Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:16 PM,
#5
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
उन मस्ताने उरोजों को हाथ में लेने के लिये मेरे हाथ नहीं खुलेंगे ये मैंने जान लिया. कसमसा कर बोला "ताईजी ... लटके भले हों पर और मीठे लग रहे हैं ... पके आमों जैसे या ज्यादा पकी हुई बिहियों जैसे .... अब हाथ में नहीं लेने देतीं ये फल तो जरा स्वाद ही चखा दीजिये ना इन आमों का ..."

"आओ ना बेटा ... मेरे सीने से लग जाओ ... भले मेरे दामाद हो पर हो तो मेरे बेटे जैसे ... एक मां अपने बेटे को सीने से तो लगा ही सकती है ..." कहकर ताईजी ने मेरे गाल थपथपाये और मुझपर झुक कर मुझे अपने सीने से लगा लिया. मेरा सिर उनकी नरम नरम चूंचियों के बीच दब गया. मैं सिर इधर उधर करके उनको चूमने लगा. ताईजी ने मेरी खटपट देखी तो अपना एक निपल मेरे मुंह में दे दिया. मैं आंखें बंद करके चूसने लगा. थोड़ी देर से उन्होंने निपल बदल दिया "अब इसे चूसो दामादजी" वे अब करीब करीब मेरे ऊपर ही सो गयी थीं. मेरे गालों पर दबा वो नरम नरम मांस का गोला खा जाने लायक था. मैंने मुंह खोला और निपल के साथ काफ़ी सारा मांस भी मुंह में ले लिया. ताईजी ने सांस ली और अपना आधा मम्मा मेरे मुंह में घुसेड़ दिया.

"बड़ा अच्छा लड़का है तू अनिल. कितने प्यार दुलार से मेरा स्तनपान कर रहा है" वे बोलीं और मेरा सिर कस के सीनेसे भींच लिया. "मुझे बड़ा अच्छा लगता है बेटा जब कोई ऐसे मेरी छाती पीता है. आखिर मां हूं ना, मां जिंदगी भर मां रहती है, भले बच्चे बड़े हो जायें"

मैं अब जोर से सांसें ले रहा था. ताईजी ने पूछा "ये ऐसे क्यों सांस ले रहे हो बेटा, आराम से तो पड़े हो बिस्तर पे. सांस लेने में तकलीफ़ हो रही है क्या ... अच्छा समझी ... मैं भी अच्छी पागल हूं कि तुम्हारा दम घोट रही हूं अपने स्तन से" मेरे मुंह से अपनी चूंची निकालकर वे बोलीं.

"आपका मम्मा क्यों मुझे तकलीफ़ देगा मांजी, मेरा बस चले तो एक साथ दोनों मुंह में भर लूं. वो तो खुशबू आई तो सूंघ रहा हूं मांजी. "

"ऐसी कौनसी खुशबू है दामादजी? मुझे तो नहीं आ रही" ताईजी फिर से अपना निपल मेरे मुंह में देने की कोशिश करते हुए बोलीं.

"गुलाब के फ़ूल को अपनी खुशबू थोड़े आती है ताईजी. एकदम खास खुशबू है, दुनिया की सबसे मादक सुगंध. ये सुगंध है कामरस की. कोई नारी बड़ी बेहाल है कामवासना से, उसकी योनि में से रस निकल रहा है जिसकी मादक खुशबू अब यहां फ़ैल गयी है? अब कौन हो सकता है ताईजी? वैसे है बिलकुल मेरी लीना जैसी खुशबू, पर वो तो यहां है नहीं" मैंने सासूमां की मीठी चुटकी लेते हुए कहा.

अब ताईजी एकदम शर्मा सी गयी "दामादजी ... अब क्या बताऊं ... मेरा हाल आज जरा ठीक नहीं है ... आजकल हेमन्त भी नहीं है ... ललित थोड़ा कच्चा पड़ता है, अभी अभी तो जवान हुआ है बेचारा ... कब से तुम्हारे आने की राह देख रही थी, अब तुम आ गये हो बेटा और ऐसे मेरी बाहों में हो तो ये शरीर आखिर मुआ कहां काबू में रहने वाला है, जरा ज्यादा ही गरमा गयी हूं मैं"

"अब ऐसे शरमाइये नहीं ताईजी ... वैसे शरमा कर आप बला की खूबसूरत लगती हैं ... भगवान करे आपके बदन से ये खुशबू हमेशा आती रहे. पर आप तो बहुत जुल्म कर रही हैं मुझपर, हाथ भी नहीं खोलतीं, मुझे अपने बदन से लिपटने भी नहीं देतीं, कम से कम चखा ही दीजिये ना ये अमरित अपने गुलाम को."

"सच चखना चाहते हो अनिल बेटे?" ताईजी ने पूछा. अब वे धीरे धीरे मेरे बदन पर पड़ी पड़ी ऊपर नीचे हो रही थीं. अपनी टांगों के बीच उन्होंने मेरी जांघ को कस के पकड़ लिया था और मेरी जांघ पर गीलापन महसूस हो रहा था.

"हां ताईजी .., आपका यह आशिर्वाद मुझे दे ही दीजिये या यूं समझ लीजिये कि भक्त प्रसाद मांग रहा है. मेरे हाथ पैर खोल दीजिये तो मैं खुद ले लूंगा, आप को तकलीफ़ नहीं होगी" मैंने एक बार फिर उनको मख्खन लगाने की कोशिश की कि शायद मान जायें.

"वो नहीं होगा जमाई राजा, ऐसे बार बार मत कहो मेरे को, लीना और मीनल तभी मुझे आगाह करके गयी थीं. मुझे भी बार बार मना करना अच्छा नहीं लगता. पर आखिर मेरे जमाई हो, दीपावली पर पहली बार घर आये हो, तुम्हारी सास होने के नाते यहां ससुराल में तुम्हारी हर इच्छा पूरी होना चाहिये, ये मेरे को ही देखना है. वैसे तुम्हारे मन की इच्छा पूरी करने के लिये हाथ खोलने की जरूरत नहीं है बेटा" ताईजी उठ कर सीधी हुईं. फिर अपनी एक टांग मेरे बदन पर रखकर बैठीं, हिल डुल कर सीधी हुईं और फिर दोनों घुटने मेरी छाती के दोनों ओर जमाकर मेरी छाती पर बैठ गयीं.

"माफ़ करना बेटा, मेरे वजन से तकलीफ़ हो रही होगी पर अब मुझे समय लगता है ऐसी कसरतें करते वक्त, पहले जैसी जवान तो हूं नहीं कि फुदक कर इधर उधर हो जाऊं. बस अभी सरकती हूं"

"मांजी, आप जनम भर भी ऐसे मेरे ऊपर बैठ जायें तो आपका वजन मैं खुशी खुशी सहता रहूंगा. पर जरा ऊपर सरकिये ना"

"समझ गयी तुम क्या कह रहे हो अनिल बेटे, बस वही कर रही हूं." कहकर ताईजी थोड़ा ऊपर होकर आगे सरकीं और अपनी साड़ी उठा ली. अब उनकी महकती बुर ठीक मेरे मुंह पर थी. मैं लेटे लेटे वो मस्त नजारा देखने लगा. काले रेशमी बालों के बीच गहरे लकीर थी और दो ढीले से संतरे की फाकों जैसे पपोटे खुले हुए थे. उनमें लाल कोमल मखमल की झलक दिख रही थी. वहां इतना चिपचिपा शहद इकठ्ठा हो गया था कि बस टपकने को था. इसके पहले कि मैं ये नजारा मन भरके देख पाऊं, ताईजी ने थोड़ा नीचे होकर अपनी चूत मेरे मुंह पर जमा दी. "लो बेटे, तुम्हारे मन जैसा हो गया ना?"

मैं लपालप उस गीले चिपचिपे रस के भंडार को चाटने लगा. फिर जीभ निकालकर उस लाल छेद में डाली और अंदर बाहर करने लगा. ताईजी अचानक अपना वजन देकर मेरे मुंह पर ही बैठ गयीं और मेरे होंठों पर अपनी चूत रगड़ने लगीं. उनकी सांस अब जोर से चल रही थी. मेरी पूरा चेहरा उस बालों से ढके मुलायम गीले मांस से ढक गया था. उन्होंने अपनी साड़ी फिर नीचे कर दी थी और अब मेरा सिर उनकी साड़ी के अंदर छिप गया था. हाथ बंधे होने से मन जैसा मैं जरूर नहीं चाट पा रहा था पर जैसा भी जम रहा था वैसा मैं मुंह मार रहा था. जब वे थोड़ी हिलीं और उनकी बुर के पपोटे मेरे होंठों से आ भिड़े तब मैंने उनके चूत ही मुंह में भर ली और कैंडी जैसा चूसने लगा. एक मिनिट में वे ’अं’ ’अं’ करके उचकने लगीं और उनकी योनि ने भलभला कर अपना ढेर सारा रस मेरे मुंह में उड़ेल दिया. फिर वे थोड़ी लस्त हो गयीं और मेरे मुंह पर थोड़ी देर बैठी रहीं. मैं लपालप उस रस का भोग लगाता रहा.

थोड़ी देर में सासूमां बोलीं "कितनी जोर से चूसता है तू बेटा! लगता है काफ़ी देर का प्यासा है. मेरे को लग रहा है जैसे किसी ने निचोड़ कर रख दिया मुझे. पर बहुत प्यारा लगा मुझे तेरा ये तरीका" फिर ताईजी उठीं और सीधी हुईं. मैंने कहा "ताईजी, एकदम अमरित चखा दिया आपने. ऐसा रस किसी फल से निकले तो उसे तो चबा चबा कर खा ही जाना चाहिये"
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