RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
"मीनल भाभी के लिये जान हाजिर है ताईजी, आप चिंता ना करें" कहके मैं मीनल के पीछे घुटने टेक कर बैठ गया और अपना तना मस्ताया लंड हाथ में ले लिया. अब क्या कहूं, आंखों के सामने जो सीन था वो ... याने .... स्वर्ग के दो दो दरवाजे एक साथ दिख रहे थे. फूली गोरी गोरी पाव रोटी जैसी बुर, काले बालों से भरी और उनमें वो लाल छेद, रिसता हुआ और उसके जरा ऊपर दो भरे गुदाज मांसल नितंबों के बीच जरा भूरा सा गुदा का छेद जो अभी एकदम बंद था. एक बार मन में आया कि डाल ही दूं सट से अंदर, बाद में जो होगा देखी जायेगी पर फ़िर लीना के गुस्से की याद आयी तो मन को काबू में किया. ऊपर वाले उस सकरे भूरे छेद लो बस एक बार हल्का सा उंगली से सहलाया और फ़िर लौड़े को बुर पर रखकर अंदर तक पेल दिया. फ़िर मीनल भाभी की कमर पकड़कर सटा सट चोदने लगा.
मीनल ने मन भर के मुझसे चुदवाया. "और जोर से अनिल ... और जोर से अनिल" ऐसा बार बार कहती. मैंने भी हचक हचक के वार करना शुरू कर दिया, ऐसी कोई चुदवाने वाली मिले तो चैलेंज लेने में मजा आता है. उसका बदन मेरे धक्कों से हिचकोले लेने लगा. अब वो मस्ती में "ममी ... ममी ... देखिये ना .... कैसा कर रहा है आपका दामाद ... ममी ममी ..." बड़बड़ाने लगी. ताईजी उसके सामने बैठ कर लगातार उसके चुंबन ले रही थीं. जब मीनल हल्के हल्के चीखने लगी तो उन्होंने अपना एक स्तन उसके मुंह में ठूंस कर उसकी बोलती बंद कर दी. मीनल अब कस कस के पीछे की ओर अपनी कमर ठेल ठेल कर मेरा लंड गहरे से गहरा लेने की कोशिश कर रही थी. आखिर आखिर में तो मैं भी इतना उत्तेजित हो गया कि करीब करीब मीनल पर पीछे से चढ़ ही गया. मीनल का भी जवाब नहीं, सुंदरता के साथ साथ अच्छा खासा मजबूत बदन था उसका, मेरे वजन को आराम से सहते हुए चुदवाती रही. आखिर जब झड़ी तो मुझे भी साथ लेकर. और रुकना मेरे लिये मुमकिन नहीं था. मीनल लस्त होकर पलंग पर लेट गयी और मैं उसकी पीठ के ऊपर.
उधर लीना ने बेचारे ललित की हवा टाइट कर रखी थी. मन भरके अपने छोटे भाई से चूत चुसवा रही थी. सनसनाते लंड से तंग होकर जब जब वो बेचारा उठने की कोशिश करता तो उसके कान पकड़कर फ़िर वो उसका मुंह अपनी बुर पर भींच लेती थी. एक दो बार ऐसा होने पर उसने अपनी जांघें ललित के सिर के इर्द गिर्द जकड़ लीं और तभी ढीली कीं जब ललित फ़िर चुपचाप उसकी चूत चूसने लगा.
मीनल को चोदते वक्त एक बात मैंने गौर की थी कि ललित बार बार नजर चुराके हमारी ओर देख रहा था. खास कर जब मीनल की चुदाई शुरू करने के पहले मैं लंड हाथ में लेकर उसके दोनों छेद देख रहा था तब उसकी नजर मेरे लंड पर जमी थी. शायद खुद के लंड से मेरे लंड की तुलना कर रहा हो. तब मैंने उसको एक स्माइल देकर फ़्रेंडली वे में आंख मारी थी कि जमे रहो. लीनाने तब उसको चपत मार कर फ़िर उसका सिर अपनी जांघों में दबोच लिया था और मेरी ओर देख कर शैतानी से हंस दी थी. उसकी हंसी के पीछे क्या सोच थी वो मैं नहीं समझ पा रहा था.
एक बात और मेरे मन में आयी. मांजी को चोदते वक्त मैं इतना मग्न था कि ललित की ओर ध्यान ही नहीं गया था. अगर देखता तो ललित के चेहरे पर क्या भाव होता? आखिर उसीके सामने मैं उसकी मां को चोद रहा था. अब भले ही ललित इस चुदैल परिवार का ही सदस्य था और खुद भी अक्सर अपनी मां को चोदता होगा पर अपने जीजाजी को अपनी मां को चोदते वक्त वह क्या सोच रहा होगा. विचार बड़ा लुभावना था और इसके बारे में सोच सोच कर मेरा लंड फ़िर से जागने लगा.
फ़िर ब्रेक हुआ. मीनलने आखिर ब्रा निकाली और सब को स्तनपान कराया. पहले मांजी और मुझे एक साथ और फ़िर लीना और ललित को. उसके स्तन खाली होते ही मैंने मीनल को बाहों में भर लिया और उसके मांसल मम्मे हथेली में लेकर दबाने लगा. कल से मेरा मन हो रहा था, पर अब मौका मिला था.
"लगता है चूंचियां मसलने का बड़ा शौक है जीजाजी को" मीनल ने लीना की ओर देखकर चुटकी ली.
"अरी तू नहीं जानती, एकदम पागल है ये आदमी उनके पीछे, मेरी तो बहुत हालत खराब करता है" लीना ने मेरी शिकायत की.
"अब मेरा क्या कसूर है, तुम लोगों ने इतनी मस्त चूंचियां उगाई ही क्यों? और मीनल रानी, तुम्हारे मम्मों को मसलने को तो कल से मरा जा रहा हूं, तुमने ही रोक लगा दी थी कि दूध बह जायेगा नहीं तो अब तक तो ..."
"कचूमर निकाल देते यही ना? तुम्हारे जैसा जालिम आदमी मैंने आज तक नहीं देखा" लीना बोली. "ललित चल लेट पलंग पर"
मांजी बड़े गर्व से बोलीं "पर ये बात सच है अनिल बेटा कि मीनल के स्तन लाखों में एक हैं, यह सुंदर तो है पर मुझे लगता है हेमन्त ने इसे पसंद सिर्फ़ इसकी छाती देखकर किया था. जिस दिन इसको हम देखने गये थे, तब क्या लो कट ब्लाउज़ पहना था इसने! वैसे हम सब को मीनल बहुत पसंद आयी थी.
मीनल शैतानी भरी आवाज में बोली "हां, मांजी सच कह रही हैं. हेमन्त को तो मैं पसंद आयी ही, ममी को भी इतनी पसंद आयी कि हमारे हनीमून पर भी ममी साथ थीं"
"चल बदमाश कहीं की" सासूमां लाल चेहरे से बोलीं "अरे अब हेमन्त ने ही मुझे कहा कि मां, तू भी साथ चल, मुझसे अकेले संभलेगी नहीं, बहुत गरम और तेज लगती है, तो मैं क्या करती?" ताईजी ने सफ़ाई दी.
मीनल मांजी के पास गयी और उनको चूम कर बोली "अरे ममी, नाराज मत होइये, मैं कंप्लेन्ट थोड़े कर रही हूं. आप साथ थीं तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा, वो कहने को दो रूम लिये थे पर ममी हमारे साथ ही रहीं. वे दिन रात तो भुलाये नहीं भूलते, लगातार लाड़ प्यार हुआ मेरा, हेमन्त अलग होता था तो मांजी आगोश में ले लेती थीं."
इस प्यार भरी नोक झोंक से सभी फ़िर मूड में आ गये थे इसलिये अपने आप दूसरा राउंड शुरू हो गया था. ललित को नीचे लिटाकर लीना उसपर उलटी तरफ से चढ़ बैठी थी और लेट कर उसका लंड चूस रही थी. ललित ने शायद फ़िर से कहने की कोशिश की कि दीदी, अब तो चुदवा ले पर उसके पहले ही लीना ने उसके मुम्ह पर अपनी बुर सटाकर उसकी आवाज बंद कर दी थी.
उनका यह सिक्सटी नाइन देखकर मुझे भी फ़िर से मांजी का स्वाद लेने की इच्छा होने लगी. मीनल का भी ले सकता था पर उसे चोदा था और उसकी बुर में मेरा वीर्य भर गया था इसलिये खालिस स्वाद नहीं आता. और इस बार मुझे सासूमां की बुर जरा ठीक से पूरी निचोड़नी थी, अपने खास अंदाज में.
मैं पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गया और ताईजी को मेरी ओर पैर करके सुला दिया. उनके पैर पकड़कर एक एक अपने दोनों कंधों पर रख लिये. उनकी महकती योनि अब मेरे मुंह के सामने थी. मैंने मुंह डाल दिया और चूसने लगा. ये आसन योनिरसपान के लिये बड़ा अच्छा है, आप चाहें तो अपनी प्रेमिका की बुर इस आसन में पूरी खा सकते हैं. मांजी दो मिनिट में असह्य आनंद में डूब गयीं. पांच मिनिट में उन्होंने दो बार झड़कर उन्होंने अपना तीन चार चम्मच अमरित भी मुझे पिला दिया. पर मैंने चूसना चालू रखा, अभी निचोड़ने की क्रिया तो बस शुरू हुई थी.
ताईजी पांच मिनिट में तड़पने सी लगीं. उनकी झड़ी बुर को मेरी जीभ का स्पर्ष सहन नहीं हो रहा था. "अनिल अब रुका ना बेटे ... आह ... उई मां ... अरे बस ... क्या कर रहे हो दामदजी ..." कहती हुई वे छूटने के लिये उठने की कोशिश करने लगीं. मैंने मीनल को आंख मारी, वो समझ गयी थी कि मैं क्या कर रहा हूं. उठकर उसके दोनों घुटने मांजी के सिर के आजू बाजू टेके और उनके मुंह पर अपनी चूत देकर बैठ ही गयी. मांजी की आवाज ही बंद हो गयी. वे हाथ मारने लगीं तो मीनल ने उनके हाथ पकड़ लिये और ऊपर नीचे होकर उनके मुंह को चोदती हुई खुद भी मजा लेने लगी. मैंने ताईजी के पैर पकड़े कि फटकार कर अलग होने की कोशिश ना करें और जीभ अंदर डाल डाल कर, उनकी पूरी बुर को मुंह में लेकर चूसता रहा. तभी छोड़ा जब अचानक उनका बदन ढीला पड़ गया, शायद सुख के अतिरेक को वे सहन न कर पाई थीं और बेहोश सी हो गयी थीं.
अब तक लीना ने भी ललित को चूस कर झड़ा डाला था और उठ कर बैठ गयी थी और मेरी करतूत देख रही थी. ललित बेचारा भी चुपचाप पड़ा था. थोड़ा फ़्रस्ट्रेटेड दिख रहा था, और क्यों ना हो, दो दिन से बेचारे को झड़ाया तो गया था पर मन भरके चोदने नहीं दिया था. मेरे भी मन में आया कि लीना उस बेचारे के पीछे क्यों ऐसी पड़ी है.
लीना मेरे पास आयी और धीरे से बोली "मेरे पर ऐसा जुल्म करते हो उससे पेट नहीं भरा क्या जो मेरी मां के पीछे पड़ गये?" फ़िर मेरा कान काट लिया. ये प्यार का उलाहना था. उसे मेरा ऐसा चूसना कितना अच्छा लगता था ये मैं जानता हूं.
"अब क्या करूं रानी, जब आम मीठा होता है तो सब रस निकल जाने पर भी कैसे हम छिलका और गुठली चूसते रहते हैं, बस वैसा ही करने का दिल हुआ ममी के साथ"
अब तक मीनल मेरे लंड को अपनी चूत में लेकर बैठ गयी थी. मैंने उसे पटक कर चोद डाला.
सब इतने मीठे थक गये कि शायद सब वैसे ही कब सो गये पता भी नहीं चला. कम से कम मुझे तो नहीं चला क्योंकि जब उठा तो शाम के सात बजने को थे. वैसे ही पड़ा रहा, बड़ा सुकून लग रहा था, मन और शरीर दोनों तृप्त हो गये थे.
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