RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--45
गतान्क से आगे..................
मनीषा ने अपनी बात करके एक 'आह' सी भरी... उसको एकटक देख रही अंजलि का चेहरा अब तक डर के मारे सफेद पड़ गया था...,"अब मैं क्या करूँ दीदी?"
"अब कर भी क्या सकती है तू? घर वालों की और अपनी इज़्ज़त प्यारी लगती है तो कहीं डूब कर मार जा... तू यहाँ आई ही क्यूँ?" मनीषा ने गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहा...
अंजलि पर उसकी बात सुनकर मानो घड़ों पानी पड़ गया,"ववो.. दीदी.. हम अपनी मर्ज़ी से यहाँ नही आई थी... ये सीमा है ना; हॉस्टिल में इसी की चलती है बस... ये हमें ज़बरदस्ती ले आई.... मैं तो आना भी नही चाहती थी...!" बुरी तरह शर्मसार हो चुकी अंजलि और कहती भी तो क्या कहती!
"ये यहाँ किसी को ज़बरदस्ती नही लाती... मुझे सब पता है.. अगर तू मुझे पहले बता देती कि तू गुरुकुल में जा रही है तो मैं तुझे पहले ही इसके बारे में बता देती.... ये वहाँ लड़कियाँ छाँटति है और उनको बहला फुसला कर यहाँ लाती है... तू भी इसकी बातों में आकर यहाँ मस्ती करने आई होगी... मुझे पता है...!" मनीषा ने अंजलि को घूरते हुए कहा...
अंजलि की नज़रें उसकी बात सुनकर फर्श में गड़ गयी...,"अब क्या होगा दीदी?"
"होगा क्या? जो ये कहेंगे 'वो' करना पड़ेगा... 'ये' लोग तुझसे अब धंधा करवाएँगे.... पहले मोटे रुपायों में और फिर 2-2 हज़ार तक की नाइट होगी तेरी... तेरी फिल्में बनेंगी, जो ये लोग विदेशों में बेच देंगे.... बाद में तुझसे उन्न लोगों के पास फोन करवाकर पैसे माँगेंगे जिनके साथ तू सोई है... वहाँ से पैसे मिल गये तो इनके.. फँसेगी तो तू! "
"मैने 'बॉस' से गुहार भी लगाई कि 'तुम्हारे' बदले मैं उनका उतना ही 'काम' कर दूँगी... पर 'वो' नही माना... उसको तुमसे कुच्छ ज़्यादा ही उम्मीद है.... बहुत मिन्नत करने पर आख़िर में 'वो' सिर्फ़ इस बात के लिए राज़ी हुआ कि 'आज रात मैं तुम्हारे साथ रह लूँ... अब मैं और क्या कर सकती हूँ बता?... तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली अंजू....!"
"म्मैई... मुझे इनस्पेक्टर का नंबर. पता है दीदी... कहीं से फोन मिल जाए तो... क्या तुम्हे मालूम है कि ये जगह कौनसी है...?" अंजलि ने अपने होश अब तक कायम रखे थे.....
"नही...! मुझे क्या; इनके 2-4 खास लोगों के अलावा शायद किसी को भी ठीक ठीक जगह मालूम ना हो.... वैसे भी मैं बहुत दीनो बाद आई थी इनके पास... आज इन्होने मुझे 'फ्री' कर देने के लिए बुलाया था.... तुम्हे भी कोई 'इन्ही' का आदमी लेकर आया होगा ना?"
"हां दीदी... पर सीमा दीदी उसको अच्छे से जानती हैं...!" अंजलि सकुचाते हुए बोली....
"यहाँ कोई किसी को अच्छे से नही जानता पागल... एक आध चेहरे पहचान में आ जाते हैं वो अलग बात है.. वरना हर बार अलग लोग होते हैं... अलग लड़कियाँ... नाम भी तकरीबन नकली ही होते हैं सबके.... 'जो' तुम्हे लेकर आया है.. 'वो' बॉस का ड्राइवर होगा ज़रूर... जवान सा लड़का था ना?"
"हाँ दीदी... पर सीमा दीदी तो हॉस्टिल में ही रहती हैं... उनको तो हम पकड़वा ही सकते हैं....!" अंजलि ने तर्क दिया....
"धीरे बोल! और ये बात यहाँ किसी और के सामने मत कह देना.. जान से जाएगी क्या? ..... और सीमा को पकड़वा देने से क्या होगा...? वो भी 'बॉस' को नही जानती होगी..... तुझे तो ये फिर भी उठा ही लेंगे...."
"पर और लड़कियाँ तो बच जाएँगी ना....." अंजलि ने हताश होकर अपने माथे पर हाथ रख लिया....." कल हॉस्टिल में चाचा जी आएँगे... उनको पता चल गया तो? सीमा दीदी कह रही थी कि हो सकता है हम कल रात वापस हॉस्टिल जायें...!"
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"जी बॉस!" प्रेम ने फोन कान से लगाते ही कहा...
"मैं निकल रहा हूँ... ये मनीषा अंजलि के साथ मिलकर कुच्छ गड़बड़ कर सकती है... मुझे रिस्क नही चाहिए....इसको श्वेता और सीमा के साथ अभी हॉस्टिल भेज दो... कल रात वो अपने आप इसको बाहर निकाल देगी... रेस्ट हाउस के बाद इसके जल्दी जल्दी 10-12 केस ले लो... समझ गये ना!"
"आ.. ठीक है बॉस... पर सीमा को क्या कहूँ...?" प्रेम ने अपने होंटो पर जीभ फेरी...उसको भी अब अंजलि जैसी मादक हुश्न की मल्लिका के यौवन से जल्द ही खेलने की उम्मीद बँध गयी थी.....
"उसको मैने सब समझा दिया है.... डॉन'ट वरी! कल वाला काम ढंग से करना.. तुम ही साथ जा रहे हो उसके!" उधर से आवाज़ फोन पर उभरी....
"ठीक है बॉस.. ववो.. कुच्छ रुपायों की ज़रूरत थी...." प्रेम ज़रा सा हिचका...
"लाख दे रहा है कल मंत्री... रख लेना... सुबह 9:00 बजे मैं नये नंबर. से रिंग करूँगा... उठा लेना...!"
"थॅंक यू बॉस... ववो.. कल रात तो एक 'रेप केस' वाली मूवी का भी भी प्रोग्राम है ना... तो मैं...?"
"वो मैं अपने आप देख लूँगा... तुम अंजलि के साथ रहोगे... जहाँ तक हो सके रेस्टौउसे के अंदर ही रहना....कुच्छ भी गड़बड़ करे तो ठोक देना वहीं.. मंत्री अपने आप संभाल लेगा... मैने उसको भी बोल दिया है...."
"... और हां... कल रात तक मनीषा को भी अपने साथ रख... मेन्ली कल रात तक की ही प्राब्लम है.. उसके बाद तो मंत्री भी इस केस में साथ हो जाएगा... हमसे ज़्यादा फिकर उसको रहेगी फिर अगर कुच्छ पंगा हुआ तो...."
"ठीक है बॉस... मैं समझ गया!" प्रेम ने पूरी बात सुनकर जवाब दिया....
"वेरी गुड!... डॉली को भी बोल देना अभी निकल जाएगी यहाँ से.....!" बॉस ने कहा और फोन काट दिया.....
"हूंम्म... ओके! रात ठीक 7:00 बजे यहीं मिलते हैं...!" प्रेम ने सीमा को गुरुकुल के खेल के मैदान वाले गेट पर लाकर गाड़ी रोकते हुए कहा...
"आहान... मैं फोन करती हूँ दोपहर तक...!" सीमा उतरते हुए अचानक ठिठक कर बोली....
"फोन का क्या मतलब है...? फाइनल हो तो गया... मुझे 7:30 तक 'बेबी' को वहाँ लेकर जाना है...!" प्रेम ने अंजलि की और आँख मारी...
"हां ठीक है... कहा ना फोन करती हूँ तुम्हे...!" सीमा ने जल्दी से कहा और दोनो लड़कियों को लेकर नीचे उतर गयी... गेट्कीपर थोड़ा सा दरवाजा खोलकर उनके अंदर आने का इंतजार कर रहा था....
"सीमा मॅ'मसाब्, वो लड़की तो आँखें दिखाने लगी है अब.. आप किसी दूसरी से बात करवा दो मेरी...." गेट्कीपर भूना बैठा था...
"तेरी ही ग़लती है..."सीमा तुनक कर बोली..,"तू उसको टोकते हुए ये भी नही देखता कि उसके साथ दूसरी लड़की कैसी है... ये गुरुकुल है यार.. रंडी-खाना थोड़े ही है... अकेले में टोकता था तो क्या मना करती थी तुझे....?"
"फिर भी मॅ'मशाब... उस'से मेरी नही बनेगी अब... आप किसी और से टांका भिड़-वाओ अब... वो तो वैसे भी 'तोती' हो गयी है....!"
"अब ज़्यादा भाव मत खा... कल फ़ुर्सत से बात करूँगी...!" सीमा ने उसको घूरते हुए कहा और आगे निकल आई...
"दीदी... एक मिनिट...!" सीमा अंजलि और श्वेता के पास जाकर आगे बढ़ने लगी तो अंजलि ने उसको रोक लिया....
"जल्दी चलो यार... नींद आ रही है...!" सीमा उनके पास ठिठक कर बोली....
"नही, पहले मेरी बात सुनो दीदी! कमरे पर पिंकी होगी... वहाँ बात नही कर पाउन्गि मैं....!" अंजलि ने वहीं खड़े खड़े कहा.....
"हुम्म... क्या टेन्षन है यार...!" सीमा मुँह पिचका कर बोली और फिर श्वेता की ओर देखा,"तू चल... 44 में जाकर बोल देना कि हम आ गये हैं... जा जाकर सो ले!"
"ठीक है दीदी...!" मारी सी आवाज़ में श्वेता ने जवाब दिया और वहाँ से चली गयी......
"हां... अब बोल! क्या परेशानी है?" सीमा अंजलि का हाथ पकड़ कर बोली....
"म्मैइन... मैं आज के बाद कहीं नही जाउन्गि...!" अंजलि ने थोडा हिचक कर कहा....
"ठीक है.. मत जाना... आज तो जाएगी ना?" सीमा ने प्यार से पूचछा....
"नही... कभी भी नही... आज क्यूँ जाउन्गि मैं...?" इस बार अंजलि का सुर कुच्छ तल्ख़ था.....
"आए... क्या समझती है तू खुद को.. कभी भी नही जाना था तो कल रात क्यूँ गयी थी...?" सीमा अचानक गुर्रा पड़ी....
"आपने कहा था कि हम सिर्फ़ मौज मस्ती के लिए जा रहे हैं... 'वहाँ' तो कुच्छ और ही मामला था....!" अंजलि ने थोडा रुक कर सोचने के बाद कहा....
"क्या मामला था वहाँ बता...? तेरे को किसी ने कुच्छ कहा भी था... श्वेता कहती तो मैं मान भी लेती... तू तो कोरी की कोरी आई है ना वहाँ से... बात करती है!"
"पर वो... वो वीडियो क्यूँ बना रहे थे....?" अंजलि ने अपने विरोध की वजह बताई....
"तो क्या हो गया यार... थोड़े से एंजाय्मेंट के लिए... अगर बना भी ली तो.... खाली मज़े के लिए यार... जस्ट फॉर फन... आजा...!"
"नही... आप झूठ बोल रही हो... 'ये' उनका धंधा है... 'उसकी धमकी देकर बार बार बुलाएँगे 'वो' मुझे वहाँ.....!"
"किसने बोला तुझे... बोल किसने बोला... उस कुतिया मनीषा ने भड़काया होगा... है ना?" सीमा तैश में आकर बोली....
"नही... ये सच है!" अंजलि रट लगाए बैठी थी.....
"हाँ सच है... तो? क्या उखाड़ लेगी तू उनका.. बता? तुझे यहाँ से कोई ज़बरदस्ती उठाकर तो नही ले गया था ना....? 'तेरी' में खुजली हुई तो तू गयी... अब उनका 'जी' करेगा तो 'वो' बुला लेंगे... 'जाना' तो तुझे पड़ेगी ही 'बेबी'... और ध्यान से सुन ले... हॉस्टिल के बाहर तेरा नाम बेबी है... समझ गयी...!" सीमा ने इस बार गुर्रकार कहा था....
"पर... पर मैं कह तो रही हूँ दीदी अब मैं नही जाना चाहती... एक बार ग़लती हो गयी... मुझे माफ़ कर दो....!" सीमा का लहज़ा सुन कर अंजलि का रोम रोम काँप सा उठा था....
सीमा ने अपने आवेगॉन पर काबू पाने के लिए एक गहरी साँस छ्चोड़ी...," क्या घिसता है यार... पैसे भी मिलेंगे तुझे...इतने मिलेंगे कि तू ऐश करेगी.... उस जिंदगी का अपना ही मज़ा है... जी कर देख एक बार.... मुझे देख... ऐश है ना मेरी....," सीमा ने झुक कर अपनी जांघों के बीच उंगली टिकाई,"खाली इसके दम पर... गुरुकुल मेरी किसी बाप वाप का नही है... उस 'साले' बुड्ढे को तो कयि बार निचोड़ा है मैने... और ना ही मैं किसी 'प्रिन्सिपल' मेडम की बेटी हूँ.... मेरी तरह जीकर देख... ऐश करेगी ऐश!"
"नही दीदी.... मैं नही करना चाहती ऐश.... आप किसी और को ढूँढ लो....!" अंजलि अब भी टस से मस नही हुई थी....
"ठीक है...." सीमा ने आँखें दिखाई...,"चल... रूम पर जाते ही बोल देती हूँ उनको कि तू मना कर रही है.... फिर देखना क्या करेंगे तेरे साथ... इज़्ज़त से भी जाएगी और जान से भी.... क्या करेगी तू... घर चली जाएगी...? तेरी फिल्म देखी थी मैने... कैसे आँखें बंद करके चूस रही थी तू 'प्रेम' का....तेरी मा चोद देंगे 'वो'... बहुत बड़े बड़े लिंक हैं उनके... चल आजा.. अभी मना कर देती हूँ... चल मेरे साथ!"
"प्लीज़ दीदी..." अंजलि उसकी बातें सुनकर घुटनो के बाल आ गयी...,"मुझसे ग़लती हो गयी... मुझे बचा लो ना दीदी.... प्ल्ज़..." अंजलि की आँखों से निर्झर अश्रुधारा बह रही थी.....
"खड़ी हो जा यार... ऐसे नाटक करने से कुच्छ नही होता... चल ठीक है... आज वाला 'काम' कर दे... फिर मैं रिक्वेस्ट करके देखूँगी... पर किसी को कुच्छ भी बोला तो फिर मुझे मत कहना कुच्छ भी.......! एक दिन मैं तो कुच्छ नही होता.... ऐसे भी तू सलीम से चुदने को भी तो बोल रही थी.....!" सीमा ने उसको एक बार फिर प्यार से पटरी पर लाने की कोशिश की.....
अंजलि के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था... ना ही उसके पास ज़्यादा विकल्प थे...,"आज कहाँ जाना है दीदी?"
"चल शाबाश! आ खड़ी हो जा.... सब समझाती हूँ..." सीमा ने उसको खड़ी करके उसके गले में बाँह डाली और हॉस्टिल की तरफ चल पड़ी......
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"पता है मैं कितनी डरी हुई थी... कहाँ गयी थी तू? क्या हुआ?" अंजलि के रूम में घुसते ही पिंकी उठकर उसकी ओर लपकी....
मुरझाया हुआ चेहरा लिए अंजलि चुपचाप आकर बिस्तर पर लेट गयी और लेट'ते ही दूसरी ओर करवट ले ली.....
"बता ना अंजू, क्या हुआ? तू रो रही है क्या?" पिंकी उसके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करती हुई दूसरी तरफ कूद गयी....
"कुच्छ नही यार... पार्टी थी छ्होटी सी... सोने दे अब.... मुझे नींद आ रही है....!" अंजलि ने आँखें बंद किए हुए ही जवाब दिया... पिंकी ने हताश होकर सीमा की ओर देखा तो 'वो' मुस्कुरा दी....
"दीदी आप ही बता दो... क्या हुआ अंजू को?" पिंकी ने सीमा से सवाल किया....
"कुच्छ नही.. होना क्या था... जब तू अपने यार के साथ जा सकती है तो क्या ये नही जा सकती... ये भी तो जवान है यार..." सीमा ने कहकर पिंकी की ओर आँख मटका दी.....
"म्मै... मैं कब गयी हूँ दीदी..?" पिंकी सकपका सी गयी....
"तू बोल तो रही थी आज जाने की... कॅन्सल हो गयी क्या?" सीमा बेशर्मी से पिंकी के आगे ही कपड़े चेंज करने लगी तो पिंकी ने ही शर्मकार अपनी नज़रें झुका ली...,"ववो.. वो तो दीदी... हम तो बस ऐसे ही... हम कुच्छ ग़लत थोड़े ही करेंगे...!"
"तो ये कौनसा 'धंधा करके आई है.... ये..भी...तो...ऐसे...ही... हा हा हा हा..!" सीमा ने बोलकर अट्टहास किया.....
"नही दीदी... मैने ऐसा नही कहा... पर ये रो क्यूँ रही है....?" पिंकी ने सकपका कर बात पलट दी.....
"कुच्छ नही यार... हम पार्टी अधूरी छ्चोड़कर आ गये... इसीलिए मन उदास है इसका.... अब सारी रात तो पार्टी नही कर सकते ना.... मैने बोला है इसको... आज फिर भेज दूँगी....!" सीमा ने सहज भाव से जवाब देकर पिंकी की जिगयसा को शांत कर दिया.....!"
"तुम आज फिर जाओगी अंजू... यहाँ कौन संभालेगा...? आज तो मुझे भी जाना है...!" कुच्छ देर शांत पड़ी रहने के बाद जब पिंकी से रहा ना गया तो उसने एक बार फिर उस'से दूसरी और करवट ले चुकी अंजलि को अपनी तरफ पलटने की कोशिश करते हुए धीरे से कहा.....
बुरी तरह परेशन अंजलि अचानक चिड सी गयी,"कहा ना नींद आ रही है मुझे... मुझसे बात मत कर वरना...."
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"अरी मीनू.. जल्दी कर ना.. बस निकल जाएगी...!" मीनू की मम्मी खिसियाहट में बाथरूम का दरवाजा पीट'ते हुए बोली.....
"बस आई मम्मी... 2 मिनिट और...!" मीनू बाथरूम के अंदर एक दम तैयार बैठी थी... पर पता नही क्या वजह उसको बाहर निकलने से रोक रही थी....
"पता नही ये लड़की भी... एक घंटा हो गया गुसलखाने में घुसे हुए..." मीनू की मम्मी बड़बड़ाते हुए एक बार फिर दरवाजा पीटने लगी,"जल्दी निकल ले बाहर... तेरे पापा नीचे गुस्सा हो रहे हैं... पिंकी इंतजार कर रही होगी सुबह से... बस निकल गयी तो 2 घंटे से पहले कुच्छ नही मिलेगा...!"
"आ...हाँ.. आ गयी मम्मी...!" मीनू मुरझाए चेहरे के साथ बाहर निकली और निकलते ही घर की मुंडेर पर खड़ी होकर नीचे झाँकने लगी.....
"अरी अब वहाँ से क्या देख रही है... जल्दी चल... सुबह उठते ही तैयार होने लगी थी... !" मम्मी मीनू को लगभग खींचते हुए बोली....
"हाँ..ववो.. मम्मी... हम अगली बस से नही चल सकते क्या?" मीनू कुच्छ बेचैन सी लग रही थी.....
"तू पागल है क्या? एक बस तो पहले ही निकाल दी... अगली बस से जाएँगे तो आते वक़्त कुच्छ नही मिलेगा.... चल जल्दी....!"
"एक मिनिट मम्मी... शायद आ...!" मीनू नीचे किसी गाड़ी का हॉर्न सुनकर कुच्छ बोलने लगी थी कि बीच में रुक कर वो एक बार फिर मुंडेर की तरफ भागी...,"ववो... वो मानव... आया है शायद...मम्मी!" मीनू ने कहकर नज़रें झुका ली...
"मानव? कौन मानव...?" मम्मी कहकर मुंडेर की तरफ लपकी...,"हे भगवान... सत्यानाश हो इस इनस्पेक्टर का... ये हमारा पीचछा क्यूँ नही छ्चोड़ रहा... आज मुझे इसको सॉफ सॉफ बोलना पड़ेगा... तू यहीं रह.. मैं आती हूँ...!" मम्मी भड़कते हुए बोलकर पलटी ही थी कि अचानक वापस मूडी..,"ययए.. आज किसको साथ लेकर आया है...?"
"प्पा..पता नही मम्मी... आप पहले कुच्छ मत बोलना... उनकी बात सुन लेना पहले...!" मम्मी को नीचे जाते देख मीनू ने उनको हिदायत दी और उनके जाते ही दीवार के साथ लगकर अपनी आँखें बंद करके सपना सा लेने लगी... मधुर मिलन का सपना.....!
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"जी... नमस्ते आंटी जी..!" मानव मीनू की मम्मी को नीचे देखते ही चारपाई से खड़ा हो गया...,"ये... ये मेरे मम्मी डॅडी है..!" मानव ने कहा और फिर अपने मम्मी पापा से मुखातिब हुआ,"मम्मी.. ये....!"
"हां..हां... अब तू आराम से बैठ जा... इतना उतावला क्यूँ हो रहा है...!" पापा ने मज़ाक करते हुए मानव की बाँह पकड़ कर खींच ली और फिर हाथ जोड़कर मीनू की मम्मी का अभिवादन स्वीकार किया...
मीनू की मम्मी और पापा दोनो पशोपेश में थे... उनकी समझ में अब तक कुच्छ आया नही था... मम्मी तो अभी तक उलझन में हाथ बाँधे खड़ी थी...,"ज्जई...!"
"बैठिए ना... किसी जल्दी में हैं क्या?" मानव की मम्मी ने खड़ी होकर मीनू की मम्मी के पास आते हुए कहा....
"हाँ.. ववो हमें छ्होटी के पास जाना था.. गुरुकुल में...!" मम्मी ने सकुचाते हुए बताया...
"क्या? पर... आज तो... मीनू बिटिया ने कुच्छ बताया नही क्या?" मानव के पिताजी थोड़ी असमन्झस में पड़ गये....
"क्या? उसने क्या बताना था...!" मीनू के पापा ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए पूचछा....
"ओह.. खैर..." मानव के पिताजी ने खंगार कर अपना गला साफ किया...,"ववो हम... दरअसल हम अपने बेटे के लिए आपकी बेटी का...." उन्होने इतना ही कहा था की प्रस्ताव में छिपे भाव को समझकर मीनू के मम्मी पापा की आँखें चमक उठी... हड़बड़ाहट में उसके पिता भी चारपाई से उठ खड़े हुए...," अरे... यहाँ क्यूँ खड़ी हो.. मीनू को बोलो ना कुच्छ चाय पानी के लिए...!"
"मैं... अभी आता हूँ...!" मीनू की मम्मी के मुस्कुरकर उपर चढ़ते ही पापा भी उसके पिछे पिछे हो लिए... मम्मी अभी जीने में ही थी...,"मीनू की मम्मी.. मैं तो खुशी से फूला नही समा पा रहा हूँ... कितना अच्च्छा रिश्ता आया है.. अपनी बेटी के लिए...!"
"हाँ पर ये सब कैसे...?" दोनो अब उपर आ चुके थे.. कसमसाहट में मीनू बार बार उनकी नज़रों से बचने के लिए इधर उधर छिप्ने की कोशिश कर रही थी..,"रिश्ता लेने तो लड़की वाले जाते हैं ना...?" मम्मी इसी दुविधा में थी....!"
"वो जमाना गया अब... तुम नही समझोगी.. 'ये' लव मॅरेज है....!" कहकर उसके पापा खिलखिलाकर हंस पड़े.. उन्हे कहाँ अहसास था कि उनकी हँसी मीनू के दिल में सावन की बादलों की तरह बरस रही है....,"मीनू को बोलो जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जाए...!"
"वो तो तैयार ही है... अब कहाँ चली गयी...? पर हम पिंकी के पास नही गये तो वो आसमान सिर पर उठा लेगी....!" मम्मी ने याद करते हुए कहा....
"कुच्छ नही होगा.... उसको बताएँगे तो 'वो' भी बहुत खुश होगी... वहाँ अगले हफ्ते चल पड़ेंगे... मीनू को बोल देना उसके पास फोन कर लेगी... मैं नीचे जा रहा हूँ... तुम भी जल्दी आओ!"
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"हेलो.. पिंकी है?" मीनू ने फोन करके पूचछा....
"तुम कौन?" सीमा ने कड़क आवाज़ में बिस्तर में पड़े पड़े पूचछा....
"मैं.. उसकी बेहन मीनू!"
"अच्च्छा.. एक मिनिट होल्ड करके रखना...वो बाहर खड़ी इंतजार कर रही है सुबह से तुम लोगों का...." सीमा ने ज्योति को आवाज़ लगाकर अपने पास बुलाया...,"ये फोन पिंकी को दे आ...!"
"पिंकी.... घर से तुम्हारा फोन है...?" ज्योति ने फोन पिंकी के हाथ में थमाते हुए बताया.....
मोबाइल स्क्रीन पर घर का नंबर. देखते ही पिंकी की थयोरियाँ चढ़ गयी....,"हेलो!"
"हाँ.. पिंकी!" मीनू की आवाज़ में एक अलग ही कशिश थी....
"मुझे तुम से बात नही करनी... तुम क्यूँ नही आई साथ में... ? मम्मी पापा भी अभी तक नही पहुँचे...!" पिंकी की आवाज़ में नाराज़गी और गुस्सा सॉफ झलक रहा था.....
"हाँ.. ववो.. सुन तो....!" मीनू समझ नही पा रही थी कि अपनी खुशी को पिंकी के साथ कैसे बाँटे....!
"नही.. पहले बताओ, तुम क्यूँ नही आई साथ में....!" पिंकी की आवाज़ अब भी उतनी ही तल्ख़ थी....
"सुन तो ले.. मेरा रिश्ता पक्का हो गया... लंबू से.. हे हे हे...!"
"क्याआआ... सच!" पिंकी सब कुच्छ भूल कर उच्छल पड़ी...,"तुम्हे कैसे पता...?"
"पागल.. वो आए थे आज.. मम्मी पापा के साथ.. मुझे देखने... मैं उन्हे बहुत पसंद आई.. हे हे हे...!"
"ओह्हो... अब तो वो 'वो' हो गया.... 'लंबू' तो लंबू ही रहेगा.. मैं इज़्ज़त से नही बोलूँगी उसको हाँ.. हे हे हे....!" पिंकी के पैर ज़मीन पर नही थे...,"मम्मी पापा चल पड़े क्या?"
"नही ववो..."
"ठीक है.. कोई बात नही... अब तुम भी साथ आना.. मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं....!" पिंकी को अब कोई गिला नही था....
"ववो.. पिंकी... अभी भी 'वो' यहीं बैठे हैं... पता नही आज आ पाएँगे या नही...!"
"ये क्या बात हुई...?" पिंकी का चेहरा एक पल के लिए मुरझा सा गया...,"फिर तो तुम एक हफ्ते बाद ही आओगे... है ना?"
"नही.. वो.. पापा कह रहे थे कि कल आ जाएँगे... कल भी स्कूल की छुट्टी है ना...!"
"चल कोई बात नही.. अब तू फोन रख दे... मैं अंजू को बता दूँ...!" पिंकी सहज होकर बोली....
"ठीक है.. मैं बाद में फोन कर लूँगी...!" कहकर मीनू ने फोन रख दिया....
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मीनू के फोन रखते ही पिंकी ने मौके का फ़ायडा उठाते हुए पहले हॅरी के पास फोन कर लिया...,"हेलो!"
"हाँ पिंकी... मैं बस तुम्हे फोन करने ही वाला था.... बड़ी याद आ रही थी तुम्हारी...!"
"रहने दो रहने दो... पता है.. दीदी का रिश्ता पक्का हो गया... आज ही उसको देखकर गये हैं..!" पिंकी ने खुश होकर बताया....
"क्या?" हॅरी ने हल्क से आस्चर्य के साथ पूचछा..,"किसके साथ...?"
"है एक लंबू...! तुम छ्चोड़ो... ये बताओ तुम कब आ रहे हो...?"
"आज रात ही... मुझे सब याद है जान... बड़ी बेशबरी से इंतजार कर रहा हूँ... 10 बजे का...!" हॅरी ने अपनी बेकरारी का परिचय दिया....
"ऐसे नही पागल!" पिंकी तुनक कर बोली....
"और कैसे?"
"जैसे लंबू आया है.. अपने घर वालों को लेकर... ऐसे!"
"ओह्ह... पर अभी तो तुम शादी के लायक नही हुई हो...!" हॅरी ने चटखारा लिया....
"अच्च्छा जी... फिर मुझसे 'क़िस्सी' क्यूँ माँगते हो.. शादी के लायक नही हुई हूँ तो...!" पिंकी ने इठलाते हुए पूचछा....
"पर तुम देती कहाँ हो...?"
"क्यूँ...? पिंकी ने फोन पर ही हॅरी को आँखें निकाल कर दिखाने की कोशिश की...,"ली तो थी गेस्ट रूम में...!"
"वो कोई 'क़िस्सी' थी... तभी तो कह रहा हूँ अभी तुम बच्ची हो.. जब बड़ी हो जाओगी तो मैं भी अपने घर वालों को ले आउन्गा....!" हॅरी मज़ाक में बोला....
"पक्का ना?" पिंकी खुश हो गयी... फोन पर ऐसी बातें करने में उसको 'वो' शर्म नही आ रही थी जो आमने सामने खड़े होने पर आती थी..,"आज जैसे चाहो ले लेना... फिर तो ले आओगे ना अपने मम्मी पापा को...?"
"हाँ.. प्रोमिस!" हॅरी खुश होकर बोला....
"ठीक है... दीदी मुझे 9:30 बजे पिच्छले गेट से बाहर निकल देंगी.. तुम वहाँ पहले से तैयार मिलना... ठीक है ना?"
"ठीक है... कुच्छ भी कर लूं ना आज?" हॅरी ने उसको छेड़ा...
"ऐसे बोलॉगे तो मैं नही आउन्गि...!" पिंकी ने कहते ही फोन काट दिया..... उसके गालों पर हया का गुलबीपन पसर गया था....
क्रमशः................
गतान्क से आगे..................
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