RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--49
गतान्क से आगे..................
अरे... दरवाजा खुला ही पड़ा है...! विष्णु कहाँ गया?" प्रिन्सिपल मेडम के मुँह से गुरुकुल के गेट पर आते ही अनायास ही निकल गया....
"वो गाड़ी में पड़ा है...! चलो... तुम भी जाकर उस गाड़ी में बैठ जाओ..." मानव ने पिछे चलते हुए कहा और बाहर निकलते ही दरवाजे पर ताला लगाकर चाबी जेब में रख ली....!
"कहाँ चलूं, जल्दी बोलो....!" मानव ने गाड़ी में बैठते ही सीमा की तरफ चेहरा घुमा कर पूचछा.... दूसरी गाड़ी गेट्कीपर ओर मेडम को लेकर आगे निकल गयी थी.....
"मंमुझे कुच्छ नही पता सर.. सच में.... आज प्रेम उसको लेकर गया था... मुझे कुच्छ नही बताया उन्होने....!" सीमा ने सहम कर जवाब दिया....
मानव हड़बड़ाहट में ही सीमा की तरफ देखता रहा..,"ये प्रेम कौन है....? फालतू बातें मत करो... मुझे जल्द से जल्द अंजलि के पास पहुँचना है... एक मिनिट...." मानव ने जेब से सीमा का फोन निकाला..,"उस'से बात करो... पूच्छो उस'से जल्दी... अगर उसको ज़रा सा भी शक हुआ तो यहीं गोली मार दूँगा साली कुतिया को....!"
"ज्जई...." सीमा ने कुच्छ पल ठिठकने के बाद अपना हाथ आगे करके फोन पकड़ लिया....,"ज्जई.. क्या पूच्छना है...!" सीमा आज बुरी तरह मिमिया रही थी....
"अंजलि कहाँ है?" मानव ने जवाब दिया....
"ज्जई.. वो ऐसे नही बताएगा.... मुझे पता है!"
"तो तुम सोचो... हमें कैसे भी करके अंजलि के पास पहुँचना है.... ध्यान रखो अगर आज तुमने साथ दिया तो तुम बच सकती हो.....!" मानव उसके अंदर का डर गायब करने में अपनी तरफ से कोई कसर नही छ्चोड़ना चाह रहा था....
"फिर मैं बच जाउन्गि ना सर...?" सीमा के मंन में कुच्छ उम्मीद सी जागी...
"अब और कैसे सम्झाउ तुझे... तुम टाइम खोटा मत करो.. जल्दी कुच्छ सोचो....!"
"ठीक है सर... एक मिनिट..." सीमा ने कुच्छ सोचकर प्रेम का नंबर. मिला दिया... मानव ने तुरंत गाड़ी का एंजिन बंद कर दिया...
"हेलो...!"
"हां सीमा डार्लिंग... सूनाओ!"
"ंमुझे एक लड़की को लेकर आना है... अभी...!" सीमा ने कहा....
"अभी.. इतनी रात को?" प्रेम ने पूचछा....
"हाँ....!" सीमा की साँसें तेज होने लगी थी.....
" आज नही यार... कल ले आओ... आज किसी के पास टाइम नही है....!" प्रेम ने असमर्थता जताई.....
"नही.. अभी आना पड़ेगा... एक नंबर. की..." बोलते हुए सीमा ने झिझक कर मानव की ओर देखा..," बहुत प्यारी लड़की है... आज लेकर नही आई तो फिर हाथ से निकल जाएगी... कल वो हॉस्टिल छ्चोड़कर वापस जाने की बात कह रही है.....!"
"ऐसा क्या खा लिया हॉस्टिल में आज... सभी की चूत आज ही फदक रही है क्या... आज तो कोई वेहिकल भी नही है.... तुम रहने ही दो....!"
"वेहिकल तो है हमारे पास... तुम बस बताओ की आना कहाँ है....?"
"कहाँ से आया वेहिकल.....?"
"ववो... वो दरअसल उसके बाय्फ्रेंड की गाड़ी है.... उनको जगह की तलाश है... मैने बोला है कि मैं ले चालूंगी.....!" सीमा ने जवाब दिया.....
"मतलब एक और रेप... हे हे हे... क्या करूँ यार...? रूको.... सोचने दो...!" प्रेम के माथे पर बल पड़ गये.....
"वैसे तुम कहाँ हो....? अंजलि के साथ ही होगे ना......" सीमा ने बातों ही बातों में पूच्छने की कोशिश की....
प्रेम ने बोलने से पहले एक लंबी साँस ली...," मैं तुम्हे फोन करके बताने ही वाला था.... ववो....." कहकर प्रेम रुक गया....
"क्या? क्या बताने वाले थे...." सीमा के दिल की धड़कने बढ़ गयी....
"छ्चोड़ो.... कल सुबह उसके घर वालों को खबर भिजवा देना कि 'वो' किसी के साथ दीवार कूद कर भाग गयी.... 3-4 हफ्ते बाद उसकी लाश फिकवा देंगे किसी ट्रॅक पर.... किसी को क्या मालूम पड़ेगा...." प्रेम ने कहा....
"क्ककयाआअ...." सीमा आँखें फाडे गुस्से से लाल हो चुके मानव का चेहरा देखती रह गयी.....,"प्पपर... तुम्हे पता है क्या होगा...?"
"मेरा दिमाग़ मत खाओ यार... बॉस ने जैसा बोला मैने बता दिया... उनसे करना जो बात करनी है... मुझे कुच्छ नही पता......!"
"बॉस से बात करा सकते हो क्या?" सीमा ने हड़बड़ी में पूचछा....
"नही... आज 'वो' किसी से बात नही कर सकते... वो आज अपने स्पेशल प्रॉजेक्ट में बिज़ी हैं.... क्या माल पकड़ा है यार... वो तो हाथ लगते ही उच्छल रही है... अजय बता रहा था...!"
"क्कऔन... पिंकी?" सीमा के मुँह से निकल गया... मानव के तुरंत रौन्ग्ते खड़े हो गये.....
"मुझे नही पता, पिंकी है या रोज़ी... वही जो हॉस्टिल से आई थी आज....!"
"प्पर... कहाँ हो तुम अभी....!" हकबकाई हुई सीमा के मुँह से निकला....
"जहन्नुम में.... आज का प्रोग्राम कॅन्सल करो यार... पहले ही दिमाग़ बहुत खराब है.....!"
"प्पर... मेरी बात तो...!" सीमा की बात सुन'ने से पहले ही प्रेम ने फोन काट दिया...
"पिंकी कौन है....?" मानव ने सीमा का गला पकड़ लिया...
"वववो... " सीमा थर थर काँपने लगी..,"ववो.. वो तो अपनी मर्ज़ी से ही गयी थी...!"
"तेरी मा की.... ओह शिट...." मानव पागल सा हो उठा.. उसकी समझ में नही आ रहा था कि क्या करे और क्या नही.... अचानक उसने अपना मोबाइल निकाला और मिश्रा का नंबर. मिला कर सीमा के हाथ से उसका मोबाइल झपट लिया....
"हां मिश्रा.... एक नंबर. लिखो जल्दी....!"
"सर.. बगैर एस.पी. साहब की पर्मिशन के बगैर ट्रेसिंग और सुर्वीलानसिंग अलोड नही है... आपको पता है ना...?" मिश्रा की आवाज़ आई....
"यार समझा कर... ये सारे नंबर. तरुण वाले केस से रिलेटेड हैं... उन्ही मैं आड कर देना... जल्दी कर यार! मेरे पास टाइम नही है... सब कुच्छ ख़तम हो जाएगा....!" मानव की आँखों में आँसू आ गये.....
"तो क्या मंत्री जी का नंबर. भी उसी केस से जुड़ा है....?" मिश्रा ने चौंक कर पूचछा....
"मंत्री... कौन मंत्री...?" अब चौंकने की बारी मानव की थी....
"सॉरी सर.. मैं आपको नाम नही बता सकता... एस.पी. साहब ने मना कर दिया है....!" मिश्रा ने सपस्ट किया....
"... तू जल्दी से इस नंबर. को सरविलेन्स पर लगा कर इसकी लोकेशन बता... मैं देखता हूँ उस मंत्री को....!" मानव ने नंबर. 2 बार रिपीट किया....
"वैसे आपकी मर्ज़ी है सर जी.. पर मधुमक्खी के छते में हाथ ना ही डालो तो बेहतर है....!"
"तू इस नंबर. की लोकेशन कितनी देर में बता रहा है....!" मानव ने उसकी बात अपने सिर के उपर से गुजर जाने दी.....
"पता लगते ही कॉल कर दूँगा सर...!" मिश्रा ने कहकर फोन रख दिया.....
"किसके साथ गयी है पिंकी...?" मानव ने जल्दबाज़ी में पूचछा और गाड़ी स्टार्ट करके शहर की तरफ ही दौड़ा दी....
"ववो.. वो तो पता नही सर.... पर मेरे फोन में नंबर. होगा उसका...!" सीमा ने कहा....
" नंबर. निकाल कर दो मुझे...." मानव ने उसको मोबाइल पकड़ते हुए कहा....," क्या वो भी तुम लोगों में से ही.....!"
"नही सर... वो तो.. पिंकी के गाँव... हां याद आया... हॅरी के साथ गयी थी... पर इन्न लोगों ने उसको रास्ते से उठा लिया....
"तो इन लोगों को कैसे पता चला....?" मानव ने पूचछा और सीमा के हाथ से मोबाइल निकाल कर हॅरी का नंबर. डाइयल किया.... उस वक़्त सीमा की नज़रें एक बार फिर झुक गयी थी... पर मानव का ध्यान उस पर रह नही सका....
"ययए तो ऑफ आ रहा है.... ये बॉस कौन है?" मानव के दिमाग़ में हथोदे से बजने लगे थे....
"पता नही सर... मेरे पास तो उनका नंबर. भी नही है....!" सीमा ने चेहरे पर मासूमियत झलकाते हुए कहा.....
"साली रंडी... तेरी जान ले लूँगा अगर पिंकी को कुच्छ हुआ तो...." मानव का चेहरा पसीने से भीग गया था... उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे और क्या नही... वक़्त ज़्यादा था नही... आनंफानन में मानव ने खुद ही मंत्री के पास फोन करने की सोची... पर उधर घंटी जाते ही मानव ने फोन काट दिया और पिछे मुड़ा...,"सीमा... अब तक तो शायद मैं तुम्हे छ्चोड़ता नही था... पर अगर तुम इन्न लोगों तक मुझे आज ही पहुँचा सको तो मैं सच में तुम्हे इस केस से बाहर करवा दूँगा.... प्लीज़...!" मानव का लहज़ा आसचर्यजनक ढंग से नरम पड़ गया था....
"पर.. मुझे पता नही है कि आज ये कहाँ होंगे...?" सीमा ने सहमी आवाज़ में जवाब दिया....
"मंत्री का नंबर. मिल रहा है... इस तक पहुँचा सकती हो?"
"कैसे सर?"
"बात करके...अपने मोबाइल से... कैसे भी...!" मानव ने उसको उसका मोबाइल दे दिया....
"ठीक है सर... मैं कोशिश कर दूँगी....!" सीमा ने एक गहरी साँस लेने के बाद कहा और कॉल बटन दबा दिया... उसके पास और कोई चारा था भी नही.....
"हेलो!" सीमा ने यथासंभव मधुर आवाज़ में बोला....
"कौन है...?"
"मैं हूँ...?" सीमा ने अंधेरे में तीर चलाने की सोची...
"मैं कौन साली... भेजा क्यूँ गरम कर रही है मेरा....?" मुरारी नशे में अकेला बिस्तर पर पड़ा था....
"अरे मैं हूँ...मैं घर से भाग कर आ गयी हूँ जान...अब कहाँ आना है बोलो... एक मिनिट... तुम शक्ति ही बोल रहे हो ना?"
"हां हाँ.. एक मिनिट..." सीमा की बात सुनकर मुरारी की अधूरी हसरतें एक बार फिर जवान हो उठी... यकायक उसने अपनी आवाज़ में परिवर्तन करके जवान होने का ढोंग करने की कोशिश शुरू कर दी....," तुम कहाँ हो... म्मै तुम्हे लेने भेजता हूँ....!"
"म्मैई..." मानव के इशारे पर सीमा ने अपनी बात बदल दी... तुम बता दो ना... मैं आ जाउन्गि.. मेरे पास गाड़ी है....!"
"तुम रेस्ट हाउस आ जाओ.... कहना मुरारी जी के रूम में जाना है... 102 में...!" नशे में मुरारी भूल ही गया कि वो 'शक्ति' है....,"ववो... वो मैने यहाँ नाम बदला हुआ है ना जान!"
"ठीक है... मैं आ रही हूँ वहीं.....!" सीमा ने कहकर फोन काट दिया.... मानव का चेहरा तमतमा गया और उसका बयाँ पैर आक्सेलाटोर पर दबाता चला गया.....
"तुम्हे क्या सच में नही मालूम की बॉस कौन है...?"
"नही सर..... सर.. मैं आपको अपनी तरफ से पूरा सहयोग करूँगी... सर.. आप चाहे कुच्छ भी.... कर लो... पर प्ल्ज़ मुझे छ्चोड़ देना सर..." सीमा ने गियर पर रखे मानव के हाथ पर अपना हाथ रखने की कोशिश की.. पर जैसे ही मानव ने अपने तमतमाए हुए चेहरे से उसकी और घूरा.. वह कंपकंपा कर पिछे हाथ गयी.....
चलते चलते ही मानव ने अपना फोन निकाला और मीनू का नंबर. मिला दिया... मीनू भी अभी तक जाग ही रही थी... चुपके से चारपाई से उठकर वो बाथरूम में आई और फोन उठाया...,"कुच्छ पता लगा मानव?"
"मीनू.. ववो..." बोलते हुए मानव का गला भारी हो चला था...,"अंजलि अब नही है... ववो.. पिंकी भी....!"
"क्याआआआआ...." बड़ी मुश्किल से मीनू अपनी चीख निकालने से रोक पाई.....
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"कुच्छ याद आया हरामी स्साली...?"
एक अंजान जगह पर स्थित कोठी के एक कमरे के कोने में अपनी ही बाहों में सिमटी हुई खड़ी बुरी तरह भयभीत पिंकी को घूरते हुए अजय ने पूचछा... उसी कमरे में हॅरी को एक कुर्सी पर बँधकर बिठाया गया था.... सुनील के हाथों में थामे वीडियो कमरा का फोकस हॅरी और पिंकी ही थे.... ऐसा प्रतीत हो रहा था कि 'इस' हादसे ने दोनो को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है.... हॅरी अपनी तरफ से हर तरह से मिन्नतें और गुज़ारिश कर चुका था... पर हैवानो के हुज़ूम पर उसकी बातों का क्या असर होता भला.....!
"म्म्माइने क्या किया है? हमें छ्चोड़ दो ना प्लीज़!" थर थर काँप रही पिंकी शुरू से यही रट लगाए हुए थी.....
"अच्च्छा! अब निकल गयी सारी हेकड़ी तेरी... तुझे याद है ना तरुण ने क्या कसम खाई थी... याद आया कुच्छ? अब गिन ले तेरे सामने कितने आदमी हैं... पूरे चार ही हैं ना? हा हा हा! तरुण भाई की आख़िरी इच्च्छा तो हमें पूरी करनी ही पड़ेगी....!" धीरे धीरे सरकता हुआ अजय पिंकी के पास जा पहुँचा.... पिंकी अजय और उसके साथ खड़े होकर दाँत निकाल रहे तीन लोगों के इरादे भाँप कर बुरी तरह रोने लगी थी...
"भाई साहब प्लीज़... इसको छ्चोड़ दो..तुम चाहो तो मुझे गोली मार दो.... ये..ये बहुत मासूम है....इसने तुम्हारा क्या......?" लाख बार चुप रहने की धमकी मिलने के बावजूद हॅरी से पिंकी की ये दशा देख रहा ना गया....
"चुप कर बे... तुझे कितनी बार बोलना पड़ेगा... ये क्या कम है कि अब तक हमने इसके शरीर को नोचना शुरू नही किया है.... 'ये' स्साली मासूम है तभी तो इसको खुद ही कपड़े निकाल देने को बोल रहे हैं... वरना तो अब तक... अब की बार एक शब्द भी बोला ना तो तेरे सामने ही खोल देंगे इसको..." अजय एक बार फिर हॅरी की तरफ देख कर गुर्राया और फिर पिंकी की तरफ मूड गया...,"चल... निकाल दे ना... दिखा ना अपने बदन की गर्मी!"
"नही... प्लीज़.." जैसे ही अजय ने पिंकी के गाल को अपने हाथ से च्छुआ.. पिंकी का पूरा बदन च्छुईमुई की तरह मुरझा सा गया...,"प्लीज़ भैया....!"
"भैया बोलती है साली...!" और उस दरिंदे ने एक ज़ोर का तमाचा पिंकी के गालों पर जड़ दिया...,"ये सब तूने उस वक़्त क्यूँ नही सोचा जब तू तरुण को चप्पल से पीट रही थी बोल....!"
पिंकी इस मार से बुरी तरह बिलख उठी...,"ववो.. वो मुझे छेड़ रहा था... प्लीज़ मुझे छ्चोड़ दो...!" इस बार पिंकी की 'भैया कहने की हिम्मत ना हुई....
"अच्च्छा... छेड़ तो मैं भी रहा हूँ... चल मार मुझे.... आजा...!" अजय उसके सिर पर खड़ा होकर गुर्राया....
"नही... प्ल्ज़...!"
"अच्च्छा चल बता... उस दिन तरुण ने क्या कसम खाई थी... बोल!"
"मंमुझे नही...." और पिंकी के सामने कुच्छ दिन पहले का वो दृशय कौंध गया जब तरुण दरवाजे पर खड़ा होकर कह रहा था कि अगर 4-4 मर्दों से उसको नही रौुन्डवाया तो उसका नाम बदल देना.... पिंकी सिहर उठी... उसको नही मालूम था कि तरुण की कसम 'उसको' इस मुकाम पर लाकर छ्चोड़ देगी.....,"म्मैइन.. मैं आपसे दया की भीख माँग रही हूँ... हमें छ्चोड़ दो प्ल्ज़... मुझे माफ़ कर दो... "
"तू अपने आप कपड़े निकालेगी या हमें तेरी चिकनी जवानी को अपने हाथों से ही नंगी करना पड़ेगा... जल्दी कर....!" अजय एक बार फिर गुर्राया.....
"भाई साहब प्ल्ज़...." हॅरी जैसे ही इस बार बोला, अजय ने रेवोल्वेर निकाल कर उस पर तान दी....," कल्लू!... पहले इसको ठोक साले को... ये बीच में ऐसे ही चिक्चिक करता रहेगा नही तो.... स्साला... बाहर लेजाकार इसके भेजे में ठोक दे दो चार गोली....!"
जैसे ही कमरे में खड़े बाकी तीन लोगों में से एक हॅरी की तरफ बढ़ा, पिंकी मिमिया उठी..,"नही प्ल्ज़... म्म्मै... मैं निकाल रही हूँ... इसको कुच्छ मत कहो....!"
"चल शाबाश! रहने दे कल्लू... इस हसीना के कहने से एक बार और माफी सही... चल शाबाश... निकाल दे... एक एक करके सारे निकाल कर नंगी हो जा अपने आप!... प्यार से निकालेगी तो प्यार से मारेंगे तेरी.. मेरा वादा है... हा हा हा...!" अजय ने कल्लू को रोक दिया.....
पिंकी का चेहरा बुरी तरह पीला हो चला था.... जिसको कुच्छ भी करने देने की छ्छूट देकर अपनी आँखों में जाने अपने यौवन को पुलकित करने की कितनी ही सुन्दर कल्पनायें निर्मित कर पिंकी आज बाहर आई थी... उसी के सामने खड़े होकर कुच्छ दरिंदे उसको जॅलील करने की तैयारी कर चुके थे... पिंकी का चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था... हॅरी अवाक सा सब कुच्छ देख रहा था... पर दोनो बेबस थे... एकद्ूम लाचार....
"चल अब निकाल... ऐसे मुँह पिचकाय क्या सोच रही है...!" अजय ने जैसे ही कहा, उसका मोबाइल बज उठा...,"एक मिनिट... चुप रहो सब... हां प्रेम भाई!" अजय ने फोन कान से लगा लिया.....
"क्या चल रहा है उधर...?" प्रेम ने पूचछा.....
"कुच्छ नही... बस वही सब.... साली टाइम बहुत लगा रही है....अभी तक कपड़े भी नही निकाले.... पता नही बॉस चाहते क्या हैं... हे हे हे... हमें मनमानी नही करने दे रहे... हे हे हे...!" अजय ने बोलते हुए पिंकी के कंधे पर हाथ रख लिया.... पिंकी कसमसा उठी.....
"बात करा ना एक बार.... बॉस का फोन ही नही लग रहा....!" प्रेम ने कहा.....
"आज नही लगेगा... बॉस आज बहुत बिज़ी हैं...!" अजय ने जवाब दिया और वापस जाकर हॅरी की कुर्सी पर पैर रख लिया....
"इसीलिए तो कह रहा हूँ यार... तू तेरे फोन से करा दे बात एक बार.... 'वो' मामला तो सेट कर दिया... मंत्री भी निसचिंत होकर सो गया होगा.... मुझे क्या करना है अब....?"
"बताया ना यार बॉस आज फोन नही ले सकते... मामला सेट कर दिया ना! बहुत बढ़िया.......और दूसरी का?"
"मेरे साथ ही है... पिछे पड़ी है डिग्जी में... मामू लोगों की बहुत प्राब्लम होती है यार रात में.... बहुत परेशान कर रही थी....पता नही कब झमेला खड़ा कर दे...!" प्रेम ने बताया....
"घर जाकर सो जा आराम से..... सुबह देखेंगे..." अजय ने कहा और तुरंत अपनी बात से पलट गया..,"नही नही.. एक मिनिट... यहीं आजा... 1012 में.... हम सब यहीं हैं...!"
"आच्छि बात है... मैं वहीं आ जाता हूँ... यहाँ से ज़्यादा दूर भी नही है...!" प्रेम ने कहकर फोन काट दिया......
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"मुझे बहुत डर लग रहा है मानव... अब क्या होगा? पापा शहर पहुँचने वाले हैं... तुम्हारे पास दोबारा फोन करेंगे शहर आते ही.... मैने अभी अंजलि के बारे में नही बताया उनको...! पिंकी... ठीक तो होगी ना"
"हॅरी का भी फोन नही लग रहा... पर तुम फिकर मत करो...सब ठीक हो.... एक मिनिट... फोन रखो...." मानव ने तुरंत कहा और मीनू का फोन होल्ड पर डाल लिया...,"हां मिश्रा...?"
"सर.. 'वो' नंबर. ट्रेस हो गया है... अभी एक दूसरे नंबर. से बात हुई हैं उसकी... कहो तो सुनाउ?" मिश्रा ने उधर से कहा....
"कुच्छ काम की बात है क्या?" मानव ने जल्दी जल्दी में पूचछा... उसने रेस्ट हाउस से कुच्छ पहले ही गाड़ी रोक दी थी....
"कुच्छ खास पता नही चल पाया बातों से... उसको कहीं '1012' में बुलाया है... ये नही पता कहाँ का 1012... बाकी कुच्छ और भी बातें हैं...! मामला सेट करने की...."
"1012....." मानव अपना सिर खुजाते हुए बड़बड़ाया... "एक मिनिट...ये... 1012 क्या है...?" मानव ने सीमा का रुख़ किया.....
"सेक्टर 37 में किराए की कोठी है सर.. हम कभी कभी वहाँ जाते हैं...!" सीमा ने अनमने ढंग से जवाब दिया....
"क्या? मतलब इसी शहर में?" मानव को कुच्छ उम्मीद बँधी....
"हाँ... क्यूँ?" सीमा ने पूचछा.....
"फोन रखो मिश्रा... ज़रूरत पड़ी तो मैं फिर कॉल कर लूँगा... नाइट ड्यूटी है ना?"
"जी सर....!" मिश्रा ने बताया...
मानव ने फोन काटा और तुरंत गाड़ी को यू-टर्न दे दिया...,"प्रेम को पता होगा ना कि पिंकी कहाँ है?"
"पता नही.. शायद पता हो...! अब आप रेस्ट हाउस नही चल रहे क्या?" सीमा ने पूचछा....
" अब तुम चुप रहो... प्रेम 1012 में आ रहा है... मंत्री से ज़्यादा 'वो' काम का है...." मानव ने कहा और फिर एक फोन किया...,"इनस्पेक्टर मानव बोल रहा हूँ...सारे चौराहों से चेक पोस्ट हटा लो... सेक्टर. 37 के अंबेडकर चौंक पर 4 आदमी भेज दो... सादी वर्दी में....! पोलीस की गाड़ी मत लाना साथ...."
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"आज तो कमाल हो गया यार... कहीं भी पोलीस वाले नही...." प्रेम ने अंदर आते ही हॅरी को कुर्सी पर बँधे देखा तो उच्छल पड़ा...,"ययए........" वह कुच्छ बोल ही रहा था कि अजय ने उसको टोक दिया...,"चुप... बॉस का आदेश है.. तुम्हारी जान पहचान का है क्या?"
"आ..न..नही.. कुच्छ नही... तुम लोग 'काम' कब शुरू करोगे....!"
"चल रहा है... चल उतार भी दे कपड़े जाने मॅन... क्यूँ तरसा रही है इतना.. हम तेरे यार को ठोक देंगे तब उतारेगी क्या? इसको भी तो दर्शन करा दे अपनी कमसिन जवानी के...." अजय फिर से पिंकी की तरफ बढ़ गया.....
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"जैहिन्द जनाब!" अंबेडकर चौंक पर पोलीस वाले मानव से पहले ही पहुँच चुके थे.....
"ये लो..." मानव ने नीचे उतारकर चाबी एक आदमी की तरफ उच्छाल दी....,"अंधेरे में खड़ी कर दो इसको..." मानव ने कहा और सीमा का हाथ पकड़ कर पोलीस वालों द्वारा लाई गाड़ी में बैठ गया....," पहले मैं जाउन्गा अंदर... इस लड़की के साथ..... तुम लोग बाहर रहना.. एकदम चौकस... कोई भागे तो सीधी गोली मार देना सस्सलों को....!" मानव ने कहा और गाड़ी 1012 की तरफ चल पड़ी.....
"तुम समझ रही हो ना... तुम मुझे अंदर लेकर जाओगी...अपना साथी बताकर.... कोई भी लोचा हुआ तो सबसे पहले मैं तेरे सिर में गोली थोकुन्गा...." मानव ने सीमा की तरफ देख कर कहा....
"ठे.. ठीक है सर....!" सीमा सहम कर बोली....
तभी मानव का फोन बाज उठा...,"बेटा.. म्मै पहुँच गया... बस-स्टॅंड के पास खड़ा हूँ बाइक पर.... कुच्छ पता लगा क्या पिंकी का?" पिंकी के पापा की आवाज़ थॅरेयी हुई थी....
"आप फिकर ना करें पिताजी... मैं बहुत जल्द उसको ढूँढ लूँगा....!" मानव ने भी भर्रए गले से उनको शंतवना देने की असफल कोशिश की....
"पर मैं अब क्या करूँ...? यहीं खड़ा रहूं क्या...?" पापा ने पूचछा.....
"नही... मैं भेजता हूँ आपके पास... किसी को....!" मानव ने जवाब दिया.....
गतान्क से आगे..................
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