Porn Hindi Kahani जाल
11-03-2018, 01:57 AM,
#18
RE: Porn Hindi Kahani जाल
जाल पार्ट--18

गतान्क से आगे.

उसे बिस्तर पे लिटा वो उसकी चूचियो से खेलने लगा.उन्हे दबाते हुए उनके निपल्स को चूस्ता फिर उन्हे चूमते हुए निपल्स को उंगलियो मे भर मसल देता.रंभा के जिस्म मे अब मस्ती का सैलाब दौड़ रहा था,"..आन्ह्ह्ह्ह..नही..परेश..जाओ..चोद दो..!"उसकी ये ना-नुकर परेश के जोश को और बढ़ा रही थी.उसने उसकी चूत मे उंगली घुसा दी & उसकी बगल मे लेट उसकी चाहती चूस्ते हुए ज़ोर-2 से रगड़ने लगा.कुछ ही देर मे दिन भर की प्यासी रंभा झाड़ गयी & फिर करवट बदल परेश की ओर पीठ कर तकिये मे मुँह छुपा सुबकने लगी.

परेश ने फ़ौरन कपड़े उतारे & उसे पीछे से बाहो मे भर उसके चेहरे को अपनी ओर किया,"ओफ्फो!क्या बात है?..आज तुम इतनी झिझक क्यू रही हो..जबकि तुम्हारे जिस्म को तो ये सब भा रहा है.",उसने उसकी गीली चूत मे 2 उंगलिया घुसा के बाहर निकाल उनपे लगा बहुत सा रस दिखाया & फिर उसे चाट लिया.

"मैं कोई ऐसी-वैसी लड़की नही हू..उस रोज़ मेरी कमज़ोरी का फयडा. उठाया आपने & आज ज़बरदस्ती कर रहे हैं मेरे साथ.",अब वो मेहरा खानदान की बहू बनने वाली थी & नही चाहती थी कि आगे कभी भी कोई मर्द उसके चरित्र पे उंगली उठा सके.वो ये पक्का कर लेना चाहती थी की आगे कभी भी अगर उसके पुराने आशिक़ो मे से कोई उसकी राह मे रोड़ा अटकाए तो वो ये साबित कर दे कि उन्होने उसके साथ मनमानी की थी,वो अपनी मर्ज़ी से उनके साथ नही सोई थी.

"मेरी जान..तुम्हारे जिस्म को तो ये ज़बरदस्ती नही लग रही..रूको अभी तुम्हारी शिकायत दूर करता हू.",परेश ने उसे सीधा किया & तेज़ी से उसकी जंघे फैला उनके बीच आ उसकी चूत से अपना मुँह लगा दिया.रंभा फिर से हवा मे उड़ने लगी.वो आहे भर रही थी & परेश उसकी चूत से बहते रस को चाते जा रहा था.रंभा उसके बालो को भींचती उसके मुँह को अपनी चूत पे दबाने लगी & अपनी कमर उचकाने लगी.परेश भी उसके दाएँ को उंगली से छेड़ता उसकी चूत मे जीभ घुमा रहा था.

जैसे ही रंभा झड़ी परेश उसके उपर आया & अपना मोटा लंड उसकी चूत मे घुसा दिया.गीली चूत मे लंड 1 झटके मे ही अंदर सरक गया,"..आहह..नही..प्लीज़..मुझे मत चोदो...आन्न्न्नह..दर्द होता है..निकाल लो उसे..!",रंभा आँखे बंद किए सर को झटक रही थी & परेश के सीने पे हाथ रख उसे धकेल रही थी.परेश ने ऐसी चुदाई पहले कभी नही की थी & उसका जोश अब बहुत बढ़ गया था.उसने अपना भारी-भरकम शरीर रंभा के उपर लिटा दिया & उसके सीने के उभारो को बेदर्दी से मसलता हुआ उसके गाल चाटने लगा.

"जानेमन,क्या निकाल लू मैं?..ज़रा नाम तो लो उसका!",उसने उसके होंठो को चाटते हुए उसकी चूचियो को मसला तो रंभा ने आँहे भरते हुए फिर से मुँह फेरा.

"अपने लंड को निकाल लो..ऊऊव्ववववववव..!",बहुत इसरार के बाद उसने परेश के अंग का नाम लिया.इस बात ने आग मे घी का काम किया & परेश के धक्के और तेज़ हो गये.

"कहा से निकालु?..रंभा डार्लिंग ये भी तो बताओ!",वो उसकी चूचियो को चूस रहा था.

"मेरी चूत से निकालो..मत चोदो मुझे .....आआआआहह..!",रंभा के मुँह से अंगो का नाम सुन वो पागल हो गया था & बहुत शदीद धक्के लगा रहा था.रंभा ने भी उसकी कमर को टाँगो मे जाकड़ लिया था & उसके सीने को नोच रही थी.परेश के मोटे लंड ने उसे कुच्छ ही देर मे जन्नत मे पहुँचा दिया & वो झाड़ गयी.उसके पीछे-2 परेश भी अपनी मंज़िल पे पहुँचा & अपना वीर्य उसकी चूत मे भरने लगा.

"छ्चोड़ो मुझे..!",परेश ने सिकुदा लंड रंभा की चूत से खींच उसे बाहो मे भरना चाहा तो उसने रुवन्सि शक्ल बनाके उसे परे धकेल दिया,"..तुमने ज़बरदस्ती की है मेरे साथ!..कोई काग़ज़-वागज़ लेने नही आए थे तुम बस अपनी हवस मिटानी थी तुम्हे!",चीखती रंभा को देख परेश की हालत ख़स्ता हो गयी.रंभा ने सच कहा था,वो शाम से 3-4 चक्कर लगा चुका था मगर हर बार घर बंद मिलता था.

"न-नही..ऐसा कुच्छ नही है..उस दिन विनोद..-"

"मैं विनोद को बुलाती हू..वही ठीक करेगा तुम्हे!",रंभा चीखी तो परेश गिड़गिदने लगा.

"अरे,रंभा मुझसे ग़लती हो गयी..",रंभा समझ गयी कि वो डरपोक किस्म का इंसान है.कोई और होता तो कभी नही झुकता ऐसे,"..मैं जा रहा हू.अब नही परेशान करूँगा तुम्हे..",परेश सर पे पाँव रख के भागा वाहा से.रंभा ने दरवाज़ा बंद किया & ज़ोर से ठहाका लगाया.ये सब उसने केवल इसीलिए किया था ताकि परेश उसे अपनी जागीर समझने की ग़लती ना करे.रंभा चाहे किसी के साथ भी सोए,कोई मर्द उसे अपने हिसाब से चलाने की सोचे ऐसा उसे बर्दाश्त नही था.

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विजयंत मेहरा सोनिया के करीब आना चाहता था & इसके लिए मौको की तलाश मे रहता था लेकिन जिस रोज़ उसने सोनिया की ज़िंदगी मे तूफान ला दिया उस दिन उसने तो उस से मिलने की सोची भी नही थी.वो बॅंगलुर काम से गया था & वाहा तबीयत थोड़ी नसाज़ हो गयी.ठीक तो वो 1 ही दिन मे हो गया लेकिन डॉक्टर ने उसे चेकप के लिए अगले रोज़ भी बुलाया था.वही हॉस्पिटल मे चेकप करवा के निकलते हुए लिफ्ट मे वो सोनिया से टकरा गया,"अरे सोनिया जी,व्हाट ए प्लेज़ेंट सर्प्राइज़!आप यहा..सब ख़ैरियत तो है?"

"हाई!मिस्टर.मेहरा..मेरी मा बीमार थी,उन्ही की कुच्छ रिपोर्ट्स दिखाने आई थी.",सोनिया ने 1 स्लीव्ले टॉप & ढीला-ढाला लोंग स्कर्ट पहना था.इत्तेफ़ाक़ की बात है कि लिफ्ट मे उनके सिवा कोई नही था.उस तन्हाई से सोनिया असहज हो गयी.उसका दिल उन गुस्ताख ख्यालो को याद करने लगा जो वो हमेशा विजयंत को लेके सोचता था.तभी लिफ्ट रुक गयी & अंदर की बत्ती बुझ गयी,"अरे ये क्या हुआ?लिफ्ट क्यू रुक गयी?",सोनिया घबरा गयी थी.

"डॉन'ट वरी!",विजयंत ने मोबाइल ऑन कर लिफ्ट मे लगा एमर्जेन्सी बटन दबा के स्पीकर मे लिफ्ट रुकने की बात बताई.

"सर,कुच्छ ही देर मे लिफ्ट चालू हो जाएगी.आप घबराईए मत.हमारे आदमी उसे चालू करने चले गये हैं."

"मुझे घुटन हो रही है..कब चालू होगी ये?",सोनिया बेचैन हो रही थी.विजयंत ने बाई बाँह के घेरे मे उसे थाम लिया.

"घबराईए मत..",उसने मोबाइल ऑन किया & उसकी रोशनी मे सोनिया ने उसके चेहरे को देखा.जिस्मो की नज़दीकी,डर का माहौल & तन्हाई,शायद सभी का असर 1 साथ हुआ.सोनिया भी विजयंत को देखे जा रही थी.विजयंत मोबाइल की रोशनी बंद नही होने दे रहा था & सोनिया की आँखो मे आँखे डाले खड़ा था.दोनो को ही पता नही चला कि कब विजयंत के होंठ नीचे झुके & सोनिया के उपर होते हुए खुल गये.

विजयंत ने उसे आगोश मे कस उसके गुलाबी लबो से अपने लब चिपका दिए.सोनिया ने भी खुद को उसकी बाहो मे ढीला छ्चोड़ दिया था.दोनो पूरी शिद्दत से 1 दूसरे को चूम रहे थे & जब विजयंत ने अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसाइ तो सोनिया ने उसे नही रोका.

"पिंगगगगग..!",आवाज़ के साथ बत्ती जली & लिफ्ट चल पड़ी.सोनिया होश मे आई & विजयंत से छितक गयी.विजयंत भी अचानक हुई इस बात से थोड़ा असहज हुआ था & चुप-चाप खड़ा था.सोनिया को एहसास हुआ कि उसने अभी-2 क्या किया था & उसकी आँखो से आँसू छलक पड़े.वो दसवे फ्लोर से चले थे & लिफ्ट नवी & आठवी मंज़िल के बीच फँस गयी थी.दोबारा चलने के बाद अगली मंज़िल पे कुच्छ लोग चढ़े & सोनिया ने अपने आँसुओ को छिपाने के लिए अपने बॅग से चश्मा निकाल के पहन लिया.

लोगो की मौजूदगी के चलते विजयंत उस से बात नही कर पा रहा था.ग्राउंड फ्लोर पे पहुँचते ही सोनिया तेज़ी से निकली & आगे बढ़ गयी.विजयंत जानता था कि यहा बात करने से वो लोगो की नज़रो मे आ सकते हैं & उसका खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ सकता था.सोनिया तेज़ी से हॉस्पिटल के मेन गेट से पैदल ही बाहर जा रही थी.विजयंत ने अपने ड्राइवर से कार की चाभी ली & सोनिया के पीछे निकल गया.

"सोनिया,प्लीज़ मेरी बात सुनो!",सोनिया हॉस्पिटल से निकल कुच्छ दूरी पे उसे पैदल जाती दिख गयी थी.

"मुझे अकेला छ्चोड़ दो & मेरा पीछा मत करो!",वो गुस्से से बोल वैसे ही चलती रही.सड़क पे उतना ट्रॅफिक नही थी मगर वो पूरी सुनसान भी नही थी.विजयंत ने सोनिया की बाँह पकड़ी & उसे खीच के गाड़ी मे बिठा दिया & दरवाज़ा लॉक कर दिया,"ये क्या बदतमीज़ी है!",सोनिया ने चश्मा उतारा तो उसके आँसुओ से गीले गाल & लाल आँखे विजयंत को दिखाई दी.उसने बिना कुच्छ बोले कार आगे बधाई & 1थोड़ी देर बाद 1 सुनसान रास्ते पे रोक दी.

सोनिया मुँह फेरे बैठी थी.विजयंत ने उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया & उसके आँसुओ को अपने होंठो से साफ करने लगा,"मुझे छ्चोड़ो..हटो..विजयंत..!",वो चीखी लेकिन विजयंत ने उसे बाहो मे कस लिया & उसके बाल पकड़ उसके चेहरे को अपने चेहरे के सामने उसे खुद से नज़रे मिलाने पे मजबूरा कर दिया.

"कब तक भगोगी,सोनिया?..& क्या खुद से भाग सकती हो?..जो भी हुआ क्या उसमे तुम्हारी मर्ज़ी नही थी..?",विजयंत की बात सही थी & सोनिया की आँखो से 1 बार फिर आँसू बह निकले.

"नही..डार्लिंग..",उसने उसके आँसू पी लिए,"..प्लीज़ रोओ मत..क्यू रो रही हो?..",वो उसके चेहरे को चूमे जा रहा था.

"प्लीज़,विजयंत ये सही नही है..!",सोनिया ने महसूस किया कि इस हालत मे भी उसका जिस्म विजयंत की हर्कतो से मस्त हो रहा था.

"क्या सही नही है..कि हम दोनो 1 दूसरे को इतना चाहते हैं कि कायनात भी हमे मिलाना चाहती है?..नही तो आज हम यू क्यू टकराए?..या फिर ये सही नही है कि हम दोनो 1 दूसरे की तरफ पहले दिन से खींचते रहे हैं..नही तो अपने दुश्मन की बीवी से करीबी क्या मेरा शौक है?!",विजयंत ने उसे झींझोड़ा.

"सोनिया,इस हक़ीक़त से मत भागो की हम दोनो 1 दूसरे को चाहते हैं..क्यू..कैसे..ये हमे नही पता & मैं परवाह भी नही करता इन सवालो की!..& क्या ग़लत है कि हम दोनो शादीशुदा हैं & अपने-2 साथियो से बेवफ़ाई कर रहे हैं?..हां,ये सही है..हम कर रहे हैं ग़लती..लेकिन हम उन्हे सब बता के & दर्द ही देंगे ना.अभी वो अंजान हैं & खुश हैं..हम क्यू उन्हे दुखी करें?"

"तो आज के बाद हम नही मिलेंगे,विजयंत..-"

"-..& अंदर ही अंदर घुलते रहेंगे.नही,मुझे मंज़ूर नही ये..मैं नही रह सकता तुम्हारे बिना!मैं तुम्हे ब्रिज को छ्चोड़ने को नही कह रहा ना ही मैं रीता से अलग होऊँगा लेकिन मैं तुमसे दूर भी नही रह सकता.",विजयंत ने अपने होंठ सोनिया के होंठो से सटा दिए & सोनिया भी उसे चूमने लगी.वो किस तोड़ उसे रोकने की कोशिश करती लेकिन विजयंत उसकी अनसुनी कर उसे फिर चूमने लगता & थोड़ी ही देर मे सोनिया मदहोश होने लगी.विजयंत ने मौका देखा उसकी सीट का लीवर खींच सीट को नीचे गिराया & सोनिया को बाहो मे भर उसके उपर चढ़ उसे चूमने लगा.

उसका हाथ उसके टॉप मे घुस उसके चिकने पेट को सहला रहा था.सोनिया और मदहोश जो गयी,"..नही..विजयंत प्लीज़..आहह....!",सोनिया के टॉप मे हाथ घुसा उसकी गर्दन चूमते विजयंत ने उसकी चूचियो को दबोच लिया था.सोनिया के दिल का वो कोना अब खुशी से उसे & बढ़ावा दे रहा था..हां लेने दो उसे चूचियो को अपने हाथो मे..बहुत मज़ा आएगा..जब उसकी दाढ़ी तुम अपने सीने पे महसूस करोगी..तुम्हारे निपल्स उसके मुँह मे होंगे..

& जैसे उसके दिल की आवाज़ विजयंत ने सुन ली.वो अब सच मे उसकी चूचियो से खेल रहा था.टॉप & ब्रा उपर कर वो उन्हे अपने मुँह मे भर चूस रहा था.सोनिया की चूत गीली हो गयी थी.विजयंत का दाया हाथ उसकी स्कर्ट मे घुस उसकी जाँघो को सहलाए जा रहा था.उसके दिल का वो शैतान कोना अब उसे और उकसा रहा था..पाकड़ो उसका लंड..देखो उसकी सख्ती तुम अपने जिस्म पे महसूस कर नही रही क्या?..पॅंट के बावजूद वो तुम्हारे तन को जलाए जा रहा है अपनी गर्मी से..पाकड़ो..पाकड़ो..!

सोनिया ने हाथ नीचे ले जा विजयंत के लंड को दबोचते हुए अपने होंठ उसके सर को उपर कर उसके गर्म लबो से लगा दिए.विजयंत समझ गया कि चिड़िया अब पूरी तरह से उसके जाल मे फँस चुकी है.उसने फ़ौरन ज़िप खोल लंड बाहर निकाल उसके हाथ मे दे दिया & खुद दाए हाथ को उसकी पॅंटी मे घुसा उसकी गीली चूत को & गीला करने मे जुट गया.

कुच्छ ही पॅलो मे कार की सीट पे छट-पटाती सोनिया झाड़ रही थी.विजयंत ने 1 हाथ से ही अपनी पॅंट ढीली की तो सोनिया ने उसे नीचे सरका दिया.विजयंत ने उसकी पॅंटी उतारी & उसके उपर आ गया.विजयंत का लंड ब्रिज के लंड से केवल आधा इंच ही बड़ा था लेकिन उसकी मोटाई उसके मुक़ाबले कही ज़्यादा थी & जब उसने सर उठाके नीचे अपनी चूत मे पहली बार विजयंत के लंड को घुसते देखती सोनिया की चूत मे लंड को अंदर धकेला तो वो दर्द के मारे चीख पड़ी.

विजयनत उसके उपर लेट गया & उसके होंठो को चूमते हुए उसकी आहो को दफ़्न कर धक्के लगाने लगा.सोनिया उसकी पीठ & गंद को बेचैनी से सहलाती,खरोंछती बहुत मज़े का एहसास कर रही थी.ये मज़ा इस तरह सड़क के किनारे खड़ी कार मे चुदने के रोमांच का था, या फिर पति से छुप बेवफ़ाई करने का जिसमे पकड़े जाने का भी डर था,उसका था उसे पता नही था.उसे तो अब बस इस बात से मतलब था कि उसके जिस्म मे भरपूर मस्ती च्छाई थी & उसे अभी ही बहुत सुकून का एहसास हो रहा था.

"आन्न्‍नणणनह..!",उसने अपने होंठ विजयंत के होंठो की गिरफ़्त से छुड़ाते हुए सीट से सर उठा उसे चूमते हुए लंबी आह भरी & झाड़ गयी.विजयंत ने भी मौका देखा अपना वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ दिया.दोनो लंबी-2 साँसे लेते 1 दूसरे को चूमते वैसे ही पड़े रहे.सोनिया के चेहरे पे बहुत सुकून था.खुमारी उतरने के बाद भी उसके दिल का वो कोना उसे लंड को बाहर ना निकालने देने की बात कर रहा था मगर ये मुमकिन तो था नही.

विजयंत ने लंड खींचा & फिर डॅशबोर्ड पे पड़े बॉक्स से नॅपकिन निकाल सोनिया की चूत & जाँघो से उसके & अपने मिले-जुले रस को साफ किया & उसकी पॅंटी उसे पहना दी & सीट उपर कर दी.सोनिया के दिल मे प्यार का सैलाब उमड़ पड़ा & वो सुबक्ते हुए विजयंत से लिपट गयी & उसके चेहरे को चूमने लगी.वो उसे गले से लगाए हुए उसके ब्रा को टॉप को ठीक करने लगा फिर उसे चूम के खुद से लगा किया & अपनी पॅंट बंद कर गाड़ी आगे बढ़ा दी.उसने उसे उसके घर पे इस वादे के साथ छ्चोड़ा कि जब तक वो बॅंगलुर मे है यानी अगले 2 दिनो तक,तब तक सोनिया हर रोज़ कुच्छ वक़्त उसके साथ ज़रूर गुज़ारेगी.

उसके घर से कार आगे बढ़ाते हुए वो बहुत खुश था,उसकी चालाकी भरी बातो के जाल मे ये चिड़िया आख़िर फँस ही गयी थी.अब बस मौका देख वो ब्रिज की शादीशुदा ज़िंदगी मे आग लगा देगा.उसे उमीद थी कि इस बात का असर ब्रिज के बिज़्नेस पे भी ज़रूर पड़ेगा.जहा ब्रिज विजयंत से केवल हर सौदे पे लड़ के जीतना चाहता था वही विजयंत उसके & उसकी कंपनी के वजूद को ही पूरी तरह से मिटा देना चाहता था.

विजयंत 1 चिड़िया को फाँस के तो बहुत खुश था लेकिन उसे पता नही था कि उधर डेवाले मे दूसरी चिड़िया उसके हाथो से निकल चुकी है.

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क्रमशः.......
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