Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:26 PM,
#13
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
इसलिये मैं जाकर पलंग पर बैठ गया, अपनी सास और सल्हज के प्रति अपना भक्तिभाव जताने! पहले मांजी के गाल को चूमा, फ़िर कमर में हाथ डालकर मीनल को पास खींचा. पांच मिनिट बस दोनों को बारी बारी से चुंबन लिये, अब क्या बताऊं क्या मिठास थी उन चुंबनों में, जैसे एक ही प्लेट में दो मिठाइयां लेकर बारी बारी से खा रहा होऊं. जब ताईजी का एक चुंबन जरा लंबा हो गया, याने उनके वे नरम गुलाबी होंठ इतने रसीले लग रहे थे कि मैं बस चूसे जा रहा था, तब मीनल मुझसे चिपट कर मेरे कान के लोब को दांत से काटने लगी. मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी ब्रा के बकल खोलने की कोशिश की तो बोली "रहने दो जीजाजी, अभी वक्त नहीं है, तुम फ़िर दबाने लगोगे और सब दूध बह जायेगा, ब्रा बाद में निकालूंगी."

"फ़िर क्या आज्ञा है इस दास के लिये?" मैंने हाथ जोड़ कर कहा. "बड़ी तपस्या की होगी मैंने पिछले जनम में जो दो दो अप्सराओं की सेवा करने का मौका मिला है आज"

मांजी मुंह छुपा कर हंसने लगीं. मीनल ने बड़ी शोखी से मेरी ओर देखा जैसे मेरी बात की दाद दे रही हो. फ़िर बोली "अभी तो हमें स्टैंडर्ड सेवा चाहिये अनिल, खेल बहुत हो गये. अब हम तीनों औरतों को बेचारा ललित अकेला क्या करे, और वो राधाबाई भी थोड़े छोड़ती है उसको! अभी नया नया जवान है. अब जरा इस सोंटे का ..." मेरा लंड पकड़कर हिलाते हुए बोली " ... ठीक से यूज़ करना है. कल से तुम तो बस पड़े हो, सब मेहनत हमने की, अब हम लेटेंगे और तुम मेहनत करोगे. ताईजी अब पहले आप ..."

सासूमां शरमा कर बुदबुदाईं "अरे बहू ... मैं कहां कुछ ... याने तू ही पहले ..."

मीनल ने एक ना सुनी. एक बड़ा तकिया रखकर मांजी की कमर के नीचे रखकर उनको जबरदस्ती चित सुला दिया और उनके पास लेटकर उन्हें चूमने लगी. मुझे बोली "चढ़ जाओ जमाईराजा, अब टाइम वेस्ट मत करो, अब तुम्हारे ना तो हाथ बंधे हैं ना पांव, जैसा मन चाहे, जितनी जोर से चाहे, करो, हमारी ममीजी बेचारी सीधी हैं इसलिये खुद कुछ नहीं कहतीं पर उनका हाल मैं समझती हूं"

मैंने फिर भी संयम रखा, अच्छा थोड़े ही लगता है कि वहशी जैसा चढ़ जाऊं! मांजी की गीली तपती चूत में मैंने जब लंड पेला जो वो ऐसे अंदर गया जैसा पके अमरूद में छुरी. फ़िर थोड़ा झुककर बैठे बैठे ही हौले हौले लंड सासू मां की बुर में अंदर बाहर करने लगा.

सासूमां कितनी भी शरमा रही हों पर अब उन्होंने जो सांस छोड़ी उसमें पूरी तृप्ति का भाव था. मीनल को बोलीं "बहुत अच्छा लगा बेटी, आखिर ठीक से सलीके से मेरे दामाद से मेरा मिलन हो ही गया. कल मेरी कमर दुखने लगी थी ऊपर से धक्के लगा लगा कर. पर क्या करूं, तू जतला के गयी थी ना कि अनिल को आज बस लिटाकर रखो ... ओह ... ओह ... उई मां .... बहुत अच्छा लग रहा है अनिल बेटे ... कितना प्यारा है तू ... अं ... अं ... और पास आ ना मेरे बच्चे ... ऐसा दूर ना रह ...." कहकर उन्होंने मुझे बाहों में भींच कर अपने ऊपर खींच लिया और अपनी टांगें मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लीं. मैंने भी उनको ज्यादा तंग ना करके घचाघच चोदना शुरू कर दिया, जैसा लीना को चोदता हूं. सोचा लीना को चुदवाने की जो स्टाइल पसंद है वो इन दोनों को भी जच जायेगी.

ज्यादा डीटेल में वर्णन क्या करूं, आप बोर हो जायेंगे पर अगले घंटे भर में मैंने सास बहू को अलट पलट कर मस्त चोदा. बिलकुल उनकी इच्छा पूर्ति होने तक. पहले मां जी को दस पंद्रह मिनिट चोदा, दो बार झड़ाया, खुद बिना झड़े. वे तो मस्ती से ऐसे सीत्कार रही थीं जैसे बहुत दिनों में ठीक से चुदी ना हों. दो बार लगातार झड़ीं. फ़िर मुझे ध्यान में आया कि उनका बेटा हेमन्त याने लीना का भाई दो माह से परदेस में था, ललित के बस की थी नहीं इतनी चुदाई, बेचारी चुदें तो आखिर कैसे!

चोदते चोदते मैंने मन भरके उनके मीठे गुलाबी मुंह का रस पान किया. बीच बीच में वे मेरा सिर नीचे दबाती थीं, पहले तो मुझे लगा कि क्या कर रही हैं पर फ़िर समझ में आया कि उनको मम्मे चुसवाना था. अब उनकी उंचाई मुझसे इतनी कम थी कि सिर्फ़ होंठों का चुंबन लेने के लिये ही मुझे गर्दन बहुत झुकानी पड़ती थी. फ़िर जब उनकी मंशा समझ में आयी तो भरसक मैंने गर्दन और नीची करके उनके निपल भी चूसे. गर्दन दुखने लगती थी पर उनको जैसा आनंद मिलता था, उससे उस पीड़ा को भी मैं सहता गया. लगता है उनके निपल बहुत सेन्सिटिव थे और चुसवाकर उनकी वासना और भड़कती थी. और क्यों ना हो, किसी भी ममतामयी मां के निपल तो सेन्सिटिव होंगे ही!

आखिर जब वे आंखें बंद करके लस्त हो गयीं और बुदबुदाने लगीं कि बस ... बेटा बस ... तब मैंने लंड बाहर खींचा. मीनल अब तक एकदम गरमा गयी थी. जब तक मैं ताईजी को चोद रहा था, वह बस हमसे लिपट कर जो बन पड़े कर रही थी, कभी मुझे चूमती, कभी मांजी को, कभी उनके स्तन दबाती.

अब मांजी धराशायी होते ही मीनल तैयार हो गयी. मैडम को पीछे से करवाना शायद अच्छा लगता था, डॉगी स्टाइल में. मांजी पर मैं कुछ देर पड़ा रहा, उनकी झड़ी बुर में लंड जरा सा अंदर बाहर करता रहा. उन्होंने जब आंखें खोलीं तो उनमें जो भाव थे वो देख कर ही मन प्रसन्न हो गया कि उनको मैंने इतना सुख दिया. तब तक मैं मीनल भाभी के मांसल बदन पर हाथ फिरा कर उनको और गरमा रहा था. उनकी बुर को पकड़ा तो पता चला कि एकदम तपती गीली भट्टी बन चुकी थी.

मांजी के सम्भलते ही मीनल खुद झुक कर कोहनियों और घुटनों पर जम गयी. ताईजी उठ कर बैठ गयीं और फ़िर सरककर मीनल के सामने आ गयीं. बड़े प्यार से मीनल के चुम्मे लेने लगीं "बहू ... अब ठीक से मन भरके जो कराना है करा ले अनिल से. मेरा इतना खयाल रखती है मेरी रानी, अब मेरी फिकर छोड़ और खुद आनंद लूट ले. अनिल बेटे ... बहुत अच्छी है मेरी बहू ... ये मेरा भाग्य है जो ऐसी बहू मिली है ... बेटी जैसी ... अब इसे भी खूब सुख दे मेरे लाल जैसा मेरे को दिया"
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