RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
ललित मेरी ओर देखने लगा. मैंने जरा छेड़ा "लीना दीदी ने ये नहीं बताया कि नहाते वक्त उसको खड़े खड़े शॉवर के नीचे जब तक चोद नहीं लेता तब तक हमारा नहाना खतम नहीं होता"
थोड़ा संभल कर ललित बोला "पर जीजू ... "
"डर मत मेरी जान, इसीलिये तेरे साथ नहाना बाद में होगा ... अभी तू जा और नहा ले, मुझे कुछ काम है"
ललित के जाने के बाद मैंने लीना को फोन लगाया. आने के बाद उससे बात ही नहीं हुई थी. उसने भी फोन नहीं किया था. वैसे कोई अचरज की बात नहीं थी, तीनों गरम गरम नारियों में - मां, बेटी और बहू - अकेले में जम के इश्क चल रहा होगा - ये तय था.
लीना को फोन लगाया. पहले पांच मिनिट डांट फटकार और ताने सुने कि कैसे मैं उसको भूल गया, इतना भी वक्त नहीं है जनाब को कि पांच मिनिट फोन कर लेते. फ़िर दस मिनिट उसने बड़े इन्टरेस्ट से ललित के कारनामे सुने कि कैसे वह अब तक लड़की जैसा ही रह रहा है, घर में भी ब्रा पैंटी पहनता है, कैसे मेरे साथ पूरा दिन लड़की के भेस में हाई हील पहनकर घूमा इत्यादि इत्यादि.
"असल बात तो बताओ. बस जीजा साले की तरह रह रहे हो कि कुछ साली और जीजा जैसा भी हुआ है? तुमने उसे परेशान तो नहीं किया अकेले में? "
"अरे ललित एकदम खुश है. कल मेरे साथ सोया भी था हमारे बेड में"
"सिर्फ़ सोया? " लीना ने पूछा.
"अब मिलने पर बताऊंगा रानी, जरा सस्पेंस तो रहने दो, अगर जीजा साली का चक्कर चल सकता है तो जीजा साले का क्यों नहीं? वैसे तुम्हारे छोटे भाई को बिलकुल फूल - या कली जैसा संभाल कर रख रहा हूं."
"हां वैसे ही रहो. जबरदस्ती मत करना मेरे नाजुक भैया के साथ. तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं, तुम्हारा एक बार खड़ा हो जाये तो तुमको जरा होश नहीं रहता ... फ़िर उस बेचारे को अकेले में ... उसपर सांड जैसे चढ़ मत जाना"
"अरे डार्लिंग - सारी दुनिया एक तरफ़ और जोरू का भाई एक तरफ़ - और वो तो साले से ज्यादा मेरी प्यारी नाजुक साली है. अब जरा मेरी सुनो, जरा सीरियस बात है. आज शांताबाई ने लगता है ललित को देख लिया दूर से. वैसे वो तुम्हारी ड्रेस में था और दूर से उसने उसे लीना समझ लिया होगा - यही बात मेरे को जरा खटक रही है. अब देखना, वो कल पक्का आकर बेल बजायेगी यह समझ कर कि तुम वापस आ गयी हो"
लीना हंसने लगी "अरे वा... मुझे नहीं लगा था कि ललित इतने अच्छे तरीके से मेरी ड्रेसेज़ पहनने लगेगा, जो शांताबाई भी दूर से धोखा खा जाये. पर इसमें परेशानी की क्या बात है? आती है तो आने दो. तुम्हारा उपवास भी खतम हो जायेगा" अब ये उपवास से ऐसा न समझें कि वह पेट वाले उपवास की बात कर रही थी. वैसे शांताबाई खाना भी बहुत अच्छा बनाती है.
"मुझे ये उपवास मेरे प्यारे साले ... सॉरी साली के साथ ही छोड़ना है. अब तो कहीं जरा घुला मिला है मुझसे, इश्क विश्क भी करने लगा है, अब जब असली बात के करीब आ गये हैं तो ये शांताबाई आ टपकी. बेवजह का लफ़ड़ा शुरू हो गया"
"कोई लफ़ड़ा नहीं होगा. तुम शांताबाई को सब बता दो, तुमको मालूम है कि वो मेरे पर तुम्हारे ऊपर भी कितनी जान छिड़कती है, मदद ही करेगी तुम्हारी, जैसी उस दिन की थी" लीना का स्वर थोड़ा शैतानी भरा था.
"मुझे उनकी मदद नहीं चाहिये, जो करना है मैं खुद कर लूंगा. और ऐसी क्या मदद की थी शांताबाई ने?" मैंने पूछा.
"भूल गये? उस दिन दोपहर को ... तुम्हारा जम के मूड था पर मैं तैयार नहीं थी क्योंकि वेसेलीन खतम हो गयी थी ... नयी बोतल लाना भूल गये थे तुम"
मुझे याद आया. याद आने के साथ ही लंड में गुदगुदी होने लगी, तुरंत खड़ा होने लगा. मैंने दाद दी "याद आया रानी साहिबा, बस, यही ठीक रहेगा, शांताबाई जिंदाबाद."
"और देखो, मुझे एक दो दिन और देरी हो सकती है आने में. अब मां नहीं आने देगी जल्दी. इसलिये ललित को भी बता देना कि वो भी वापस आने की जल्दी ना करे. वैसे भी उसके कॉलेज की छुट्टी एक हफ़्ते के लिये बढ़ गयी है. चलो, शांताबाई आ गयी ये सुन कर मुझे दिलासा मिला. कल वो रहेगी तो तुम पर कंट्रोल रहेगा. नहीं तो तुम ललित की हालत कर देते"
"इतना क्यों बदनाम कर रही हो डार्लिंग? ललित को एकदम लाड़ प्यार से संभाल रहा हूं मैं. कल सोते वक्त तो ’आइ लव यू जीजाजी’ भी बोला.
"अरे वाह. याने तुमपर अच्छा खासा मरने लगा है ललित. चलो अच्छा है, साले और जीजा के मधुर संबंध हों तो और क्या चाहिये. अब कितने मधुर ये तो उन दोनों पर ही छोड़ देना चाहिये है ना" कहकर लीना हंसने लगी. फ़िर बोली "और अब शांताबाई आ ही रही है तो दोनों काम रोज करने दो अब उसको"
"दोनों काम याने?"
"अब भोले मत बनो. घर का काम और वो ... दूसरा वाला काम. समझे?"
"समझ गया मेरी मां. वैसे काम करने में शांताबाई होशियार है. देखें ललित को उनका काम कितना अच्छा लगता है. वैसे तुम बताओ, हमारी सासू मां कैसी हैं? और भाभी जी? उन्होंने जो मुंह मीठा कराया था निकलते वक्त, उसका स्वाद अब भी मुंह में है"
"मां बहुत खुश है, एकदम मस्ती में है, हां जरा परेशान है बेचारी" लीना बोली
"क्यों डार्लिंग?"
"हम दोनों मिलकर जो उसके पीछे लगे हैं कल से. असल में बाजी जरा पलट गयी है. मां ने मीनल भाभी के साथ प्लान बनाया था कि जब लीना आयेगी और हमारे साथ अकेली रहेगी तो उसके साथ ऐसा करेंगे, वैसे करेंगे. पर मीनल भाभी गद्दारी कर बैठी. भाभी को सीधा करना मेरे को आता है. उसके बाद हम दोनों मिलकर मां पर टूट पड़े हैं. मीनल भाभी को भी मौका मिला है अपनी सास के साथ जो मन चाहे करने का. अकेले में तो शायद करने की हिम्मत नहीं होती. कल से मां बेचारी को बेडरूम में ही कैद रखा है, निकलने ही नहीं दिया. उसको बचाने को अब राधाबाई भी नहीं है, गांव गयी है."
"अरे अरे ... ऐसा मत करो ... कैसी दुष्ट हो ... वो भी मां के साथ ..."
"हां हां रहने दो अपनी सिम्पैथी, तुम होते तो ऐसा ही करते ... सच अनिल ... मां का इतना मीठा रस निकाला है हम दोनों ने मिलके ... और अपना रस निकलवाने में उसे भी मजा आता है ... वैसे मां तुमको भी याद करती है ... दिल जीत लिया है तुमने उसका"
दो तीन मिनिट और नोक झोंक करके मैंने फोन रख दिया. लीना से बात करके हमेशा अच्छा लगता है मुझे.
इसके बाद मैंने थोड़ी वर्जिश की, उठक बैठक लगाईं. वैसे मैं सोसायटीके जिम में जाता हूं रोज पर अभी जरा अज्ञातवास चल रहा था इसलिये अवॉइड कर रहा था. व्यायाम करने के बाद मैं नहाया. बदन पोछकर वैसे ही बाहर आ गया, बिना कपड़े पहने. पहले सोचा देखूं ललित तैयार हुआ या नहीं, फ़िर सोचा इस तरह से उसके पीछे लगना ठीक नहीं है. ईमेल देखने बैठ गया और काम में जुट गया.
जब दो बाहें मेरे गले में पीछे से पड़ीं तब मैंने लैपटॉप से ऊपर देखा. क्षण भर लगा लीना ही है, वो हमेशा बड़े प्यार से ऐसे ही पीछे से मेरी गर्दन में बाहें डालती है. पर ललित था, या ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि ललिता थी. अब वहां जो लड़की खड़ी थी उसमें से जैसे ललित का नामोनिशान गुम हो गया था. बदन से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, काली ब्रा और पैंटी में बला की हसीन लग रही थी. मैंने उसे गोद में खींच लिया. देखा तो पैरों में लीना की सिल्वर कलर वाली चार इंची हाई हील थी. याने मुझपर डोरे डालने की पूरी तैयारी करके आई थी ललिता -- या ललित? मैंने उसका धीरे से चुंबन लिया. आज उसने हल्की गुलाबी लिपस्टिक भी लगाई थी, स्ट्राबेरी के टेस्ट वाली. मैं उस स्ट्राबेरी को खाने में जुट गया. उस मीठी स्ट्राबेरी को - उन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों का स्वाद लेते लेते इस बार मेरे हाथ ललित के पूरे बदन पर घूम रहे थे. आज मैं उसके बदन को ठीक से जान लेना चाहता था. कभी उसकी पीठ सहलाता, उसकी ब्रा के स्ट्रैप को खींचता और ट्रेस करता, कभी उसकी कमर हाथ से टटोलता, कभी उसकी छरहरी जांघों की पुष्टता को महसूस करता और कभी उसके नितंबों को पकड़कर दबाता. और अब आखिर में एक हाथ मैंने उसकी पैंटी में डालकर उन मुलायम नितंबों को दबा कर, मसलकर, रगड़कर उनकी नरमी और चिकनाई को पूरा महसूस किया.
उस रात भी मैंने ललिता को नहीं चोदा. याने नहीं चोदना चाहता था ऐसी बात नहीं है, उन खूबसूरत नितंबों के बीच अपना सोंटा गाड़ने को मैं मरा जा रहा था पर जैसे मैं और ललित में टेलीपैथी से ऐसे जुड़ गये थे कि एक दूसरे के मन की बातें बिनकहे समझ रहे थे. ललित ने मेरी तीव्र वासना को पहचान लिया था. मुझे भी यह समझ में आ रहा था कि इस समय ललित पूरा लड़की के माइन्डसेट में आ चुका था और मेरे आगे पूरा समर्पण करना चाहता था, मुझसे हर तरह का सेक्स करना चाहता था पर अब भी मेरी तना हुआ मूसल अपनी गांड में लेने से डर रहा था.
इसलिये वह रात थी बड़ी मादक पर उसमें चुदाई नहीं हुई. आधे घंटे की बेहिसाब चूमाचाटी के बाद जब मैं और रुकने की हालत में नहीं था, तब ललित ने मुझे कुरसी में बिठा कर मेरे सामने नीचे बैठ कर मुझे वह ब्लो जॉब दिया जैसा शायद लीना ने भी कम ही दिया होगा. बहुत देर तक मेरे लंड को कर तरह से चूस कर आखिर जब मुझे झड़ाया तो मुझे ऐसा लगा कि मेरी वासना की शांति के साथ साथ मेरी जान भी निकल गयी हो. इस बार पूरा वीर्य उसने आंखें बंद करके चाव से निगला और बाद में भी निचोड़ता रहा.
इस सुख के बदले में मैंने जब उसे वही सुख देने को पास खींचा तो वह अलग हो गया, जबकि उसका लंड इतना कस के खड़ा था कि पैंटी के अंदर सीधा उसके पेट से सट गया था. मैंने उसके कान में प्यार से कहा "घबराओ मत ललिता डार्लिंग, तुम्हें आज मैं नहीं चोदूंगा. असल में तुम्हारे इस मुलायम बदन में अपना लंड घुसेड़ने को मैं मरा जा रहा हूं, कोई भी कीमत दे सकता हूं फ़िर भी आज नहीं चोदूंगा क्योंकि मुझे इस बात का एहसास है कि तुम अभी तैयार नहीं हो. पर मेरी जान, अब अपने आप को तैयार कर लो, किसी भी हालत में कल तो तुमको मुझसे चुदाना ही होगा. पर आज तुमको मैं इस मस्ताई हालत में सूखा सूखा छोड़ दूं तो पाप लगेगा, अब तू बैठ और मैं तेरे को प्यार करता हूं"
ललित नजर झुका कर बोला "जीजाजी ... आज रहने दीजिये, मुझे ऐसा ही चलेगा. मस्ती कल के लिये संभाल कर रखता - रखती हूं, ये ऐसी हालत रहेगी तो कल आपसे चुदाने में आसानी होगी"
मैं समझ गया. बेचारा अपने लंड की मस्ती ऐसे ही बचा कर रखना चाहता था, याने इस मस्ती में मेरे लंड को अपनी गांड में लेने में उसको आसानी होगी ऐसा उसको लग रहा था. बात सच थी, मैंने उसे चूमा और कहा "ठीक है ललिता रानी, जो तुम कहो वैसा ही होगा. अब फ़िर ऐसा करो, कि आज वहां लीना के कमरे में सो जाओ, मैं अपने बेडरूम में सोता हूं. और देखो, सो जाना, इसको ..." उसके लंड को पैंटी के ऊपर से दबाकर मैं बोला "हाथ भी मत लगाना"
"ठीक है जीजाजी" ललित बोला.
"नींद आयेगी?"
ललित जरा शर्मिंदगी में मुस्करा दिया, उसका लंड जिस हालत में था उसमें सोना असंभव था. मैंने कहा "चल, स्लीपिंग पिल देता हूं, सिर्फ़ आज के लिये, कल से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, नींद नहीं आयेगी तो रात भर चुदाई किया करेंगे"
रात को मुझे भी स्लीपिंग पिल लेना पड़ी क्योंकि के ने दो बार मुझे चूसने के बावजूद मेरा फिर खड़ा हो गया था. अब कल का इंतजार था, और कल की उस मादक घड़ी के पहले शांताबाई आकर क्या गुल खिलायेगी, आयेगी भी या नहीं, इसका भी मुझे अंदाजा नहीं था.
|