RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--50
गतान्क से आगे..................
"चल.. आगे चल... बोलना तू मुझे लेकर आई है....!" मानव 1012 से करीब 100 गाज पहले ही सीमा के साथ गाड़ी से उतर गया था.....
"ज्जई... आप चुप ही रहना वहाँ... मुझे प्रेम दिखेगा तो मैं आपको इशारा कर दूँगी... आप.. मुझे छ्चोड़ देंगे ना....!" सीमा ने याचना से मानव की तरफ देख कर कहा...
"पहले काम तो कर....!" मानव ने तेज़ी से चलते हुए अपने रेवोल्वेर में गोलियाँ चेक की... सब 'सेट' था.....
"ज्जई... आइए...!" सीमा दरवाजे पर आकर खड़ी हुई तो मानव ने उसके गले में बाँह डाल ली....
"सीमा तू?" घंटी बजाने पर बाहर आई डॉली सीमा को देख कर थोड़ी अचंभित सी हुई और फिर नज़र उपर करके मानव की और देखा...,"प्रेम तो अभी आकर बता रहा था तू किसी लौंडिया को लाने की बात कह रही थी... ये कौन है?"
मानव ने मुस्कुरकर डॉली की ओर अपनी आँख दबा दी... पर कुच्छ बोला नही....
"आए... अपनी औकात में रह स्साले... तेरे जैसे बहुत देखे हैं... ज़्यादा स्मार्ट बन रहा है क्या?" डॉली मज़ाक में ही, पर थोड़ा बिफर कर बोली....
"डॉली... ये उसका बॉयफ्रेंड है... बाकी कौन है यहाँ....?" सीमा ने बीच बचाव करते हुए कहा....
"सभी हैं... क्यूँ? लड़की कहाँ है?" डॉली ने घूम कर आगे चलते हुए पूचछा....
"मुझे प्रेम से बात करनी है... वो कहाँ है...?" सीमा ने फिर पूचछा....
"बैठो... मैं बात करती हूँ उस'से....!" डॉली ने एक बार फिर इतरा कर मानव की तरफ देखा और मटकती हुई आगे बढ़ गयी....
जहाँ उस वक़्त मानव और सीमा बैठे थे.... वहाँ से ये अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल था कि इस मकान में कुच्छ ख़तरनाक भी चल रहा होगा.... वहाँ सुनाई दे रहे तेज़ म्यूज़िक से ज़्यादा से ज़्यादा ये अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि अंदर कोई पार्टी चल रही हो सकती है.... मानव की बेचैनी बहुत बढ़ गयी थी... पर वह जानता था कि जल्दबाज़ी से खेल बिगड़ सकता है.... फिर 'वो' शायद पिंकी तक पहुँच ही ना सके... इसीलिए वह शांत ही बैठा था....
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डॉली ने अंदर जाकर बुरी तरह फफक फफक कर उन्न ज़ालिमों के सामने रो रही पिंकी पर एक सरसरी निगाह डाली.... 'हॅरी' को उनके ज़ुल्म से बचाने की कवायद में पिंकी ने अपनी इज़्ज़त को नीलम होने देने का मंन बना लिया था.... कमीज़ निकाल देने के कारण उसके समीज़ से झलक रही जवानी को 'कुच्छ' क्षण तक ही सही, पर च्छुपाने के लिए वह अपने दोनो हाथों में अपनी छातियो को च्छुपाए रखने का जतन कर रही थी...... उसकी आँखों से लगातार बह रहे आँसुओं से उसका समीज़ गीला होता जा रहा था....
"आए... बहुत मज़ाक हो गया अब... रोना छ्चोड़ और बाकी कपड़े उतार डाल... आख़िरी बार कह रहा हूँ वरना अब हम खड़े होकर आ रहे हैं तेरे उपर.... फिर बरी बरी नही.. एक साथ ही करेंगे.... सोच ले... तेरे पास आख़िरी पाँच मिनिट और हैं.....!" अजय ने गुर्रकार कहा और उसके पास जाकर उसके हाथ खींच कर छातियो से दूर हटा दिए...,"साली की चूचियाँ तो देखो... कैसे तनी हुई हैं.. इस हालत में भी....!"
"प्रेम... ववो सीमा आई हुई है नीचे.... उसके साथ एक लड़का भी है....!" डॉली ने अपना ध्यान पिंकी से हटाकर कहा....
"सीमा...? पर ववो यहाँ कैसे आ गयी...? मैने तो उसको बताया भी नही...." प्रेम दुविधा में पड़कर बोला...,"और वो तो कोई लौंडिया लाने की बात कर रही थी... लड़का कौन है?"
"वो कह रही है कि उस लड़की का बाय्फ्रेंड है.....!" डॉली ने बताया.....
"अरे हां याद आया.... पर लड़के को ऐसे यहाँ थोड़े ही लाना चाहिए था.... ईडियट! चल मैं देखता हूँ..." प्रेम ने कहा और उसके साथ बाहर निकल कर आ गया....
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"हेलो बॉस!" प्रेम ने जाते ही मानव की तरफ हाथ बढ़ाया....,"लड़की कहाँ है...?"
"आ जाएगी...!" मानव ने अपने आवेगो को काबू में करके सहज भाव से कहा....
"एक मिनिट... सीमा... तुम मेरे साथ आना...!" प्रेम सीमा का हाथ पकड़ कर बाहर की ओर ले चला.... मानव उनके पिछे पिछे चल पड़ा....
"तुम यहीं रूको बॉस... आराम से बैठो.. मुझे कुच्छ पर्सनल बात करनी है....!" प्रेम ने हाथ बढ़कर इशारा किया....
"ओके...!" खुशकिस्मती से वो लोग बाहर ही जा रहे थे... इसीलिए मानव ने कुच्छ क्षण का वेट करना मुनासिब समझा.... वह उनके दरवाजा खोल कर बाहर जाने का वेट करता रहा.....
"आए... तुम कहाँ चल दिए... यहीं बैठने को बोला है ना?" मानव उठने लगा तो डॉली बिफर कर बोली....
"बस एक मिनिट.... अपनी गर्लफ्रेंड को ले आता हूँ....!" मानव पलटा और मुस्कुरकर बोला.....
"कहा ना चुपचाप बैठ जाओ... उनको अंदर आने दो....!" डॉली तुनक पड़ी....
मानव धीरे से उसके पास आया," वो तो अब गये... वो अब वापस नही आएँगे... तुम्हे भी जाना है क्या?"
"आए.. क्या मत... उम्म्म्म..उम्म्म्म..." और डॉली की बोलती बीच में ही बंद हो गयी.... मानव ने उसका मुँह दबाकर अपने साथ ही घसीट लिया था.... बाहर की ओर...
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"जनाब इधर....!" झाड़ियों में दुबके पोलीस वालों में से एक की आवाज़ आई...," इस लड़की ने इसको बता दिया कि आप पोलीस वाले हो.... ये फोने कर रहा था कहीं... हमने दबोच लिए..... स्साले!"
मानव ने धक्का देकर डॉली को भी उनके साथ ही नीचे डाल दिया और घुटना टेक कर रेवोल्वेर की नोक प्रेम के माथे पर अड़ा दी....,"जल्दी बता पिंकी कहाँ है.. वरना यहीं ठोक दूँगा स्साले को....!"
प्रेम ने घबराकर लेते हुए ही अपने हाथ उठा लिए....,"प्ल्ज़ साहब.. गोली मत चलना.. मुझे नाम नही पता... पर एक लड़की..... अंदर है...!"
"क्या? यहाँ...!" मानव ने चौंक कर कोठी की तरफ देखा....,"यहाँ अंदर?"
"ज्जई साहब...!" प्रेम की आँखें भय के मारे फैल गयी थी....
"कितने लोग हैं अंदर तुम्हारे ....?"
"ज्जई.. पाँच....!"
"बॉस?"
"ज्जई...!"
"सुशील, पूरी...!.. तुम इन्न तीनो को संभलो... कोई बकबक करे तो सीधी ठोक देना अंदर... बाकी जल्दी आओ मेरे साथ.... जल्दी..!" मानव कहते ही सीधा अंदर की और भागा...... बाकी दो पोलीस वाले भी तुरंत उसके पिछे हरकत में आ गये.....
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"कहा था ना सिर्फ़ पाँच मिनिट हैं तेरे पास....!" अजय ने कहा और पिंकी के पास जाकर उसके हाथ पिछे मॉड्कर अपने हाथ में पकड़ लिए.... पिंकी बुरी तरह सीसीया उठी.....,"अयाया... प्लीज़.....!"
"साली... बोल... कहा था ना?" अजय ने कहा और पिंकी के समीज़ में हाथ डाल कर उसको खींच लिया.... मानवता नंगी हो कर त्राहि त्राहि कर उठी... पिंकी का करूँ क्रंदान देख कर भी उन्न काफिरों का दिल नही पिघला.....
"आए हाए.... मेरी जान... क्या माल है तू...? बाहर से तो ऐसी नही...." अजय बोल ही रहा था कि अचानक पिछे से आवाज़ आई...,"आएय यू!"
"तुम यहाँ कैसे... आ!" पलट कर अजय मानव को ज़्यादा देर घूर नही सका... गोली सीधी उसके माथे के बीचों बीच घुस गयी थी.... उसके हाथ में थमा पिंकी की इज़्ज़त, उसकी समीज़ का टुकड़ा हवा में लहराया और ज़मीन पर अजय की लाश के साथ ही गिर गया....
तभी कल्लू के हाथ में रेवोल्वेर चमकी और अगले ही पल उसके खून के छ्चींटों से दीवार लाल हो गयी....
बदहवास सी खड़ी पिंकी कुच्छ देर तो जैसे कुच्छ समझ ही नही पाई...... अचानक जैसे ही इस सुखद अन-होनी से उसकी आँखें रूबरू हुई... उसके शरीर में तुरंत प्रतिक्रिया हुई और वह रोटी हुई भाग कर 'ऐसे' ही मानव से लिपट गयी... अब उसका रुदन और भी बढ़ गया था....
बाकी बचे दोनो लोग हाथ उपर करके सहमे हुए खड़े थे.... मानव ने अपने पिछे खड़े पोलीस वालों को कोठी का कोना कोना छान देने का आदेश दिया और फिर कुर्सी पर बँधे बैठे 'हॅरी' पर नज़र डाली...,"तुम तो वही हो ना जो....!"
अब जाकर पिंकी को अपनी हालत का ध्यान आया था... वह तुरंत कसमसा कर मानव की छाती से अलग हुई और भागकर अपना कमीज़ उठा लिया... उसके बाद वह कमरे के कोने में खड़ी होकर फूट फूट कर सुबकने लगी.....
"सब ठीक हो जाएगा पिंकी.... कमीज़ पहन लो जल्दी...!" मानव के कहा और कुर्सी पर बँधे हॅरी को खोलने लगा.....
"सॉरी सर... मेरी वजह से....!" हॅरी के चेहरे पर अप्रध्बोध साफ पढ़ा जा सकता था.....
"बाद में बात करेंगे...." मानव ने कहकर फोन निकाला सबसे पहले मीनू को पिंकी के ठीक होने की सूचना दी....
"पर... पर वो बाहर क्यूँ गयी...?" पिंकी की आँखों में भी खुशी के आँसू छलक उठे थे.....!"
"वही....!" मानव ने गहरी साँस ली..,"इश्क़ विश्क़... प्यार व्यार....!"
"क्या? हॅरी के साथ...?" मीनू चौंक पड़ी.....
"हाआँ... यहीं बैठा है.... बेचारा!" मानव ने हॅरी की तरफ घूर कर देखा....
"और अंजलि...?" बोलते हुए मीनू का गला सा रुंध गया था.....
"मम्मी को बता दो पिंकी ठीक है... मेरे साथ है.... मैं बाद में फोन करता हूँ....!"
"हाँ... मम्मी मेरे साथ ही बैठी है...!"
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"जनाब कुच्छ नही मिला..... हमने पूरा घर छान लिया....!" दोनो पोलीस वाले वापस आ गये थे.....
"कुच्छ नही यार... बॉस को ढूँधो... 'वो' भी यहीं था.....!"
"जनाब.. कोई नही है... पिछे का दरवाजा खुला है.. लगता है भाग गया...!" पोलीस वाले ने अफ़सोस जताया....
"अब कहाँ जाएगा.... इन्न दोनो को साथ ले लो...!" मानव के इशारा करते ही पोलीस वालों ने बाकी जिंदा बचे दोनो लोगों के कॉलर्स पकड़ लिए.....
"तुम क्या सोचकर पिंकी को हॉस्टिल से बाहर लाए थे हॅरी....?" अब कमरे में सिर्फ़ 'वो' तीन ही बचे थे... हॅरी और पिंकी दोनो सिर झुकाए खड़े थे....
"सॉरी सर... ववो.. आक्च्युयली....!" हॅरी ने कुच्छ कहने की कोशिश की थी....
"तुम अब ये कहोगे की तुम इस'से प्यार करते हो.. वग़ैरह वग़ैरह.... पर सोच कर देखो.. क्या ये प्यार है...? क्या ये प्यार की उमर है इसकी....? कम से कम ऐसे हॉस्टिल से निकाल कर तो नही लाना चाहिए था..... तुम समझ रहे होगे मैं क्या कहना चाहता हूँ....!" मानव ने बड़प्पन के नाते कहा....
हॅरी से कुच्छ बोलते नही बन पा रहा था.... अचानक पिंकी ही उसके बचाव में आगे आ गयी,"म्म्मैने ही इसको बोला था... मैं सिर्फ़ दस मिनिट के लिए बाहर आई थी... इस'से बात करने..." हालाँकि नज़रें पिंकी की भी अब शर्म से झुकी हुई थी...
"जनाब.... ववो... इस लड़की के पापा आए हैं...बाहर खड़े हैं... आपने बोला होगा जगदीश को...!" एक पोलीस वाले ने आकर बताया.....
"हां... हां.. चलो...!" मानव ने पिंकी का हाथ पकड़ा और उसको लेकर बाहर निकल गया.....
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"उस कामीने की हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को हॉस्टिल से बाहर लाने की.... कहाँ है ववो....!" नीचे पिंकी के पापा ये जान'ने के बाद कि पिंकी ठीक है; हॅरी पर भड़क रहे थे.....
"ताउ आ रहे हैं ना... शुक्र करो.. कम से कम तुम्हारी बेटी बच गयी.. वरना...!"
"लो आ गये.... जनाब.. आप इनसे ही बात कर लो...!" दूसरे पोलीस वाले ने कहा....
पिंकी अपने पापा से नज़रें मिलने का साहस नही कर पा रही थी... आख़िरकार हॉस्टिल से बाहर तो 'वो' अपनी मर्ज़ी से ही आई थी ना.... अपने पापा के तेवर देख पिंकी मानव के पिछे ही च्छुपकर खड़ी रही.....
पापा ने भी शायद उस'से वहाँ बात करना मुनासिब नही समझा... पर पिछे आते हॅरी को देखते ही अचानक वो उसकी ओर लपके...,"साले... कुत्ते... कामीने...!"
अच्च्छा हुआ जो मानव ने बीच बचाव करा दिया..,"आप धैर्य रखिए पिताजी... ये बातें बाद में भी हो सकती हैं.... समझने की कोशिश करें.....!"
"पर इसको छ्चोड़ना नही कमिने को.... मैं इसके खिलाफ एफ.आइ.आर. कारवँगा....!" पापा ने पिछे हट'ते हुए कहा.....
"वो पाँचों कहाँ हैं....?" मानव ने एक पोलीस वाले से पूचछा.....
"गाड़ी में डाल लिया है जनाब...! क्या करना है बताइए.....?"
"इसको भी ले चलो... उनके साथ..." मानव ने मुड़कर हॅरी की तरफ आँख मारी और फिर उसका हाथ पकड़ कर कुच्छ दूर उसके साथ चला गया....,"मैं समझता हूँ यार... हो जाता है... पर 'वो' तो पापा हैं ना! आज मेरे थाने में रहना और सुबह निकल जाना.... मैं बात कर लूँगा... पर अभी पढ़ने दो यार इसको...!"
"जी.. थॅंक योउ सर!" हॅरी ने मानव का हाथ दोनो हाथों में थाम लिया....
"और उनका क्या करना है जनाब....?" साथ साथ चल रहे एक पोलीस वाले ने पूचछा....
"करना क्या है... खाल उतार दो सबकी... सुबह तक मुझे इनकी सारी डीटेल्स चाहियें... और हाँ... 'वो' प्रेम...! उसको अलग डाल लेना.... शायद 'वो' बॉस को जानता होगा... मैं आ रहा हूँ तुम्हारे साथ ही....!" मानव ने कहा और वापस मूड गया....
पोलीस वालों ने तब तक आ चुकी वॅन में सबको बिठा लिया.... सब हताश नज़रों से एक दूसरे को देख रहे थे.... उनका खौफनाक साम्राज्य अब धूल-धूसरित हो चुका था....
"सब ख़तम हो गया! इस साली सीमा ने सब मॅटीया-मेट कर दिया...." प्रेम ने इधर उधर देखा और एक लंबी साँस लेकर धीरे से कहा.....
अचानक पिछे गोली चलने की आवाज़ सुनकर आगे बैठे पोलीस वाले स्तब्ध रह गये... भाग कर पिछे आए तो देखा प्रेम गाड़ी में नीचे पड़ा है और उसके मुँह से खून बह रहा है....
"ययए.. ये क्या किया आपने?... मुझे क्यूँ.. आहह" प्रेम बिलबिलता हुआ हॅरी की ओर आँखें फ़ाडे देखता रहा....
इस'से पहले हॅरी दूसरी गोली चला पाता.. पोलीस वाले उसको काबू में कर चुके थे....
"क्या हुआ? गोली क्यूँ चलाई...." मानव लगभग भागता हुआ गाड़ी में चढ़ा था....
"जनाब... इस'ने... इसने इस पर गोली चला दी....!" पोलीस वाले ने हॅरी की और इशारा किया..... प्रेम बेसूध हो चुका था....
"जल्दी करो.... गाड़ी पहले हॉस्पिटल लेकर जाओ.. ये मारना नही चाहिए...!" मानव ने कहा और हॅरी को वापस नीचे खींच लाया....,"क्यूँ किया तुमने ऐसा...?"
"साले उसी की वजह से ये सब हुआ.... मुझे उसकी जान लेने दो प्लीज़.... मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ....!" हॅरी की आँखों से मानो खून टपक रहा हो....
"उसकी वजह से...? पर वो तो बाद में आया था... और... और तुम्हारे पास रेवोल्वेर कहाँ से आई 'वो'?" मानव ठिठक कर अचानक खड़ा हो गया.....
"ववो.. वो मैं अंदर से लाया था... उस आदमी की उठाकर जिसने आप पर गोली चलाने की कोशिश की थी.....!" हॅरी ने जवाब दिया....
"शिट यार... तुम्हे नही पता ववो हमारे कितने काम का आदमी था.... उसको कुच्छ हो गया तो मैं तुम्हे छ्ोड़ूँगा नही, देख लेना..... चल...!" मानव ने गुस्साए लहजे में कहा.....
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"हां मिश्रा... अब सुना 'वो' रेकॉर्डिंग... देखें कुच्छ काम का है कि नही...." मानव ने थाने में आते ही कहा.... पिंकी और उसके पापा को उसने 'अपने' ही घर भेज दिया था शहर में.... हॅरी उसके सामने ही कुर्सी पर बैठा हुआ था....
"2 मिनिट लगेंगे सर...! आप होल्ड करना...!" मिश्रा की आवाज़ आई....
"हां ठीक है..." मानव ने फोन का लाउडस्पिकर 'ऑन' करके टेबल पर रख लिया...,"हॅरी!"
"जी सर...!"
"सॉरी.. तुम्हारे लिए एक काम है...!"
"ववो.. वो मैं कल सुबह बताउन्गा...!" मानव मुस्कुरा दिया... तभी फोन पर मिश्रा की आवाज़ उभरी..,"हेलो सर..?"
"हां मिश्रा!"
"लीजिए सुनिए..." मिश्रा ने कहा और 'टेप' की लाइन फोन के साथ कनेक्ट कर दी...
"क्या चल रहा है उधर...?"
"कुच्छ नही... बस वही सब.... साली टाइम बहुत लगा रही है....अभी तक कपड़े भी नही निकाले.... पता नही बॉस चाहते क्या हैं... हे हे हे... हमें मनमानी नही करने दे रहे... हे हे हे...!"
"बात करा ना एक बार.... बॉस का फोन ही नही लग रहा....!"
"आज नही लगेगा... बॉस आज बहुत बिज़ी हैं...!"
"इसीलिए तो कह रहा हूँ यार... तू तेरे फोन से करा दे बात एक बार.... 'वो' मामला तो सेट कर दिया... मंत्री भी निसचिंत होकर सो गया होगा.... मुझे क्या करना है अब....?"
"बताया ना यार बॉस आज फोन नही ले सकते... मामला सेट कर दिया ना! बहुत बढ़िया.......और दूसरी का?"
"मेरे साथ ही है... पिछे पड़ी है डिग्जी में... मामू लोगों की बहुत प्राब्लम होती है यार रात में.... बहुत परेशान कर रही थी....पता नही कब झमेला खड़ा कर दे...!"
"घर जाकर सो जा आराम से..... सुबह देखेंगे..." ,"नही नही.. एक मिनिट... यहीं आजा... 1012 में.... हम सब यहीं हैं...!"
"अच्च्ची बात है... मैं वहीं आ जाता हूँ... यहाँ से ज़्यादा दूर भी नही है...!"
पूरी बात सुनते ही मानव उच्छल सा पड़ा.... वह झटके के साथ कुर्सी से उठा और लगभग दौड़ते हुए लोक्कूप की तरफ गया...,"प्रेम की गाड़ी कहाँ है...?"
"जी उधर ही खड़ी होगी... सफेद वरना है 8544!" अंदर बैठे दोनो लोगों में से एक ने बताया....
"चाबी?"
"जी उसके पास ही होगी या फिर घर में रखी होगी.....!"
"हूंम्म..." मानव पलटा और तुरंत हॉस्पिटल में प्रेम के साथ रुके पूरी के पास फोन किया... खुसकिस्मती से चाबी उसकी जेब में ही मिल गयी.... पर एक बुरी खबर भी साथ मिली थी... प्रेम मर चुका था...
"श शिट.... मैं सुशील को भेज रहा हूँ.. चाबी उसको दे देना... ओके?" मानव ने हताशा में टेबल पर मुक्का मारा...
"जी जनाब!" उधर से आवाज़ आई....
"तुमने मेरा सारा खेल खराब कर दिया... प्रेम को मार दिया तुमने.... शायद केवल वही 'बॉस' को जानता था..."मानव ने हॅरी की आँखों में झाँक कर कहा....,"तुम्हे आज लोक्कूप में ही रहना पड़ेगा... सुबह देखूँगा क्या करूँ...!"
"ज्जई...!" हॅरी के मुँह से कुच्छ और ना निकला....
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"ये रही शायद... हां यही है.... जल्दी खोलो....!" मानव की साँसें उखड़ी हुई थी... फोन पर हुई बातें सुन'ने के बाद इतना तो तय था कि जो कोई भी है... जिंदा है... पर ये समझ नही आ रहा था कि 'दूसरी' कौन हो सकती है.....
मानव की आँखें पिछे दिग्गी में हाथ, पैर और मुँह बाँध कर डाली गयी लड़की पर पड़ते ही सुखद आस्चर्य से फैल गयी...."आन्जुउउउउउउउउउ.... तुम्म्म!"
गतान्क से आगे..................
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