....
"क्यूँ नही जान... अभी लो... अभी मज़ा देता हूँ तुम्हे..." अजय बिस्तर पर खड़ा होकर अपनी पॅंट उतारने लगा.... बिस्तर से थोड़ी दूरी पर कमरे में लगे पर्दे के पीछे सुनील अब कमरे को अच्छे से फोकस कर चुका था...... अंजलि असमन्झस में थी कि क्या करे और क्या नही... वह नीरस आँखों से कमरे में हो रही हर गतिविधि पर नज़रें गड़ाए देख रही थी....
बिना देर किए ही अजय पूरी तरह नगन होकर मस्ता चुकी श्वेता की जांघों के बीच बैठा और अपने लिंग को एक ही झटके में ठिकाने लगा दिया......
"अयाया!" श्वेता की योनि एक बार में ही पूरे लिंग को हजम कर गयी थी... आनंद के मारे पागल सी हो उठी श्वेता अपने नितंबों को शुरुआत से ही उच्छलने लगी....
"पूरी मस्तयि हुई लौंडिया है साली....!" अजय ने उसकी चूचियो को पकड़ कर धक्के मारते हुए मुड़कर प्रेम की ओर देखा.....
दरवाजे पर तैनात प्रेम ने अचानक अंजलि को अपने पास आने का इशारा किया....
"क्क्या?" अंजलि सरक कर उसके पास चली गयी....
"लंड चूसना आता है ना?"
"क्क्या?" अंजलि ने दोहराया.....
"अरे लंड मुँह में लिया है क्या कभी...?" प्रेम तनिक उत्तेजित स्वर में बोला तो अंजलि ने नज़रें झुका ली....
"नीचे बैठ जाओ.... यहाँ..!" प्रेम ने पॅंट की जीप खोल कर अंजलि को अपने कदमों में बैठने का इशारा किया और अपना तना हुआ लिंग बाहर निकाल लिया....
"देख क्या रही है जानेमंन... चूस इसको जी भर कर...!" अंजलि बैठ कर उसको घूर्ने लगी तो प्रेम ने आगे बढ़ कर अपना लिंग उसके होंटो से सटा दिया... अंजलि को ऐतराज भी नही था... उसने होन्ट खोले और 'गप्प' से लिंग को अपने होंटो में दबोच लिया.....
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जैसे ही अजय श्वेता के बदन को पूरी तरह तोड़ कर रख देने के बाद हांफता हुआ उस'से अलग हुआ.. प्रेम उसकी जगह लेने को आतुर हो उठा...."हट पिछे....!" प्रेम ने अंजलि को लगभग धकेल ही दिया... और उच्छल कर श्वेता की जांघों में जा बैठा....
"आ और नही प्लीज़....!" श्वेता गिड़गिडती हुई बोली...,"दुख रही है... तुम अंजलि के साथ कर लो.. फिर हमें जाना है...!"
"देख छ्होरी.. चोद्ते हुए मुझे टोका ताकि पसंद नही है.. अब की बार बोली तो पिछे घहुसेड दूँगा... समझी....!" प्रेम ने कहा और टूट चुकी श्वेता पर पिल पड़ा....
"भाई.. मैं इसकी ले लून तब तक....!" अजय अब पानी छ्चोड़ चुके लिंग को अंजलि से चटवा रहा था......
"उपर कुच्छ भी कर ले... नीचे हाथ नही लगाना इसको... बॉस ने मना किया है...!" प्रेम ने एक पल रुक कर कहा तो अंजलि तड़प उठी... 'आह' अपनी योनि को सलवार के उपर से ही छेड़ते हुए उसके मुँह से निकला......
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श्वेता का बुरा हाल हो चुका था... बुरी तरह 'हाए हाए' कर रही श्वेता को अब सुनील उल्टी करके चोद रहा था... प्रेम और अजय अंजलि को अपने साथ खड़ा करके सुनील द्वारा तैयार की गयी मूवी दिखा दिखा कर हंस रहे थे... श्वेता और अंजलि की शकल हर दृशय में बड़ी सॉफ सॉफ नज़र आ रही थी जबकि लड़कों के चेहरों को अवाय्ड करने की कोशिश की गयी थी.... सब कुच्छ समझ जाने के बाद अंजलि की आँखों में आँसू आ गये... अब जाकर वह समझी थी कि मनीषा क्यूँ उसको वहाँ से ले जाना चाहती थी..... पर अब तो 'वो' शिकार बन चुकी थी...
श्वेता अभी भी उनकी साज़िश से अंजान बिस्तर में पड़ी सूबक रही थी...
"ट्तूम.. इसका क्या करोगे...?" अंजलि ने बेचारी शकल बनाकर पूचछा....
"क्कुच्छ नही... तुम दोबारा आने से मना ना करो.. बस इसीलिए....!" प्रेम ने हंसते हुए जवाब दिया......
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सीमा भी कमरे में आ चुकी थी.... सारी बात समझने के बाद अब श्वेता के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़ रही थी....
"अर्रे यार... प्राब्लम क्या है... जब तुम्हारा चुड़ाने का मन करे तो तुम इनको बुला लेना... और जब किसी का तुम्हे चोदने का मंन करेगा तो ये तुम्हे बुला लेंगे... सो सिंपल.. तुम इतना दर क्यूँ रही हो....?" सीमा श्वेता के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली....
"ववो.. वो तो ठीक है दीदी जी.. पर... ये फिल्म क्यूँ बनाई...!" श्वेता ज़रा सी हमदर्दी पाकर रोने सी लगी थी.....
"अब ये नाटक मत कर यार... हॉस्टिल चलने पर सब समझा दूँगी....!" सीमा ने झल्लते हुए कहा....
"तो चलो दीदी... जल्दी चलो....!" श्वेता के लिए वहाँ एक पल भी रुकना भारी हो रहा था.....
"ववो.. क्या है कि... अभी तो गाड़ी नही है यहाँ... कल सुबह चलेंगे या कल रात को....!" सीमा ने कहा.....
ये बात सुनकर तो दोनो पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा...,"पर कल तो मेरे घरवाले आने हैं दीदी.... आपने रात को ही वापस आने को बोला था...."
"मेरे भी..." अंजलि ने हां में हां की....
"ओहो.. जब मैं यहाँ हूँ तो तुम फिकर क्यूँ कर रहे हो.... मैं प्रिन्सिपल मेडम से कहलवा दूँगी.. बस! वो कुच्छ भी बोल देंगी....!" सीमा बोल ही रही थी कि डॉली दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी..,"सीमा!".. उसके साथ ही मनीषा खड़ी थी....
"हाँ... बोल.." सीमा पलट कर दरवाजे तक गयी.....
"बॉस ने बोला है कि आप सब अंजलि को छ्चोड़ कर नीचे आ जाओ... मनीषा मान गयी है... वो रात को अंजलि के साथ रहना चाहती है... इनको यहीं रहने देने को बोला है.....!"
"ठीक है..." सीमा कहकर मनीषा के पास गयी और उसके कंधे पर हाथ मारा..,"इतना सेनटी मत हुआ कर यार... कुच्छ नही होता इन्न बातों से... एंजाय ही तो करते हैं बस! जा अंदर..."
मनीषा बिना कोई जवाब दिए अंदर आ गयी... जैसे ही बाकी सब बाहर गये... डॉली ने कुण्डी लगाकर ताला लगा दिया.....
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"ले लिए मज़े? कर ली अपनी भी जिंदगी बर्बाद... क्या ज़रूरत थी तुझे यहाँ आने की...!" अकेली होते ही बेबस हो चुकी मनीषा अंजलि पर बरस पड़ी....
नशे का हल्का हल्का सुरूर अंजलि पर अब भी था... कमीज़ तो उसने निकाल ही रखा था... मनीषा की नियत का अंदाज़ा लगाकर वह सलवार खोलने की तैयारी करने लगी... वह खुद भी तो तड़प रही थी बहुत...
"ये क्या कर रही है तू...?" मनीषा ने उसको सलवार का नाडा खोल कर नीचे करते देखा तो वह गुर्रकार बोली...,"कमीज़ पहन ले चुपचाप... हो तो गया सत्यानाश... अब और क्या इरादा है....!"
अंजलि से कुच्छ बोलते ना बना.... वह सिर झुका कर एक पल खड़ी हुई और अचानक हड़बड़ा कर कमीज़ ढूँढने लगी......
"ये तूने क्या किया अंजू...?" मनीषा ने पास आकर अंजलि के कंधे थाम लिए और रोने सी लगी....
"आ... आज के बाद नही आउन्गि दीदी... ग़लती हो गयी...!"
"हुंग... आज के बाद नही आएगी... तुझे पता भी है तू किन लोगों के हत्थे चढ़ गयी है... तुझे शायद पता नही कि तरुण भी इन्ही लोगों के साथ काम करता था... वही मुझे अपने प्यार के जाल में फँसा कर यहाँ लाया था और मैं उसके मरने के बाद भी इस दलदल से निकल नही पाई हूँ... कैसे निकलेगी तू...? तुझे बचाने के लिए मैने उसका खून तक कर दिया और तू फिर भी...." मनीषा की आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी...
तरुण का कत्ल करने की बात सुनकर अंजलि फटी आँखों से मनीषा को देखती रह गयी...... अचानक उसको मानव का ख़याल आया...,"आपके पास मोबाइल है दीदी...?"
"ये इतने पागल नही हैं... 5 साल से इनके पास आते रहने के बावजूद में लाख कोशिश करके ये जान नही पाई हूँ कि 'बॉस' कौन है...." मनीषा अपना सिर पकड़ कर बैठ गयी....
"त्तोह.. तो क्या दीदी तरुण को आपने...?" अंजलि ने उसके पास बैठते हुए पूचछा...
"हाँ... तो क्या ग़लत किया...? उसने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी.. तुम्हारी, मीनू और पिंकी की करने वाला था.... बता.. बता ग़लत किया क्या मैने?" मनीषा को इस रूप में अंजलि ने पहली बार ही देखा था... रोते हुए.. नारी की तरह....
"नही दीदी.. आपने सही किया... पर ये लोग कौन हैं... तरुण ने आपको कैसे फँसाया.. पूरी बात बताओ ना मुझे....!" अंजलि ने मनीषा के कंधे पर सिर रख लिया.....
बड़ी मुश्किल से मनीषा अपने जज्बातों पर काबू पाती हुई बोलने को तैयार हुई.. धीरे से बिस्तेर से उठकर वह दीवार के पास जाकर खड़ी हुई उपर कोने में मकड़ी के जाले की तरफ उंगली से इशारा करके बोलना शुरू किया...," इस मकड़ी को देख रही हो अंजू? कितनी शांत और मासूम सी लग रही है... पर ऐसा है नही... इसकी वीभात्सा और कुत्सित शक्तियाँ इसके द्वारा बुने गये इस जाल में हैं... ये निसचिंत बैठी है... इसके अनुपम और अनोखे जाल के आकर्षण में बँध कर कोई ना कोई शिकार देर सवेर आ ही जाना है... इसका खेल तभी शुरू होगा... इस महीन से धागे से बने जाल में एक बार अगर शिकार फँस गया तो उसका बच कर निकलना असंभव है... शिकार बाहर निकलने के लिए जितना फड़फडाएगा; उतना ही उलझता जाएगा.... उसके बाद ये तुच्छ सी दिखने वाली मकड़ी, जब चाहे, जहाँ से चाहे शिकार के शरीर को नोचेगी... उसके एक एक अंग को पूरे इतमीनान से हजम करेगी.....
ये लोग इस मकड़ी की तरह हैं अंजू! इनकी मक्कारी का पता हम जैसे शिकार को इनके जाल में फँसने के बाद ही चलता है... उमंगों और आशाओं से भरी उभरती जवानी में प्यार होना कोई बड़ी बात नही है... किसी की भी प्यार भरी मुस्कुराहट कमसिन उमर में हमें उसके दिल के करीब ले जाती है... ये लोग अक्सर अपने घिनोने मकसद को पूरा करने के लिए 'प्यार' नाम का इस्तेमाल करते हैं.... प्यार से पैदा होता है सहज विश्वाश... विश्वाश जो हमें 'यार' की खुशी के लिए कुच्छ भी करने पर विवश कर देता है... झिझकते हुए ही सही, पर पहली बार 'उसके' सामने कपड़े उतारने पर भी...
तरुण ने भी मेरे साथ 5 साल पहले ऐसा ही छल किया... तब उसने ऐसा अपने किसी दोस्त के बहकावे में आकर किया था... पर बाद में उसको भी इसमें मज़ा आने लगा... अपनी किस्मत से अकेले ही टकराने का मंन बना चुकी मैं खेतों में काम करने अकेली ही जाती थी ... दिन में भी और कभी कभी रात में भी.... तरुण को लगा मुझे बड़ी आसानी से हासिल किया जा सकता है.. और उसने कर भी लिया... उसकी बड़ी बड़ी मनमोहक बातों के जाल में उलझ कर मैं एक दिन उसके साथ यहाँ तक पहुँच गयी.. बहला फुसला कर तरुण ने मेरे कौमार्य को यहीं पहली बार कमरे के सामने रौंदा था.... ये मुझे बाद में पता चला कि अब मेरी इज़्ज़त तरुण के अलावा किसी और के हाथ में भी है....
बहुत छट-पटाई.. पर कुच्छ भी ना कर सकी... इनके पास मेरे नंगे बदन के फोटो थे... तरुण मेरी कीमत लेकर भाग गया... और मुझे इस दलदल में सड़ने को छ्चोड़ गया... एक दम लचर!
ये जो कहते मुझे करना पड़ता... जहाँ कहते मुझे जाना पड़ता... सोना पड़ता! अपने चक्रव्युवहा में 'ये' लड़कियों को ही नही, तथाकथित इज़्ज़तदार और अमीर लोगों को भी फाँसते हैं.... ट्रेंड करने के बाद हमें उनके पास केमरा च्छुपाकर ले जाने को कहा जाता है... उनके साथ अपनी नंगी तस्वीरें उतारने को कहा जाता है... और फिर हमी से ये लोग उनके पास फोन करवाते हैं... ब्लॅकमेलिंग के लिए....
पहली बार मैं तरुण के कहने पर ही तुम्हे उठाकर चौपाल में ले गयी थी... वो देखना चाहता था कि तुम किस हद तक जा सकती हो..... पर जाने क्यूँ मुझे तुम्हे छ्छूते हुए तुम्हारे अंदर अपना अक्स महसूस हुआ... मुझे तुम्हारे कुंवारे शरीर से 'प्यार' सा हो गया..... मैं तुम्हे वहाँ पहुँचने नही देना चाहती थी जहाँ वो तुम्हे लेकर जाना चाहता था... इसीलिए मैने तुम्हारी 'काम' भावना को खुद ही शांत करने की कोशिश की..... मैं तुम्हारे और करीब आकर तुम्हे सब कुच्छ बता देना चाहती थी.... पर तुम कभी मेरे पास आई ही नही....
मीनू के लेटर्स उसने मुझे रखने के लिए दे रखे थे... उस रात उसने मुझे चौपाल में बुलाकर 'वो' लेटर्स मुझसे माँगे और अपना 'पूरा' प्लान मुझे बताया.... उसके प्लान में तुम्हारा नाम सुनकर मैं बौखला गयी और लेटर्स के साथ एक 'चाकू' भी ले गयी... लेटर्स उसको सौंप कर मैने तुम्हे इस सारे मामले से बचाए रखने की गुज़ारिश की, पर वो हंस कर वापस जाने के लिए पलटने लगा...
और मजबूरन जो सोचकर मैं वहाँ गयी थी, मैने वो कर दिया... बरसों पहले से सीने में धधक रही टीस अचानक पागलपन की लपटों में बदल गयी और मैने पिछे से उसका मुँह दबोच कर दनादन चाकू के वार उसकी छाती और पेट में कर दिए.... मैं बहुत डरी हुई थी.. पर हल्का सा संतोष भी था... अपना बदला लेने का और तुम्हारी जिंदगी बचाने का.....
हड़बड़ाई हुई मैं बाहर निकल कर अपने घर में घुसने ही वाली थी कि चौपाल के गेट पर आकर सोनू इधर उधर टहलता दिखाई दिया... मुझे लगा कहीं उसने मुझे देख ना लिया हो.... कुच्छ देर बाद 'वो' अंदर चला गया और थोड़ी ही देर बाद भागता हुआ बाहर निकला... मैने उसको किसी से कुच्छ ना कहने के लिए रोकने को आवाज़ भी लगाई पर 'वो' नही रुका.....
चौपाल में लोगों की लड़ाई सुन'ने वाली बात मैने इसीलिए फैलाई थी ताकि अगर सोनू ने मुझे देख लिया हो तो मैं कह सकूँ की मैं भी आवाज़ सुनकर ही वहाँ गयी थी.....सब कुच्छ ठीक हो गया था... तरुण को उसके किए की सज़ा मिल गयी और किसी को शक भी नही हुआ... पर फ़ायदा क्या हुआ.. मेरी तो जिंदगी पहले ही बर्बाद हो चुकी थी... जिसको बचाने के लिए मैने 'वो' सब किया... 'वो' आज मेरे सामने यहीं बैठी है..... इस दलदल में......
क्रमशः................
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