RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--48
गतान्क से आगे..................
"ज्जई... आपने...बुलाया दीदी जी...!" सहमी हुई सी एक लड़की ने दरवाजे पर आकर हल्का सा अंदर झाँका....
"हां.. आजा....." सीमा को वापस आए मुश्किल से 5 मिनिट ही हुए थे...,"आ बैठ... ज्योति तू बाहर जा... मुझे इस'से कुच्छ पर्सनल बातें करनी हैं...!"
ज्योति ने मुस्कुरकर लड़की की तरफ देखा और उठकर बाहर चली गयी... लड़की सीमा के इशारा करने के बाद चुपचाप आकर बिस्तेर के एक कोने पर बैठ गयी....
"मैं तेरा नाम पूच्छना भूल गयी यार... क्या नाम है तेरा?" सीमा ने इठला कर अपनी ज़ुल्फो को पीछे झटका देते हुए पूचछा....
"ज्जई.. प्रगया!" लड़की ने थोड़ा हिचकिचाते हुए सीमा की आँखों में आँखें डाल कर बताया....
"हूंम्म.. बड़ा प्यारा नाम है... कौनसा रूम है तेरा?"
"ज्जई.. 17!"
"कोई परेशानी तो नही है ना?"
"ज्जई.. नही तो...!" प्रगया ने थोडा ठहर कर बताया....
"कुच्छ हो तो मुझे बता देना...! तू ऐसे डरी हुई क्यूँ है यार.. आराम से उपर पैर करके बैठ ना....!"
"ज्जई.. नही तो दीदी जी... कुच्छ नही..." प्रगया आदेशानुसार पैर उपर करके बैठती हुई बोली....
"बुरा मान गयी क्या? अरे यार.. ऐसे हल्का फूलका मज़ाक तो चलता है शुरू में...!" सीमा ने कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी....
"नही तो दीदी जी.. मैने बुरा नही माना!" प्रगया अब भी थोड़ा सा सहमी हुई थी... उसको लग रहा था कि 'वही' बातें फिर से दोहराई जाएँगी....
"अच्च्छा एक बात बता... तूने 'जब' टाइगर पकड़ा था तो इतना बुरा मुँह क्यूँ बनाया हुआ था... मोमबत्ती ही तो थी यार....!" सीमा माहौल को अपनी बात शुरू करने के लिए सुविधाजनक माहौल तैयार कर रही थी.....
लड़की ने कोई जवाब दिए बिना अपनी नज़रें झुका ली....
"बता ना यार... अब भी क्यूँ शर्मा रही है.. मैं भी तो तेरी तरह एक लड़की ही हूँ....!"
"ज्जई.. बस ऐसे ही....!"
"देख यार... मुझे ये ऐसे शरमाने वाली लड़कियाँ पसंद नही हैं... बात ही तो पूच्छ रही हूँ... क्यूँ घबरा गयी थी तू? वो कोई असली का 'लंड' थोड़े ही था... हे हे हे...!"
सीमा की बातों का रुख़ एक बार फिर से अश्लीलता की हदों को पार करता देख लड़की हड़बड़ा गयी...,"दद्डिडी जी... मैने आज तक इतनी गंदी बातें नही सुनी....!"
"हां.. नही सुनी होंगी... तेरा चेहरा देख कर ही लग रहा है... पर कभी ना कभी तो सुन'नि पड़ेंगी ना... अब तू बड़ी हो गयी है यार... सहेलियों संग ऐसी बातें नही करेगी तो फिर कहाँ करेंगी.... बता?"
"ज्जई.. दीदी जी.." प्रगया के मुँह से कुच्छ और ना निकल सका....
"कभी 'असली' देखा है?" सीमा ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर पूचछा....
"ज्जई.. क्या?"
"वही... जो तूने उस दिन हाथ में पकड़ा था...!"
"उस.. उस दिन से पहले नही दीदी...!" प्रगया बुरी तरह झेंप गयी थी... शायद सलीम के लिंग को याद करके....
"देख मुझे पता है तू झूठ बोल रही है... इसका मतलब तुझे मेरी दोस्ती नामंज़ूर है... तेरी मर्ज़ी है.. पर तू पछ्तयेगि बहुत... तुझे क्या लगता है मैं तेरी बात किसी को बता दूँगी...! ज्योति को मैने तेरे बिना कहे ही बाहर भेज दिया ना?" सीमा ने स्वर में हल्की सी कठोरता लाते हुए कहा....
"ज्जई... जी दीदी जी...!"
"फिर बता क्यूँ नही रही... मुझसे दोस्ती नही करनी ना तुझे?"
"सच कह रही हूं दीदी..." प्रगया ने कहकर अपनी नज़रें झुकाई और बोली...,"सिर्फ़... सिर्फ़ एक बार और देखा था...!"
"शाबाश... ये हुई ना बात... चल हाथ मिला... आज से तू मेरी दोस्त है...!" सीमा उसकी तरफ हाथ बढ़ा कर मुस्कुराइ....,"बनेगी ना...?"
"ज्जई.. दीदी जी...!" प्रगया ने थोड़ा हिचकते हुए सीमा का हाथ थाम लिया...
"अब... पूरी बात बताएगी ना?" सीमा उसका हाथ पकड़े हुए ही बोली....
"क्कौनसी बात दीदी?" प्रगया ने नज़रें उपर की....
"वही यार... पहली बार किसका देखा था.. हे हे....!"
"ववो.. तो दीदी बस ऐसे ही... एक बार ऐसे ही नज़र चली गयी थी..." प्रगया ने फिर नज़रें झुका ली.....
"कैसे यार.. पूरी बात बता ना...! मज़ा आएगा... फिर मैं भी तुझे बताउन्गि...!" सीमा ने उत्सुक होने का अभिनय किया...
"ववो... दीदी एक बार एक लड़का गली में दीवार के साथ खड़ा होकर पेशाब कर रहा था... बस ऐसे ही अपने घर से उसस्पर नज़र चली गयी थी... मुझे पता नही था की....!"
"फिर.. फिर उस लड़के ने क्या किया... और तूने...?" सीमा ने बत्तीसी निकाली....
"क्कुच्छ नही दीदी.. सच्ची....!"
"देख अब मुझसे कुच्छ भी छुपा मत... सच सच बता दे...!"
"मम्मी कसम दीदी... मैं सच बोल रही हूँ.... कुच्छ भी नही हुआ.. मैं वापस चली गयी थी वहाँ से... आपकी कसम....!" प्रगया ने ज़ोर देकर कहा....
"अच्च्छा.. चल छ्चोड़... अच्छे से देखा था ना...?"
"नही... बस 1-2 सेकेंड्स... सच्ची!"
"कैसा था... काला की भूरा.... सच बताना...!"
"ज्जई.. थोड़ा थोड़ा काला सा था....!" प्रगया ने झट से जवाब दिया.....
"फिर तो ज़रूर तूने अच्छि तरह देखा था... है ना... है नाआ!" सीमा ने उसको छेड़ते हुए सा कहा तो प्रगया की नज़रें झुकी और गालों पर लाली सी आ गयी...
"उस वक़्त नही दीदी... फिर मैने खिड़की से देखा था झाँककर....!"
"देखाा.... अब बोली ना असली बात... मज़ा आया था ना देख कर...!" सीमा ने उसको उकसाने की कोशिश की....
"मुझे बहुत शर्म आई थी दीदी... और डर भी बहुत लग रहा था...!" प्रगया अब दिल खोलकर बोलने लगी थी....
"डर्र्र? ... डर क्यूँ यार...?" सीमा ने अचरज व्यक्त किया....
"कि.. कहीं वो मुझे ना देख ले... उसको देखते हुए....!"
"पर मज़ा भी तो आया होगा ना... है ना! .... है नाआ!" सीमा ने उसको उंगली दिखाकर हँसने की कोशिश की तो प्रगया सच में ही हंस पड़ी....," इसमें.. मज़े की क्या बात है दीदी...?" उसने हंसते हुए ही कहा....
"इसमें मज़े की बात नही है तो किस्में है यार... सारा दिन याद रहा होगा ना...?"
प्रगया ने नज़रें झुका ली... कुच्छ बोली नही....
"अच्च्छा एक बात बता... किसी ने तुझे छेड़ा है... कभी....?"
"कैसे दीदी?" अब प्रगया उसकी बातों में पूरी दिलचस्पी ले रही थी....
"कैसे भी... तुझे अकेले में पकड़ लिया हो... तेरे चूतादो को मसला हो.. या......!"
"ऐसे तो नही दीदी.. पर एक बार.... आप किसी को बताओगे तो नही ना दीदी?"
"मैं पागल हूँ क्या यार.. खुलकर बता... अपनी सहेलियों से नही बताएगी तो किसे बताएगी... ऐसे घुट घुट के जीना है क्या....?" सीमा ने उसका हाथ पकड़ कर झटक दिया....
"ववो... एक बार किसी ने मेरी छातियो को मसला था...!" प्रगया ने झिझकते हुए बता ही दिया....
"कैसे? और कुच्छ नही किया क्या?"
"ववो... पिच्छले साल हम ट्रेड फेर में गये थे देल्ही.... वहाँ भीड़ में किसी ने पिछे से बुरी तरह मसल दिया था इनको... मेरी तो चीख निकल गयी होती.... बहुत दर्द हुआ था...!"
"किसने? कोई अंजान था क्या?"
"हां... मैं उसको पहचान नही पाई.... मैने पलट कर देखा तो था....!"
"बहुत मज़ा आया होगा ना?"
"बहुत दर्द हुआ था दीदी... बहुत ज़ोर से पकड़ा था उसने इनको....!"
"पर मज़ा भी तो आया होगा ना... सच बता ना.. शर्मा मत यार.....!"
"हाँ.. थोड़ा सा... पर दर्द ज़्यादा हुआ था दीदी.....!"
"और अगर वो आराम से सहलाता तो मज़ा आता ना बहुत...?" सीमा ने उसकी तरफ आँख मटकाय....
प्रगया शर्मा गयी...,"पता नही दीदी....!"
"पता करना है क्या?" सीमा मतलब की बात पर आ गयी......
"ववो.. तुझे पता आज हॉस्टिल से दो लड़कियाँ बाहर गयी हुई हैं... मज़े लेने के लिए....!" सीमा बत्तीसी निकाल कर बोली...," उन्होने भी पहले कभी मज़े नही लिए...!"
"कैसे दीदी... मैं समझी नही....?" प्रगया अपनी नज़रें सिकोड कर बोली.....
"तुझे मैं...." सीमा कुच्छ बता ही रही थी कि अचानक दरवाजे पर आहट सुनकर रुक गयी....
वह सलीम था...,"मे'मशाब... आपको बड़ी मॅ'म बुला रही हैं....!"
"यार... ये बुद्धी पोपो!... तू यहीं रुकना... मैं बस 2 मिनिट में आई.... ठीक है ना?" सीमा ने खड़ी होकर पूचछा....
"ठीक है दीदी... ववो.. मैं यहीं आकर पढ़ लूँ क्या? अपनी किताबें ले आती हूँ..." प्रगया भी उसके बिच्छाए जाल के आकर्षण में उलझती जा रही थी.....
"हां ले आ... और यहीं सो जाना... आज वैसे भी 2 लड़कियाँ मेरे रूम से नाइट आउट पर हैं...!" सीमा ने हंसकर उसको चौंकाया और बाहर निकल गयी.....
******************************
***********************
"जी मॅ'म... क्यूँ बुलाया है मुझे?" सीमा ने प्रिन्सिपल मेडम के क्वॉर्टर पर जाते ही दरवाजे पर खड़ी होकर इस तरह कहा जैसे 'वो' मेडम से नही किसी पीयान से बात कर रही हो... फिर जैसे ही उसकी नज़र मेडम के सामने बैठे कुच्छ अंजान आगंतुकों पर पड़ी 'वो' संभालती हुई बोली..,"ववो... सॉरी मॅ'म... आपने मुझे याद किया था क्या?"
प्रिन्सिपल मेडम गुस्से में लग रही थी....,"कितनी बार बोला है इस मामले में मुझे मत घसीटा करो.... जब तुम्हारे पास फोन है... जब तुम बाहर जाकर इन्न लोगों से मिल सकती हो तो इनको मेरे पास भेजने की क्या ज़रूरत है...?"
सीमा ने अचंभित होकर सामने बैठे मानव और दो औरतों पर निगाह डाली,"मैने?... मैने किस को भेजा है...?"
"इनको!" मेडम ने मानव की और इशारा करके कहा....,"अब जो भी बात करनी हैं जल्दी करो और निकालों यहाँ से.... आइन्दा कोई ऐसे मेरे पास नही आना चाहिए...!"
"मामला क्या है..? कौन हैं ये?" सीमा अभी तक असमन्झस में थी....
मानव का धैर्य पसीने के रूप में उसके माथे से चू पड़ा था... फिर भी वह अभी तक शांत बैठा उनकी बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था... वह उठकर दरवाजे के पास आ गया...,"अंजलि कहाँ है?"
सीमा की आँखें खुली की खुली रह गयी...,"क्क्कऔन अंजलि.... ंमुझे क्या पता?"
"मैं दोबारा नही पूच्हूंगा!" मानव ने जबड़ा भींच कर अपनी मुत्ठियाँ कसते हुए कहा....
"म्मै... अभी आती हूँ... एक मिनिट में...!" सीमा ने कहते हुए बाहर खिसकने की कोशिश की.. पर मानव ने अपना पंजा खोल कर उसको दिखाया,"मेरे पास टाइम नही है... एक थप्पड़ में एनकाउंटर हो जाएगा तेरा... जल्दी बताती है या....!"
"ंमुझे नही पता सच में....सस्सीर...!" मानव के तेवर देखकर सीमा वहीं ठिठक गयी....
"इसका तलाशी लो और मुँह बाँध कर गाड़ी में लेजाकार डाल लो... किसी को पता नही चलना चाहिए यहाँ....!" मानव ने वहाँ सादी वर्दी में बैठी 2 महिला कॉन्स्टेबल्स को इशारा किया...,"ये ऐसे नही बोलेगी....!"
"देखिए श्रीमान... आप ऐसा नही कर सकते... अगर आपने ऐसा किया तो मजबूरन मुझे पोलीस को फोन करना पड़ेगा....!" उलझन में खड़ी हो चुकी मेडम के मुँह से निकला... तब तक महिला पोलिसेकार्मियाँ सीमा को काबू में कर चुकी थी....
"मैं पोलीस ही हूँ... कहिए!" मानव ने आँखें निकाल कर मेडम पर व्यंग्य सा किया तो वो हतप्रभ सी उसको घूरती रह गयी...,"आपको बहुत पहले फोन करना चाहिए था.... चलो मेरे साथ....!"
"ये.. ये मोबाइल मिला है सर...!" लॅडीस में से एक ने मोबाइल निकाल कर मानव को पकड़ा दिया.....
"पर बेटा... म्म्मै तो...." मेडम ने हकलाते हुए कहा तो मानव ने वही रूखा सा जवाब देकर उसको लाजवाब कर दिया...,"मैं दोबारा नही कहूँगा...!"
"च..चलती हूँ बेटा.. पर.. म्मेरा इसमें कोई....!" मेडम खड़ी होकर दरवाजे पर आई और चुपचाप मानव के आगे आगे चलाने लगी.....
क्रमशः........................
गतान्क से आगे..................
|