RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
मेरी खुद समझ नही आ रहा था कि ये क्या बात कर रहे है आख़िर ये कैसा राज है राइचंद जी ने मुझे बिठाया और लक्ष्मी से कहा की तुम खड़ी खड़ी क्या देख रही हो जाओ और देव जी के लिए कुछ भोजन का प्रबंध करो सफ़र करके आए है फिर उन्होने मेरी ओर मुखातिब होते हुवे कहा की मालिक आप ने आने से पहले मुझे अगर इत्तिला कर दी होती
तो मै स्टेशन पर खुद आपको लेने आता आपने इतनी तकलीफ़ उठाई मैने कहा जी आपका शुक्रिया पर ये मेरा पहला मोका था अकेले यात्रा करने का और फिर मै हिन्दुस्तान भी तो पहली बार आया हू तो सोचा की थोड़ा सा माहोले भी देख लूँगा फिर मैने उनसे कहा की सबसे पहले आप मुझे ये बताए की आपने मुझे लंडन संदेशा क्यो भिजवाया
और ये हवेली और ठाकुर यूधवीर कोन है और मेरा इन सब से क्या लेना देना है मै तो इंडिया का निवासी भी नही हू तो वो बोले देव बाबू पहले आप कुछ भोजन कर ले थोड़ा सा आराम कर ले फिर मै आपको सब बाते बताता हू भूख तो मुझी भी लगी थी और थकान भी काफ़ी थी तो मुझे उनकी बाते सही लगी कुछ ही देर मे भोजन लग गया तो मै खाने पर ऐसे टूट पड़ा जैसे की कई जन्मो का भूखा हू
खाने के बाद राइचंद जी ने कहा की मालिक आप थोड़ा आराम करे सुबहा आप एक नयी दुनिया देखेंगे उन्होने मेरे प्रति जिग्यासा जगा दी थी मैने कहा नही जो भी बात है अभी बताइए पर उन्होने कहा की सुबह हम हवेली चलेंगे फिर आप खुद ही समझ जाओगे उन्होने मेरा बिस्तर लगा दिया पर आँखो मे नींद ही नही आई अच्छा भला जी रहा था अपनी जिंदगी मे
अनाथ था बचपन से ही शंघर्षो से भरी ज़िंदगी जीया था पर फिर भी खुश था कॉलेज का लास्ट यियर चल रहा था पर एक शाम आए खत ने ज़िंदगी को उथल पुथल करके रख दिया था ये लेटर इंडिया से किसी राइचंद ने भेजा था और साथ मे जहाज़ की टिकेट भी थी मुझे अर्जेंट्ली इंडिया बुलाया गया था पर कुछ भी सॉफ सॉफ नही बताया गया
मुझे भी थोड़ी सी उत्सुकता हो गयी थी इसके कई कारण थे पहला तो की मै बेशक लंडन मे रहता था पर मेरा रंग रूप इंडियन्स जैसा ही था दूसरा जिन लोगो ने मुझे पाला था वो भी इंडियन्स ही थे और फिर इतने दिनो तक कभी किसी ने मुझे खत नही लिखा था पर ठीक मेरे 20वे जनमदिन पर आए उस खत मे कुछ तो राज़ था तो मैने भी फ़ैसला कर लिया की चलो चलते है
और फिर एक मुश्किल सफ़र के बाद आख़िर मै अर्जुन गढ़ आ ही गया था अपने दिल मे कई सवाल लिए जिसका जवाब बस मुनीम जी के पास थे सोचते सोचते आँख लग गयी सुबह मैं उठा तो सूरज सर पर चढ़ आया था मैने अंगड़ाई ली और बाहर आया ये गाँव मे मेरी पहली सुबहा थी मैने अपने कपड़े लिए और बाथरूम मे घुस गया पर साला ये तो ज़ुल्म ही हो गया
दरवाजे की कुण्डी नही लगी थी तो मैने सोचा की कोई नही है पर अंदर लक्ष्मी नहा रही थी उसके मस्ताने बदन को पानी की बूँदो मे लिपटे हुए देख कर मेरा दिमाग़ तो एक दम से झंझणा गया इस से पहले मैने कभी किसी औरत या लड़की को नंगा नही देखा था तो मेरे लिए ये एक दम से अलग सा अनुभव था
एक दम से हुई इस घटना से लक्ष्मी भी हक्का-बक्का रह गयी थी मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न सा हो गया था की क्या करू लक्ष्मी बस इतना ही बोली कि जाआ ज़ाआा जाओ यहा से मै बाथरूम से बाहर निकलने ही वाला था कि बाहर से आवाज़ आई माँ कहाँ हो तुम मुझे खाना दो मै स्कूल जा रही हू ये सुनते ही लक्ष्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस बाथरूम मे खीच लिया
और खुद चिल्लाते हुवे बोली कि मै नहा रही हू तुम खुद ही ले लो और चली जाओ फिर लक्ष्मी मेरी ओर देखते हुवे फुसफुसा के बोली मेरी बेटी स्कूल ना चली जाए तब तक यही रहो कही उसने तुम्हे यहा से निकलते हुवे देख लिया तो मेरे बारे मे पता नही क्या सोचेगी पर बाथरूम के अंदर भी रुकना कोन सा आसान था ख़ासकर जब आप किसी नंगी औरत के साथ हो
मेरी नज़र बार बार उसके जिस्म पर जाने लगी तो वो बोली अपना मूह दूसरी तरफ करके खड़े हो जाओ पर मुझे तो जैसे उसकी बात सुनी ही नही सांवला रंग था पर उसका शरीर भरा हुवा था मोटी मोटी बोबे मास से भरी हुवी ठोस जंघे और काले काले बालो से धकि हुवी योनि जिसे मै बालो की वजह से देख नही पाया मेरी साँसे लड़खड़ाने लगी थी धड़कन बढ़ गयी थी
लक्ष्मी भी परेशन हो गयी थी क्योंकि ये कुछ पल बड़े ही मुश्किल थे वो एक अंजान के साथ बाथरूम मे नंगी खड़ी थी मेरी नज़र नीचे गयी तो मैने देखा कि मेरा लंड निक्कर मे टेंटहाउस बनाए खड़ा है लक्ष्मी भी चोर नज़रो से मेरे लंड की तरफ ही देख रही थी तभी उसकी बेटी ने कहा की माँ मै जा रही हू तो कुछ देर बाद मै भी बाहर निकल आया
करीब एक घंटे बाद मै नहा धोकर तैयार हो गया था लक्ष्मी ने मुझे नाश्ता करवाया और मैने उस से बाथरूम वाली घटना के लिए माफी माँगी पर उसने बात नही की मै नाश्ता कर ही रहा था की राइचंद जी अपने साथ एक वकील को ले आए उन्होने कहा आप नश्ता कर ली जिए फिर हम हवेली चलते है तो मैने फटाफट से काम निपटा दिया और अपना सामान उठा लिया
बाहर एक कार खड़ी थी हम बैठे और वो धूल उड़ाती हुवी चल पड़ी हवेली की ओर कोई 15-20 मिनिट बाद मै एक बेहद ही विशाल इमारत के सामने खड़ा था किसी जमाने मे ये बड़ी आलीशान रही होगी पर आज इसकी हालत कुछ ख़ास नही थी गेट पर एक बड़ा सा ताला लटका पड़ा था वकील ने एक पुरानी जंग लगी चाबी निकाली और ताला खोलने की कोशिश करने लगा पर वो नही खुला
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