Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:28 PM,
#25
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
रात को सोने के पहले मैंने ललित से कहा था कि कल मैं छुट्टी ले लेता हूं "और घूमेंगे. एलीफैंटा चलते हैं"

वो पहले खुश हुआ "सुपर जीजाजी. मजा आयेगा" फ़िर नीचे देख कर बोला "वैसे आप छुट्टी ले रहे हैं तो ... हम घर में भी रह सकते हैं"

मैं समझ गया कि वो क्या कह रहा है. मेरे साथ और मौज मस्ती करना चाहता था, यह मालूम होते हुए भी कि आज तो उसकी गांड की खैर नहीं है. मुझे उसकी यह अदा बहुत प्यारी लगी. मैंने कहा कि कल सोचेंगे क्या करना है.

इसलिये सुबह मैंने उसे देर तक सोने दिया. मैं लैपटॉप लेकर बैठा काम कर रहा था. बेल बंद कर दी थी कि ललित को डिस्टर्ब ना हो. थोड़ी देर से मुझे बेल स्विच दबाने की आवाज आयी. मैंने पीप होल से देखा तो शान्ताबाई ही थीं. मैंने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने दिया. दरवाजा बंद किया और शान्ताबाई की ओर देखा.

शान्ताबाई आज एकदम सज धज कर - साज सिन्गार करके आई थीं. लीना ने उनको दीवाली पर अपनी एक शादी की सिल्क की साड़ी दी थी, वही पहनी थीं. ब्लाउज़ उन्होंने नया सिलाया था क्योंकि लीना का ब्लाउज़ तो शान्ताबाई को हो ही नहीं सकता था, ब्लाउज़ की छाती को ही डेढ़ गुना कपड़ा लगता.

"कल लीना बाई को देखा तो हैरान रह गयी मैं भैयाजी" वो बोलीं. "जाते बखत तो यही बोली थी कि एक दो हफ़्ते बाद आऊंगी. अब कल देखा तो यकीन ही नहीं हुआ. मैं तो रोड के पार आकर बात करने वाली थी पर बाई रुकी ही नहीं. बस मुस्करा कर चली गयी. मैंने भी सोचा कि ऐसा क्या जल्दी थी मोड़ी को कि मेरे से बात किये बिना चली गयी नहीं तो हमेशा तो मेरे बिना एक दिन नहीं जाता उसका. वैसे है कहां लीना दीदी? अंदर ही होगी."

मैंने हां कहा. शान्ताबाई अंदर जाने लगी तो मैंने हाथ पकड़ किया. "अब लीना से मिलने की ऐसी भी क्या जल्दी है शान्ताबाई? हम भी तो हैं ना यहां, आप के चाहने वाले. जरा हमसे मीठी मीठी बातें कीजिये, हमारा मुंह मीठा कराइये, फ़िर अंदर जाइये अपनी प्यारी छोरी से मिलने, वैसे भी वो सो रही है अभी" कहकर मैंने खींचकर शान्ताबाई को अपने से चिपटा लिया. फ़िर उनको गोद में ले कर सोफ़े में बैठ गया.

"ये क्या भैयाजी! छोड़ो मेरे को. ऐसे खुले में बैठक के कमरे में अच्छा लगता है क्या?" शान्ताबाई थोड़ा शर्मा कर बोलीं. वे हमेशा शुरू में थोड़ा शरमाती हैं और मुझे उनकी ये अदा बड़ी लुभावनी लगती है. मैंने उनकी एक ना सुनी और उनको कस के भींच कर उनका एक चुंबन ले लिया. वे मेरी गिरफ़्त से छूटने की बेमन की कोशिश करते हुए बोलीं. "अब भैयाजी, जरा सबर करो, सबर ना हो रहा हो तो कम से कम अंदर तो चलो. ऐसे खुले आम क्या करम करवाते हो मेरे से. पहले मेरे को देखने दो कि हमारी बिटिया कैसी है, उसको कुछ चाहिये क्या? फ़िर घर का भी तो काम पड़ा है, वो तो जरा कर लेने दो"

"घर का काम बाद में बाई, पहले यह वाला काम करना जरूरी है. और इस वाली दीवाली की मिठाई तो अब तक मैंने चखी ही नहीं" मैंने उनके जरा से मोटे मोटे पर एकदम नरम मुलायम पान से लाल होंठों को कस के चूमते हुए कहा. फ़िर उनकी वो एक विशाल चूंची पकड़ कर बोला "और ये माल तो और मालदार हो गया लगता है बाई सिर्फ़ एक हफ़्ते में. जरा देखें तो ऐसा क्या हो गया इस खोये के गोले को?"

"कुछ भी कहते हो आप भैयाजी" गर्दन को एक खूबसूरत झटका देकर शांताबाई बोलीं. "वजन बढ़ गया है मेरा, अब जाते वक्त लीना बिटिया इतनी सारी मिठाई मेवा मेरे को दे कर गयी, घर में और कोई खानेवाला है नहीं, फ़िर मैंने ही सारी खा डालीं. अब बदन फूलेगा नहीं तो क्या होगा. अब छोड़ो भी, ये क्या कर रहे हो" उन्होंने उठने की एक झूट मूट की कोशिश की पर मैंने पकड़कर नीचे खींचा तो धप से मेरी गोद में वापस बैठ गयीं. फ़िर खुद ही मेरे चुंबन लेने लगीं. विरोध प्रकट करने का नाटक कहिये या लज्जाशील औरतों की तरह पहले नहीं नहीं कहने का एक औपचारिक प्रोटोकॉल कहिये - वो उन्होंने पूरा कर लिया था. अब वे भी अपनी प्यारी दुलारी लीना बिटिया के पति के लाड़ दुलार करने में लग गयीं.

मैंने मौके का फायदा उठाया. मुझे ऐसा एकांत उनके साथ बहुत कम मिलता है, करीब करीब नहीं के बराबर क्योंकि लीना साथ में होती है. इसलिये आज मिले एकांत का मैंने पूरा उपयोग कर लिया. पहले उनके उन भरे भरे होंठों के खूब चुंबन लिये, ऐसे चुंबन शान्ताबाई को बड़े अच्छे लगते हैं, जब मस्त गरम हो गयीं तो उनका ब्लाउज़ सामने से खोला और चुम्मे लेते लेते उनके मोटे मोटे स्तनों को हाथेली में भरके खेलने लगा. वे ब्रा पैंटी वगैरह नहीं पहनती हैं इसलिये सीधे असली काम पर आने को वक्त नहीं लगता. जब मेरी हथेली में उनके निपल खड़े होकर चुभने लगे तो उनको थोड़ी देर तक बारी बारी से चूसा. जब वे मेरी गोद में बैठे बैठे मेरी टांग को अपनी जांघों में लेने की कोशिश करने लगीं तब मैं समझ गया कि भट्टी गरम हो गयी है और रस की फ़ैक्टरी ने अपना काम शुरू कर दिया है.

इसलिये मैंने उन्हें वहीं सोफ़े पर लिटा कर उनकी साड़ी ऊपर की और उनकी घने काले बालों वाली बुर में मुंह डाल दिया. गजब का रस है उनका, अगर लीना का रस किसी महंगी वाइन जैसा है तो शान्ताबाई का खालिस देसी ठर्रा है जो सीधा दिमाग में चढ़ता है. मन भरके रस पीकर मैं उनपर चढ़ गया और लंड उनकी तपती चूत में घुसेड़कर चोद डाला. कहने को शान्ताबाई नाक सिकोड़ कर "ये क्या भैयाजी ... ऐसे यहीं ... लीना बिटिया आ गयी तो क्या कहेगी ... बोलेगी कि मुझसे मिली भी नहीं और सीधे मेरे मर्द को अपने ऊपर ले लिया ..." पर ये सब कहते कहते वे खुद मुझसे चिपक कर, मुझे बाहों और टांगों में जकड़कर चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थीं. ये हमेशा होता है, लीना से उनको भले मुहब्बत हो, मुझसे चुदवाने को वे हमेशा तैयार रहती हैं, आखिर जवान लंड से चुदवाना उन जैसी रसिक गरम औरत कैसे छोड़ेगी!

मैंने झुक कर उनका वो काले जामुन जैसा निपल मुंह में लिया और चूसते चूसते जम के धक्के लगाने शुरू कर दिये. चोद कर बड़ी शांति मिली, ऐसे बस लंड चुसवा चुसवाकर आदमी फ़्रस्ट्रेट हो जाता है, घचाघच चोदे बिना सुकून नहीं मिलता.

मैं पड़ा पड़ा हांफ़ रहा था. दो मिनिट बाद जब जरा शांत हुआ तो मुझे हटाकर शान्ताबाई उठ बैठीं और कपड़े और बाल ठीक ठाक करके बोलीं "चलो ... हो गया ना आपके मन जैसा? ... अब जरा अंदर जाने दो मेरे को नहीं तो लीना बाई चिल्लाएगी"

"वो सो रही है शान्ताबाई. नहीं तो मुझमें इतनी हिम्मत कहां कि बिना उसकी इजाजत के आपको हाथ तक लगाऊं!"

उठकर साड़ी ठीक करके शान्ताबाई बोलीं "आज क्या छुट्टी पर हो भैयाजी?"

मैंने हां कहा. वे बोलीं "फिर फालतू में इतनी जल्दबाजी की. लीना बिटिया हमेशा आप की छुट्टी के दिन आप को भी अंदर बुला लेती है, किसी बात को ना नहीं कहती. आराम से जरा मस्ती ले लेकर करते तो मुझे भी जरा तसल्ली होती"

मैंने उनकी कमर में हाथ डालकर कहा "दिल छोटा ना करो शांताबाई. इस जवान लंड को तो तुम जानती हो, जब कहोगी तब फ़िर से चोद दूंगा, आपकी इच्छा नुसार"

अपनी नाक सिकोड़ कर आंख मटकाकर उन्होंने मुझे अपना झटका दिखा दिया और अंदर चली गयीं. लगता है लीना से मिलने को बहुत उत्सुक थीं. मैं सोफ़े पर लेट कर राह देखने लगा कि अब क्या कहकर बाहर आयेंगी. शान्ताबाई हमारे यहां कैसे काम करने लगीं वह भी मेरे दिमाग में चलने लगा.
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