Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
11-02-2018, 11:28 AM,
#7
RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
रास्ते मे मैने लक्ष्मी से पूछा की आपके कितने खेत है तो वो बोली बाबू हमारे तो बस 10 बीघा ज़मीन है उसी मे खेती करते है वो भी आपके दादा जी ने मुनीम जी को दान मे दी थी सब कुछ आपकी ही देन है मैने कहा आप मुझे मेरे परिवार के बारे मे कुछ बताती क्यो नही तो वो बोली की समय आने पर आप खुद ही जान जाएँगे और कुछ बाते ऐसी है की आप नही जानो तो ठीक रहेगा

मै वही रुक गया तो लक्ष्मी बोली वहाँ क्यो खड़े हो गये तो मैने कहा मुझे अभी सब कुछ जान ना है अपने बारे मे अपने परिवार के बारे मे , अगर वो है तो कहा है और आख़िर क्या हुवा था आप मुझे शुरू से हर एक बात बताओ अभी तो वो बोली मालिक मुनीम जी आ जाए तो आप उनसे ही पूछ लेना पर मेरा दिमाग़ अब झल्लाने लगा था तो मैने कहा नही मुझे आप अभी सबकुछ बताइए वरना मै अभी वापिस चला जाउँगा

लक्ष्मी विनती करती हुवे बोली मालिक आप अभी घर चलिए अगर आपकी यही चाह है तो मै आपको बताती हू की आप को हमने यहा क्यू बुलाया है और तेज तेज कदमो से घर की ओर चलने लगी मै भी उसके पीछे पीछे हो लिया घर आए हाथ मूह धोया और उन्होने मुझे बैठक मे बैठने को कहा लक्ष्मी की लड़की शरबत ले आई आज पहली बार मैने उसे देखा था

11वी मे पढ़ती थी पर बदन माँ की तरह ही उसका भरा भरा हुवा था शरबत का खाली गिलास ट्रे मे रखते हुवे मैने पूछा की राइचंद जी कब तक आएँगे तो वो बोली बापू तो 3-4 दिन बाद ही लोटेंगे तब तक हम है ना यहाँ आप को जो भी चाहिए हमे बताइए मैने कहा नही ठीक है कुछ देर बाद लक्ष्मी भी आ गयी और नीचे कालीन पर बैठ गयी तो मैने कहा आप नीचे क्यो बैठे हो उपर कुर्सी पर बैठो तो वो बोलीमालिक के आगे मै कैसे उपर बैठ सकती हू

तो मै उठा और लक्ष्मी के हाथो से पकड़ कर उसको खड़ा कर दिया मेरे हाथ उसकी गुदाज बाहो मे धसने लगे मैने उसको पास रखी कुर्सी पर बिठा दिया और कहा की मै कोई मालिक वालिक नही हू मै तो बस एक इंसान हू ज़िसकी ज़िंदगी थोड़ी बदल सी गयी है पिछले कुछ दिनो मे, देखिए कुछ दिनो पहले मुझे पता भी नही था की मेरा भी कोई घर है परिवार है पर अब मेरे दिल मे हुक उठ गयी है

मै अब बड़ा ही परेशान सा हो गया हू आप मेरी तरफ तरस खाइए और मुझे बता भी दीजिए की आख़िर कहाँ है मेरे घर वाले और क्या हुवा था जिसकी वजह से मुझे अपने घर से इतनी दूर जाना पड़ा बोलते बोलते मेरा गला रुंध गया और आँखो मे आँसू आ गये मैने अपने हाथ लक्ष्मी के आगे जोड़ दिए और कहा आप से मै भीख माँगता हू प्लीज़ मुझे मेरे परिवार के बारे मे बताइए

मेरा दिल तड़प उठा था आज तक अनाथो की तरह ही तो जीता आया था मै यहा आके पता चला की मेरा घर भी है मै अपने घर वालो से मिलना चाहता था मैने अपना सर लक्ष्मी के पाँवो मे रख दिया और कहा की मुझ पर अहसान कीजिए तो उन्होने मुझे उठाया और अपने गले से लगा लिया और मेरे आँसुओ को पोंछते हुवे बोली की बस देव बस आप रोइए मत मै आपको सब बता ती हू

तभी बिजली चली गयी और चारो तरफ अंधेरा हो गया लक्ष्मी ने लालटेन जला दी पर मेरा दिल भी जलने लगा था लक्ष्मी ने अपनी लड़की को कहा की तू अंदर जा और खाने की व्यवस्था कर तो उसने कहा की माँ मुझे भी जान ना है की गाँव मे लोग जो बाते करते है वो सच है या झूठ तो मैं उसको टोकते हुवे बोला की क्या कहते है गाँव वाले तो लक्ष्मी अपनी लड़की को देखते हुवे बोली की तू चुप कर

पर वो भी वही जम कर बैठ गयी तो लक्ष्मी ने एक निगाह उस पर डाली और फिर मेरी ओर देखते हुवे बोली की देव बाबू अगर आप जान ना ही चाहते है तो सुनिए ये बात उस दिनों की है जब मै नयी नयी ब्याह कर इस गाँव मे आई ही थी गाँव मे आपके खानदान का राज चलता था लोग कहते है की आपके पुरखो ने ही ये गाँव बसाया था आपके दादा जी का सिक्का चलता था बड़े बड़े अधिकारी अफ़सरो की भी हिम्मत नही होती थी की कोई उनकी बात को टाल दे

हर तरफ बस उनकी ही चर्चा थी उन दिनों हवेली के दरवाजे हमेशा सबके लिए खुले रहते थे चाहे दिन हो या रात हो मदद माँगने वालो को हमेशा वहाँ मदद मिलती थी कोई भी हवेली से खाली हाथ नही आया भगवान के बाद लोग अगर किसी को पूजते थे तो बस ठाकुर यूधवीर सिंघ जी को सब कुछ सही चल रहा था पर फिर आपके पिता जी विलायत से पढ़कर वापिस गाँव आ गये

उन दिनों वो बिल्कुल आप जैसे ही लगते थे दूर से देखने पर ही पता चलता था की कोई सजीला बांका नोजवान आ रहा है और स्वाभाव तो आप के दादा जी से भी बढ़कर एक दम सादगी से भरपूर कभी किसी को मना करना तो उनके स्वाभाव मे नही था देव बाबू आप कभी आईने मे गोर से देखना खुद को आप को अपने पिता ठाकुर वीरभान सिंघ जी की छवि ज़रूर दिखेगी

बाहर तेज हवाए चलने लगी थी आसमान बादलो के शोर से जैसे फटने को ही था लक्ष्मी ने लालटेन की लो को थोड़ा और तेज किया और अपना गला खंखारते हुवे कहना शुरू किया , देव सब सही चल रहा था पर आपके पिता से एक ग़लती हो गयी जिसका ख़ामियाजा सारे गाँव को ही भुगतना पड़ा इसी लिए गाँव वाले अब ठाकूरो के नाम से भी नफ़रत करते है

ये सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गयी तो मैने कहा ऐसा क्या हो गया था लक्ष्मी ने कुछ घूट पानी पिया और बताने लगी की यहाँ से कुछ कोस एक और गाँव है नाहरगढ़ वहाँ भी यहा की तरह ही ठाकूरो का राज चलता था एक दिन आपके पिता घुड़सवारी करते करते उस ओर निकल गये तो उन्होने देखा की कुछ लोग एक मजदूर को पीट रहे है आपके पिता ने जाकर बीच बचाव किया

पर बात बढ़ी और आपके पिता ने उन लोगो को बुरी तरह से घायल कर दिया अर्जुनगढ़ और नाहरगढ़ के बीच वैसे तो कभी कोई नाराज़गी की बात नही थी पर जिन लोगो से आपके पिता उलझ पड़े थे उनमे से एक वहाँ के ठाकुर का छोटा बेटा भीमसेन भी था जो की बहुत ही घटिया और आवारा किस्म का आदमी था वैसे तो बात छोटी सी थी पर भीम सेन के मन मे एक आग जल गयी थी

थोड़े दिन मे ही ये बात घर घर मे फैल गयी थी की दोनो गाँव के ठाकूरो के लड़को मे कुछ हुवा है पर सदियो से दोनो गाँवो मे बड़ा ही प्रेम था तो आपके बुज़ुर्गो ने बात को जैसे तैसे संभाल लिया और बात आई गयी हो गई कुछ दिन शांति से गुज़रे पर वो कहते है ना की होनी को कोन टाल सकता है समय अपनी चल खेल रहा था धीरे धीरे मुझे आज भी याद है उन दिनों जब गाव मे डर का महोल पसरा पड़ा था हर गली खून से रंग गयी थी हम लोग बस जी ही रहे थे कैसे भी करके उन दिनों उनकी हर एक बात को मै बड़े ही गोर से सुन रहा था बाहर हवाए और भी तेज हो चली थी लक्ष्मी ने बताना शुरू किया की आपके पिता की कीर्ति हर ओर होने लगी थी जितना मान आपके दादा का था उस से कही ज़्यादा अब आपके पिता का था उस छोटी सी उमर मे ही उन्होने सारे गाँव का दिल जीत लिया था

पर वो कहते है ना कि तकदीर मे क्या लिखा कौन जाने, तो समय बदलने को बेताब खड़ा था दुनिया मे जितनी भी नफ़रत के कारण है वो जर,ज़मीन और जोरू है ऐसा लोग कहते है और आपके पिता भी कुछ ऐसा ही काम कर बैठे

………………………………………………………………… कुछ पल खामोशी छाई रही फिर मैने कहा आगे क्या हुवा तो लक्ष्मी बोली आपके पिता ने भी एक ग़लती की वो मोहब्बत कर बैठे तो मैने कहा कि तो उसमे ग़लत क्या था आख़िर प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी ना है


लक्ष्मी कहने लगी देव बाबू तब जमाना आज जैसा नही था और गाँवो मे तो आज भी प्रेमियो को मार कर पेड़ पर टाँग दिया जाता है तो उन दिनों की तो आप पूछो ही मत मैने कहा मेरी माँ का क्या नाम था तो वो बोली की वसुंधरा देवी पर सब उन्हे छोटी ठकुराइन कहते थे मैने कहा क्या मेरी माँ वो ही औरत थी जिनसे मेरे पिता ने प्रेम किया था तो लक्ष्मी बोली कि हाँ वो वही थी और साथ मे वो नाहरगढ़ के ठाकूरो की बेटी भी थी
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