Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
11-02-2018, 11:28 AM,
#9
RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
मुनीम जी तो बड़े ठाकुर के पास चले गये थे पर मै पूरी रात यही पर थी बड़ा ही दिल दहलाने वाला मंज़र था वो पोलीस ने सारी लाषो को कपड़े से ढक दिया था पर दीवारो से ताज़ा खून अभी भी टपक रहा था हवेली की सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी पर अब यहा कोई नही था जिसे सुरक्षा की ज़रूरत थी और दूसरी ओर ठाकुर वीरभान को पोलीस ने बड़ी मुश्किल से संभाला हुवा था

तभी तेज हवा से खिड़की ज़ोर से खड़खड़ाई तो मेरा ध्यान टूटा बाहर बारिश अब और तेज हो गयी थी और एक तूफान मेरे सीने मे भी उमड़ आया था मै बस रोना चाहता था दहाड़ मार मार कर रोना चाहता था भगवान ये तूने कैसा ज़ुल्म किया परिवार से मिलाया भी नही भी ये दर्द आख़िर मुझे क्यो दिया और ये दर्द भी ऐसा था की कोई दवा इसका इलाज नही कर सकती थी बस मुझे अब इसको सहते रहना था

मैं उठा और खिड़की से बाहर बरसती बारिश को देखने लगा पर ये बारिश उस बरसात के सामने कुछ भी नही थी जो मेरे दिल मे हो रही थी पता नही मै कितनी देर तक वही खड़ा खड़ा उस तूफ़ानी बारिश को देखता रहा जब मेरा मन कुछ हल्का हुवा तो मै लक्ष्मी की ओर मुड़ा और कहा की आगे क्या हुवा बताइए तो लक्ष्मी बोली रात बहुत हो गयी है आप अभी सो जाइए कल बात करेंगे तो मै गुराते हुवे बोला की सुना नही तुमने मैने क्या कहा है

तो लक्ष्मी ने बताना शुरू किया की अगले दिन सारा गाँव शमशान घाट मे मोजूद था आज कई लाषो को का दाह-संस्कार किया गया था आपके पिता बदले की आग मे इस कदर जल रहे थे की उन्होने उस समय प्रतिगया ली की वो अपने घरवालो की चिता की राख ठंडी होने से पहले भीमसेन का सर काट देंगे पोलीस भी मोजूद थी वहाँ पर ठाकूरो का रुतबा इतना ज़्यादा था की वो बस देखते ही रहे


एक ऐसी ज्वाला भड़क उठी थी की जिसमे दोनो गाँव झुलस रहे थे वो गाँव जिनके संबंधो मे इतनी मिठास थी अब नफ़रत पैदा हो गयी थी एक दूसरे के बैरी हो गये थे हर तरफ बस तनाव सा फैल गया था यहा तक की हवओ ने भी अपना रुख़ मोड़ लिया था देव बाबू, उस दिन हवेली पर ऐसा ग्रहण लगा की आज तक उजाला नसीब नही हुवा उसकी हर एक बात मेरे दिल पर बिजली गिरा रही थी और बाहर आसमान जैसे फटने को ही था

वो कहने लगी की भीमसेन के खानदान का भी रोब हुवा करता था तो पोलीस उसे चाहकर भी गिरफ्तार नही पर पाई इधर आपके पिता उसके खून के प्यासे हो चुके थे हवेली के बाहर चप्पे चप्पे पर कड़ी सुरक्षा थी परंतु आपके पिता ना जाने कैसे सबको गच्चा देकर निकल भागे और वसुंधरा के घर जा पहुचे एक कयामत हुवी थी जिसमे हवेली लुट गयी थी

और ऐसा ही कुछ अब नाहरगढ़ मे होने वाला था बताने वाले बता ते है की उस रात ठाकुर वीरभान ने ऐसा रक्तपात मचाया की आज भी कभी उस रात का जिकर हो जाए तो लोगो की हड्डिया कांप जाती है एक ऐसा ज़लज़ला बरसा था उस दिन भीमसेन के गाँव पर की बस फिर कुछ नही बचा ठाकुर वीरभान ने अपनी कसम पूरी की और टीले के शिव मंदिर मे भीमसेन का कटा हुवा सर अर्पण कर दिया

ये एक बहुत बड़ी घटना थी उस समय की दो खानदान तबाह हो गये थे हवेली अब पहले जैसी नही रही थी पर समय अपनी गति से चलता रहा कुछ दिन गुजर गये आपके दादा जी भी हस्पताल से घर आ गये थे पर लकवे से उनकी दोनो टाँगे खराब हो गयी थी दोनो बाप-बेटो मे अब पहले जैसा प्यार नही रहा था बड़े ठाकुर तो ज़्यादातर अपने कमरे मे ही रहते थे ऐसे हो थोड़ा समय और गुजर गया

पर वीरभान के मन मे अब भी कही वसुंधरा के प्रति प्रेम का सागर हिलोरे मार रहा था और ऐसा ही कुछ वसुंधरा के मन मे भी चल रहा था और वैसे भी मोहबत कहा किसी के रोकने से रुकी है वो कहा ऊँच-नीच समझती है तो एक दिन वीरभान वसुंधरा को अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आए वसुंधरा का बड़ा भाई और उसकी मान की इतनी हिम्मत नही थी की वो वीरभान का विरोध कर सके

जब बड़े ठाकुर को ये बात पता चली तो वो कुछ नही बोले पर उनके दिल मे ये मलाल ज़रूर था की इस लड़की के पीछे उनका पूरा परिवार काल के गाल मे समा गया पर बेटा जब उसे घर ले ही आया तो बस मान मसोस कर रह गये वसुंधरा देवी के आने से आपके पिता तो प्रसन्न थे पर अब हवेली मे वो बात नही रही थी एक अजीब सा सन्नाटा सा 24 घंटे छाया रहता था

और ठीक नो महीने बाद यहा एक खुस-खबरी आई जब आपका जनम हुवा ठाकुर ने सारे गाँव को भोज का निमंत्रण दिया और सारे गाँव को किसी नवेली दुल्हन की तरह सज़ा दिया चारो ओर खुशिया ही खुशिया थी पर ये खुशिया बस थोड़ी देर की ही थी आपके दादा वीरभान से तो बात नही करते थे पर आपसे बड़ा प्यार था उनको घंटो आपको खिलाया करते थे मै खुद देखा करती थी

दिन किसी तरह से कट रहे थे आपके आने से हवेली भी जैसे दुबारा से खिल गयी थी पर तभी कुछ ऐसा हो गया जिसकी उम्मीद किसी ने नही की थी ये कहकर लक्ष्मी चुप हो गयी तो मै उनकी ओर देखने लगा मेरे दिल-ओ-दिमाग़ मे हज़ारो तरह की भावनाए उमड़ आई थी अब मै बड़ी शिद्दत से अपने परिवार के साथ जीना चाहता था मै उनके साथ हसना चाहता था रोना चाहता था पर अफ़सोस अब कोई नही था

वो आगे कहने लगी की बात उन दिनो की है आपका पहला जनमदिन आकर गया ही था की एक रोज वसुंधरा की मा यानी आपकी नानी हवेली चली आई उन्होने बड़े ठाकुर से कहा की अब जो हो गया वो हो गया उसको तो बदला नही जा सकता पर मै अब चाहती हूँ की मेरी बेटी और दामाद चैन से रहे मै अपने दोह्ते को देखने के लिए मरी जा रही हू तो खुद को रोक ना सकी और चली आई अगर आप आग्या दे तो कुछ दिन वसुंधरा को हमारे घर पे भेज दीजिए काफ़ी दिनो से इस से मिली नही हू तो जी भर के बाते भी कर लूँगी अपनी बेटी से

बड़े ठाकुर ने तो कुछ नही कहा और वीरभान भी वसुंधरा को नही जाने देना चाहते थे परंतु वसुंधरा अपनी मा को देख कर पिघल गयी और जाने की ज़िद करने लगी तो हार कर वीरभान को हा कहनी पड़ी पर उन्होने आप को ये कहके रोक लिया की देव के बिना पिताजी का मान नही लगेगा तो इसे आप यही छोड़ जाओ तो आपकी मा चली गयी और ऐसी गयी की फिर कभी वापिस नही आई

आज की रात बड़ी ही भारी थी मुझपर दिल को एक से एक झटके लग रहे थे मैने कहा की क्यो , क्यो नही आई वो फिर वापिस तो लक्ष्मी ने एक ठंडी सांस ली और बोली की यहा से जाने के कुछ दिन बाद उनके घरवालो ने उनको जहर देकर मार दिया ये सुन ना मेरे लिए किसी वज्रपात से कम नही था पर मै कुछ कर भी तो नही सकता था तकदीर ने मुझे एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था की

सब कुछ होकर भी कुछ नही था मेरे पास ये जो एक पल की खुशी मिली थी किसी रेत की तरह मेरी मुट्ठी से फिसल गयी थी दिल टूट कर बिखर गया था मेरा पर फिर भी हिम्मत करे पूछ ही लिया की उसके बाद क्या हुवा तो लक्ष्मी ने बताना शुरू किया की जब आपके पिता को वसुंधरा देवी की मोत की सूचना मिली तो उन पर जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा

उनको तो बस उनका ही सहारा था वो इस कदर टूट गये की फिर कभी संभाल ही ना पाए उन्होने खुद को शराब मे डुबो दिया आपकी नानी को सज़ा हुवी और जेल मे ही उनकी मोत हो गयी सब तकदीर का लेख है देव बाबू एक ऐसा खानदान जिसके झंडे चारो दिशाओ मे गढ़े थे अब तबाह ही हो गया था समझो आपके पिता ने अपना गम भूलने को शराब को साथी बना लिया था

दूसरी ओर बड़े ठाकुर का हाल भी कुछ ऐसा ही था पर वो आपके सहारे जी रहे थे किसी तरह से , दिन यू ही काट ते रहे वीरभान अब नशे मे धुत्त घूमते रहते कभी किसी से उलझते तो कभी किसी से ठाकूरो की वर्षो की इज़्ज़त अब धूल मे मिलने लगी थी जिस हवेली के नाम से सारा गाँव झुक जया करता था वो अब ठाकुर के सामने बोलने लगे थे हवेली का सूरज अस्त होने लगा था तो कुछ और दुश्मनो ने भी सर उठाना शुरू कर दिया था

शराब का नशा ऐसा लगा की अब वो एक पल भी उनके बिना नही रह सकता थे पर शराब ही अकेली नही थी कुछ उनकी संगत ऐसी हो गयी थी की वो शराब के साथ साथ अब वो शबाब पर भी मूह मारने लगे थे फिर उनको ऐसी लत लगी की हर औरत बस उन्हे भोगने को ही दिखती थी जी किया उसको ही पकड़ लिया अब वो पहले वाले ठाकुर वीरभान नही रहे थे नशे मे चूर वो इस कदर हो चुके थे की गाँव की औरते उनको देखते ही अपना रास्ता बदल दिया करती थी

कुछ दीनो तक तो गाँव वालो ने उनकी हर्कतो को सह लिया पर अब ठाकुर मे वो रुतबा नही था तो धीरे धीरे गाँव वालो की हिम्मत भी बढ़ने लगी आए दी ठाकुर किसी ना किसी से भिदता ही रहते थे जो इजत थोड़ी बहुत बची थी वो भी अब ना के बराबर ही रह गई थी ठाकुर वीरभान बस एक ऐसे इंसान बनकर रह गये थे जो बस शराब और शबाब से ही जीता था उनका गोरव नॅस्ट हो गया था

आपकी उमर 3 साल हुवी तो आपके दादा जी ने आपको लंडन भिजवा दिया और कहा की वहाँ देव को एक आम आदमी की तरह से जीना सीखना होगा इसकी मदद वही की जाएगी जब इसको ज़रूरत हो हम चाहते है की देव शंघर्सो की आग मे जल कर एक ऐसा फौलाद बने जिसमे सूरज तक को पिघला देने की तपिश हो

तो आपके लंडन जाने के बाद बड़े ठाकुर ने खुद को एक कमरे मे क़ैद कर लिया मुनीम जी बस उनके साथ रहते पर फिर कभी वो हवेली से बाहर नही गये हन आपके जाने के कुछ दिनो बाद एक बात और हुवी बड़े ठाकुर ने आपके पिता को घर से बाहर निकाल दिया और जायदाद से बेदखल कर दिया ऐसा क्यो हुवा ये मुझे मालूम नही है मैने उनको टोकते हुवे कहा की क्या मेरे पिता ज़िंदा है

तो लक्ष्मी कुछ नही बोली मैने फिर पूछा तो उसने कहा की नही हवेली से निकले जाने के कुछ साल बाद उनकी भी बीमारी से मोत हो गयी थी उनकी मोत की सूचना हस्पताल से आई थी इस घटना से बड़े ठाकुर और भी हताश हो गये थे उन्होने बिस्तर पकड़ लिया था लकवे के शिकार तो पहले ही थे और फिर उन्होने अपने जाने से कोई 6 महीने पहले मुनीम जी को कहा की देव के बीस साल का होते ही उसे यहा बुलवा लेना और उसे सब कुछ संभला देना

मेरी आँखे फिर से डब डबा गयी मैने कहा की क्या दादाजी भी …………………………. तो लक्ष्मी बोली हां देव बाबू वो भी अब नही रहे ये शब्द मेरे दिल को किसी तीर की तरह चीर गये मै बुकका फाड़ कर रोने लगा तभी कही बादल गरजा और बरसात और भी तेज हो गयी ना जाने रात का कोन सा पहर चल रहा था मेरे अंदर की सारी भावनाए बाहर निकल आई थी

मैं उठा और बाहर को भाग चला अंधेरा इतना घनघोर था की कुछ नही दिख रहा था पर मुझ पता था की मेरी मंज़िल कहा है मै बस उस तूफ़ानी बारिश मे रोता हुवा दौड़ता जा रहा था मेरी साथ बरसात भी रो पड़ी थी मै गिरता-पड़ता चला जा रहा था मुझे अब कोई परवाह नही थी मेरा सब कुछ जैसे छूट गया था आख़िर मै अपनी मंज़िल पर पहुच ही गया था
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