RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
ताईजी भी शायद मेरे दिल का हाल समझ गयी थीं क्योंकि बिना कुछ कहे वे भी अब भरसक मेरे चुंबनों का जवाब दे रही थीं. जब मैं बार बार उनकी ब्रा को चूमता या ब्रा के कपड़े पर से ही उनके निपल चूसता तो वे मेरा चेहरा अपने सीने पर छुपा लेतीं.
"बहुत अच्छे लगे ना मेरे स्तन बेटा तुम्हे?" बीच में वे भाव विभोर होकर बोलीं. मैंने बस सिर हिलाया. उन्होंने मुझे सीने से चिपटा लिया. बुदबुदाईं "बीस साल पहले देखते तो .... "
मैं उनके स्तनों में चेहरा दबा कर बोला "मुझे तो अभी मस्त लग रहे हैं मांजी ... इनके साथ क्या क्या करने का मन होता है मेरा ..."
मेरा लंड अब कस के खड़ा हो गया था. लगातार संभोग के बाद अब गोटियां थोड़ी दुख रही थीं पर फ़िर भी लंड एकदम मस्ती में आ गया था. मेरी सासूमां का जलवा ही कुछ ऐसा था. लगता है और कुछ देर हो जाती तो हमारी चुदाई फ़िर शुरू हो जाती. वैसे लीना कुछ कहती नहीं पर जिस तरह से वह हमें जतला कर गयी थी कि अब कुछ मत करना, उससे लगता था कि थोड़ा चिढ़ जरूर जाती.
फ़िर लीना की आवाज सुनाई दी. वह मीनल से कुछ बोल रही थी. शायद जान बूझकर जोर से बोल रही थी कि हम आगाह हो जायें. मैं मांजी से अलग होकर बैठ गया. ताईजी ने फटाफट अपने कपड़े ठीक किये और उठ कर एक अलमारी खोल कर उसमें कुछ जमाने लगीं.
लीना अंदर आयी. हम दोनों को ऐसा अलग अलग देख कर उसे शायद आश्चर्य हुआ पर वो खुश भी हुई. "अरे वा, दोनों कैसे आराम से बात चीत कर रहे हैं. मुझे तो लगा था कि जिस तरह से सास दामाद की आपस में मुहब्बत हो गयी है, वे न जाने किस हाल में मिलेंगे"
"चल बदमाश, तेरे को तो बस यही सूझता है" मांजी बोलीं. वैसे लीना की बात सच थी.
लीना मेरी ओर मुड़कर बोली "चलो अनिल, पैकिंग कर लें."
"तुमको जो खरीदना था वो सब मिल गया लीना बेटी?" मांजी ने पूछा.
"हां मां, बस एक दो ही चीजें चाहिये थीं, बाकी तो सब है घर में. अब जल्दी चलो अनिल"
मैं लीना के पीछे हो लिया. जाते जाते जब मुड़ कर देखा तो सासूमां मेरी ओर देख रही थीं. उनकी नजरों में इतने मीठे वायदे थे कि वो नजर एकदम दिल को छू गयी.
हमारे रूम में आकर मैंने अपना सूटकेस ऊपर पलंग पर रखा. लीना कपड़े रखने लगी. दो मिनिट बाद मुझे अचानक समझ में आया कि वो बस मेरे ही कपड़े रख रही है, खुद के नहीं. हम दोनों मिलकर बस एक बड़ी सूटकेस लाये थे.
"अपने कपड़े रखो ना डार्लिंग, या दूसरी बैग लेने वाली हो?" मैंने कहा.
लीना मेरे पास आयी और मेरे गले में बाहें डाल कर शोखी से बोली "डार्लिंग ... तुम नाराज तो नहीं होगे? ... वो क्या है कि मैं नहीं आ रही तुम्हारे साथ ... मीनल और मां दोनों चाहती हैं कि हम रुक जायें ... अब तुम्हारा तो ऑफ़िस है पर मैं सोच रही हूं कि मैं एकाध दो हफ़्ते को रुक जाती हूं"
मेरा चेहरा देख कर मुझे चूम कर बोली "सॉरी मेरे राजा ... मैं जानती हूं कि तुम्हारा एक मिनिट नहीं चलेगा मेरे बिना पर प्लीज़ ... ट्राइ करूंगी कि एक हफ़्ते में लौट आऊं. अब मां का भी तो खयाल करना है, उसके साथ मुझे टाइम ही नहीं मिला"
मैंने बेमन से कहा "ठीक है लीना रानी, अब तुम कह रही हो तो मैं कैसे मना कर सकता हूं? तुम्हारी कोई बात मैंने टाली है कभी"
लीना मुझे लिपटकर बोली "वैसे तुमको बिलकुल सूखे सूखे अकेले नहीं जाने दूंगी बंबई. लता को भेज रही हूं तुम्हारे साथ"
"लता कौन?" मैंने अचरज से पूछा?
"अरे भूल गये? कल नहीं देखा था मेरी मौसेरी बहन, बहुत कुछ मेरे जैसी दिखती है. लगता है भूल गये. खैर जाने दो, अब मिल लेना, आती ही होगी. पैकिंग हो गया तो अब चलो बाहर" हाथ पकड़कर मुझे लीना बाहर ले गयी. जाते जाते बोली "अब उसके साथ कुछ ऊल जलूल नहीं करना, सीधी है बेचारी."
"नहीं करूंगा, उतनी समझ है मेरे को. पर ऐसे क्यों भेज रही हो लता को इस वक्त मेरे साथ, वो क्या करेगी वहां, मैं तो ऑफ़िस में रहूंगा, वो बोर हो जायेगी"
"बोर क्यों? घुमाना बंबई रोज. ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करना" वो ऐसे कह रही थी जैसे ये सब बड़ा आसान हो. मैं जरा धर्मसंकट में था. बीच में ये भी लगता कि ये फ़िर से लीना का कोई खेल तो नहीं है.
हम बाहर आये. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. लीना ने आवाज लगाई "भाभी कहां हो?"
मीनल के कमरे से आवाज आयी "यहां हूं ननद रानी, लता आई है, उससे जरा गप्पें लड़ा रही थी"
"अरे बाहर आओ ना. अनिल भी है यहां"
"दो मिनिट लीना. ये लता शरमा रही है अनिल के सामने आने को." मीनल की आवाज आयी.
लीना बोली "अब आ भी जाओ, अनिल कोई दूसरे थोड़े हैं. शरमाने की जरूरत नहीं है" फ़िर मुझसे बोली "फ़िर से मेकप कर रही होगी, सुंदर है ना, जरा सेन्सिटिव है, मेकप ठीक ठाक करके ही आयेगी देखना"
"अच्छा रानी पर ये तो बताओ, कि बंबई आने का ये प्लान अचानक कैसे बना? याने लता ने कहा कि मैं जाना चाहती हूं कि तुम दोनों ननद भौजी ने मिलके उसको उकसाया है?" मैंने धीमे स्वर में पूछा. लीना पर मेरा बिलकुल विश्वास नहीं है, ऐसे नटखट खेल वो अक्सर खेलती है और फ़िर मेरी परेशानी देखकर खुश होती है.
"अब क्या फरक पड़ता है? तुम बस ये देखो कि एक सुंदर कमसिन अठारह बरस की कन्या तुम्हारे साथ, अपने जीजाजी के साथ बंबई जा रही है, हफ़्ते भर अकेली रहेगी उनके साथ, अब और कोई होता तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता और तुम हो कि शंका कुशंका कर रहे हो"
मैं चुप हो गया. मन ही मन कहा कि रानी, तेरी नस नस पहचानता हूं इसलिये शंका कर रहा हूं. वैसे एक बात जरूर है, लीना ने जब जब मुझे ऐसा फंसाया है, उसका नतीजा मेरे लिये बड़ा मीठा ही निकला है हमेशा.
पांच मिनिट हो गये तो मैंने भी आवाज दी. आखिर अपना जीजापन दिखाकर उस कन्या की झेंप मिटाना भी जरूरी था. "अब आ भी जाओ भई लता, कहो तो मैं आंखें बंद कर लेता हूं"
मीनल की आवाज आयी "अनिल, मैं ले आती हूं उसको, बहुत शरमा रही है"
मीनल मुस्कराते हुए बाहर आयी. उसने एक लड़की का हाथ पकड़ रखा था और उसे खींचती हुई अपने पीछे ला रही थी. मुझे तो ऐसा कुछ दिखा नहीं कि वह ज्यादा शरमा रही हो, हां मंद मंद हंस रही थी.
लड़की सच में सुंदर थी. छरहरा नाजुक बदन था, डार्क ब्राउन कलर की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहने थी. हाथों में एक एक फ़ैशन वाला कॉपर का कंगन था और एक स्लिम गोल्ड वाच थी. गोरे पैरों में ऊंची ऐड़ी के सैंडल थे. छरहरा बदन था, एकदम स्लिम, ऊंचाई लीना से तीन चार इंच कम थी. चेहरा काफ़ी कुछ लीना जैसा था, काफ़ी कुछ क्या, बहुत कुछ. बस बदन लीना के मुकाबले एकदम स्लिम था, लीना अच्छी खासी मांसल है, मोटी नहीं पर जहां मांस होना चाहिये वहां उसका एवरेज से ज्यादा ही मांस है. वजन थोड़ा ज्यादा होता और ऊंची होती तो एकदम लीना की जुड़वां लगती. हल्का मेकप किया था और होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी. आंचल में से छोटे छोटे पर तन कर खड़े उरोजों का उभार दिख रहा था.
"याद आया? कल ही तो मिलवाया था बड़े घर में" लीना ने कमर पर हाथ रखकर मुझसे पूछा. मैं अचरज में पड़ गया. ऐसी सुंदर कमसिन कन्या, लीना से मिलते जुलते चेहरे की और मुझे याद ना रहे! अब क्या बोलूं ये भी नहीं समझ पा रहा था.
मेरी परेशानी देखकर मीनल आंचल मुंह में दबा कर हंसने लगी. मैंने सोचा कि कुछ तो बोलना पड़ेगा. बोला "हेलो लता. सॉरी कल जल्दी जल्दी में इतने लोगों से मिला कि ... पर चलो, अब बंबई आ रही हो तो जान पहचान हो ही जायेगी. वैसे सच में तुम चल रही हो या ये इन दोनों ने मिलकर कुछ शरारत की है" लीना और मीनल की ओर इशारा करके मैं बोला.
"पहले ये बताइये दामादजी कि हमारी लता कैसी है? बंबई की लड़कियों के मुकाबले जच रही है या नहीं?" मीनल बोली. लीना ने भी उसकी हां में हां जोड़ी. लता खड़ी खड़ी बस जरा सा शरमाते हुए सब को देख देख कर मुस्करा रही थी.
मैंने कहा "ऐसे किसी का कंपेरिज़न करने की बहुत बुरी आदत है तुमको लीना. वैसे मैं सच कहूं तो इस प्रश्न में कोई दम नहीं है. लता इज़ वेरी प्रेटी, बहुत फोटोजेनिक है"
मीनल और लीना ने पट से एक दूसरे से हाथ पर हाथ मारा जैसा आज कल का फ़ैशन है ये बताने को कि कैसे बाजी मार ली.
"सिर्फ़ सुंदर कहकर नहीं बचोगे दामादजी. अंग अंग का निरीक्षण करके डिस्क्राइब करो लता की सुंदरता. लता, जरा घूम ना, एक चक्कर तो लगा, अनिल को भी देखने दे तेरा जलवा"
अब अपने ही बड़े घर की, जहां एक अलग डिसिप्लिन चलता है, एक लड़की को ये लोग इस तरह से बोल रही थीं यह देखकर मेरा माथा ठनका कि कुछ गड़बड़ न हो जाये. लता क्या सोच रही होगी. मैंने उसकी ओर देखा तो वो भी मेरी ओर देख रही थी. कुछ शरमा कर बोली "अब ये बहुत हो गया भाभी, इस सब की क्या जरूरत है?"
बोल लता रही थी पर आवाज ललित की थी. एल पल को मैं हक्का बक्का रह गया पर फ़िर एकदम से दिमाग में रोशनी हुई. ये ललित ही था लड़की के रूप में.
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