RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
शान्ताबाई को ढूंढकर लाने का श्रेय लीना को ही जाता है. लीना लाखों में एक है और उसकी कामवासना भी लाखों में एक है. जैसे दिन रात धधकते रहने वाली आग. शादी के बार जैसे लाइसेन्स मिल गया है तो और तीव्र हो गयी है. पहले वह सर्विस करती थी, अब छोड़ दी है, घर में अकेले रह कर जैसे उसका टॉर्चर होता है. अच्छा वह ऐसी स्लट नहीं है कि कहीं भी किसी से सेक्स कर ले, उस मामले में बिना परखे या बिना जान पहचान के, बिना उस व्यक्ति के लिये मन में थोड़ी मृदुल भावना आये कुछ नहीं करती. अब मेरा एक मित्र अरुण और लीना की एक सहेली सोनल ने भी शादी कर ली है और उनसे हमारी अच्छी जमती है, हर बात में! दो तीन दिन का वीकेन्ड हो तो साथ रहते हैं, हर चीज शेयर करते हैं, बेड तक. तब लीना को अपनी आग थोड़ी धीमी कर लेने का मौका मिलता है. पर उनके साथ वीकेन्ड बिताने का मौका बस महने में एकाध बार ही आ पाता है.
लीना को मैं बहुत प्यार करता हूं, इतना कि उसकी यह तड़प मुझसे नहीं देखी जाती. मैं तो इतनी हद तक सोचने लगा था कि कोई हैंडसम नौकर रख लूं जो दोपहर में उसे खुश रखे.
पर लीना ने दन से यह आइडिया ठुकरा दिया. "मुझे नहीं चाहिये. वो अरुण और सोनल हैं ना, उतना ठीक है. और मेरे राजा, मुझे तुम समझते क्या हो? आखिर तुम मेरे पति हो. ऐसे किसी ऐरे गैरे के साथ मुझे बिलकुल नहीं चलेगा. वो भी नौकर. हां नौकरानी की बात और है"
तब मुझे याद आया कि उमर में बड़ी औरतों के प्रति भी लीना को बड़ी आसक्ति है, बाद में कारण समझ में आया जब उसकी मां और राधाबाई को मिला. अब ऐसी नौकरानी ढूंढना जो लीना के दिल में उतर जाये, मेरे लिये मुमकिन नहीं था, पर लीना खुद ही ढूंढ लेगी इसका मुझे विश्वास था.
हुआ भी ऐसा ही. तब शान्ताबाई पास के मार्केट में सब्जी का ठेला लगाती थी. लीना अक्सर उसीके यहां से सब्जी खरीदती थी. एक दिन मुझे बोली "वो सब्जी वाली बाई देखी डार्लिंग?"
"कौन सी सब्जी वाली" मैंने अनजान बनकर कहा. वैसे मैं जानता था. शान्ताबाई के यहां से जो भी सब्जी खरीदता था, वह उनके एकदम देसी जोबन से अछूता नहीं रह सकता था.
"अब बनो मत, सब्जी तौलते वक्त कैसे उसकी छाती की ओर टुकुर टुकुर देखते रहते हो, मुझे क्या मालूम नहीं है?"
"अब वो ... याने डार्लिंग" मैंने लीपा पोती की कोशिश की तो लीना और भड़क गयी. "देखो मुझे गुस्सा ना दिलाओ अब ..." फ़िर अचानक शांत हो गयी "मैं नाराज नहीं हो रही हूं, तुम ये जो बिना बात झूट बोलते हो वो मुझे नहीं सहा जाता. शान्ताबाई ... याने वो सब्जी वाली ... तुम देखो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, है ही वह देखने लायक. उसके वे मम्मे देखे? पपीते जैसे हैं. है थोड़ी सांवली पर एकदम चिकनी है"
"जरा उमर में बड़ी है. पैंतीस छत्तीस के ऊपर की तो होगी."
"तुमको इतने साल की लगी याने चालीस या पैंतालीस की भी होगी. पर मुझे चलेगा." लीना पलक झपका कर बोली.
"चलेगा याने ..." मैंने पूछा तो तुनक कर बोली "किस काम के लिये ये सब मुझे चलेगा ये अब समझाने की जरूरत नहीं है. इस उमर की औरतें अक्सर बड़े मीठे स्वभाव की होती हैं, खुद भी मीठी होती हैं, इस शान्ताबाई की मिठास चखने का मूड हो रहा है. और उसका इन्टरेस्ट भी है मुझमें."
"अब ये तुमको कैसे मालूम डार्लिंग" मैंने सवाल किया तो लीना बोली "वो बताने की बात नहीं है, समझने की बात है. मैं सब्जी लेने जाती हूं तो बस मुझसे गप्पें लड़ाने लगाती है, मेरी आंखों में बेझिझक देखती है. दूसरे ग्राहक रहें या चले जायें, उससे उसको फरक नहीं पड़ता. मुझे सबसे अच्छी और ज्यादा सब्जी देती है. सब्जी चुनते वक्त जरूरत से ज्यादा झुकती है और अपनी चोली में से मोटे मोटे स्तनों का दर्शन कराती है. मुझे बहुत सेक्सी लगी डार्लिंग वो औरत. ये अपने यहां काम करने को राजी हो जाये तो ... उफ़्फ़ ... मजा आ जायेगा .... और तुम जो परेशान रहते हो मेरी परेशानी देख कर, वो भी खतम हो जायेगी."
मुझे भरोसा नहीं था. "देख लो डार्लिंग, वो है तो सेक्सी और जैसा तुम कहती हो, वैसे तुमपर मरती भी होगी पर आखिर उसका सब्जी बेचने का पुराना व्यवसाय है, वो छोड़कर घर का काम करने को राजी हो जायेगी ये मुझे नहीं लगता"
"तुम बस देखो, और ये सब फ़्री में थोड़े कराऊंगी उससे, अच्छी सैलरी दूंगी."
लीना का कहना सच निकला, शान्ताबाई तो जैसे बस राह देख रहे थी कि लीना कुछ कहे. लीना के बात छेड़ते ही तुरंत तैयार हो गयी, न पैसे की बात की, न क्या काम करना होगा इसकी बात. वो तो लीना पर ऐसी फिदा थी कि तुरंत ठेला बंद करके दूसरे ही दिन हाजिर हो गयी. लगता है लीना पर मर मिटी थी, वैसे लीना है ही इतनी सुंदर और उतनी ही चुदैल. और शान्ताबाई ने उसकी चुदासी पहचान ली थी.
शान्ताबाई हमारे यहां काम करने लगी उस दिन से लीना के चेहरे पर जो सुकून मुझे दिखने लगा, उससे मैंने भी मन ही मन शान्ताबाई को धन्यवाद दिया. लीना वैसे उसे बहुत खुश रझती थी. अच्छे खासे पैसे, खाना पीना, साड़ी कपड़े. और शान्ताबाई भी ऐसी हो गयी थी जैसे स्वर्ग में आ गयी हो. और उसे भले मालूम हो कि उसका असली काम क्या है, घर का काम भी बड़ी मेहनत से करती थी, लीना को कुछ भी नहीं करना पड़ता था.
और शान्ताबाई को बस एक हफ़्ता ट्राइ करके लीना ने छुट्टी के दिन शान्ताबाई के साथ चलते अपने इश्क में मुझे भी शामिल कर लिया. हां वह खुद उस समय रहती थी. शान्ताबाई को भी ऐसा हो गया कि अंधा मांगे एक आंख, और मिल जायें दो. भले लीना के साथ उसका जम के प्यार दुलार चलता था पर मर्द से चुदाने में उसे उतना ही आनंद आता था.
ये सब याद करते करते मेरा खड़ा हो गया और फ़िर अचानक मैं यह सोचने कगा कि अंदर क्या चल रहा होगा.
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