Hindi Chudai Kahani हिटलर को प्यार हो गया
10-25-2018, 12:19 PM,
#23
RE: Hindi Chudai Kahani हिटलर को प्यार हो गया
रीत जब से घर आई थी तो उसने खुद को अपने रूम में बंद किया हुया था और उल्टी अपने बेड पर लेटी हुई थी उसकी आँखों में से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे. उसके दिमाग़ में बार बार विकी के कहे शबाद घूम रहे थे. रीत को इस बात का दुख नही था कि विकी ने उसे थप्पड़ मारा था दुख था तो सिर्फ़ इस बात का कि विकी ने उस से बहुत बदतमीज़ी से बात की थी. उसे अब लग रहा था कि वो सब कुछ हार चुकी है विकी को बदलने का जो उसने सपना देखा था वो टूट चुका था.

वो सोच रही थी कि कैसा पत्थर दिल इंसान है विकी. मैने उसके लिए क्या नही किया पहले क्लास में वो मेरा अपमान करता रहा मगर मैं सहती रही फिर उसके दिल में अपने लिए प्यार जगाया और अपना सब कुछ यहाँ तक कि वर्जिनिटी भी उसको सौंप दी पर उसने इस सब के बदले मुझे क्या दिया. सिर्फ़ बदतमीज़ी, बेरूख़ी, और मेरे जिस्म के ज़रिए अपनी हवस मिटाई मगर प्यार तो उसने मुझे सिर्फ़ दिखावे के लिए किया. मैं ही बेवकूफ़ थी जो उसे सुधारने चली थी. आज के बाद मैं उसकी शकल तक नही देखूँगी. जहाँ जाकर मरना है मरे वो. फिर उसने अपने आप को संभाला और उठ कर अपनी मम्मी के साथ काम करने लगी.
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उधर रीत के घर की जो हालत थी वैसे ही विकी के घर की भी थी. विकी ने भी रीत की तरह खुद को कमरे में बंद कर रखा था. वो एक कुर्सी पे बैठा था और सोच रहा था कि आज जो भी हुआ वो अच्छा नही हुआ मुझे रीत से ऐसे बात नही करनी चाहिए थी. उसके दिल के पे क्या गुज़री होगी इसका तो मैने ख्याल ही नही किया. उसने तो सिर्फ़ मुझे अपनी राय ही दी थी मुझे उसे थप्पड़ नही मारना चाहिए था.

दूसरी ओर उसका दिमाग़ सोच रहा था कि मैने रीत से रिश्ता बनाया था तो सिर्फ़ उसके जिस्म की खातिर और उसे मैने अच्छी तरह से भोग भी लिया और इस रीत को छोड़ने के बाद रीत के साथ रिश्ता ख़तम करने के लिए जो कुछ मैने सोच रखा था वही कुछ तो मैने आज किया. लेकिन फिर भी मुझे उस पे प्यार क्यूँ आ रहा है क्यूँ उसका चेहरा मेरे सामने बार बार घूम रहा है. क्यूँ मैं उसके इलावा कुछ और नही सोच पा रहा हूँ. कहीं मैं उसे प्यार तो नही करने लगा. नही नही ऐसा नही हो सकता. प्यार और रीत से नही नही. आज के बाद मैं उसके बारे में सोचूँगा भी नही. क्योंकि अब मुझे उस से कुछ भी नही लेना है. विकी खड़ा होता है और बाहर अपने दोस्त की दुकान की तरफ चल पड़ता है.

दिन गुज़रने लगते हैं 1 वीक हो चुका है रीत और विकी को एक दूसरे को देखे हुए. क्यूंकी इन दिनो ना तो विकी कॉलेज गया और ना ही रीत. दोनो का मन अब कॉलेज जाने को नही कर रहा है.
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उधर अमित और प्रीति को मिले भी कई दिन बीत चुके हैं लेकिन वो दोनो फोन पे ज़रूर एक दूसरे से बात करते हैं. लेकिन उन्हे अब शादी का कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा है. अमित ने प्रीति को भाग कर शादी करने के लिए कहा मगर प्रीति ने इस पे सॉफ इनकार करते हुए कहा कि वो ऐसा काम नही करेगी जिसकी वजह से उसके माँ बाप को इज़्ज़त से कहीं जाने में दिक्कत हो क्योंकि वो लोग ग़रीब ज़रूर थे लेकिन इज़्ज़तदार थे और ग़रीब को अपनी इज़्ज़त ही सब से प्यारी होती है. उन दोनो ने अब अपने प्यार का फैंसला भगवान के हाथ में छोड़ दिया था उन्हो ने सोच रखा था कि अगर भगवान ने उनका मिलन लिखा होगा तो वो किसी ना किसी तरीके हो ही जाएगा. अमित प्रीति को बार बार मिलने के लिए बोल रहा था मगर प्रीति ने उसे सॉफ सॉफ बोल दिया था कि जब तक उनकी शादी की बात एक किनारे नही लग जाती तब तक वो एक दूसरे को नही मिलेंगे. और अगर उनकी शादी पक्की हो गई तो वो खुद उस से मिलकर जी भर के उसे प्यार करेगी. मगर ये बस अब उनकी सोच थी. ऐसा होना या ना होना ये तो आने वाले कल में छिपा था.

विकी एक दिन अपने दोस्त की दुकान पे से वापिस आ रहा था तो उसकी नज़रें कुछ देखकर अटक सी गई. वो बिना पलक झपकाए उस ओर देखता रहा. वहाँ पे एक दुकान से एक लड़की कुछ खरीद रही थी. उसने पिंक कलर का चुरिदार सूट पहना हुआ था और चुनरी पूरे ढंग से उसने अपने सिर पे ले रखी थी गोरा रंग, ब्राउन आइज़ और पूरा वेल शेप्ड शरीर जिसपे पहना गुलाबी सूट उसे और खूबसूरत बना रहा था. उसकी शराफ़त उसके पहनावे से ही झलक रही थी. विकी ने जब से उसे देखा था उसके कदम वहीं जम गये थे वो उसकी सुंदरता में खोता ही जा रहा था. उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा था. आज एक बात जो खास थी वो ये थी कि इस से पहले जब भी विकी किसी लड़की को देखता था तो सब से पहले उसकी नज़र उसके शरीर पे जाती थी. लेकिन आज तो वो उस लड़की के चेहरे में ही खो चुका था. उसे वो लड़की दुनिया की सबसे शरीफ लड़की लग रही थी. जैसे ही उस लड़की की नज़र विकी से टकराई तो दोनो की नज़रे एक दूसरे को देखने के बाद नीचे झुक गई.

वो लड़की कोई और नही रीत ही थी. आज काफ़ी दिनो बाद विकी ने उसे देखा था तो वो उसे देखता ही रह गया. उसकी नज़र रीत के उपर से हट ही नही रही थी. रीत ने जैसे ही विकी को देखा तो वो वहाँ से जाने लगी. विकी एक टक खड़ा उसको जाते हुए देखता रहा जब तक वो उसकी नज़रों से ओझल नही हो गई. रीत के जिस प्यार और ख़याल को वो पिछले दिनो से दबाए हुए था वो प्यार आज रीत को देखते ही फिर से जाग उठा था. उसके दिमाग़ में फिर से उस्दिन की घटना घूमने लगी जब उसने रीत को थप्पड़ मारा था.

वो फिर से खुद को रीत का गुनेह गार मान ने लगा. इसी कशम कश में वो घर पहुँचा और अपने कमरे में जाकर लेट गया. उसके दिमाग़ में सिर्फ़ रीत ही घूम रही थी. वो जब भी आँखें बंद करता था तो उसे एक पिंक चुरिदार में सिर पे चुन्नी लिए और एक मासूम सा चेहरे उसे खड़ा दिखाई देता था. वो एकदम से उठा और सोचने लगा कि मुझे रीत से उस दिन की घटना के लिए माफी माँगनी चाहिए. उसने कुछ सोच कर अपना मोबाइल उठाया और रीत का नंबर. डाइयल कर दिया.

रीत ने जब मोबाइल पे विकी का नाम देखा तो उसने एक पल के लिए तो फोन उठाने की सोची मगर फिर अपने चेहरे पे गुस्सा लाते हुए फोन कट कर दिया. विकी ने एक दफ़ा और ट्राइ किया और रीत ने फिर से फोन कट कर दिया.

विकी को एक बार तो रीत के फोन कट करने से गुस्सा आया मगर उसने फिर ठंडे दिमाग़ से सोचा और एक मेसेज टाइप किया 'रीत प्लीज़ मेरी कॉल रिसीव करो मुझे कुछ ज़रूरी बात करनी है तुमसे' और मेसेज सेंट कर दिया.

रीत ने मेसेज रीड किया. उसने भी अपना दिमाग़ थोड़ा ठंडा किया और विकी की कॉल आक्सेप्ट की.

रीत-हेलो.

विकी-हेलो रीत क्या इतनी नाराज़ हो मुझसे.

रीत-नही विकी मैं क्यूँ नाराज़ हूँगी मैं तो तुम्हारी कुछ लगती ही नही आख़िर हमारा रिश्ता ही क्या है.

विकी-प्लीज़ रीत ये मत कहो कि हमारा कोई रिश्ता नही है. आख़िर हमने प्यार किया है.

रीत-विकी तुम्हे प्यार का मतलब भी पता है क्या होता है. तुम्हारे दिमाग़ में प्यार का मतलब सिर्फ़ हवस है.
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