RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
लक्ष्मी ने पास रखी सुराही से पानी का जग भरा और मुझे पकड़ाते हुवे बोली की थोड़ा पानी पी लो मैने खिड़की से बाहर अंधेरे मे देखा दूर कही बिजली चमक रही थी मैने कुछ घुट भरे और जग को नीचे रख दिया मेरे सर की हर एक नस तेज़ी से भड़क रही थी आज ज़िंदगी मे पहली बार मुझे अपने परिवार के बारे मे जान ने का मोका मिला रहा था
पर यहा कुछ भी ऐसा नही था जो नॉर्मल हो बल्कि मेरे मन मे कुछ और नये सवाल खड़े हो गये थे मैने कहा अगर मेरी मा नहार्घर की थी तो भी उनके विवाह मे क्या दिक्कत थी तो लक्ष्मी बोली देव बाबू आप को सच मे कुछ नही पता सदियो से इन दोनो गाँवो मे भाई चारा था और सभी लड़कियो को बेटी का दर्जा देते थे दोनो गाओ मे इस कदर प्रेम था की वो लोग एक दूसरे के यहा विवाह नही करते थे
सब कुछ ठीक था पर आपके पिता ना जाने कैसे वसुंधरा को दिल दे बैठे कमसिन उमर की वो चुहल बाजी ना जाने कब मोहबत मे बदल गयी पर असली धमाका तो तब हुवा जब चारो दिशाओ मे इन दोनो के प्रेम के किससे सुनाई देने लगे कुछ समय तक तो इन सब बतो को अफवाह ही माना गया पर वो कहते है ना की धुआ वही उठता है जहा आग हो एक दिन भीमसेन ने अपनी बहन को आपके पिता के साथ देख लिया
भीम सेन तो पहले से ही आपके पिता से खार खाए बैठा था और फिर उसकी बहन दुश्मन से इश्क़ कर बैठी थी उसकी रगो मे भी तो ठाकुरोका ही खून दोद रहा था भीमसेन भी अपनी जगह सही था अपने खानदान की इज़्ज़त को यू किसी और के साथ देख कर किसी का भी खून खोलेगा ही तो वाहा पर बड़ी बहस बाजी हो गयी उसे वसुंधरा को गलिया देना शुरू कर दिया
ठाकुर वीरभान ने बड़ी कोशिश की उसको समझने की पर वो कहा मान ने वाला था आपके पिता के प्यार ने भीमसेन के मान मे जलती नफ़रत की ज्वाला मे घी का काम कर दिया था जब उनसे नही सहा गया तो वो भीमसेन से उलझ गये पर वसुंधरा देवी बीच मे आ गयी एक तरफ उनकी मोहबत थी और दूसरी ओर उनका भाई उन्हे डर था की कही ये दोनो आपस मे कुछ कर ना बैठे
तो उसने वीरभान जी को अपनी कसम देकर वहाँ से भेज दिया और भीमसेन वसुंधरा देवी को अपने साथ नाहरगढ़ ले गया ये कोई छोटी घटना नही थी आख़िर ठाकूरो की इज़्ज़त का मामला था तो शाम होते होते नाहरगढ़ से सैकड़ो आदमियो को लेकर भीम्सेन उसके और भाई और उसके पिता यानी आपके नाना बड़े ठाकुर रंजीत सिंघ भी हवेली के सामने आ गये
और आपके दादा जी को ललकारा जिस हवेली को कभी कोई नज़र उठा कर भी नही देखता था जिस हवेली मे लोग आज तक फरियाद ही लेकर आते थे आज उसके दरवाजे पर एक शिकायत आ गयी थी शिकायत तो क्या थी समझ लीजिए की एक सैलाब ने दस्तक दे दी थी ये एक ऐसी तूफान की आहट थी जो आया और अपनी साथ इस हवेली का सबकुछ बहा ले गया सारी खुशिया जैसे कही खो ही गयी
मेरा दिल धड़ धड़ करके धड़क रहा था साँसे मेरे काबू मे नही थी मै पल दर पल उलझता ही जा रहा था बाहर टॅप टॅप करके बारिश की बूंदे बरसने लगी थी खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी पर वो मेरे पसीने को सूखा नही पा रही थी लक्ष्मी ने कहा की खाने का समय हो गया है आप पहले कुछ खा ले फिर मै आपको पूरी बात बताती हू पर मैने मना करते हुवे कहा की मुझे भूख नही है आप आगे बताए
कुछ देर लक्ष्मी चुप रही फिर वो बताने लगी जिस दिन वो लोग हवेली तक आए उस दिन आपके दादा जी किसी काम से बाहर गये हुवे थे वरना वो मनहूस दिन टल जाता और आपके पिता भी वाहा नही थे ठाकुर भीमसेन की ललकार को सुनकर आपके चाचा ठाकुर आदित्या जिन्होने जवानी मे नया नया कदम ही रखा था और ठाकूरो का खून तो वैसे भी उबाल मारता ही रहता है
पर फिर भी उन्होने थोड़ी समाझधारी दिखाते हुवे रंजीत सिंघ से कहा की आप लोग अंदर आइए पिताजी आने ही वाले है जो भी है आप उनसे बात कर लेना पर भीमसेन पर तो उस दिन जैसे खून सवार था उसने आदित्या को बुरा भला कहना शुरू किया तो हवेली के लोग भी भड़क उठे पर आदित्या ने उन्हे शांत करवाया धीरे धीरे गाँव के लोग भी जुटने लगे थे
आदित्या ने काफ़ी कोशिश की उन लोगो को समझाने की परंतु जब काल सर पर नाच रहा हो तो बुधि काम नही करती भीमसेन जो की लगातार बदजुबानी कर रहा था उसने हवेली की औरतो को जब नंगा करने की बात की तो ठाकुर आदित्या की सबर का बाँध टूट गया और उन्होने ना चाहते हुवे भी हथियार उठा लिया देखने वाले बता ते है की दोनो तरफ से तलवारे खिच गयीथी
पर भीमसेन पूरी तैयारी से आया था और उसे तो अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेना था तो आदित्या और वो आमने सामने आ गये उमर भी क्या थी उनकी बस जवानी मे कदम ही तो रखा था तो दोनो पक्षो मे गरमा गर्मी होने लगी भीमसें ने जैसे ही ज़ुबान खोली आदित्या का पारा गरम तो था ही बस फिर युध शुरू हो गया चारो तरफ मार काट मच गयी
आदित्या की बंदूक से चली गोली ठाकुर रंजीत सिंघ की छाती को बेधती चली गयी और वो वही पर गिर पड़े तभी पीछे से भीमसेन ने आदित्या पर वार कर दिया और उनको लहू लुहन कर दिया गाँव के लोग भी हवेली के लिए लड़ने लगे पर तब तक भीमसेन ने अपना काम कर दिया था हवेली का दरवाजा खून से रंग गया था और कुछ दीवारे भी
जब आपके पिता वापिस आए तो देखा की गाँव पूरी तरह से सुनसान पड़ा है तो उनका माथा ठनका वो तेज़ी से हवेली की ओर आए और वाहा का नज़ारा देख कर उनका कलेजा ही जैसे फटने को हो गया हवेली के दरवाजे पर लाषो का ढेर लगा पड़ा था और सबसे उपर आपके चाचा ठाकुर आदित्या का कटा हुवा सर रखा था ये सुनकर मेरा दिल रो पड़ा आँसू आँखो से बहने लगे ऐसा लगा जैसे मेरी किसी ने जान ही निकल दी हो मेरी रुलाई छूट पड़ी
कुछ देर मै सुबक्ता रहा फिर लक्ष्मी बोली देव इन आँसुओ को संभाल लो इन्हे यू जाया ना करो और मेरी आँखो से आँसू पोंछने लगी पर मेरा दिल भरा हुवा था तो मै रोता ही रहा लक्समी बोली इसी लिए तो हम ये सब आपसे छुपा कर रखना चाहते थे क्योंकि हुमे पता था की आप ये सब सहन नही कर पाएँगे बाहर बारिश अब कुछ ज़्यादा तेज हो गयी थी
मैने टूट ती हुवी आवाज़ मे पूछा फिर क्या हुवा…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………… वो बताने लगी बोली आपके पिता ने जब वो मंज़र देखा तो वो किसी बुत की तरह खड़े रह गये अपने भाई की लाश देख कर वो जैसे टूट ही गये थे कितनी ही देर वो अपने भाई के शव से लिपट कर रोते रहे फिर उन्हे कुछ सूझा तो वो अंदर गये तो उनको और भी सदमा लगा मैने कहा अंदर क्या हुवा तो वो बोले की अंदर आपकी दादी सा की लाश पड़ी थी और पास मे ही हवेली की और औरते भी मरी पड़ी थी
पूरा परिवार तहस नहस हो गया था तब तक हम लोग भी हवेली पहुच गये थे मैने मालकिन की लाश पर कपड़ा डाला आपके पिता का बहुत ही बुरा हाल हो गया था वीरभान जी तो जैसे पागला ही गये थे उनकी आँखो मे जैसे खून सा उतर आया था उन्होने अपनी जीप निकली और हथियार लेकर चल पड़े नहार्घर की ओर एक ऐसा तूफान शुरू हो गया था जिसने दोनो गाँवो को तबाह ही कर दिया
अब इतना बड़ा कांड हो गया था तो ज़िले की पुलिस भी मुस्तैद हो गयी थी और आपके पिता को नाहरगढ़ की सीमा पे ही रोक लिया गया था पर ठाकुर साहब एक तूफान बन चुके थे उनको बस यूधवीर सिंघ जी ही रोक सकते थे उनको खबर भिजवा दी गयी थी पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जैसे ही ये मनहूस खबर उनको पता चली उसी पल उनको लकवा मार गया
और उनको इलाज के लिए ले जाना पड़ा दूसरी ओर जैसे तैसे करके ठाकुर वीरभान को पोलीस ने रोका वरना कुछ लाषे और गिरती उस रात दोनो गाँवो मे शायद ही कोई घर होगा जहा चूल्हा जला हो हवाए भी जैसे रो पड़ी थी उस दिन हस्ती खेलती हवेली किसी विधवा दुल्हन की तरह हो गयी थी
|